मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

सोमवार, 25 जनवरी 2021

इएह नियति छल !

इएह नियति छल !

 

हम जखन नौकरीमे गेलहुँ तँ शुरु-शुरुमे बहुत परेसानी होअए। ई नहि बूझल रहए जे एहि पेशामे सभकेँ डाँट-फाँट होइते रहैत अछि । केओ कतबो पैघ अधिकारी होथि,हिनका हुनकर वरिष्ठ कहिओ-ने-कहिओ कोनो-ने-कोनो त्रुटि पकड़ि किछु-ने-किछु कहबे करतिन । ई एहि पेशाक संस्कार थिक । तेँ एकरा बेसी ध्यान नहि देबाक छलैक। मुदा हम तँ अपन माता-पिताक बहुत दुलारु संतान रही । परिस्थितिवश एक्कैसम वर्षेसँ नौकरी करए लागल रही । जँ कोनो बातपर अधिकारी डाँटि देथि तँ बहुत कष्टमे पड़ि जाइ । गाम-घरसँ फटकी रहए पड़ए सेहो बहुत कष्टक कारण रहए ।

  हमरा शुरुमे नौकरी करबाक लूरि नहि रहए । अधिकारी,सहकर्मी आ अधीनस्थ कर्मचारी सभक संग अलग-अलग व्यवहार करब नहि बुझिऐक । क्रमशः एहि माहौलसँ समन्वय करब आबि गेल । तकरबाद नौकरी करब ओतेक मोसकिल नहि रहल । मुदा ताहि प्रयासमे व्यक्तित्वक मौलिकता सेहो क्षीण होइत गेल । सरकारी सेवामे तँ आदमीकेँ एकटा मसीन जकाँ बना देल जाइत अछि । एकर सभसँ नीक शिक्षा हमरा एकटा कार्यालयमे कार्यरत मालीसँ भेटल । ओकरा किछु कहिऐक तकर जबाब यस सरमे दैत छल । हम एकबेर पुछलिऐक जे ओ एना किएक करैत अछि । जबाबमे ओ कहलक जे ओकरा एकटा अधिकारी सिखा देने रहथिन जे सरकारी कार्यालयमे केओ किछु कहए तँ तकर उत्तरमे यस सर कहि देल करी । ओ सएह करए ।

जँ सेवानिवृत्तिक बाद भेल स्पेशल मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेटक नौकरीक अवधि जोड़ि देल जाए तँ हम  बिआलिस वर्ष नओ महिना सोलह दिन नौकरी केलहुँ , ओहो दूरभाष निरीक्षकक हेतु प्रशिक्षणक नओ महिना छोड़ि कए । एतेक समयमे कतेको तरहक नीक लोक -बेजाए लोक भेटैत रहलाह । कतेको लोक अएलाह-गेलाह । मुदा किछुगोटे जीवनमे तेना ने जुड़ि गेलाह जकर कल्पनो हम नहि केने रही । ओहिमे नगवासक श्री नारायण झाजी , पिंडारुछ गामक प्रोफेसर(डाक्टर) विनय कुमार चौधरीजी , ओहि समयमे गृह मंत्रालयमे कार्यरत दरभंगा लग पतोर गामक बासी मिसरजी(श्री रबीन्द्र नारायण मिश्र) ,इलाहाबादक श्री संजीव सिन्हा जी , आ न्याय विभागमे कार्यरत मुजफ्फरपुर लगक श्री मदन मोहन सिन्हाजी बिसरने नहि बिसरा सकैत छथि । बिना कोनो स्वार्थकेँ ई लोकनि जीवन भरि हमरा सभ तरहें सहयोग करैत रहलाह ।  एकरे कहल जा सकैत अछि पूर्वजन्मक संवंध । भए सकैत अछि जे ई लोकनि पहिलके जन्मसभसँ हमर अपन रहल होथि । ई घटना कोनो हमरे संगे भेल होएत से बात नहि छैक । सभ व्यक्तिक संग जीवनमे किछु-ने-किछु चमत्कार होइत अछि जकर व्याख्या करब मोसकिल थिक । हिनका लोकनिक अतिरिक्तो बहुत रास एहन लोकसभ संपर्कमे अएलाह जिनकासँ बहुत तरहक उपकार होइत रहल। ककर-ककर नाम लेल जाए । एहि पोथीमे प्रसंगवश एहने किछुगोटेक स्मरण भेल अछि । मुदा बहुतगोटेक बारेमे हम नहि लिखि सकलहुँ । तकर मूल कारण प्रकाशकीय समस्या कहि सकैत छी । मुदा तकर माने नहि जे ओ सभ कोनो मानेमे कम महत्वपुर्ण छलाह । अवसर अएलापर भविष्यमे हुनको लोकनिपर लिखवाक प्रयास कएल जाएत।

 जीवन चलिते अछि सहयोगसँ । एकटा मनुक्खक निर्माणमे कतेको लोकक योगदान रहैत अछि । माता-पिता तँ जन्म दैत छथि ,पालन-पोषण करैत छथि । मुदा संस्कार आ शिक्षा तँ समस्त समाजसँ भेटैत अछि । सभ वंदनीय छथि,प्रशंसाक पात्र छथि जिनका बिना एतेकटा समय नीकसँ बीतबाक कल्पनो नहि कएल जा सकैत छल। दुर्गामाताकेँ शत्रुसँ लड़बाक हेतु समस्त देवतालोकनि अपन-अपन अस्त्र -शस्त्र प्रदान केलनि । तकरबादे ओ युद्धमे उतरलीह आ विजयी भेलीह । तहिना एहि जीवन युद्दमे सफलताक पाछु छोट-पैघ अनेको लोकक योगदान रहैत अछि । जन्मसँ मृत्यु पर्यंत समाजक सहयोगक बिना केओ एकडेग नहि बढ़ि सकैत अछि । 

हमरा लोकनिक उच्च विद्यालय एकतारामे गणितक शिक्षक श्री जटाशंकर झाजीक ॠण कोना सधा सकैत छी जे हमरा गणितमे तेहन पक्का कए देलाह जे आगु कतेको वर्ष धरि हमरा फएदा करैत रहल । हमरा गामक कतेको लोकसभ(जे आब एहि लोकमे नहि छथि) हमरा निरंतर उत्साहित करैत रहलाह,कैकबेर मदति केलाह,तिनकर उपकारकेँ कोना बिसरल जा सकैत अछि । हमर पितिऔति काका स्वर्गीय पंडित चंद्रधर मिश्रजीक प्रेरणादायी विचारसँ हम कतेक उपकृत भेल छी तकर की वर्णन करू । बाबूक कैकटा संगीसभ जेना स्वर्गीय श्यामलाल यादव (अड़ेर,ब्रह्मोत्तरा),स्वर्गीय कृष्णदेव नारायण सिंह(एकतारा),स्वर्गीय मार्कंडेय भंडारी सभक अनेको उपकार हमरापर अछि । एही तरहें नौकरीक क्रममे कतेको प्रिय-अप्रिय घटनासँ बहुत शिक्षा भेटैत रहल । तकरासभकेँ कोना बिसरब? जहिना कतेको लोकसभ बिना कोनो लोभ-लालचकेँ हमरा मदति केलनि आ हमर जीवन यात्राकेँ सुगम बनबएमे सहयोगी भेलथि तहिना हमहु जतए मौका भेटए अनका मदति करी सएह सुंदर समाधान भए सकैत अछि। हम से प्रयास केबो केलहुँ । ओना हम ताहिमे कतेक सफल आ सही रहलहुँ से तँ ओएहसभ कहि सकैत छथि । मुदा अपना मोनमे संतोष तँ रहिते अछि  जे हमर परिस्थिति छल  ताहिमे जे जे जखन कएल जा सकैत छल से हम केलहुँ ।

जहिना किछुगोटे स्वतः मदति करैत रहलाह,तहिना किछुगोटे अकारण हमरा परेसान करैत रहलाह । अखनो कखनहु जखन बितलका बातसभ मोन पड़ैत अछि तँ रोमांच भए जाइत अछि । आखिर ओ सभ एनाकिएक केलाह? मुदा छोड़ू ओ बात सभ जीवन अछिए कतेकटा? जँ सएहसभ सोचैत रहि जाएब तँ सोचिते रहि जाएब । किछु नीक नहि कए सकब । नीक बनबाक लेल,नीक करबाक हेतु बहुत किछु छोड़ए पड़ैत अछि । ओहिना जेना श्वेत रंग सातो रंगकेँ छोड़ि कए सात्विकताक ग्रहण करैत अछि। मानलहुँ जे ई ओतेक आसान नहि छैक,तथापि एकटा उच्च आदर्श तँ मोनमे रखबेक चाही । तखने जीवनमे आनंद उठा सकैत छी ।

भोरे नओ बजेसँ साँझ छओ बजे धरि वा ओहूसँ बेसी समय लोकक कार्यालयमे बितैत अछि । ताहिसँ एक घंटा पहिने आ एकघंटा बादक समय कार्यालय आबए-जाएमे बितैत अछि । कार्यालय बिदा होबएसँ पहिने भोरे उठलाक बाद लोक नित्यकर्मसँ निवृत भए अपना आपकेँ कार्यालय जेबाक हेतु तैयार करैत अछि। कार्यालयसँ घर अएलाक बादो घंटा-दूघंटा धरि कार्यालयक थकान भगबएमे लागि जाइत अछि। कहक माने जे सोमसँ शुक्र दिन धरि कमसँ कम बारह घंटा समय कार्यालयमे वा ओकर तैयारीमे बिति जाइत अछि । एतेक थाकल-ठेहिआएल जखन लोक घर अबैत अछि तँ बेसी किछु करबाक स्थितिमे नहि रहि जाइत अछि । कनी-मनी परिवारक लोकसभ सँ गप्प-सप्प केलाक बाद लोक भोजन केलक आ सुतबाक हेतु चलि गेल । एहि तरहें पाँचदिन बितलाक बाद अबैत अछि शनिक दिन । ओहो तखन जखन कि पाँचदिनक कार्य दिवस होइक । जँ से नहि अछि तखन तँ बस सप्ताहमे एकहिटा दिन बचि जाइत अछि । मुदा आब अधिकांश कार्यालयमे पाँचदिन कार्यदिवस होइत छैक । तेँ लोक सप्ताहमे पाँचदिन काज केलाक बाद सप्ताहांत होबएबला छुट्टीक बहुत उत्सुकतासँ प्रतीक्षा करैत छथि । शनि-रविक दिन अपना हिसाबसँ सुतैत आ उठैत छथि । जतए मोन होइत छनि ,ओतए घुमैत छथि । माल-सीनेमा वा कोनो पर्यटन स्थल जाइत छथि । देखिते-देखिते फेर सोमक दिन आबि जाइत अछि । तकर बाद ओएह दैनिक कार्यक्रम शुरु भए जाइत अछि । ओहिना भोरे उठब,ओहिना समयपर कार्यालय पहुँचब । दिनभरि ओतए कुटौनी करब आ साँझमे थाक-झमारल वापस अपन घर आएब । एहि तरहे आइ-काल्हि करैत-करैत  कतेको वर्ष बिति गेल। कोन-कोन विभागसभ ने घुमैत रहलहुँ। अंततोगत्वा, सेवानिवृत्त भए गेलहुँ । सेवानवृत्तिक बादो फेरसँ स्पेशल मेट्रोपोलिटन मजिष्ट्रेटक पदपर दिल्ली उच्च न्यायालयसँ चयन भेल आ तीन साल चारि महिना धरि दिल्लीक विभिन्न न्यायालयमे हम ई काज केलहुँ। पैंसठि वर्षक आयु भेलापर इहो काज सठि गेल। एहि तरहे देखिते-देखिते एतेकटा जीवन बिति गेल ।

जखन जिनगीक पन्ना वापस उनटबैत छी तँ सोचिते रहि जाइत छी । सोचलिऐक किछु,भेलैक किछु । ई बात कोनो हमरे संगे भेल से बात नहि छैक । जीवन छैहे तेहने। एकर कोनो निजगुत रस्ता नहि अछि,ई कोनो पहिनेसँ खींचल डरीरपर चलए बला नहि अछि,एक हिसाबे ई आबारा थिक,जे मोन हेतैक सएह करत । प्रकृतिमे सभठाम मोटा-मोटी इएह हाल छैक । जखन मोन हेतैक मेघ बरसि जाएत,जखन मोन हेतैक भयानक गर्मी पड़ए लागत आ कखनो तेहन जाढ़ धरत जे होएत जे एकचारिओमे आगि लगा कए हाथ सेकि ली । बाह रे जिनगी! हम सोचैत रहैत छी जे जँ हम दिल्ली नहिए जइतहुँ तँ कोनो घाटामे नहि रहितहुँ । हमर कैकटा मित्र मधुबनी,दरभंगामे जिनगी भरि रहलाह आ की नहि कए गेलाह? मुदा फेर ओएह बात? सभक अपन-अपन भाग्य,सभक अपन-अपन कर्म । जीवनकेँ कोनो तय सीमामे व्याख्या नहि कएल जा सकैत अछि । मानि लिअ जे केओ आइएएस कइए गेल तँ की ओ सुखी रहबे करत तकर कोन ठेकान? कोनो ठेकान नहि? कैकटा आइएएस आत्महत्या कए लैत छथि? कैकटा आइआइटी इंजिनीयर अकाल मृत्युक शिकार भए जाइत छथि । तेँ जीवन जे भेटल अछि तकरा मात्र अफसोच करैत बिता लेब,कोनो नीक बात नहि कहल जा सकैत अछि । असल बात तँ ई थिक जे सभक जीवनक दशा ओ दिसा पूर्वसँ तय अछि आ सभ किछु ओही तरहें होइत अछि जेना ओकरा हेबाक रहैत अछि । प्रकृतिक व्यवस्थामे कोनो दुविधा नहि रहैत अछि । ओ तँ हमसभ स्वयं मोहवश उतपन्न कए लैत छी ।

कहबी छैक जे जखन धोती पहिरए जोकर होइत अछि तँ ओ फाटए लगैत अछि । खिआइति -खिआइति ओकर ताग महिन भए जाइत छैक,धोती चिक्कन भए जाइत छैक । मुदा ओ घात-प्रतिघात सहबा जोगर नहि रहि जाइत अछि आ कनिको जोर पड़ितहि फाटि जाइत छैक । सएह बात जीवनोपर लागू होइत छैक। से कोना? तँ कहिए दैत छी । युवावस्थामे लोककेँ बहुत उर्जा रहैत छैक । लोक खतरा उठा सकैत अछि । मुदा जीवनक अनुभव कम रहबाक कारण उल्टा-पुल्टा निर्णय भए जाइत छैक । अनुभव होबएमे समय लगैत छैक,सौंसे जीवन बीति जाइत छैक । मुदा ताबे समये नहि रहि जाइत छैक जे लोक सुधार करए । तेँ चाही जे अनुभवी लोकनिक विचार ली,हुनकर ज्ञान सँ फएदा उठाबी । नेना जकँ आङुर जराए कए आगिसँ बँचबाक शिक्षा नहि ली । आब जखन पाछु घुमि कए सोचैत छी तँ लगैत अछि जे कैकटा एहन गलतीसभ भेल जाहिसँ बँचल जा सकैत छल । मुदा आब ओहिपर सोचलासँ की फएदा? जे हेबाक छल से भेल । समय समाप्त अछि। जीवनक अंतिम अध्याय चलि रहल अछि ।

ई बात तँ निर्विवाद अछि जे एहि संसारमे केओ असालतन नहि रहल । जे आएल से गेल । तखन जे अवसर भेटल अछि तकरा नीक सँ नीक उपयोग कए लेबे बुधिआरी थिक । बहुत लोक से प्रयास करितो छथि । बहुत लोक प्रयास कइओ कए प्रारव्धवश बेसी नहि कए पबैत छथि । लोक सोचबाक हेतु विवश भए जाइत छथि जे एहुनका संगे एना किएक होइत छनि?  ई जीवन बहुत रहस्यात्मक अछि । केओ जनमिते अछि संपन्न घरमे जतए ओकरा सभ किछु स्वतः सुलभ रहैत अछि । तँ केओ जनमिते सड़कपर मजदूरी करैत अपन माएक संगे रहए पड़ैत छैक । भाग्यं फलति सर्वत्र न विद्या न च पौरुषः । अहाँ कतबो किछु कए लेब मुदा जँ भाग्य दहिन नहि रहल तँ अहाँ ठामहि रहि जाएब । एक सँ एक धनीक,विद्वान,उच्चपदपर आसीन लोक सभ किछु अछैत दुखी रहि जाइत छथि आ मामुली खेतिहर जन-बनिहार निचैन फोंफ कटैत अछि । ओतहि श्रीमान लोकनि सभ किछु सुविधाक अछैत भरि राति करौट बदलैत रहि जाइत छथि । तेँ मात्र भौतिक उपलव्धिएसँ जीवन सुखी नहि भए सकैत अछि । मनुक्खकेँ चाही मोनमे सकून ,निश्चिंतता आ सभसँ बेसी शांति ।

सभ कथाक अंत होइत अछि । नीक-बेजाए सभ समय बिति जाइत छैक । मुदा ओकर स्मरण बाँचल रहि जाइत छैक । चाहे कतबो पैघ लोक होथि ,हुनको जीवनमे उठापटक होइते छनि,उत्थान-पतन होइते छनि । सुख-दुखक क्षण अबिते छनि । चाहे कतबो संपन्न लोक होथि,कतहु-ने-कतहु हुनको अभाव रहिए जाइत छनि । एहिसभसँ बहुत शिक्षा भेटैत अछि – हे मनुक्ख! अहाँ अपन सीमान सँ परिचित रहू । अहंकारवश गलती पर गलती नहि करैत जाउ । उलटि कए पाछु ताकू । साइत किछु सुधार अपनामे कए सकी । जे किछु अपराधवोध मोनमे गड़ि गेल अछि,ताहिसँ मुक्तिक मार्ग ताकू । तखने सही मानेमे अहाँ सुखी भए सकब ।

हमर उनहत्तरिम वर्ष चलि रहल अछि । एहि अवधिमे जे केओ जाहि रूपमे भेटलाह सभ स्मरण होइते रहल अछि,होइते रहत। सही मानेमे ओ सभ धन्यवादक पात्र छथि जे हमरा कहिओ कोनो रूपमे मदति केलाह । संगहि ओहो कम धन्यवादक पात्र नहि छथि जे बेबजह यदा-कदा परेसान करैत रहलाह । साइत ओ हमर आंतरिक शक्तिकेँ जगबैत रहलाह जाहिसँ हम आओर दृढ़तासँ जीवन संग्राममे जुटल रहि सकलहुँ । अन्यथा तँ कहि नहि हम कतए रहितहुँ ?एहि दीर्घकालीन जीवन यात्रामे भेटल बहुत रास स्मृति शेष हमर पाथेय थिक जकर बलें हमरा विश्वास अछि जे आगामी शेष समय सेहो नीकसँ कटि जाएत।

जाइत-जाइत  Francis Duggan क बहुत उपयुक्त आ प्रेरणादायी कविता Thank you life!पढ़ैत चली

Thank you life!

I have had a good innings and I have a nice wife
And if I die tomorrow I will have had a good life
I am not financially wealthy or I am not in poverty

I thank you life you have been quite good to me
In my life's seventh decade this is quite a long time
Some forty years beyond my physical prime
Lucky as far as health goes without ache or pain
I do not have any cause for to complain
So many poor people doing it tougher than me
Homeless and hungry and in dire poverty
Born as the children of the lesser gods
Every day they have to battle the odds

Compared to many I am lucky indeed
Of any of life's necessities I am not in need.

 

Francis Duggan

 

*****

 


मंगलवार, 19 जनवरी 2021

जन्मभूमि

 

जन्मभूमि

कहबी चेक जे केओ अपन जन्म आ मृत्यु नहि चुनि सकैत अछि । ई सभ पूर्वनिर्धारित होइत अछि । के कतए ,कखन आ कोन परिवेशमे जन्म लेत ताहिमे ओकर कोनो योगदान नहि रहैत छैक । ओ अपन प्रारव्धक अनुसार एहि दुनिआमे अबैत अछि आ ओहिना चलि जाइत अछि । हम चौठचंद्रक दिन सन् १३६० सालमे अड़ेर गाममे एकटा सुखित परिवारमे जनमल रही । ओहि समयमे लोक चंद्रमाकेँअर्घ देबाक तैयारी करैत रहए । ताहिसँ किछुए काल पूर्व हमर जन्म भेल रहए । हम अपन माता-पिताक छठम संतान रही । ओहिसँ पूर्व हुनकासभकेँ पाँचटा बेटीए रहनि । तेँ परिवारमे बहुत आतुरतासँ बेटाक प्रतीक्षा कएल जा रहल छल । हमर दाइ तँ पोताक बाट तकैत-तकैत चारिम पोतीक जन्मक बाद मामूली बिमारीसँ अकाल कालक गालमे विलीन भए गेल रहथि । सोचल जा सकैत अछि जे हमर जन्मक समय सभगोटे कतेक प्रसन्न रहल होएताह । ओहि समयमे परिवारक आर्थिक हालत बहुत नीक रहैक । बाबा खेती-बारी करैत छलाह ।  ओहिसँ पर्याप्त उपार्जन होनि । हमर मातृक (सिंघिआ ड्योढ़ी) सेहो बहुत संपन्न छल । हमर माए(स्वर्गीय दयाकाशी देवी) सेहो बहुत संपन्न परिवारक रहथि । अपन माता-पिताक एकमात्र संतान रहथि । हमर नाना(स्वर्गीय राम प्रसाद झा)क मृत्यु माएक जन्मसँ किछु मास पूर्वहि भए गेल रहनि । मुदा ओहि समयक कानूनक हिसाबे हुनका अपन पैतृक संपत्तिमे उचित हिस्सा नहि देल गेलनि । कारण अंग्रजेकक बनाओल कानूनक अनुसार जँ परिवारमे बेटा नहि भेल तँ बेटीकेँ ओहि संपत्तिक उत्तराधिकारी नहि मानल जाइ । ओ संपत्ति दोसर फरिकेनकेँ भए जाइ आ मसोमातकेँ खोरिस मात्र देल जानि । हमरो नानीकेँ कमोबेस सएह हाल रहनि । हमर बाबू बादमे मोकदमा केलाह तँ आपसी समझौताक बाद किछु जमीन हमर नानीकेँ देल गेलनि । एहि तरहेँ गामक आ मात्रिक,दुनूठामक संपत्ति मिला कए बाबूकेँ पर्याप्त संपत्ति रहनि जे ओ बँचा नहि सकलाह आ बादमे पहुत परेसानीमे पड़ि गेलाह ।

हमर  जन्मक बाद हमर तीन भाइक जन्म भेलनि । एहि तरहें हमसभ नओ भाइ-बहिन रही । वाल्यावस्थामे हमरसभक समय बहुत नीक कटल । खूब खेलाइ, खूब  पढ़ी । परिवारमे नेनासभकेँ बहुत देख-रेख होइत छल । बादमे बाबा बूढ़ होइत गेलाह । खेतसभ बटाइ लागि गेल ।ओहिसँ उपार्जन कम होइत गेल । बहिनसभक बिआह -द्विरागमन तँ दस-बारह साल धरि लगातार होइते रहल । खेतसभ साले-साल बिकाइत चलि गेल । तकर बाद तँ तेहन हालति भेल जकर कल्पनो हमरा परिवारमे केओ नहि केने रहल होएत । मुदा से भेल ।हम बी एस.सी केलाक बाद पढ़ाइ छोड़ि कए सरकारी नौकरीमे चलि गेलहुँ । हमर छोट भाइसभ सेहो परिवारक परिस्थितिसँ परेसानीमे पड़ि गेलाह । सभ जेना-तेना सालोंक संघर्ष केलाक बाद ओहिसभसँ उबरि सकलाह आ आब सभ ठीक-ठाक चलि रहल छथि । लगैत अछि जेना एकटा दुस्वप्न देखलाक बाद सभक निन्न टुटि गेल होनि आ सभ राहत महसूस कए रहल छथि । साइत ई सोचि कए जे जे भेल तकर बिसरि कए आगु  बढ़ल जाए । ताहीमे सभक कल्याण थिक ।

पण्डौल डीह टोल




जीवन यात्रामे जीवन संगिनी क महत्व तँ सभगोटे जनिते छी । हम मूलतः अड़ेर सन देहातमे शुरुक पचीस-छबीस वर्ष बितओलहुँ । हमर बिआहो ओही समयमे पण्डौलगाममे स्वर्गीय गणेश झाजीक दोसर संतान श्रीमती आशा मिश्रसँ ४ जून १९७५क भेल छल । हमरा ओहिना मोन अछि जे हम सतरहटा बरिआतीक संगे रातिक दसबजे पण्डौल पहुँचल रही । बरिआतीमे बाबूक अतिरिक्त हमर तीनू भाइ,हमर मित्र लालबच्चा(विष्णुकान्त मिश्र) ,हुनकर पिता स्वर्गीय चंद्रधर मिश्र ,हमर बहिनोइ स्वर्गीय सुखदेव झा आ किछु आओर लोक रहथि । बरिआती पण्डौलपर हमर ससुरक दरबाजापर पहुँचि गेल रहए । आङनमे गीत-नाद शुरु भए गेल रहए । थोड़बे कालमे हमर परिछन शुरु भए गेल । पण्डौल पुरबारि टोलक पंडितजी बिआह करओलनि । हुनकर आकर्षक स्वभाव अखनो मोन पड़ि रहल अछि । हमर जेठसरि रेणु मिश्र बिधकरी रहथि । बरिआतीक खाइत कालक ठहाका अखनो हमर कानमे गुंजित होइत रहैत अछि । सुनलिऐक जे किछु बरिआती आम खेबामे नाम कए गेलाह ।

बिआहक बाद चतुर्थी धरि नित्य मौहक कालक गीतक मधुर स्वर मोन पड़ैत रहैत अछि । मोन पड़ैत रहैत अछि चतुर्थी रातिमे आङनमे ओसारापर बहुत रास लोकसभ आएल रहथि । गीत-नाद भए रहल छल । हमहु हरमुनिआपर गीत गएबाक प्रयास केने रही । ओहिमे गड़बड़ी भए गेल रहैक आ हमर ससुर बहुत परेसान भए गेल रहथि । ताबते नुनु काका(स्वर्गीय    ) दौड़ल अएलाह आ कहैत छथि-मिसरक गीत सुनि कए हमर गाय बिआ गेल । तकर बाद जे ठहाका पड़ल से की कहू । असलमे हमरा हरमुनिआ नीकसँ नहि अबैत छल । मुदा जोशमे होश नहि रहल ।

बिआहक समयमे हम दरभंगामे टेलीफोन इन्सपेक्टरक काज करैत रही । ओहिठामसँ सासुर अबरजात बनल रहैत छल । बिआहक बाद हमर ससुर मुंगेर नौकरी करए चलि गेलाह । किछुदिनक बाद हमर सासु सेहो ओतहि चलि गेलीह । तखन रहि गेलीह विधकरी रेणु बहिन । जखन-कखनो हम बिआहक बाद दरभंगासँ पण्डौल जाइ तँ ओएह स्वागतमे लागि जाथि । हमर ज्येष्ठ साढू स्वर्गीय इंद्रानंद मिश्र(गुर्महा -पचाढ़ी) सेहो अबैत-जाइत रहथि । एहि तरहे सासुरक माहौल बहुत रमनगर रहैत छल ।

हमर ससुर स्वर्गीय गणेश झा भारत सरकारक सेवामे लेखा  अधिकारीक पदसँ सेवानिवृत्तिक बाद गामेमे घर बना कए रहैत छलाह । मधुबनीमे सेहो ओ घर बनओने रहथि । मुदा बादमे ओहिठाम मोन उबिआ गेलनि तँ भगला गाम दिस । गाममे बहुत भव्य मकान बनओलथि जे अखनो फटकिएसँ देखल जा सकैत अछि । पण्डौलक बाध बहुत उँच छैक । रेलवे लाइनसँ लए कए पण्डौल बजार धरि सभटा जमीन बासक हेतु उपयुक्त अछि । एहन बास बहुत कम गाममे होइत छैक । ताहुमे हमर ससुरक घर तँ एकदम फराकमे रहबाक कारण बहुत हवादार अछि । चारूकातसँ हवा रौद सोझे मकानमे पहुँचि जाइत अछि । मकान बनेलाक तीन सालक भीतरे हमर ससुरजी देहावसान भए गेलनि । तकर बाद लगभग उन्नैस साल हमर सासु जीलथि आ ओहि मकानक उपयोग केलथि । बहुत बादमे ओ साल-दूसाल गाममे नहि रहि सकलीह , हमर सार श्री संतोष कुमार झाक इन्दिरापुरम स्थित डेरापर रहथि । मुदा सदिखन इच्छा रहनि जे गामे रही । पछिला साल १८ दिसंबरक अकस्मात हुनकर देहावसान भए गेलनि । हुनकर मृत्युक बाद  एकटा महत्वपूर्ण अध्याय पूर्ण भए गेल । हमर सासु भागलपुर जिलाक भ्रमरपुर गामक रहथि । बहुत व्यवहारिक आ मितव्ययी रहथि । हुनके सहयोगसँ हमर ससुर  अपन आर्थिक परिस्थिति मजगूत कए सकल रहथि । पण्डौलमे नीक संपत्तिक अर्जित केने रहथि । चारिटा बेटी आ एकटा बेटाक खूब नीकसँ पालन-पोषण केने रहथि । ततबे नहि ,संयुक्त परिवारक कतेको जिम्मेबारीक मर्यादापूर्वक बाहन केने रहथि ।

पण्डौलक भौगोलिक स्थिति देखि कए हमरा कैकबेर मोन होअए जे किछु जमीन ओतए कीनि ली । बादमे ओकर उपयोगपर सोचल जेतैक । मुदा हमर श्रीमतीजीकेँ ई बात एकदम पसिंद नहि भेलनि । नैहरमे जा कए जमीन कीनब उचित नहि बुझानि । आब तँ ओ जमीनसभक दाम आकास ठेकि गेल अछि ।

पण्डौलमे साबिक जमानासँ रेलवे टीसन अछि । पण्डौल बजार सेहो बहुत बढ़ि गेल अछि । ओहिठामसँ मधुबनी आ दरभंगाक हेतु बस,टेकर आसानीसँ भेटि जाइत अछि । आब तँ दरभंगामे हवाइ जहाजक आगमन भए गेलाक बाद पण्डौल आ आसपासक इलाकाक महत्व आओर बढ़ि गेल अछि । ओहिठामसँ पैंतालीस मिनटमे हवाइ हड्डा दरभंगा पहुँचि सकैत छी । ओतएसँ दिल्ली.मुम्बई,बंगलोर उड़ि जाउ । सुनैत छी जे किछु आओर सहरसभक हेतु हवाइ जहाज शीघ्रे शुरु भए जाएत । तेँ पण्डौलमे  आ आसपासमे रहलासँ एकहिसाबे दिनिआसँ जुड़ल छी ।

४ जून १९७५क सत्तरह वर्षक बएसमे हमर श्रीमतीजी(आशा मिश्र)क बिआह हमरासँ भेल रहनि । ओहि समयमे हमर बएस २३ छल आ हम दरभंगामे टेलीफोन इन्सपेक्टरक काज करैत रही । हमर ससुरक एकमात्र ध्येय रहैत छलनि जे बर सरकारी नौकरीबला होइ । से हमरामे भेटलनि । हमरा सरकारी नौकरी रहए जरूर मुदा ताहिपरसँ पारिवारिक बोझ लादल रहए । माता-पिताक अतिरिक्त तीन छोट भाइक आशाकेन्द्र हमही रही । एतेक आदमीक गुजर एकटा छोटसन नौकरीक बान्हल दरमाहासँ कोना होइत? तेँ निरंतर धक्कमधुक्का होइत रहल । हमरासँ छोट भाइ,सुरेन्द्र, सेहो जल्दी बिआह कए लेलाह । ताबे हुनका कोनो नौकरी नहि रहनि । बादमे मिथिला क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकमे काज भेटलनि । तकरबाद तुरंते ओ भिन्न भए गेलाह । तखन रहि गेलाह चारिगोटे-माए-बाबू आ दूटा भाइ । ओहिमे सत्येन्द्र (सभसँ छोट) हमरा संगे बहुत दिन (लगभग बारह वर्ष) रहलाह । ओ बीच-बीचमे तमसा कए गाम भगैत रहलाह आ नौकरी भेलाक बाद बिआह कए राँचीमे रहए लगलाह । मुदा धीरेन्द्रक कोनो हिसाब नहि बनि सकल । हुनको बैंकसँ कर्ज दिआ कए भवन निर्माण सामग्रीक दोकान गामेमे खोलल गेल । मुदा सालभरिक भीतरे ओ चौपट भए गेल । कर्जा ठामहि रहि गेल । हमरा बैंकक नोटिस आबि गेल जे कर्जा चुकाउ । हम तँ परेसान भए गेलहुँ । रच्छ भेल जे हम गारंटी नहि देने रहिऐक । तेँ बँचि गेलहुँ । नहि तँ ओ सभटा कर्ज हमरे सधबए पड़ैत । धीरेन्द्रकेँ मदति करबाक हेतु सत्येन्द्रक बिआहक बाद हमर बहिनोइ(स्वर्गीय विद्यापति झाजी क सहयोगसँ एकटा पुरान जीप पानागढ़सँ कीनल गेल । हम शुरुएमे तकर पक्षधर नहि रही । मुदा सत्येन्द्र आ ओझाजीक जोर देखैत सहमति देबए पड़ल । ओहो प्रयास पाँच-छ मासमे असफल रहल । तकरबाद धीरेन्द्र एमहर-ओमहरमे लागल रहि गेलाह । हम दिल्ली आ तकरबाद इलाहाबाद चलि आएल रही ।  संगमे श्रीमतीजी आ पुत्र भास्कर रहथि । एतेक लेध-गेदक संगे सीमित आमदनीसँ परिवार नीकसँ चलबे नहि कएल,दौड़ैत रहल । निरंतर गाम-घरसँ केओ-ने-केओ अबते रहैत छल । ऐहन परिस्थितिमे हमर गृहस्थीकेँ नीकसँ चला लेबाक संपूर्ण श्रेय हमर श्रीमतीजीक छनि । ओ तँ  हमर परिवारक लेल साक्षात अन्नपूर्णा छथि । जेना हुनकर हाथमे अक्षयघट हो । जखन जतबे आमदनी रहनि ततबेमे परिवारकेँ बाइज्जत चलबैत रहलीह आ हमरा कहिओ ने ककरोसँ माङए पड़ल ने कर्ज लेबए पड़ल ।असलमे ओ अपन माता-पिताक संगे रहि नौकरीबला परिवारकेँ सीमित आमदनीमे कोना चलाओल जाए ताहिमे निपुणता प्राप्त केने रहथि ।हमर भाइसभ तँ अपन-अपन जोगार केलाह आ कात होइत गेलाह । रहि गेलाह हमर बाबू आ माए जे गामपर निरंतर हमरा दिस तकैत रहथि । सन् १९८९क फरबरी मासमे पिताक चौहत्तरिम वर्षमे देहामत भए गेलनि । तकरबाद रहि गेलीह हमर माए । गामपर हुनकर अतिरिक्त हमर छोट भाइ धीरेन्द्रक परिवार रहैत छल । माए आ हुनका लोकनिक भानस-बात फराक होनि । हमर माए सभदिन फराक रहए चाहथि । अपन घरसँ कतहु नहि जाथि आ डीहकेँ कटकटा कए पकड़ने रहलीह । हम निरंतर मनीआर्डर पठा कए हुनकर ओहि संकल्पकेँ मजगूत करैत रहलहुँ । मुदा नब्बे वर्षक आयु पार करैत-करैत ओ काज नहि कए सकथि आ तैओ फराक रहए चाहथि । तखनसँ हुनकर जीवन नर्क भए गेल । हमर मनीआर्डर काज केनाइ बंद भए गेल कारण अपन देहमे ताकति नहि रहलनि,काजमे सक नहि लागनि । जे से समय बीतैत रहल । जीवनक अंतिम अध्याय शुरु भए गेल । तथापि घरक माहौल ओहिना रहि गेल । मुदा हमर श्रीमतीजीक बुद्धिमत्तापूर्ण सहयोगसँ जीवनक पहिआ आगु बढ़ैत रहल । निश्चय ओ मिथिलाक नारीक ओहि गुणसभक प्रतिनिधित्व करैत छथि जाहि हेतु अपनसभक माटि-पानि प्रशंसित रहल अछि ।

घरक काजक अतिरिक्त हमर समस्त साहित्यिक गतिविधिमे हमर श्रीमतीजी सक्रिय सहयोग करैत रहलीह अछि । ओ हमर समस्त साहित्यिक कृतिक प्रथम पाठक रहलीह अछि आ अपन अमूल्य परामर्श दए ओहिसभमे गुणात्मक सुधार करैत रहलीह अछि । सही मानेमे ओ हमर जिनगीकेँ सुगमे नहि केने रहलीह ,अपितु एकरा पल्लवित,पुष्पित करबामे महान योगदान करैत रहलीह ।

हमर बिआहक समयमे आङनक माहौल बहुत रमनगर रहैत छल । कोनो अवसर भेलापर चारूकातसँ लोकसभ जमा भए जइतथि । हँसी ठठ्ठा होबए लगैत । पूब दिससँ लालकाका,उत्तरसँ डाक्टर काका ,दक्षिणसँ नूनू काका आ दरबाजापरसँ रमेश काका दौड़ल अबितथि । डाक्टर काका तरह-तरहक चमत्कार करबाक ढोंग करबामे माहित छलाह । हुनकर करतबसभ पर ठहाका लगैत रहैत छल । एकबेर अमेरिकाक राष्ट्रपतिक चुनाव होइत रहए । रेडिओमे चुनावक चर्चा चलैत रहैक । जीतत के? एहि विषयमे आङनमे लोकसभमे वाद-विवाद भए रहल छल ।सभकेँ इएह उत्सुकता जे के जीतत? डाक्टर काका अपन रेडिओसंगे कोठरीसँ बाहर भेलाह । अपन चमत्कारिक भाव-भंगिमामे घोषणा केलनि- हे इएह लएह । हम निक्सनकेँ मचोरि देलिऐक । आब ओ हारिए कए रहत। बाह रे डाक्टर काका आ हुनकर भविष्यवाणी । आङनमे सभ हतप्रभ छल । एहिना किछु-ने-किछु ओ करिते रहैत छलाह । ओ कलना बाबाक परम भक्त छलाह । गाहे-बगाहे कलना जाइते रहैत छलाह । बाबा सेहो हुनका ओहिठाम अबैत रहैत छलखिन । हुनका अपन संतान नहि रहथिन । बाबकेँ गोहरओला तँ ओ कहलखिन-सभकुछ तोरे न न होइ । बादमे बाबाक आशीर्वादसँ हुनका स्वतमत्रता सम्मान पेंशन भेटि गेलनि जाहिसँ दुनू बेकतीकेँ आर्थिक परेसानी नहि रहलनि । हुनकर छोट भाइ चलखिन लाल काका । ओहो ककरोसँ कम नहि,बेस कलामी लोक । एक डेग मधुबनी कोर्टेमे रहैत छलनि । कैक कित्ता केस लड़ैत छलाह । मुदा ओ बहुत मजगूत आजीबट बला लोक रहथि आ अपना बले समाजमे बहुत नीक स्थान बनओने रहथि ।

समय साल बदललैक । आब ने ओ रामा ने ओ कोठोला । हमर ससुर अपन अलग घरारीपर मकान बना लेलाह । कालक्रममे आोर दिआदसभ सेहो अपन-अपन फराक घर बना लेलाह । आब जँपुरना आङन जाएब तँ सुन्न लागत । केओ टोकनाहरो नहि भेटत । मुदा सभसँ काबिले तारिफ ई बात जे सभ दिआदसभ घरारीक बटबाराक विवाद आपसेमे सहयोगसँ निपटा लेलाह जाहिसँ चारूकात विकास भेल । नव-नव मकानसभ बनल आ आपसी सौहार्दय सेहो थोड़-बहुत बाँचल रहि गेल ।

पण्डौलक एकटा विशेषता थिक भवानीपुर महादेवक मंदिर जे हमर ससुरक घरसँ पैरे-पैरे आधा घंटामे पहुँचि सकैत छी । हम कैकबेर ओतए गेल छी । मुदा आब तँ भवानीपुरक महादेव मंदिर आ ओकर परिसरक बहुत बदलि गेल अछि । शिवरातिक दिन ओतए बड़का मेला लगैत अछि । रेडिओसँ ओकर प्रसारण सेहो होइत अछि । पहिने तँ हिनका लोकनिक दरबाजापरसँ भवानीपुरक मंदिर ओहिना देखाइत रहैत छल । मुदा आब बीचमे गाछसभ आबि गेलैक अछि । तेँ कनीक दूर पैरे चललापर मंदिरक ध्वज फहराइत 

सोमवार, 18 जनवरी 2021

हमर मात्रिक

 

हमर मात्रिक

हमर मात्रिक सिंघिआ ड्योढ़ी अछि । हमर नाना स्वर्गीय रामप्रसाद झा कमे बएसमे स्वर्गवासी भए गेल रहथि । हमर नानी स्वर्गीया उत्तमा ओजाइन जीवन भरि वैध्व्यक डंस सहैत रहि गेलीह । हमर माए हुनकर एकमात्र संतान रहथिन । हुनके मुँह देखि जीवि गेलीह । मुदा माएक बिआह बहुत जलदी (नओ वर्षक बएसमे) कए देल गेलनि । साल बरिक भीतरे हुनकर द्विरागमन सेहो भए गेलनि । एमहर हमर बाबाक सेहो एकहिटा संतान,हमर पिता(स्वर्गीय सूर्य नारायण मिश्र) रहथि । हमर दाइ बहुत सिनेहसँ अपन पुतहुक पालन केलथि । कहाँदनि कतेको साल धरि माए अपन नैहर नहि गेलीह । हमर दाइ अड़ि जाथिन । हमरा ई नहि बूझएमे अबैत अछि जे एतेक कम बएसमे माएक बिआह कए देबाक कोन धरफरी रहैक? तखन तँ बिना पिताक संतान रहबाक कारण  जे भेल से भेल । कहाँदनि हमर नानी बहुत विरोध केने रहथि । ओ चाहथि जे अखन बिआह नहि होइ । मुदा हमर पितिऔत नाना स्वर्गीय बौएलाल जा नहि मानलखिन । माएक भाइ(कंसी गामक) सेहो सएह विचारक रहथि । सभक कहब जे बर बहुत संपन्न छैक । एहन नीक बिआह नहि टारल जा सकैत अछि । फेर ओहि समयमे  कमे बएसमे बेटीक बिआह होएब कोनो नव बात नहि रहैक , ओना तँ होइते रहैत छल । बिआहक समयमे माए चौथामे पढ़ैत छलीह । बस ओतबे पढ़ि कए रहि गेलीह । हमर पिता ओहि समयमे बाइस वर्षक रहथि । वाटसन इसकूल मधुबनीक छात्र रहथि । गेनखेलीमे पारंगत रहथि । पारिवारिक स्थिति बहुत मजगूत रहनि । हमरसभक परबाबा(स्वर्गीय गुमानी मिश्र) इलाकाक प्रतिष्ठित जमींदार रहथि । कुलमिला कए इएल लगैत अछि जे बहुत संपन्न परिवारमे माए आ बाबूक जन्म भेल रहनि । बिआहक बादो ओ सभ बहुत दिनधरि संपन्नताक आनंद उठओने रहथि ।

हम पहिलबेर मातृक बाबूक संगे दरभंगा बाटे गेल रही । दरभंगा धरि बससँ गेलाक बाद ट्रेन पकड़ने रही । हमर ओ ट्रेनक पहिल यात्रा छल । पहिल बेर ट्रेनमे चढ़बाक आनंदमिश्रित आश्चर्यसँ अभिभूत रही । ओहि समयमे टेक्टारि टीसन नहि बनल रहैक । तेँ मोहम्मदपुर उतरि पिंडारुछ बाटे पैरे-पैरे हम आ बाबू मातृक पहुँचल रही । बीच-बीचमे जहन थाकि जाइ तँ बाबूसँ पुछिअनि-आब कतेक दूर छैक ?”

ओएह जे इजोत देखा रहल अछि ने,सएह छैक । आब कनीके दूर अछि ।

-से कहि ओ हमरा कोरामे लए लेथि । मातृक पहुँचलापर हमर जबरदस्त स्वागत भेल छल । नानीक प्रसन्नताक तँ अंते नहि छल । ओही आङनमे हमर पितिऔत नाना स्वर्गीय जीबछ झा रहथि । हुनकर परिवारमे सभगोटे हमरा बहुत रास टाका गोर लगाइ देने रहथि । प्रात भेने आओर फरिकेन सभक ओहिठाम सेहो गेल रही । हमर नानागाममे सभ संपन्न छलाह । बड़काटा दरबाजा छल । अफसोचक बात जे दरबाजाक हमर अपन नानाक हिस्साबला भागमे पोस्ट आफिस खोलि देल गेल रहैक ।

हमर समय ओतए बहुत नीकसँ बीतल । किछु दिनक बाद हम बाबूक संगे अड़ेर डीह वापस भए गेल रही । तकर बाद एकबेर आओर हम मात्रिक गेल रही । ताबे टेक्टारिमे रेलक अस्थायी ठहराव(हाल्ट) भए गेल रहैक । ओहि समयमे हमर नानीक सासु आ दियादनी जीविते रहथि । तकर बाद हम ओतए नहि जा सकलहुँ । आब तँ तकर साठि सालसँ बेसी भए गेल होएत । कहि नहि आब ओहिठामक की हाल अछि?

आलम


 

आलम

हम मधुबनीक मकान बनाबएक क्रममे बहुत रास जन-बोनिहारक संपर्कमे अएलहुँ ।सन्१९८८मे शुरु भेल मकानक काज सन्२०१४मे समाप्त भेल । तकर बादो केकटा जरुरी काज रहबे करए । ताबे सन्२०१६मे मकान बिकाइए गेल । ओहीक्रमे हमर मित्र श्रीनारायणजीक माध्यमसँ आलम सेहो संपर्कमे आएल रहए । ओ मधुबनीसँ सटले भौआरा गामक रहनिहार छल । कहब जे ओकरामे कोन एहन बात चल जे अखनो ओकर चर्च भए रहल अछि । तँ सुनि लिअ । आलम औअल नंबरक इमानदार छल । जे काजमे लागि जाएत ताहिमे भोरसँ साँझ धरि लागल रहत । कोनो देख-रेख करबाक काज नहि ।दैनिक मजदूरीपर ओ काज करैत छल ।ठीकाक काज ओकरा नहि सोहाइक । मुदा ताहीमे एकदिनमे ओ ततेक काज कए दैत जे सामान्यतः दू आदमी मिलिओ कए नहि कए सकैत छल ।ओ मकानक पेणटींगक काज सेहो करैत छल । एकबेर हम अपन मकानक रंग-रोहन करबाक हेतु ओकरा ठीकापर काज देबए चाहलहुँ । अपना हिसाबे हम ओकरा फाजिले रेट लगा देने रहिऐक । मुदा ओकर माथमे नहि धसलैक । ओ ठीकापर काज करबाक हेतु तैयार नहि भेल । कहलक जे ओ दैनिक मजदूरीए पर काज करत । बादमे जखन काज कतम भेलापर हिसाब भेल तँ पता लागल जे ठीकापर ओकरा दोबर टाका भेटितैक । हम ई बात ओकरा कहलिऐक तँ ओ हँसि कए कहैत अछि-

की करबेक मालिक । जतने भागमे रहतै ओतने ने भेटतै । से कहि ओ हँसि देलक । एकबेर मधुबनीक मकानमे चोरी भए गेल । असलमे ओ बहुत दिनसँ खाली रहैक । बाहर-भीतरमे कुल मिला कए आठटा ताला लागल रहए । जखन हम मधुबनी पहुँचलहुँ तँ फटकीसँ कोनो गड़बड़ी नहि बुझाएल । मकानक मुख्य द्वारि लग जा कए देखैत छी जे ताला खुजल लटकल अछि । मकानमे अंदर पैसैत छी तँ कोनो केबारक ताला टुटल छल तँ ककरो कुंडी उकरल पड१ल छल । एवम् प्रकारेण कहि नहि कतेक दिनसँ मकान ओहिना खुजल पड़ल छल । एकटा कोठरीमे हम एकटा पेटीमे किछु ओछाओनसभ रखने रही । पेटी तँ ठामहि छल । मुदा ओछाओनसभ लापता छल । लगैत अछि ओ चोर बहुत नफीस छल । जाढ़मे सीरक,ओछाओनसभ तँ बहुत उपयोगी रहैक,तेँ ओसभ लए गेल । पेटी तँ बहुत भारी रहैत,तेँ ओकरा छोड१ि देलक ।

मकानक ओ हाल देखि हम क्षुव्ध रही । मकानक सुरक्षाक हेतु आलमकेँ चौकीदारीमे लगेलहुँ । ओ अपन एकटा कुटुंबक संगे रहातिमे ओतहि सुतए । हमहु दोसर कोठरीमे रही । दिनभरि काज चलए । रातिमे  कहिओ गाम,कहिओ सासुर आ कहिओ ओतहि रहि जाइ । मुदा आलम अपन कुटुंभक संगे लगभग एकमास ओतए रखबारी केलक ।तकरबाद ओ मकान किराया लागि गेल । हमर मोन हल्लुक भेल आ निश्चिंत भए दिल्ली वापस

भेलहुँ । एवम् प्रकारेण बहुत दिन धरि आलमसँ संपर्क बनल रहल । कैकबेर तँ मधुबनी पहुँचबासँ पहिनहि ओकरा फोन कए दिऐक । ओ मुस्तैद रहैत छल आ मकानपर पहुँचितहि काजमे लागि जाइत छल ्

बादमे जखन मकान बिका गेल तखनो ओ कैकबेर हमरा फोन केलक । जखन ओहि मकानक नव मालिक मकानमे काज करबए लगलाह तखनो आलम हमरा फोन केलक । मुदा हम ओकर फोनक जबाब नहि देलिऐक । भेल जे की कहबेक । आब आलमक फोन नहि अबैत अछि । प्रायः ओ असलियत सँ वाकिफ भए गेल होएत । मुदा ओकर स्मृति हमर मोनमे ओहिना बनल अछि आ बनल रहत ।

शनिवार, 16 जनवरी 2021

श्री ओमप्रकाश सपरा


 

श्री ओमप्रकाश सपरा

सरकारी सेवासँ सेवानिवृत्तिक बाद हम वकालतमे दिल्लीक बार कौंसिलमे निबंधन हेतु ओकर हौजखास स्थित कार्यालय गेल रही । निवंधनक फार्म आ फीस जमा कए हम आ बहुत रास एहने लोकसभ ओतए प्रतीक्षा करैत रही। ओहीक्रममे हमरा श्री ओमप्रकाश सपराजीसँ भेंट भेल छल । ओ हमरा पुछैत छथि-

आपको कहाँ जाना है?”

लोधी कालोनी।

हम आपको घरपर छोड़ देंगे । हम भी उधर से ही जाएंगे ।

ओहि समयमे पहिलेबेर हुनकासँ भेंट भेल छल । ओ हमरा लेल एकदम अपरिचित व्यक्ति छलाह । तखनो एतेक ध्यान रखलथि । ओ हमरा घर धरि अएलाह आ किछुकाल हमरासभक संगे बैसबो केलाह । चाह-पान पीलाह । तकरबादे अपन घर वापस भेलाह । हमरा लागल जे ई व्यक्ति अद्भुत छथि । किछु दिनक बाद हमरा लोकनिक वकालतमे निवंधन बार कौमसिल आफ दिल्लीमे भए गेल । हम कैटमे प्रैक्टिस शुरु केलहुँ । सपराजी सेहो ओतहि प्रैक्टिस करथि । हुनकर मिलनसार स्वभाव आ उदारताक कारण हमरा लोकनिक घनिष्टता बढ़िते गेल । प्रायः नित्य हुनकासँ कैटमे भेंट होइत छल । हमसभ संगे रहैत छलहुँ । संगे कोर्टमे वकीलसभक बहस सुनैत छलहुँ आ संगे ओहिठामसँ चारिबजे साँझक आसपास कैटसँ निकलि जाइत छलहुँ । ओ नित्य हमरा मेट्रो टीसन धरि छोड़ैत छलाह।

सपराजी असाधारण व्यक्तित्वक लोक छथि । दिल्ली आ आसपास हुनकर परिचयक अंत नहि अछि । हम कैकबेर विश्व पुस्तक मेलामे हुनका संगे गेल छी । एकडेग आगु बढ़ी कि केओ हुनकर परिचित भेट जानि । आगु बढ़ब मोसकिल रहैत छल । साहित्यकार,प्रकाशक आ सामाजिक कार्यकर्तामे हुनकर जबरदस्त पैठ अछि । ओ अपनहु बहुत नीक लेखक छथि  आ सामाजिक,राष्ट्रीय विषयपर अनेको निवंध लेखने छथि आ लिखैत रहैत छथि । कतेको पुस्तकक ओ संपादन केने छथि । प्रतिमास मित्र संगम पत्रिका निकालैत छथि सेहो उनचास वर्षसँ ।

सपराजीक पिता भारतक विभाजनक समयमे मुल्तनासँ मोसकिलसँ जान बँचा कए दिल्ली आएल रहथि । शुरुमे ओ सभ सोनीपतमे रहलाह । कालांतरमे दिल्लीक मुखर्जीनगरमे बसि गेलाह आ आब सपरिवार ओतहि रहैत छथि।

हमर प्रथम पुस्तक भोरसँ साँझ धरिक विमोचन श्री ओम प्रकाश सपराजीक नेतृत्वमे हुनकर सभक संस्था मित्र संगम पत्रिका द्वारा नबंबर २०१७मे प्रवासी भवनमे आयोजित कएल गेल छल । किछुए दिन पूर्व हम माएक बरखीक हेतु गाम गेल रही ।  हमरा अनुपस्तिथिएमे सपराजी पुस्तक विमोचनक सभटा तैयारी केलनि । कार्यक्रम बहुत नीकसँ संपन्न भेल । कार्यक्रम सफलताक संपूर्ण श्रेय हुनके छलनि ।

सन् १९१४क जून महिनामे दिल्ली उच्च न्यायालयसँ स्पेशल मेट्रोपोलिटन मजिष्ट्रेटक नियुक्तिक रिक्तिक विज्ञापन बाहर भेल रहैक । सपराजीसँ ओकर बारेमे पता चलल । हमहु ओहि पद हेतु आवेदन दए देने रहिऐक । सितंबर २०१५मे हमरा दुनूगोटेकेँ ओहि पदपर नियुक्ति भेल । तकरबाद हमसभ संगे प्रशिक्षण केलहुँ । प्रशिक्षणक बाद हमरा लोकनिकेँ विभिन्न स्थानपर पोस्टींग कए देल गेल । तथापि हुनकासँ संपर्क पूर्वबते बनल रहल । ६५ वर्षक आयु भेलापर स्पेशल मेट्रोपोलिटन मजिष्ट्रेटक पदसँ हमरा लोकनिकेँ मुक्त कए देल गेल । तकर बादो हमरा लोकनिक फोनसँ संपर्क होइत रहैत अछि । कहिओ-काल भेट-घांट सेहो भए जाइत अछि । निश्चित रूपसँ सपराजी सन लोक आइ-काल्हिक दुनिआमे बहुत कम होइत अछि । आशा करैत छी जे आगामी समयमे सेहो हुनकासँ निरंतर संपर्क बनल रहत आ हमरा लोकनि हुनकर विभिन्न क्षेत्रमे ज्ञानक फएदा उठबैत रहब।

पंडित चंद्रधर मिश्र

 

पंडित चंद्रधर मिश्र

पंडित चंद्रधर मिश्र हमर पितिऔत काका छलाह । ओसभ पहिने हमरे आंगनमे उतरबारि कातमे रहथि । बादमे अगिलग्गीक बाद ओ सभ अपन घरारी बदलि कए पोखरिसँ पूब पाठशाला लग लए गेलथि । हुनकर पिता स्वर्गीय कुमर मिश्र (स्वर्गीय माना मिश्रक पुत्र )इलाकाक मानल संस्कृतिक विद्वान रहथि । ओ एकटा पाठशाला चलाबथि जतए इलाकाक बहुत रास विद्यार्थीसभकेँ संस्कृतमे निःशुल्क शिक्षा देल जाइत छल । ओ अपना दिससँ विद्यार्थी लोकनिक भोजन आ रहबाक व्यवस्था करैत छलाह । ओही पाठशाल लग काकासभ बादमे बसि गेलाह ।

काकाजी सी.एम.कालेज दरभंगासँ बी.कम.केने रहथि आ बेसिक मिडल इसकूलमे प्रधानाध्यापकक काज करथि। इसकूलसँ छुट्टी भेलाक बाद ओ गामे आबि जाइत छलाह । गाममे हुनका बहुत आदर कएल जाइत छलनि । ओहुना ओहि समयमे हमरा गाममे के कहए इलाकामे बहुत कम स्नातक रहल हेताह ।

काकाजी बहुत मिलनसार आ मधुरभाषी रहथि । जखन कखनो हुनका लग जाउ,ओ बहुत सिनेहसँ गप्प-सप्प करितथि । कैक बेर तँ बिना भोजनकेँ नहि जाए दितथि । हमरा जखन कखनो मोन परेसान होइत छल हम हुनका लग चलि जाइ । ओ ततेक नीक जकाँ बुझा दितथि जे मोन हल्लुक भए जाइत,उत्साहसँ भरि जाइत ।

हमर दियादसभकेँ जखन कखनो कोनो झंझट होइतनि तँ चंद्रधर काका बजाओल जाइत छलाह । हुनकर बातपर सभकेँ अटूट विश्वास रहैक । ओ जे कहि देथि से सभ मानि लिअए आ झगड़ा शांत भए जाइत ।

हमरा लोकनिक परिवारसँ चंद्रधर काकाजीकेँ बहुत घनिष्टता रहनि । ओ जखन कखनो गाममे रहितथि तँ बेसीकाल बाबूक संगे रहितथि । हमरासभकेँ आगु पढ़बाक हेतु ओ निरंतर उत्साहित करैत रहैत छलाह ।हुनकर बहुत इच्छा रहनि जे हम एम.एस.सी करी । कहथि जे बादमे पार नहि लगैत छैक । हमरो इच्छा रहए जे एम.एस.सी करी । मुदा बीचेमे हमरा टेलीफोन इन्सपेक्टरक नौकरी लागि गेल । तकर बाद तँ नौकरीक से चकल्लस शुरु भेल जे लगभग चालीस साल धरि चलैत रहल ।

चंद्रधर काका लगभग पचासी साल धरि जीलाह । हुनका जीवन कालेमे हमर मित्र आ हुनकर ज्येष्ठ पुत्र लालबच्चा(स्वर्गीय विष्णु कान्त मिश्र)क देहांत भए गेलनि । एहि बातसँ ओ बहुत दुखी भेल रहथि ।सितंबर २०१५मे काकाजीक देहांत भए गेलनि । एहि तरहें हमर गामक एकटा महान व्यक्तित्व आ हमर परम शुभचिंतक हमरासभकेँ छोड़िकए चलि गेलाह । मुदा हुनकर सहृदयता,उदार व्यक्तित्व,मधुर वाणी आ उत्कृष्ट विचार सदिखन मोन पड़ैत रहत ।

स्वर्गीय विष्णुकान्त मिश्र

 

स्वर्गीय विष्णुकान्त मिश्र

 

स्वर्गीय विष्णुकान्त मिश्र(लालबच्चा)

ओहि समयमे हम रामकृष्णपुरमक सेक्टर तीनक सरकारी आवासमे रहैत रही । ओतहि लालबच्चा(स्वर्गीय विष्णुकान्त मिश्र) गामसँ अपन इलाजक प्रसंगमे आएल रहथि । हमही हुनका दिल्ली अएबाक हेतु प्रेरित केने रहिअनि । कारण ओहि समयमे हम लेडी हार्डींग मेडिकल कालेज,दिल्लीमे उप निदेशक(प्रशासन)क पदपर काज करैत रही । हुनका सुगर तबाह केने रनि । किछुदिन पूर्व ओ बेहोश भए गेल रहथि । दरभंगाक डाक्टरसँ देखेने रहथि । ओ सत्तरहटा दबाइ लिखि देने रहनि । दबाइ खाइत-खाइत रद्द भए जानि । हमरा पता लागल । हम हुनकर हाल-चाल लेबाक हेतु फोन केलिअनि । तखने ई कार्यक्रम बनल ।

लालबच्चा दिल्ली अएलाह तँ हम बहुत प्रसन्न भेल रही । एक समय छल जे हम आ लालबच्चा दिनमे कतेको बेर एक-दोसर ओहिठाम अबैत -जाइत रहैत छलहुँ,घंटो संगे रहैत छलहुँ । मुदा जखन नौकरीक क्रममे हम दिल्ली चलि अएलहुँ तकर बाद स्वभाविक रूपसँ संपर्क कम होइत गेल । ओ तँ बेनीपट्टी कालेजमे रसायन शास्त्रक व्याख्याता रहथि । गामेसँ जाथि-आबथि । सुनैत छी ओ रसगुल्लाक बहुत प्रेमी रहथि आ नित्य साँझमे गाम लौटति काल बेनीपट्टीक प्रसिद्ध मधुरक दोकानसँ भरि पेट रसगुल्ला खाथि । माछ खेबाक सेहो ओ बहुत सौकीन रहथि । कीलोक-कीलो माछ दबा देथि । कोनो प्रकारक शारिरिक गतिबिधि नहि रहनि । बादमे हुनकर आँखि बहुत कमजोर होइत गेलनि । पहिनोसँ हुनका आँखिक समस्या रहबे करनि । बड़मोट चश्मा लागनि । आँखिक इलाजक हेतु ओ अजमेरक कोनो प्रसिद्ध नेत्र चिकित्सक लग जाथि । तथापि बहुत कम सुझनि । कालेजमे तँ सुनैत छी ओ कहुना कए ठाढ़ भए जाथि आ रटल बस्तुकेँ बकि देथि । यद्यपि हुनकर हालति खरापे भेल जानि,मुदा ओ डाक्टरसँ नहि देखाबथि । डर होनि जे भात छोड़बा देत । जखन भाते नहि खाएब तँ जीबिए कए की करब? बाह रे भतखौक ।

एकदिन मधुबनीमे डेरासँ कतहु जाइत रहथि कि बेहोश भए बीच सड़कपर खसि पड़लाह । संयोग रहैक जे केओ हुनका उठा-पुठा कए सड़कसँ कात केलक । जेना-तेना डेरा पहुँचलाह । तखन डाक्टर देखलक । सुगर आसमान लागल छल । एहि तरहे तँ हुनकर इलाज शुरु भेल रहए जे कैकसाल धरि चलैत रहलनि । मुदा बिमारी ठीक हेबाक बदलामे बढ़िते गेल । जखन दिल्ली अएलाह आ लेडी हार्डींग मेडिकल कालेजमे डाक्टर आर.के.धमीजा हुनका देखलखिन तँ हुनकर इलाज पटरीपर आबि गेल । ओ मात्र दू वा तीनटा दबाइ लिखलकिन । सोचिऔक-कहाँ सत्तरहटा दबाइ आ कहाँ दू-तीनटा । दरभंगाक डाक्टरक दबाइ खाइत-खाइत हुनका रद्द होबए लागैत छल । दिल्लीमे डाक्टर धमीजासँ देखेलाक बाद बहुत आफियत भेलनि । डाक्टर कहलकनि जे छ मासपर अबैत रहब जाहिसँ इलाज सुचारु ढ़गसँ चलैत रहत । हमरा बादमे डाक्टर कहलक जे तीन-चारि वर्ष चलताह । बेटीसभक बिआह-दान जे करबाक होनि से केने जाथि । हम डाक्टरक कहब बूझि गेलिऐक ।

किछुदिनक बाद लालबच्चा गाम चलि गेलाह । फेर दोबारा दिल्ली डाक्टर धमीजासँ नहि देखेलाह । हुनकर हालति बिगड़िते गेलनि । तकरबाद जे अएलाह तँ हम हुनका राम मनोहर लोहिआ अस्पताल,दिल्ली आ एम्समे देखेलिअनि। बात ओएह । ताबे दुनू किडनी खराप भए गेल रहनि । हुनका आब डायलिसिस करा कए जीबाक रहनि । गाम-घरमे से सुबिधा नहि रहैक । तखन सीओपीडीसहायता लेल गेल । एहिमे डायलिसिसक हेतु एकप्रकारक द्रव्य पेटमे ढारल जाइत अछि । पेटमे लागल टोंटी बाटे खराप तत्वसभ देहसँ बाहर भए जाइत अछि । मुदा ई व्यवस्था बहुत दुष्कर आ खर्चीला होइत छल । बेर-बेर पेटमे संक्रमण होइत रहलनि । अंतिम बेरमे ओ फरीदाबादक एस्कोर्ट अस्पतालमे भर्ती भेल रहथि । ह्वीलचेयरपर चलथि । हमरा फोन आएल । हम अस्पताल जा कए हुनकासँ भेंट केने रहिअनि ।

ओ अस्पतालक बेडपर पड़ल रहथि । भौजी आ हुनकर ज्येष्ट बेटी प्रिती लगमे रहथिन । ओहीदिन हुनका अस्पतालसँ छुट्टी देल गेल रहनि । हमरा सामनेमे ओ ह्वीलचेयरपर गुड़कि कए कारपर चढ़ल रहथि ,बेटीक ओहिठाम फरीदाबाद जेबाक हेतु । हम वापस अपन दिल्ली डेरा पर चलि आएल रही । दू-तीन दिनका बाद ओ ट्रेनसँ अपन गाम वापस जाइत रहथि । हम हुनका फोन केने रहिअनि । ओ किछु चिंतित बुझाइत रहथि । आबाजमे जान नहि लागैत छल। ट्रेन बेगुसरायक आसपास पहुँचैत रहए । मुदा हम चिंतित भए गेल रही । गाम गेलाक किछुए दिनक बाद फोन आएल छल । दिसंबर २००९क अंतिम सप्ताहक बात हेतैक । भयानक ठंढ पड़ि रहल छल । लालबच्चा एहने समयमे हमरा लोकनिकेँ छोड़ि देने रहथि । हमरा ई सोचि दुख होइत रहैत अछि जे हम हुनकर अंतिम संस्कारमे नहि जा सकल रही ।  एहि तरहें लगभग अठावन सालक बएसमे हुनकर निधन भए गेल रहनि । सोचल जा सकैत अछि जे काकाजीकेँ एहि घटनासँ कतेक दुख भेल हेतनि ?  मुदा ओ बहुत अध्यात्मिक लोक छलाह । अपन आस्थाक बलें एहू कष्टकेँ काटि लेलाह । मुदा हुनकर व्यक्तिगत परिवारक हेतु ई जबरदस्त चोट छल । एकटा बेटी अविवाहित रहि गेल रहथिन । मुदा तीनटा बेटीक विआह ओ स्वयं कए गेल रहथि ।

समय बीतैत गेल । भौजीक पेंशनक कागजसभ सरिआ गेलनि । मासे-मास पेंशन भेटए लगलनि । सेवानिवृत्तिक बाद एकमुस्त टाकासभ सेहो भेटलनि । आर्थिक दृष्टिए हुनकर परिवार फेरसँ पटरीपर आबि गेलनि । मुदा लालबच्चा लौटि कए नहि अएलाह । कहाँसँ अवितथि? आइ धरि जे केओ गेल से घुरि कए नहि आएल । जे गेल से गेल । हमरा ओ अखनो ओहिना मोन पड़ैत रहैत छथि । मोन पड़ैत रहैत अछि हुनकर संग बिताओल गेल ओ आनंदमय युवावस्थाक क्षण । कैकबेर तँ हमदुनूगोटे भरि-भरि राति बतिाइत रहि जाइत छलहुँ । कैकबेर नवका फोखरिपर गाछसभपर लटकल गप्प करैत रहैत छलहुँ । गामपर तँ आबाजाही लागले रहैत छल । कैकदिन तँ हम हुनका संगे गप्प करैत-करैत हुनकर घर धरि जाइ । फेर दुनूगोटे वापस हमरा घर धरि आबी । पेंडुलम जकाँ हमसभ कतेको बेर अबैत जाइत रही ।

लालबच्चा ,हम आ शल्लू(श्री शैलेन्द्र झा)तीनूगोटे एकहि सालमे मैट्रिक प्रथमश्रेणीमे पास केने रही । हम आ ओ सी.एम.कालेजमे डिग्री एक भाग(डिग्री पार्ट वन)मे संगे रही । दरभंगाक नटराज सीनेमा लग हमरासभक डेरा रहए। बी.एस.सीमे मिश्रटोलाक स्वर्गीय राम नंदन मिश्रक डेरा हमरा ओएह दिआ देने रहथि । बी.एस.सी प्रतिष्ठाक परीक्षा देबए बेरमे हम हुनके संगे हराही पोखरि दरभंगाक पछबारि भीरपर एकटा छात्रावासमे रहैत रही ।

लालबच्चा रसायन शास्त्रसँ पीएचडी केने रहथि आ उच्चैठ स्थित कालीदास विद्यापति कालेजमे रसायन शास्त्रक  प्राध्यापक रहथि । हमरा गाममे पीएचडी केनिहार ओ प्रथम व्यक्ति छलाह । हुनकामे सभसँ विशेषता छल हुनकर निश्छल स्वभाव ,मोनमे कोनो छ-पाँच नहि रहैत छलनि आ कोनो बातपर भभा कए हँसि दैत छलाह । ओ बहुत सकारात्मक सोचक लोक छलाह आ कहिओ ककरो बारेमे अनट बात नहि करितथि ।

एक बेर लालबच्चाकेँ सासुर जेबाक रहनि । नवे बिआह भेल रहनि । ओही साल किछु पहिने हमरो बिआह भेल रहए । लालबच्चा हमर पनही पहिरि कए सासुर गेलथि । कहने रहथि जे पाँच-सात दिनमे वापस आबि जेताह । मुदा ओ गेलाह,से गेलाह । दस दिन बीतल,पनरह दिन बीतल । आब की कएल जाए? हमरो सासुर जेबाक छल । ताहि लेल पनहीक जरूरी छल । आखिर ककरो माध्यमसँ हुनका चिठ्ठी पठेलहुँ । तकरबाद तँ ओ तुरंत वापस आबि गेलाह । हम ओ पनही पहिरि अपन सासुर बिदा भए गेल रही । ओहि समय धरि गामसभमे ओहिना काज चलैत छलैक । कतेक गोटे तँ पहुनाइ करए बिदा होथि तखने देहपर कुरता धरथि ,सेहो ककरोसँ पैंच लए कए ।

लालबच्चा बहुत अध्यात्मिक प्रवृत्तिक लोक छलाह । निरंतर ध्यान,प्राणयाम,सभमे लागल रहितथि । गीताप्रेसक पोथीसभ पढ़ल करथि । हुनकर ई संस्कार शुरुएसँ छल । बादमे ओ ओशोक शिष्य भए गेलाह आ ओहीमे नीकसँ रमि गेलाह । मधुबनीक रजनीशपुरम(बाल्मिकी कालोनी)मे डेरा रहनि । ओहिठाम हमर मित्र श्रीनारायणजीसँ सेहो हुनका घनिष्टता भए गेल रहनि । बादमे ओ मधुबनी छोड़ि गामे रहए लागल रहथि ।

युवावस्थामे ओ बहुत स्वस्थ रहथि । गेनखेली,फूटबाल,कैरमबोर्ड खेलसभमे बहुत रूचि रहनि । कहिओ काल ओ कुश्ती सेहो खेलाथि । एहन निस्सन देह केना एतेक बिमार भए गेल से सोचि आश्चर्यमे पड़ि जाइत छी । एहीसँ लगैत अछि जे ई संसार क्षणभंगुर अछि । एहिठाम किछु असालतन नहि अछि ।

हमर माथामे सभटा बात ओहिना घुमैत रहैत अछि जेना अखने घटल होइक । मुदा ई समय थिक । ई ककरो नहि भेल अछि,ने होएत । हम आब एहि बातकेँ मानि चुकल छी जे आब ओ नहि छथि । एहि जन्ममे हमरा-हुनकर भेंट नहि भए सकत । अगिला जन्मक के देखलक अछि ? जे से । मुदा हुनकर स्मृति आ हुनका संग बिताओल गेल सुखद क्षण सतति हमरा मोन पड़ैत रहत ।

श्री शेलेन्द्र झा

 

श्री शेलेन्द्र झा

नेनाक बहुत रास बातसभ बिसरा जाइत छैक । कैकबेर किछु प्रसंग आधा-छिधा मोन रहि जाइत छैक । सएह बात भेल ओहि दिन जखन शल्लुजीसँ गप्प करैत काल नेनामे चारिगोटे द्वारा टांगि कए ब्रह्मस्थानक इसकूल जेबाक हम चर्च केलहुँ । हम इसकूल नहि गेलहुँ तँ बच्चू मास्टर साहेब(स्वर्गीय अदिष्ट नारायण झा) हमरा पकड़ि कए इसकूल अनबाक हेतु चारिटा विद्यार्थीकेँ पठओने रहथि । हमरा अखनो मोन पड़ैत अछि जे हुनकासभकेँ देखि कए हम केराबारीमे नुका गेल रही । तथापि ओ सभ मानलथि नहि, हमरा टांगि कए इसकूल लइए गेलाह । रस्तामे केओ-केओ हमरा बिठुआ सेहो कटैत रहल । शल्लुजी ओहिदिन कहलाह जे ओहो ओहि चारिगोटेमेसँ इकटा छलाह । यद्यपि ई घटना हमरा मोने अछि मुदा चारूगोटे के सभ रहथि से बिसरा गेल ।

गाममे हमर घरसँ हुनकर घर कनीके फटकी छल । नेनामे खेल-धूप करैत हमसभ अबैत-जाइत रहलहुँ । नेनामे ओ बहुत नीक गबैत छलाह ।  हमरा हखनो मोन पड़ैत अछि जे कैकबेर लोकसभ हुनका गीत गेबाक हेतु दुराग्रह करथि। आला -आला दिल ले गया...ई गीत ओ कैकबेर गबैत रहैत छलाह । शल्लुजी मिडिल इसकूलमे पाँचमासँ सातमा धरि हमरा संगे रहथि । तकरबाद ओ रहिका उच्च विद्यालयमे चलि गेलाह आ हम एकतारा चलि गेलहुँ । मुदा प्री- युनीभर्सीटीमे फेर एकसाल हमसभ संग भए गेल रही । तकरबाद हम सी.एम.कालेज दरभंगा चलि गेलहुँ ।

शल्लुजीक दूटा बिआह भेलनि । प्रथम बिआह भच्छी गाममे भेल रहनि । ओहिमे एकटा पुत्र छनि । संयोग एहन भेल जे ओहि पुत्रक जन्मक समयमे हुनकर पत्नीक देहावसान गामेमे भए गेलनि । कहि नहि उचित चिकित्सा ओतए उपलव्ध भए सकल कि नहि? हम आ लालबच्चा भच्छी बरिआती गेल रही । ओहि समयमे दू-दिना बरिआती होइत छलैक । भोरमे टहलैत-टहलैत बरिआतीसभ बाधमे बहुत आगु धरि चलि गेल रहथि । बरिआतीक स्वागत बहुत नीकसँ कएल गेल रहए । अखनो ओ दृश्यसभ हमर मोनमे अबैत रहैत अछि ।

पहिल पत्नीक देहावसानक बाद हुनकर दोसर बिआह नवकरही भेल रहए । हम ओतहु बरिआतीमे गेल रही । बरिआतीमे हम जबरदस्त हँसीठठ्ठा करैत रही जे देखि खट्टर मास्टर साहेब बहुत आश्चर्यमे रहथि । माहौल बहुत आनंदमयी छल । लाउस्पीकरमे राति भरि गीत बजैत रहल ….

ओ गीत अखनहुँ कहिओ काल हमर कानमे गुंजित होइत रहैत अछि । दोसर बिआहसँ हुनका एकटा पुत्र आ दूटा कन्या भेलनि । सभसँ नीक बात ई भेल जे हुनकर पहिल संतानक सेहो बहुत नीकसँ पालन-पिषण कएल गेल । ओ उच्च शिक्षा प्राप्त कए जीवनमे नीकसँ स्थापित भेल छथि । हुनकर आन संतनासभ तँ सुशिक्षित आ जीवनमे नीकसँ व्यवस्थित छथिहे ।

व्यक्तिगत रूपसँ सल्लूजी बहुत अध्यात्मिक स्वभावक छथि । जीवनमे सादगी आ इमानदारीक पालन करैत सफल गृहस्थ रहल छथि ।मुम्बईमे अपन फ्लैट छनि । गाममे सेहो घर बनओने छथि । मुदा गामसँ आबाजाही आब कम भेल जा रहल छनि । पहिने तँ ओ लगपासक ककरो बिआह-दान होइ तँ गाम अवश्य जाइत छलाह ।

नौकरी करबाकक क्रममे ओ मुंबइ चलि गेलाह । तकरबाद ४७ सालसँ ओ ओतहि रमल छथि । मुम्बईमे ओ सरकारी काटन कंपनीमे बहुतदिन धरि ला आफीसर छलाह ।  सेवानिवृत्तिक बादो ओ कैकसाल धरि कानूनी सलाहकारक रूपमे ओही कंपनीमे काज करैत रहलाह । मुम्बई गेलाक बाद ओ अपन परिवारमे भाइ लोकनिक शिक्षामे बहुत मदति केलनि । कतेकोगोटेकेँ मुम्बईमे नौकरी धरओलनि । मुंबइक मैथिल समाजसँ सभदिन जुड़ल रहलाह ।

 

४७ सालसँ ओ मुम्बईमे छथि । हमहु गामसँ बाहरे-बाहरे छी ।  ओ मुंबईमे बसि गेल छथि आ हम ग्रेटर नोएडामे । मुदा हमरा लोकनिक संपर्क बनले अछि । फरीदाबादमे ३१ जनबरी २०१४क हुनकर कन्याक बिआह भेल रहनि । हमहु कन्यागत दिससँ ओहिमे भाग लेने रही । ओहि समयमे हुनकासँ भेंट भेल छल । ताहिसँ पहिनो आ बादोमे एकाध बेर हुनकासँ दिल्लीमे भेंट भेल । एकाध बेर गामोमे संगे पहुँचल रही । मुदा बहुत दिनसँ हुनकासँ भेंट नहि भेल अछि । तथापि फोन आइ-काल्हि संपर्कक बड़का साधन भए गेल छैक । तेँ हमसभ निरंतर संपर्कमे छी । एहन उपकारी आ सहृदय व्यक्तिक मित्रतापर ककरो गौरव भए सकैत छैक । ताहि हिसाबे हम जरूर भाग्यवान छी ।

श्री कमलाकान्त भंडारी

 

 

श्री कमलाकान्त भंडारी

मिडिल इसकूल अड़ेर आ उच्च विद्यालय एकतारामे हमरासँ एकसाल वरिष्ठ रहथि कमलाकांत भंडारी । हमसभ जखन मिडिल इसकूलमे पढ़ैत रही तखन ओ किछु आओर विद्यार्थीसभक संगे सरकारी कार्यक्रममे भाग लैत दिल्ली दर्शनक हेतु गेल रहथि । ओहि समय गामसँ दिल्ली जाएब बड़का बात रहैक । सबारीक तेहन सुबिधा नहि रहैक । दिल्लीमे ओ प्रमुख स्थानसभ देखने रहथि । ओतएसँ लौटि अपन अनुभवसँ हमरासभकेँ लाभान्वित केने रहथि । एकतारा उच्च विद्यालयक ओ नीक विद्यार्थीमे सँ मानल जाइत रहथि । तथापि ओ आर्ट्सक विषयसभ लेने रहथि। ओहि समयमे नीक विद्यार्थी सामान्यतः विज्ञानक विषय पढ़ैत छलाह आ डाक्टर,इंजिनीयर बनबाक स्वप्न देखैत छलाह । मैट्रिकक परीक्षा प्रथम श्रेणीसँ सफल भेलाक बाद ओ पटना कालेजमे नाम लिखओने रहथि आ ओतहि विश्वविद्यालयक क्षात्रावासमे रहथि । हम प्रतियोगिता परीक्षासभ देबाक क्रममे कैकबेर हुनका संगे छात्रावासमे रहल रही । जे बात छैक,ओ बहुत आदरसँ हमरा रखैत छलाह । ओहीठामसँ हम परीक्षा देबए जाइत छलहुँ ।

कमलाकांतजीक पिता स्वर्गीय मारकंडेय भंडारी अड़ेर पंचायतक बहुत दिन धरि मुखिआ रहल रहथि । इलाकामे हुनकर बहुत प्रतिष्ठा छल । पारिवारिक स्थिति बहुत मजगूत छलनि । हुनकर परिवार आर्थिक रूपसँ बहुत संपन्न छल । तेँ लगपासक गामसभक प्रतिष्ठित परिवारसँ हुनका लोकनिक बहुत नीक संबंध छलनि । कमलाकांतजी कहने रहथि जे एकताराक कृष्णदेव बाबूक पुत्रक सासुरसँ बिदाइमे स्टोभ आएल छल । ओहिमे चाह बनितैक । ताहि जेतु केतली आ कप-प्लेट हुनके ओहिठामसँ पठाओल गेल रहैक । ओहि समयमे स्टोभ होएब आ ताहिपर चाह बनब कतेकटा बात रहैक से एहीसँ बूझल जा सकैत अछि ।  एहन संपन्न परिवारमे कमलाकांतजीक पालन-पोषण भेल रहनि । विद्यार्थी तँ ओ नीक मानले जाथि । सभकेँ उमीद रहैक जे ओ कोनो बड़का अधिकारी बनताह। मुदा संयोग एहन भेल जे कमलाकान्तजी पटना विश्वविद्यालयसँ अर्थशास्त्रमे बी.ए.(प्रतिष्ठा) केलाक बाद एम.ए.अर्थशास्त्रक परीक्षा दैत रहथि कि अचानक बहुत जोर दुखित पड़ि गेलाह । परीक्षा छोड़ि कए गाम आबए पड़लनि । पढ़ाइ छुटि गेलनि ।

बहुत दिनधरि ओ ओहिना गामेमे रहि गेलाह ।

हम जखन इलाहाबादमे रही तखन सन् १९८५मे ओ मैथिलीसँ एमए केलाह । तकरबाद स्वर्गीय डाक्टर सुभद्र झाजी मार्गदर्शनमे कबीरदासपर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालयसँ पी.एच.डीक उपाधि प्राप्त केलनि । तकरबाद ओ पटना स्थित सरकारी इंटर कालेजमे शिक्षक भए गेलाह आ अंत धरि ओएह काज करैत सेवानिवृत्त भए गेलाह। ओ मैथिली एकेडमी पटनाक सदस्य सेहो रहलाह आ मैथिलीक विकास बहुत तरहक गतिविधिक संचालन करैत रहलाह ।

हम इलाहाबादमे रही की दिल्लीमे कमलाकांतजी निरंतर संपर्कमे रहलाह । दिल्ली ओ जखन कखनो अबैत छथि तँ अवश्य संपर्क करैत छथि । हम गाम जाइत छी तखन तँ भेंट होइते अछि । हम मैथिलीमे लीखी ताहि हेतु ओ लगातार हमरा प्रेरित करैत रहैत छलाह । दिल्लीमे कैकबेर स्वर्गीय मोहन भारद्वाजजीक संगे ओ अबैत छलाह । हुनके माध्यमसँ हमरा मोहन भारद्वाजजीसँ संपर्क भेल जे क्रमशः घनिष्टतामे बदलैत गेल । ओ कैकबेर हमरा ओहिठाम अएबो केलाह । हमर छोट बालकक पटनामे बिआहक अवसरपर बरिआतीमे कमलाकांतजी आ मोहन भारद्वाजजी दुनूगोटे गेल रहथि ।

सेवानिवृत्तिक बाद ओ गामेपर रहैत छथि । तथापि साहित्यिक गतिविधिमे रुचि बनओने रहैत छथि । हमरा निरंतर उत्साहित करैत रहैत छथि । जखन कखनो हमरासँ गप्प होइत छनि तँ हमर पुस्तकसभक चर्च अवश्य करैत छथि।

किछुदिन पूर्व ओ दिल्ली आएल रहथि । मुदा कोरोनाक माहौलक कारण भेंट नहि भए सकल,फोनेसँ गप्प भेल ।

सबसँ प्रसन्नताक बात थिक जे ग्रामीण वातावरणमे रहितहुँ ओ साहित्यिक गतिविधिमे लागल रहैत छथि । मुदा उचित सहयोगक कारण कैकबेर उदासो भए जाइत छथि। आशा करैत छी जे ओ स्वस्थ रहि आगामी अनेको साल धरि हमरा ओहिना प्रेरित करैत रहताह ।