मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

शुक्रवार, 12 मई 2023

सन् २०१८मे प्रकाशित हमर मैथिली उपन्यास महराज(ISBN: 978-93-5321-395-4)क हमर ब्लाग स्वान्तः सुखायपर धारावाहिक पुनर्प्रकाशनक भाग दस,एगारह, आ बारह:

 



१०

 

प्रात भेने जखन जेलरबाबूकेँ होस भेलनि तँ कोनो अज्ञात स्थानमे पड़ल छलाह। निशाकेँ कतहुँ पता नहि छल। लग-पास केओ छलहो नहि जकरासँ किछु मदति भेटितनि। रातिओमे किछु नहि खेने रहथि। पानिओ नहि पीवि सकल रहथि। भूख-पिआससँ छट-पट करैत छलाह। जखन बुझा गेलनि जे ओहुना मरिए जाएब तँ ओहिठामसँ आगू ससरलाह। कनीके आगू बढ़ल होएताह कि एकटा जुआएल गहुमन साँप छत्र काढ़ने बीच रस्तापर ठाढ़ छल। आब तँ जेलरबाबूक हालति सम्हारसँ बाहर भए गेल। जेलरबाबू छगुन्तामे छलाह। कोनो उपाय नहि सुझा रहल छलनि। ओ ओहिठामसँ वापस भेलाह। कनीके आगू गेल हेताह कि ऐकटा बड़ीटा महराजी सुरंग देखेलैक। एहि कात साँप, ओहि कात सुरंग। जाथि तँ केमहर? हारि कए सुरंगमे पैसि गेलाह।

महराजीसुरंगमे जौँ-जौँ आगू बढ़थि तँ- तँ रस्ता फरीछ होइत गेल। साहस कए ओ आगू बढ़लाह, कोनो आओर उपायो नहि रहैक। ओ आधा घंटा धरि चलैत रहलाह तकर बाद  आओर चलबाक साहस नहि भेलनि। देह थाकि कए चूर-चूर भए गेल छलनि। भूख-पिआससँ छटपटा रहल छलाह। ओ ठामहि बैसि गेलाह। ओहिठाम चारूकात मनोरम दृश्य छल। नाना प्रकारक फूल-फलहरीसँ वातावरण मह-मह करैत छल। हरिअर कंचन घास, ठाम-ठाम गुलाब जलसँ सिक्त पानिक फुहारा पड़ि रहल छल। काते-काते सुन्दर-सुन्दर महल बनल छल। दहिना दिस एकटा रमणीय उद्यान देखेलनि। ओ ओमहरे बढ़ल छलाह कि चौकीदार रोकि देलकनि।

आब की कएल जाए?"

जेलरबाबूकेँ छगुन्तामे देखि ओ बाजल-

"घबड़ाउ नहि,"

"हम बूझि नहि पाबी रहल छी।"

"अगुताउ नहि। सभटा अपने बूझि जेबैक।"

जेलर बाबू अत्यंत विस्मय सँ ओकर बात सभ सुनैत रहलाह।

ई के अछि? हम कतए आबि गेल छी?"

ई बात सभ हुनकर मोनमे वारंबार अबैत रहलनि। कनिक दूर आओर गेलापर एकटा बेस टनगर लोक देखाएल। पातर-छितर,गोर दप-दप आ बेस फुर्तिगर। जेलर बाबूकेँ देखिते ओ प्रसन्न भए गेल। हाथसँ बैसबाक इसारा केलकैक। लगैत छलैक जेना कोनो महराजक हबेली होइक। फेर ओ अपने बजलथि- "हमरा चिन्हलहुँ?"

जेलर बाबूकेँ गुम देखि फेर अपने कहलाह-

"हम छी महराजी भगता "।

ओ जेलरबाबूक जलखैक ओरिआन केलक। बहुत भूखल रहथि, धराधर सभटा चट कए गेलाह। थाकल छलाहे,भोजन करितहि हाफी आबए लगलनि आ कनीके कालमे निन्न पड़ि गेलाह।q

 

११

 

महराजक नजरि निशापर बहुत दिनसँ गरल छलनि। जहन जेलरबाबू महराजी हातामे रहब स्वीकार नहि केलाह तँ महराज ई भार महराजी भगताकेँ देलखिन जे ओ कोनो चालि चलए। महराजी भगता मंत्र-तंत्रक प्रयोग कए हुनका ओझरओलक। समाजमे पसरल अशिक्षा ओ अंधविश्वास आगिमे घीक काज करैत छल। गाम-गाम महराजी भगताक आदमीसभ पसरल छल। एक हिसाबे ओसभ महराजक कारपरदाज छल जे हुनक शोषणमे सहायक रहए। कालू भगतो सएह छल। गड़बड़ एतबे भेलैक जे निशा संगे ओ अपने ओझरा गेल।

फरीच भए गेल छल। वर्षा सेहो थम्हि गेल छल। गाममे लोकसभ अपन-अपन रोजी-रोटीमे लागि गेल छलाह। चिरै-चुनमुन अपन खोंता छोड़ि कए स्वछन्द भए आकाशमे उड़ि रहल छलाह। मुदा कालू भगताक मंत्र-तंत्र चलिए रहल छल। ओकर कोरामे निशा अखनो बेहोस पड़ल छलीह। कनीकालमे कालीकेँ गोहरबैत निशाकेँ भरि पाँज पकड़ने उठल। ताबतमे निशाक आँखि खुजलैक। अपनाकेँ एहि परिस्थितिमे देखि कए ओ आश्चर्यचकित छलि। हम एहिठाम कोना आबि गेलहुँ?"

"कालू भगत हँसए लागल। पुछलकैक- "मोन केहन अछि?"

"किएक, हमरा की भेलए? "

"छोड़ू ई गप्प-सप्प। चाह पिबैक?"

"किएक नहि।"

"ठीक छैक, तँ हम करिआ चाह बना रहल छी कारण अखन धरि दुध नहि आएल अछि आ भए सकैत अछि जे आइ अएबो नहि करए।"

"कोनो बात नहि।"

मंद-मंद बहैत हबाक झोंकासँ निशाक चेतना क्रमश: सक्रिय भए रहल छल। ओ अखिआसि रहल छलि जे कतए छथि?मुदा ओ ओहि स्थानकेँ चिन्हि नहि सकलीह। किछु-किछु मोन पड़ि रहल छलैक। ताबतमे कालू भगता भफाइत चाह लेने आएल। चाहक चुस्की संग जेना ओकर माथाक तेजी सेहो बढ़ैत गेलैक। ओकरा ध्यानमे अएलैक जे जेलर बाबू तँ ओकर संगे छलैक,फेर ओ कतए गेल?रातुक प्रलयंकारी दृश्य आ भिजल जेलरबाबू ओकरा मोन पड़ए लगलखिन।

"रघु कतए छथि?"

अहाँ एहि चक्करमे किएक पड़ल छी? हम छी ने?"

निशाकेँ कालूक नेतपर सक होमए लगलैक। सोचए लागलि-

"कहीं इएह किछु गड़बड़ तँ नहि केलक?"

 मुदा किछु बाजलि नहि। ताबत चाह खतम भए गेल छल। कालू मुस्की देलकैक आ निशाकेँ हाथ पकड़ि भितरक कोठरीमे लेने चलि गेल।

कालू अपना भरि बहुत प्रयास केलक जे निशाक मोनसँ जेलर बाबू हटि जाइक। जखन निशाक चिंता बढ़िते गेल तँ कालू जोर-जोरसँ किछु-किछु बड़बड़ाए लागल। ओकर आँखि लाल-लाल ओ भयाओन भए गेलैक। निशा चेतनासून्य भए चौकीपर खसि पड़लि।q

 

१२

 

मामा हमरा संग कए सोनाक सिक्का वला पोटरीकेँ राजपुरा लेने चलि गेलाह आ नामी सोनार सभकेँ देखए देलखिन। ओसभ पोटरीमे राखल सोनाक सिक्का देखि कए दंग छल।

"मुदा तोरा ई सोनाक सिक्कासभ भेटलह कतए? ई तँ किछु दिन पहिने महराजक घरसँ हरा गेल छल। महराज एकरा तकने फिरि रहल छथि। सौंसे शहरमे डिगडिगिआ पिटाओल गेल अछि जे हराएल सोनाक सिक्काक भांज देनिहारकेँ महराज स्वयं पुरस्कार देथिन।"

"हम से सभ नहि जनैत छी। ई हमरा भगवान देलाह अछि।"

"मिथ्या खिस्सा गढ़ि रहल छह। एखने महराजक पुलिस पकड़ि लेतह तखन बूझिअहक।"

तूँ हमर बात पर विश्वास करह। हम ककरो सोनाक सिक्का नहि जनैत छी। ई हमर अछि, एहिमे कोनो सक नहि हेबाक चाही।

"तँ थम्हह, हम महराजक सिपाहीकेँ खबरि कए दैत छिऐक। तोरा संगे फाँसीपर के चढ़त?”

सोनार महराजक कारपरदाजकेँ फोन कए देलक। औ बाबू! देखिते-देखिते सोड़हि महराजी पुलिस एकट्ठा भए गेल आ ओकरा संग प्रश्नोत्तर करए लागल।

"तोहर की नाम छह?"

"हरि"

"घर कतए छह"

"पछबारिगाम।

बहुत घोंघाउज होइत देखि हम दोकान दिस बढ़लहुँ। देखैत छी जे सिपाहीसभ मामाकेँ टंगने जा रहल अछि। सोनाक सिक्का वला पोटरी सेहो हुनकासँ छिन लेलक अछि। हम बहुत चिकरलहुँ, मुदा ओसभ ठेङा देखा कए हमरा चुप करा देलक आ मामाकेँ लदने-फदने महराज लग लेने चलि गेल। पाछू-पाछू हमहुँ ओतए पहुँचलहुँ।

प्रात भेने मामाकेँ हथकड़ी लगाए महराजक दरबारमे आनल गेल। दसटा महराजी पुलिस आगू-पाछू घुमि रहल छल। लगैक जेना कतेक भारी अपराधीकेँ पकड़ल गेल अछि। महराजक दरबार लागल। बीचमे सिंघासनपर महराज सुशोभित भए रहल छलाह। दुनूकात नाना प्रकारक लोकसभ उत्सुकतासँ महराजक श्रीमुखसँ न्यायक प्रतीक्षा कए रहल छल। महराजाधिराजक स्वागत हेतुसभ केओ ठाढ़ भए गेलाह। दूटा भाँट मनोयोगपूर्वक महराजक जयगान करए लगलाह-

"जय हो ! जय हो !सरकार के जय हो...

दुश्मन के क्षय हो, सभ कियो निर्भय हो

सभकिछु मधुमय हो, सभगोटै सुखमय हो

अगबे जय-जय हो..!

बल बढ़ै, आयु बढ़ै,बुद्धि बढ़ै, विद्या बढ़ै

चौगुन्ना संपत्ति बढ़ै,विपक्षी के विपत्ति बढ़ै

खेतमे अन्न बढ़ै, तिजोरीमे धन बढ़ै

थपड़ी  वला जन बढ़ै,बात  वला मन बढ़ै

गौरव छन-छन बढ़ै, यात्रा हबाइ बढ़ै

यश के पतक्खा नभमे उड़ै...

जय हो! जय हो!

सरकार के जय हो!

अगबे जय जय हो..!

तकर बाद  महराजसँ न्यायसभाक कार्यक्रम प्रारंभ भेल। एकटा दरबान जोरसँ अबाज देलक-

"महराजाधिराजक जय हो! सरकारक आज्ञा हो तँ न्यायसभाक कारवाइ प्रारंभ हो।"

"आज्ञा अछि।"

तकरा बाद  सभसँ पहिने हमर मामाकेँ महराजक सामने उपस्थित कएल गेल। महराज ताबे पान खा रहल छलाह। पान थूकबाक हेतु पिकदानी लए एकटा कारपरदाज दौरल। ततेकटा पान छल जे महराजक मुँहसँ अबाजे नहि निकलि रहल छल। पानकेँ थुकरि ओ पुछलाह-

"ई के थिक आ एकर की अपराध अछि?"

ई सुनितहि पेसकार बाजए लागल- श्री मान! ई महान चोर अछि। अहाँक रनिबाससँ सोनाक सिक्काक पोटरी चोरा लेलक। आइ कतेको दिनसँ ओहि पोटरीक खोज भए रहल छल आओर ई बदमास ओकरा सोनारक हाथे बेचबाक फिराकमे छल कि पकड़ल गेल। ओ तँ सोनार इमान्दारी केलक जे ई बदमास पकड़ल गेल आ सोनाक सिक्का सेहो वापस भए गेल नहि तँ सत्यानाश भए गेल रहैत। एकर अपराध अक्षम्य थिक ताहि हेतु एकरा मृत्युदंड देल जाए।"

महराज हमर मामा दिस तकलाह। फेर पुछैत छथि-

"की बात छैक से सच, सच बाजह।"

"सरकार अपनेसँ किएक किछु झूठ कहब। अपने देवता थिकहुँ। हम कोनो चोरी नहि केलहुँ। हमरा तँ ई पोटरी भूतहा गाछी लग भेटल। हम अपन भागिन संगे अबैत रही कि ई पोटरी पाकल आम जकाँ भट दए खसल। हम ओहि पोटरीकेँ उठा लेलहुँ। खोलैत छी तँ बीसटा सोनाक सिक्का भेटल। हम बहुत प्रसन्न भेलहुँ। भेल जे भगवान हमर भागिनक पढ़ाइ-लिखाइक खर्चाक व्योत कए देलाह अछि। हम अपन भागिन संगे एहि पोटरी लए राजपुराक सोनार ओतए गेल रही कि ओ सोनार महराजी पुलिसकेँ बजा अनलक आ तकर बाद  जे भेल से तँ अपनेकेँ बुझले अछि।"

महराज ई बात सुनितहि हमरा बजओलथि। हम नवालिग ठहरलहुँ। मामाक परेसानीसँ मोनमे बहुत दुख छल। महराजक सामने जाइते ठोहि पारि कए कानए लगलहुँ। महराजकेँ दया आबि गेलनि। ओ बजलाह-

"तूँ के छह बालक? एना किएक कानि रहल छह?"

हम महराजकेँ सभटा बात सच-सच कहि देलिअनि। प्रमाणस्वरुप अपन मैट्रिकक प्राप्तांको देखए देलिअनि। ई सभ देखि सुनि महराजकेँ मोन डोललनि। ओ न्याय पुरुष भए ठाढ़ भए गेलाह। हुकुम देलथि- "ई व्यक्ति एकदम निर्दोष अछि। एकरा तुरंत रिहा कएल जाए संगहि ई पोटरी सभटा सोनाक सिक्काक संगे एकरा वापस दए देल जाए। एहि बालककेँ राजकोषसँ पढ़ाइ-लिखाइक व्यवस्था कएल जाए। संगहि हिनका दुनू गोटेकेँ रहबाक हेतु घर सेहो राजक हातामे देल जाए।"

महराजक आदेश सुनि सभ बाजि उठलाह-महराजक जय हो! अपने साक्षात अवतारी पुरुष छी!"

महराजक आज्ञा सुनि कए मामा अबाक भए गेलाह । ओ दंडवत भए गेलाह आ बजलाह- "श्री मानक जय हो! हे देवपुरुष! हमरा ई सोनाक सिक्का नहि चाही। हमरा नहि बुझल छल जे ई सिक्का रनिबासक अछि। हमरा एहि सिक्कासभकेँ वापस करबाक आज्ञा देल जाए। अपने हमर भागिनक शिक्षाक व्योंत कइए देलहुँ अछि। एकर अतिरिक्त हमरा किछु नहि चाही।"

ओहिठाम उपस्थित समस्त सभासद लोकनि हमर मामा दिस छगुन्तामे ताकए लगलाह। हमरा तँ बकोर लागि गेल। हमर मामाक बात सुनि महराज दंग रहि गेलाह आ बजलाह- "हम ई सोनाक सिक्का एकहि सर्तपर लेब जे अहाँ एहि राजक राजमंत्रीक पद स्वीकार करी।"

चारूकात महराजक जय-जय होमए लागल। मामा सहर्ष महराजक राजमंत्री बनए हेतु स्वीकृति दए देलथि। कहबी छैक - “जाको राखे साइयां मार सके न कोय । सएह भेल। कहाँ सिपहसलारसभ फाँसीक हेतु सोचि रहल छलाह, कहाँ ओ राजमंत्री भए गेलाह। इएह थिक नियति।

सभा विसर्जित भए गेल। चारूकात एहि घटनाक चर्चा होमए लागल। हमर मामाकेँ राजमंत्री बनओलासँ किछु सभासद बहुत परेसान रहथि। न्यायसभाक विसर्जनक बाद ओसभ बाहर निकलैत काल आपसमे चर्च करथि जे महराजपर भांगक निशा चढ़ि गेल छलनि नहि तँ एहन घाघ चोरकेँ कतहुँ राजमंत्री नहि बनबितथि। मुदा सामने के बाजत?

महारानी अपन हेराएल सोनाक सिक्कासभ पाबि गद-गद भए गेलीह आ महराजाकेँ बहुत मानलखिन। महराज दहो-बहो रहथि। आनन्दसँ गद-गद रहथि जे रानी एतेक प्रसन्न भेलीह। महराज सोचथि- "बाह रे हम।"

रानी कहलखिन- "हम ओहि आदमीसँ भेंट करए चाहब।"

"किएक ने। हे लिअ, ओ अहाँक द्वारपर ठाढ़ छथि।"

"से केना भेलैक?"

"हमरा अपने मोनमे रहए जे अहाँकेँ एहि आदमीसँ भेंट कराएब तेँ ओकरा पहिने समाद दए देने रहिऐक।"

महराज घंटी बजओलथि आ हमर मामा ओतए हाजिर भए गेलाह। मामाक देखिते जेना रानीकेँ करेंट लागि गेलनि। सोचए लगलीह- "ई आदमी कतेक सुन्दर अछि। कोनो नीक खानदानक व्यक्ति लागि रहल अछि।"

रानी हमर मामाकेँ बहुत धन्यवाद देलखिन आ राजाज्ञाक अनुसार राजमंत्रीपद शीघ्र ग्रहण करबाक आग्रह केलखिन। हमर मामाक प्रसन्नताक वर्णन करब मोसकिल। इलाकामे गर्द भए गेल जे हरि राजमंत्री भए गेलाह अछि।

महराजक आज्ञाक अनुसार हमरा लोकनिक रहबाक हेतु महराजक हातामे विशाल भवनक व्यवस्था भेल। सेवादारसभ सेहो नित्य अपन काजमे लगा देल गेलाह। देखिते-देखिते हमर मामाक प्रभाव राजमहलमे ततेक पसरि गेलनि जे पुरान-पुरान चापलूससभकेँ अपन भविष्यपर ग्रहण लगैत बुझाए लगलनि। मुदा कइए की सकैत छलाह?बहुत मोन हेतनि तँ दू कओर बेसी खा लेताह। बाह रे समय! की सँ की भए गेल। काल्हि धरि जे आदमी घोर संकटमे छल से आइ राजमहलक सहभागी भए गेल।

रानीकेँ जखन कोनो खास काज होइतनि तँ हमर मामाकेँ बजबितथि। देखए सुनएमे तँ ओ सुन्नर छलाहे। राज महलमे रहि नित्य नीक-निकुत खाइत-पीबैत आओर चमचम करए लगलाह। रानीकेँ हुनकासँ गप्प-सप्प करबामे नीक लागए लगलनि। कोनो-ने-कोनो बहन्ना ताकि हमर मामाकेँ बजा लितथि आ घंटो गप्पमे लसकल रहितथि। महराजक जासूससभ ई बात महराजकेँ पहुँचबैत रहैत छलनि मुदा हुनका कहाँ फुरसति रहनि जे एहिबात सभ पर ध्यान दितथि। फेर ओ तँ अपने तरह-तरहकेँ लफासोटीमे लागल रहैत छलाह। भने रानी कतहुँ व्यस्त छथि।"-ओ सोचथि आ जासूससभकेँ उल्टे डाँटि देथि। ओ बेचारासभ चुपचाप सहटि जाइत। मुदा मोनमे तामस तँ हेबे करैक।q

 

 

 

 

 

 

Maharaaj is a Maithili Novel dealing with the social and economic exploitation of the have-nots by the affluent headed by the local heads of that time. However, the have-nots ultimately succeed in controlling the resources and regain their lost assets by sustained struggle. Even the dead persons join together to fight against the Maharaaj and ensure that the poor gets their due.

 

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