मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

शनिवार, 27 अप्रैल 2019

अनंत से अनंत की ओर


अनंत से अनंत की ओर

इतनी विविधताओं से भरा हुआ यह संसार आश्चर्यों से लबालब भरा हुआ है । हम सोच नहीं पाते हैं कि आखिर यह सब कैसे हुआ ,इस सबके पीछे कौन है? कौन है वह जादूगर जो नित्य सौंदर्यमयी प्रातःकाल की रचना करता है । कौन हमें पृथ्वी पर चतुर्दिक फैले सुंदर हरितिमा का दर्शन करने का अवसर प्रदान करता है? दूर-दूर तक फैले हुए समुद्र कहाँ से आए? बात यहीं तक होती तो क्या कहना था ? अनंत व्रह्मांड में फैले हुए असंख्य ग्रहों,नक्षत्रों का निर्माता कौन है? कहते हैं हमारे सूर्य से भी हजारों गुना बड़े-बड़े सूर्य अंतरिक्ष में विद्यमान हैं । और वह ब्लैक होल (काला धब्बा) क्या है जिसके पास जाते ही कोई भी ग्रह,नक्षत्र साबूत नहीं बच पाता, उसी में सदा-सर्वदा के लिए समा जाता है?

हमारी पृथ्वी इस व्रह्मांड का एक बहुत ही लघुतम अंशमात्र है । व्रह्मांड कहाँ तक फैला हुआ है और इस में क्या-क्या है इसका सही-सही आकलन अभी भी कोई नहीं कर सका है । हजारों-लाखों प्रकाश वर्ष दूर अनेक तारा मंडलों को देखा जा सका है । पर वहीं अंत नहीं है । वैज्ञानिक  कहते हैं कि व्रह्मांड निरंतर बढ़ता जा रहा है । अनंत से अनंत की ओर यह यात्रा मानवीय सोच से परे है । क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि इस असीम व्रह्मांड के मौलिक  स्वरूप का दर्शन भी विज्ञान अभी तक नहीं कर सका है । मनुष्य की आयु इस तुलना में कहाँ ठहरती है? फिर भी हम छोटी-छोटी बातों में उलझे रहते हैं ।

देखने,सुनने,और समझने की हमारी शक्तियों की अपनी सीमाएं हैं । विज्ञान इस बात को साबित कर चुका है कि जो आस्तित्व में है, सब कुछ दृष्य हो, यह जरूरी नहीं है । हम एक सीमा के अधीन ही सुन सकते हैं,देख सकते हैं । कुत्ता मनुष्य से दस हजार गुना ज्यादा घ्राण शक्ति रखता है । कई जीव हमसे ज्यादा सुन सकते हैं,देख सकते हैं । फिर भी हम कई बार अड़ जाते हैं कि हम जो देखते हैं वही प्रमाणिक है । शृष्टि में जो चीजें हैं उनमें से बहुत कम हम देख पाते हैं । हमारी ज्ञानेन्द्रियों की शक्ति सीमित हैं । लेकिन जो चीजें हम देख रहे हैं,सुन रहे हैं उनको भी ठीक से समझ नहीं पाते हैं । इसके कई कारण हो सकते हैं । जैसे कि मोहवश हम अपनोंके मृत्यु से उद्विग्न ,दुखी हो जाते हैं । परंतु ऐसा ही अज्ञात लोगों के मरने से नहीं होता है । एक ही प्रकार की घटनाएं अलग-अलग से अपना प्रभाव छोड़ती हैं तो इसलिए कि हमारा  दृष्टिकोण एक जैसा नहीं रहता है। हम निष्पक्ष नहीं रह पाते हैं ।

स्वभाविक रूप से जीवन यात्रा शुरु होकर मृत्यु के बाद स्वतः समाप्त हो जाता है । अगर ऐसा नहीं भी होता है,और मृत्यु के बाद पुनर्जन्म होता ही है तो उसमें हमें करने के लिए क्या रह जाता है? प्रकृति का नियम समस्त जीव-जन्तुओं पर समान रूप से स्वतः लागू होता है । हम चाहकर भी उसके अपवाद नहीं बन सकते हैं। फिर हमें क्या करना चाहिए? जीवन को ईश्वर का वरदान समझ कर प्रकृति के साथ संयोजन करते हुऐ आनंदपूर्वक जीवन विताना चाहिए । इसके लिए जरूरी है कि हम सकारात्मकता से जुड़ें और और अपने सोच में नकारत्मक तत्व जैसे क्रोध, घृणा ,प्रतिशोध को स्थान नहीं दें । इस तरह हम इस छोटे से जीवन को सुख,शांति के साथ  बिता सकते हैं,संतुष्ट रह सकते हैं ।

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

कपिलेश्वर स्थान



कपिलेश्वर स्थान





अपना सभ दिस कपिलेश्वर स्थान एकटा प्रमुख तीर्थमेसँ मानल जाइत अछि । कपिलेश्वर स्थान हमरासभक गामसँ लगीचे अछि । कतेको गोटे सभ सोमदिन कए कपिलेश्वर स्थान जेबे करथि आ ओहिठाम महादेवकेँ जल चढ़ाबथि । हर-हर महादेव ….. कहैत लोकसभ अति उत्साहमे कपिलेश्वरक यात्रा करैत छलाह । पहिने तँ लोकसभ बाधे-बाधे, पैरे-पैर ओतए घंटाभरिमे पहुँचि जाइत छल । ओना रहिका बाटे रोडसँ जुड़ल रहबाक कारणे बससँ जेबाक सुविधा सेहो बहुत दिनसँ अछि । पहिने बस कम चलैक। तैँ लोक पैरे-पैरे गेनाइ पसिंद करैत छल ।

 शिवरातिमे ओहिठाम जबरदस्त मेला लगैत छल । गाम-गामसँ लोकसभ  महादेवपर जल चढ़ेबाक हेतु अबैत छलाह । किछु-किछु सनेस कीनैत छलाह । ओहिठाम कुश्तीक आयोजन सेहो होइत छल । ओहिमे इलाकाक पहलवानसभ अबितथि आ अपन जोर अजमाइस करितथि । सतलखा डीहटोलक नामी पहलबान स्वर्गीय कामेश्वर झा अगुआ रहैत छलाह । हमरो गामसँ कै बर पहलबानसभ ओहिठाम कुश्ती लड़ैत छलाह । कुश्ती शुरु हेबासँ पहिने  एकटा ढोलिआ ढोल बजबैत अखाड़ाक चारूकात घुमि जाइत । ढोलक आबाज सुनि कए लोकसभ जमा भेनाइ शुरु होइत । देखिते-देखिते अखाड़ाक चारूकात लोकक करमान लागि जाइत । साँझ होएबासँ पहिने सभ अपन-अपन घर आपस चलि जाइत छलाह ।

कपिलेशवर गेनिहारि वृद्धासभ महादेवक निर्माल अनैत छलीह । ओहिसँ हमरसभक माथपर आशीर्वाद स्वरूप हँसोथि देथि । हमसभ नेन्ना रही,की बुझबैक जे ई की होइत छैक?नेन्नामे जखन हमर  बहिनसभ कपिलेश्वरसँ आपस होइत काल सनेसमे छोटसन तिपहिआ गाड़ी अनैत छलीह तँ हमर खुशीक अंत नहि रहैत छल । ओहिमे उपरमे ढ़ोल लागल रहैत छल। जहिना ओहि तिपहिआकेँ आगू दिस घीचल जाए कि ओ ढ़ोल बाजि जाइत । तेँ ओ एकहि संगे दूटा काज करैत छल -गाड़ी जकाँ घुसकैत छल आ ढ़ोल जकाँ बजैत सेहो छल। ओ खेलौना देखितहि हम आनंदविभोर भए जइतहुँ । लगपासक देखितहि सभकेँ बजबितहुँ आ तिपहिआ संगे खेलमे मस्त भए जइतहुँ । मुरही,झिल्ली, मधुर सेहो प्रसाद कहि भेटैत छल।

कपलेश्वरस्थानक मुख्य मंदिर छोटेसन अछि । ओहिमे स्थापित शिवलिंग निरंतर घर्षणसँ  खिआइत जाइत छल । भक्तसभ चारूकातसँ हुनका ऊपर जल ढारैत रहैत छलाह । धन्यवाद दी हुनकर शहनशीलताकेँ जे जाढ़-ठार ,गर्मी,बरखासभ मौसममे बिना कोनो प्रतोरोधकेँ भक्तक मनोरथ पूरा करैत रहैत छथि । बहुत दिनक बाद किछुमास पूर्व हम कपिलेश्वर बाटे गाम जेबाक क्रममे ओतए बाबाक दर्शन केलहुँ । मंदिरक हालत बेहतर बुझाएल । चारूकात रंग-रोसन कए देल गेल अछि । मुदा मंदिरक मौलिक स्वरुप ठामहि अछि । मिथिलाक एतेक पुरान तीर्थमे आओर कोनो तरहक विकास नहि देखाएल । अनदिना रहैक तेँ भक्तलोकनिक सेहो अभावे छल । पंडासभ जरूर एमहर-ओमहर घुमैत रहथि । हमरासभकेँ देखि सक्रय भेलाह । हमसभ भगवान शिवक पूजा कए गाम दिस बिदा भए गेलहुँ ।

कपिलेश्वर स्थान एवम् लगपासक अन्य तीर्थसभ मिथिलाक लोकक प्राणवायु थिक । गाम-घरमे रहनिहार लोकसभ खास कए स्त्रीगणसभ  एही तरहें नित्यप्रतिक काजसँ हटि कए  एकटा स्वस्थ  मनोरंजनक अवसर प्राप्त करैत छथि । जरुरी एहिबातकेँ अछि जे एहिस्थान सभकेँ सरकार द्वारा उचित विकास कएल जाए जाहिसँ मिथिलांचलक एहि पवित्र तीर्थमे देश-विदेशसँ पर्यटक लोकनि आकर्षित होथि,एहिठाम आबथि आ मिथिलाक संस्कार ओ संस्कृतिसँ लाभान्वित होथि।

रविवार, 14 अप्रैल 2019

अमरता का संदेश


अमरता का संदेश



इस दुनिया में हम जन्म लेते हैं,जीते हैं,और मर जाते हैं । सबाल है कि जन्म से पूर्व और मृत्यु के बाद हम कहाँ थे? सायद कहीं भी नहीं-यह एक आसान उत्तर हो सकता है । हम जन्मे,फिर बढ़े और बढ़ते-बढ़ते  युवावस्था, प्रौढ़ावस्था  से गुजरते हुए वृद्धावस्था में पहुँच गए । इसके बाद एक दिन अकस्मात हमारी मृत्यु हो जाती है । हमारा पूरा-का-पूरा शरीर  जस-का-तस रह जाता है । पर क्या है जिसके नहीं रहने से या चले जाने से हमारा शरीर व्यर्थ हो जाता है। चल-फिर नहीं सकता,बोल नहीं सकता,कुछ भी महसूस नहीं कर सकता है । इतना ही नहीं, अगर उसे थोड़ी देर वैसे ही छोड़ दिया जाए तो उस से ऐसा भयानक दुर्गंध आना शुरु हो जाता है कि अपने लोग ही उसे उठा-पुठाकर  श्मशान घाट ले जाकर जलाने के लिए विवश हो जाते हैं ।

यह सब अकस्मात नहीं होता है । जन्म से मृत्यु पर्यंत हमारे शरीर में  निरंतर परिवर्तन होता रहता है । परंतु कभी भी, भूल से भी हमें यह नहीं लगता है कि हम वह नहीं रहे जो कल थे ,जबकि परिवर्तन का यह सिलसिला अनवरत,बिना किसी अपवाद के चलता रहता है । कई बार जब हमारे मित्र,परिचित काफी दिनों के बाद मिलते हैं तो वे हमारे शरीर में हो रहे परिवर्तन को तुरंत तार जाते हैं लेकिन नित्य-प्रति देखने बाले लोग इसे महसूस नहीं कर पाते  या तब करते हैं जब हम में कोई भारी गड़बड़ी हो जाती है । मसलन ,जब कोई बिमार हो जाता है तो कई बार हमारे रूपरंग में बहुत परिवर्तन हो जाता है । तब लोग इस पर अपनी प्रतिकृया देते हैं । लेकिन सत्य यही है कि जो आज हैं ,वह कल नहीं होंगे और एक दिन यह शरीर  प्राणरहित होकर व्यर्थ हो जाएगा। तब कोई क्षण भी इसे रखना उचित नहीं समझेगा । फिर भी हम इस शरीर को ही सर्वस्व मानकर जीवन भर परेशानी में पड़े रहते हैं , यही विडंवना हैहमारे दुख का कारण ही यही है कि हम सत्य को स्वीकारना नहीं चाहते हैं और जो कुछ है ही नहीं उसके पीछे पड़े रह जाते हैं ।

मनुष्य ही नहीं,समस्त जीव-जन्तु में जीवन और मृत्यु का यह चक्र अनवरत चलता रहता है । अंतर सिर्फ इतना है कि हम तरह-तरह के वैज्ञानिक अविष्कारों से अपने और दूसरों के जीवन को प्रभावित करते हैं जबकि प्रकृति में विद्यमान अन्य प्राणी नैसर्गिक रूप से जो कुछ होता है,उसे होते देखते रहते हैं,सब कुछ जैसा जो है वह भोगते हैं। इस तरह बेहतर वुद्धि और विद्या उपार्जित कर मनुष्य ने एक तरह से समस्त पृथ्वी को अपने मुठ्ठी में करने का प्रयास किया है । उसके इसी स्वभाव के कारण दुनिया एक विशाल कारागार में तबदील हो गई है । वे सभी जीव-जन्तु जो आजाद रहने के अभ्यस्त हैं, किसी भी प्रकार से प्रकृति के व्यवस्थाओं में छेड़-छाड़ नहीं करते हैं,मनुष्य निर्मित विपदाओं से घिरे रहते हैं । उदाहरणस्वरूप, हमने चिड़ियाखाना बनाकर उनमुक्त विचरण करने बाले पंक्षियों,जानबारों को सीमाओं में रहने के लिए विवश कर दिया है। हमने ऐसा क्यों किया है? संभवतः इसीलिए कि हम इस शृष्टि के समस्त संपदाओं का अपने तात्कालिक स्वार्थ के लेए अधिक-से-अधिक दोहन कर लेना चाहते हैं । हमारा यह स्वार्थ ही इस दुनिया को नर्क बना दिया है । सो तो जो है सो है, परंतु हमें क्या वह सब हासिल हो गया है जिसके लिए हमने ऐसा किया है? उत्तर है, विल्कुल नहीं । हम पहले से कहीं अधिक दुखी-संतप्त जीवन जी रहे हैं । हो भी क्यों नहीं? तालाव के जल में जहर घोलकर आप उस में से अमृतपान की उमीद कैसे कर सकते हैं ?

ईश्वर ने हमें वुद्धि दी है । सोच-विचार करने का सामर्थ्य दिया है ।  लेकिन इसका उपयोग हमने कैसे किया है? हमने एटम बम बना लिया है । अंतरिक्ष में भयानक युद्ध करने की क्षमता अर्जित  करने के लिए प्राण-प्रण से प्रयास किया जा रहा है । हमारे अंदर की निषेधात्मकता इतना सर्वव्यापी हो गया है कि हमें अपने आप से  डर लगने लगा है । हम चारो तरफ भयानक युद्धोन्माद पैदा करने में लगे हुए हैं । यह सब इसलिए कर रहे हैं क्यों कि हम सोचते हैं कि सायद इस तरह हम सुरक्षित हो सकेंगे । पर ऐसा भी कभी हुआ है क्या?

हम बहुधा मृत्यु के बाद की चिंता करते रहते हैं । इस से कभी कुछ प्राप्त हुआ है क्या? न हुआ है, न होगा । मृत्यु के बाद जो होना है उस पर किसी का कुछ वश नहीं है । लेकिन जीवन में जो हो रहा है उसके बारे में हम सोच सकते हैं। विचार कर निर्णय ले सकते हैं । अच्छे-बुरे का हमें ज्ञान हो सकता है । अपने स्वार्थ में अंधा होकर दूसरों को कष्ट देना कम कर सकते हैं । लेकिन ऐसा होता कहाँ है? हम व्यर्थ के आडंवर में समय बिता देते हैं । खुद भी अशांत रहते हैं और दूसरों का जीवन भी नर्क कर देते हैं।

समस्त शृष्टि के प्रति अपने कर्तव्य की भावना से अभिभूत होकर जब हम जीना सीखेंगे तभी हमारे मन में आनंद का विकास होगा । हम प्रकृति के साथ एक लय में होंगे । सभी जीव-जंतु हमारे अपने हो जाएंगे । हम अपने अधिकार को दूसरों पर थोपना भूल जाएंगे । फिर मृत्यु के बाद हमें स्वर्ग की कल्पना नहीं करनी होगी । यहीं ,इसी जीवन में हम स्वर्ग का सुख भोग सकेंगे। फिर मृत्यु स्वयं अमरता का संदेश दे जाएगी । हम सद -सर्वदा के लिए मुक्त हो जाएंगे।

सोमवार, 8 अप्रैल 2019

देबराहा बाबा






देबराहा बाबा





प्रयागराजमे रहैत जे किछु अविस्मरणीय घटनासभ घटल ओहिमे एकटा छल माघमेलामे देवराहा बाबाक दर्शन। ओहि समयमे हमसभ प्रयागराजक १७,नया ममफोड़गंजमे डेरा लेने रही । ममफोड़गंजसँ माघमेला पैरे जाएब एकटा रोमांचकारी यात्रा होइत छल । कै बेर चलिते-चलिते जखन थाकि जाइ तँ एक्काक सहारा होइत छल । जे होइ,जेना होइ .मुदा हम सभसाल माघमेलामे बाबाक दर्शन करए जेबे करी । माघमेलामे सभसँ कातमे गंगाजीक धारसँ सटले हुनकर मचान बनाओल जाइत छल । ओ अपन चेला-चटिआसभक संगे माघमेलामे मचानपर टांगल रहैत छलाह । ओ मचान एहि हिसाबसँ बनाओल जाइत चल जाहिसँ ओ  ओकर उपयोग मंच जकाँ कए लैत छलाह । ओतहि बैसि कए भक्तलोकनिकेँ दर्शन दैत छलाह आ जखन मोन औंट भए जानि तँ मचानक अंदर चलि जाइत छलाह। देबराहा बाबा जखन मचानसँ बाहर होइतथि आ ओहीमे बनल ओसारापर बैसितथि तँ भक्तलोकनिमे अपार प्रशन्नता होइत । सभ हुनकर जयकारा लगबितथि , कीर्तन करए लगितथि ।

बाबाक किछु चीज हुनका आन संतसभसँ एकटा अलग पहिचान दैत अछि । जाहिमे  प्रमुख अछि हुनकर बएस । किओ कहैत छथि जे ओ तीन सए बरखक छलाह तँ किओ किछु । भारतक प्रथम राष्ट्रपति सेहो हुनका अपन वाल्यावस्थामे अपन पिताक संगे दर्शन केने रहथि । कहाँ दनि बाबा कहने रहथि –ई तँ राजा होइ।"- से बात सही भेल। ओ भारतक राष्ट्रपति भेलाह । राष्ट्रपति भेलाक बाद ओ बाबाक दर्शन केने रहथि ।

देवराहा बाबा घंटो गंगामे डुबल नहाइत रहैत छलाह । भक्तसभ हुनकर प्रतीक्षामे कीर्तन करैत रहैत छलाह । गंगासँ निकलि ओ द्रुतगतिसँ अपन मचान दिस भगैत छलाह । बएस बेसी हेबाक कारण ओ झुकि गेल रहथि । मचानमे पाछुएसँ ओ प्रवेश करितथि । तकरबाद लोकसभ आशा करैत जे ओ आब निलताह,ताब। कै बेर तुरंते निकलि जइतथि,कै बेर घंटो नहि निकलितथि । बाहर अबितहि भक्तसभ दिस प्रसाद फेकितथि । जकरा जे भेट जाए । भक्तलोकनिकेँ आशीर्वाद देबाक हुनकर तरीका सेहो अलग छल । भक्तलोकनि हुनकर मचानलग अबितथि आ बाबा हुनकर माथसँ अपन पैर सटा दितथि । मुदा ई भाग्य सभहक नहि होइत छल। ककरो-ककरो फटकिएसँ नाओँ लए बजबैत छलाह । मचानपर बैसले-बैसल ओकर माथपर  पैर राखि दितथि।  ओ धन्य भए जाइत ।  प्रभुदत्त ब्रह्मचारीजीक पोथी भागवती कथाक दुनू भाग लेबाक हेतु ओ लोकसभकेँ प्रेरित करैत छलाह । पोथी कीनि कए लोक हुनका लग लए जाइत छल । ओ ओकरा छुबि दैत छलखिन । ओएह भए गेल हुनकर आशीर्वाद। एहि तरहें भरि माघमेला ई कार्यक्रम चलैत रहैत छल ।

देबराहा बाबाक बएसक बारेमे कतेको तरहक किंवदंती अछि । किओ हुनका पाँच सए बरखक तँ किओ तीन सए बरखक कहैत छथि । किओ-किओ तँ हुनका नौ सए बरखक सेहो कहैत छथि । कहल नहि जा सकैत अछि जे  वस्तुतः हुनकर बएस कतेक छल । मुदा एतबा तँ तय अछि जे वो सामान्य आदमीसँ बहुत बेसी बएसक रहथि । कहल जाइत अछि जे वो एकठामसँ दोसर ठाम जेबाक हेतु कोनो सबारीक प्रयोग करैत कहिओ नहि देखल गेलाह । ओ अपन योगशक्तिसँ कतहु चलि जा सकैत छलाह ,पानिपर ठाढ़ रहि सकैत छलाह ? पानिमे बड़ीकालधरि डुबल तँ हमहु हुनका प्रयागराजमे गंगामे देखने छिअनि । जखन ओ गंगाजीसँ बाहर निकलितथि तँ दर्शकमे अपनार हर्ष भए जाइत छल । इहो कहल जाइत अछि जे जानवरसभक भाखा बूझैत छलाह आ ओ सभ हुनकर कहल करबो करनि । निर्जीव वस्तुसभपर सेहो ओ नियंत्रण कए लैत छलाह । ओ लग-पासक गाछ-बृच्छसँ गप्प करैत रहैत छलाह । हुनकर आश्रममे एकटा बबूरक गाछ छल । राजीव गांधी प्रधानमंत्री रहथि तँ ओ बाबाक दर्शन करए आबएबला छलाह । सुरक्षाक दृष्टिसँ अधिकारीसभ ओहिगाछकेँ पाँगए चाहैत छलाह । मुदा बाबा अड़ि गेलखिन । कहलखिन-

"राजीवक कार्यक्रम रद्द भए जेतैक । तूँसभ नाहक परेसान छह ।" सएह भेल । हुनकर कार्यक्रम रद्द भए गेल। गाछ बाँचि गेल । बाबाक बात सही साबित भेल ।

बाबाकेँ किओ पुछनि जे ओ पैरसँ आशीर्वाद किए दैत छथि तँ ओ कहितथि जे पैरमे सभटा तीर्थस्थान समाहित छथि । हुनकर अवस्थाक बारेमे पुछितनि तँ कहितथि जे ओ व्रह्मलीन छथि । माने व्रह्ममे ओ आ हुनकामे व्रह्म मीलि गेल छथि । जाढ़-गर्मी,सभमे ओ बिना कोनो वस्त्रकेँ कोना रहैत छथि? तकर जबाबमे ओ मृगछाला देखबैत कहितथि जे इएह हुनकर वस्थ्र अछि । योगकृया द्वारा ओ अपन शरीरक तापमानकेँ नियंत्रित करैत रहैत छथि ।योगद्वारा ओ जीह्वासँ अमृतपान करैत रहैत छथि जाहिसँ हुनर शरीरकेँ उर्जा भेटैत रहैत छनि। एहि तरहक अनेको रहस्यसँ भरल ,निरंतरसभक कल्याणमे लागल भारतक एहि महान संत १९ मई १९९०क वर्ह्मलीन भए गेलाह ।

            

                  An interview with Baba




रविवार, 7 अप्रैल 2019

सेवा निवृत्ति के बाद


सेवा निवृत्ति के बाद



अपने यहाँ बहुत पहले से ही ब्रह्मचर्य,गृहस्थ,वाणप्रस्थ और सन्यास लेने की परंपरा रही है । एक समय के बाद बड़े-बड़े राजा सारा राजपाट अपने उत्तराधिकारी को सौंप कर वाणप्रस्थी हो जाते थे , जंगल चले जाते थे । किसी न किसी रूप में यह सेवा निवृत्ति ही था । जीवन में सभी को इस मोड़ पर आना ही होता है । चाहे वे नौकरी पेशा हों,कृषक हों,व्यापारी हों । सरकारी नौकरी में तो सब की सेवा निवृत्ति की आयु तय है। कोई चाहे कितना भी बड़ा अधिकारी क्यों न हो उस उम्र की साम पार करते ही सेवा निवृत हो जाता है । परंतु अपने कार्य करने बाले लोग जैसे व्यापारी,किसान अपने मर्जी से और घर और स्वास्थ की हालात को देखकर ही सेवा निवृत्त होते है ।

एक अवस्था के बाद शरीर स्वयं जबाब दे जाता है । मन में विश्राम की ललक जगने लगती है । आँख से कम दिखता है । कान से सुनना मुश्किल हो जाता है । कई लोगों को चलना-फिरना भी बंद हो जाता है । इस सब के बाबजूद हम प्रकृति के इन संकेतों को समझने में कई बार देर करते हैं । परिणामतः हम व्यर्थ के परेसानी में पड़ते रहते हैं ।

सेवा निवृत्ति कोई आकस्मिक दुर्घटना नहीं है । सबाल है कि हमें क्या करना चाहिए ताकि इस हालात से सहजता से निपटा जाए?सेवा निवृत्ति की तैयारी समय रहते शुरु कर देना चाहिए । मसलन आपको रहने के लिए घर चाहिए। मकान खरीदते समय इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि सेवा निवृत्ति के बाद कहाँ रहेंगे? बाद में कई बार योजना बदल जाती है । फिर भी एक पूँजी तो हाथ में आ ही जाती है । इसे बेचकर आप जहाँ कहीं भी रहना चाहेंगे,नया घर खरीद सकते हैं । अगर  नौकरी के शुरुआती दिनों में ही घर खरीद लिए जाते हैं तो कर्जा का किस्त कम होता है और मासिक बजट पर उसका अपेक्षाकृत कम प्रभाव पड़ता है । अगर यही काम हम बाद में करते हैं तो कई बार बहुत असुविधा हो जाती है । अगर आपकी आयु ज्यादा हो गई है तो कई बार बैंक कर्जा देने से भी मना कर देते हैं । इसी तरह जीवन में अन्य पारिवारिक,सामाजिक दायित्वों को समय रहते हुए ही निपट लेना चाहिए ।

जीवन भर यथासाध्य धनोपार्जन कर हम अब इस मोड़ पर पहुँच चुके होते हैं कि अब करने के लिए बहुत कुछ नहीं रह जाता है । शेष रह जाता है तो वह है हमारी कामना जो  कभी समाप्त होने का नाम ही नहीं ले पाती है । परिणामतः हम अंत-अंत तक मोहपाश में फँसे रह जाते हैं । हम खुद को विश्राम करने का वक्त ही नहीं दे पाते हैं । अपने बनाए हुए मकरजाल में हम खुद ही फँसे रह जाते हैं । हमारी स्थिति  वहुधा उस पंक्षी की तरह हो जाती है जो अपने पाँव ऊपर करके सोता है, सायद इसलिए कि अगर आकाश गिड़ता है तो वे उसको थाम्ह लेंगे । है न हासास्यापद स्थिति । सेवा निवृत्ति के बाद  कई बार ऐसा लगता है कि कई जरुरी काम नहीं कर पाए,कुछ अधूरे रह गए । लेकिन अब यह सब सोचते रहने का वक्त नहीं है । जो कर सके उसी को संचित रखना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए । जो भी पूँजी हमारे पास है उसे बचाकर रखना चाहिए ताकि वक्त पर काम आए।

जैसे सूर्य भगवान शाम होते-होते अपनी प्रभा को समेट कर अस्ताचल चले जाते हैं वैसे ही हम भी जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुँचकर अपने को समेट लेना चाहिए । यह नहीं की हम आवश्यक कर्तव्य नहीं करें,किंतु उलझे नहीं, मोह,माया से दूर होते जाए । समय और परिस्थिति से तालमेल बिठाकर जीने की कला सीख लें । अनावश्यक सलाह न दें । अपेक्षाएं कम कर दे। जो हम स्वयं कर सकते हैं सो करें लेकिन दूसरों से अपेक्षा नहीं करें । पारिवारिक विषयों पर बाहरी व्यक्तियों के पास चर्चा नहीं करें । घर में अगर थोड़ा बहुत उलट-पुलट भी हो जाता है तो व्यग्र नहीं रहें । ईश्वर ने सब कुछ सबको नहीं दिया है । हमारे हिस्से में भी कुछ मिला, कुछ नहीं मिला । अब उसका क्या हिसाब करना है? जो मिला वही क्या कम है । हम अपने नीचे खड़े लाखों-करोड़ों लोगों की ओर देखें । हमसे बहुत लोग पीछे दिखेंगे । जैसे बहुत सारे लोग आगे हैं ,वैसे बहुत लोग पीछे भी हैं। यह जीवन का क्रम है । हमें सब कुछ सहजता से लेने की कला विकसित करनी चाहिए ।

जीवन का नाम चलते रहना है । कई लोग जीवन पर्यंत काम करते रह जाते हैं,कभी थके हुए नजर नहीं आते हैं । कार्य करते रहना ही उनका विश्राम होता है ।  इसलिए हम जहाँ  पहुँच गए वहीं से आगे चलना चाहिए। गीता में भगवान कहते हैं कि कोई भी एक भी क्षण विना काम किए नहीं रह सकता है।  भगवान आगे कहते है कि उन्हें कुछ भी अप्राप्त नहीं है फिर भी वह निरंतर काम करते रहते हैं । सेवा निवृत्ति का मतलब यह नहीं है कि हम व्यर्थ हो जाएं, हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाएं  । अपितु यह ऐसा समय है जब हम अपने  जीवन में अर्जित अनुभव और ज्ञान से समाज के दुखी,वंचित लोगों के कल्याण के लिए अपनी रुचि और सामर्थ्य के अनुसार काम करें । उम्र के इस पड़ाव पर आकर सबसे जरुरी है मानसिक शांति । अशांतस्य कुतो सुखम्! आपका मन शांत है तभी  सुखी रह सकते हैं । इसके लिए किए गए काम के परिणाम में आसक्ति का त्याग बहुत जरुरी है । काम करते रहिए और फल की चिंता मत करिए। यही सही माने में त्याग है ।  मा फलेषु कदाचन्।




शनिवार, 6 अप्रैल 2019

Printed version of my books can be bought online at the folllowing link


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भोरसँ साँझ धरि(आत्मकथा)
https://pothi.com/pothi/node/195476.
प्रसंगवश(निवंध संग्रह)
https://pothi.com/pothi/node/195527.
स्वर्ग एतहि अछि(यात्रा प्रसंग)
https://pothi.com/pothi/node/195487.
फसाद(कथा संग्रह)
https://pothi.com/pothi/node/195510.
नमस्तस्यै(मैथिली उपन्यास)
https://pothi.com/pothi/node/195444.

विविध प्रसंग(निवंध संग्रह)
https://pothi.com/pothi/node/195633.

महराज  (मैथिली उपन्यास)

https://pothi.com/pothi/node/195795
लजकोटर (मैथिली उपन्यास)  


सीमाक ओहि पार (मैथिली उपन्यास)  


समाधान (निवंध संग्रह)




The Lost House (Collection of short stories)

https://pothi.com/pothi/node/195843.
Life is an Art (Motivational essays)




न्याय की गुहार (हिन्दी उपन्यास)