मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

बुधवार, 17 अप्रैल 2024

आशीष अनचिन्हार

 


आशीष अनचिन्हार

ओहि समयमे हम भुवनेश्वरी मंदिरमे दर्शन कए निकलि रहल छलहुँ। करीब साढ़े चारि बाजि रहल छल। हमर फेसबुकपर पोस्ट कएल गेल कामाख्या भगवती मंदिर लगक फोटो देखि अनचिन्हारजी फोन केलथि-

“फेसबुकपर देखलहुँ जे अपने कामाख्यामे छी।”

“आइए गुवाहाटी पहुँचलहुँ। कामाख्या भगवतीक दर्शनक बाद भुवनेश्वरी मंदिरमे दर्शन कए बाहर निकलि रहल छी।”

“बहुत प्रसन्नताक बात। कतए रुकल छी?”

“गुवाहाटी स्थित सीपीडब्लुडी अतिथिगृहमे।”

गप्प-सप्प भइए रहल छल कि फोन कटि-कटि जाइ। पहाड़ी सभक कारण नेटवर्क वाधित भए जाइत छल।

“बेर-बेर फोन कटि रहल अछि। डेरा पहुँचैत छी। फेर गप्प करब।”

गप्पेक क्रममे ओ कहलनि जे भुवनेश्वरी मंदिर दरभंगा महराजक बनाओल छनि। साँझमे डेरा पहुँचलाक बाद हम अपन पता हुनका ह्वात्सएपपर पठा देलिअनि। ओ तुरंत लिखैत छथि-

“हम अस्सी किलोमीटर फटकी रंगियामे रहैत छी। तथापि अपनेसँ भेंट करबाक हेतु उत्सुक छी। की पता फेर एहन अवसर कहिआ भेटत ?”

“हमरो अपनेसँ भेंट करबाक बहुत इच्छा अछि। हम चौदह तारिख भेंट-घाँटेक हेतु खाली रखने छी।ओहिसँ पूर्व चेरापुंजी,शिलांग जेबाक अछि।”

“अच्छा अहाँ ओमहरसँ वापस होउ। प्रयास करब जे हमसभ बीचमे कतहु भेंट करी। ”

तकर बाद फोन कटि गेल। हम चेरापुंजीसँ लौटलाक बाद तेरह अप्रैल कए अनचिन्हारजीसँ भेंट करबाक हेतु हम मोने-मोन कार्यक्रम बनबिते रही कि हुनकर फोन आएल-

“हमरासभक भेंट नहि भए सकत। अचानक कार्यालयमे किछु जरूरी काज आबि गेलैक अछि। ताहिमे रविओ दिन व्यस्त कए देलक अछि ।”

की कहितिअनि? तकर बाद बड़ी काल धरि मैथिलीसँ जुड़ल विषयसभपर हमसभ चर्च करैत रहलहुँ। विदेह पत्रिकामे हुनकर अनेक सालसँ कएल जा रहल योगदानक चर्च तँ भेबे कएल। निश्चित रूपसँ अनचिन्हारजी कतेको सालसँ विदेह पत्रिकाक माध्यमसँ आदरणीय श्री गजेन्द्र ठाकुरजी  आ हुनकर अन्य सहयोगी लोकनिक संग बहुत महत्वपूर्ण काज कए रहल छथि। मैथिली गजलक क्षेत्रमे हुनकर योगदानक चर्च होइते रहैत अछि। एमहर आदरणीय गजेन्द्रजी आ हुनकर श्रीमतीजीसँ जुड़ल साहित्यिक विषयपर ,प्रीति कारण सेतु बान्हल, नामसँ पुस्तक संपादित केलनि अछि। एहन सृजनशील आ मैथिलीप्रेमीसँ भेंट कए बहुत नीक लगैत। मुदा कोनो बात नहि। ओ स्वस्थ रहथु,एहिना सक्रिय आ सृजनशील बनल रहथु। आइ ने काल्हि भेंट हेबे करतैक। ओहुना विदेहक माध्यमसँ तँ हमसभ निरंतर संपर्कमे रहिते छी।

‍१७ अप्रैल २०२४

 (क्रमशः,,,) 

चीरोभाइ(पंडित श्री रत्नेश्वर मिश्र)

चीरोभाइ(पंडित श्री रत्नेश्वर मिश्र)

एहि बेरक कामाख्या यात्राक  अविस्मरणीय प्रसंग छल हमर पितिऔत चीरो भाइसँ सपरिवार भेंट । हम अपनयात्राक अंतिम दू दिन एही सभ हेतु बचा कए रखने रही। हम गुवाहाटी जेबाक कार्यक्रम बनएसँ पहिने चीरो भाइ(पंडित श्री रत्नेश्वर मिश्र) केँ फोन केने रहिअनि। ओ पचासो सालसँ गुवाहाटीमे रहैत छथि। ईहो बुझल छल जे ओ ओहिठाम कामाख्या मंदिरसँ जुड़ल छथि। तेँ ओ माताक दर्शनमे मदति कए सकैत छथि। कार्यक्रम जखन बनि गेल,टिकट कटि गेल,गुवाहाटीमे पाँच दिन रहबाक जोगार ओहिठामक सीपीडब्लुडी अतिथिगृहमे भए गेल तखनो चीरोभाइकेँ फोन नहि केलिअनि। कारण श्रीमतीजी कहलनि जे माताक दरबारमे जा रहल छी,ओ स्वयं देखथिन।ककरो किछु कहबाक काज नहि। ओना हमर एकटा मित्र स्थानीय एक्साइज कमिश्नरकेँ फोन कए देलखिन। हमरा हुनकर मोबाइल नंबर सेहो देलनि। हम हुनकासँ गप्पो केलहुँ । मुदा हुनकर पैरबीमे कोनो जान नहि बुझाएल। तकर बाद हम छोड़लहुँ हुनकर चक्कर।

हम सत्तरह मार्च २०२४ कए जखन गाम जाइत रही तखन चीरो भाइक फोन आएल।

 “अहाँक गुवाहाटी यात्राक कार्यक्रम केना की भेल? हमसभ उत्सुकतासँ बाट ताकि रहल छी।“

“नओ अप्रैलक टिकट कटा लेने छी।अखन गाम जा रहल छी। ओहिठामसँ लौटि कए हम फोन करब।”

तकर बाद हम गाम गेलहुँ,वापसो आबि गेलहुँ,किछु समयो बीति गेल मुदा हम हुनका फोन नहि कए सकलिअनि।  ठीक नओ अप्रेल कए जखन हम कामाख्या मंदिरमे रही हुनकर फोन आएल। मुदा हम मिसकाल बादमे देखलिऐक। कारण मंदिरमे ततेक हल्ला होइत रहैक जे फोनक घंटी सुनबाक सबाले नहि होइत अछि। मंदिरसँ पूजा केलाक बाद जखन बाहर निकललहुँ तखन फेर हुनकर फोन आएल। एहिबेर फोनसँ गप्प भेल-

“हमसभ गुवाहाटी आबि गेल छी। माताक दर्शन करैत रही। तेँ फोन नहि देखि सकलहुँ।”

“हम अहाँकेँ लेबाक हेतु कखन आउ। आनठाम किएक ठहरल छी? हमरे ओहिठाम रहू। अपन घर अछि।कष्टे सही, संगे रहब,गप्प-सप्प करब।”

“ से तँ सत्ते। मुदा हमरा रहबाक नीक जोगार भए गेल अछि। तेँ तकर चिंताक बात नहि अछि। ओना हम अहाँक ओहिठाम अबस्स आएब। हमरो अहाँसँ भेंट करबाक हेतु बहुत मोन लागल अछि। ”

“ठीक छैक। हमरा फोन कए देब। हम अपन गाड़ीसँ अहाँकेँ लए आनब।”

चीरो भाइक आग्रहसँ हम चकित रही। ओना ओ हमर पितिऔत भाइ छथि,नेनेसँ संगी सेहो छथिहे। मुदा एतेक साल बीति गेलैक,कतेक तरहक बात भेलैक,तैओ ओ ओहिना भाओ रखने छथि,अपितु बेसी घनिष्टता बुझा रहल अछि,से सोचि अभीभूत रही। नओसाल पहिने भतीजीक बिआहमे गामपर हुनकासँ भेंट भेल रहए सेहो कतेको सालक बाद से नहि मोन पड़ि रहल अछि। ओ हमरा गामक संस्कृत पाठशालासँ उत्तरमध्यमाक परीक्षा पास केने रहथि। थोड़ेक दिन गामेमे किछु-किछु केलथि। एकदिन अपन दोकानपर बैसल रहथि कि हुनकर पित्ती कहलखिन-

“पढ़ो फारसी बेचो तेल,देखो भाइ किस्मत के खेल।”

बस ई बात हुनकर मोनमे गड़ि गेलनि। ओही समयमे गुवाहाटीमे रहैत हुनकर सार किछु काजसँ हुनका ओतए बजओलखिन। बस ओहि अवसरकेँ फएदा उठबैत ओ गामसँ गुवाहाटी बिदा भए गेलाह।तकरबाद जे ओ गुवाहाटी गेलाह से पचास वर्षसँ ओतहि छथि। आब तँ हुनका गुवाहाटीमे दूमहला मकान छनि,एकटा विकसित परिवार छनि। मधुबनीमे सेहो ओ मकान बनओने छथि। सालमे एक-दू बेर मधुबनी ,गाम जाइते रहैत छथि।

चीरो भाइक संघर्षक गाथा रोमांचक अछि। यद्यपि ओ संस्कृत पढ़ने रहथि,तथापि मेहनति कए अंग्रेजी सिखि कए सातमा धरिक अंग्रेजी माध्यमक बच्चासभकेँ सभ विषय ट्युशन पढ़बैत रहथि। ई काज ओ सोलह साल धरि केलथि। मनुष्यक जीवनमे कखनो काल एहन घटना घटित भए जाइत अछि जे ओकर दशा आ दिशा बदलि दैत छैक। गुवाहाटीमे एकबेर कोनो जाग होइत रहैक। ओहिमे हुनको पंडितक काज हेतु आमंत्रित केलकनि। ओ ओहिठाम गेबो केलाह। ओहिमे हुनका एकावन टाका भेटितनि। मुदा ओहिठाम गेलाक बाद हुनका काज नहि देलकनि। केओ षड़यंत्र कए हुनकर नाम कटबा देलकनि। एहि बातसँ हुनका बहुत कष्ट भेलनि। कारण ओ हुनकर संघर्षक समय छल। एकावन टाका बहुत माने रखैत छल। हुनकर नाम एहि लेल काटि देलकनि जे ओ शिक्षकक काज करैत छथि,पंडिताइ नहि करैत छथि। चीरो भाइ तुरंत ओहिठाम उपस्थित पंडितसभकेँ चुनौती देलखिन। बात बहुत गरमा गेलैक। दोसर दिन भेने फेर ओहीठाम हुनका एकटा विद्वानसँ भेंट भेलनि। ओ संस्कृतमे हुनकासँ कैकटा प्रश्न पुछलखिन। चीरोभाइ सभटा प्रश्नक उत्तर सही-सही दए देलखिन। हुनकर संस्कृतक ज्ञान  आ वुद्धिमत्तासँ ओ बहुत प्रभावित भेलाह  हुनका पंडिताइ करबाक हेतु प्रेरित केलाह। तकर बादे ओ पंडिताइ शुरू केलनि जे अखन धरि चलिए रहल छनि। अखनहु अपनो पंडिताइक काज कइए रहल छथि। ओहिसँ हुनका बहुत नीक आमदनी भए जाइत छनि।

गुवाहाटीमे रहैत चीरोभाइ अपन कैकटा भाएसभकेँ नौकरी धरबओलनि। ओ सभ अपन-अपन क्षेत्रमे बहुत विकास केलाह। अखनहु ओ अपन एकटा विधवा बेटी सहित हुनकर  तीनटा संतानक पालन-पोषण कए रहल छथि। ओ सभ बहुत नीक शिक्षा प्राप्त कए रहल छथि। एक व्यक्ति संघर्ष कए अपन जीवनकेँ कोना पलटि सकैत अछि तकर एकटा जीवंत उदाहरण छथि चीरो भाइ।

नओ अप्रैल २०२४ कए गुवाहाटी पहुँचलाक बाद चीरो भाइक फोन कैक बेर अबैत रहल। ओ आग्रहपर आग्रह करैत रहलाह जे हमरे ओतए रहू,एहिठाम एसी बला कोठरी अहाँक प्रतीक्षा कए रहल अछि। नवरात्रा चलि रहल छलैक। हुनका अपना घरमे तँ पाठ करबेक रहनि,आनोठाम भरि दिनका व्यस्तता चलि रहल छलनि। हम कहलिअनि जे गुवाहाटी घुमलाक बाद शिलांग जाएब,चेरापुंजी जाएब । तकर बाद गुवाहाटी लौटब। तखन अहाँसभसँ अबस्स भेंट करब। हम १२ अप्रैलक एक बजे शिलांगसँ वापस आबि गेल रही। तकर बाद भोजन कए विश्राम करैत रही कि चीरो भाइक फेर फोन आएल। ओ कहलाह-

“हम साँझमे आबि रहल छी। वापसीमे अहाँसभ संगे चलब। ”

“अखन हमसभ बहुत थाकल छी। आइ कतहु गेनाइ संभव नहि बुझाइत अछि। ओना अहाँ आबी तँ स्वागत अछि।”

“कोनो बात नहि। हम काल्हि भोरे आठ बजे फोन करब।”

“ठीक छैक।”

भोरे  फेर हुनकर फोन आएल। ओ नओ बजे वाहनक संगे अओताह। हमसभ ठीक नओ बजे तैयार रही। मुदा चीरोभाइकेँ अएबामे देरी भए गेलनि। वाहन चालक विलंभसँ आएल छल। तकर बाद करीब साढ़े दस बजे ओ हमरसभक अतिथिगृह पहुँचलाह। गेलहुँ। बेस पैघ गाड़ी छल। हमसभ बाहरे प्रतीक्षा करैत रही। तुरंत गाड़ीमे बैसि हमसभ गप्प-सप्प करैत आधा घंटामे हुनकर आवासपर पहुँचि गेलहुँ। हमरासभकेँ देखितहि चीरो भाइक समस्त परिवार हमरासभक स्वागतमे लागि गेलाह। हुनकर दुनू नातिन,नाति, पुतहु,बेटी,पत्नी सभगोटे ततेक प्रसन्न रहथि जकर वर्णन करब मोसकिल। चीरोभाइ करीब घंटा भरि अपन संस्मरण,जीवनक संघर्ष गाथा सभ सुनबैत रहलथि। कहि नहि सकैत छी जे कतेक अपनत्वक भाओ छलनि हुनकर गप्प-सप्पमे । आब भोजन तैयार भए गेल छल। हमसभ भोजनपर बैसलहुँ।  अनेक प्रकारक व्यंजनसँ परिपूर्ण भोजनक आनन्द लेलहुँ। थहि-थहि भए गेल। पान-सुपारी सेहो भेलैक।

आब चलबाक उपक्रम शुरू भेल।

एकटा बात लिखब तँ छुटिए गेल। चीरो भाइक कुकुरक अपनत्व सेहो वर्णनीय अछि। ओकरा भोजनमे विलंब भए गेल रहैक । तेँ ओ रुसि गेल छल। बिज नहि रहल छल,भुकि नहि रहल छल। चुपचाप पड़ल छल। ओकरा चीरोभाइ बहुत दुलार-मलार कए बऔसलनि। तकर बाद ओकरा अपने हाथे खुओलनि। भोजन केलाक बाद ओकरामे तेजी आएल। ओ एमहर-ओमहर घुमए लागल। सभसँ आश्चर्य  तखन लागल जखन बिदा होइत काल ओ हमरासभसँ पहिने वाहन चालकक बगलमे जा कए बैसि गेल। ओ किन्नहु गाड़ी छोड़बाक हेतु तैयार नहि छल। बहुत मोसकिलसँ ओकरा गाड़ीसँ बाहर कएल गेल। तकर बादो ओ स्कूटीपर जा कए बैसि गेल। हमसभ चीरो भाइक गाड़ीपर बैसि गेल रही। कतबो कहलिअनि जे हमसभ ओला कए चलि जाएब। मुदा ओ नहि मानलाह। हमरासभकेँ अपने गाड़ीसँ बिदा कइए कए मानलथि। बिदा होअएसँ पहिने समस्त परिवारक संग फोटो घिचल गेल। हमरासभकेँ विदाइ सेहो देल गेल। तकर बादे हमसभ ओहिठामसँ हुनके गाड़ीसँ अपन डेरा दिस आगू बढ़लहुँ।

चीरो भाइ  हुनकर परिवारक सदस्यलोकनिक संग बिताओल गेल समय हमर सभक गुवाहाटी यात्राक अविस्मरणीय क्षण छल। एहन अपनत्व,स्वागत हेतु एतेक आतुरता आ  व्यवहारक ओ माधुर्य आजुक समयमे बहुत दुर्लभ अछि। हमसभ अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक हुनका ओहिठाम रहलहुँ।  ओहिठामसँ वापस अएलाक बादो कतेक काल धरि हुनके लोकनिक चर्चा करैत रहलहुँ। असलमे चीरो भाइ एकटा सफल संघर्षक नायक छथि। जीवनमे सभ तरहक उठा-पटक देखि-भोगि एकटा सुंदर आ प्रशंसनीय ठेकानपर पहुँचि गेल छथि,प्रशंसनीय उपलव्धि प्राप्त केने छथि। से तँ जे छनि से छनि,ओ हृदयक बहुत उदार आ भावुक व्यक्ति छथि। ईश्वर हुनका लोकनिकेँ एहिना सतत सुखी आ संपन्न राखथि सएह मनोकामना।

‍१७।४।२०२४