प्रतिष्ठाक
भूख
हमरा लोक बुझए,जे नहि छी सेहो बुझए,समाजमे हमर मान्यता होअए,लोकक दृष्टिमे हम पैघलोकमे जानल-मानल जाइ ,ई सभ एहन भावना थिक जे मनुक्खमात्रकेँ परेसान
केने रहैत हछि । जकरा आओर किछु नहिओ चाही,जेहो संत-महात्मा
भए गेल छथि,विद्वान छथि किंवा उच्चपदासीन
छथि ,सभ प्रतिष्ठा अर्जित करबाक हेतु आजन्म प्रयत्नशील रहैत छथि । ओना जँ देखिऐक
तँ प्रतिष्ठा प्राप्त करबाक भावनामे किछु अधलाह नहि थिक । कतेको बेर लोक एही हेतु नीक
काज करैत छथि । मुदा गड़बड़ तखन होइत अछि जखन
हमसभ प्रतिष्ठाक पाछा पड़ि जाइत छी । परिणामस्वरूप बहुतरास अलट-विलट काज करैत छी । एहि कारणसँ निरंतर अशांत
रहैत छी।
सकारात्मक प्रयास द्वारा लोक
जीवनमे आगू बढ़थि आ प्रतिष्ठा अर्जित करथि,एहिसँ नीक बात की
भए सकैत अछि । मुदा कतेकोबेर एहन होइत अछि जे व्यक्तिगत स्वार्थमे अंधभए लोक दोसरकेँ
टांग घिचैत छथि जाहिसँ समाजमे अकारण तनाव बढ़ैत अछि आ कतेको बेर निर्दोष लोककेँ परेसानीक
सामना करए पड़ैत अछि । बिना परिश्रमकेँ दोसरक हक छीनि कए समाजपर अपन प्रभुता स्थापित
करबाक एकटा हवा बहि गेल अछि । एहि कारण नीक- बेजाएक भेद खतम भेल
जा रहल अछि आ अवसरवादी ओ स्वार्थी लोकसभ तत्काल जीतैत लगैत अछि । एहि तरहेँ समाजक कोनो
तरहे हितसाधन नहि होइत अछि । अपितु नीकलोक पाछा भए जाइत छथि जकर कुपरिणाम सभ देखि रहल
छी ।
गाम-घरमे प्रतिष्ठाक लेल कतेको
लोक की नहि कए लैत छथि । साधनसँ बेसी लंफ-लंफामे रहैत छथ जाहिसँ लोक बूझए जे ओ पैघ ळोक छथि । मुदा देखाबटी पैघत्व कै
दिन चलत? ओ किछुए दिन मे देखार भए जाइत
छथि । बिआह,श्राद्ध,उपनायनमे लोक अगह-बिगह खर्च कए लैत छथि । गामक-गाम
भोज करैत छथि जाहिसँ हुनकर यश पसरए ,लोक हुनका पैघ बुझनि । ताहि हेतु खेत-पथार सेहो
बेचि लैत छथि । पूर्वमे कतेको परिवार एहिसभक चलते दरिद्र भए गेलाह ।
ई बात तँ तय अछि जे हमसभ जे
किछु नीक-बेजाए करैत छी,जे किछु धन-संपत्ति
बटोरैत छी से सभ एहीठाम रहि जाइत अछि । तैँ
बहुतोलोक धन-संपत्ति दान कए दैत छथि। जन कल्याणक काज करैत छथि मुदा ताहूक
पाछा हुनकर यशलिप्सा रहैत अछि । बड़का संत-महात्मासभ सेहो यशलिप्सासँ मुक्त नहि भए
पबैत छथि । ताहि हेतु तरह-तरहक यज्ञ-जाप करैत छथि,करबैत छथि,ठाम-ठाम मंदिर,धर्मशालाक निर्माण करबैत छथि । जाहि हेतु गाम-घर
त्यागिकए सन्यास लए लेलाह तैयो मोन ओतहि भटकैत रहि जाइत छनि । अपन लोकवेद,अपन जन्मस्थानमे किछु एहन करबाक जिज्ञासा रहिए
जाइत छनि जाहिसँ हुनका अपनालोकमे प्रतिष्ठा भेटए । सही मानेमे प्रतिष्ठाक भूखसँ जान
छोड़ाएब बहुत मोसकिल काज अछि ।
प्रतिष्ठा मात्र छाँह थिक
जकर अपन कोनो आस्तित्व नहि अछि । लोक छाँहक पाछा भागत तँ की ओ भेटतैक ? कदापि नहि? ओ तँ आओर फटकी होइत जेतैक। सएह हाल प्रतिष्ठाक अछि। जँ अपने
प्रतिष्ठाकेँ केन्द्रविन्दुमे राखि कए जीब तँ सही मानेमे अहाँ मृगमारिचिकामे रहब ।
कहिओ जीवनक सत्यकेँ नहि बुझि सकबैक जे शक्ति प्रतिष्ठाक पाछा भगलामे नहि अछि । असल
शक्ति तँ मनुक्खक अपने हाथमे अछि । ओ की अछि?
ओ अछि
अहाँक द्वारा कएल गेल कर्म । जँ अहाँ सही कर्म करैत गेलहुँ तँ प्रतिष्ठा के कहए की-की
ने अहाँक पाछा- पाछा घुमैत रहत । अस्तु, जीवनमे कर्मक प्रधानता दए निरंतर आगा चलैत रहू,देखिऔ ने चमत्कार भए जेतैक आ भइए कए रहतैक ।