मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

शनिवार, 18 नवंबर 2017

पुनर्मिलन




 


पुनर्मिलन


ओकरामे प्रतिभाक कतहुँसँ अभाव नहि छलैक। पूरा गाम ओकर यशगान करबाक लेल तत्पर छलैक। नीक, सुन्दर, सुशील आ मेघावी छल अरूण। माय और बापक कोनो स्मृति ओकरा नहि छलैक। जीबनक प्रत्येक डेग ओ लड़ि कए आगा बढ़ल छल। अपमानक अलावा समाजसँ ओकरा किछु प्रतिदान नहि भेटल छलैक मुदा ओ ओकरे, प्रेरणाक आधार बना जीबनमे विजयश्री प्राप्त करबाक हेतु कृतसंकल्पित छल। ओकर जन्मसँ लऽ कऽ अखन धरि जतेक घटना घटल छलैक सभ स्वयंमे एकटा वृतान्त छल।

प्रतिभा जेना ओकरा प्रकृतिसँ पुरस्कारक रूपमे भेटल होइक। बच्चेसँ छात्रवृत्ति ओकरा भेटय लगलैक। शिक्षक लोकनि एक पृष्ठ पढ़ावथिन्ह तँ ओ दू पृष्ठ स्वयं पढ़ि लैत छल। ओकर प्रतिभासँ सभ क्यो दंग रहैत छलाह। यद्यपि ओकरा रास्ता देखौनिहार क्यो नहि छलैक, ओ स्वयं जेना सभ किछु जनैत हो, की करक चाही, ककरासँ की बाजक चाही आ की करी जाहिसँ आबयबला समय नीक हो इत्यादि से ओकरा खूब नीकसँ बूझल छलैक। हाई स्कूलक परीक्षा प्रथम श्रेणीसँ पास केलक आ पूरा राज्यमे प्रथम स्थान ओकरा प्राप्त भेलैक। कालेजक शिक्षा प्राप्त करबाक प्रबल आकंक्षा ओकरा छलैक मुदा आर्थिक परिस्थिति अति दुखद छलैक। गामपर घराड़ीटा बाँटल छलैक। माय, बाप, भाय, बहिन ककरो कोनो सहारा नहि छलैक।

थाकल, ठेहिआयल, ओ दरिभंगा महराजक राजधानीक महल सभमे घुमि रहल छल। पैरमे पनही नहि, देहपर एकटा नीक कपड़ा नहि, मुदा अपनापर तेज, स्वभावमे सौम्यता ओ व्यवहारक नम्रता अनेरे लोकक ध्यान ओकरापर आकृष्ट कए लैत छल।

संयोगसँ चौधरीजी रिक्सासँ उतरलाह आ अरूण हुनका नमस्कार केलक। अरूणक प्रतिभाशाली मुखमण्डल देखि ओ चकित भए गेलाह। चौधरीजीक धिया-पुताकेँ पढ़यबाक काज ओकरा भेटि गेलैक। हुनकासँ ज्येष्ठ सन्तान उर्मिला नवम् वर्गमे पढ़ि रहल छलीह। देखयमे खूब सुन्दरि, स्वभावसँ विनम्र ओ प्रतिभामे अद्वितीय। उर्मिलाकेँ देखितहि अरूणकेँ ठकविदरो लागि गेलैक। जेना पूर्व जन्मक संगी रहल हो। उर्मिलाक पढ़ाईमे अद्भुत प्रगति भेलैक। अरूण सेहो प्रशन्नचित्त अपन गाड़ी आगा पढ़बय लागल। मुदा एक दिन बड़ विचित्र घटना घटलैक। अरूणक सभटा स्वप्न देखिते-देखितेमे भंग भए गेलैक। उर्मिला स्कूल गेलैक आ ओहिठामसँ लौटितहिँ दर्द-दर्द कऽ चिचिआय लगलैक। कतेको ओझा-गुनी, डाक्टर-वैद्य अयलैक मुदा ओकरा कोनो सुधार नहि भेलैक। हालत बदतर होइत गेलैक आ ओ प्रात: होइत-होइत निष्प्राण भए गेल। सौंसे गर्द चढ़ि गेल। दुर्भाग्य ओकरा ओतहुँ संग नहि छोड़लकै।

उर्मिलाक आकस्मिक निधनसँ ओकर सपना सभ छिन्न-भिन्न भए गेलैक। अरूणकेँ आब एकहुँ दिन ओतए रहब असम्भव भए रहल छलैक। ओ चुप-चाप ओतएसँ खसकल। पैरे-पैरे दरभंगासँ समस्तीपुरक रास्तामे ओ बहुत दूर आगा आबि गेल छल। पाकरीक गाछतर छाहरिमे बैसल। कण्ठ जरि रहल छलैक। कतहु पानिक दर्शन नहि छलैक। थाकियो नीक जेना गेले छल। बैसल कि आँखि लागि गेलैक। सुतले-सुतल ओ स्वर्ग लोकक परिभ्रमण कए रहल छल। उर्मिला अत्यन्त प्रशन्न मुद्रामे ओकरा नमस्कार कए रहल छलैक।

आ अरूण तों। बड्ड नीक छेँ तूँ। तोरे ताकि रहल छियौक। जहियासँ एतए एलहुँ एकहु दिन चैन नहि अछि। दिन-राति बस तोरे खोज छौक। आ जल्दी आ। देख हम कतेक परेशान छी। देख हमर कण्ठ जरि रहल अछि। हमर हृदयक पियास कण्ठ तक पहुँच रहल अछि। एक गिलास पानि दे। अरूण पानि दे। कनी सुन।

कहि नहि ओ की की कहैत रहि गेलैक। अरूण किछु नहि बजलैक आ धीरे-धीरे वो नेपत्ता भए गेल। अरूणक निन्न सेहो उचटि गेलैक। मुदा ताधरि किछु नहि रहि गेल छलैक।

अरूणक अन्तर्मनमे दिन-राति ई सपना घुमैत रहैत छल। उर्मिलाक स्नेहिल व्यवहारक अमिट छाप ओकर हृदयसँ मेटने नहि मेटा रहल छल। सैह सभ गुनधुनमे वो आगा बढ़ैत रहल।   

समस्तीपुर टीशन बहुत करीब आबि गेल छलैक। रेलगाड़ीक चलबाक आबाज कान तक पहुँचि रहल छलैक। मिथिला एक्सप्रेस लागल छलैक। दौड़ल दौड़ल ओ टीकस कीनलक आ गाड़ीमे कहुनाक ठूसा गेल। गाड़ी झिक-झिक करैत छलैक। एक कदम आगा बढ़ैक, दू कदम पाछा बढ़ैक आ ठामहि ठाढ़ भए जाइक। आगू घुसकैत-घुसकैत गाड़ी रूकि गेलैक। ड्राइभर साहेब चाह पीबैत छलैक कि गार्ड साहेब हरी झंडी देखौलकै आ गाड़ी स्पीड धय लेलकैक। छक-छक-छक- छ......। अरूणकेँ बैसबाक जगह भेटि गेल रहैक। बगलमे एकटा महिला सहयात्री ओकर, दूटा बच्चा, एकटा अधबयसू पुरूष आ कहि ने के के सभ….?।कलकत्ता जाएबला गाड़ीक समय विशेषता ओहि गाड़ीमे छलैक। आधासँ आधिक यात्री नौकरीक खोजमे महानगरीक प्रयाण कए रहल छलाह। बरौनी जक्सनसँ गाड़ी आगा बढ़ि गेल छलैक। ओकरा फेर आँखि लागि गेल छलैक। फेर आबि गेलैक उर्मिला। एहिबेर आर व्यथित आर अधिक करूण स्वरमे निवेदन करैत एक तरफा अपन मोनक बात ओ कहैत गेलैक।

अरूण। अरूण।हम नहि रहि सकब। हम नहि रहि सकब एसगर अरूण। देख हमर की हाल भेल अछि। देहक आभा झूस पड़ि रहल अछि। अरूण चल, हमरे गाम चल, मुदा...। मुदा...। मुदा....।

गाड़ी सरपट आगा बढ़ैत गेल। आसनसोल स्टेशन करीब आबि गेल छल। गाड़ी टीशनपर रूकल आ बहुत रास यात्रीक चढ़ब ओ उतरब सुनि ओकर निन्न उचटि गेलैक। सपना एकबेर फेर सपना भए गेलैक। 

दोसर दिन साँझमे वो कलकत्ता शहर पहुँचि गेल। मुदा रस्ताक सपना ओकर माथासँ हटि नहि रहल छलैक। कलकत्ता शहरक नाम बड़ सुनने छल। मुदा कतय जाए? ककरा ताकए? कुनु ठौर ठेकान नहि रहैक। आगा बढ़ल जाए। चारूकात बंगला भाषाक सोर। चलैत-चलैत थाकि गेल। ताबतमे सकल आबाज ओकर कानमे पहुँचलैक। अरूण अकचका गेल-

ई तँ उर्मिलाक आबाज लागि रहल अछि!”

आश्चर्यचकित ओ ऊपर ताकए लागल। किछु देखा नहि रहल छलैक। ताबतमे फेर वैह आबाज-

डरा नहि। हमहीं छी- उर्मिला, तोहर चिंर परिचित संगीनी। देख हम कतेक परेशान छी। तोरा पाछू-पाछू बिहारि जकाँ गाड़ीक संगे आबि रहल छी। मुदा घबरो नहि। हम तोहर किछु नहि बिगारबौक। आखिर हम तोहर विद्यार्थी छियौक ने। हे ले। दस  हजार रूपया। एहिसँ तोरह काज चल जेतौक ने? बाज! बजैत किएक नहि छेँ?”

अरूण अपन आगामे नोटक पुलिंदा सभ देखि कए गुम रहि गेल। फेर वैह आबाज-

उठा। जल्दी उठा। लुच्चा, बदमास आबि रहल छौक। अच्छा तँ हम जा रहल छी।

अरूण झट दए रूपयाकेँ फाँड़मे राखि लेलक। राखिते देरी मनमे उठलै- एतेक रास रूपया कतयसँ अनलक उर्मिला?  

नाना प्रकारक प्रश्न अरूणक मनमे उभरि रहल छलैक। संगे डरो भए रहल छलैक। मुदा पासमे टाका आबि गेलासँ हिम्मत सेहो बढ़ि गेल छलैक। एतेक आसानीसँ ओकर आर्थिक समस्याक समाधान भए जेतैक से वो सपनोमे नहि सोचने छल। टांग तेज ओ मोन सुस्त भए रहल छलैक। आगामे एकटा होटल नजरि अयलैक। होटलक रूम नम्बर पाँचमे ओ डेरा ललेक। बेस थाकि गेल छल। विश्राम करबाक तीव्र आवश्यकता छलैक। कपड़ा-लत्ता खोललक। हाथ-पैर धोलक। घंटी बजबैत नौकर दौड़लैक। मीनू हाथमे दए देलकै आ किछु-किछु पूछय लगलैक। मुदा बंगला बजैक। अरूण किछु नहि बुझलकै। नोकरबा तमसा कऽ चल गेल। अरूण स्नान कयलक आ कपड़ा-लत्ता पहीरि कहि नहि कतेक गाढ़ निन्नमे सुति रहल।

उर्मिला फेर हाजिर। अरूणकेँ भेलैक जेना क्यो ओकरा उठौने चल जाइत होइक। ओ चुप-चाप सन देखि रहल हो। बहुत दूर एकटा झीलक कातमे ओकरा राखि देलकै। बहुत काल धरि ओ सभ कहि नहि की की गप्प सप करैत रहल। ओ कहैत रहलैक- 

अरूण, तूँ बड़ नीक लोक छेँ। तोहर स्मृति एक क्षणक लेल हमर मोनसँ नहि जाइत अछि। सून, एकटा काज करऽ। हमरे संगे चल। तोरा सभ किछु भेटतौक।

पता नहि आर की की ओ कहैत रहलैक....।

भोर होमए पड़ छलैक। अरूणक आँखि खुजलैक तँ ओ आश्चर्यचकित भए गेल। ओकर कमरामे उर्मिलाक वैह वस्त्र राखल छलैक जे वो मरबासँ किछु पूर्व पहिरने छल। वोहि वस्त्रकेँ ओ हटौलक तँ आर आश्चर्यचकित भए गेल। बहुत रास हीरा-जबाहरात ओतए राखल छलैक। अरूण परेशान छल जे ई सभ की भए रहल छल। देखिते-देखिते मेवो कड़ोर पति भए गेल छल। सभ सामानकेँ वो सावधानीसँ रखलक आ चुप-चाप होटलसँ प्रस्थान कए गेल।

मास-दू-मासक अन्दरमे वो एकटा नीक होटलक मालिक भए गेल। दस-बीस नोकर-चाकर ओकर आगा-पाछा करैत छलैक। प्रतिदिन हजारो रूपया कमाई ओ करैत छल।

छह मासक भीतरेमे ओ गाममे १० बीघा जमीन कीनलक आ इलाकाक संमपन्न व्यक्तिक रूपमे प्रतिष्ठित भए गेल। अरूणक समय देखिते-देखिते साफ बदलि गेलैक मुदा ओकरा खूब नीक जकाँ बूझल छलैक जे एकर एक रहस्य की छलैक। ओ जखन कखनो एकान्त होइत कि उर्मिलाक छाया ओकर सामनेमे उपस्थित भए जयतैक। अस्त-व्यस्त,भाव विह्वल, उर्मिलाक आकर्षक मुद्रामे आह्वान देखि अरूण स्तब्ध रहि जाइत छल...।

ओहि दिन अरूणसँ नहि रहल गेलैक आ पूछि बैसलैक-

उर्मिला, एतेक परेशान कियैक छेँ? हम तोरा संगे कोना भए सकैत छी? हम जीवित छी। तों शरीर मुक्त छेँ। हमरा तँ शरीर चाही।

उर्मिला ई गप्प बड़ ध्यानसँ सुनलकै। वो बेर-बेर बजैत रहलैक-

हमरा तँ शरीर चाही। हमरा तँ शरीर चाही।

आ ठहाका मारि कए हँसय लगलैक।

अरूण डरा गेल। उर्मिला ओतएसँ गायब भए गेलैक।

अरूणक बियाह एकटा संपन्न परिवारक सुन्दरि कन्यासँ भए गेलन्हि। कनियाँक द्विरागमन बेश धूम-धामसँ वियाहक ९ दिनक भीतरे संपन्न भेलैक। पूरा भरल-पूरल परिवारमे आबि ओ कनियाँ बेश प्रशन्न छल। रातिमे अरूण जखन ओकरासँ भेँट करए गेलाह तँ ओकर आबाजमे आश्चर्यजनक परिवर्तन देखि दंग रहि गेलाह। ओ कनियाँ हँसल आ हँसिते रहल-

नहि चिन्हलौं हमरा..! हम छी उर्मिला। अहाँक पुरान संगीनी। अहाँ तँ हमरा बिसरि गेलहुँ मुदा हम अहाँकेँ नहि बिसरि सकलहुँ। हमरा शरीर नहि अछि आ अहाँकेँ तँ शरीर चाही। मुदा अहाँई गप्प नहि बुझलहुँ जे शरीर सीमित अछि। मोनक कोनो सीमान नहि अछि। छोड़ू ई क्षुद्र शरीरकेँ। आउ। अयबे करू। मौन भऽ जाउ।

गाममे सौंसे हल्ला भए गेलैक। अरूणक शरीर चेतनाशून्य पड़ल छल। नवकनियाँ ओकरा देखि-देखि कानि रहल छलीह। कतेको डागडर, वैद्य, ओझा, गुनी आँगनमे पथरिया देने छलाह। मुदा अरूण नहि उठल। ओ मौन भऽ गेल छल। शरीरक सीमानसँ ऊपर उठि गेल छल। उर्मिला अरूणक मोन एकाकार भऽ गेल।

मंगलवार, 7 नवंबर 2017

असगुन


 

 


असगुन


गाम-घरमे कतेको प्रकारक असगुन सभ प्रसिद्ध अछि। जेना क्यो यात्रापर विदा हो आ नढ़िया रास्ता वायासँ दायाँ काटि दियै, किंवा क्यो विदा होइतकाल पाछासँ टोकि दियै। बुढ़बा बाबाकेँ एहि सभहक बेश विचार छलनि। जँ घरक क्यो विदा होइत आ कतहु क्यो छीक दैत तँ वो चिरंजीवी भव: अवश्य कहितथि। तहिना आर-आर अपशकुन जँ होइतैक तँ ओकर निवारण कय लितथि।

ओहि दिन गाममे हाट लागल रहैक। तीमन-तरकारी सभटा हाटेपर सँ कीनल जाइत छलनि। ओहुना हाट दिनक ओ नियमसँ  ओतय पहुँचैत छलाह।

रविक दिन छलैक। हाट जएबाक तैयारी ओ दुइए बजेसँ प्रारम्भ कय देने छलाह। जहाँ चारि डेग आगा बढ़ैत कि एक ने एकटा अपसगुन भय जानि। एवम् प्रकारेण चारि बाजि गेल। सूर्यास्त करीब छल। हारि कय वो बेंत घुमबैत विदा भेलाह।

कनिके आगा बढ़लाह कि मुनेसरा सामनेमे पड़ि गेलनि

प्रणाम पंडीतजी!” –बाजल मुनेसरा।

नीके रह”- मुनेसराकेँ आर्शीवाद दैत पडितजी आगा बढ़लाह। मोने-मोन कहि नहि की की घुनघुना रहल छलाह। मुनेसराकेँ एकेटा आँखि छलैक। गाममे दाहाक दिन मारि भय गेल रहैक। बेस फनैत छल ओ। लाठी लेने फानि गेल छल। ताबतमे क्यो ओकरे निशाना बना कय एकटा सीसाक बोतल फेकलकै। ओकर सौंसे आँखि लहु-लुहाम भय गेल रहैक। ओही घटनाक बाद ओ असगुन भय छल। प्राय: सैह सभ सोचैत पंडितजी आगा बढ़लाह।

हाटपर बेश भीड़ छलैक। तीमन-तरकारीक भरमार छल। मुदा पंडितजीक आदति छलनि जे कोनो चीज ओ ठोकि-ठोकि कऽ करितथि। बीच बजारमे सजमनिक दाम मोलबति-मोलबति पहुँचलाह कि चारि गोटेमे एक दिससँ धुक्का मारैक आ चारि गोटे दोसर दिससँ। सामनेसँ दू-तीन गोटे हाँ-हॉं करैत पण्डितजीक रक्षा करए आबि गेलाह। धक्का-धुक्की खतम भेल तँ पण्डितजी आगा बढ़लाह। सजमनिक दाम मोलेलनि आ भाव पटि गेलापर जेबीसँ पैसा निकालय लगलाह कि अबाक रहि गेलाह। जेबी नदारद। पण्डितजी ठोह पारि कय कानय लगलाह। सौंसे ई खबरि बिजलौका जकाँ पसरि गेल। पण्डितजी माथा हाथ देने घर आपस अयलाह। तहियासँ वो असगुनक डरे छाँह कटने फिरथि।

पण्डितजीकेँ तीनटा कन्या छलनि। प्रथम कन्याक कन्यादान तय भय गेल छलनि। नीक कुल-शीलक लड़का रहैक। अगहनक पुर्णिमाक बियाह तय भेलनिबरक हाथ उठयबाक हेतु विदा होइत छलाह कि कियो तराक दय छींकनने। छींक...छींक...छीक...। हुनकर माथामे ई छींक घूमय लगलनि। पण्डितजीक टांग एकाएक गतिहीन भय गेलनि ओ आगा बढ़य हेतु एकदम तैयार नहि छलाह। सौंसे गामक लोक करमान लागि गेल छल। पण्डितजी गुम। किछु बजबे नहि करथि। तेहन शुभ मुहुर्त्त छल जे छींकक चर्चो करब असगुन लगनि। लोक सभकेँ किछु फुराइक नहि जे आखिर बात की भेल। अखने तँ पण्डितजी टप-टप बजैत छलाह..!

गाम भरिक लोक पण्डितजीकेँ घेरि लेलकनि।

पण्डितजी की भेल?”

मुदा ओ तैयो गुम्म। अन्ततोगत्वा लोक हुनका उठा-पुठा कय डाक्टरक ओहिठाम लय गेल। ओतय डाक्टर हुनकरअवस्था देखि बेश सीरियस भय गेलाह आ कहलखिन्ह जे हुनका गम्भीर भावनात्मक अवधात भेलन्हि अछि। तात्कालिक उपचारक हेतु जहाँ  वो सूई देबय लगलाह कि पण्डितजीकेँ नहि रहि भेलनिओ गरियबैत ओहिठामसँ गामपर भगलाह। ताबत भोरक चारि बाजि गेल छल। आ बरक ओहिठाम जएबाक कार्यक्रम रद्द भय गेल। ठीके असगुन भय गेलनि

ताहि दिनसँ पण्डितजी असगुनसँ बड्ड डराथि। ओहि दिन हुनकर मझिली बेटीक तहिना आँखि बड़ फरकय लगलनि। पण्डितजी एकदम अपसियाँत भय गेलाह। अबश्य कोनो गड़बड़ी होमय जा रहल अछि।

ओ अपन अपन बेटीकेँ तुरन्त अपना लग बैसा लेलथि कि ताबतेमे एकटा गिरगिट हुनकर बायॉं हाथपर खसल। पण्डितजी ठामहि फानलाह। पैरमे खराम छलनि। दरबज्जा बेस ऊँच छलैक। दलानपर ठामहि चितंग भय गेलाह। बायाँ पैरक हड्डी टुटि गेल छलनि। पण्डितजी बाप-बाप चिचिआय लगलाह। सभ गोटे हुनका लादि कय अस्पताल लय गेल। लाख कोशिशक बाबजूद ओ हड्डी नहि जुटल। पण्डितजी जन्म भरिक हेतु नाँगर भय गेलाह।

तहियासँ पण्डितजी रोज भोरे उठैत देरी भगवानकेँ गुहारि देथि-

हे भगवान! असुगनसँ जान बचायब।

मुदा भावी प्रवल होइत छैक। होइत वैह छैक जे हेबाक रहैत छैक।

एकादशीक दिन छलैक। महादेवक दर्शन करए जाइत छलाह। झलफल होइत छलैक। ताबतमे एकटा नढ़िया वामाकातसँ आयल आ सामने बाटे दायाँकात गुजरि गेल। पण्डितजी ठामहि खसलाह।

हे महादेव! आब अहीं प्राणक रखा करू।

कहैत-कहैत पण्डितजी वेहोश जकाँ भय गेलाह। तारा सभ एकाएकी हुनकर ई दुर्दशा देखबाक हेतु अपस्याँत छल। बो बेचारे एकहुँ डेग घुसकय हेतु तैयाक नहि छलाह। आ ने घुसकबाक हुनकामे तागति रहि गेल छलनि।

पण्डितजीकेँ फेर कहि नहि कहाँसँ हिम्मत अएलनि। ओ चोटे पाछा घुमलाह। तैबीच एकबेर फेर वैह नढ़िया वायाँसँ दहिना भेल। पण्डितजी ओहि नढ़ियाकेँ गरियबैत, नाँगर टाँगे दौड़ैत, खसैत-पड़ैत घर दिस बढ़य लगलाह। बीच-बीचमे ओहि नढ़ियाकेँ कहैत-

ई सरबा, नहि जीबय देत। एकर हम की बिगारने छलिऐक से नहि जानि!”

ताबतेमे मुखियाजी पोखरि दिसिसँ आपस अबैत छलाह। पुछि बैसलखिन-

की भेल पण्डितजी?”

की कहू की भेल। कहबी छैक जे गेलहुँ नेपाल आ कर्म गेल संगे। सैह परि अछि हमर। एकादशीक दिन छलैक। सोचलहुँ जे महादेवक दर्शन करी। आधा रास्तासँ जहाँ आगा बढ़लहुँ कि औ बाबू! ई चण्डाल नढ़िया रास्ता काटि देलक।

ओहिसँ पहिने की मुखियाजी किछु बजितथि, पण्डितजी धराम दय खसलाह।

मुखियाजी चिकरलाह। पासेमे पण्डितजीक भातिज पनिछोआ करैत छलखिन्ह। ओ दौड़लाह। अगल-बगलसँ सेहो लोक सभ दौड़ल। पण्डितजीकेँ उठा-पुठा कय दरबाजापर राखि देलक। लोक सभ पुछन्हि-

की भेल?”

मुदा ओ अपस्याँत आकाश दिसि तकैत रहि गेलाह।

असगुन, असगुने होइत अछि। तेँ ने लोक सगुन करैत फिरैत रहैत अछि। पण्डितजी भोर होइतहि पनिभरनीकेँ बजौलखिन आ आदेश देलखिन जे आइसँ नित्य प्रात: काल ओ एक घैल पानि भरि कय दरबाजापर राखि देल करए, जाहिसँ हुनक दिन नीक जेना कटि जानि। पनिभरनी हुनकर आज्ञाकेँ सिरोधार्य कयलक आ रोज हुनकर सामनेमे बेश बड़का घैलमे पानि भरि-भरि राखय लागल।

एक दिन अन्हरोखे पनिभरनी पानि भरि कय राखि गेल। ओकरा गहुँमक कटनी करबाक छलैक।

पण्डितजी उठि जहाँ चारि डेग आगा बढ़लाह कि वोहि घैलसँ टकरा चारूनाल चित्त भय खसि पड़लाह।

चारू कातसँ लोक सभ दौड़ल। मुदा मण्डितजी किछु नहि बजलाह। आब ओ सभ दिन चुप्पे रहबाक सपथ खा लेने छलाह। समय विपरीत भय गेल छलनि आ सगुनो असगुन भय गेल छलनि।

बुधवार, 1 नवंबर 2017

एकसरि




 


एकसरि


पण्डितजी बेश कर्मकाण्डी छलाह। भोरसँ साँझ धरि जतेक काज करितथि सभमे भबानकेँ स्मरण अवश्य करितथि। मंत्रोच्चार करैत उठितथि आ मंत्रेच्चारेक संग सुतितथि। त्रिपुण्ड आ ताहिपर लाल ठोप हुनक ललाटकेँ शुशोभित केने रहैत छल। ताहिपरसँ हरदम मुँहमे पान कचरैत, लाल-लाल पानक पीक फेकैत ओ साक्षात् कालीक अवतार लगैत छलाह। कारी चामपर ललका वस्त्र धारण कए जखन वो भवतीक बन्दना करय पहुँचैत छलाह तँ वातावरणमे एकटा अपूर्व सनसनी पसरि जाइत छल।

पण्डितजीक उम्र करीब ४५ बर्ष होएतनि। दूआ बेटी आ एक बेटा छलनि। घरवालीक स्वर्गवास आइसँ दस साल पहिने भय गेल छलनि। पण्डितजीक दुनू बेटा वेश सुन्नरि आ लुड़िगर छलनि। मुदा हुनका पासमे टाकाक अभाव छलनि तँ कतहु कन्यादान पटैत नहि छलनि। बेटा भिन्न भय गेल छलखिन आ पण्डितजी अपन दुनू बेटीक संग एकठाम छलाह।

पण्डितजीक घरक आस-पासमे बेश सम्पन्न परिवार सभ छलैक। पण्डितजीक गुजरो हुनके सभहक माध्यमसँ होइत छलनि। बेटा अपन घरवालीक संग दरिभंगामे रहैत छलखिन। ओहिठाम डिस्ट्रीक्ट बोर्डमे कैसियरक काज करैत छलाह। मुदा पण्डितजीकेँ किछु मदति नहि करैत छलखिन। वो अखनो पण्डिताइक बले जीवैत छलाह। दुनू बेटी समर्थ छलखिन। गामेक हाइ स्कूलसँ मैट्रिक धरि सभकेँ पढ़ौलखिन। आगा पढेबाक सामर्थ्य नहि रहन्हि। वियाहक लेल घटपटायल छलाह मुदा कतहु टाका नहि भेटैत छलनि। बिना टकाक कोनो लड़का वियाह करय हेतु तैयार नहि छलनि। यैह सभ चिन्तामे वो चिन्तित रहैत छलाह।

ओना पण्डितजीक सम्बन्ध पूरा गाममे सँ मधुर छलनि। मुदा दू-तीन परिवारक लोक हुनका बेशी आदर करैत छलखिन। हीरा बाबूक ओतय तँ भोर-साँझ दू घन्टा जरूर बैसार होइत छलनि। मुदा पण्डितजी ककरो कहियो अपना हेतु किछु कहलखिन नहि। हीरा बाबूकेँ चारिटा बेटा छलखिन। दूटा तँ बाहर रहैत छलखिन मुदा छोटका दुनू पालिमे मैट्रिक पास केने छलखिन आ बससँ रोज मधुबनी जाइत छलैन्ह किलास करय। सरोज ओ मीरा सेहो ओकरे सभहक संगे मैट्रिक पास केने छल। एक दिन सौंसे गाम सुतल आ सुति कऽ उठल तँ गुम्मे रहि गेल। सरोज चुपचाप घरसँ निपत्ता भय गेल छलैक। घरे-घर तका-हेरी भेलैक मुदा कोनो पता नहि। आन्हर हीराबाबूक दोसर बेटा सेहो काल्हियेसँ गाएब छलैक। सौंसे गाममे कनाफुसी होमय लगलैक। पण्डितजी गरीब जरूर छलाहमुदा हुनका अपन प्रतिष्ठाक पूरा ख्याल छलनि। ओ अहि गम्भीर चोटकेँ नहि सहि सकलाह आ रातिमे सुतलाह से सुतले रहि गेलाह। मीरा एकसर भय गेलीह। गुम्म, सुम्म आश्चर्यचकित ओ सोचि नहि पाबि रहल छलीह जे की करथि।

मीरा आब एकसरि छल। आगू-पाछू क्यो नहि। बापक मरला चारि दिन भय गेल छलै। भातिज आगि देने छलनि।

सौंसे गाममे सरोजक भगबाक समाचार बिजली जकाँ पसरि गेल रहैक। मीराक तँ बकारे नहि फुटैत छलैक। की करए। पाँचम दिन सभ दियाद-बादक बैसार भेलन्हि। तय भेल जे गाम लऽ कऽ श्राद्ध भय जाए। पैसा-कौरी हीराबाबू गछलखिन। मीरासँ मात्र एतबा गछबा लेल गेलैक जे काज भेलाक बाद घर-घराड़ी जे पण्डितजीक एक मात्र सम्पत्ति छलनि जे हीराबाबूक नाम कए देल जएतनि। बैसार खतम भेल मीरा गुमसुम एकचारी दिस देखि रहल छल। पण्डितजीक श्राद्ध नीक जकाँ समपन्न भेल। हीराबाबू रजिष्टारकेँ गामेपर बजा अनलाह। लिखयी सम्पन्नभय गेल। हीराबाबू मीराकेँ कहलखिन-

मीरा, मास दू मास अही घरमे रह। तोरे घर छौक ने।

मीरा चुपचाप सुनैत रहल जेना ठकबिदरो लागि गेल हो।

अपने गाममे, अपने घरमे मीरा बेघर भऽ गेल छल। गामक लोक ओकरा प्रति सहानुभूतितँ देखबैत छलैक मुदा महज फार्मेल्टी। धीरे-धीरे ओहो खतम। पन्द्रह दिन भय गेल छलैक घरक रजिष्ट्रीक। मीराकेँ आब ओहि घरमे एक पल बिताएब असम्भव लगैत छलैक। एक दिन सैह सभ सोचि रहल छल कि लगलैक जेना दरबाजापर क्यो ठाढ़ होइक।

हीराबाबू, अपने एतेक रातिमे..?”

हीराबाबू किछु बजबाक हिम्मति नहि कए पाबि रहला छलाह। मीराक तामस अतिपर पहुँच गेलैक। ओ चिचियैल-

चोर! चोर!”

हीराबाबू भगलाह। अगल-बगलक लोकक ओहिठाम भीड़ एकट्ठा भय गेल छलैक। मीरा भोकासि पाड़ि कऽ कानि रहल छल। दाइ-माइ सभ दस रंगक गप्प-सप्प करैत पहुँचि गेल छलैक। जकरा जे मोन होइक से बजैक। मीरा चुपचाप सभ किछु सुनैत रहल। धीरे-धीरे भीड़ ओहिठामसँ हटैत गेलैक। राति गम्भीर भेल जाइत छलैक। सौंसे गामक लोक सुति रहल छलैक। मीरा चुपचाप गामसँ बाहर भऽ गेल। ओकराकिछु नहि बुझल छलैक जे वो कतय जा रहल अछि मुदा कोनो दोसर बिकल्पो नहि रहि गेल छलैक।

मीरा बड्ड पढ़लो नहि छल। शहरमे कहियो रहल नहि छल। मुदा तकर बादो ओकरा कोनो गम नहि छलैक। टीशनपर गाड़ी आबि गेल छलैक आ आर अधिक सोच-विचार करबाक अवसरो नहि छलैक। ओ तरदय टीकट कीनलक आ गाड़ीपर चढ़ि गेल। ट्रेनमे बेश भी छलैक। किछुकाल तँ वो ठाढ़े रहल मुदा ताबते ओकरा चिर-परिचित अमित सेहो ओकर सामनेक सीटपर बैसल भेटलैक। हीरा बाबूक ज्येष्ठ पुत्र अमित। मीराकेँ ट्रेनमे धक्कम-धुक्की करैत देखि ओ तुरन्त उठि गेलैक।  

मीरा तूँ कतय जा रहल छेँ?”

पुछलकै अमित। मीरा ओकरा देखि कए अवाक् रहि गेल। किछु बजबे नहि करैक। अमित ओकरा अपना सीटपर बैसा देलकै। अगिला टीशनपर किछु यात्री उतरलैक। अमित सेहो ओहिठाम उतरय चाहैत छल मुदा मीराकेँ एकसर छोड़ि देब ओकरा नीक नहि लागि रहल छलैक। ओ मीरासँ ओकर गन्तव्य पुछय चाहलकै। मुदा मीरा किछु बजबे नहि करैक। बड़ मुश्किलसँ मीरा ओकर कहब मानि ओतहि उतैर गेल। आखिर ओकर कोनो गन्तव्य नहि छलैक। गाड़ी सीटी दैत ओहिठामसँ आगा बढ़ि गेलैक।

ट्रेनपर सँ उतरि कए मीरा कानय लागल। अविरल अश्रुक प्रवाह देख अमितक मोन करूणासँ भरि गेलैक। ओ मोनहि मोन निश्चय केलक जे मीराकेँ ओकर घर आपस दिआ कऽ रहत चाहे ओकरा कतबो संघर्ष कियैक नहि करय पड़ैक। ओ बड़ मुश्किलसँ मीराकेँ चुप केलक आ अपना संगे गाम आपस नेने अएलैक।

ओहि दिन पूरा गामक बैसारी भेलैक। सभ हीराबाबूकेँ छिया-छियाकहलकनि। ताबतमे अमिकत कतहुसँ आयल आ साफ-साफ घोषणा कए देलक जे वो मकान मीराक छैक ओओकरे रहतैक। सौंसे गौंवा प्रसन्न भय ओकर गुणगाण करय लागल। मुदा हीराबाबूकेँ जेना नअ मोन पानि पानि पड़ि गेलनि। बैसारीसँ लौटि ओ छटपटायल रहथि। साँझमे बाप-बेटामे बेश विवाद पसरि गेलनि। मुदा अमित हुनकर गप्प सुनबाक हेतु तैयार नहि छल आ एकबेर फेर साफ-साफ कहि देलकनि जे एहि अन्यायमे ओ हिनकर संग नहि देतनि। बाद-विवाद बढ़िते गेल। अन्ततोगत्वा हीराबाबू कम्बल, बिछाओन आदि सरिओलनि आ गामसँ विदा भय गेलाह। क्यो टोकलकनि नहि। अमित मोने-मोन सोचैत रहल- भने ई आफद टरि रहल छथि।   

हीराबाबू तँ चलि गेलाह मुदा मीराकेँ तैयो चैन नहि भेटलनि। सौंसे गाममे दुष्ट लोक सभ मीरा आ अमितक बारेमे नाना प्रकारक कुप्रचार करय लगलैक। रोज एकटा नव अफवाह गामक एक कोणसँ निकलैत आ दोसर कोण धरि पसरि जाइत। मीराकेँ ई सभ गप्प क्यो-ने-क्यो आबि कए कहि दैक। ओ बड़ संवेदनशील छल, भावुक छल, तँए एहन-एहन गप्प-सप्प सुनि कए कानय लगैत छल। एक दिन अहिना एसगरे अँगनामे कनैत रहय। अमित कतहुसँ आबि गेलै। ओकरा एना कनैत देखि बड़ तकलीफ भेलै अमितकेँ।

मीरा नहि कान!”

जेना कि सभ बात ओकरा बुझले होइक।

सुन! हमर बात मानि ले। हमरासँ बियाह कऽ ले। बाज सही, जकरा जे मोन होइक।

मीरा आर जोरसँ कानय लगल। अमित ई सभ नहि देखि सकल आ चुप्पे ओतयसँ सरकि गेल।

तकर बाद अमित दोबारा घुरि कए नहि अएलैक ओकरा लग। पूरा गाममे हल्ला भय गेलैक जे अमित कतहु चल गेल। मीरा ओतेकटा गाममे फेर एकसर भय गेल छल। गाममे कोनो थाहपता नहि छलैक।

बच्चा सभकेँ ट्यूशन पढ़ा-पढ़ा कऽ गुजर करैत छल। मुदा अमितक एकदम गामसँ निपात भय गेलाक बाद ओ अत्यधिक दुखी छल। ककरोसँ किछु गप्प करबाक इच्छा नहि रहैक। एतबेमे ककरो गरजब सुनेलैक। हीराबाबूक पितियौत अगिया बेताल छलाह।

कहाँ गेल पण्डितक बेटी...!” इत्यादि-इत्यादि।

मीराकेँ ई सभ गप्प नहि सहि भेलैक। मुदा ओ किछु बाजियो नहि सकल। असोरापर करोट भऽ गेल। चारूकातसँ लोक सभ दौड़लै। हल्ला भऽ गेलैक जे मीराक हार्ट फेल कऽ गेलैक। एक बेर फेर ओ घराड़ी सुन्न भय गेलैक।