भोरमे
उठिते पहिल चीज जे धियानमे अबैत अछि, से थिक चाह। कएक बेर मन होइत अछि जे भोरुका सभ काज–जेना
टहलब, नहाएब–छोड़ि दी आ
चाह पीवि ली। फेर देखल जेतइ। चाहक आगमन देख मनमे हुलास भऽ जाइत अछि। चाहक एक-एक
घोंट जेना शरीरक भीतर जाइते उत्साहित करए लगैत अछि। नव-नव गप फुरए लगैत अछि।
चाहकेँ भफाइत देख उत्साहसँ मन भरि जाइत अछि। ई क्रम सालोसँ चलि रहल अछि।
आब तँ
भोरक आकर्षणे भऽ गेल चाह, अर्थात मॉरनिंग टी। चाहक भाफ जेना आगॉं बढ़ि कऽ कहैत
हुअए-
“गूड मॉरनिंग।”
चाहक
स्वादक वर्णन करब कठिन अछि। ओकर अन्दाज तँ चाह पीलेसँ भऽ सकैत अछि। चाह पीबू आ
टनटना जाउ। कनीकालक लेल चिन्ता-फिकिरसँ मुक्ति भऽ जाइत अछि, कारण मन चाहक संगे
गपमे ओझरा जाइत अछि।
चाह
आइ-काल्हिक सभ्यताक अभिन्न अंग बनि गेल अछि। केकरो ओतए जाउ, चाहक आग्रह अबस्स
हएत आ जँ से नहि भेल तँ कहक विषय भऽ जाएत जे चाहो नइ पुछलकै। कोनो बैसार हौउ, ओइमे चाह अबस्से
परसल जाएत।
पहिने
गाममे चाहक एतेक प्रचार नहि छल। माने ग्रामीण क्षेत्र ऐसँ बाँचल छल। हमरा गाममे
चौकपर दोकान सभपर चाह भेटै आ लोक सभ ओत्तै चाह पीबैत छला। गामक अधिकांश घरमे चाह
नहि बनैत छल। मुदा आब समय बदलल। चाह घरक अभिन्न अंग बनि गेल अछि।
बहुत
दिन धरि हम चाह नहि पीबैत छेलौं। बादमे नौकरी पकड़ला पछाइत भोर-साँझ चाह पीबए
लगलौं। क्रमश: एकर संख्या बढ़ैत गेल। नार्थ ब्लौक, दिल्लीमे पोस्टींगक क्रममे
कॉफीक चलन बढ़ल। सस्ता ओ सुलभ रहबाक कारण दिनमे कएक बेर कॉफी भऽ जाइत छल। संगे टी
बोर्डक चाह सेहो उपलब्ध छल। दूध, चीनी, चाह फराक-फराक देल जाइक। अपन रूचिक अनुसार चाह बना
लिअ। चीनी कम दिअ,
पत्ती कम पड़ि गेल,
आदि-आदि झंझटसँ मुक्ति।
हमर
एकटा अधिकारी (आए.ए.एस.) चाहक बड़ शौकीन छला। हुनकर कार्यालयमे चाह बनेबाक पूरा
सरंजाम रहैत छल। आध-आध घन्टापर ओ चाह पीबैथ। हुनका लगमे तरह-तरह केर चाहक पत्ती
रहै छेलैन। कोन समयमे केहेन चाह बनत सभ तँइ छल। जे कियो ओइ समयमे पहुँच गेल, तिनका सेहो ओइ चाहमे
स्वत: भागी बनौल जाइत छल।
कालक्रमे
दुपहरियाक बाद चाह पीअब हम छोड़ि देलौं। तेकर कारण रातिक निन्नक दिक्कत छल। कएक
ठाम पढ़लौं जे चाहमे कैकीन होइत अछि, जेकरा पचबामे बारह घन्टा लागि जाइत अछि आ ओ निन्नमे
बाधक भऽ सकैत अछि। ई बात केतेक सही अछि से नहि कहि, मुदा हम दुपहरियाक बाद चाह
पीअब छोड़ि देलौं। मुदा भोरक जबरदस कपसँ चाह पीबए लगलौं। एक्के कपमे सामान्य कपक
चारि- पाँच कप आबि जइतैक। एकबेर हमर ग्रामीण ओइ कपसँ चाह पीबैत देख अबाक् रहि गेला।
मुदा कालक्रमे चाहक मात्रा कम भऽ गेल।
चाह
कम कऽ देला पछाइत बैसार सभमे किंवा कोनो आगन्तुक संगेचाह नहि पिलापर निर्विवाद
रूपसँ चर्चाक विषय भऽ जाइत अछि। ई जे चाह किएक नहि पीबैत छी। कनिक्के पीवि लीअ।
चाह तँ नीक चीज छै। आदि-आदि। केकरा-केकरा बुझैबै जे हम चाह मात्र भोरुके पहरटा मे
पीबै छी। दुपहरियाक बाद नइ पीबै छी। कारण, निन्नमे दिक्कत भऽ जाइत अछि।
..तँ
हम समाधान तकलौं जे जे कियो चाहक आग्रह करैथ से मानि ली। हुनका संगे चाह पीब शुरू
करी, आ थोड़ेकालक बाद
राखि दी। हँ, ऐमे चाहक बेरबादी तँ
होइ छल मुदा एकटा सद्य: लाभ होइत छल जे बिबादसँ बँचि जाइ छेलौं। क्रमश: लोक सभ ई
बात बुझि गेल आ हमरा संग चाहक आग्रह कम भऽ गेल। चाहसँ निन्नक कमी होइत अछि की नहि
मुदा हम चाह पीअब कम कऽ देलौं। मुदा केते गोरेकेँ सुतबासँ पूर्व चाहक आदत होइ छैन
आ तेकरबाद ठाठसँ सुतैत देखै छिऐन। जे होइ मुदा चाह चाहे थिक।
चूँकि
चाहक संख्या कम भऽ गेल छल तँए हमर प्रयास रहैत छल जे चाह उम्दासँ उम्दा होइक। तइले
हम चारूकात चाहक पत्ती तकैत रहलौं। किछु दिन तँ हमर एकटा मित्र सिलीगुड़ीसँ चाह
अनैत छला, मकाइवाड़ीक चाह, जेकर सुगन्ध अद्भुत
ओ आनन्ददायी छल। बादमे हुनकर स्थानान्तरण भऽ गेल एवं ओ चाह ताकबाक हेतु हम
केतेको प्रयास केलौं। कर्नाट पलेस दिल्लीक केतेको दोकानपर केतेको प्रकारक चाह
अनलौं। ओही क्रममे केपचु रेडलेवल चाह तकलौं। ओइ चाहक स्वाद एवं सुगन्ध हमरा
सभकेँ पसिन भेल आ बहुत दिन धरि ओ चाह चलल। बादमे ओइ चाहक अभाव रहय लागल। दोकान
सभपर कएक बेर भेटिते ने छल। तइ क्रममे लोदी कालोनीक मेन मार्केट स्थित चाहक थौक
विक्रेताक पता लागल। ओ चाह विक्रेता योग्य बेकती छला एवं मधुबनी सहित इलाकाक आन-आन
स्थानक जानकारी सेहो रखैत छला। हुनकर दोकानपर चाह किनबाक क्रममे गप-सप्प होइत छल
जइसँ बुझाएल जे ओ बहुत योग्य बेकती छला एवं दुनियाँक अनेको देश घुमल छला। किछु
दिनक बाद जखन हम फेर चाह लेबए ओतए गेलौं तँ पता लागल जे ओ गुजैर गेला। अचानक हृदयाघात
भेलैन आ ओ नहि बँचि सकला। ऐ घटनासँ बहुत दुख भेल। तेकर बादो हम ओइ दोकानपर जाइत
रहलौं मुदा बादमे लोदी कालोनीक डेरा छुटलापर आवागमन कम भऽ गेल आ तेकर बाद केपचु
छुटि गेल।
पानिक
बाद चाह दुनियाँमे सभसँ बेसी प्रचलित पेय अछि। आम धारणा अछि जे चाह कएक प्रकारक
बिमारीसँ निजात आनि सकैत अछि। कहल जाइत अछि जे चाह रक्त चाप कम करैत अछि। हृदयक
हेतु ई नीक अछि। चाह एन्टीऑक्सीडेन्ट सेहो होइत अछि। मुदा चाहपर भेल अनुसन्धानमे
पाओल गेल जे ऐमे कीटनाशक औषधिक मात्रा सामान्यत: अधिक रहैत अछि। बहुत रास चाहक
पत्तीकेँ नीकसँ धोल नहि जाइत अछि आ डिब्बामे बन्द कऽ देल जाइत अछि, जइसँ कैंसर हेबाक डर
रहैत अछि। कएक बेर चाहमे सुगन्ध करक हेतु हानिकारक रसायन मिला देल जाइत अछि। कएक
बेर चाहक पुड़ियामे राखल रहैत अछि। ओइ पुड़ियाकेँ गरम पानिमे डुबा कऽ चाह बनौल
जाइत अछि। ओइ क्रममे चाहमे प्लास्टिकक पुड़ियासँ हानिकारक तत्व मिलि जाइत अछि।
किछु अवगुणक चर्चाक अछैतो चाहक प्रेमीक संख्या अपार अछि। चाहक समाजिक-सांस्कृतिक
योगदान केकरा नहि बुझल अछि। कोनो बैसार बिना चाहक नहि होइत अछि। चाह परक चर्चा तँ
प्रसिद्ध भऽ गेल अछि। चाहक केतेको प्रकार अछि। हरियर, कारी किंवा औषधीय (हर्वल)
चाह। अपन-अपन पसिनक अनुसार लोक एकर चुनाव करैत अछि। कारी चाह पिलासँ दाँतमे
खोधैरसँ बँचाव होइत अछि। हरियर वा कारी चाह पिलासँ हृदयाघातक संभावना २१ प्रतिशत
कम भऽ जाइत अछि। एक वा दू कप कारीचाह विपैबला बेकतीकेँ टाइप टू मधुमेह हेबाक
संभावना ६० प्रतिशतकम भऽ जाइत अछि। कारी चाह तनाव बढ़बैबला हारमोन कम करैत अछि।
ऐमे विद्यमान अल्कलामाइन एन्टीजेन रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़बैत अछि।
कहल
जाइत अछि हरियर चाह कारी चाहसँ बेसी गुणकारी होइत अछि। तेकर कारण एकर बनबक
क्रियामे फरमेन्टेसन नहि हएब थिक। हरियर चाहमे एन्टीऑक्सीडेन्ट एवं पोलीफेनोल
अधिक रहैत अछि। कहल जाइत अछि जे चीनक द्वितीय राजा सेन तुँग सन् २७३७ इसा पूर्व
चाहक अविष्कार केलैन। उबलैत पानिमे संयोगसँ किछु पत्ती उड़िया कऽ पड़ि गेलइ। ओ
पीवि कऽ हुनका बहुत नीक स्वाद लगलैन।
दुनियाँ
भरिमे चाहक करीब-करीब १५०० प्रकार उपलब्ध अछि जे मूलत: छह प्रकारक पत्तीसँ बनौल
जाइत अछि। अमेरिकामे कारी चाहकेँ लाल चाह कहल जाइत अछि।
१७००
ईस्वीक आसपास ब्रिटेनमे चाह लोकप्रिय पेय भऽ गेल।
अफगानिस्तान
एवं इरानक राष्ट्रीय पेय चाह थिक।
दुनियाँमे
सभसँ बेसी चाह आयरलैंडमे पीअल जाइत अछि।
प्रतिवर्ष
औसतन तीन कड़ोर टन चाहक उपज होइत अछि। ब्रिटिस इस्ट इण्डिया कम्पनीक प्रभाव
बढ़िते भारतमे चाहक व्यापारिक उत्पादन बढ़ल। ओइ समयमे बहुत रास उपजाउ जमीनकेँ
चाहक उत्पादनमे लगा देल गेल। टी वोर्ड द्वारा सन् १९२० ईस्वीक आसपास चाहक
विज्ञापन जोर-सोरसँ कएल गेल। आइ-काल्हि भारत दुनियाँक सभसँ अधिक चाहक उपज करैबला
देशमे सँ एक अछि। देशमे उपजल ६० प्रतिशत चाह एत्तै खपत भऽ जाइत अछि। विश्व
प्रसिद्ध आसाम एवं दार्जिलीग चाह सेहो अहीठाम उपजैत अछि। मनीराम देवान (१८०६-१८५८) प्रथम भारतीय
चाह उत्पादक छला एवं आसामी चाहक व्यापारिक उत्पादनक श्रेय हुनके जाइत अछि।
दार्जिलीगमे
चाहक उत्पादन१८४१ ईस्वीमे आर्थर कैम्पवेल द्वारा प्रारंभ भेल। ओ सिविल सार्जन
छला। काठमाण्डूसँ १८३९ ईस्वीमे हुनका स्थानान्तरण दार्जिलीग भऽ गेल। १८४१ ईस्वीमे
ओ चीनक चाहक बीज दार्जिलीगमे लगेला आ क्रमश: ओकर व्यापारिक उत्पादन प्रारंभ भेल।
चाहक
स्तुतिमे तरह-तरहक बात कहल गेल अछि। विलियम एवार्ट ग्लैडस्टोनक निम्नलिखित
पाँति उद्धरणीय अछि-
“If
you are cold, tea woll warm you
If
you are too heated, it will cool you,
If
you are depressed, it will cheer you,
If
you are excited, it will calm you.”
कहक
माने जे चाह सर्वगुणी अछि। चाह कोनो दुख दूर कऽ सकैत अछि। सुखक वर्षा कऽ सकैत अछि।
The
book of Tea
केर लेखक जापानी विद्वान एवं कलाकार Okakura Kakuzo कहै छैथ-
“Tea
is a raligion of the art of life”
कहक
माने जे चाहक चुस्कीक संग जीवनक रंग बदैल सकैत अछि। जीवनक समस्याक समाधान भऽ
सकैत अछि।
रूसक
विद्वान उपन्यासकार Fyodor Melehalouich Postyevaky कहने छैथ-
“I
say let the world go to hell, but
I
should always have my tea.”
जे
हेतै से हेतै, मुदा पहिने चाह पीवि
ली।
उपरोक्त
कथानक सभ चाहक उपयोगिताकेँ प्रमाणित करैत अछि। गरीब, धनीक, गाम, शहर सभठाम भोर होइते
चाहक सुमार होइत अछि। दड़िभंगा टावर हो वा तिरुपतिक धर्मशाला, सभठाम भोरे-भोर चाह
उपलब्ध भऽ जाइत अछि।
एतेक
प्रसिद्ध एवं सर्व व्यापी चाहक बिक्री केनिहार अधिकांश बेकती गरीब परिवेशसँ अबै
छैथ। गाम-घरसँ भागि अपन भविसक निर्माण हेतु पैघ शहर जेना- दिल्ली, मुम्बई, अबै छैथ। सालो
फुटपाथपर चाह बेचैत रहि चाइ छैथ मुदा हुनकर आर्थिक स्थितिमे सुधार नहि भऽ पबैत
अछि। ई अलग बात अछि जे भारतक वर्तमान प्रधानमंत्री बचपनमे चाह बेचै छला मुदा एहेन भाग्यवान
कम होइ छैथ।
दिल्लीक
आइ.टी.ओ.क आसपास रोडक कातमे सालोसँ चाह बेचनिहार श्री लक्ष्मण राव केर कथा फराक
अछि। चाहक दोकान करैत ओ लगातार लेखनक काज सेहो करैत रहै छैथ। अखन धरि २४ टा पोथी
लिखि चूकल छैथ।
चाह
बेचनाइक संग अपन लिखल पोथी सेहो बेचैत रहै छैथ। ओ मैट्रिक पास करि कऽ चाह बेचनाइ
प्रारंभ केला। फेर बी.ए. केला। निरन्तर लिखैत रहला मुदा चाहसँ हुनक लगाव बनल रहल।
मुदा अधिकांश चाह विक्रेता अहिना भाग्यवान नहि होइ छैथ। जीवन पर्यन्त चाह
बेचैत-बेचैत ओ जहिना-तहिना रहि जाइ छैथ।
जीवन
अद्भुत अछि। कहि नहि जीव केतए-सँ आएल आ केतए जाएत? कहि नहि पुनर्जन्म हएत कि
नहि? स्वर्ग जाएब वा
नर्क सेहो ठेकान नहि। आ जौं स्वर्ग चलिये गेलौं तँ कहि नहि ओतए चाह हेतैक कि नहि? तँए जाबत जीवन अछि
एकरा नीकसँ जीवि लिअ। आनन्द बना लिय। जँ भऽ सकए तँ ओरियान कऽ लिअ जे स्वर्गोमे
चाह भेटैक। तँए हम अपन माइक श्राद्धमे चाह-चिन्नीक संग चाह बनेबाक सभ सामग्री जेना
गैसबला चूल्हि आदि-आदि, दान कएल। आ दानक वस्तु हुनका देल जे चाहक प्रेमी
छला। माय हुनका केतेको बेर चाह पीवि लिअ कहितथि। चाहक ऐ आग्रहमे बहुत जान होइत छल।
हुनका लग लोकसब अबैत जाइत रहैत छल। ओ सदिखन प्रसन्न रहैत छेली। मारफत चाह। अस्तु
हमहूँ-अहाँ चाहक पक्का ओरियान राखी आ प्रयत्न करी जे स्वर्गोमे चाह भेटैत रहए।