मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

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रविवार, 3 फ़रवरी 2019

प्रभुदत्त ब्रह्मचारी







प्रभुदत्त ब्रह्मचारी



अलीगढ़ जिलाक एकटा गरीब ब्राह्मण परिवारमे सन् १९८५मे प्रभुदत्त ब्रह्मचारीक जन्म भेल रहनि । शुरुएसँ संस्कृतमे हुनका बहुत रूचि रहनि । ताहि हेतु ओ मथुरा,वृंदावनक कतेको गुरुकुल गेलाह । अंततः ओ काशीक गुरुकुल पहुँचलाह जतए हुनकर करपात्रीजी संगी रहथिन । स्वतंत्रता आंदोलनमे ओ सकृय रहलाह आ ताहिक्रममे  जेलो गेलाह । जवाहरलाल नेहरु जेलमे हुनकर संगे रहथिन । प्रभुदत्त ब्रह्मचारी परिब्राजकक जिनगी जीबैत विभिन्न स्थानक यात्रा करैत रहलाह । ओहिक्रममे हुनका महान संत उरिया बाबा आ हरिबाबासँ भेंट भेलनि । हिनका दुनूगोटेसँ ब्रह्मचारीजीकेँ बहुत प्रेरणा भेलनि आ हुनके सभक प्रेरणासँ ज्ञान प्राप्त करबाक हेतु ओ हिमालय चलि गेलाह ।

हमसभ जखन नेन्ना रही तँ बाबूजी बरोबरि प्रभुदत्त ब्रह्मचारीक चर्चा करैत छलाह। ओहि समयक मानल संतमे हुनकर नाम छल । चर्चाक क्रममे ओ कहितथि जे कोना ओ हिन्दू कोड बिलक मामलापर नेहरुजीक खिलाफमे लोकसभाक चुनाव १९५२मे लड़ल रहथि । संगमक ओहिपार पूलसँ लोक झूसी जाइत अछि । गंगाक कातमे हुनकर आश्रम छल । ओतहि एकटा संस्कृत महाविद्यालय सेहो ओ चलबैत छलाह । तहिएसँ ओ स्थान संकीर्तन भवनक नाओँसँ जानल जाइत अछि। गाहे-वगाहे हुनकर चर्चा होइते रहैत छल ।  समाचार पत्रसभमे हुनका बारेमे छपैत रहैत छल । ओही समयमे हुनकर लिखल किताब "शोक नाश" पढ़बाक अवसर भेटल । अद्भुत  किताब छल ओ । एहिमे ओ अपना संगे घटल एकटा दुखद प्रसंगक वर्णन केने छथि । दक्षिण भारतक अपन एकटा भक्तक ओहिठाम ट्रेनसँ जाइत काल किछु सहयात्रीसभ हुनका संगे सीटक विवादक क्रममे हुनकर झोटा पकड़ि कए ततेक जोर-जोरसँ खिचलक जे सौंसे माथक केससभ ऊखरबाक हालत भए गेल । दर्दसँ ओ छटपटाइत चलाह । इसारासँ ओ कै बेर ओकरा मना करथि । मुदा ओ अत्याचार करैत रहल । ओहि असह्य पीड़ाकेँ ओ सहैत रहि गेलाह । किछु बाजिओ नहि सकलाह,कारण ओहि समय ओ मौनमे रहथि,बाजि नहि सकैत छलाह । जखन ट्रेनसँ उतरबाक काल हुनकर स्वागतमे भक्तक भीड़ लागि गेल आ से बात ओ लड़ाका यात्री देखलक तँ ओकरा अपन गल्तीक अंदाज भेलैक । ओ हुनकर पैर पर खसि पड़ल । महात्माजी ओकरा आशीर्वाद दैत अपन भक्तसभक संगे चलि गेलाह। ककरो किछु नहि कहलखिन।

शोक नाश पुस्तकमे बर्ह्मचारीजी अपन आश्रममे रहैत एकटानेन्नाकेँ अकस्मात गंगामे नहाइत काल डुबि जेबाक प्रसंगक वर्णन करैत लिखैत छथि जे ओहि बालककेँ ओ  दिन-राति ध्यान रखैत छलाह । नित्यप्रति ओ गंगा स्नान करैत छल । ओहिदिन हुनके संगे नहाइत-नहाइत ओ गंगाक पानिक घुर्मीमे फँसि गेल आ डुबल से डुबले रहि गेल । आस-पास ठाढ़ गोताखोरसभ बहुत तकलक,अपनाभरि बहुत प्रयास केलक मुदा ओ कतहु नहि भेटल। एहि तरहेँ दुर्घटनामे ओहि नेन्नाक आकस्मिक मृत्युसँ महात्माजी बहुत दुखी भेलाह । कै दिन अन्न-जल ग्रहण नहि केलाह । फेर लोकेसभ हुनका बुझओलक जे एकटा सन्यासीक लेल एतेक शोक करब उचित नहि । ओहि बालकक स्मृतिमे संकीर्तन भवनमे भगवानक नवाह कएल गेल । आश्चर्यक बात जे ओहि बालकक पिता एहि समाचारसँ उद्वेलित नहि भेल आ कहैत रहि गेल जे महात्माजीक आश्रयमे ओकर मुक्ति भए गेल एहिसँ बेसी भाग्यक बात आोर की भए सकैत छल ?

पहिलबेर हमरा हुनकासँ १९७८ ई०मे भेंट भेल । ओहि समयमे हमर पोस्टींग प्रयागराजमे रहए । हमरासंगे हमर अनुज रहथि । ओ विस्तारसँ हमरासँ गप्प-सप्प करैत रहलाह । संगहि हमर अनुजसँ सेहो हुनकर पढ़ाइ-लिखाइक बारेमे पुछऔत रहलखिन । आग्रह केलखिन जे ओ हुनकार संस्कृत कालेजमे शास्त्रीमे नाओँ लिखा लेथि । मुदा ताहि हेतु ओ तैयार नहि भेलाह । हमसभ घंटा-दूघंटा ओहिठाम बिता कए आपस अपन डेरा चलि आएल रही । तकर बाद कै बेर हम हसगर आ परिवारक संगे हुनकासँ भेंट करबाक हेतु जाइत रहलहुँ। संकीर्तन भवन पर गेलासँ एकटा अद्भुत सात्विक आनंदक अनुभव होइत छल । कै बेर तँ ओ लिखबा मे व्यस्त रहैत छलाह । हमरा सभक गेलापर  किओ चेला जा कए हुनका कहतनि जे भक्तसभ आएल छ थि तँ ओ बाहर आबि जइतथि । संकीर्तन भवनमे जन्माष्टमीक पर्व धूमधामसँ मनाओल जाइत छल । कै बेर बेर हमहु ओहिमे सामिल भेल रही ।

संत तँ ओ छलाहे,अपना समयकेँ उत्कृष्ट लेखकमे सेहो हुनकर सुमार होइत छल । करीब दू सए पोथी ओ लिखने छथि । साहित्यिक क्षेत्रमे हुनकर योगदानक बहुत प्रशंसा भेल आ हुनका कैटा पुरस्कार सेहो भेटल।

हुनकर प्रमुख पुस्तकमे भगवती कथा (११८  खण्ड),भगवत चरित सप्ताह(मूल) , भागवत चरित सटीक (दू भाग),महात्मा कर्ण ,महावीर हनुमान ,चैतन्य चरितावली, आदि प्रसिद्ध अछि । देबराहा बाबा माघ मेलामे हुनकर भागवत चरित सटीक दुनू खण्ड आशीर्वाद स्वरुप भक्तगणकेँ कीनबाक प्रेरणा दैत छलाह ।

ब्रह्मचारीजीक वसंतगाँव स्थित आश्रममे हनुमानजीक विशाल मुर्तिक स्थापना करबाक हेतु मुर्ति दक्षिण भारतक कर्कलासँ आनल गेल छल । कै महिनाक प्रयासक बाद ओहि विशालकाय मुर्त्तिकेँ वसंतगाँव स्थित आश्रममे ठाढ़ कएल गेल । ओहि समयमे ब्रह्मचारीजी प्रयागमे माघक कल्पवास कए रहल छलाह। ओ माघभरि ओतए नित्य गंगामे स्नान करैत छलाह । तथापि ओ वसंतगाँव स्थित आश्रममे हनुमानजीक मुर्त्तिक स्वागत हेतु २४ जनबरी १९९०क अएलाह । हनुमानजीक विशालकाय मुर्त्ति देखि कए ओ भावविभोर  भए गेलथि । मुदा माघक स्नान संगममे करबाक रहनि । तैँ ओ ओतए ओही राति लौटि गेलाह । माघमेलाक बाद ओ सुनरेखा गाँव स्थित सौबरी ॠषिक आश्रमक जीर्णोद्धार कार्यक्रममे भाग लेबए अएलाह आ तकर बाद वृंदावन चलि गेलाह । ओहिठाम हुनकर स्वस्थ्य बहुत तेजीसँ खराप होबए लागल । देवराहा बाबा एहि समाचारकेँ सुनि बहुत दुखी रहथि । ओ निरंतर हुनकर हालचाल लैत रहलाह । परंतु ओ दबाइ खेबासँ साफे मना कए देने रहथि । खराप स्वास्थ्यक बाबजूद ओ ओहिठामसँ वसंतगाँव स्थित अपन आश्रम अएलाह आ हनुमानजीक पास भावविभोर भए कानए लगलाह । हुनकर आग्रहपर भक्तसभ हुनका कुर्सीपर बैसाकए हनुमानजीक परिक्रमा करओलथि। दोसर दिन भोरे ११ मार्च १९९०क ओ एहि संसारकेँ छोड़ि अनंतमे विलीन भए गेलाह । प्रभुदत्त ब्रह्मचारीजी अपना समयके यशस्वी विद्वान,लिखक आ प्रतिष्ठित संत छलाह । जीवनभरि कोनो-ने-कोनो रूपमे ओ समाजक सेवा करैत रहलाह । ओ  सनातन धर्मक एकटा मजगूत खाम्ह छलाह । हुनकर निधनसँ देश ओ संस्कृतिक अपार क्षति भेल । हुनकर चलाओल गेल काजसभकेँ हुनक शिष्य एवम् प्रशंसक लोकनि आगा बढ़बैत रहथि सएह हुनकर प्रति सही मानेमे श्रद्धांजलि होएत ।