मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2017

पियासल


 

 


पियासल


ओ निम्न मध्यवर्गीय परिवारमे पालल-पोसल गेल छल। मुदा सभ दिनसँ ओकर महत्वाकांक्षा पैघ छलै। गाममे मिडिल स्कूल रहै। महींस चरा कए आबय आ फटलाही अंगा पहीरि कए फक्का फँकैत स्कूल विदा भए जाइत छल। सातमामे जहन वो फस्ट आयल छल तँ  मास्टर सभ ओकर पीठ ठोकि देने रहथिन।

पीठ ठोकैत प्रधानाध्यापजी सेहो कहलखिन-

बाह रे बेटा, अहिना आगू करैत रह..!”

सौंसे गाममे ओकर नाम तेजस्वी, सुशील ओ प्रतिभाशाली बच्चाक रूपमे ख्यात भऽ गेल छलै। आ लोकक लेल धरि ई सभ धनिसन। ओकरा पढ़बाक धुन लागि गेल छलै। किताब लऽ लैत, महींसपर चढ़ि जाइत आ पढ़ैत रहैत। खेबा-पीबाक  कोनो सुधि नहि । मैट्रिकक परीक्षामे ओ जिला भरिमे प्रथम स्थान प्राप्त कएलक। सरकारक दिसिसँ ओकरा ३०० रूपया प्रति मासक छात्रवृति सेहो भेटलैक आ ओ गामसँ दूर बहुत दूर पढ़क लेल चल गेल। कलकत्ता विश्वविद्यालयक ओ सम्मानित छात्र भए गेल छल। एवम् प्रकारेण ओ पढ़िते गेल, बढ़िते गेल।

कलकत्तामे ओकरा रहए जोगर कोनो नीक स्थान नहि भेटि रहल छलै। मास दिन भए गेल रहैक कलकत्ता अएला। मुदा कोनो ठौर-ठेकान नहि भेल छलै। कहियो ककरो ओहिठाम, कहियो कतौ। एहिना मास दिन बीति गेलै।एक दिन विश्वविद्यालयक कॉमन रूममे एसगरे बैसल छल। गुमसुम। एतबेमे ओकरे क्लासक एकटा छात्रा मालतीअएलै आ ओकरा एकटा हल्लुक सन चाटी मारलकै आ एकसुरे बजैत रहि गेलै-

एना कियेक गुमसुम रहैत छेँ? कखनो कऽ  बाज, खेल-कूद। गुम-सुम रहैत-रहैत बिमारे पड़ि जेबेँ।

आलोककेँ ओकर सभटा बातसँ जेना छगुन्ता लागि गेलै। ओ मालती दिश एकटक तकैत रहल। मुदा किछुए कालमे ओ  आत्मलीन भए गेल।

मालतीकेँ ओकर एहि अन्तर्मुखी आकृतिसँ बड़ असमंजस भए गेलै। कनीकाल ओहो गुम्हरल आ फेर ओहि ठामसँ चोट्टे घुमि गेल। आलोक किछु नहि कहलकै। चुप-चाप कहि नहि की की सोचैत रहि गेल? साँझक समय नजदीक छलै। कॉमनरूमक चपरासी कहलकै-

बाबूजी। आब समय समाप्त छैक। रूममे ताला लगतैक।

आलोक चुप्पे ओहि ठामसँ विदा भेल। 

आलोकक जिनगी अहिना अन्हरियामे बीतैत रहल छलै। इजोरियाक प्रत्याशामे जीवि रहल छल। एक-एक डेग संघर्षक पृष्ठभूमिमे कहि नहि ओकरा केमहर लय जाइत छलै। मुदा ओ चलिते रहल छल। नेनासँ अखन धरि कष्ठ कटैत-कटैत ओकर संवेदनशीलता शीथिल भए रहल छलै। प्रकृतिक सौन्दर्यसँ दृष्टि हटल जा रहल छलै। ओहि समयमे मालतीक संग ओकर भेँट जेना ओकर दृष्टिकेँ एकदम बदलि देबाक हेतु तत्पर भए गेल होइक। यद्यपि ओ मालतीसँ भरि पोख गप्पो नहि केने छल, मुदा कहि नहि ओकरासँ किएक एहन आत्मीयता बुझाइत छलै।

मालती सौन्दर्यक प्रतिमूर्ति छल। ओकर स्वभावक संतुलन, एवम् दृष्टिक मार्मिकता एक-एक शब्दसँ अन्दाजल जा सकैत छल। ओ कोनो बहकल लोक नहि छल। मुदा ओकरा आलोकक प्रति एकटा स्वत: स्फूर्त, स्नेह उभरैत छलै। संभवत: ओ आलोकक संघर्षक प्रति अधिक संवेदनशील भए गेल छल। आलोककेँ कलकत्ता नगरमे अएला डेढ़ माससँ ऊपर भऽ गेल छलै। मुदा ओकरा अखन धरि रहए जोगर मकान नहि भेटि सकल छलै।

मालतीक मकानमे बहुत रास जगह छलै। आसानीसँ ओ एकटा कमरा आलोककेँ दए सकैत छल। मुदा आलोकसँ किछु कहबाक ओकरा साहस नहि होइत छलै। आलोकक गंभीर मौन ओ तजस्वी व्यक्तित्व जखन कखनो ओकरा सामने पड़ैत छलै ओ ओहिनाक ओहिना रहि जाइत छल।

एही क्रमे मास दिन आर बीति गेल। कॉमन रूममे एकबेर फेर आलोक भेट गेलै। बेश दुखी बुझाइत रहैक। मालतीकेँ नहि रहल गेलै। पुछलकै-

की बात छै? आइ बड़ उदास लागि रहल छेँ?”

आलोक चोट्टे कहलकै-

गाम घुरि रहल छी। लगैत अछि आब आगा पढ़ब भागमे नहि लिखल अछि।

मालती पुछलकै-

किएक?”

आलोक गुम्म रहि गेलै। मालती कहलकै-

चल हमरा संगे।

आलोक ओकरा पाछू-पाछू विदा भेल।

मालतीक बाप पुलिसक एकटा वरिष्ठ अधिकारी छलखिन आ पश्चिम बंगाल कैडरमे काज कए रहल छलखिन। मात्र दूटा लड़की छलनि। शीला ओ मालती। शीलाक वियाह, द्विरागमन सभ किछु सम्पन्न भए गेल छलै। मालती कलकत्ता विश्वविद्यालयक आइ.ए.क. छात्रा छल। बड़ीटा मकान खाली खाली रहैत छलै। डी.आइ.जी साहैब आलोककेँ देखिते प्रभावित भए गेलाह। गंभीर, तेजमय व्यक्तित्व। संघर्षक समयमे आलोक व्यक्तित्व आर तेजस्वी भए गेल छल। मालती ओकर गुम्मी, ओकर प्रतिभा आ सभसँ बेशी ओकर सौम्यतापर मंत्रमुग्ध छल। डी.आ.जी. साहेब तेज लोक छला। आलोकक प्रतिभाकेँ ओ एकदम तारि गेलाह। आलोकक सभ वृतान्त मालतीक मुहेँ सुनने छलाह। कहलखिन-

आलोक। ई अहींक घर अछि। निश्चिन्त भए रहू। कोनो बातक प्रयोजन हो तँ नि:संकोच बता देल करब। संगहि मालतीकेँ कखनोक पढ़ा देल करबै। गणित कमजोर छैक। सुनैत छी अहाँ गणितमे वेश मजगूत छी।

अपना बारेमे एकटा अतिचर्चित व्यक्तिसँ एतेक रास गप्प सुनि कए आलोक गुम रहि गेल। मालती अपन पिताक गप्प-सप्पसँ बेश प्रसन्न छल। ओकरा सैह उमीदो छलै।

आलोक आ मलती आब संगे संग रहैत दल। संगे पढ़ैत छल, कालेज जाइत छल आ कहि नहि कतेक काल धरि संगे गप्प-सप्प करैत रहैत छल। आलोक निश्छल भावसँ कहि नहि ओकरा की की कहि जाइत छल। मुदा मालती लेल धनसन। ओ सभ चुप्पे सहि जाइत छल।

आइ.ए.क परीक्षा नजदीक छलै। दुनू गोटे परीक्षाक तैयारीमे भिड़ल छल। आलोकक सहारा भेट गेलासँ मालती सेहो नीक पढ़ाइ कए रहल छल। दुनू गोटे परीक्षा देलक आ नीकसँ परीक्षा पास कए गेल। आलोक विश्वविद्यालयमे प्रथम स्थान प्राप्त केने छल।

मालती प्रथम श्रेणीमे नीक नम्बर अनलक। डी.आइ.जी. साहेब आलोकसँ बड़ प्रशन्न छलखिन। मुदा आलोक लेल धनसन। जाहि आदमी लऽ कऽ शहर भरिमे धूम मचल छल, सैह आदमी गुमसुम कोठाक ऊपरी मंजिलपर कहि नहि की की सोचबामे व्यस्त छल।

डी.आइ.जी. साहेब मालती सहित हुनकर पूरा परिवार आलोककेँ मदति करबामे जान लगा देने छल। मुदा आलोककेँ ई सभ कोना दनि लगै। ओकरा आवश्यकतानुसार सभ किछु भेट गेल रहैक मुदा तैयो वो कहि नहि किएक दुखी रहैत छल। ओकर मोन कखनहुँ कशमशा उठैत छलै। मुदा करय की? अभावक असीम समुद्रमे कतेको काल धरि हेलैत-हेलैत एकटा सहारा भेटल छलै। मुदा लागि रहल छलै जे समुद्रसँ तँ उवरि गेल मुदा ओहि टापूक कोनो गहींर कूपमे डुबि जाएत जाहिसँ फेर वो नहि निकलि सकत।

आखिर डी.आइ.जी. साहेब आ हुनकर परिवार ओकरा एतेक मदति किएक करैत छैक? मुदा करितै की? कोनो दोसर विकल्पो नहि छलै। आगू बढ़य, सहारा छोड़ि दियै तँ फेर वैह असीम समुद्र देखाइत छलै- अभाव, कष्ट ओ संघर्षक चरमोत्कर्ष। कतय जाय? की करय? असमंजसमे जी रहल छल। यैह सभ सोचैत छल की मालती ऊपर आबि गेलै।

मौन एकाएक भंग भेलै। ओकरा एना गुम्म देखि मालती कहि उठलै-

चल, चल नीचा चल। आइयो एहिना गलफुल्ली रखबैं की? तोरे कारण तँ हम एतेक नीक नम्बर लऽ कऽ पास भेलहुँ अछि। चल, तोरा भरि पेट मिठाई खुएबौ।

आलोक हँसल आ मालतीक पछोर धय लेलक। नीचामे डी.आइ.जी. साहेब आ ओकर परिवारक सभ लोक आलोकक प्रतीक्षामे छलाह। ओ सभ आलोकक स्वभावसँ परिचित भए गेल छलाह आ तेँ किछु कहलखिन नहि मुदा ओकर अन्यमनस्कताकेँ तँ ओ निश्चित रूपसँ तारि गेलाह। डी.आइ.जी. साहेब बात बदलैत कहलखिन-

बी.एस-सी.मे केतय नाम लिखैब आलोक। अखन किछु सोचलियैक नहि? हमर विचार तँ अछि जे एहीठाम कलकत्ता विश्वविद्यालयमे नाम लिखाउ। कारण ई नीक विश्वविद्यालय अछि।

आलोक चुप्पे रहि गेल। फेर आन-आन बात होमय लगलैक। ताबतेमे टेलीफोनक घन्टी बजलैक आ डी.आइ.जी. साहेब जरूरी काजसँ ऑफिस विदा भए गेलाह।

मालतीक माए सेहो कतहु उठि कए चलि गेलै। आब मात्र मालती आ आलोक ओतय रहि गेल छल। मालती गप्प शुरू करैत कहलकै-

आलोक। तूँ बड़ नीक लोक छेँ।

आलोक एहि बातपर हँसि देलकै। कहलकै-

नीक तँ छी मुदा...।

मुदा, मुदा किछु नहि! जे कहि रहल छियौ से सुन। एहीठाम रह आ संगे संग दुनू गोटे बी.एस-सी. करब। कोनो बातक चिन्ता नहि कर।

आलोक कहि नहि कोना- हँ कहि देलकै।

मालतीक खुशीक ठेकान नहि छलै। ओ दौड़ल घर गेल आ एक बाकुट मिठाई आनि कऽ आलोकक मुँहमे ठुसि देलकै। आलोक मधुर खाइत चल गेल।

मालती आ आलोक एकटा नामक दू अंश भए गेल छल। भावुकताक संग परिस्थितिक सामंजस्य कऽ लेले छल आलोक। मुदा भावनाक तरंगमे बहि जायब सेहो ओकरा पसिन नहि छलै। ओ अपन लक्ष्यपर अडिग छल। जीवनमे ओकरा बढ़बाक छलै। एही कारण ओ बहुत किछु स्वीकार कए लेने छल। मुदा वो अपनहिसँ लगाओल लत्तीमे ओझराय नहि चाहैत छल। ओमहर मालतीक भावत्मकता सीमोल्लंघन करबाक हेतु उफान केने छल। आलोक एही कशमकशसँ परेशान छल। मुदा बीचमे संग्रामसँ भागि जायब ओकरा मंजूर नहि छलै। ओ मालतीकेँ पढ़य-लिखयमे भरिसक मदति करैक। गप्पो-सप्प कए लैक मुदा ओहिसँ बेशी किछु नहि।

मालतीक मोन ओहिसँ भरैक नहि। असंतोषक रेखा ओकर चेहरापर स्पष्ट देखार भए जाइत छलै। संतुलन बनएवाक दृष्टिसँ आलोक कहियो काल डाँटिओ दैक। मुदा मालतीकेँ ओकर डाँटो मीठे लगै।

आलोकक स्वभासँ मालतीक पूरा परिवार प्रभावित छल। मुदा ओकरा लेल धनसन। ओकर पूरा ध्यान पढ़ाइमे लागल छलै। जे किछु समय बाँचल रहैक से मालतीकेँ पढ़बऽमे लगा दैक। बश आर किछु नहि।

मालती ओ आलोकक प्रगाढ़ अन्तरंग सम्बन्ध ओकर माए-बापकेँ छलै मुदा ओ सभ आलोकक स्वभावसँ परिचित छलाह। मालती भलेँ बड़ भावुक छल, मुदा आलोकक संतुलित, संयत ओ अन्तर्मुखी व्यक्तित्व अपेक्षाकृत अधिक विश्वसनीय छलै। ओमहर आलोकक अन्तर्मन ओकरा प्रति कएल गेल उपकारक भारसँ दबल छलै। ओकर किछुओ सहारा सधि जाइक ताहि हेतु ओ मालतीकेँ पढ़बैत रहैत छल।

बी.एस-सी. परीक्षाक मात्र दू मास शेष रहि गेल छलै। प्रतिदिन १०-१२ घन्टा वो स्वयं पढ़ैत छल आ शेष समयमे मालतीकेँ पढ़बैत रहैत छल।

परीक्षाक समय ज्योँ-ज्योँ निकट अएलै, ओ मालतीक पढ़ाइक प्रति अपेक्षाकृत अधिक सचेष्ट होमय लागल। ओकर एहि परिश्रमक परिणाम भेलै जे मालती पुनश्च प्रथम श्रेणीमे पास केलक, संगे आलोक विश्वविद्यालयमे प्रथम स्थान प्राप्त केलक। एकबेर फेर ओकर घरक वातावरण आनन्दमय भए गेलै।

ओहि राति मालतीकेँ निन्न नहि भेलै। कहि नहि की की सोचैत रहि गेल। भोर भए गेल रहैक चारू कात लोक काजमे लागि गेल रहैक। मुदा आलोकक कतहु पता नहि रहैक। किएक भेलै एतेक अबेर उठबामे? से सोचैत ओ आलोकक घर दिश बढ़ल। घरक केबाड़ी खूजल छलै। चौकीपर एकटा चिट्ठी राखल छलै। आर किछु नहि।

मालती ई देखि अवाक् रहि गेल। चिट्ठी खोलि कए पढ़य लगल-

 

प्रिय मालती!

बहुत रास गप्प करबाक मोन छल। मुदा कहि नहि कियै किछु बजाइत नहि छल। तोरो बहुत रास गप्प करबाक इच्छा रहल होयतैक सेहो हमरा बूझल अछि। तोरा लोकनिक उपकारक भारसँ हम ततेक दबि गेल छी जे आब एको घड़ी एहिठाम नहि रहि सकब। कहि नहि तोहर सभहक कर्जा किछुओ सधा सकबौक की नहि। माफ करिहेँ।

तोहर

आलोक।

मालती आकाश दिश शून्य भावसँ देखैत रहि गेल। जेना इनार लग रहितो पियासल रहि गेल हो….।