इलाकाक चर्चित व्यक्तित्व छलाह-डा० सुभद्र झा
। धोती,मिरजइ सन कुर्ता पहिरने अत्यन्त सरल, साधारण लिबासमे डाक्टर साहेब अड़ेर हाट चौकपर बरोबरि देका
जएतथि । गप्प-सप्पमे ओ अपन बिचार अति स्पष्टतासँ रखैत छलाह ।ताहि क्रममे जौं
कने-मने विवादो भए गेल किंवा क्यो कटाक्षो कए देलक दँ कोनो बात नहि ।
मिथिलेटा नहि,अपितु समस्त भारतवर्षमे तत्कालीन विद्वान लोकनिमे हुनकर प्रतिष्ठा छलनि । हुनकर
विषयमे किछु कहब आ लिखब कठिन काज अछि तथापि स्मरणमे किछु घटना अछि जे लिखि रहल छी
।
घटना सन् १९६५-६६ ई० क थिक । नवतुरियासभ गाममे
एकटा पुस्तकालय स्थापित करए चाहैत चलाह । किछु दिनक प्रयासक वाद किछु पोथी ,किछु पैसा चंदा भेल । किछु आलमारी सेहो बनाओल गेल । तकर बाद भेलैक जे ओकर उद्घाटन कएल जाए।
उद्घाटन के करताह ? आपसी विचार- विमर्शक
बाद डा० सुभद्र झाक नाम पर आम सहमति भेल । डा० सुभद्र झा किछु दिन पूर्व सेवा निवृत
भए गामे रहए लागल छलाह । आ यदा-कदा हमर गामक चौकपर अबैत-जाइत देखा जाइत छलाह । उद्घाटन
कार्यक्रममे डा० सुभद्र झाकेँ सेहो किछु कहबाक आग्रह कएल गेल । बहुत दुराग्रह कएलापर
ओ बजबाक हेतु तैयार भेलाह ।संक्षिप्त भाषणक क्रममे ओ कहलनि जे एहि इलाकामे अनुसंधानक
हेतु पर्याप्त सामग्री यत्र-तत्र पसरल अछि । ओकरासभ केँ एहन पुस्कालयमे सुरक्षित राखल
जा सकैत अछि । संगहि कबीरदासपर उपलव्ध सामग्रीक उल्लेख करैत ओ कहलाह जे एहि बातक प्रमाण
अछि जे कबीरदास मैथिल छलाह आ मैथिलीमे कतेको रचना कएलनि अछि ।
१९७३ ई०मे लगभग एक मास डा० सुभद्र झाक राँची स्थित
आवास पर रही। तखन ओ योगदा सतसंग विद्यालयक प्राचार्य रहथि । ओही परिसरमे प्राचार्यक
निवासमे ओ रहैत छलाह। हुनका संगे परिवारक आर
सदस्य नहि छल । घरक काज करबाक हेतु एकटा नौकर छल । भोजन ओ स्वयं बनबैत छलाह ।
प्रातःकाल भात-दालि-आलूक सन्ना बनाबथि। रातुक
भोजनक व्यवस्था सेहो तखने कए लेथि। रातिमे बेसी काल आँटाक चोकरकेँ दूधमे उसनि कए खाइत
देखिअनि । रातिमे सूतबासँ पूर्व ओ नियमित रूपसँ पढ़ैत छलाह ।साँझमे तिन-चारि गोटे बैसि
कए शास्त्र चर्चा करैत छलाह।एक दिन साँझमे डाक्टर साहेबक संग कतहु जाइत रही ।रिक्साबला
सब जतेक पाइ मांगै,से देबाक हेतु ओ
तैयार नहि होथि ।रिक्सातकैत-तकैत अन्ततः सौंसे रास्ता बिति गेल ।
एक दिन एहिना संगे टहलैत रही तँ साईबाबाक चर्चा
उठल । ओ हुनकर बहुत प्रशंसा करथि आ कहथि जे साईबाबा सरिपहुँ सिद्ध पुरुष छथि जकर हुनका
प्रत्यक्ष अनुभव तखन भेल रहनि जखन ओ बाबाक आश्रममे सिरडी गेल रहथि । कहलाह जे आश्रममे
हुनका पहुँचते देरी बाबा हुनकर मोनक प्रश्नक उत्तर देबय लगलखिन । आरो कएकटा प्रसंगसभ
ओ सुनओलथि ।
योगदा सतसंग महाविद्यालय नवे बनल छल । डाक्टर
साहेब पूर्ण तत्परतासँ ओहि विद्यालयक विकासमे
लागल रहैत छलाह । परिसरमे आश्रमक आबास होइत छल । चारूकात गाछ सभक बीचमे बनल
भाषण मंडपसभ । ओही परिसरमे एकदिस आश्रम छल जाहिमे एक दिन माँ आनन्दमयी आयल रहथि । हम
डाक्टर साहेबक संगे ओतए रही । माँ आनन्दमयीक अबितहि पूरा हाँलमे शांति पसरि गेल । ओ
किछु बजली नहि । चुपचाप सभगोटे ध्यान केलक।कोनो भाषणबाजी नहि भेल ।
एकदिन डाक्टर साहेबक डेरापर आंगनमे ठाढ़ रही ।
हमरा देखि डाक्टर साहेब गंभीर भए गेलाह आ कहला जे नीकसँ पहिरल-ओढ़ल करह । जीवनमे सफलताक
हेतु एहिसभकेँ बहुत महत्व अछि । ताहीक्रममे कहलाह जे एही कारणे ओ कएक बेर उच्च पदसभक
चयनमे पछड़ि गेलाह यद्यपि ओ पदक हेतु पूर्ण योग्य रहथि ।
डाक्टर साहेबक दोसर पुत्र भास्करजी इलाहाबाद विश्वविद्यालयमे
जर्मन भाषाक व्याख्याता छलाह । हुनकर डेरापर डाक्टर साहेब अबैत -जाइत रहैत छलाह । सन्१९८३
ई० क गप्प अछि । एकदिन हम हुनका दुनू गोटेकेँ नोत देने रहिअनि । दुनूगोटे कोनो कारणसँ
आगा-पाछा भए गेलाह । डा० झा पहिने चलल रहथि । भाष्करजी पाछू चललाह आ डेरापर पहुँचि
कए बहुत परेशानीमे रहथि जे आखिर ओ कतए चलि गेलाह । हमसभ गोटे हुनका ताकए लगलहुँ । कतहु
नजरि नहि आबथि । रातुक समय छल । भोजनमे विलंब भए रहल छल । ताबत थोड़े कालक बाद मकानक
नीचासँ ओ जोर-जोरसँ हमर नाम लए कए चिकरि रहल छलाह।हमरा सभकेँ जानमे जान आएल । पता लागल
जे ओ हमर डेरा तकैत-तकैत धोबी घाट चलि गेल रहथि । हमर मकान मालिक धोबी छल आ तकरे अनुमानमे
ओ धोबी घाट चलि गेल छलाह ।
डाक्टर साहेब अति अध्ययनशील छलाह । जखन कखनो फुरसतिमे
रहितथि तँअध्ययन करए लगितथि । एकदिन प्रातः एगारह बजे इलाहाबाद मे भाष्करजीक डेरा पर
गेलहुँ । डाक्टर साहेब ओतहि रहथि । कहलाह जे हम एगारह घंटासँ निरन्तर पढ़ि रहल छी ।
मैथिलीमे शव्दकोशक निर्माणमे लागल छलाह। एकदिन हम डाक्टर साहेबक संगे इलाहाबादमे कतहुँ
जाइत रही । रस्तामे पुछलिअनि जे भगवान छथि कि नहि? ओ उत्तर देलनि जे ई कहब तँ कठिन अछि जे भगवान छथि कि नहि परन्तु जौँ भगवान छथि
तँ बहुत बइमान छथि,कारण दैत ओ कैटा
उदाहरण देलनि । जेना पेटमे बच्चा किएक मरि जाइत छैक ? आखिर ओ जन्मसँ पूर्वे की गलती केलक ?आ जौँ गलती केलक तँ जनमि कए ओकरा भोगए । गप्पक क्रममे ओ कहलाह
जे सम्प्रति जीबैत लोकमे बिहारमे संस्कृतक सभसँ पैघ विद्वान छथि ।
साहित्य अकादमीक तत्कालीन अध्यक्ष डा० सुनीति
कुमार चटर्जीक ओ बहुत प्रशंसा करथि आ कहति जे हमरा लेल ओ भगवाने छलाह । डाक्टर साहेबक
संगे एकदिन टहलैत रही। गप्पक क्रममे ओ अपन प्रवासक दौरान भेल दू गोट घटनाक चर्चा कएलनि
। डाक्टर साहेब ट्रेनसँ कतहुँ जाइत रहथि । कोनो टीसनपर गाड़ी रूकल तँ डाक्टर सर्वपल्ली
राधाकृष्नन ओहिमे सवार भेलाह ।डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्नन बैसबाक हेतु घुसबाक हेतु कहलखिन।डाक्टर सुभद्र झा
अड़ि गेलाह एवम् डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्नन केँ जगह नहि देलखिन ।राँचीमे गप्पक क्रममे
एकदिन डाक्टर साहेब कहलाह जे ओ पुस्तकालयमे
नौकरी करैत रहथि । ओही क्रममे हुनकासँ जे श्रष्ठ पदपर अधिकारी छलाह से हुनकासँ किछु
गलत काज कराबए चाहैत छलाह।ओ से करबाक हेतु सहमत नहि भेलाह । ताहिसँ कुपित भएकए ओ अधिकार
हिनका बहुत तंग करैत छलनि । डाक्टर साहेबकेँ पता रहनि जे ओ अधिकारी गलत काज करैत अछि।
चुपचाप ओकर गलत काज बला कागजातक प्रतिलिपि ओ रखैत गेलाह । पुस्तकक क्रय-विक्रय मे ओ
अधिकारी बहुत हेरा-फेरी केने छलाह,जकर कागजी सबूत डाक्टर झा लग छलनि ।बादमे एहि बातक आरोप भेल एवम् जाँचक बाद ओ अधिकारी
दोषी साबित भेल । अपनाकेँ बचाबक हेतु ओ चाहलक जे पुस्तकालयकेँ जे क्षति भेल रहैक से
आपस करी मुदा ओकर परिवारक लोक पैसा आपस नहि कएलक । एहिबात सभसँ दुखी ओ भयभीत भए ओ आत्महत्या कए लेलक।
डाक्टर झा सँ जे कनी-मनी हमरा संपर्क भेल ओकरा संयोग कहि सकैत छी
। बच्चेसँ हम हुनकर नाम सुनैत रही । सौँसे इलाकामे ओ चर्चाक विषय रहथि आ छोटसँ पैघ
लोकक संपर्कमे सहजतासँ अबैत छलाह । ओ धुनक पक्का छलाह । जाहि काज मे लागि जाथि तकरा
पूर्ण करबाक हेतु प्राण-प्रणसँ जुटि जाथि । हुनका अपन गाममे गाछ सब रोपबाक इच्छा रहनि।
कहि नहि,कतए-कतएसँ आनिकए सालक साल ओ आमक गाछ रोपैत रहलाह ।
हुनक प्रतिभा ओ विद्वताक वर्णन करबाक कोनो आवश्यकता नहि बुझा रहल
अछि।आडम्वर रहित जीवन शैली एवम् अतिशय सहज व्यवहारक संग स्पष्टवादिताक लेल ओ सभ दिन
मोन पड़ताह । धोती-कुर्ता पहिरने, पैरे खेतक आरिए-आरिए
चलैत-चलैत पता नहि ओ निरन्तर कोन चिंतनमे ध्यानमग्न रहैत छलाह । अपन मौलिकता एवम् अपन
बातकेँ दृढ़तासँ रखबाक लेल ओ सभ दिन मोन पड़ैत रहताह ।