मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

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शनिवार, 11 अप्रैल 2020

कोरोना का प्रकोप



कोरोना का प्रकोप



आज से छ महिने पूर्व सायद किसी ने कोरोना शब्द सुना भी नहीं होगा । एकाएक नबंबर-दिसंबर में चीन से कोरोनाका आगाज हुआ । तब भी अधिकांश लोग यही सोचते रहे कि मामला चीन का है और उधर ही सलट जाएगा । हम तो दूर-दूर तक उस से प्रभावित नहीं हो सकते  हैं । इसी सोच के कारण चीन में हो रहे व्यापक प्रसार के बाबजूद दुनिया के तमाम देश अपने-अपने देशों में इस विमारी से बचने के लिए किसी भी प्रकार से रक्षात्मक उपाय करते नहीं दिखे । सायद उन्हें कोरोना के विनाशकारी प्रभाव का ज्ञान नहीं हो सका था ।

इसमें कोई शक नहीं कि चीन तब तक भुक्तभोगी होने के कारण दुनिया का मार्गदर्शन कर सकता था और कोरोना के दुष्प्रभाव से अन्य देशों को बचा सकता  था । परंतु उसने ऐसा किया नहीं । ऐसा क्यों हुआ इसका उत्तर ढूंढ़ने मे सायद बहुत वक्त लगेगा । लेकिन इतना तो तय है कि चीन के इस नीति से दुनिया के तमाम देश आज विनाश के कगार पर खड़े दिख रहे हैं । दुनिया में आर्थिक और वैज्ञानिक दृष्टि से संपन्न युरोप,अमेरिका सब के सब निरुपाय,हतप्रभ हो गए । तमाम प्रयासों के बाबजूद उनके हजारों नागरिक अकाल मृत्यु के  शिकार हो गए । पूरे विश्व में लाखों नागरिक कोरोना से अभी  भी संक्रमित हैं।

जब सारी दुनिया इस अज्ञात विमारी से इस तरह जूझ रहा हो तब हमारा देश इस से कबतक बच सकता था । यद्यपि हमारे आदरणीय प्रधानमंत्रीजी ने समय रहते  अद्भुत दूरदर्शिता का परिचय देते हुए संपूर्ण देश में २१ दिनका लाकडाउन लगा दिया ,लेकिन इस व्रह्मास्त्र का लाभ जितना मिल सकता  था उतना होता नजर नहीं आ रहा है । दुनिया के तमाम देश और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने माननीय मोदीजी द्वारा लिए गए कड़े कदम की सराहना की है । परंतु कुछ लोग हैं जो इस आपत्ति काल में भी बहरे-अंधे बने हुए हैं । इतना ही नहीं,कुछ लोग तो अपनी मूर्खतापूर्ण व्यवहार से इस घातक विमारी को बढ़ाने का काम कर रहे हैं । हद तो तब हो गई जब राजधानी में कुछ लोगों ने  जाने-अनजाने हजारों कोरोना मरीज उतपन्न कर उन्हें सारे देश में फैला दिया। परिणामतः देश के जो क्षेत्र संयोग से कोरोना से बचे हुए थे वे भी  इसके चपेट में आते हुए नजर आ रहे हैं ।

सोचने की जरुरत है कि आखिर प्रकृति ने कोरोना जैसे संकट का अविष्कार क्यों किया? कहीं ऐसा तो नहीं कि हमने लगातार  हो रहे वैज्ञानिक उपलव्धियों के घमंड में संपूर्ण प्रकृति को ही चुनौती दे डाला हो और यह संकट इसी का प्रतिफल हो? सायद प्रकृति कह रहा हो-देखा आपने तो बहुत उछल-कूद किया,चंद्रमा पर चले गए,मंगल ग्रह की परिक्रमा भी कर डाली,पृथ्वी पर तरह-तरह के औजार बनाकर तमाम प्राणियों के लिए संकट उतपन्न करते रहे,परंतु अब यह सब बेकार क्यों हो गया? एक मामुली सा वायरस संपूर्ण पृथ्वी पर हाहाकार मचा रखा है । क्या राजा,क्या रंक सब परेसान हैं । ब्रिटेन के प्रधान मंत्री से लेकर नोएडा के झुग्गी में रहने वाले मजदूर सभी प्राण बचाने में लगे हए हैं । अमेरिका जैसे शक्तिशाली देशके राष्ट्रपति भारतके प्रधानमंत्री को गुहार लगा रहे हैं कि मलेरिया की दवाई दे दीजिए । बताइए यह सब क्यों हो रहा है? संभवतः प्रकृति यह शिक्षा दे रही है कि अब बहुत हो गया । कृपया अपनी जिंदगी बचाना चाहते हैं तो दूसरे जीव-जंतुओं को बक्स दीजिए । अपना घमंड छोड़िए । देखिए आप का जीवन कितना लघु है । पानी के एक बुलबुले की तरह आप भी आए-गए हो जाएंगे । कृपया प्रकृति माता द्वारा निर्मित अद्भुत संतुलन को मत बिगाड़िए। तभी आप सुखी और सुरक्षित रह पाएंगे ।

मनुष्य ने अपने वुद्धि के वल से नाना प्रकार के संसाधनों का अविष्कार किया है । तरह-तरह की विमारियों के इलाज हेतु अचूक दवाइओं का निर्माण भी किया है । यहाँ तक कि जरुरत पड़ने पर शरीर के अंग तक बदल दिए जाते हैं । पहले मामुली विमारियों से लोक मर जाते थे । क्रमशः कैंसर जैसे भयानक विमारियों का भी काफी हद तक इलाज संभव हो गया । इब सब कारणों से मनुष्य में घमंड आ गया कि वह जो चाहे कर सकता है । यहाँ तक कि प्रयोगशाला में इक्षित गुणों वाला मनुष्य उतपन्न कर लेने का प्रयोग भी होने लगा । इतना ही नहीं ,मनुष्य ने अपने सामर्थ्य के घमंड में तमाम जीव-जन्तुआओ का जीवन कठिन कर दिया । ऐसा लगने लगा जैसे इस पृथ्वी के समस्त वैभव पर उसका एकल अधिकार हो । कहते हैं कि चीन में तो किसी भी जानवर,पक्षी को नहीं छोड़ा जाता है । वहाँ के लोग चमगादर,साँप और पता नहीं क्या-क्या खा जाते हैं हैं । यहीं सबसे बड़ी भूल हो गई । वैज्ञानिकों का मत है कि चमगादरों के खाने से ही करोना वायरस का जन्म हुआ।

करोना वायरस कितना खतरनाक है ,यह अब सभी जानते हैं । दुनिया भर में हजारों लोक इस विमारी से अपनी जान गवाँ चुके हैं । लाखों लोग विमार हैं । शहर-के-शहर बंद कर दिए गए हैं । स्कूल,कालेज,कारखाना,न्यायालय सभी बंद कर दिए गए हैं । लोगों को अपने-अपने घरों में ही बंद रहने के लिए कहा गया है । निश्चय यह संपूर्ण मानवता के लिए एक इम्तहान का क्षण है । घरों में बंद लोगों का ऊब जाना स्वभाविक है । सबाल है कि लोग कबतक इस हालात में रह पाएंगे? लगातार चल रहे लाकडाउन से जरुरी सामानों का उत्पादन भी प्रभावित होगा । लोगों के क्रयशक्ति में ह्रास होगा । कहने का तात्पर्य यह है कि इस विमारी के चपेट में पड़े दुनियाके तमाम देश आज त्राहिमाम् कर रहे हैं । दुर्भाग्य की बात है कि तमाम कोशिशों के बाबजूद अपना देश भी इस महामारी का शिकार होता जा रहा है । इस विमारी से कुछ लोगों का जान बचा भी है,परंतु उससे कई गुना लोग अस्पतालों में भर्ती होकर इलाज करबा रहे हैं ।

निश्चित रूप से सारी मानवता आज महान संकट से गुजर रही है । दुनिया भर में लाखों लोग विमार हैं । मनुष्य का सारा पुरुषार्थ कोरोना के आगे नतमस्तक है । अभी तक हजारों लोग अपनी जान गवाँ चुके हैं । यद्यपि दुनिया भर के वैज्ञानिक दिन-रात परिश्रम कर रहे हैं कि इस विमारी से बचने का कुछ तरीका निकले परंतु अभी तक ऐसा कुछ हुआ नहीं है । आशा करते हैं कि जल्द ही इस विमारी का इलाज ढूंढ़ लिया जाएगा और पृथ्वी पर एक बार फिर से वही प्रसन्नता व्याप्त हो सकेगी जो कभी हुआ करती थी 

हर परजाय में जय की संभावना छिपी रहती है । सायद इसबार भी यही हो । लोक  इस परेशानी के दौर से निजात पा भी लें तो भी इन्हें सदा-सर्वदा के लिए एक सीख तो मिल ही जाएगी। वह यह कि प्रकृति से ज्यादा छेड़छाड़ उचित नहीं है । अगर प्रकृति का धैर्य टूटा तो पता नहीं क्या हो? संभवतः हम आगे चलकर प्रकृति को ज्यादा तरजीह दें और तमाम जीव -जन्तुओं के जीवन की रक्षा वैसे ही करना सीखें जैसा हम अपने लिए प्रयत्नशील हैं ।



लेखकःरबीन्द्र नारायण मिश्र

Email:mishrarn@gmail.com