मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

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सोमवार, 3 दिसंबर 2018

जीवन संगीत


जीवन संगीत



            अपना ओहिठाम कहल जाइत अछि जे चौड़ासीलाख जोनिमे सबसँ श्रेष्ठ जोनि मनुक्खक होइत अछि। कर्मवश,प्रारव्धवश लोक नाना प्रकारक जोनिमे भटकैत रहैत छथि ।  बहुत  तपस्या कही,धर्म कही जे कही केलाक बादे मनुक्खक जोनिमे जन्म होइत अछि । कहब जे एहन कोन बात छैक जाहिसँ मनुक्खक जोनिकेँ एतेक प्रमुखता देल गेल अछि । हमरा जनतबे सभसँ विशेषता तँ इएह अछि जे एहि जीवनमे  अहाँ कर्मकए प्रारव्धोकेँ  बदलि सकैत छी । गाछ-बृच्छ ,चेड़ै-चुनमुन,कीट-फतिंगा सभमे जीवनक समस्त लक्षण देखबामे अबैत अछि । मुदा कर्म करबाक स्वतंत्रता आ तदनुसार जीवनकेँ  दिशा देबाक सामर्थ्य मनुक्खेक बशमे बुझाइत अछि ,आन कोनो जीव-जन्तुमे अद्यावदि ई शक्तिक जानकारी तँ अखन धरि नहि भेलैक अछि । तेँ मनुक्खक जन्म सर्वोपरि मानल-जानल जाइत अछि ।

आइ-काल्हि जीवनमे भौतिकता ओ बाजारवादक ततेक प्रमुखता भए गेल अछि जे हमसभ सभ चीजकेँ पाइसँ  तुलना करैत रहैत छी । अमुक काज केलासँ हमरा कतेक फैदा होएत,कतेक पाइ भेटत  ?हम की करी जे जल्दीसँ जल्दी इलाकाक सभसँ पैघ धनीकमे हमर सुमार भए जाए । माने लोकसभ जेना एकटा अंतहीन प्रतिस्पर्धामे सामिल छथि । हमर एकटा मित्र जे प्रसिद्ध चिकित्सक छथि एकदिन कहैत रहथि -" आइ-काल्हि लोक टाका कमेबाक चक्करमे धीओ-पुताक जन्म तरह-तरहक व्योंत कए टाड़ि रहल छथि मुदा एकटा समय अबैत अछि जखन सभटा कमाओल टाका एकटा बच्चाक जन्म  हेतु खर्च करबाक हेतु तैयार रहैत छथि आ कैओ दैत छथि तथापि कैबेर निराशा हाथ लगैत छनि , वच्चा नहि होइत छनि। कहक माने जे जीवनमे सभ चीजक अपन महत्व छैक । सभचीजक अपन समय छैक । हमरा लोकनिकेँ एकटा संतुलन बनाएब जरूरी अछि नहि तँ बादमे पश्चातापे केलासँ की होएत? का बरखा जब कृषि सुखाने?  तेँ समयक इसाराकेँ बुझबाक चाही । ई बात बुझबाक चाही जे सुख एकटा भिन्न बस्तु थिक । खोपड़िओमे किओ महराइ गबैत सुखी जीवन जीवि सकैत अछि आ महलोमे रहनिहार समस्त सुख सुविधा अछैत निन्न बिना राति भरि टकटकी लगओने रहि सकैत छथि आ निन्नक गोली खाइत रहैत छथि।

ओना तँ  धन -संपत्तिक कोनो अंत नहि अछि मुदा जीवन जीवाक हेतु मौलिक सुख-सुविधा तँ चाहबे करी । रहए लेल घर,पहिरए हेतु वस्त्र आ भुख लगलापर दुनूसाँझ भोजन तँ चाहबे करी । हे चलू,तकरबादो जँ कनी-मनी उपरा भए गेल तँ बुझु जे भात-दालिक बाद दहीक छऔक काज करत । की एतबोपर लोककेँ संतोख होइत छेक? नहि होइत छैक । आओर इएह थिक अशांतिक जड़ि । कारण जखन हम आवश्यकतासँ बेसी जमा करबाक फिराकमे पड़ब तँ जाहिर छैक जे ककरो वाजिब हक मारल जाएत । जखन किओ सभटा धान अपन बखारीमे एहि लेल भरि लैत छी जे ओकर पौत्र-प्रपौत्रकेँ काज आओत तँ की होएत ? अधिकांश लोक भुखले पेटे सुतत । परिणाम ? अशांति,जनआक्रोश छोड़ि आओर की भए सकैत अछि?सौंसे संसारमे  जरुरत भरि वस्तु भगवान प्रकृतिमे भरि देने छथि । नानाप्रकारक फल,फूल,तरकारीसँ ई पृथ्वी भरल छथि । मुदा हमरासभक स्वार्थी प्रवृतिक कारण अखनो,एहू युगमे जतए विज्ञान एतेक बढ़ि गेल अछि,लाखो लोक भुखले सुतैत अछि । छैक ने दुखक बात?

जहिना जीबाक हेतु मौलिक आवश्यकताक पूर्ति जरूरी अछि तहिना इहो जरूरी अछि जे हमसभ अनावश्यक संग्रह नहि करी । अपना ओहिठाम अयाची मिश्रक कथा बहुत प्रसिद्ध अछि । अत्यंत अभावमे रहितहुँ ओ महराजक मदति स्वीकार नहि केलनि । जे किछु हुनका भगवान देने छलखिन ताहीमे चैनसँ ओ जीबैत छलाह । कोनो हरहर खटखट नहि । दिवस्य अष्टमे भागे शाकं पचति यगृहे । कहक मतलब जे दिनमे एकबेर खाउ आ मस्त रहू । ने उधो का लेना ने माधो का देने । सारांश जे संतोख बड़का बस्तु थिक । संतोखक विना हमसभ सुखी नहि भए सकैत छी ।

जीवनमे सुखी रहबाक हेतु शांति बहुत जरूरी अछि । गीतामे भगवान कहैत छथ-"अशांतस्य कुतो सुखम्" । जिनका शांति नहि तिनका सुख कहाँ? शांतिपूर्वक जीवन चलाएब सेहो कला थिक । बहुत देखाबामे किंवा पैघ- पैघ पद भेनहि जीवनमे सुख होएत से जरुरी नहि अछि । सही बात तँ ई थिक जे पैघ पद प्राप्त भए गेलाक बाद लोक ओकरा बचेबाक फिराकमे दिन-राति व्यग्र रहए लागैत छी । ताहि हेतु जरूरी अछि जे जीवनमे संतोखक भाव आबए । से भेनहि  शांति  भए सकैत अछि । ऐकटा खोपड़ीमे रहनिहार सुखी भए सकैत अछि जँ हुनका संतोख छनि,नहि तँ भूत जकाँ लोक बौआइत रहि जाइत अछि ।

जीवन ओहो मनुक्खक एकटा अद्भुत वरदान अछि । प्रकृति अपन संपूर्ण सामर्थ्यसँ समस्त जीव-जन्तुक निर्वाहक हेतु पर्याप्त साधनक जोगार केने अछि । वायु विना हमसभ कतेक काल जीवि सकैत अछि? कनीको काल नहि । पानि पीने विना कतेक दिन जान बाँचत? तहिना सूर्यक प्रकाश , पृथ्वीक आधार हमरासभकेँ प्रकृतिक उपहार अछि । मुदा मनुक्ख अपन स्वार्थमे आन्हर भए सभकिछुपर अपन अधिकार जमओने जा रहल अछि जाहिसँ जीवनमे एतेक संघर्ष अछि । एकगोटे अपन कै पुस्तक हेतु धनसंग्रह करबामे परेसान छथि तँ दोसर केँ अजुको भोजनक समस्या रहैत अछि । जखन एहन असमानता रहत तखन समाजमे सुख,शांति कोना होएत?

जीवनक आनंदकेँ हम अपनाकेँ दोसरक दुख-सुखसँ जोड़ि कए बेसी नीकसँ अनुभव कए सकैत छी । जखन चारिगोटे मिलिकए कोनो गीत गबैत छी तँ केहन सोहनगर लगैत अछि । सोचिऔ जँ सभ गोटे मिलि कए एकहि भावसँ जीवी,रही तँ कतेक नीक लगतेक । लोक कतेक सुखी रहत । से तँ तखने होएत जखन आपसमे सहयोग आ समाधान होइ । से भेलासँ संपूर्ण वातावरणमे आनंदक बरखा होइत रहत आ जीवनक सही मानेमे  हमसभ आनंद उठा सकब ।