१२ नवम्बर २०१६ ७ बजे साँझमे हमर माए दयाकाशी देवीक देहावसान
भए गेल। ओ ९४ बरखक छलीह। पछिला दू सालसँ दहिना जाँघक
हड्डी टुटि गेलासँ ओ कष्टमे छलीह। दरभंगामे हमर अनुज(सुरेन्द्र नारायण मिश्र)क घरक आँगनमे भोरे ओ खसि पड़लीह आ जाँघक हड्डी टुटि गेलनि। हुनकर
इलाज दरभंगामे एकटा प्रसिद्ध चिकित्सकक ओहिठाम भेल। परन्तु हुनकर हड्डी ठीकसँ नहि जुटलनि। टुटलाहा पएर तीन इंच छोट पड़ि
गेलनि जाहिसँ हुनक चलब दुरुह भए गेल।
मृत्युक समय हम ओहीठाम रही। एकदिन पूर्व दिल्लीसँ वायुयानसँ पटना होइत गाम पहुँचल रही। माएकेँ होश नहि रहनि। प्रणाम केलहुँ मुदा प्रत्युत्तर
नहि भेटल। ओ जोर-जोरसँ साँस लैत छलीह। आओर कोनो प्रकारक संचार नहि। सभ
हुनकर जीवनक आश छोड़ि चुकल छल। सायंकाल–मृत्युक समय–ओ उल्टा साँस खिचली आ सभ उठा-पुठा कए तुलसी चौरापर लए गेल। ओहीठाम जोरसँ साँस खिचली आ
सभ खतम..!
उत्तर-मुहेँ तुलसी चौरा लग हुनका राखल गेल छल। पीताम्वरी
वस्त्रसँ झाँपल। अगरबत्तीक सुगन्धक मध्य शांत किन्तु दुखद वातावरण। किछु गोटे हुनका
घेरि कए बैसल छल। बिजलोका जकाँ ई समाचार गाममे पसरि गेल।
बाहर रहए-बला सम्बन्धी सभकेँ फोनपर सूचना देल गेल। चूँकि किछु गोटे बाहरसँ अन्तिम
संस्कारमे सामिल होइतथि , तेँ संस्कारक समय दोसर दिन भेने १२
बजेक लग-पास राखल गेल।
यद्यपि माएक देहावसानक बाद समय बितल जा रहल अछि तथापि
ओ निरन्तर हमरा मोन पड़ैत रहैत छथि। हुनकर करुणामयी दृष्टि
केना पथरा गेल, केना ओ अन्तिम साँस लेली, केना हुनका तुलसी
चौरापर नि:शब्द राखल देखलहुँ इत्यादि सदिखन मोनमे घुमैत रहैत अछि। हुनकामे जबरदस्त
जीजिविषा छल। अन्त–अन्त धरि ओ ताहिलेल प्रयत्नशील छलीह। मुदा पछिला तीन-चारि माससँ वारंबार ओ दुखित पड़ैत रहलीह आ सुधार नहि भए सकलनि। प्राय:
हुनका
एहि बातक
बरोबरि आभास होइत रहनि जे अन्तिम समय आबि रहल अछि। कखनो-कखनो ओ
कहितथि जे ओ बहुत दूर जा रहल छथि। से ओ चलिए गेलीह। ततेक दूर चलि गेलीह जे एहि जीवनमे घुरि अएबाक कोनो सम्भावना नहि..! माए ९४ बरखक छलीहह। एतेक बएस कम गोटेक भाग्यमे होइत अछि। संगे सभ तरहेँ सम्पन्न परिवार छोड़ि गेलीह। हुनकर चारि पुस्त अन्तिम
संस्कारमे विद्यमान छल। पचासक लगपास हुनकर पोता-पोती,
नाति-नातिन, बेटा-पुतोहु, बेटी-जमाए आ नाति-परनाति आदि आदि
विद्यमान अछि।
टेकटार टीसनक पास सिंघिआ ड्योढ़ीक प्रतिष्ठित परिवारमे हुनक जन्म भेल छल। ओ अपन माता पिताक एसगरि सन्तान रहथि। जन्मसँ पूर्वहि हुनकर
पिता स्व. राम प्रसाद झाक देहावसान भए
गेल। ९ बरखक आयुमे हुनकर बिआह
अड़ेर डीहक प्रतिष्ठित एवम् संपन्न परिवारमे भेल। हमर
पिता स्व. सूर्य नारायण मिश्र एसगरे छलाह।
तदुपरान्त लगभग ८५ बरख ओ अड़ेर डीह गाममे रहलीह। हम सभ ५ बहिन आ ४ भाए भेलहुँ।
कालक्रमे परिवार बढ़ैत गेल। बहिन सभ सासुर जाइत छलीह तँ छाती फारि कए हुनका कनैत देखिअनि। बस चलितनि तँ ओ कहिओ ककरो कतहु नहि जाए दितथि। मुदा बेटी तँ सासुर जेबे करितथि, से जाइत मुदा माएक नोर झहर-झहर खसैत देखिअनि। बच्चासँ लए कए मृत्यु पर्यन्त माएक करूणामयी सिनेहक स्मरण हटिते नहि अछि। मोन वारंबार हुनकेपर चलि जाइत अछि। जखन हम
विद्यार्थी रही, बड़ी राति धरि पढ़ी आ माए ताबे जागल ओंघाइत बैसल रहितथि। पढ़ाइ पूरा कए जखन हम भोजन करितहुँ तखने ओ भोजन
करितथि। भरि दिनक काजक झमारल ओ कएक बेर ओंघीसँ झुकि जइतथि, परन्तु एक्कोबेर अगुताथि नहि। आब सोचैत
छी, जे एक हिसाबे हुनका कष्ट दैत रहलहुँ। कारण ओ दिन भरिक घरक काज कए विश्राम कए सकैत छलीह परन्तु हमरे हेतु बैसल रहैत छलीह। कहिओ भूलोसँ ओ हमरा प्रताड़ित
नहि केलीह। हमरा प्रति हुनक सिनेह अद्भुत छल। एहि मामलामे हम भाग्यवान छलहुँ। कतेको बेर ओ हमरा दुआरे आँगन किंवा
अरोस-पड़ोसक आन महिला सभसँ झगड़ि जइतथि।
पहिने गाम-घरमे भानस जारनिसँ बनैत छल। कतेक प्रयाससँ आँच फुकैत छलीह। कएक बेर ओहिठाम बैसल खिस्सा
सुनबितथि। गाम-घरक लोक चर्चा करितथि। भोजन बनबएमे हुनक महारत छल। कएक दिन भोरे हम
पटना जाइत छलहुँ, तैओ ओ भोजन तैयार कए दितथि आ भोजन केलाक बादे हम विदा होइतहुँ। जेबाकाल लोटामे पानि भरि कए रस्तापर ठाढ़ भए जइतथि जाहिसँ हमर
यात्रा बनए।
एकबेर हमर गाममे हैजा फैल गेल। कतेको गोटे ओहिसँ
दुखित भए गेलाह। इलाजक सही ब्यवस्था नहि छल। माएकेँ सेहो ई बिमारी धेलकनि। पूरा
परिवार सन्न छल। हमर बाबा बारंबार आँगन अबितथि आ सीढ़ी लग कानए लगितथि। धकजरीसँ एकटा आर.एम.पी. डाक्टर बजाओल गेलाह। ओएहटा लगपास उपलब्ध डाक्टर छलाह। भाग्य संग देलकनि आ ओ बँचि गेलीह। ओहिबेर गाममे एकटा युवककेँ
हैजासँ मृत्यु भए गेल छल।
माए अपन गामक इसकुलसँ चौथा पास रहथि। चिट्ठी-पत्री कए लेथि। ९ बरखक बएसमे हुनकर बिआह हमर पितासँ भेलनि । हमर पिता २२ बरखक छलाह। वाटसन इसकुल-मधुबनीमे पढ़ैत छलाह। माएकेँ इसकुल छूटि गेलाक बहुत दुख रहनि।
जखन-तखन ओ एहि बातक चर्चा करितथि। आक्रोश व्यक्त करितथि जे एतेक सम्पन्नताक अछैत हुनकर नैहरक लोक एकटा
नेनाक विआह कए देलक। सासुर अएलाक बाद ओ एहिठामक माटि-पानिमे रमि गेलीह। इएह हिनकर नैहर वा सासुर सभ भए गेल। ८५ बरख धरि एहि गाममे रहलीह। हमर दाई हुनका अपन सन्तान जकाँ पोसथि। कखनो नहि चाहथि जे ओ नैहर जाथि।
पहिने टेलीफोनक सुविधा कम छल। मोबाइल नदारद। गामसँ दिल्ली विदा होइत काल माएकेँ अपन पता लिखल लिफाफ दए दिअनि आ ओ समय-समयपर चिट्ठी लिखैत छलीह। एहन बहुत रास चिट्ठी हमरा लग
हुनकर स्मृति शेष अछि। ओहि चिट्ठी पढ़ि कए स्वर्गक अनुभूति होइत छल। बाट तकैत रहैत छलहुँ जे
डाकिया कखन चिट्ठी आनत। हुनकर तरह-तरहक चिन्ता, आवश्यकता किंवा भावनाक अभिव्यक्ति ओहि
चिट्ठी सभमे भरल अछि। क्रमश: टेलीफोन लगलैक। लगपास फोन छलैक। ओहीसँ कहिओ काल माएसँ
गप्प होइत छल। पछिला दस सालसँ मोबाइल फोन हुनका लगमे छल आ बरोबरि हुनकासँ गप्प होइत रहल। समस्त परिवारक फोन
संख्या ओहि मोबाइलमे छल। ओ सभसँ गप्प करैत रहितथि। मोबाइल फोन हुनकर जीबाक एकटा
आधार भए गेल छल। रवि दिनक सबहक छुट्टी होइते चारूकातसँ हुनका फोन अबितनि
आ ओ आनन्दसँ अपन समय बितबैत छलीह। छह दिन अही उमीदमे कटि जानि जे
रवि दिन फोन आएत।
हम बच्चा रही तखन कतेको बेर हमरा चलते माएकेँ हमरा
पक्षमे लगपासक लोकसँ झगड़ा करए पड़नि। हमरा किओ किछु कहए से हुनका एकदम बर्दास्त नहि होइन। साँझू-पहरमे दलानपर कबड्डी होइत आ ओहिमे कएक बेर बच्चा सभमे
झगड़ा भए जाइक। ओहि समयमे हुनका बहुत परेसान देखिएनि। मृत्युसँ तीन बरख पूर्व धरि ओ बहुत सक्रिय रहैत छलीह। अपन सभटा परिचर्या स्वयं करथि। अपन भोजन ब्यवस्था सेहो
ओ फराके रखैत छलीह। स्वास्थ्यक प्रति बहुत सचेष्ट रहैत छलीह। नियमित रूपसँ ब्लड प्रेशरक
दवाइक सेवन करैत छलीह। आओर कोनो बिमारी हुनका नहि छलनि । ब्लड सूगर एकदम समान्य रहनि।
आँखि अन्त-अन्त धरि बिना चश्मेक काज करनि । कानमे
श्रवणशक्ति एकदम समान्य छल। दिमागक फुर्ती तँ गजब छलनि। कहिआ-कहिआक गप्प सुनबितथि। जखन दिल्लीसँ गाम जइतहुँ तँ माए दौड़ कए बाहर अबितथि। कतेक आनन्द पूर्वक
स्वागत करितथि। प्रणाम करिते आशीर्वादक बरखा करए लगितथि।
“गैसक चुलहाक रंग हटि गेलइ, एकरा रंगा दहक।”
“एकटा पेटी आ ताला हमरा आनि दएह।”
“चीज सभ एमहर-ओमहर पड़ल रहैत अछि।”
आओर जे-जे फुरैतनि से कहितथि। गामसँ विदा होइत काल ओ दूर धरि ढेरो आशीर्वादक संग अरियाति दैत छलीह।
अक्टूबर २०१४ मे दरभंगा स्थित घरपर ओ खसि पड़ल रहथि जाहिसँ हुनकर डाँरक दहिना हड्डी टुटि गेल आ
लगातार प्रयासक बादो ओ हड्डी नीकसँ नहि जुड़ल।
दुनू पैरमे तीन इंचक फर्क भए गेल। पश्चात दिल्ली अएलाक बाद डाक्टर सभ कहलनि जे शल्यक्रिया करेबाक
प्रयोजन छल आ ट्रेक्सनक विधि एहन वयोवृद्ध हेतु ठीक नहि छल मुदा दरभंगाक डाक्टरक मतसँ हुनकर इलाज ट्रैक्सन
प्रथासँ भेल। हुनकर कहब जे एहि बएसमे शल्यक्रिया नहि सहि सकतीह। मुदा बादमे हमरो बुझाएल जे ई
निर्णए सही नहि छल। शल्यक्रिया करेबाक चाही छल। मुदा भावी प्रबल। चलबा-फिरबासँ असमर्थ
भए गेलाक कारणें हुनकर दिन-प्रतिदिनक ब्यवस्था दुरुह भए गेल।
मार्च २०१५ मे गामपर हुनकर अन्तिम हालत भए गेल छल। हम
हवाई जहाजसँ एकाएक पटना होइत गाम विदा भेल रही। गाम पहुँचैसँ
पूर्व हुनका दडिभंगा इलाजक लेल अनबाक जोगार लागल। बेहोशीक हालतमे हमर अनुज(सुरेन्द्र नारायण मिश्र) एसगरे स्थानीय जन भावनाक विरूद्ध दरभंगा अनलाह। रातिमे एक बजे जखन हम दरभंगा स्थित नरसिंग होम पहुँचलहुँ तँ माएकेँ देखि चिन्हि नहि सकलहुँ।
मुदा राति भरि इलाजक बाद ओ भोरे होशमे आबि गेलीह। ओहीठाम किछु दिन इलाजक बाद ओ
इन्दिरापुरम, गजियाबाद स्थित हमर डेरापर अएली। ओहिठाम साढ़े छह मास रहलीह। ओही दौरान हुनकर स्वास्थ्यमे
निरन्तर सुधार भेलनि। फिजियोथिरैपी भेलनि, पश्चात डण्टा पकड़ि चलि लेथि।
घाव सभ ठीक भए गेलनि। मुदा मोन सदिखन गामेपर टाँगल रहैत छलनि। इन्दिरापुरममे हमरा
संग रहबाक क्रममे माएक स्वास्थ्यमे लगातार चारि मास धरि
सुधार भेलनि। भोर-साँझ ओ मन्दिर जाइत छलीह-पहियाबला रिक्शासँ। ओहिक्रममे बहुत
रास लोक सभसँ भेँट-घाँट होइत छलनि। वुजुर्ग महिला सभ
हुनकोसँ पैघ बुढ़केँ देखि आदर सहित प्रणाम करथि, आ माए हुनका सभकें आशीर्वाद देथि। कोनो छोट बच्चाकेँ देखि ओ ओकरासँ सटि जाथि। चारि मासक बाद हुनकर
स्वास्थ्यमे क्षरण भेल। बोखार भए गेलनि जे करीब दू सप्ताह धरि रहल। एक बेर खसि पड़लीह, जाहिसँ हड्डी टुटल तँ नहि मुदा जाँघक लग-पास फुलि गेलनि जकरा सामान्य हेबामे समय लागल।
शरीरमे होमोग्लोबीन घटि कए फेर आठक लग-पास आबि गेलनि! एहि सभसँ हमर मोन उदास होबए लागल..।
५ नवम्वर २०१५ केँ हम माएक संग गाम अएलहुँ। गाममे कालीपूजाक समय रहए।
कालीपूजा देखलाक बाद माए हमर अनुजक दरभंगा स्थित घर पर आबि गेलीह। ओहिठाम ओ पाँच मास रहलीह। तकर पश्चात अप्रैल २०१६मे ओ गाम
अएली। अन्तिम छ मासमे गाममे रहबाक क्रममे नौकर तकबाक प्रयास भेल जे सफल नहि भए सकल। डाक्टरोक सुविधा प्रर्याप्त नहि छल।
गाममे प्राय: एकटा डाक्टर छथि जे घरपर मरीजकेँ देखए नहि जाइत छथि। जखन माए
चलैत-फिरैत छलीह, तँ माएक देख-रेख ओही डाक्टरसँ होइत छलनि।
माएसँ फोनपर अन्तिम बेर गप्प २६ अक्टूवर २०१६क सायं ७
बाजि कए ९ मिनटपर भेल छल जे १४ मिनट ४२ सेकेण्ड धरि चलल। ओहीक्रमे ओ एकटा टार्च, मोबाइलक जरूरति कहलनि। तकर बाद माए फेर गप्प नहि
कए सकलीह। बीच-बीचमे कएक बेर गप्प करबाक प्रयास केलहुँ मुदा ओ होशमे नहि रहथि। प्राय: ३ नवम्वर २०१६केँ
हुनका थोड़ेक सुधार भेलनि। फोनपर प्रणाम केलापर मुश्किलसँ ‘आशीर्वाद’ बजलीह। तकर बाद हुनकासँ गप्प नहि भए
सकल। हुनकर टार्च, मोबाइलक इच्छा-पूर्ति हेतु ई वस्तु सभ श्राद्धमे दानमे राखल गेल।
पता-नहि हुनका ई चीज सभ भेटलनि की नहि..? स्वर्गमे एकर काजो होएत की नहि..?
वारंबार हुनकर पेट खराप होइत गेलनि, आ बीचमे किछु दिन सुधार सेहो
भेलनि। एक दिन कहलनि-
“फेर अन्न पकड़ि लेलहुँ अछि।”
मुदा ई बेसी दिन नहि चलि सकलनि। प्राय: दियाबातीसँ
पूर्व ओ मधुर किंवा एहने कोनो चीज खा लेलनि, जकर बाद जबरदस्त पेट खराप भए
गेलनि। सभ कहए जे छठि-पावनि भए सकत कि नहि...। मुदा पानि चढ़ेला पश्चात माएक हालत
सुधरल आओर छठि पावनि नीकसँ बीति गेल । जीबाक अभिलाषा अन्त-अन्त धरि माएक मोनमे बनल छल। ओ हमर
अनुजकेँ छठिक साँझुक अर्ध्यक समय कहलखिन-
“पानि चढ़ा दएह।”
ओना नस नहि भेटबाक कारणे प्राय: कठिन भए रहल छलनि
मुदा तकर बादो पटनामे रहएबला एक पड़ोसी डाक्टरक मदतिसँ पानि चढ़लनि। पैरमे नस
भेटलनि मुदा ओ पचलनि नहि। फेर पेट खराप भए गेलनि। वारंबार मल त्यागक कारणे माएक देहक पानि
बाहर भए गेल।
१० नवम्वरक २०१६ भोरमे गाममे अनुज (धीरेन्द्र नारायण मिश्र)सँ फोनपर गप्प भेल। बुझाएल जे ओ बहुत परेसान छथि। तुरन्त वायुयानसँ पटनाक टिकट कटाऔल। ११ नवम्वर भोरक टिकट
भेल। ओही दिन साढ़े चारि बजे गाम पहुँचलहुँ। पहुँचिते माएक अवस्था–घरमे चौकीपर पड़ल, ओढ़नासँ समुच्चा शरीर झाँपल आ जोर-जोरसँ साँस लैत मुदा चेतन-शून्य
देखि सन्न रहि गेलहुँ। भरि जिनगी घर-आँगनमे सिमटल तथा परिवारक सेवामे प्राण-प्रणसँ लागल रहलीह माए..! एतेटा परिवारक पालन-पोषणक
जिम्मेदारी असगरे निर्वाह करैत रहलीह..! कतेको दिन मोन खराप रहितो काज
करैत देखिअनि..!
भोरे उठि कए तीन-चारि बजे धरि एक्के पएरपर
ठाढ घरक सरंजाम-ब्यवस्थामे लागल रहएवाली माए आँखिक सोझसँ जेना विलीन होबएलगली..! एतेक काजक संगे माए दुनू एकादशी तँ करबे करथि जे चतुर्दशी आ रविक
अनोना सेहो करथि। ततबे नहि, मंगलवारी सेहो नहि छोड़थि। हमरा
लगैए अहु सभसँ हुनका दीर्घ जीवन प्राप्त भेल। ऐंठक प्रति ओ बहुत संवेदनशील छलीह। एहि मामलामे कनिक्को लापरवाही नहि।
हुनकर ई स्वभाव अन्त–अन्त धरि बनल रहल। कएक बेर तँ ऐंठ पड़ि जेबाक भ्रममे स्नान कए लेथि। प्राय: ई बादमे किछु बेसिए भए गेल छल। हाथ धोअ लागथि तँ कतेक काल धरि धोइत रहतीह से कहब कठिन। जँ पानि हेरेबाक
पूरा अवसर भेट जानि तँ ओ बहुत प्रसन्न होथि। अन्तमे ऐंठसँ बँचबाक हेतु कएक बेर
भोजने नहि करथि चाहे लोकि कए खा लेथि जे हाथ धोअ पड़त।
माएमे आत्म सम्मान कुटि-कुटि कए भरल छल। अन्त-अन्त धरि ओ आत्मनिर्भर रहबाक चेष्टा करैत रहलीह। सभ दिन अपन स्वतंत्र अस्तित्वक रक्षा हेतु तत्पर
रहलीह। हमेशा ई प्रयास रहलनि जे गामेमे रही। अपन
ब्यवस्था फराक राखी आ ९० वर्षक बएस धरि से ओ करबो केलीह। बुढ़ सभकेँ एहि बातसँ प्रेरणा लेबाक चाही जे
केना पराश्रित हेबासँ बँचैत सम्मानपूर्वक अपन जीवन-यापन करी। एहन आत्म सम्मानी
व्यक्तिकेँ विकलांगताक परिस्थिति उत्पन्न भए गेल–दुर्घटनावश हुनकर जाँघ टुटि गेल जे
बहुत प्रयासक बादो नहि जुटल आ तेँ सभ काज हेतु दोसरपर निर्भर भए गेलीह।
अन्तिम दू वर्खक जीवन हुनका लेल एवम् परिवारक समस्त
सदस्यक लेल परीक्षाक समय भए गेल। सभ गोटे सम्पूर्ण शक्तिसँ अपन-अपन स्वभाव ओ
परिस्थितिक अनुसार हुनका सेवा केलक मुदा परिस्थिति तेहन विकट छल जे समस्त प्रयासक अछैतो प्रयत्न अधूरा लगैत छल। जीवनक अन्तिम पड़ाव
हुनका लेल कष्टकर भए गेल। ईश्वरक इच्छा बुझि एकरा स्वीकार करक चाही।
जाँघक हड्डी टुटि गेलाक बाद गाम, दरभंगा आ दिल्ली सभठाम माएकेँ यथाशक्ति ब्यवस्था कएल गेल। परन्तु ओ सभठाम असुविधामे रहलीह। दिल्लीमे इलाजक सुविधा रहैक, मुदा गामक वातावरण नहि भेटैत
रहनि। गाममे लोक-बेद रहए मुदा चिकित्सा आओर आन सुविधा नहि
रहैक आ दरभंगा मे शहर, गामक मिश्रण। तथापि ओतहु माएक मोन उचटि जाइत रहनि।
सभठामसँ बढ़िआँ हुनका गामे लागनि। गाममे जँ मौलिक चिकित्सा सुविधा
रहैत, सहायक भेट जाइक तँ बुढ़क लेल एहिसँ नीक किछु नहि।
मुदा सएह नहि सम्भव होइछ। अधिकांश लोक चिकित्सा
हेतु स्थानीय कम्पाउण्डरपर निर्भर भए जेबाक हेतु बेबस छथि। गाममे एक
सरकारी डाक्टर निजी प्रैक्टिस करैत छथि, मुदा हुनकर उपलब्धतताक समस्या
रहैत अछि। फेर ओ घरपर नहि छथि आ माए सन असक, वयोवृद्ध दुखित फटकी केना जाएत
? किछु जरूरी सुधार विचारणीय अछि। गाम-घरमे वृद्ध लोकनिक परिचर्या, चिकित्सा हेतु सामाजिक, सरकारी ब्यवस्था जरूरी अछि कारण जीवन भरि गामे रहनिहार वृद्ध अन्तिम
समयमे शहरक फ्लैटमे बन्द कखनो सुखी नहि रहैत छथि ।
श्राद्धक क्रममे गाम-घरक समस्त लोकक बहुत सहयोग रहल।
हमर कतेको ग्रामीण श्राद्धक विधि-विधान एंव तत्सम्बन्धी ब्यवस्थामे नित्यप्रति
लागल रहलाह। सम्वेदना व्यक्त करब आओर श्राद्ध प्रक्रियामे सहयोगी हेबाक हेतु कतेको लोक निरन्तर अबैत रहलाह। प्राय: नित्यप्रति हमर कतेको
ग्रामीण भोर-साँझ आबि कए कार्यक्रमक प्रगतिक प्रति
जिज्ञासा करथि। किनकर नाम लिखू, किनका छोड़ू.., सभ गोटे ऊपरा-ऊपरी काज केलाह आ तेँ एतेकटा श्राद्ध कार्यक्रम
शान्तिपूर्ण आओर सफल ढंगसँ सम्पन्न भेल। समस्त ग्रामीण, कर-कुटुम्ब, सर-सम्बन्धी, इष्ट-मित्र आओर सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता जे एहि कार्यक्रममे सामिल भेलथि, सहयोग देलथि, ओ सभ धन्यवादक पात्र छथि, हम सभ सबहक प्रति हृदयसँ आभार
व्यक्त करैत छी।
Some
feel young at 90
Some are
tired of life at 20
Our age
is not determined
By the
date on the calendar
But by
the mind believing in a
Great
and compelling future ahead.
उपरोक्त कविता अक्षरस: हमर माएपर लागू होइत छल। यद्यपि ओ वयोवृद्ध छलीह परन्तु हुनकर दिमाग अद्भुत छल। दिल्लीक डाक्टर सभ माएकेँ देखिते आश्चर्यचकित भए
जाइत छलाह। डाक्टर द्वारा पुछल प्रश्नक सटीक उत्तर करथि आओर आग्रह करथिन जे हुनकर टांगकेँ शीघ्र ठीक कए देथि।
जार्ज वाशिंगटनक निम्नलिखित कथन हमर माएपर सटीक
बैसैत अछि-
“My
Mother was the most beautiful woman I ever saw. All I am I owe to my mother. I
attribute my success in life to the moral, intellectual and physical education
I received from her. ”
जखन कखनो कोनो परीक्षा हम देबए गेलहुँ, माएक स्मरणक कए परीक्षा प्रारम्भ करी। जखन कोनो काजक संकल्प करी तँ माएक ध्यान करी। जीवन भरि माएक स्मरण
मात्रेसँ हमरा उत्साह भेटैत रहल। हमर ओ माताक संगे गुरु सेहो छलीह। हुनकेसँ हम मंत्र लेने रही। हुनका प्रसन्न देखि जे आनन्द
हमरा होइत छल एकर वर्णन करब असम्भव। जौं-जौं समय बीति रहल अछि, माएक स्मरण नूतन भए जाइत अछि। हुनकर सिनेहसँ भरल शब्द कम्प्यूटरमे
राखल हुनकर पुरान वीडियो/ ओडियो रिकॉडिंग सुनए लगैत छी। हुनकर फोटो दिस टक-टक तकैत
रहैत छी। होइत अछि जे फेरसँ हुनके कोरमे जा
कए बैस जाइ। काश! ओ उठि कए बैसितथि। दोवारा जीवि जइतथि।
मुदा से सभ कल्पने रहि जाएत.., मात्र स्मृति शेष..! मुदा अपन धर्मग्रन्थ कहैत अछि जे आत्मा अमर अछि।
तस्मादपरिहार्येSर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ||
अर्थात ओ फेर जनमतीह। ईश्वरसँ प्रार्थना अछि जे जन्म-जन्म हमर ओ माए होथि। हुनक आशीर्वाद हमरा भेटैत रहए। हम हुनका तन, मन, धनसँ
सेवा करैत रही। जे किछु त्रुटि रहि गेल तेकरा अगिला जन्ममे पूरा कए दी। इएह सभ सोचि कए हम अपन अन्तर्मनकेँ शान्त करबाक प्रयासमे लागल छी। माएसँ अन्तिम विदा लए रहल छी-
"Farewell,
Dear Mother"
Somewhere
in my heart, beneath all of this pain,
Is a smile I still wear... at the sound of your name.
The precious word is "MOTHER", she was my world, you see,
Is a smile I still wear... at the sound of your name.
The precious word is "MOTHER", she was my world, you see,
But now
my heart is breaking, she's no longer here with me.
God
chose her for His angel to watch me from above, To guide me and advise me and
know that I'm still loved.
The day
she had to leave me, her life on earth was through,
But God
had better plans for her, for this, I surely knew.
When I
think of her kind heart and all those loving years,
Because
we're only human, they're bound to bring us tears.
She
truly was my best friend, someone I could confide in,
She
always had a tender touch, a soft and gentle grin.
I want
to thank you, Mother, for teaching me so well,
Even though the time has come, that I must bid you farewell.
Even though the time has come, that I must bid you farewell.
I'll
remember all you've taught me, to put God above all others...
For I
had no better teacher, than you .... My Dear Mother.
Even
though you've left this earth and had to take your flight,
I know
that you are here with me, each morning, noon and night.
(Written
by ~~ Ruth Ann Mahaffey ~ © 2001)
शत् -शत् प्रणाम हे माते ! अहाँ बड़ मोन पड़ै छी आ पड़िते रहब...।
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