शनिवार, 20 दिसंबर 2025

बाबाक दरबारमे

 

बाबाक दरबारमे

 

बहुत दिनसँ वाराणसी जएबाक मोन छल। असलमे  ओहिठाम बाबा विश्वनाथक मंदिरक आ आसपासक जगहक पुनुरोद्धारक समाचार देखि-सुनि मोनमे बहुत प्रसन्नता भेल छल।हम जखन इलाहाबाद(प्रयागराज) मे रहैत रही तखन एक बेर ओतए गेल रही।इलाहाबादसँ वाराणसी ट्रेनक यात्रामे हमर एकटा संगी सेहो रस्ते मे भेटि गेल रहथि।ओ वाराणसी लग अपन पैतृक गाम जाइत रहथि।हमरा संगे हमर श्रीमतीजी आ हमर पुत्र भास्कर रहथि।ओ ट्रेन इलाहाबादक रामबाग टीसनसँ खुजल रहैक आ वाराणसी धरि गेलैक।रस्तामे सभ टीसनपर रुकैत गेलैक।हमसभ आपसमे गप करैत रहलहुँ।ट्रेन वाराणसी पहुँचलाक बाद हमर संगी  अपन गाम चलि गेलाह।हमसभ टीसने लग एकटा आटो रिक्सा केलहुँ। ओ आटोरिक्सा हमरासभक संगे भरि दिन रहल,यथासंभव सौंसे घुमओलक आ ओही दिन साँझमे हमसभ वापस इलाहाबाद आबि गेलहुँ।वाराणसीमे काशी विश्वनाथ मंदिरमे बाबाक दर्शन बहुत नीकसँ भेल रहए,कारण ओहि समयमे स्वर्गीय आर०के० मिश्र(आइएएस) (स्वर्गीय जयकान्त मिश्रजीक भाइ) ,ओ हमरासभक दर्शनक लेल ओरिआन कए देने रहथि। जयकान्त बाबू हमरा लेल हुनका फोन कए देने रहथिन। मंदिरे मे ओ पलथा मारि कए बैसल रहथि। हमरा देखितहि ओ बहुत प्रसन्न भेलथि  एकटा पंडाकेँ हमरासभक संग लगा देलथि।तकर बाद हमसभ बहुत नीकसँ महादेवक दर्शन केलहुँ।दर्शन काल पंडासभकेँ बड़का-बड़का परातमे भोजन सामग्री बाबाकेँ प्रसाद चढ़बैत देखेने रहियनि।हमरा भूख लागि गेल रहए। स्वादिष्ट भोजन सामग्रीसभ देखि मुँहमे पानि आबि गेल रहए।बाबाक दर्शनक बाद सोझे होटल गेल रही,भरि पेट भोजन केने रही। तकर बादे हमसभ घुमबाक लेल आगू बढ़ल रही।मोन पड़ैत अछि जे मंदिरक आसपास केहन गलींज छल, पैदलो चलब मोसकिल।बाबा मंदिरसँ गंगा घाटक बीच आएब-जाएब बहुत मोसकिल छल। आब जखन सुनलिऐक जे बाबा मंदिर परिसरक आ आसपासक क्षेत्रक नक्सा बदलि गेल अछि,गंगा स्नानक बाद सोझे मंदिरमे बाबाकेँ जल चढ़ाउ,कतहु कोनो अवरोध नहि,तँ हमरोसभकेँ  ओतए एक बेर फेर जएबाक इच्छा होएब स्वाभाविक छल।मुदा एकर कार्यान्वयनमे किछु विलंब भेल।कारण नवका कारीडोर बनलाक बाद वाराणसी गेनिहार लोकसभक मेला लागल रहैत छल। ओहिठाम रहबाक,घुमबाक व्यवस्था करब कठिन बुझा रहल छल।

अचानक एक दिन वाराणसी स्थित केन्द्र सरकारक होलीडे होममे पाँच दिन रहबाक लेल जगह भेटि गेल। आब की छल।हम तुरंत हुनका हाक देलिअनि-

“हेयै! कहाँ छी?”  

ओ आबि गेलथि।हम हुनका वाराणसीमे रहबाक जोगार होएबाक जनतब देलिअनि।ओहो बहुत प्रसन्न भेलथि।हम सभ तुरंत रेल टिकटक ओरिआनमे लागि गेलहुँ।भेल जे जखन वाराणसी जाए रहल छी तँ इलाहाबादो घुमिते आएब।हमर अभिन्न मित्र श्री संजीव सिन्हाजीसँ भेँट-घाँट भए जाएत।ओ बहुत दिनसँ इलाहाबाद अएबाक लेल आग्रह कए रहल छलाह।संगे हमरो इलाहाबाद घुमबाक इच्छा छलहे।कारण हम जनबरी ‍१९७८सँ मार्च ‍१९८७ धरि नओ साल ओहिठाम रहल छी। ओतए पहुँचिते हमरा अपन जगहपर पहुँचि जएबाक आनन्द होइत अछि।अस्तु,ओतहु रहबाक लेल सरकारी अतिथि गृहमे रहबाक जोगारमे लागि गेलहुँ जे संयोगसँ संभव भए गेल। ओना सिन्हा साहेबक बहुत जोर छलनि जे हम हुनके ओहिठाम रही।मुदा सिभिल लाइन्स स्थित अतिथिगृह आ जार्ज टाउन स्थित हुनकर घरमे बेसी दुरी नहि अछि,से सभ कहला-सुनलापर ओ मानि गेलाह।हमसभ वापसी रेल टिकट इलाहाबादसँ बना लेलहुँ।आब की छल?बस ओहि दिनक प्रतीक्षामे लागि गेलहुँ।

२५ अगस्त २०२५क हमरासभकेँ वाराणसी यात्राक लेल प्रस्थान करबाक छल।हमसभ तैयारी कए रहल छलहुँ। हमर पौत्र हमर श्रीमतीजीकेँ तैयारी करैत  देखि दुखी भए गेल। ओकरा बुझा गेलैक जे हमसभ  कतहु जा रहल छी।ओ हुनका कहैत छनि-

“अहाँ एना नीक नहि लागि रहल छी।अहाँ जहिना रहैत छी,तहिना रहू।” ओ बहुत उदास छल। हमसभ जखन घरसँ बाहर होइत रही तखन सभ केओ बिदा करबाक लेल आएल छल,मुदा ओ नहि आएल। ओ असलमे बहुत दुखी छल। ओकरा दाइसँ फराक होएब नीक नहि लागि रहल छलैक।असलमे दाइसँ ओकरा बहुत लगाओ छैक।इसकुलसँ वापस भेलाक बाद ओ बेसी काल दाइए लग रहैत अछि। हमरोसभकेँ नीक तँ नहिए लागि रहल छल। मुदा जएबाक तँ छलहे।अस्तु,अछताइत-पछताइत हमसभ टैक्सीमे बैसि गेलहुँ। हमर पोती जरूर हमरासभकेँ नीकसँ बिदा केलक। बड़ी काल धरि बाइ-बाइ करैत रहल।

हमरासभकेँ स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेसमे एसीटूमे एक आ तीन नंबरक नीचाँक शायिका आरक्षित छल।ई दुनू शायिका बाहरी द्वारिसँ सटले छल।ओ निरंतर खुजैत रहैत छल।लोक अबैत-जाइत रहैत छल।हमरासभ लग दूटा बाकसमे भरल सामानसभ छल।तकर चिंता होइत रहैत छल।अस्तु,हम तँ राति भरि जगले रहि गेलहुँ।भोरे सात बजे करीब हमसभ वाराणसी टीसनपर पहुँचि गेल रही। हमरासभक स्वागत लेल माधवजी(परिवर्तित नाम)  आएल रहथि। ट्रेनसँ उतरितहि प्लेटफार्मेपर ओ भेटि गेलथि।प्रथमदृष्टिए माधवजी बहुत आकर्षक आ रमणीय व्यक्तित्वक लोक बुझेलाह।ओहो केन्द्रीय सचिवालय सेवामे रहथि।हमर कैकटा संगी हुनकर परिचित,मित्र छथिन।ओ मूलतः वाराणसीएक वासी छथि,जीवन भरि एही सहरमे रहल छथि।वाराणसीक माटि-पानिसँ बहुत प्रेम छनि,से एहि हद धरि छनि जे ओ अपन दिल्लीक नौकरी एही लेल छोड़ि देलनि। से सुनबामे कनी विचित्र तँ लगैत छैक कारण आजुक अर्थयुगमे लोक एना करत से नहि सोचल जा सकैत अछि,मुदा ओ से केने छथि आ एहि मानेमे एकटा अपना तरहक उदाहरण छथि।अत्यन्त साधारण भेषमे अपन सरल सहज व्यवहारसँ ओ अपना दिस लोककेँ आकर्षित करैत छथि।हम बड़ी काल धरि हुनका बारेमे सोचैत रहि गेलहुँ। हुनकासँ बहुत किछु जानकारी भेटैत रहल।हुनको बारेमे आ सहरोक बारेमे।मुदा ओ नौकरी किएक छोड़ि देलनि,से हम नीकसँ नहि बुझि सकलहुँ ,सेहो तखन जखन कि ओ ओकर बाद फेर कोनो नौकरी नहि कए सकलथि(हमरा जनतबे)।प्रत्येक मनुष्य स्वयंमे अद्भुत होइत अछि,रहस्य अछि।हम कनी काल सएहसभ सोचैत रहलहुँ।टैक्सी आगू बढ़ैत रहल। सहर अपने सभठाम जकाँ।कतहु नव,कतहु पुरान तरीकाक घरसभ देखाइत छल। भोरक समय छलैक।दूबगली दोकानसभ खुजि रहल छलैक। रस्ताक कातमे चाहक दोकानसभसँ धुआँ उठि रहल छल।ठाम-ठाम लोकसभ चाह बनबाक प्रतीक्षा कए रहल छल।हाथमे अखबार आ तरकारीक झोरा सेहो किछु गोटे रखने रहथि।

 माधवजीक संगे  रहलासँ हमरासभक चिंता आब खतम छल।केना जाएब,कतए घुमब,की-की देखब सभ किछु हुनका ऊपर।हुनका संगे टैक्सीसँ हमसभ घंटा भरिक बाद केन्द्र सरकारक होलीडे होम पहुँचि गेलहुँ।होलीडे होमेमे हमरसभक कोठरी दस बजेक बाद उपलब्ध होएत,से बात स्वागती कहलनि।हमसभ ताबत स्वागत कक्षेमे बैसि चाह-पान केलहुँ।तखनहि श्रीमतीजीसँ विमर्शक बाद आजुक घुमबाक कार्यक्रम सेहो तय केलहुँ।आइ मंगल दिन छल।हमसभ उपास केने छलहुँ।तेँ दिनमे भोजनक चिंता नहि छल। आइ हमसभ हनुमानजीक दर्शन करब।तकर बाद लगपासक चीज-वस्तु देखबाक प्रयास करब।मंगल दिन प्रसिद्ध संकट मोचन मंदिरमे हनुमानजीक दर्शन करब महत्वपूर्ण छल,कारण आइ मंगल दिन रहबाक कारण सहर आ बाहरोसँ बहुत भक्तसभ ओतए अबैत छथि।हमसभ  अतिथिगृहमे  आश्वस्त भए गेलाक बाद करीब तीन बजे टैक्सीसँ संकटमोचन मंदिर लेल बिदा भेलहुँ। करीब आधा घंटामे हमसभ ओहिठाम पहुँचलहुँ।

संकटमोचन मंदिर वाराणसी

संकटमोचन मंदिर वाराणसीक अति प्राचीन मंदिर अछि।एकर स्थापना तुलसीदासजी स्वयं केने रहथि। एहि मन्दिरक पुनर्निर्माण 1900 ईस्वीमे स्वर्गीय मदन मोहन मालवीयजी द्वारा कराओल गेल। ओएह एहि मंदिरकेँ  “संकट मोचन हनुमान मन्दिर वाराणसी” क नामसँ प्रतिष्ठित केलथि।

कहबी छैक जे जखन तुलसीदासजी ओहिठाम रामकथा कहैत रहथि तँ एक दिन एकटा प्रेत देखेलनि। ओहो हुनकर रामकथा सुनैत छल। तुलसीदासजी हुनका आग्रह केलखिन जे ओ हनुमानजीक पता बताबथि जाहिसँ हुनकर दर्शन भए सकनि।ओ प्रेत कहलखिन-

“हनुमानजी तँ नित्य अहाँक कथामे उपस्थित रहैत  छथि। ओ एकटा कोढ़ीक भेषमे सभसँ पहिने अबैत छथि,पाछू बैसल रहैत छथि आ कथा समाप्त भेलाक बाद सभसँ पाछू जाइत छथि।”

प्रेतक देल हुलिआक अनुसार तुलसीदासजी हनुमानजीकेँ कोढ़ीक भेषमे चिन्हि लेलखिन आ हुनकर पैरपर खसि पड़लखिन।हनुमानजीकेँ ओ भगवान रामसँ दर्शनक रस्ता बतेबाक प्रार्थना केलखिन।हनुमानजी हुनका कहलखिन-

“अहाँ चित्रकुट चलि जाउ।ओतहि अहाँकेँ भगवान राम भेटताह।”

तकर बाद तुलसीदासजीकेँ चित्रकुटमे भगवान रामक दर्शन भेल रहनि। कहबाक तात्पर्य जे ओ स्थान बहुत सिद्ध आ प्रसिद्ध  अछि। तुलसीदासजी ओतए माटिक हनुमानजी मूर्तिक स्थापना केने रहथि। ओएह मूर्ति अखनहु ओहि मंदिरमे स्थापित अछि।हनुमानजीक हृदयक ठीक सामनेमे भगवान रामक पैर देखाइत अछि।शनि आ मंगल दिन कए ओहिठाम भक्त लोकनिक बहुत भीड़ रहैत अछि।मंदिरे परिसरमे प्रसादक कैकटा दोकान अछि जाहिठामसँ घीमे बनल लड्डू आ आन मिठाइसभ प्रसादक लेल उपलब्ध रहैत अछि।मंदिर परिसरमे  प्राचीन इनार अछि।कहल जाइत अछि जे तुलसीदासजीक समयसँ ई इनार ओहिठाम अछि।भक्त लोकनि ओहि इनारक पानि पिबैत छथि।

यद्यपि आइ मंगल दिन छल,मुदा मंदिर परिसरमे अपेक्षाकृत बेसी लोक नहि देखेलथि।हमसभ बहुत सुविधासँ हनुमानजीक दर्शन कए सकलहुँ।हनुमानजीक दर्शनक बाद माधवजी  हमरासभकेँ वाराणसीक प्रसिद्ध पहलमान लस्सी पियाबए लए गेलाह।

पहलमान लस्सी

वाराणसी सहरक लंका चौकक पास सन् ‍१९५०मे पन्ना सरदारजी द्वारा पहलवान लस्सीक स्थापना कएल गेल छल। एहि लस्सीक विशेषता ई अछि जे ई हाथेसँ बनाएल जाइत अछि आ शुरूए सँ माटिक कुल्हरमे परसल जाइत अछि।पहलवान लस्सी पीबाक लेल भोरे सँ लोकक पाँति लागि जाइत छल। सालक-साल एकर प्रसिद्धि बनल रहल। किछु महिना पहिने ओहिठामक आसपास सभटा दोकानसभकेँ सड़क बनेबाक लेल ढाहि देल गेल। तकर बाद पहलवानक लस्सी कनीके फटकी दोसर ठाम चलि गेल। हमसभ तकैत-तकैत ओहिठाम पहुँचलहु।कनीक प्रयासक बाद  दोकान भेटि गेलाक बाद हमसभ बहुत प्रसन्न रही। चारिटा लस्सी बनेबाक लेल कहलिऐक।थोड़बे कालमे लस्सी तैयार छल। हम तीनूगोटे ओहीठाम बेंचपर बैसि लस्सी पिलहुँ। लस्सीक उपरसँ बेस मोट छाल्ही छल। पहलवान लस्सी जेहने देखबामे रमनगर छल तेहने एकर स्वाद छल।हमसभ लस्सी पिबि सचमुचमे बहुत आनन्दित भेलहुँ। एकटा लस्सी वाहन चालकक लेल सेहो लेने गेलहुँ। एहि बातसँ ओ बहुत प्रसन्न बुझेलाह। लस्सी पिलाक बाद हमरासभमे नवस्फूर्ति आबि गेल छल।आब हमसभ वनारस हिन्दू विश्वविद्यालय परिसर दिस बिदा भए गेलहुँ।

वनारस हिन्दू विश्वविद्यालय परिसर

बीसवीं शताब्दीक आरम्भक समय भारतक आत्मा स्वतंत्रता आ सांस्कृतिक पुनर्जागरणक लेल आतुर  छल। पश्चिमी शिक्षा प्रणाली भारतक नवयुवककेँ ज्ञान तँ दैत छल, मुदा ओ भारतीय मूल्य आ परंपराक आत्मासँ बहुत फटकी कए दैत छल। एहि परिस्थिति मे पंडित मदन मोहन मालवीय अपन अदम्य संकल्पसँ एकटा एहन विश्वविद्यालयक स्वप्न देखलाह जे भारतीय संस्कृति, धर्म, आ परंपराक गौरवकेँ आधुनिक विज्ञान आ शिक्षा संग जोड़ि सकए। एहि स्वप्नक साकार करबाक लेल मालवीयजीकेँ डॉ. एनी बेसेंट, महाराजा रामेश्वर सिंह, (दरभंगा), महाराजा प्रभु नारायण सिंह (काशी) आ अन्य गणमान्य लोकनिक सहयोग भेटलनि। सन् ‍१९१५ ई०मे  ब्रिटिश संसदमे पारित बीएचयू कानूनक आधार पर ४ फरवरी ‍१९१६ केँ वाराणसीक पवित्र भूमिपर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयक स्थापना भेल।

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू)  एशियाक सबसँ पैघ आवासीय विश्वविद्यालय मानल जाएत अछि आ वाराणसीमे ‍१३०० एकड़ मे मुख्य परिसर स्थित अछि, जखन कि मिर्जापुर जिलामे दक्षिण परिसर २७०० एकड़मे पसरल अछि। विश्वविद्यालय मे१४ संस्थान, 14 संकाय आ ‍१४० सँ बेसी विभाग अछि, जतए करीब तीस हजार छात्र अध्ययन  करैत छथि। ई विश्वविद्यालय भारत सरकारक “प्रतिष्ठित संस्थान(Institute of Eminence) " मे चयनित अछि आ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सेहो प्रसिद्ध अछि। सर सुंदरलाल अस्पताल, भारत कला भवन संग्रहालय, विशाल खेल मैदान आ सांस्कृतिक केंद्र विश्वविद्यालयक विशेष पहिचान अछि। एहिठाम एक्के परिसरमे 3५० सँ बेसी स्नातक, स्नातकोत्तर आ शोध पाठ्यक्रम उपलब्ध अछि । संक्षेपमे, बीएहयू शिक्षा, संस्कृति, शोध आ सामाजिक एकताक अद्वितीय प्रतीक अछि।

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयक परिसरमे अवस्थित नव काशी विश्वनाथ मंदिर आधुनिक स्थापत्यक अद्भुत चमत्कार आ धार्मिक आस्थाक उज्ज्वल प्रतीक अछि। पंडित मदन मोहन मालवीयक संकल्पसँ ई मंदिर बिरला परिवारक सहयोग सँ ‍१९३१ मे शिलान्यास पाबि ‍१९६६ मे पूर्ण रूप सँ तैयार भेल। करीब २५० फीट ऊँच शिखर आ देबालसभ पर अंकित गीता आ शास्त्रक श्लोक एहि मंदिरक वैभवकेँ बहुत आकर्षक बनओने अछि। शिवक प्रधान स्वरूपक संग नओ अन्य देवालयक उपस्थिति एहि स्थानकेँ बहुआयामी आध्यात्मिक केन्द्र बनबैत अछि। विश्वविद्यालयक छात्र आ आगंतुक लेल ई मंदिर केवल पूजास्थल नहि, अपितु ध्यान, शांति आ सांस्कृतिक चेतनाक आलोकक स्रोत अछि, जतए धर्म, कर्म, अर्थ आ मोक्षक मूल्य संगे-संग प्रतिध्वनित होइत अछि। संक्षेपमे, ई मंदिर विश्वविद्यालयक आत्माकेँ धार्मिक आ सांस्कृतिक रूपमे आलोकित करैत भारतक सनातन परंपराक गौरवक जीवंत प्रतीक बनि गेल अछि।

एहन अद्भुत स्थान देखबाक जिज्ञासा ककरा नहि होएत?अस्तु,हमसभ बहुत उत्सुकतासँ टैक्सीसँ आब बीएचयू परिसर दिस बढ़ि रहल छलहुँ। माधवजी हमरा लोकनिकेँ विश्वविद्यालयक विभिन्न संकायक बारेमे बतबैत रहलाह।थोड़बे कालमे हमसभ विश्वविद्यालय स्थित काशी विश्वनाथ मंदिरमे पहुँचि गेलहुँ।हमसभ बहुत चैनसँ मंदिरमे भगवान शिवक दर्शन केलहुँ,चारूकात घुमलहुँ। ओतहि किछु काल विश्रामो केलहुँ  तकर बाद बाहर भए गेलहुँ।माधवजीकेँ ओहिठामक समोसा खेबाक इच्छा रहनि। ओ जखन कखनहु एमहर अबैत छथि तखन ओहिठामक प्रसिद्ध समोसा जरुर खाइत छथि। हमरोसभकेँ आग्रह केलथि। मुदा हमसभ तँ मंगलक उपास केने रही। अस्तु, ओ असगरे समोसा खेबाक लेल गेलाह।ताबे हमसभ टैक्सीमे बैसल हुनकर प्रतीक्षा करैत रहलहुँ।

तुलसी मानस मंदिर

माधवजी जाबे समोसा खेलनि,ताबे हमसभ टैक्सीमे बैसल सुस्ताइत रहलहुँ। हमसभ उपास केने रही आ भोरेसँ किछु-ने-किछु व्यस्तता रहबे कएल।टीसनसँ होलीडे होम पहुँचलाक बादो  कोठरी भेटबामे बड़ी काल लागि गेल।फेर हमसभ कोठरीमे सामानसभ रखलहुँ। कनीकाल विश्राम केलहुँ आ बिना किछु खेने-पीने मंदिर लेल बिदा भए गेलहुँ। आब वापसीमे बहुत थाकि गेल रही। कतहु जएबाक मोन नहि छल।तथापि,जखन टैक्सी तुलसी मानस मंदिर लग पहुँचल तँ मोन भेल जे देखिए ली। तुलसी मानस मंदिर ओएह स्थान थिक जाहिठाम तुलसीदास अपन रामायणक रचना केने छलाह। बादमे सन् ‍१९६४मे बंगालक हावराक ठाकुरदास सुरेका परिवार द्वारा एहिठाम मंदिर बनाओल गेल। मंदिरक देबालपर संपूर्ण तुलसी रामायण चित्र सहित उकेरल गेल अछि। एतए एकटा संग्रहालय सेहो अछि जाहिमे अनेक वहुमूल्य पाण्डुलिपि आ कलाकृति राखल गेल अछि।हमसभ एहि मंदिरमे दर्शनक बाद चारूकात घुमलहुँ।  किछु काल विश्रामक बाद वापसी यात्राक लेल टैक्सीमे बैसि गेलहुँ। कनीके आगू वाराणसीक प्रसिद्ध दुर्गाकुंड मंदिर आएल,मुदा हमसभ ततेक थाकि गेल रही जे एहिठाम कोनो आन दिन दर्शन करबाक विचार कएल। लगभग आधा घंटाक बाद थाकल-झमारल हमसभ होलीडे होम स्थित अपन डेरापर पहुँचि गेलहुँ।माधवजी पहिने उतरि गेल रहथि। टैक्सीबलाकेँ काल्हि फेर भोरे नओ बजे अएबाक आग्रह कए हमसभ विश्राम लेल अपन कोठरीमे चलि गेलहुँ।

होलीडे होमक अपन कोठरीमे पहुँचि हम मोबाइल फोन चार्ज करए चाहलहुँ,मुदा चार्जर प्वाइंटमे जएबे नहि करैक। ओतहिसँ टीभीक सेहो चलेबाक छल। ओहो नहि चलैत छल। अगल-बगलक कैकटा प्वाइंटसभमे इएह समस्या छल।आखिर हम फोन कए ओहिठामक केयरटेकर पाण्डेयजीकेँ बजेलिअनि। ओ कहलाह जे ई समस्या सौंसे मकानमे छैक। ओ बिजलीक प्लगमे पेन घुसा देलखिन, तकर बाद ओहिमे मोबाइलक चार्जर लगा देलथि। एही तरीकासँ टीभी सेहो चलि गेल। हमसभ जखन बादमे भीआइपी कोठरीमे गेलहुँ तखनहु ई समस्या रहबे कएल । वाराणसीक होलीडे होम नबे बनल अछि। ताहिमे एहन दिक्कति नहि होएबाक चाहैत छल। मुदा ई समस्या ओतए अछि। अफसोचक बात ई अछि जे एहि समस्यापर ओतुका व्यवस्थापक लोकनिक ध्यान किएक नहि जाइत छनि।ओना ई होलीडेहोम बहुत नीक अछि आ एहिठाम बहुत मोसकिलसँ कोठरी भेटैत छैक। तेँ हमरा जखने कोठरीक आरक्षण भए गेल तँ हम तुरंत ओही हिसाबसँ रेलक टिकट बनबा लेने रही। हमसभ कुल पाँचदिन ओहिठाम रहलहुँ।भोजन,जलखै आ चाहक  कम दाममे नीक व्यवस्था छल।संयोगसँ एकटा बहुत नीक टैक्सीबला लोक भेटि गेल छल जाहिसँ हमरा लोकनिक वाराणसी भ्रमण करबामे बहुत आराम रहल।

होलीडे होम वाराणसी टीसनसँ लगभग नओ कीलोमीटरपर अवस्थित अछि। ओहिठामसँ प्रेमचंदक गाम,लमही सटले अछि।मुदा सहरक प्रमुख मंदिरसभ ओहिठामसँ फटकी पड़ैत अछि। होलीडेहोमक परिसर बेस पैघ अछि।ओकर एकदिस विभिन्न प्रकारक सरकारी कर्मचारी,अधिकारी लोकनिक लेल आवास बनल अछि।बीचमे एकटा छोटसन मंदिरो अछि जाहिमे स्थानीय लोकसभ पूजा-पाठ करैत छथि।होलीडेहोमक सामनेमे  बड़ीटा मैदान अछि जकर चारूकात  घुमनाइ मोसकिल छल।बहुत रास लोकसभ प्रातःभ्रमण करैत देखा जाइत छलाह।ओना होलीडेहोममे ठहरल यात्री लोकनि भीतरेमे चक्कर लगबैत देखेलाह।हमहूँ बेसी काल सएह करी,कारण बाहर बहुत रास कुकुरसभ घुमैत रहैत छल । होलीडेहोमक चारूकात खाली जगहमे अनेक प्रकारक बृक्षसभ रोपल गेल अछि।केकटा रुद्राक्षक गाछ सेहो रोपल देखाएल।गाछक जड़ि लग बृक्षारोपन केनिहार व्यक्तिक नाम लिखल छल।

वाराणसीमे आइ हमरा लोकनिक दोसर दिन छल। नियत समयपर ठीक नओ बजे हमसभ तैयार भए गेल रही।तखनहि टैक्सीबला आबि गेल।हमसभ आइ बाबा विश्वनाथक दर्शन करब।माधवजी बीचमे कतहु भेटि जेताह।ओ अपन ठेकान नीकसँ टैक्सीबलाकेँ बता देने रहथिन। करीब दस मिनट चललाक बाद ओ स्थान आबि गेल। हम फटकीए सँ माधवजीकेँ कातमे ठाढ़ भेल देखि लेलिअनि। टैक्सीबलाकेँ सेहो  कनीको परेसानी नहि भेलैक। ओ टैक्सी कात लगा कए ठाढ़ केलक आ माधवजी आगूमे बैसि गेलाह।रस्तामे कैकटा प्रमुख स्थानसभ अबैत छल। तकर जनतब माधवजी दैत रहलथि। दस मिनट आर चललाक बाद हमसभ अपन गंतव्यपर पहुँचि गेल छलहुँ। मंदिरसँ फटकीए टैक्सी रोकि देल गेल।तकर बाद हमसभ एकटा एक्का ठीक केलहुँ। एक्का दू गोटेक सहयोगसँ चलैत छल।एकगोटे उपर बैसल छल आ दोसर बेर-कुबेर ओकरा पाछूसँ ठेलैत छल। ऊपर दिस चढ़ान रहैक। बीचमे पुलिस सेहो ठाढ़ रहए। ओकरा माधवजी किछु कहलखिन तखनहि एक्का आगू बढ़ि सकल,अन्यथा ओ ओतहि हमरासभकेँ उतारि दैत।एक्का संगे दौड़ि रहल दोसर व्यक्ति बहुत कम बयसक छल। ओ रहि-रहि कए मधुर स्वरमे एकटा गीत गबैत रहैत छल जे हमरा बहुत नीक लागल।गीतक अर्थ छल-

“जखन टाकाक महत्व बेसी हेतैक तखन आर की हेतैक?भाए-भाएक खून करतैक।”

हम ओकर गीतक भाव बूझि चकित छलहुँ ।ओ बच्चा बेर-बेर ओहि गीतकेँ दोहरबैत रहल। अंतमे,हम ओकरा बीस  टाका इनाम देलिऐक।एहि बातसँ ओ बहुत प्रसन्न भेल छल।

“शुक्रिया साहेब। फेर आएब।हमरा जरूर कहब।हमर मोबाइल नंबर लिखि लिअ।”

आब मंदिर सामने देखा रहल छल। हमसभ एक्कासँ उतरि गेलहुँ। कनीके फटकी मंदिरक सेवाकेन्द्र छल। ओहिठाम हमसभ भीआइपी दर्शन लेल टिकट कीनलहूँ आ दुनू गोटे पैरे-पैरे मंदिर दिस बिदा भेलहुँ।माधवजीकेँ संगे नहि जाए देलकनि,ने कोनो पंडितजी संगे गेलाह।असलमे हमसभ यदि कनी आर टाका खर्च कए जलाभिषेकक टिकट लेने रहितहुँ तखन पंडितोजी संगे चलितथि आ भीतरमे जा कए शिवलिंगपर जलाभिषको कए सकितहुँ। मुदा हमसभ एहि विकल्पक बारेमे बादमे बूझि सकलहुँ जखन कि सूचनापट्टपर सभबात नीकसँ लिखल रहैक। मुदा हम से नहि पढ़ि सकलहुँ आ माधवजी जे जे कहैत रहलाह तेना-तेना करैत रहलहुँ।बादमे अफसोच होअए जे अपनो माथ किएक ने लगओलहुँ।

हमसभ लोकसभसँ पुछि-पुछि मंदिरक भीतर सही जगहपर पहुँचि गेलहुँ।एहि परिसरमे मोबाइल रखबाक बहुत नीक ओरिआन अछि। ओतहि हम अपन मोबाइल जमा करओलहुँ।कनीके हटि कए पूजाक लेल प्रसाद लेलहुँ आ दर्शनक लेल भीआइपी लाइनमे लागि गेलहुँ। बहुत जल्दीए हमसभ शिवलिंगक ठीक सामने पहुँचि गेल रही। ओतए देबालक पाछू शिवलिंग स्पष्ट देखा रहल छलथि। केओ-केओ जलाभिषेक कए रहल छलाह।पंडितजी हुनकासभकेँ मंत्रोच्चार कए पूजाक विधान संपन्न करबा रहल छलाह।हमहूँसभ बहुत नीकसँ भगवान शिवक आराधना केलहुँ आ आगू बढ़ि गेलहुँ।

बाबा विश्वनाथक दर्शनक बाद हमसभ कनीके आगू गेल छलहुँ कि एकटा पंडितजी हमरासभकेँ घेरि लेलनि। तरह-तरहसँ बुझबैत रहलाह जे की की केलासँ हमरासभक पुण्य अर्जित भए सकैत अछि। कनीके फटकी एकटा पंडितजीसँ सेहो भेंट करेलथि।ओहो किछु दक्षिणा लेलथि। फेर हमसभ सामनेमे  नन्दीक दर्शन केलहुँ जकर ठीक सामनेमे ज्ञानवापी परिसर अछि आ ओतहि कहाँदनि असली शिवलिंग भेटल छथि जाहिपर कानूनी विवाद चलिए रहल अछि।हमसभ पाँतिमे ज्ञानवापीक देबालपर बनल मूर्तिकेँ दर्शन केलहुँ आ मोनमे अपार क्षोभक संग वापस भए गेलहुँ। बाहर पंडितजी ठाढ़ छलाह।हुनको किछु टाका देलिअनि,मोबाइल छोड़ओलहुँ आ तय मार्गसँ वापस बाहर निकलि गेलहुँ। ओतएसँ कनीकाल पैदल चलि हमसभ फेर सेवाकेन्द्रपर पहुँचि गेल रही। ओहिठाम माधवजी रहबे करथि।टैक्सीबला सेहो कनीके फटकी आबि गेलथि।आब हमसभ आगू बढ़ि गेलहुँ।

मंदिर परिसरक व्यवस्था

मंदिर परिसरक सुरक्षा व्यवस्था बहुत चाक-चौबंद अछि।जहिना लोक एहि दुनिआमे खाली हाथ अबैत अछि आ ओहिना चलि जाइत अछि सएह हाल ओहि मंदिरक अछि।मंदिरमे प्रवेशसुरक्षा व्यवस्थामे लागल कैकटा सिपाहीसभ त्रिपुंड केने देखेलाह।ठाम-ठाम महिला पुलिस सेहो लागल छलीह। मंदिर परिसरमे प्रवेश करबासँ पूर्व सभ किछु बाहरे रखबा लेल जाइत अछि। एकटा समय छल  जे मंदिरमे जाएब मोसकिल होइत छल कारण चारूकात अबैध निर्माण भेल छल। अतिशय कठिन गलीसँ जिलेबी जकाँ घुमि-घुमि बाबाक मंदिरमे लोक पहुँचैत छल। आब जा कए देखिऔक।मंदिरक भीतर आ बाहरक संपूर्ण परिदृश्ये बदलि गेल अछि।मंदिरक चारूकात पर्याप्त खाली स्थान अछि।मंदिर परसरमे लोककेँ अएबाक आ जएबाक लेल स्पष्ट व्यवस्था अछि।गंगाक घाटसँ सोझे मंदिर धरि बिना कोनो व्यवधानकेँ लोक आबि-जा सकैत छथि।गंगामे नहाउ,गंगाजल लिअ आ आबि कए बाबापर चढ़ाउ।

माधवजीक संगे गलीक रस्तासँ हमहूँसभ गंगक कात धरि पहुँचि गेल रही।मुदा गंगाक पानि बहुत घोरल-घारल छल।ओहिमे स्नान करबाक माने छल घर पहुँचि दोबारा स्नान करब जरूरी अन्यथा जेहो स्वच्छ रही से खराप भए जाएत।गंगाक पानि रहबे करैक तेहने।तथापि,हमसभ घाटपर बहुत नीचाँ धरि गेलहुँ।गंगामाताकेँ प्रणाम केलहुँ आ वापस भए गेलहुँ।गंगास्नान नहि कए सकलहुँ।फेर ओही गलीक बाटे माधवजी हमरासभकेँ वापस सड़कपर अनलनि।बीचेमे एकटा लस्सीक दोकानपर हमसभ लस्सी पीबि फरहर भेलहुँ।मंदिरक लगीचे भंडाराक ओरिआन छलैक।माधवजी ओकर आनन्द लेबए चाहैत छलाह।मुदासभ ताहि लेल उत्साहित नहि रही। पहिने घुमि ली तकर बाद देखल जेतैक-से सोचि हमसभ टैक्सीसँ सारनाथ दिस बढ़ि गेलहुँ।

सारनाथ

वाराणसीसँ नओ किलोमीटर उत्तरपूब कोनमे अवस्थित सारनाथमे भगवान बुद्ध पहिल बेर अपन शिष्यसभकेँ उपदेश देने रहथि।लुम्बिनी,बोधगया,कुशीनगरक आ सारनाथ बुद्धक अनुयायी लोकनिक लेल बहुत पवित्र तीर्थ मानल जाइत अछि। करीब आधाघंटाक बाद हमसभ सारनाथ पहुँचल रही। टेक्सी बाहरे द्वारिक पास रूकि गेल। तकर बाद हमसभ पैरे-पैरे सारनाथक प्रमुख स्थानसभ देखलहुँ।शुरूऐमे हमरा सभकेँ एकटा गाइड पछोर केलनि। ओ कमे बएसके रहथि आ हुनका ओहिठामक बारेमे कोनो विशेष ज्ञान नहि रहनि।तथापि,हमसभ हुनका उत्साहित करबाक उद्येश्यसँ राखि लेलहुँ। हमरासभकेँ ओ की बतबितथि,उल्टे हमहीसभ हुनका समय-समयपर किछु-किछु बतबैत रहलहुँ।हमसभ बेरा-बेरी संग्रहालय, थाई मंदिर, तिब्बती मंदिर, देखलहुँ। ओहि बच्चा गाइडक बहुत जोर रहैक जे हमसभ निकटवर्ती हथकरघाक दोकानपर चली।संभवतः ओकरा किछु कमीशन भेटितैक।आखिर हमसभ ओहि दोकानपर गेबो केलहुँ,मुदा हमरासभकेँ ओहिठाम कीनबाक योग्य किछु पसिंद नहि भेल। बाहर निकललाक बाद बच्चासभक लेल जरूर किछु खेलौना कीनलहुँ। तकर बाद हमसभ वापसी यात्रामे प्रेमचंदक गाम लमही दिस बिदा भए गेलहुँ।

 

लमही

थोड़बे कालमे हमसभ प्रेमचंदक गाम लमहीक ग्रामद्वारिमे प्रवेश कए रहल छलहुँ। द्वारिक दुनू कातमे बरदक   चित्र बनल अछि। गाममे कोनो तेहन विशेषता नहि बुझाएल। आने गामसभ जकाँ कोठाक घरसभ। प्रेमचंदक पुस्तैनी घर लग पहुँचलाक बाद हमसभ टेक्सीसँ उतरि गेलहुँ। दहिना दिस प्रेमचंदक नामपर बनल(मुंशी प्रेमचंद शोध एवं अध्ययन केन्द्र-लमही छल। बामा दिस प्रेमचंदक इनार छल जे आब झाँपि देल गेल छल। प्रेमचंदक पुस्तैनी मकानक देबालक पलस्तरसभ झड़ि रहल छल। ओकरा आब संग्रहालय बना देल गेल अछि।ओहिमे प्रेमचंदसँ जुड़ल अनेक प्रकारक वस्तुसभ राखल गेल अछि। हुनकर किछु किताबक पाण्डुलिपि सेहो राखल बुझाएल।किछु पुरान पत्रिका सेहो राखल छल। ओहिठामसँ कनीके फटकी सरकार द्वारा नवनिर्मिति भवन अछि। सामनेमे  कार्यालय सेहो बनल अछि जे ओहि दिन बंद छल। आसपास घुमलाक बाद हमसभ प्रेमचंदक पुस्तैनी घरक सामने बनल बैसकीपर बैसलहुँ, थोड़काल रुकलहुँ,फोटो घिचओलहुँ।लगपासमे केओ एहन नहि देखेलाह जिनकासँ प्रेमचंदसँ जुड़ल कोनो बातपर किछु चर्चा कए सकितहुँ।माधवजी किछु-किछु कहैत रहलाह।स्थानीय होएबाक कारण हुनका ओहिठामक बहुत किछु बूझल रहनि।आब किछु करबाक नहि छल। आखिर हमसभ ओहिठामसँ  बिदा भए गेलहुँ।कनीके फटकी प्रेमचंदक पोखरि सेहो देखाएल।पोखरि आब काजक नहि रहि गेल अछि। एतेक पैघ साहित्यकारक स्मृतिसँ जुड़ल हुनकर पैतृक घर आ आसपासक वस्तुक स्थिति देखि मोनमे बहुत दुख भेल।हमसभ आब वापस अपन डेरा दिस बढ़ि गेलहुँ।कैंटीनमे फोन कए देलिऐक जे हमसभ भोजन ओतहि करब।माधवजी सेहो हमरासभक संगे रहथि।हमसभ भोजन केलहुँ आ विश्राम लेल अपन कोठरी चलि गेलहुँ।

दुर्गाकुंड मंदिर

आइ वाराणसीमे हमरसभक तेसर दिन छल।हमसभ सभसँ पहिने प्रसिद्ध दुर्गाकुंड मंदिर गेलहुँ। असलमे पहिने दिन वापसी यात्रामे हमसभ एहि मंदिरक लगे सँ गेल रही।मुदा ओहिठाम पहुँचैत काल धरि बहुत थाकि गेल रही।साहस नहि भेल जे टेक्सीसँ उतरी।आइ सभसँ एहिने हमसभ एतहि पहुँचलहुँ।विलंबसँ अएबाक लेल मातासँ माफी मंगलहुँ। बहुत पवित्र स्थान अछि दुर्गाकुंड मंदिर।एकर स्थापना   अठारहम शताब्दीमे बंगालक महरानी भवानी करओने छलीह। कहल जाइत अछि जे एहिठाम माँ दुर्गा स्वयं प्रकट भेल रहथि। दुर्गा मन्दिरमे बाबा भैरवनाथ, लक्ष्मीजी, सरस्वतीजी, हनुमानजी आ माता कालीक मन्दिरो सेहो अछि।मंदिरक सामने एकटा बहुत पैघ पोखरि अछि। पहिने ई कुंड गंगासँ जुड़ल छल। पोखरिक पानि बहुत निर्मल देखाएल।मंदिरमे भगवतीक दर्शन केलाक बाद आसपास घुमलहुँ,कनी काल मंदिर परिसरमे बैसलहुँ आ काशीनरेशक पैतृक महल देखबाक लेल बिदा भए गेलहुँ।

 

 

 

काशीनरेशक पैतृक महल(रामनगरक किला)

स्थानीय लोकमे एहन मान्यता अछि जे काशीक तीनटा राजा छथि। पहिल बाबा विश्वनाथ,दोसर काशी नरेश आ तेसर डोम राजा।काशी राज घरानाकेँ काशी एस्टेटक नामसँ जानल जाइत अछि। सन् ‍१७०० ई०मे स्वर्गीय मंसाराम एकर स्थापना केलनि।तखनसँ सन् ‍१९४७ धरि ई परंपरा चलैत रहल। सन् ‍१९४७मे स्वतंत्रताक बाद काशी नरेशकेँ महाराजा विभूति नारायण शिंह लिखवाक अनुमति देल गेल छल।सन् २००० ई० मे हुनकर मृत्युक बाद हुनकर पुत्र श्री अनन्त नारायण सिंह कुँवरक नामसँ जानल छथि। संप्रति ओएह ओहिठामक उत्तराधिकारी छथि। ओहिठामक राजपरिवारक स्थानीय जनतामे बहुत धाख छल।मुदा पारिवारिक कलहक कारण आब स्थिति बहुत बदलि गेल अछि।

हमसभ जखन रामनगर किलाक मुख्यद्वारिपर पहुँचलहुँ तखन ओकर मरम्मतिक काज चलि रहल छल। मुदा भीतर जएबाक अनुमति छल। अस्तु,हमसभ टिकट लए किलामे प्रवेश केलहुँ। महलक अधिकांश भागमे राज परिवारक पुरान वस्तुसभ प्रदर्शनीक लेल राखल अछि। तरह-तरहक पुरान मोटर,हथियार,वर्तन,राज-परिवारक सदस्य लोकनि द्वारा प्रयोग कएल गेल गृहस्थीक अन्य वस्तुसभ देखबामे आएल। ऊपरका महलमे सेहो थोड़ बहुत  राज-परिवारक स्मृतिशेष भेटल। मुदा कनीके आगू गेलाक बाद रस्ता बंद छल।हमसभ सीढ़ीसँ नीचाँ उतरि गेलहुँ। समयो आब समाप्त भए रहल छल। सुरक्षाप्रहरीसभ सीटी बजा-बजा कए लोकसभकेँ वापस जएबाक आग्रह कए रहल छल।हमहूँसभ जल्दी-जल्दी किछु फोटो घिचओलहुँ आ वापसी यात्राक लेल मुख्याद्वारिसँ बाहर निकलि गेलहुँ। बाहर समोसा,चाटक कैकटा दोकान छल। मुदा हमसभ वाराणसीक प्रसिद्ध चाटक दोकान दीना चाट भण्डारपर चाट खएबाक लेल आगू बढ़ि गेलहुँ। बहुत काल चललाक बाद ओहि चाटक दोकानपर पहुँचबो केलहुँ,मुदा ओ बंद छल। तकर बाद हमसभ काशी चाट भंडार ( जे बहुत प्रसिद्ध अछि) दिस बिदा भए गेलहुँ।साँझक समय  छल। रस्तामे भीड़ लागि रहल छल। टैक्सीबला चाहिओ कए बहुत तेजसँ टैक्सी नहि चला सकैत छल। आखिर जेना-तेना हमसभ ओहि चाटक दोकानपर पहुँचिए गेलहुँ। जल्दीसँ हमसभ चाटक दोकानपर  अपन पसिंदक चाटक आदेश देलिऐक। थोड़बे कालमे गरमा-गरम चाट आबि गेल। ओ सचमुचकेँ बहुत स्वादिष्ट छल।चाटक बाद गरमा-गरम गुलाब जामुन सेहो चललैक।हमसभ तकर बाद ओहिठामसँ निकलिए रहल छलहुँ कि बाहरमे कुल्फी देखाएल।सभगोटे कुल्फीक आनन्द सेहो लेलहुँ ।रस्तामे हमसभश्रीराम पान दोकानपर मीठका पान खेलहुँ।पान कि ओ तँ एक प्रकारक मधुरे छल।आब हमसभ बहुत आश्वस्त छलहुँ।रातिमे किछु खएबाक स्थितिमे नहि रही, तेँ फोनपर केंटीनमे भोजन नहि बनेबाक लेल कहि देलिऐक। आधा घंटाक बाद हमसभ होलीडे होम पहुँचि गेलहुँ।

वाराणसीमे  चारिम दिन

आइ वाराणसीमे हमर सभक चारिम दिन छल। मोटामोटी जे स्थानसभ देखि सकैत छलहुँ,से देखलहुँ।किछु स्थान गंगामे बाढ़िक कारण नहि देखल जा सकल। कतहु-कतहु बहुत पैदल चलबाक रहैत।ताहू ठाम नहि जा सकलहुँ। मुदा आइ की करब?टैक्सी आबि चुकल छल।माधवजी सेहो हमरासभक प्रतीक्षा कए रहल छलाह।आखिर बिदा भेलहुँ।सभसँ पहिने लगीचेमे स्थित हथगरघा म्युजियम पहुँचलहुँ। ओहिठाम हमर श्रीमतीजी पसिंदक सारीसभ कीनलनि। ओतए कैकटा दोकानमे हस्तनिर्मित सामानसभ विक्रय लेल उपलब्ध छल। से सभ देखैत सुनैत हम सभ घंटा भरिक बाद ओहिठामसँ निकलि कबीर पंथक मुख्यालय पहुँचलहुँ। ओहिठाम जएबाक लेल बहुत काल पैरे चलए पड़ल।रस्तामे गाय-महीषसभक गोबर भरल छल।आखिर हमसभ कबीरस्थानमे प्रवेश केलहुँ। ओहिठाम कबीरदाससँ जुड़ल बहुत रास वस्तुसभ राखल देखाएल। अनेक स्तंभसभपर कबीरदासक उपदेशसभ लिखल देखाएल।सामनेमे एकटा महंथजी बैसल छलाह। ओहिठाम गेलाक बाद एकटा महिला हमरासभक स्वागत केलनि आ ओतए भीतरमे बैसबाक आग्रह केलनि।मुदा हमरा ओहिठाम किछु आकर्षक नहि बुझाएल।ओहिठाम सफाइक अभाव छल।संगे बाहरसँ गोबरक गंध आबि रहल छल।हमसभ जल्दीए उबि गेलहुँ।आखिर थोड़ेकाल एमहर-ओमहर घुमलाक बाद हमसभ बाहर निकलि गेलहुँ।

भारतमाता मंदिर

बाबू शिव प्रसाद गुप्ता द्वारा सन् ‍१९१८सँ ‍१९२४क बीच सात वर्षमे निर्मित  भारतमाता मंदिरक उद्घाटन महात्मा गांधी द्वारा पन्द्रह अकटूबर सन् ‍१९३६ कए  कएल गेल छल। ई वनारस रेलवे टीसनसँ डेढ़ किलोमीटर आ काशी विश्वनाथ मंदिरसँ छओ किलोमीटर दूरीपर अवस्थित अछि।भारत माता मंदिरमे कोनो देवी-देवताक नहि, अपितु अखंड भारतमाताक चित्र बनाओल गेल अछि। एहिसँ भारतक लोककेँ देश प्रेम आ राष्ट्रीय एकताक प्रेरणा भेटैत अछि। हमसभ एहि मंदिरमे पहुँचि बहुत आनन्दित भेलहुँ। कैक बेर चारू कात घुमलहुँ।

श्री शिवाय भोजनालय

साँझमे डेरा लौटबासँ पहिने हमसभ श्री शिवाय भोजनालय पहुँचलहुँ। ओहिठाम भोजन करबाक योजना कए दिनसँ बनि रहल छल। हमसभ आइ तय केने रही जे वापसीमे ओतहि भोजन करबाक अछि।तेँ केंटीनमे  पहिनेसँ मना कए देने रहिऐक। हमसभ श्रीशिवा भोजनालयमे जखन गेलहुँ तँ ओ खालीए छल। असलमे हमसभ भोजनक समयसँ किछु पहिने पहुँचि गेल रही। तथापि,हमरासभकेँ नीकसँ स्वागत कएल गेल। देशक विभिन्न भागक प्रसिद्ध भोजनसभकेँ समायोजित करैत ओहिठामक थारी भोजन बहुत प्रसिद्ध अछि। अस्तु,हमसभ तीनूगोटे  ओहि भोजनक आनन्द लेलहुँ। बेरा-बेरी अलग-अलग प्रकारक भोजनसभ परसल जाइत छल।जे खाइ,जतेक खाइ। हमसभ कतेक खइतहुँ?यथासाध्य भोजन केलाक बाद हमसभ डेरा लेल बिदा भए गेलहुँ।

वापसी यात्रा

आइ हमर सभक वाराणसी यात्राक पाँचम दिन अछि।आइ किछु नहि करबाक अछि।हमरासभ आजुक दिन विश्रामक लेल रखने छी।हमरासभकेँ होलीडे होममे घरो बदलबाक अछि।एक दिनक लेल हमसभ भीआइपी कोठरीमे जा रहल छी ,कारण दोसर कोठरी उपलब्ध नहि छल। हमरासभ लग बहुत कम सामान अछि। कम सँ कम सामान लए यात्रापर जएबाक चाही।हमसभ सएह प्रयास केने रही। तथापि दूटा बाकस आर किछु सामानसभ रहबे करए।बेरा बेरी ओकरा हमसभ उठा-उठा कए नवका कोठरीमे लए गेलहुँ।हमसभ नवका कोठरीमे पहुँचि बेस खुस रही। बड़ीटा हाल,बेडरूम सेहो पैघ।संगमे आर तरहक सुविधासभ। आब की?थोड़े काल एसी खोलि कए आराम केलहुँ।अचानक ध्यान  आएल जे दाँत तँ छुटिए गेल। आहि रे बा!आब की करी?दाँत कतए रहि गेल?हमरा बेचेन देखि ओ कहलथि-

“किएक परेसान छी? अहाँ कोन दाँत लगबिते छी जे नहि रहलासँ बेचेन छी। यदि जरूरी बुझाएत तँ फेर बना लेब।”

हम की बजितहुँ?चुप रहि गेलहुँ। तकर बाद मोन भेल जे कनी पुरना कोठरीमे जा कए देखिऐक।पुरना कोठरी एक तल नीचाँ छल। ओहिठाम कनीके पहिने सफाइबलासभ काज केने छल। तथापि,सौंसे तकलहुँ।कतहु दाँत नहि देखाएल।ओ एकटा छोटसन डिब्बीमे राखल रहैत छल। एमहर-ओमहर सौंसे बौअएलहुँ। आखिर,वापस नवका कोठरीमे आबि गेलहुँ।टीभी देखबाक प्रयास केलहुँ।मुदा मोन नहि लागि रहल छल। फेर नीचाँ गेलहुँ। पुरना कोठरीक बगलमे कूड़ादान राखल छलैक।भेल जे देखिऐक।की पता एतहि दाँत राखि देल गेल होअए?कहबी छैक –

“मरता क्या नहीं करता।”

ओहि कूड़ादानमे हाथ देलहुँ।ऊपरसँ कनीके हटओलाक बाद ओ डिब्बी भेटि गेल। ओकर भीतरमे डिब्बीमे पानि आ पानिमे हमर दाँतसभ ओहिना देखा रहल छल। हम तुरंत ओहि डिब्बीकेँ बाहर केलहुँ। ओकरा नीकसँ अनेक बेर साबुनसँ साफ केलहुँ।फेर डिब्बी खोललहुँ।पानि हरा देलिऐक आ दाँतकेँ वारंबार साफ केलहुँ।आब दाँत ठीक बुझाएल। ओकरा लेने विजयी मुद्रामे कोठरी वापस पहुँचलहुँ।हमरा प्रसन्न देखि ओ बुझि गेलथि।

“भेटि गेल की?”

जबाबमे हम हँसि देलिअनि।

बेस कीमती दाँत भेटि गेलासँ हमसभ बहुत आश्वस्त रही।आइ किछु करबोक नहि रहए।कतहु जएबोक नहि रहए।ओतेकटा भीआइपी कोठरीमे दू गोटे ।दिन-भरिक विश्रामक बाद हमसभ कल्हुका यात्राक ओरिआनमे लागि गेलहुँ।हमरासभकेँ वापसीमे विंध्याचल भगवतीकेँ दर्शन करैत प्रयागराज जएबाक छल। अस्तु,हमसभ ओही टैक्सीबलाकेँ ठीक केलहुँ।ओ हमरासभकेँ काल्हि  भोरे सात बजे प्रयागराज लए जेताह।हमसभ  ताही हिसाबसँ तैयारी केलहुँ।भोरे सात बजे टैक्सी आबि गेल छल।होलिडेहोमसँ काल्हिए फारकती भेटि गेल छल। हमसभ अपन सामानसभ टैक्सीमे रखलहुँ ,कोठरीक कुंजी स्वागतीकेँ दए देलिऐक आ टैक्सीमे आगूक यात्राक लेल बैसि गेलहुँ।

कनीकालक बाद एकटा नीक ढाबापर हमसभ चाह पीलहुँ।चाहक चुस्कीक संग हमसभ अपन वाराणसी यात्राक स्मरण करैत रहलहुँ।

“केहन रहल अपनसभक ई यात्रा?”

“अद्भुत। बहुत आनन्ददायी।”

“वाराणसीमे  की सभसँ नीक लागल?”

“ओना तँ बहुत रास नीक-नीक स्थानसभ देखलहुँ,मुदा बाबा विश्वनाथमंदिरक व्यवस्था बहुत प्रशंसनीय छल। बाबाक दर्शन बहुत बढ़िआँसँ भए सकल।”

आब चाह खतम छल।हमसभ फेर टैक्सीमे बैसि गेलहुँ , बिदा भए गेलहुँ ,,,।बहुत किछु देखलहुँ,बहुत किछु नहिओ देखि सकलहुँ।मुदा हमरसभक मोनपर कुलमिला कए एहि यात्राक बड़ नीक प्रभाव पड़ल।हमसभ बादोमे एहि यात्राक प्रसंगसभपर कैक दिन धरि आपसमे चर्चा करैत रहलहुँ।

रबीन्द्र नारायण मिश्र

‍१८।१२।२०२५