सत्यम्
शिवम् सुंदरम्
आज-कल
लोग बेचैन हैं
जिसे देखिए वही है अस्तव्यस्त ,
वैसे तो मुलाकात होती ही नहीं
पर सामने आ ही गए
तो बड़बड़ा उठेंगे-
“क्या करें
उलझनों में फँसा हूँ
मरने की भी फुर्सत है नहीं ।”
पर यह दौर-धूप
दे नहीं सका सुकून
और हम चलते रह गए बेफजूल ।
एक-एक पैसे का हिसाब में मसगूल
आस-पास से कटते चले गए
पता भी नहीं चला
कि सामने वाला पड़ोसी
कब गुजर गया?
कब हमारे बाल उजले हो गए?
हम तो सुलझाने के प्रयास में
उलझते ही रह गए,
सब कुछ लगाकर दावपर
खुद हाशिए पर रह गए ।
और एक दिन हम चल पड़े
खाली हाथ दुनिया छोड़कर
सब कुछ धरे ही रह गए ।
नहीं मिल सका विश्राम पल भर
सुख-शांति दुर्लभ रह गए ।
आखिर ऐसा हुआ क्यों ?
क्यों कि
हम आत्मकेन्द्रित रह गए ।
यदि दूसरों की
उपलव्धियों से सुखी होते
आस-पास निर्मित घरों से
होते वैसे ही प्रसन्न
जैसे थे अपने गृह प्रवेश के दिन ।
तो बात ही कुछ और होती ।
यह समग्र भावना
हमें पहुँचा सकती थी
स्वर्ग के द्वार तक,
परंतु हमने खुद ही कर दिया है पटाक्षेप
खुद को कर दिया है सीमित
छोटे से दायरे में
और कहते फिर रहे
कि क्या करूँ?
मन लगता नहीं है ।
कैसे लगेगा?
जिन्हें हम अपना समझते रहे
वे पास रहे ही नहीं
और जो हैं वे तो
कभी अपने थे ही नहीं ।
पर क्या करिएगा?
यह जीवन है
जैसे-तैसे गुजर जाएगा
लेकिन वह खुशी,वह आनंद जो आप
को मिल सकती थी
उसे आपने खुद ही गवाँ दिया
इसलिए ही
अंत-अंत तक हम रह गए
अधूरे,असंतुष्ट और अतृप्त
क्योंकि
सर्वस्व समर्पण के बिना
असंभव है शांति
और अशांत मन में
व्यर्थ है सुख की कामना ।
जरुरी है कि
हम खुद को करें
श्रिष्टि से एकलय
सबमें दिखे आत्मभाव
सत्यम् शिवम् सुंदरम्
जीवन मंत्र हो
सर्वत्र सुख समृद्धि हो
कल्याण हो सबका यही अरमान हो ।
रबीन्द्र नारायण मिश्र
19.5.2020
mishrarn@gmail.com