एकदिन साँझमे हम
टहलैत गामसँ पूब चलि गेल रही । बेसिक इसकूलक लगीचमे सड़कक कातमे बैसल रही कि फटकिएसँ ककरो साइकिलपर गेरुआ वस्त्र पहिरने
मधुबनी दिससँ अबैत देखलिऐक । जौं-जौं ओ लगीच अबैत गेल तँ स्पष्ट होइत गेल जे ओ केओ आओर नहि हमर
इसकूलिआ संगी श्रीनारायणजी छथि । हम तँ हुनका देखिते रहि गेलहुँ। आखिर ई भेलैक
केना?
थोड़बे
दिन पहिने तँ हुनकर बिआहक समाचार भेटल रहए । तकर बाद एकदम बदलल परिधान- गेरुआ वस्त्र,पैघ-पैघ केश । बहुत
आश्चर्यपूर्वक हम हुनका दिस बढ़लहुँ । ओहो सइकिलसँ उतरलाह-
“औ रबीन्द्रजी! की हाल-चाल?”
ततेक उत्सुकता भेल छल जे होअए
जे की पुछिअनि,की नहि । मुदा
साँझ पड़ैत रहैक । हुनको गाम जेबाक रहनि। तेँ ओ किछुकालक बाद हमरासँ बिदा लैत
साइकिलपर चढ़ि गाम दिस बढ़ि गेलाह । बहुतरास जिज्ञासा मोने मे रहि गेल । बुझबे नहि
करिऐक जे एना गेरुआ वस्त्र ओ कहिआसँ पहिरए लगलाह । असलमे ओ ओशोसँ दीक्षा लए लेने
छलाह । “
हम ई कहिओ नहि
सोचने रही जे नित्यप्रति जिनका संगे इसकूलमे एकहि बेंचपर पढ़ैत रहलहुँ,बादमे मधुबनी
कालेजोमे संगे रहलहुँ से गेरुआवस्त्रधारी सन्यासी भए जेताह । संन्यासिओ केहन? जे रहताह घरेमे,धीया-पुताक
पालन-पोषणसेहो करताह,घरबाली सेहो संगे रहथिन आ भजन-कीर्तन सेहो चलैत रहत । मुदा सएह
भेलैक। ओहि समयमे आचार्य रजनीशक हवा बहल रहैक रेडिओसँ नित्य हुनकर प्रवचन प्रसारित होइत छल ।
हुनकर किताबसभ खूब पढ़ल जाइत छल । युवकसभकेँ हुनकर विचार बहुत नीक
लगलैक । बहुत रास लोक रजनीशक चेला भए गेलाह।
ओही समयमे हमर
दूटा इसकूलिआ संगी सेहो हुनकर पकिआ चेला भेल रहथि । एकटा फेकनजी(स्वामी आनंद
वैराग्य) आ श्री नारायणजी मुदा दुनूगोटेक जीवन व्यवस्थामे बहुत अंतर छल । श्रीनारायणजी
आचार्य रजनीशक किछु बहुत नीक तत्वकेँ ग्रहण करबामे सफल रहलाह । जाहिमे हमरा हिसाबे
प्रमुख छल- ध्यान। अपने संगे पूरा परिवारकेँ ध्यान करबाक कलामे पारंगत कए देलाह
जकर बहुत नीक परिणाम हुनका लोकनिक भविष्यपर पड़ल। हुनकर दुनू पुत्र(आलोक आ आशीष)
बहुत प्रतिभाशाली भेलाह । कला आ संगीतक संग इसकूलिआ पढ़ाइमे नाम कए गेलाह। आशीष तँ
ततेक पढ़लाह जकर वर्णन करब मोसकिल । आइआइटीसँ इंजिनीयरिंग केलाक बाद अमेरिकामे
छात्रवृत्ति भेटि गेलनि आ ओतहिसँ पीएचडी,आ तकर बादो कतेको तरहक उच्च शिक्षा लेलाक बाद
ओतहि वैज्ञानिक भए गेलाह । तहिना आलोक सेहो इसरोमे वैज्ञानिक भए गेलाह ।
ओहि घटनाक पचास
साल भए गेल होएत । मुदा श्रीनारायणजीसँ कखनो भेंट होएत तँ ओहिना आकर्षक मुद्रामे
स्वागत करैत भेटताह । ई कोनो कम आश्चर्यक बात नहि जे हुनकासँ ५७ वर्षसँ लगातार
ओहिना मधुर संबंध बनल अछि । सभसँ पहिने हुनकासँ भेंट भेल छल ९जनवरी १९६३मे जखन ओ
अपन काकाक संगे हाइ इसकूल एकतारामे नाम लिखाबक हेतु आएल रहथि आ हमहु अपन बाबूक
संगे ओही लेल गेल रही । इसकूलक बरंडापर
बेंचपर इसकूलक किरानी बूचन बाबू रजिष्टरमे लिखा-पढ़ी करैत छलाह आ हमर बाबू आ हुनकर
काका हुनका लग बेंचपर बैसल रहथि । हमसभ हुनकासभक पाछा ठाढ़ रही । तकर बाद चारि
वर्ष (आठमासँ एगारहमा धरि )हमसभ ओहि इसकूलमे पढ़लहुँ । क्रमशः इसकूलक आओर
विद्यार्थीसभसँ परिचय होइत गेल ।
एकतारा इसकूलमे
लगपासक गामक बहुत रास विद्यार्थीसभ पढ़ैत छलाह ,जेना नवकरही,करही,परजुआरि,चंपा,नवटोली,कुशमौल,जमुआरी । किछु विद्यार्थी
बेलौजा,सिनुआरा,विष्णुपुरसँ सेहो
ओतए पढ़बाक हेतु अबैत छलाह । एकतारा,विचखानाक तँ बहुत रास विद्यार्थी छलाह ।
कुलमिला कए देहातक ओ बढ़ियाँ इसकूलमेसँ मानल जाइत छल । नवकरहीक नारायणजी,विजयजी,एकताराक फेकनजी, नगवासक
श्रीनारायणजी किछु एहन विद्यार्थीसभ छलाह जे अखनो स्मृतिमे ओहिना बैसल छथि जेना
पचास साल पूर्व रहल हेताह ।
ओहिदिन नाम लिखेलाक बाद
बाबूक संगे हम गाम वापस अएलहुँ। ओही रातिमे लालबाबा(हमर बाबाक छोट सहोदर भाए
स्वर्गीय जनार्दन मिश्र)क देहांत भए गेलनि । जखन हम इसकूलसँ वापस अएलहुँ तँ उतरबरिआ
ओसारापर कैकटा महिलासभ लालबाबीक संगे कनैत छलीह । केओ-केओ बजैत छलैक जे लालबाबाक
हालति बहुत खराप छनि । हमरा लगैत अछि जे रातिक नओ बजे बड़ी जोरसँ कन्ना रोहटि शुरु
भेल । लालबाबा चलि गेल रहथि -दूर-बहुत दूर जतएसँ आइधरि केओ वापस नहि आएल । हमर
संगे लालबाबाक दोसर पुत्र विन्ध्यनाथ मिश्र सेहो आठमामे नाम लेखओने रहथि ।
लालबाबाक देहांत आ हमर एकतारा इसकूलमे नाम लेखेबाक घटना एकहि संगे एकहि दिन भेल
रहए आ जखन-तखन दुनू घटना हमरा मोनमे अखनो एकहि संगे उभरि जाइत अछि ।
लालबाबाकेँ क्षय
रोग रहनि । बहुतदिनसँ ओ ओछाओन धेने रहथि । देहमे हड्डिएटा बाँचल रहनि । कैकदिन
हुनका आङनमे रौदमे पटिआपर पड़ल देखिअनि । टीवी पटएबला विमारी रहैक । तथापि, हमसभ हुनका
लग-पासमे ओहिना अबैत जाइत रहैत छलहुँ । ओहिसमयमे टीबी विमारीसँ हमरा गाममे बहुत
लोग कमे बएसमे मरि गेल रहथि । जाहिमे स्वर्गीय शशिधर मिश्र,स्वर्गीय जगदीश
झाक चर्च बहुत दिनधरि होइत रहैत छल । श्वर्गीय शशिधर मिश्र स्वर्गीय कुमर मिश्रक पुत्र छलाह । सुनिऐक जे ओ
बहुत प्रतिभाशाली रहथि। वाटसन इसकूल मधुबनीमे पढ़थि । मुदा कमे बएसमे टीबी विमारीक
शिकार भए गेलाह । अंग्रेजीमे लिखल हुनकर बहुत रास कवितासभ हम देखने रही जे
कालांतरमे धएल-धएल नष्ट भए गेल । स्वर्गीय जगदीश झा गेनखेलीमे माहिर रहथि। बहुत
रास मेडलसभ जितने रहथि। बिआहभए गेल रहनि।
एकटा संतान(कामदेव भाइ) मात्र रहनि । ओतबे कम बएसमे ओहो टीबी विमारीसँ चलि
गेलाह ।
लालबाबा चलि गेलाह
। तकरबाद ध्रुब काका(हुनकर ज्येष्ठ संतानऐक बिआह भेलनि । हुनका सासुरमे एभोन
साइकिल देने रहनि । विन्ध्यनाथजी ओही साइकिलसँ एकतारा इसकूल जाए लगलाह । हम पएरे
जाइ । एमहरसँ विंध्यनाथजीक साइकिल पाछूसँ कृष्ण कुमार बाबू(बेलौजा ग्रामक हमरसभक
शिक्षक)क टीटों करैत साइकिल अबैत छल तँ सामनेसँ श्रीनारायणजीक काकाक साइकिलक
बसुरिआ आबाज सुनाइत छल । ई दुनू साइकिल हमरासभक इसकूलक रस्तामे कतहु- ने- कतहु जरूर टकराइत
आ ओहीसँ हमसभ अंदाज लगाबी जे इसकूल सही समयपर जा रहल छी कि नहि ।
हाइ इसकूल एकतारा
देहातक इसकूल छल । ओहिमे पढ़इक अतिरिक्त अन्य गतिविधिक बेसी गुंजाइस नहि रहैक । कहिओ
काल सांस्कृतिक कार्यक्रमक नामपर इसकूलक बरंडापर विद्यार्थीसभ जमा होइत छल,शिक्षक लोकनि सेहो
कुर्सीपर बैसि जाइत छलाह । केओ-केओ गाना गबैत,केओ कोनो समसामयिक विषयपर रटल
लेख बोकरि दैत । एकटा छोटसन कोठरीमे पुस्कालयक नामपर किछु किताबसभ राखल छल । जँ ओ पुस्तकालय
खुजि गेल तँ बुझू जे चमत्कार भए गेल । ताहि माहौलमे किछु प्रतिभाशाली विद्यार्थीसभ
बहुत नीक पढ़ाइ केलाह आ आगा जीवनमे सेहो नीकसँ स्थापित भए सकलाह तँ एकटा चमत्कारे
कहबाक चाही । किछु नीक विद्यार्थीसभ किलासक अगिला बेंचपर बैसैत छलाह । भुसकौल
विद्यार्थीसभ प्रयास कए पछिला बेंच धेने रहैत छलाह । किलासमे सबक नहि पूरा करबाक
कारण एहन विद्यार्थीसभकेँ शिक्षक लोकनि ततेक हतोत्साहित करथि जे हुनकर सभक प्रतिभा
आ आत्मसम्मान माटिमे मिलि जाइत छल ।
मोटा-मोटी पाँच-सातटा विद्यार्थी एहिसभसँ बाँचल रहि जाइत छलाह आ मैट्रिकक परीक्षा
नीकसँ पास कए कालेज पहुँचैत छलाह ।
सामान्यतः एकटा
बेंचपर चारिटा विद्यार्थी बैसैत छल । हम,नारायणजी,श्रीनारायणजी,विजयजी, सामान्यतः अगिला बेंचपर
बैसैत छलहुँ । हमरा लोकनि नीक विद्यार्थी
मानल जाइत छलहुँ । एकर सकारात्मक प्रभाव हमरा लोकनिक व्यक्तित्वपर सेहो पड़ब
स्वभाविक छल । मैट्रिकक परीक्षाक परिणाम आएल तँ एकतारा इसकूलक परिणाम नहि बाहर भेल
छल । किछु तकनीकी समस्या भए गेल रहैक । एकाध मास बादमे जखन परिणाम बाहर भेल तँ
चारिटा विद्यार्थीकेँ प्रथम श्रेणी भेल रहैक । हम,नारायणजी,श्रीनारायण आ
विजयजी । परिणाम देरीसँ बाहर हेबाक कारणे नीक कालेजसभमे नामांकन बंद भए गेल रहैक ।
परिणामतः हम चारूगोटे आर.के.कालेज मधुबनीमे प्री-साइंसमे नाम लिखओलहुँ । आर.के
.कालेज मधुबनी इलाकाक पुरान कालेज मानल जाइत छल । ओहि समयमे स्वर्गीय ए.के.घटक
कालेजक कार्यकारी प्राचार्य छलाह ।
आर्थिक उपार्जन
हेतु श्रीनारायणजी फेकनजीक संगे मिलि कए टाइपिंग आ सार्टहैंड कोचिंग इसकूल चलबैत
छलाह । ओहिमे निरंतर विद्यार्थीसभक भीर रहैत छल । कालक्रममे ओ ओकर पूरा मालिक भए गेलाह । किछुदिन ओ ज्योतिषक काज
सेहो केलनि। हुनकासँ टिपनि बनेबाक हेतु लोकसभ लाइन लगओने रहैत छल । तारीफक बात ई
थिक जे एही आमदनीसभसँ ओ अपन दुनू संतानकेँ बिना कोनो प्रकारक ॠण लेने बहुत नीक
शिक्षा देबामे कामयाब रहलाह । आब तँ हुनकर घर जाएब तँ देखिते रहि जाएब। साइते
मधुबनी शहरमे ककरो घर एतेक सजल-धजल हेतैक । ऊपर दूमहला बनि गेल अछि । घरमे एक-एक
चीज बहुत व्यवस्थासँ राखल भेटत । सभसँ
बेसी आकर्षित करैत अछि ओहिठामक शांति। हम कैकबेर जहन थाकि जाइ तँ हुनका
ओहिठाम चलि जाइत छलहुँ आ थोड़बे कालमे सभटा थकान खतम भए जाइत । श्रीनारायणजी ओशोक
कोनो प्रवचनबला टेप चला दितथि । किछुकाल धरि हमसभ ओकरा सुनितहुँ । फेर
श्रीनारायणजी ओहिपर अपन मंतव्य दितथि। एहि तरहें बहुत नीकसँ समय कटि जाइत छल ।
श्रीनारायणजी अपन
बाबासँ मंत्र लेने छलाह । कहक माने जे ओ हुनकर प्रथम गुरु रहथिन । बाबासँ हुनका
शिक्षा भेटलनि जे कहिओ ॠण नहि ली । ताहिबातक ओ अंतधरि पालन करैत रहलाह । मधुबनी
वाल्मिकी नगर(नीलम टाकीजसँ आगू) हुनकर घर छल । ओहि घरकेँ कतेको किस्तमे बनैत हम
देखने छी । मुदा हुनका जखन जतबे आमदनी भेलनि ततबे काज करबैत गेलाह । तहिना
नेनासभहक पढ़ाइमे सेहो ओ बैंकोसँ ॠण नहि लेलाह ।
श्रीनारायणजीक संग
हमर परिचय सन् १९६३मे भेल छल। ५७ वर्ष बिति गेल ।
हुनकासँ ओहिना संबंध बनल अछि जेना इसकूलक समयमे छल । मधुबनी जेबाक एकटा
प्रमुख आकर्षण श्रीनारायणजी रहैत छथि । हम सन्१९८८मे मधुबनीमे मकान बनेनाइ प्रारंभ
केलहुँ । ओहि काजमे श्री नारायणजी निरंतर सहयोग करैत रहलाह । मिस्त्री तकनाइ.सामान
किननाइ,मकान बनि गेलाक
बाद ओकरा भारा लगेनाइ आ तकर बाद भारा वसूल केनाइ सभ काजमे ओ सहयोगी रहलाह । ततबे
नहि जखन भेल जे ओ मकान बेचल जाएत तँ ताहुमे ओ सहयोग करबाक हेतु तत्पर रहथि । मुदा
संयोग एहन भेलैक जे मकान एकहि दिनमे बिका गेल आ हुनका ओकर रजिष्ट्री भेलाक बादे
हुनका सूचना दए सकलिअनि । असलमे मधुबनी
मकानक किरायेदार जखन तेरह वर्ष रहलाक बाद मकान खाली केलाह तखन श्रीनारायणेजी ओहिमे
आठटा ताला किनि कए ओकर सभटा केबारकेँ बंद केलथि । मकान निर्माणक काज जखन शुरु भेल
रहए तँ सुखिआ-दुखिआ नाम दुनू मिस्त्रीकेँ ओएह ताकि कए देने रहथि । बिना कोनो
स्वार्थकेँ एतेक दिनधरि ओ मकानक काजमे सहयोग करैत रहलाह। एहन उदाहरण भेटब बहुत
मोसकिल । हमरा इच्छा रहए जे ओ मकान किनि लेथि । मुदा हुनका तकर प्रयोजन नहि रहनि ।
आखिर,
ओ
मकान बिका गेल मुदा जाधरि ओ रहल ओहिमे किछु-ने-किछु काज चलिते रहल आ ताहिमे
श्रीनारायणजी मदति करिते रहलाह ।
श्रीनारायणजीक छोटपुत्र
आशीष पीएचडी करबाक हेतु अमेरिका जाइत रहथि । श्रीनारायणजी सपरिवार रामकृष्णपुरमके
हमर सरकारी आवासपर ठहरल रहथि । यात्राक दिन आबि गेल छल । हमसभगोटे हवाइ अड्डा बिदा
भेलहुँ । श्रीनारायणजीक श्रीमतीजी उदास रहथि । एतेक सुयोग्य पुत्र एतेक दूर जा रहल
छलखिन । मुदा हर्षक बात रहैक जे हुनका विश्वविद्यालयसँ छात्रवृत्ति भेटल रहनि ।
अपना दिससँ किछु खर्च नहि करबाक रहनि । एहन अवसर भेटलापर केओ गर्व कए सकैत अछि , से भाग्य हुनका
सभकेँ उपस्थित कए देने रहनि । तखन अपनलोकक वियोगसँ दुख तँ स्वभाविके थिक । चेक-इन
केलाक बाद एकबेर फेर ओ फटकिएसँ प्रणाम करए आएल रहथिन । श्रीनारायणजीक श्रीमतीजीक
आँखिसँ नोर झहरि रहल छल । कनी कालक हेतु तँ हमरो मोन दुखी भए गेल । मुदा हुनका
लोकनिक एही त्यागक फल भेल जे ओ अमेरिका गेलाक बाद पीएचडी तँ केबे केलाह ,तकर बाद सेहो आगु
पोस्टपीएचडीक पढ़ाइ केलाह आ ओतहि बहुत नीक प्रतिष्ठानमे वैज्ञानिकक काज आब कए रहल
छथि । आशीषक अमेरिका जेबाक ओ दृष्य अखनहुँ हमरा ओहिना मोन पड़ैत रहैत अछि,जेनाक काल्हिए घटल
होइक ।
हमरा हिसाबे श्रीनारायणजीक
एहि उपलव्धिक पाछा हुनकर माता-पिताक आशीर्वाद बहुत काज केलक । ओ दुनू व्यक्ति
संपूर्ण शक्तिसँ अपन माता -पिताक सालों सेवा करैत रहलाह । एहि मामिलामे एहन उदाहरण
साइते भेटत । कारण सामान्यतः जँ बेटाकेँ इच्छा रहितो छैक तँ पुतहु संग नहि दए पबैत
छथिन माता -पिताक सेवा नहि भए पबैत अछि । मुदा श्रीनारायणजीक श्रीमतीजी प्रशंसाक पात्र छथि । ओ निरंतर श्रीनारायणजीक संग पुरलथि आ सेहो बहुत सहर्ष । जखन
कखनहुँ हम श्रीनारायणजीक डेरापर गेलहुँ हुनकर परिवारमे अद्भुत समन्वय आ शांति
देखलहुँ । दुनू व्यक्तिमे एहन तालमेल तँ डिबिआ लए कए ताकब तखनो भेटत की नहि ।
श्रीनारायणजीक श्रीमतीजी पाक कलामे अद्वितीय छथि । बारीक साग,बारीक नेबो,बारीक सजमनि सभ
किछु मौलिक आ टटका होइत जे खाइते रहि जाइ ।
श्रीनारायणजी घरक
पाछूक बारीमे तरह-तरहक फल,तरकारी सभ उपजबैत छथि । काते-काते कैक तरहक फूलक गाछसभ
। सामनेमे ओशोक ध्यान आश्रम अछि जाहिमे भोर-साँझ ओशोक भक्त लोकनि ध्यान-पूजा करैत
छथि । एकाधबेर हमरो ओतए रहबाक मौका भेटल छल । अत्यंत आकर्षक ध्वनिपर शांतिपूर्ण
वातावरणमे भक्तलोकनि ध्यान करैत छथि आ अंतमे प्रसाद लए अपन-अपन घर चलि जाइत छथि ।
एहिसभ तरहक गतिविधिमे श्रीनारायणजी भोरसँ साँझ धरि ततेक व्यस्त रहैत छथि जे हुनका
आओर कोनो चीजक वा आन ककरो कोनो प्रयोजन साइते रहैत होनि ।
श्रीनारायणजी
सपरिवार अनेको बेर अमेरिकाक यात्रा कए चुकल छथि । ओहिठामक गत्र-गत्र घुमि चुकल छथि
। एहूसाल ओ छ मास ओतहि छलाह । जेबा काल कहने रहथि जे वापसीमे हमरासभसँ भेंट करिते
जेताह । ओ दिल्ली अएबो केलाह । मुदा कोरोनाक प्रकोप ताबे पसरि गेल छल । भेंट तँ
नहि भए सकल मुदा फोनपर गप्प-सप्प भेल । मधुबनी वापस पहुँचलाक बादो हुनकासँ लगातार
गप्प भइए रहल अछि । चिंता रहए जे अमेरिकासँ लौटलाक बाद कहीं कोरोना तंग ने करनि
मुदा ओ पूर्ण ठीक छथि। हुनकामे खूबी अछि जे जखन जतहि रहैत छथि ओतहि संपूर्ण रूपसँ समर्पित भए जाइत छथि ।
ओ बेर-बेर इएह कहैत हैत छथि-“”Let us live moment to moment .”ऐहि कथनकेँ ओ अपन
जीवनमे पूर्णतः अंगीकार केने छथि । एहि प्रकारें एकटा सहज सरल जीबैत ओ सभतरहें
उत्कृष्टताकेँ प्राप्त कए समाजमे सभक हेतु प्रेरणा पात्र भए गेल छथि । एहन विनम्र
आ संस्कारी व्यक्ति सहीमे एहि संसारमे
बहुत कमे होइत छथि । प्रसन्नताक बात जे ओ हमरासभक बीचमे छथि आ निरंतर आनंदित केने
रहैत छथि । अपन व्यवहारसँ ओ सन्यासी रहितहुँ सफल गृहस्थ साबित करबामे सफल रहलाह ।
ब्रह्मण्याधाय
कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः।
लिप्यते न स पापेन
पद्मपत्रमिवाम्भसा।।5.10।।
(जे सभ कर्म
व्रह्ममे अर्पण कए आसक्तिक त्याग करैत छथि ओ कमलक पात सन(जे पानिमे रहितहुँ पानिसँ
फराक रहैत अछि) पापसँ लिप्त नहि होइत छथि ।)
गीताक उपरोक्त
श्लोककेँ जीवंत उदाहरण छथि श्रीनारायणजी । हम एहिबातसँ गौरवान्वित छी जे नियतिवश
एतेक दीर्घ अवधि धरि हुनकर निकटताक आनंद उठेबाक सौभाग्य हमरा भेटल ।
७.६.२०२०
सरल भाषा आ सहज प्रस्तुति.
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