रविवार, 25 मई 2025

श्री उदय चन्द्र झा ‍’बिनोद’

 

श्री उदय चन्द्र झा ‍’बिनोद’

मधुबनीसँ गाम(अड़ेर डीह) जेबाक क्रममे निश्चित रूपसँ मैथिलीक प्रख्यात कवि,लेखक आदरणीय श्री उदय चन्द्र झा,विनोद,जीक स्मरण भए जाइत छल। गाममे हम कैक गोटे लग हुनकर चर्चा केलिऐक ।ओ सभ हुनका जनैत छलखिन।हुनकर घरो देखल छलनि।असलमे अड़ेर आ रहिका तँ घर-आङन जकाँ अछि। अड़ेरसँ कपिलेश्वर जाएब,चाहे मधुबनी जाएब,चाहे दरभंगा जाएब वा सौराठ जाएब,रहिका जाए पड़त।फेर विनोदजी तँ बहुत प्रसिद्ध आ लोकप्रिय छथि।बेरा-बेरी कैक गोटे  हुनकर घरक पता पता देलनि। तथापि,सही ठेकाना नहि बुझाएल। हम जखन कखनहु रहिका पहुँचए बला रही तँ फटकीए सँ ठिकिआबए लागी। आखिर एक बेर ओ अपन घरक ओसारापर कुर्सीपर बैसल देखेलाह। सामान्यतः हम साझी आटोपर बैसल रहैत छलहुँ तेँ ओकरा बीचमे रोकब मोसकिल भए जाइत छल। एहि तरहेँ मास दिन बीति गेल। तकर बाद निश्चय केलहुँ जे काल्हि हुनकासँ अबस्स भेंट करब। ताहि लेल पहिने सँ हुनका सूचित करबाक लेल फोन केलिअनि। ओ तुरंत फोन उठा लेलनि।गप्प-सप्पसँ लागल जेना कतेक दिनसँ एक-दोसरकेँ जनैत होइ।ओना हम हुनका अपन पोथीसभ कैक बेर पठओने रहिअनि।फेसबुकपर ओ ओहि प्रसंगमे लिखनो रहथि। मुदा भेंट नहि रहए।फोनपर परिचय-पातक बाद कहलिअनि-

“हम अपनेसँ काल्हि भेंट करए चाहैत छी।”

“आउ ने।”

“ठीक छैक। तँ काल्हि एगारह बजेक आसपास अबैत छी।”

प्रात भेने छोटू आटो बलाकेँ फोन केलिऐक। ओकर आटोसँ गाम धरि जाएब।बीचमे रहिकामे विनोदजीक ओहिठाम घंटा भरि रूकब। से सभ बात ओकरा परिछा कए कहि देलिऐक। हम लगभग एगारह बजे हुनका ओहिठाम पहुँचि गेलहुँ। ओ सभ दिन जकाँ धोती-कुरता पहिरने अपन घरक ओसारापर बैसल किताब पढ़ि रहल छलाह। हम हम हुनका प्रणाम केलिअनि। ओ तुरंत हमरा चिन्हि गेलाह। हम हुनका अपन उपन्यास,जयतु जानकी आ ठेहा परक मौलाएल गाछ देलिअनि। ओहो अपन कविता संग्रह,जुलुम भए गेलै देलनि। हुनकर पुत्र सेहो आबि गेल रहथिन।हुनकोसँ परिचय भेल। गप्प-सप्पक क्रममे ओ कहलनि-
“अहाँ हमर प्रिय लेखक छी।”

हुनका मुँहे से सुनि हम कनी चकित जरूर भेलहुँ,मुदा बहुत नीक लागल।एतेक पैघ साहित्यकार जखन कहि रहल छथि तँ सोचिए कए कहने हेताह।हम कहलिअनि-

“गामक एतेक लगीचमे रहबाक कारण आ ओहुना अपने हमरा लोकनिक साहित्यिक अभिवावक छीहे। अपने एहिना आशीर्वाद दैत रही।”

करीब घंटा भरि हमसभ गप्प-सप्प करैत रहलहुँ। मैथिलीक प्रथम साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता स्वर्गीय यशोधर झाजीक चर्चा सेहो भेल।हुनकर घर ,परिवारक बारेमे बहुत रास जानकारी हुनकासँ भेटल।ओहि बीचमे गरम-गरम चाहो भेलैक। आब जेबाक समय छल। आटो बला अगुता रहल छल। अस्तु,हुनकासँ बिदा लए गाम बिदा भेलहुँ।

व्यवहार कुशल,  विनम्र आ बहुत सहज स्वभावक विनोदजीसँ भेल ई भेंट बहुत आनन्ददायक आ उत्साहवर्धक रहल। ओकर बादो प्रायः नित्य गाम अबैत-जाइत हम हुनका ओही ठाम बैसल देखिअनि। बेसी काल कोनो-ने-कोनो किताब पढ़ैत देखिअनि। रहिकामे साहित्यिक गतिविधिक मुख्य केन्द्र आदरणीय विनोदजी रहलाह अछि। हुनकर मार्गदर्शनमे सालोंसँ ओहि ठाम विद्यापति पर्व मनाओल जाइत अछि। एहू बेर रहिकामे विद्यापति पर्व बहुत धूमधामसँ मनाओल गेल। हमरा से सभ अखबारमे पढ़बाक अवसर भेटल। हमरा रहिकासँ अबैत-जाइत मोन भेल रहए जे जा कए देखिऐक।मुदा नहि जा सकलहुँ,,,।ओहि समयमे हुनकर ओसारापर बेस हब-गब देखाएल रहए। बादमे हुनकर देल कविता संग्रह पढ़लहुँ।  बहुत रसगर कवितासभ अछि।कैकटा कवितामे निराशा भाव सेहो पढ़बामे आएल। ओहीमे ओ ठीके कहने छथि-गाम अखनहु जीबैत छै,ओहिना छै ,एक बेर देखिऔक तँ आबि कए।-से बात तँ हम स्वयं देखलिऐक एहि बेर। अखनहु एहि ठामक तरकारीसभमे बहुत स्वाद छैक।भोज-भात खूब होइत छैक। मुदा लोकसभ बेलसि भए गेल छैक। केओ ककरो ओहि ठाम नहि जाइत छैक।फगुआमे जोगिरा गबैत लोक नहि देखाइत छैक। से सभ भाव हुनकर कवितामे कैक ठामअनुगुंजित भए रहल अछि। हुनकासँ भेल भेंट बहुत सार्थक रहल। आशा अछि,हुनकासँ फेर भेंट भए सकत। ओ स्वस्थ रहथि आ दीर्घकाल धरि हमरा लोकनिकेँ मार्गदर्श करैत रहथि,से ईश्वरसँ प्रार्थना।

रबीन्द्र नारायण मिश्र

२५।०५।२०२५