मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

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शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

दुखिआसभ संसार!


दुखिआसभ संसार!





एहि दुनिआमे अधिकांश लोक अनकर सुख देखिकए दुखी छथि । एहन लोकक की समाधान अछि? ओ सही मानेमे अभागल छथि । सौंसे संसारमे लोक दिन-राति एही प्रयासमे रहैत छथि जे सुखी रही,नीक घर बनाबी,धीआ-पूताकेँ नीक-सँ-नीक शिक्षा दी,हुनकर नीक नौकरी लागि जानि आ जीवनमे सभ तरहेँ सुव्यवस्थित होथि । हमरातँ से सभटा होअए मुदा अनका से सभ नहि होइ आ जँ हेतैक तँ हम दुखी भए जाएब । एहिसँ हटि कए जौँ हम सकारात्मक रुखि रखैत अनकर उपलव्धिकेँ अपने बुझी तँ सुखी हेबाक अवसर अबिते रहत । हम अपने कैटा मकान बना सकब? एकटा-दूटा ,हे तीनटा मुदा लाखोक संख्यामे मकान,फ्लैट आओर लोकसभ बना रहल छथि किंवा बनल बनाओल कीनि रहल छथि । जौँ हम अपना आपकेँ कनी उदार करी आ अनकर सुखसँ सुखी होएब सीखि ली तँ निश्चय बुझु जे हमसभ हजार गुना बेसी सुखी रहि सकैत छी ।  नित्यप्रति अपने घरक गृहप्रवेश हेबाक आनंदक अनुभूति कए सकैत छी ।

लोक सोचैत रहहैत अछि जे दोसर आदमीसभ कतेक भाग्यवान अछि । सभकेँ अनकर चीज-वस्तु सोहनगर लगैत रहैत छैक। जखन कि कै बेर से बात होइत नहि छैक । असलमे ई संसार विचित्रतासँ भरल अछि । किओ किछु तँ किओ किछु लए मुदा असंतुष्टसभ अछि । जकरा एकटा मकान छैक से दोसरक चक्करमे अछि । जकरा दोसरो मकान भए गेलैक से आओर किछुक पाछु पड़ल अछि । किओ बिरलैके एहन भेटताह जे सभ मानेमे पूर्ण छथि आ जँ से भए जेतैक तँ ओ मनुक्ख नहि रहि जेताह,भगवान भए जेताह । सत पूछल जाए तँ अपुर्णता स्वभाविक थिक । जँ सभ किछु भइए जेतैक तू हम-अहाँ जीविए कए की करब? बैसल-बैसल  लोथ नहि भए जाएब?

जखन मनुक्खकेँ अभाव हेतैक तँ ओ ओकर प्राप्तिक हेतु प्रयास करत ,प्रयास करत तँ किछु हेतैक,किछु नहि हेतैक । आब एहीठाम आदमी-आदमीमे फर्क भए जाइत अछि । किओ मनोनुकूल परिणाम नहि भेलोपर  प्रयास नहि छोड़ैत छथि, अपितु वारंबार प्रयास कए इक्षित फल प्राप्त कए लैत छथि । ओतहि किछुगोटे एहन होइत छथि जे  कनीमनी प्रयास करताह आ हाथ बारि देताह । तकरबाद तरह-तरहक कबाइत पढ़ए लगताह ।" हमर तँ भाग्ये खराप अछि। हम कइए की सकैत छी । फलना आदमी तँ देखिते-देखिते की सँ की कए लेलथि " आदि,आदि। एहि तरहक सोचबला व्यक्ति बेसीकाल दुखिए रहैत छथि ।

लोक कतबो पैघ किएक ने भए जाओ,ओकरा समस्या लागले रहैत छैक । मानि लिअ जे किओ प्रधानमंत्री भए गेल तँ की ओ बहुत सुखी अछि, से नहि कहल जा सकैत अछि । एहिबातक किओ गारंटी नहि दए सकैथ अछि । कम सँ कम ओकरा दिन-राति एहिबातक चिंता तँ लागले रहैत छैक जे ओकर प्रतिष्ठा बनल रहए,ओ लोकप्रिय रहए,आ जनतामे ओकर नीक छवि  रहैक । ताहि लेल ओ दिन-राति अपसिआँत रहैत छथि । कहक माने जे सुखी होएब कोनो पद वा धनसँ नहि जोड़ल जा सकैत अछि । सही पुछैत छी तँ ई बात लोकक दृष्टिकोणसँ बेसी प्रभावित होइत अछि जे अमुक व्यक्ति सुखी रहताह की दुखी । एकहि बातसँ किओ जान देबए हेतु उतारु भए जाइत छथि तँ ककरो लेल ओएह बात होएब कोनो माने नहि रखैत अछि ।

ककरा कोन बातसँ दुख हेतैक तकर कोनो निजगुत व्याख्या नहि कएल जा सकैत अछि। मुदा एतबा तँ तय अचि जे बहुत रास दुख मनुक्खक स्वयं बेसाहल होइत अछि । कहब से कोना? आब कहैत छी । मानि लिअ जे  ककरो बच्चामे गणितक सबाल बुझबाक क्षमता नहि छेक,तैयो ओ चाहैत छथि जे हुनकर बेटा अभियंता भए जाए,किंवा ककरो बच्चा कहुना कए बीए पास केलक आ ओ अभिलाषा रखैत छति जे ओ बच्चा आइएएस भए जाथि ,तखन हुनका की हेतनि,निराशा छोड़ि कए किछु आओर हाथ लगतनि? कदापि नहि। इएह बात बुझबाक रहैत छैक । कहबाक माने जे पहिने उत्तर निकालि कए सबाल बनबए चलब तँ की होएत? जीवन यात्राक आनंद सँ एहन व्यक्ति वंचित रहि जाइत छथि जे तखने सुखि हेताह जहिआ सभकिछु हुनकर मोन जोगर भए जेतनि । से ने हेतनि ने ओ कहिओ भरिमोन हँसि सकताह । ने राधाकेँ नौ मोन तेल हेतनि ने ओ नचतीह। सएह हाल बेसी गोटे अपन बना लैत छथि आ तखन दोख देताह भाग्यक ।"हमर तँ भाग्ये खराप अछि?"

"औ बाबू! खराप किओ आन थोड़े केने अछि? कनिको सोचि-विचारि कए चलितहुँ तँ साइत बहुत बेसी सुखी रहि सकितहुँ ।

कै बेर जखन भोरे अखबार पढ़ैत छी तँ  मोन चिंतित भए जाइत अछि । एक सँ एक योग्य,पढल-लीखल, उच्चपदपर आसीन व्यक्ति आत्महत्या कए रहल छथि । मामुली बात लए पड़ोसीसँ झगड़ा होत अछि आ गोली चलि जाइत अछि । सड़कपर बात-बातमे कार सबार मोटर साइकल पर बैसल लोकसंगे  गारि-मारिपर उतारु देखल जाइत छथि । आखिर,एना किएक भए रहल अछि?  कतहु-ने-कतहि ई लोकसभ अंदरसँ परेसान छथि । मोनमे चैन नहि छनि । पाकल घाव जकँ मौका पबितहि अंदरक विकार बलबला कए बाहर भए जाइत अछि । निश्चित रुपसँ ई चिंताक विषय थिक ।

एहि संसारमे साइत किओ भेटत जकरा कोनो-ने-कोनो रुपमे दुख नहि भेल हो । कबीर दास ठीके कहैत छथि-

राजा दुखी परजा दुखी जोगीकेँ दुख दूना ।

कहे कबीर सुनो बाइ साधो एकहु घर नहि सूना ।।

भगवान रामसन चक्रवर्ती आ प्रतापी राजाकेँ कतेको तरहक कष्टक सामना करए पड़लनि। भगवान कृष्णकेँ दुष्टसभक संहार करए हेतु की-की नहि करए पड़लनि । आधुनिक समयमे सेहो एक सँ एक उदाहरण भेटत जतए लोक अपन सिद्धान्त हेतु सर्वस्व दावपर लगा देलनि । नेल्सन मंडेला कतेको साल जेलमे सड़ैत रहि गेलाह मुदा अपन बात पर अडिग रहलाह आ अंततोगत्वा विजयी भेलाह । कहक माने जे दुख सहबाक शक्ति अपना आपमे वरदान अछि। दुख हेबे नहि करए से हमरा -अहाँक बशमे अछि? नहि अछि? तखन तँ ओकर निदान करब आ ताहि हेतु उचित आ आवश्यक धैर्य राखब एकमात्र समाधान भए सकैत अछि । अस्तु, बहुत किछु हमरा लोकनिक मनोवृतिपर निर्भर करैत अछि ।

जावे मनुक्खक जीवन छैक,दुख-सुख लागले रहत ।  ई प्रकृतिक नियम थिक । सभदिन एकरंग ने ककरो रहलैक अछि आ ने रहतैक । परिवर्तन अवश्यंभावी थिक । तखन की कएल जाए जाहिसँ सुखी आ शांत जीवन जीवि ली? ताहे हेतु गीताक निमन्लिखित श्लोकक ध्यान कएल जाए

-दुखेषु अनुदविग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः ।

वीतराग भय क्रोधः अथितधिः मुनिः उच्यते ।।

कहक मतलब जे जेना जीवन यात्रामे अबैत जाए तकरा तहिना स्वीकार कए चलैत चलू। बढ़ैत चलू । सभ ठीके रहतैक ,ई भावना जँ  मोनमे रहत तखने सही मानेमे हमसभ सुखी रहि सकैत छी।

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