क्रान्तिदूत :कबीरदास
ओहि युगमे जखन धार्मिक कट्टरवाद चर्मोत्कर्षपर
छल,जखनकि जाति-पातिक भेदबाव समाजक मान्यता प्राप्त केनहि छल संगहि समस्त
विधि-विधानकेँ प्राभावित केने छल,कबीर दास एकहिबेर विद्रोहक विगुल बजा देलाह।ओहि युगमे जखन उच्च
जातिक लोकक संपूर्ण समाज पर वर्चस्व छलैक,जखन धार्मिक,सामाजिक
एवम् आर्थिक शक्ति पूर्णतः किछु व्यक्तिक हाथमे सिमटल छल,-कबीरदास
बाजि उठलाहः
एक बूंद एक मल-मूतर, एक चाम एक गूदा
।
एक जातिसे सव उपना ,कौन भावन कौन
सूदा ।।
व्यक्ति-व्यक्तिमे भेदभाव करब कबीरदासकेँ
एकदम पसिन नहि छलनि। एहि दृष्टिसँ देखल जाए तँ ओ भक्तिकालक महान साम्यवादी छलाह। मानव-मानवमे विभेद उतपन्न करएबला धर्म,अन्धविश्वास
वो वाह्य आडंवरक प्रति जतेक कठोर रुखि कबीरदास अपनओलनि ततेक किओ नहि अपना सकल। हुनकर
कहब छलनि जे मानव मात्र एकहि ईश्वरक अंश अछि।
प्रकृति सभकेँ एकरंग वनओने अछि,सभक सोनित एकहि रंग अछि,तखन ई विभेद किएक ?
एकै पवन एक ही पानी,करी
रसोई न्यारी जानी।
माटी सूँ माटी लै पोती,लागी
कहौ कहाँ धूँ छोती।।
कबीरदासकेँ जाति विभेद एक्कोरत्ती पसिन नहि
छलनि। जन्मभरि ओ पाखंड,सामाजिक अन्याय,जातीय विद्वेष,
एवम् आर्थिक शोषणक विरोधमे लड़ैत रहलाह। वाभन,शुद्रक
कथे कोन ओ तँ हिन्दू,मुसलमानक विभेदकेँ सेहो स्वीकार नहि करैत छलाह।
जौँ तूँ वाभन वभनी जाया,तौ आन
बाट है क्यो नहि आया ।
जौँ तूँ तुरक तुरकनी जाया,तौ भीतर
खतना क्यो न कराया ।।
कबीरदास उपदेशक वा पुजारी नहि छलाह। जीविकाक
हेतु वो जुल्हाक धंधा करैत छलाह,जकरा सामाजिक धरातलपर पैघ काज नहि मानल जाइत छलैक। स्वयं
कपड़ा बूनब एवम् दोसर हेतु मजूरी कए कपड़ा बूनबामे अन्तर छैक। कबीरदास कोनो मालिकक
काज नहि करैत छलाह। ओ गृह उद्योगक स्वाभिमानक रक्षा करैत पेट भरैत चलाह। ओ अपन
व्यवसायमे ततेक रमि गेल छलाह जे हुनक काव्यमे सदति ओही प्रकारक वस्तुसभक वर्णन
अछि। एवम् प्रकारेण व्वसायजनित प्रतिष्ठाक सेहो हुनका कोनो परवाह नहि छलनि।
ओ सगर्व कहलाहः
जाति जुलाहा मति को धीर, हरषि-हरषि
गुण रमै कबीर।
मेरे राम की अभै पद नगरी,कहे
कबीर जुलाहा।
तू वाभन मैं कासी का जुलाहा।।
कबीर दास मौलिक विचारक चलाह।धर्मक वास्तविक
तातपर्यकेँ ओ बूझलाह आओर साधारण जनता धरि ओकरे भाषामे तकरा रखलाह। ताहि हेतु हुनका
कोनो दुर्गति वाँकी नहि रहलनि। प्राणोक रक्षा कठिन भए गेलनि। परंतु ओ निर्भयतापूर्वक
अपन विचारपर अडिग रहलाह। तत्कालीन समाजक किछु शक्तिशाली
लोक कबीरदासक प्रवल विरोध कएलक। तेँ कबीरदासकेँ कहए पड़लनिः
कबिरा खड़ा बजारमे,लिआ
लकुटि हाथ।
जो घर जारे आपना,धरै हमारे साथ ।।
तमाम विरोधक बाबजूद कबीरदास रूकलाह नहि,अपन
विचार लए कए आगू बढ़ैत रहलाह एवम् समयक कसौटीपर सही उतरलाह ।
भक्त कबीरक ई अनुभव छलनि जे शास्त्र मर्यादाक
संग संप्रदाय निष्ठा जुड़ल होइत हछि। शास्त्र एवम् संप्रदायक सीमानमे रहि कए मानव
मात्रक हेतु भक्तिक सर्वसुलभ
पथ प्रस्तुत नहि कएल जा सकैत अछि। भक्तिपथक दूटा महान अवरोध थिक-शास्त्र एवम्
संप्रदाय जे भक्ति भावना केँ सरल सहज रहए नहि दैत अछि। कबीर सहजमे आस्था रखैत
छलाह। हुनक लगाव कोनो प्रकारक रुढ़ि एवम् अन्ध मर्यादासँ नहि छलनि। अनुभवकक
तराजूपर तथ्य एवम् सत्यकेँ परखि कए ग्रहण त्याग करब हुनकर जीवनक्रम छलनि। धार्मिक
अन्धविश्वास एवम् ढ़ोंगकेँ ओ प्रवल विरोधी छलाह।
कंकड़ पाथर जोड़ि कए मस्जिद दिओ बनाय ।
ता चढ़ि मुल्ला बांग देइ क्या बहिरो भयो
खुदाइ ।।
संगहि ओ इहो कहलाहः
पाथर पूजे हरि मिले तोँ मैं पूजूँ पहाड़ ।
तासे तो चक्की भली पिसे खाय संसार ।।
प्रखर मानवतावादी कबीर धार्मिक प्रपंचकेँ
चुनौती देलाह । निर्भीक
एवम् तटस्थ भावसँ ओ समाजमे वढ़ि रहल ढ़ोंगक विरोध केलाह-
यह सब झुठी बंदगी, बिरथा पंच नबाज ।
साँचै मारै झुठि पड़ि ,काजी करै अकाज ।।
करसे तो माला जपै ,हिरदै बहै डमडूल ।
पग तो पालामे गिरया ,भजण लागी सूल ।।
जप-तप संजम पूजा अरचा ,जोतिग जग बौराना ।
कागद लिखि-लिखि जगद भूलाना,मन ही
मन न समाना ।।
कबीरदास युग निर्माता छलाह। ओ पारंपरिक लीकसँ
हटि कए समाजकेँ एकटा क्रांतिक मार्गपर अनलाह । गरीब -धनीक,ब्राहमण-शूद्र, आदिक
बीचमे वर्ग समन्वयक सहज मार्ग प्रस्तुत केलाह । मानवतावादक प्रचार कए धर्मक
वास्तविक अर्थकेँ लोक बूझए,तकर प्रयास केलाह । ओ अपन समस्त जीवनकेँ परोपकार एवम् मानव कल्याणमे लगा देलाह
।
मानवमात्रक कष्ट निवारणक हेतु ओ चिंतित रहैत
छलाह।
सुखिआ सब संसार है ,खाबे अरु सोबै।
दुखिआ दास कबीर है, जागे हरु रोबे ।।
अस्तु ,ई तय अछि जे
कबीरदास संत आोर कवि तँ छलाहे सभसँ बढ़िकए ओ क्रान्तिकारी छलाह। समस्त समाजमे ओ
एकटा नवचेतना आनए चाहैत छलाह। वर्ग विभेदकेँ नष्ट कए समाजमे मानवतावादक स्थापना चाहैत
छलाह। ईश्वर एक छथि,मनुक्ख एक अछि, विभेद मानव निर्मित अछि-से हुनकार मंत्रवाक्य छल।
समाजक स्थितितँ तेहने छल जे ईश्वरक केबार किछुए
लोक हेतु खुजैत छल। तेहन समाजमे ताल ठोकि अपन विचार कहि देब एवम् ओकरा व्यवहारमे
आनब एकटा क्रान्ति नहि तँ की छल? प्रयोजन अछि समाजमे एहने
व्यक्तित्वकेँ ,जे हमरा लोकनिकेँ वर्तमान सामाजिक अन्त्रद्वंदसँ
मुक्ति दए सकए।