बिसारिए
न हरि नाम
यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र
पार्थो धनुर्धर: |
तत्र श्रीर्विजयो भूतिध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ||
तत्र श्रीर्विजयो भूतिध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ||
गीताक ई
अंतिम श्लोक अछि । ओना तँ गीताक एक-एक शव्द अर्थपूर्ण ओ जीवनदायी अछि मुदा एहि अंतिम
श्लोकमे एकहिठाम संजयक मुँहे सभकिछुक सारांश कहि देल गेल अछि । विजय ओकरे जतए भगवान
श्रीकृष्ण छथि । महाभारत युद्धमे दुर्योधनकेँ युद्धक परिणामक चिंता छलनि । रहि-रहि
कए ओ संजयसँ एतबे पुछैत रहैत छलाह जे युद्ध क्षेत्रमे हुनकर पुत्रसभक की हाल अछि? ओ सभ जीत
सकताह की नहि? संजय साफे कहैत छनि जे एहि युद्धमे संख्या ओ शस्त्रवलक कोनो अर्थ नहि गेल अछि ।
विजय,विभूति ओ श्री ओतहि होएत जतए भगवान श्रीकृष्ण छथि,जतए धनुर्धारी
अर्जुन छथि ,कारण हुनके संगे धर्म अछि ।
चिंता करब
मनुक्खक कमजोरी थिक । जाहि व्यक्ति वा वस्तुसँ लोककेँ जतेक बेसी लगाव रहैछ तकरा विषयमे ओ ततेक बेसी सोचैत
अछि । सोचलासँ होइते की छैक?किछु नहि ,अपितु बसी सोचैत रहब तँ स्वास्थ्य सेहो गड़बड़ेबाक संभावना भए जाइत अछि । मुदा
मोन अछि जे मानिते नहि अछि आ लोक वारंबार चिंता करैत रहैत अछि । असलमे चिंता करब
नकारात्मक प्रवृत्ति थिक । एहिसँ किछु फैदा नहि होइत अछि । तथापि लोक स्भाववश चिंता करिते अछि
।
जीवन भरि
प्रयास केलाक बादो कै बेर होइत छैक जे हम की केलहुँ? कहीं हमर जिनगी व्यर्थ तँ नहि चलि
गेल? कै बेर लोके खीधांस करैत भेटत ।" एह! की केलहुँ? कोनो पोखर
-इनार खुनेलहुँ की?
आदि,आदि?
आब पोखरि-इनार
खुनेबाक जमाना नहि रहलैक । पहिलुका समयमे एकर महत्व एहि लेल छलैक जे लोक केँ एहिसँ
जीवनमे सुविधा होइक । आब तँ समय बदलि गेल । सभक घर-आंङनमे चापाकल छैक,सौचालय-स्नानगृहक
व्यवस्था छैक,तखन किओ पोखरि दिस किएक जाएत? समयक अनुसार लोकक अपेक्षा बदलि जाइत छैक। एकहि जिनगीमे लोककेँ
पिछला बातसभ कै बेर अप्रासंगिक लागए लगैत छैक।तखन की करब? जखन जे भेलैक,से भेलैक,ओहिपर माथापच्ची
केनाइ व्यर्थ थिक। लोक की कहैत छथि वा की कहताह ताहि हिसाबे चलब तखन तँ भए गेल । जरुरी
अचि जे अपन मोनकेँ स्थिर कए सोची जे हमर की कर्तव्य अछि,हम की कए
सकैत छी । अहाँ अपन हालतकेँ सभसँ नीकसँ अपने बुझि सकैत छी । तैँ जे अपना ठीक बुझाए
सएह करबाक चाही आ जे बात बीति गेल तकरा बारे मे सोचि-सोचि समय नहि बिताबक चाही ।
सुख-दुख
तँ जीवनमे लगले रहैत अछि । एहन नहि होइत अछि जे सभदिन अन्हरिए रहए । जँ धैर्यपूर्वक
समयक संगे चलैत रहब तँ आइ ने काल्हि इजोरिओ अएबे करत । कहबाक माने जे धैर्यपूर्वक सही
दिशामे प्रयासरत रहलासँ हाथक रेख सेहो बदलि जाइत अछि । कोनो जरुरी नहि अछि जे हम जएह
चाहबै सएह हेतैक । मुदा जे भए रहल अछि तकरा सहर्ष स्वीकार कए, बिना बेसी उठापटककेँ जीवन जीवाक कला विकसित कएल जा सकैत अछि । मोनमे संतोख
होअए तँ कनीकोमे लोक शांतिपूर्वक जीवन चला सकैत अछि। आखिर किओ किछु लादि कए अपना संगे
नहि लए जा सकल,ने आगुओ किओ लए जाएत । ई बात सभ बुझैत
अछि । तखन समस्या कथीक अछि?
मोनक फेर छैक आओर किछु नहि । दोसर संगे जे हम अपनाकेँ तौलए लगैत छी सएह कष्टकारी प्रयोग
भए जाइत अछि । सभक अपन कर्म छैक । अपन-अपन भाग्यसँ लोक जीवैत अछि । एहिमे ककरोसंगे
घेंटजोड़ी करबाक कोन काज। कोनो जरुरी नहि जे जकरा हमसभ बहुत सुखी आ संपन्न बूझैत छी
से सही मानेमे सुखी होथि । अंदरक हाल तँ ओ स्वयं कहि सकैत छथि। कहबी छैक जे –
"राजा
दुखी,प्रजा दुखी योगीकेँ दुख दुन्ना ।
कहत कबीर
सुनो भाइ साधो,एकहु घर नहि सुन्ना ।।
आस्तिक वुद्धि
आ भगवानमे विश्वास रहलासँ पैघ सँ पैघ संकटपर विजय पाओल जा सकैत अछि । जीवन अपना आपमे
बहुत रहस्यात्मक अछि । कखनो किछु,कखनो किछु होइते रहैत अछि । ओहि सभकेँ शांतिपूर्वक निबाहैत जीवन
यात्राकेँ गंतव्य धरि पहुँचाएब एकटा महान यज्ञ थिक । एहन बात नहि छैक जे गरीबेकेँ कष्ट
रहैत छैक । जीवनमे दुख-सुख लागले रहैत अछि । की पैघ की छोट सभ एहि अवस्थासँ प्रभावित
होइत छथि । तखन केहनो अवस्थामे जिनकर विश्वास बनल रहैत अछि से बेसी सहजतासँ टपि जीवनमे
आगू बढ़ि जाइत छथि । जिनका से नहि होइत अछि वो तरह-तरहसँ परेसान भए जाइत छथि । कै गोटे
तँ अवसादग्रस्त भए जाइत छथि । कतेकोगोटे आत्महत्या धरि कए लैत छथि । जीवन संघर्षमे
एहि बातकेँ सदिखन ध्यान राखबाक चाही जे हम असगर नहि छी,इश्वर हमरा
संगे छथि आ ओएह पार लगओताह ।
"हारिए न
हिम्मत, बिसारिए न हरि नाम ।
जाहि विध
राखे राम,ताहि विध रहिए ।।"