यह समय है
समय अपना प्रभाव
छोड़ता ही है,
क्या राजा,क्या रंक
सभी हैं मोहताज इसके
बिना किसी अपवाद के ।
कोई कितना भी था प्रतापी,
परंतु,वह बचा नहीं सका
अपने आप को
उसके समस्त सामर्थ्य
हो गए निष्प्रबावी
और समय अपना
निशान छोड़ गया।
एक मामूली व्याधा ने
कृष्ण जैसे महाप्रतापी के
हर लिए प्राण
और वे निःसहाय देखते रह गए ।
महावली अर्जुन को
मामूली लूटेरों ने कर दिया परास्त
बेकार हो गया गांडीव
विधवाओं,अवलाओं को लूटकर चले गए
और वे रह गए
असमर्थ,निरुपाय ।
परंतु,हमारा अहंकार
भ्रमित रखता है हमें
और हम निरंतर करते रहते हैं
घात-प्रतिघात उनपर
जो हैं असमर्थ,असहाय ।
पर भूलिए मत
यह समय है
एक दिन आप स्वयं भी
होंगे इसके गिरफ्त में
कोई बचा नहीं पाएगा
हो चाहे कितना भी समर्थ
और अफसोस करते रह जाएंगे
हाय! मैंने यह क्या किया?
इसलिए होइए सचेत
बच सकते हैं तो बचाइए स्वयं को
व्यर्थ के आरोप-प्रत्यारोप से
जो अवसर मिला है
उसे मत गबाइए
कर लीजिए सदकार्य
जिस से हो सके कल्याण
उन सबों का
जो दुखी हैं,बंचित हैं
और आप भी संतुष्ट होकर
विदा लें
इस संसार से ।