मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

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बुधवार, 1 मई 2019

मन की प्रशन्नता


मन की प्रशन्नता



मन की प्रशन्नता एक ईश्वरीय वरदान है । यह पूर्णतः नैसर्गिक है एवम् व्यक्ति के अंतरमन से जुड़ा हुआ है । अगर आप ध्यान दें तो पाएंगे कि कुछ लोगों से मिलते ही मन खुश हो जाता है । मन होता है कि  उनसे बार-बार मिलें । ठीक इसके विपरीत कुछ ऐसे लोग हैं जिनके नजर पड़ते ही मन में क्षोभ उतपन्न होने लगता है। हम सोचने लगते हैं -"कहाँ से मिल गया ? कैसे इससे पिंड छोड़ाया जाए?"ऐसा क्यों होता है? इसका मूल कारण है कि जो व्यक्ति जैसा होता है उसके इर्द-गिर्द वैसी आभा का निर्माण हो जाता है । समान विचार के लोग एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं और उनके साथ होने पर आनंद का अनुभव  होने लगता है । इसलिए जरूरी है कि हम ऐसे लोगों से जुड़े जो स्वभाव से रचनात्मक हैं ,जो दूसरों का हित सोचते हैं और करते हैं । एसे लोगों की संगति परमसुखदायक है । इसलिए तुलसीदासजी ने कहा था-"संत मिलन सम जग कुछ नाही । " संत हमें अपने सद्विचारों से अच्छा सोचने,करने के लिए प्रेरित कर देते हैं जिस से हम अपना समय और धन का सही उपयोग कर सकते हैं ।

हमारा मन व्रह्माण्ड से सीधे जुड़ा हुआ रहता है । फिर हम इतने छोटी- छोटी बातों में क्यों उलझते हैं। निश्चय ही यह आश्चर्यजनक है ,लेकिन इसके पीछे भी शृ्ष्टिकर्त्ता की ही माया है । वही हमें एक-दूसरे से पृथक करती है । माया से आवृत अपने मन की दीबार को अगर मुक्त कर सकें तो हम तुरंत अनंत व्रह्मांड में समाहित होकर सदा-सर्वदा के लिए सुखी हो सकते हैं । लेकिन हम ऐसा होने दें तब तो?

प्रशन्नता के लिए त्याग जरूरी है । आप जितने अधिक संग्र करेंगे ,उतने ही दुखी रहेंगे । जैसे यात्रा के दौरान कम से कम भार रहने से यात्रा सुगम हो जाता है वैसे ही जीवन में मन के ऊपर कम से कम बोझ सुखदायी होता है। हम अपने मन में अकारण चिंता,भय,क्रोध जैसे निषेधात्मक तत्वों को भरे रखते हैं । फिर मन में प्रशन्नता कहाँ से आएगी? हम अपने मन को स्वच्छंद रहने दें ताकि हम प्रकृति सुलभ सौंदर्य का आनंद उठा सकें। मानसिक प्रशन्नता  के लिए यह भी जरूरी है कि हम वास्तविकता के धरातल पर खड़े हों । जो हमारे वश में है ही नहीं उसपर ज्यादा माथा-पच्ची करना व्यर्थ है । जो सत्य है,अवश्यंभावी है, उसे सहर्ष स्वीकार कर लेने में ही भलाई है । हम सच्चाई से जितना दूर भागेंगे,सुख हमसे उतना ही अलग होता चला जाएगा ।

मन की प्रशन्नता के लिए जरूरी है कि हम अपने  मन पर चिंताओं का अनावश्यक बोझ न डालें । जो अपने वश में नहीं है उसे सहर्ष स्वीकार कर लें । जो हमें प्राप्त है उसे उचित सम्मान के साथ सहेज कर रखें । प्राप्त का आदर करना सीखें । हम दूसरों से तुलना करना बंद करें । कई बार दूर से सुंदर दीखनेवाले वास्तविक में वैसा होते नहीं हैं । सच्चाई विल्कुल भिन्न होती है । सपनों की दुनिया से हटकर    असलियत में पाँव जमाने की कोशिश करें । अगर हम ऐसा करेंगे तो निश्चित रूप से बहुत सारे व्यर्थ के विवादों से बँच जाएंगे और सुखी रहेंगे।