मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

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सोमवार, 13 मार्च 2017

मकर संक्रान्‍ति  





 

 

 

 

मकर संक्रान्‍ति  

मकर संक्रान्‍ति सम्‍पूर्ण भारत ओ नेपालमे सर्वत्र कोनो-ने-कोनो प्रकारसँ मनाओल जाइत अछि। पौष मासमे जखन सूर्य मकर राशिमे अबैत छथि तखने ई पावनि मनाओल जाइत अछि। प्रतिवर्ष मकर संक्रान्‍ति १४ वा १५ जनबरीकेँ पड़ैत अछि।
तमिलनाडूमे मकर संक्रान्‍तिकेँ पोंगल कहल जाइत अछि। कर्नाटक, केरल एवं आँध्रप्रदेशमे एकरा संक्रान्‍तिये कहल जाइत अछि। पंजाब आ हरियाणामे लोहड़ी कहल जाइत अछि एवं एक दिन पहिने अर्थात् १३ जनबरीकेँ मनाओल जाइत अछि। उत्तर प्रदेशमे एकरा मूलत: दानक पावनिक रूपमे मनाओल जाइत अछि। प्रयागमे प्रतिवर्ष १४ जनबरीसँ माघमेला प्रारंभ होइत अछि। माघ मेलाक प्रथम स्‍नान १४ जनबरीसँ प्रारंभ भऽ कऽ अन्‍तिम स्‍नान शिवरात्रिकेँ होइत अछि। महाराष्‍ट्रमे एहि दिन विवाहित महिला अपन पहिल संक्रान्‍तिपर तूर-तेल वा नून अन्‍य सुहागिनकेँ दइ छथि। बंगालमे एहि दिन स्‍नानक बाद तिल दान करबाक प्रथा अछि। एहि अवसरपर गंगासागरमे प्रतिवर्ष विशाल मेला लगैत अछि। असममे मकर संक्रान्‍तिकेँ माघ-विहू अथबा भोगाली विहूक नामसँ जानल जाइत अछि। राजस्‍थानमे एहि पर्वपर सुहागिन महिला अपन सासुकेँ वियनि दऽ असीरवाद प्राप्‍त करैत छथि। संगे कोनो सौभाग्‍य सूचक वस्‍तुकेँ चौदहक संख्‍यामे पूजन एवं संकल्‍प कए चौदहटा ब्राह्मणकेँ दान दइ छथि।
मकर संक्रान्‍तिक माध्‍यमसँ भारतीय सभ्‍यता एवं संस्‍कृतिक विविध रूपमे आभास होइत अछि। एहेन धारणा अछि जे मकर संक्रान्‍तिक दिन शुद्ध घी एवं कम्‍बलक दान केलासँ मोक्षक प्राप्‍ति होइत अछि।
माघे मासे महादेव: यो दास्‍पति वृहकम्‍वलम्‍
स भुक्त्‍वा सकलान भोगान अन्‍ते माक्ष प्राप्पति।।
पुराणक अनुसार मकर संक्रान्‍तिक पर्व व्रह्मा, विष्‍णु, महेश, गणेश, आधशक्ति आ सूर्यक आराधना एवं उपासनाक पावन व्रत अछि जे तंत्र-मंत्र-आत्‍माकेँ शक्‍ति प्रदान करैत अछि। संत-महर्षि लोकनिक अनुसार एकर प्रभावसँ प्राणीक आत्‍मा शुद्ध होइत अछि, संकल्‍प शक्‍ति बढ़ैत अछि, ज्ञान तंतु विकसित होइत अछि। मकर संक्रान्‍ति अही चेतनाकेँ विकसित करएबला पावनि अछि। ई सम्‍पूर्ण भारतमे कोनो-ने-कोनो रूपे मनाओल जाइत अछि।
पुराणक अनुसार मकर संक्रान्‍तिक दिन सूर्य अपन पुत्र शनिक घर एक मासक हेतु जाइत छथि, कारण मकर राशिक स्‍वामी शनि छथि। यद्यपि ज्‍योतिषीय दृष्टिसँ सूर्य आ शनिक ताल-मेल संभव नहि अछि, तथापि एहि दिन सूर्य स्‍वयं अपन पुत्रक घर जाइत छथि। पुराणमे आजुक दिन पिता पुत्रक सम्‍बन्‍धमे निकटताक प्रारंभक रूपमे देखल जाइत अछि। 
मकर संक्रान्‍तिक दिन गंगाकेँ पृथ्‍वीपर आनएबला भगीरथ अपन पूर्वजक तर्पण केने छलाह। हुनक तर्पण स्‍वीकार केलाक बाद एही दिन गंगा समुद्रमे मिलि गेल रहथि। तँए एहि दिन गंगा सागरमे मेला लगैत अछि। विष्‍णु धर्मसूत्रक अनुसार पितरक आत्‍माक शान्‍तिक हेतु एवं अपन स्‍वास्‍थवर्द्धन ओ सबहक कल्‍याणक हेतु तिलक प्रयोग पुण्‍यदायक एवं फलदायक होइत अछि। तिल-जलसँ स्‍नान करब, तिलक दान करब, तिलसँ बनल भोजन, जलमे तिल अर्पण, तिलक आहुति एवं तिलक उवटन लगाएब।
एहि दिन भगवान विष्‍णु असुरक अन्‍त कए युद्ध समाजिक घोषणा केने छलाह। ओ राक्षस सबहक मुड़ीकेँ मदार पर्वतमे दबा देने रहथि। एतदर्थ एहि दिनकेँ अशुभ एवं नकारात्‍मकताकेँ समाप्‍त करबाक दिनक रूपमे देखल जाइत अछि।
सूर्यक उत्तरायण भेलाबाद देवता लोकनि व्रह्म मुर्हुत उपासनाक पुण्यकाल प्रारंभ होइत अछि। एहि कालकेँ परा-अपरा विधाक प्राप्‍ति काल कहल जाइत अछि। साधनाक हेतु एकरा सिद्धिकाल सेहो कहल जाइत अछि। एहि समयमे देव प्रतिष्‍ठा, गृह निर्माण, यज्ञकर्म आदि पवित्र काज कएल जाइत अछि।
रामायण कालसँ भारतीय पत्र-पत्रिकामे दैनिक सूर्योपारायणक प्रचलन अछि। सबहक मोन-मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा सूर्योपारायणक उल्‍लेख अछि। रामचरितमानसमे भगवान राम द्वारा गुड्डी उड़ेबाक कार्यक उल्‍लेख सेहो अछि। मकर संक्रान्‍तिक वर्णन वाल्‍मिकी रामायणमे सेहो भेल अछि।
राजा भगीरथ सूर्यवंशी छलाह। ओ भगीरथ तप-साधनाक द्वारा पापनाशिनी गंगाकेँ पृथ्‍वीपर आनि अपन पूर्वजक उद्धार केने छलाह। राजा भगीरथ अपन पूर्वजक गंगाजल, अक्षत, तिलसँ श्राद्ध-तर्पण केने छलाह। तहिआसँ मकर संक्रान्‍तिक स्‍नान आ मकर संक्रान्‍तिक श्राद्ध-तर्पणक परंपरा चलि रहल अछि।
कपिल मुनिक आश्रमपर मकर संक्रान्‍तिक दिन माँ गंगाक पदार्पण भेल छल। पावन गंगाजलक स्‍पर्श मात्रसँ राजा भगीरथक पूर्वजकेँ स्‍वर्ग प्राप्‍ति भेलैन।
कपिल मुनि वरदान दैत बजलाह-
मातृ गंगे त्रिकाल तक लोक सबहक पापनाश करतीह एवं भक्‍तजनक सात पुश्‍तकेँ मुक्ति एवं मोक्ष प्रदान करतीह। गंगाजलक स्‍पर्श, पान, स्‍नान ओ दर्शन सभ पुण्‍यदायक फल प्रदान करत।
सूर्यक सातम किरण भारतवर्षमे आध्‍यात्‍मिक उन्नतिक प्रेरणादायी अछि। सातम किरणक प्रभाव भारतवर्षमे गंगा-जमुनाक मध्‍य अधिक समय तक रहैत अछि। एहि भौगोलिक स्‍थितिक कारण हरिद्वार आ प्रयागमे माघमेलाक आयोजन होइत अछि। पितृतुल्‍य भगवान भास्‍कर दक्षिणायनसँ उत्तरायणमे जाइत काल उर्जामयी प्रकाश पृथ्‍वीपर वर्षा करैत छथि। अतुल्‍य शक्‍ति श्रोत प्रकृति रातिकेँ छोट एवं दिनकेँ पैघ करए लगैत छथि। पृथ्‍वीमाता उदरस्‍थ आनाजकेँ पकबए लगैत छथि। चारू तरफ शुभे-शुभ होइत रहैत अछि। एहेन अद्भुत समयमे मकर संक्रान्‍तिक पर्व मनाओल जाइत अछि।
सक्रान्‍तिक दिन पंजाबमे लोहड़ीक नामसँ मनाओल जाइत अछि। पंजाबक अतिरिक्‍त ई पावनि हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दक्षिणी उत्तर प्रदेश आ जम्‍मू काश्‍मीरमे सेहो धूम-धामसँ मनाओल जाइत अछि। पारंपरिक तौरपर लोहड़ी फसलक रोपनी आ ओकर कटनीसँ जुड़ल एक विशेष पावनि अछि। एहि दिन वॉंनफायर जकाँ आगिक ओलाव जरा कऽ ओकर चारूकात नृत्‍य कएल जाइत अछि। बालक सभ भांगड़ा ,   वालिका सभ गिद्धा नृत्‍य करैत छथि। लोहड़ीक आलावक आसपास लोक एकट्ठा भऽ दुल्‍ला-भट्ठी प्रशंसामे गायन करैत छथि।
केतेको गोटेक मान्‍यता अछि जे लोहड़ी शब्‍द लोई (सत कबीरक पत्नी) सँ उत्पन्न भेल मुदा अनेक लोक एकरा तिलोड़ीसँ उत्पन्न मानै छथि, जे बादमे लोहाड़ी भऽ गेल।
लोहड़ीक ऐतिहासिक सन्‍दर्भ सुन्‍दरी-मुंदरी नामक दूटा अनाथ कन्‍या  छली। ओकर काका ओकर विवाह नहि करए चाहैत छल अपितु ओकरा राजाकेँ भेँट कए देबए चाहैत छल। ओही समयमे हुल्‍ला भट्टी नामक एकटा उफाँइट छौड़ाकेँ नीकठाम बिआह कऽ देलक। वएह उफाँइट वरपक्षकेँ बिआहक हेतु मनाओलक आ जंगलमे आगि जरा कऽ दुनू कन्‍याँक बिआह करओलक। कहल जाइत अछि जे दुल्‍ला शगुनक रूपमे गुड़ देलक। भावार्थ जे उफाँइट होइतो दुल्‍ला भट्टी निर्धन वालिका सबहक कन्‍याँदान केलक एवम् ओकरा अपन कक्काक अत्‍याचारसँ बँचओलक
लोहड़ीक दिन बच्‍चा सभ दुल्‍ला भट्टीक सम्‍मानमे गीत गबैत घरे-घर घुमैत अछि। बच्‍चा सभकेँ मिठाइ एवम् अन्‍य वस्‍तु सभ दैत अछि। जँ कोनो परिवारमे कोनो खास अवसर जेना बच्‍चाक जन्‍म, विवाह आदि अछि तँ लोहड़ी आर धूम-धामसँ मनाओल जाइत अछि। सरिसवक साग आ मकईक रोटी खास कऽ एहि अवसरपर बनाओल जाइत अछि।
तामिलनाडूमे एहि समय पोंगल मनाओल जाइत अछि। प्रचूर मात्रामे अन्नक उपजापर भगवान सूर्यकेँ धन्‍यवाद ज्ञापन हेतु पावनिक आयोजन कएल जाइत अछि। तामिलनाडूक अलावा पुडुचेड़ी, श्रीलंका ,विश्व भरिमे  पसरल तमिल लोकनि एकरा मनबैत छथि। ओइ पोंगलमे चारि दिन तक–माने १४ सँ १६ जनवरी तक–मनाओल जाइत अछि।
इन्‍द्र देवताक सम्‍मानमे पहिल दिन भोगी उत्‍सव मनाओल जाइत अछि। पोंगल दोसर दिन माटिक वर्तनमे दूधमे चाउर पका कऽ खीर भगवान सूर्यकेँ आन-आन वस्‍तु संगे चढाओल जाइत अछि। एहि अवसरपर घरक आगूमे कोलम (अपना ओइठामक अरिपन जकाँ) बनाओल जाइत अछि। पोंगलक तेसर दिन मट्ठू पोंगल कहल जाइत अछि। एहि दिन गायकेँ नाना प्रकारसँ सजा कऽ ओकरा पोंगल खुआएल जाइत अछि। चारिम दिन कन्तुम पोंगल कहल जाइत अछि। घरक महिला सभ स्‍नानसँ पूर्व हरदिक पातपर मिठाइ, चाउर, कुसियार हरदि आदि राखि कऽ अपन भाय लोकनिक कल्‍याण कामना करैत छथि। भाइक हेतु हरदि, चून, चाउरक पानिसँ आरती करैत छथि आ ई पानि घरक आगूमे बनल कोलमपर छिड़कि देल जाइत अछि।
जल्‍लीकट्टू मट्टू पोंगल दिन पोंगल पर्वक एक हिस्‍साक रूपमे खेलल जाइत अछि। एहि लेल ग्रामीण सभ पहिनेसँ साँढ़केँ खुआ-पिआ कऽ तैयार केने रहैत छथि। एहिमे मूलत: केतेको गामक मन्‍दिरक साँढ़ (कोविल कालइ-तमिल नाम) भाग लैत अछि। जल्‍लीकट्टूक तीन अंग होइत अछि : वाटि मन्‍जू विराट्टू, वेली विराट्टू आ वाटम गन्‍जु विराट्टू। वाटि मन्‍जु विराट्टूमे साँढ़केँ जे व्यक्ति किछु दूरीपर किछु समय तक रोकि लइ छथि, से विजेता होइ छथि। वेली विराट्टूमे साँढ़केँ खाली मैदानमे छोड़ि देल जाइत अछि आ लोक ओकरा नियंत्रणमे करबाक प्रयास करैत अछि। वाटम मन्‍जुविराट्टूमे साँढ़केँ नमगर रस्‍सीसँ बान्‍हि देल जाइत अछि, आ खिलाड़ी सभ ओकरा नियंत्रित करबाक प्रयास करैत छथि।
सम्‍पूर्ण देश जकाँ मिथिलांचलमे सेहो मकर संक्रान्‍तिक पर्व मनाओल जाइत अछि। गाम-घरमे एकरा तिला संक्रांति सेहो कहल जाइत अछि। अंग्रेजी नया सालक ई पहिल पावनि होइत अछि। लोकक घरमे नव अन्न भेल रहैत अछि। पहिनहिसँ लोक चूड़ा कुटा कऽ एहि पावनिक तैयारी केने रहैए। अपना एहिठाम माघ मासकेँ अत्‍यन्‍त पवित्र मास मानल जाइत अछि। बुढ़-बुढ़ महिला सभ भोरे-भोर जाड़-ठाढ़केँ बिसरैत पोखरिमे डुबकी लगबै छथि। गाममे कएटा मसोमात, वृद्धा सभकेँ थर-थर कँपैत स्‍नान करैत देखै छलिएनि। सभसँ मनोरंजक दृश्‍य तँ तखन होइत छल, जखन ओ सभ महादेवक माथपर जल ढाड़ैतकाल गाम-घरक सभटा झगड़ा सोझराबएमे लागल रहैत छली। जानह हे महादेव! हमरा पेटमे किछु नहि अछि। हमर मोन गंगासन निर्मल अछि मुदा एहेन अत्‍याचारक निपटान तूँहीं करियह।
..पता नहि, महादेव सुनितो छलखिन की नहि। मुदा हमरा ई सभ सुनि कऽ जरूर वकोर लागल रहैत छल।
बच्‍चामे पावनि सभ अद्भुत आनन्‍दक विषय रहैत छल। सभसँ सरल ओ आनन्‍ददायी होइत छल तिला संक्रांति। भोरे-भोर पोखरिमे जा कऽ डुबकी लगाउ। माइक हाथे तिल-चाउर खाउ। तिल-चाउर खुअबति काल माए पुछथि-
तिल बहब की नहि?”
ताहिपर कहिअनि-
खूब बहब।
विध समाप्‍त। तकरबाद चुरलाइ, तिलबा इत्‍यादि भरि मोन खाउ...। 
कएक दिन पहिनहिसँ चुरलाइ, तिलबा (तिललाइ) आ लाइ (मुरहीक लाइ) बनेबाक कार्यक्रम प्रारंभ भऽ जाइत छल। घरक वातावरण चुरलाइक सुगन्‍धसँ परिपूर्ण। एहि पावनिमे सभसँ विशेषता ई अछि पावनिक सामग्री बनि गेल तँ ओकरा लेल बेसी प्रतीक्षा नहि करए पड़ैत अछि। दिनमे व्राह्मण भोजन होइत छल। व्राह्मण कियो आसे-पासक लोक होइत छलाह, कारण भरि गाममे भोजे रहैत छल। बट्टा भरि-भरि घी खिचड़िमे देल जाइत। संगे तरह-तरह केर पकवान सभ सेहो रहैत छल।
हमरा गाममे किछु गोटे ओइठाम तिला संक्रान्‍तिमे जिलेबी बनैत छल। भोजमे खिचड़िक संग जिलेबी खेबाक बच्‍चा सभकेँ अद्भुत उत्‍साह रहैत छल। खिचड़िमे ततेक प्रचूर मात्रामे घी रहैत छल जे भोजनक बाद हाथ साफ-साफ धोनाइ कठिन। पावनिक कएक दिन बादो धरि चूरालाइ आ तिलबाक आनन्‍द भेटैत रहैत छल।
एहि पावनिमे चूड़ा, दही, खेबाक सेहो परंपरा अछि। चूरा-दहीक वर्णन करैत खट्टर कका कहलखिन जे जखन पातपर चूड़ाक संग आम, धात्रीक अँचार ओ तरकारी परसल जाइत अछि तँ बुझू जे अन्‍हरिया आबि गेल। तकर बाद जखन दही परसाएल तँ बुझू जे इजोरिया। जेना पातपर चन्‍द्रमा उतरि गेलाह। ऊपरसँ जँ मधुर राखि देल जाए ओ कौर पेटमे गेल तँ पुछू नहि। पुरा सोनित ठण्ढा जाइत अछि आ आत्‍मा तृप्‍त भऽ जाइत अछि।
मिथिलांचलमे एहि पर्वकेँ मनेबाक अद्भुत परंपरा अछि। चुरलाइ खाउ, चुरा-दही खाउ, खिचड़ि खाउ, जे खाउ, जखन खाउ...। वस्‍तुत: ई आनन्‍दक पर्व थिक जे कोनो-ने-कोनो रूपे सम्‍पूर्ण भारतपवर्षमे मनाओल जाइत अछि। सूर्यक तेजक मकर संक्रान्‍तिसँ जहिना बढ़ैत रहैत अछि, तहिना सभ लोक-वेदक सुख बढ़ैत रहए, सएह एहि पावनिक ध्‍येय थिक।








दृष्‍टान्‍त  











 


दृष्‍टान्‍त  


१. दशरथ माँझी-

पृथ्‍वीपर एकसँ एक आश्चर्यजनक घटना घटैत रहैत अछि। मनुखक पुरुषार्थक परिणाम थिक जे लोक चन्‍द्रमापर पहुँच गेल, तरह-तरहक यंत्रक निर्माण करैत सौंसे दुनियाँक स्‍वरूपकेँ बदैल देलक। घरे-बैसल लोक अमेरिका, इग्‍लैंडक लोकसँ गप कए सकैत अछि, ओकरा देख सकैत अछि। किछु दिन पूर्व तक शायद जइ बातक कल्‍पनो ने केने हएत से सभ साकार भऽ रहल अछि। एहेन बहुत रास लोक भेला अछि जे अपन संकल्‍प-शक्‍तिसँ प्रतिकुल-सँ-प्रतिकुल परिस्‍थितिमे अद्भुत काज कऽ गेला। एहने किछु बेकतीक चर्चा हम एतए कऽ रहल छी।

बिहारक गेहलौर पहाड़ी क्षेत्रमे रहनिहार  दशरथ माँझीक पत्नीकेँ पहाड़ीपर चढ़ैतकाल चोट लागि गेलैन। डाक्‍टरसँ देखेबाक हेतु दशरथ माँझीकेँ ७० किलोमीटर पहाड़ीक चारूकात चलए पड़लैक। ऐ बातसँ क्षुब्‍ध भऽ ओ संकल्‍प केलैथ जे पहाड़ीकेँ आर-पार सीधा आवागमन हेतु रास्‍ता बनौल जाए। हुनका लगमे तीनटा बकड़ी छल। तेकरा बेचि कऽ छोट-मोट औजार कीनलाह आ असगरे पहाड़ीपर रास्‍ता बनबैमे लागि गेला। १९६० इस्‍वीसँ १९८२ वाइस सालक निरन्‍तर प्रयासक बाद ओ ऐ काजमे सफल भेला। भोरकऽ खेतमे हरवाही करैथ,आ तेकर बाद दुपहर राति धरि पहाड़ीकेँ तोड़ि कऽ रास्‍ता बनाबक प्रयास करैथ। पहाड़ीक चट्टानपर लकड़ी जरा कऽ ओकरा गरमा दैत छला। फेर ओइपर पानि ढारि दैत रहथिन जइसँ चट्टानमे टूटन भऽ जाइतछल। तेकर बाद ओ अपन छोट-मोट औजार सबहक सहायतासँ रास्‍ता बनाबैथ।


बिहार सरकार हुनका राजकीय सम्‍मानक संग अन्‍तिम संस्‍कार केलक। आब ओ पूरा दुनियाँमे पहाड़ी बाबाक रूपमे विख्‍यात भऽ गेल छैथ।

शुरूमे सभ दसरथ माँझीकेँ पागल कहइ। मना करै जे ओ काज होमए-बला नहि अछि, मुदा ओ अड़ल रहला आ मात्र हथौरी आ छेनीसँ पहाड़ी काटि कऽ एतेकटा रास्‍ता बनाबैमे सफल भेला। ◌



२. श्री लक्ष्‍मण राव-

दिल्‍लीक आइ.टी.ओ.क पास चाह बेचनिहार श्री लक्ष्‍मण रावक कथा केकरो हेतु प्रेरणादायी अछि।

श्री रावक जन्‍म २२ जुलाई १९५४क महाराष्‍ट्रक अमरावतीमे एक साधारण किसान परिवारमे भेल। १९६३ इस्‍वीमे मुम्‍बईसँ ओ हिन्‍दी माध्‍यममे मैट्रिक पास केलाह। बचपनमे श्री राव एकबेर पानिमे डुबि गेला। ओइ घटनाक दर्दनाक अनुभवकेँ लिपिवद्ध करबाक हुनका जबरदस्‍त इच्‍छा भेलैन आ ओ लिखए लगला। परिस्‍थितिवश ओ मैट्रिकसँ आगाँ नहि पढ़ि सकला। किछु दिन स्‍थानीय कपड़ा मीलमे काज केलाह। तेकर बाद ४० रूपैआक संग सन्‍ १९६५ इस्‍वीमे भोपाल चल गेला, जेतए किछु दिन मजदूरी केलाह मुदा मोनमे किछु करबाक छटपटाहट हुनका भोपाल छोड़ि दिल्‍ली लऽ अनलक। ३० जुलाई १९६५ क ओ दिल्‍ली आबि गेला।

रवि दिनकेँ दिल्‍लीक दरियागंज जा कऽ ओ पुस्‍तक आनैथ महात्‍मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू, कार्ल मार्क्‍स, सेक्‍सपियर आदिक पुस्‍तक ओ अध्‍ययन केलाह। क्रमश: ओ दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय पत्राचार पाठशालासँ बी.ए. पास केलाह। राव अपन प्रथम उपन्‍यास नयी दुनियाँ की नयी कहानी १९६९ इस्‍वीमे लिखला मुदा कियो प्रकाशक ओकरा प्रकाशित करबाक हेतु तैयार नहि भेल। अन्‍ततोगत्‍वा ओ स्‍वयं अपन पुस्‍तकक प्रकाशन करए लगला।

लक्ष्‍मण रावजी तेकर बाद एक-सँ-एक पुस्‍तक लिखैत गेला। हुनक लेखनीसँ प्रभावित भऽ इन्‍दिरा गाँधीजी एवं भूतपूर्व राष्‍ट्रपति प्रतिभा पाटिलजी हुनकासँ भेँट केलकैन। हुनका इन्‍द्रप्रस्‍थ साहित्‍य अकादेमी पुरस्‍कार सेहो भेट चूकल अछि।

लक्ष्‍मण रावजीक पोथी सभ दिल्‍लीक पुस्‍तकालय एवं स्‍कूल सभमे भेटैत अछि।

अखन धरि ओ बीसटा पुस्‍तक लिखि चूकल छैथ। तैयो गुजाराक हेतु ओ चाह-पानक दोकान ओहिना कऽ रहल छैथ। हुनक ई दशा समाजमे रचनात्‍मकताक अवमूल्‍यन दिस इंगित करैत अछि।◌


३. श्री हरेकला हजब्वा :

मंगलुरूसँ २५ किलोमीटर दूरीपर अवस्‍थित नया पण्‍डु गामक रहनिहार हरेकला हजब्वाक तियाग ओ उपलब्‍धिक खिस्‍सा सुनि कियो सोचबाक हेतु विवश भऽ जाएत। ओ अनपढ़ छला। फल बेचि कऽ गुजर करैत छला। एक दिन एकटा विदेशी हुनकासँ फलक दाम अंग्रेजीमे पुछलक। ओ पढ़ल नहि छल। अंगरेजीमे पुछल गेल प्रश्‍नक उत्तर नहि दऽ सकल। आ ओ ग्राहक चलि गेलैक। ऐ बातक ओकरा मोनमे बहुत कचोट भेलइ। ओ ठानि लेलक जे अपन गाममे स्‍कूल स्‍थापित करत जइसँ कियो गामक बच्‍चा ओकरा सन अनपढ़ नहि रहि जाए...।

फलक बेचबासँ ओकरा रोजाना लगभग १५० रूपैआ आमदनी होइत छल। ओइमे सँ किछु पाइ बँचा कऽ तथा किछु कर्जा लऽ कऽ स्‍कूलक हेतु जमीन कीनलक आ क्रमश: ओइपर मकान बना कऽ स्‍कूलक स्‍थापना भेल। शुरूमे प्राइमरी स्‍कूल छल जेकरा बादमे बढ़ा कऽ हाई स्‍कूल बनाओल गेल।

क्रमश: ओकर ऐ उपलब्‍धिक चर्चा बढ़ए लगलै। सरकार, समाजिक संगठन आ केतेके दानी लोकनि ओकरा मदैत करबाक हेतु आगू एलाह। अखबारमे हजब्‍वाक काजक समाचार छपल। तेकर बाद सरकार एक लाख रूपैआक अनुदान ओइ विद्यालयकेँ घर हेतु देलक। स्‍थानीय समाचार पत्र कन्नद प्रभा हुनका वर्ष पुरुष घोषित केलक एवं एक लाख रूपैआक पुरस्‍कार देलक।

तेकर बाद कतेको लोक दान देबए लगलाह। सी.एन.एन. आइ.बी.एन. टेलीवीजन चैनल हुनका रियल हिरो पुरस्‍कार देलक। हजब्‍वा ओइ स्‍कूलक विकास समितिक उपाध्‍यक्ष छैथ परन्‍तु कुर्सीपर नहि बैसै छैथ एवं स्‍कूलमे स्‍वयं सफाइ करै छैथ।

हजब्‍वा आब अपन गाममे एकटा कौलेजक स्‍थापना करय चाहै छैथ। अखन गामक बच्‍चाकेँ कौलेजमे पढ़ैले सात किलोमीटर दूर स्थित सरकारी कौलेजमे जाए पड़ै छइ। बहुत गोटेकेँ प्राइभेट कौलेजमे खर्चा करि कऽ पढ़ए पड़ै छइ। ऐसँ बँचैले ओ गामेमे कौलेजक निर्माणमे लागल छैथ।◌



४. श्री पोपतराव पवार-

पोपतराव पवारक नाओं, सुनने छी की? ५५ वर्षीय श्री पवार त्रियारे पवाह (अहमदनगर, महाराष्ट्र)क सरपंज थिकाह। ओ असगरे सुखार ग्रस्‍त गामकेँ पानि, बिजली, शिक्षा आ बेहतर स्‍वास्थ्‍य सेवासँ हटल-छुटल केतेको गाममे बदैल देला। ई गाम आत्‍मवेत्ता एवं स्‍वशासनक सिद्धान्‍तरपर काज करैत अछि।

सन्‍ १९७२ मे ओ शहरसँ स्नातकक परीक्षा पास कऽ गाम एलाह। गाममे ओ सभसँ शिक्षित बेकती छला। ग्रामीणक आग्रहपर ओ सरपंचक चुनाव लड़ला आ जीति गेला। तेकर बाद ओ नाना प्रकारक विकास काज कऽ कऽ गामक भविस बदलै पाछू लागि गेला।

सभसँ पहिने ओ गामक स्‍कूलमे मैट्रिक तकक पढ़ाइक बेवस्‍था केलैन जइसँ गामक धिया-पुताकेँ शिक्षाक स्‍तरमे सुधार भेल। तेकर बाद ओ गाममे पानिक सुविधा हेतु ४००० खधिया खुनि कऽ जल संरक्षणक बेवस्‍था केलैन। गाममे नल-कूपक जगह इनारक उपयोगपर जोड़ देलैन, जइसँ भूजलक स्‍तर बनल रहए। एहेन फसल सभ अपनाबक प्रयास भेल जइमे अधिक-सँ-अधिक पैसाक आमदनी होइक आ कम-सँ-कम पानिक प्रयोजन।

१० सालक अवधिमे ओ करीब १० लाख वृक्ष लगबौला जइसँ गामक आबो-हवा बदैल गेल।

सन्‍ १९९५ इस्‍वीमे आदर्श ग्राम योजना लागू भेलापर रन्‍हू गामकेँ आदर्श ग्राममे विकसित करबाक हेतु चुनाव भेल। आई हिवारे बजार गाम प्राय: देशक सभसँ विकसित गाममेसँ अछि। एकर श्रेय कोनो सरकारी प्रयत्‍नकेँ नहि, अपितु ग्रामसभाककेँ अछि जे ग्राम संसदक नामसँ जानल जाइत अछि, आ जेकरा गामक विषयमे समस्‍त निर्णय लेबाक अधिकार छइ।

बेहतर शिक्षा, सुद्धृढ आर्थिक स्‍थितिक संग निरन्‍तर विकास कए ई गाम एकटा उदाहरण भऽ समाजक सम्मुख प्रस्‍तुत अछि। ऐ गाममे महिला पुरुखसँ अधिक छैथ। परिवार नियोजन एवं अन्‍य प्रकारक आधुनिक चिकित्‍सा सुविधा सहज सुलभ अछि।

१९९५ इस्‍वीमे प्रतिदिन १५० लीटर दूधक उत्‍पादनक तुलनामे २०१२ मे ४००० लीटर दूध प्रतिदिन उत्‍पादन होइत अछि। १९९५ मे गाममे ९० टा इनार छल, जखन कि २०१२ मे २९४. ओइ अवधिक दौरान प्रति बेकतीक आमदनी ८३० रूपैआसँ बढ़ि कऽ ३०००० रूपैआ भऽ गेल। ऐ गामकेँ १९९५ इस्‍वीमे आदर्श ग्राम पुरस्‍कार, २०००मे यशवंत गाम पुरस्‍कार, २००७ इस्‍वीमे निर्मल ग्राम पुरस्‍कार, २००७ मे वनग्राम पुरस्‍कार, एवं २००७ मे राष्‍ट्रीय जल पुरस्‍कार भेटल।

गामक विकास एवं सुविधा देख गामसँ पलायन कऽ चूकल लोक सभ पुनश्च गाममे आपस आबि बसि रहल छैथ।

एक बेकतीक तियाग आ कर्मठतासँ केतेक परिवर्तन भऽ सकैत अछि, तेकर पोपतराव पवार एकटा ज्‍वलन्‍त उदाहरण भऽ चूकल छैथ। जे गाम दुर्भिक्ष आ दरिद्रतामे डुमल छल, तइमे साठिटा करोड़पति रहि रहल छैथ।◌


५. श्री आलोक सागर-

आइ.आइ.टी. दिल्‍लीसँ इन्जिनियर (एम.टेक) श्री आलोक सागर अमेरिकाक हाउसटन विश्वविद्यालयसँ टेक्‍साससँ पी.एच-डी. केला पछाइत आइ.आइ.टी. दिल्‍लीमे प्राध्‍यापकक काज प्रारम्‍भ केलाह। रिजर्व बैंक ऑफ इन्‍डिया (आर.बी.आई.) क भूतपूर्व गवरनर श्री रघुरमन राजन हुनकर विद्यार्थी छेलखिन।

१९८२ इस्‍वीमे सागरजी नौकरी छोड़ि जमीनी स्‍तरपर समाज सेवा करबाक उद्देश्‍यसँ मध्‍यप्रेदेशक वेतुल एवं होसंगावाद जिलामे स्‍थानीय आदिवासीक सेवामे लागि गेला। ऐ लेल ओ आदिवासीक  अधिकारक हेतु संघर्षरत समाजिक संगठन- श्रमिक आदिवासी संगठनसँ जुड़ि गेला।

पैछला ३५ वर्षसँ ओ लगातार आदिवासी लोकनिक सेवा कए रहल छैथ, मुदा केकरो कहियो अपन परिचए नहि देलखिन। पैछला विधान सभा चुनावक समय जिला प्रशासन हुनका जिला छोड़बाक आदेश देलक तखन हारि कऽ हुनका अपन परिचए देबए पड़ल।

सागरजी आदिवासी सभकेँ कम मूल्‍यपर बीआ देल करैथ जइसँ श्रृष्‍टिक रचनात्‍मकताक प्रचार, विकास होइक। ओ मध्‍य प्रदेशक पेतुल जिलामे पचास हजार वृक्ष लागैलाह। सागरजी समाजसेवक एकटा सही पहचान छैथ। ऐ देशमे राजनीतिक सभ समाज सेवोक नाओंपर झूठ-मूठक क्रिया-कलाप करैत रहै छैथ। जिनका योग्‍यता नहि अछि सेहो झूठ डिग्री बना कऽ समाजमे प्रचार करैत रहै छैथ जे ओ केतेक विद्वान छैथ। मुदा सागरजीकेँ देखू। अद्भुत शैक्षणिक उपलब्‍धि एवं उच्‍च स्‍तरीय नौकरीकेँ तिलांजलि दए आइ केतेको वर्षसँ समाजक निम्नतम्‍ स्‍तरक लोक सबहक कल्‍याणक हेतु काज कऽ रहल छैथ।

आलोक सागरजी कोचमू गाममे रहै छैथ। ओइ गाममे ७५० आदिवासी रहै छैथ। कोचमू गाम दूर-दराजमे अवस्‍थित अछि। ओइ गाममे बिजली नहि अछि। ओ सरल, साधारण जीवन जीबै छैथ। हुनका लगमे तीनटा कुर्ता रहै छैन आ साइकिलपर गामे-गाम घुमैत रहै छैथ। ओ स्‍थानीय भाषा सहित अनेको भाषाक जानकार छैथ। हुनकर कहब अछि जे भारतीय समाजमे लोक सीभकेँ केतेको गंभीर समस्‍या सभ घेरने अछि। मुदा लोक सभ तेकर समाधान करबाक बजाय अपन मेधाक प्रर्दशन अपन डिग्रीसँ करैत रहै छैथ। तियाग ओ तपस्‍याक एहेन प्रतिमूर्ति ऐ युगमे भेटब असंभव नहि तँ बहुत कठिन अवश्‍य अछि।◌



६. श्री जादव पायंग-

१६ सालक उम्रमे जादव पायंग (मोलाइ) धियान आस-पास मरि रहल साँप सभपर गेल जे जंगलक अभावमे ऐ दुर्दशामे छल। चिड़ै-चुनमुनीक घटैत संख्‍या एवम्‍ अन्‍य जंगली जीव-जन्‍तुक पराभवसँ ओ बहुत दुखी भऽ गेल। ई गप सन्‍ १९७९क थिक। ऐ विषयपर ओ अपन आस-पासक लोक सभसँ गप केलाह मुदा कियो धियान नइ देलक। मुदा हुनका चैन नहि भेलैन। ओ ठानि लेल जे ओइ क्षेत्रमे नवीन जंगलक निर्माण करता।

ब्रह्मपुत्र नदीक कछेरमे तथा बीरान क्षेत्रमे नित्‍य नव गाछ रोपए लगला। नित्‍य प्रति ओ ई काज करए लगला। क्रमश: गाछक संख्‍या बढ़ए लगल आ ओइमे पानि देब एकटा गंभीर समस्‍या भेल जाइत छल। तेकर उपाय ओ ई केलैन जे प्रत्‍येक गाछक ऊपर पानिसँ भरल डाबा टाँगि कए ओइमे भूर कए दैथ, जइसँ निरन्‍तर टिपिर-टिपिर पानि खसि ओइ गाछकेँ सिंचित करैत छल।

सन्‍ १९८० मे गोलाघाट जिला जोरहाट अवस्‍थित अरूना चपोरीक २५० एकड़ क्षेत्रमे वन विभागक वृक्षारोपण योजनामे शामिल भऽ गेला आ पाँच वर्ष धरि ओइमे काज करैत रहला।

पछाइत ओ ओहीमे आर गाछ सभ लगबैत रहला जइसँ ओइ क्षेत्रमे एकटा नीक जंगलक निर्माण भऽ सकए।

आसामक मिसिंग जनजातिक श्री पायंग जंगलमे अपन पत्‍नी ओ तीनटा बच्‍चाक संग एकटा झोपड़ीमे रहैत छैथ। हुनकर मित्र सभ नीक-नीक स्‍थानपर शहरमे चलि गेला। उत्तम शिक्षा आ उत्तम पद प्राप्‍त केलाह। परन्‍तु ओ जंगलमे वृक्षारोपणमे मगन रहला। हुनकर कहब जे पुरस्‍कार ओ प्रतिष्‍ठा ओ अर्जित केला वएह हुनक सम्‍पैत अछि आ ओहीसँ हुनका आनन्‍द भेटैत रहै छैन।

२२ अप्रैल २०१२ क जवाहर लाल नेहरू विश्‍वविद्यालयक पर्यावरण विज्ञान विभाग द्वारा पुरस्‍कृत भेला। ओइ विश्वविद्यालयक उपकुलपति हुनक नाओं भारतक फोरेस्‍टमैन रखि देल। तथा अक्‍टूबर २०१३ मे भारतीय वन प्रवन्‍धन संस्‍थान द्वारा आयोजित वार्षिकोत्‍सवमे सेहो हुनका पुरस्‍कृत कएल गेल।

ऐ आदमीक इच्‍छा शक्‍ति देख कऽ कियो बेकती गुम पड़ि सकै छैथ। असगरे तीस सालक अविरल साधना द्वारा एक बीरान १३६० एकर क्षेत्रमे जंगल निर्माण कए देलक। ऐ जंगलकेँ ओकर उपनामपर मोलाइ कहल जाइत अछि।

मोलाइ जंगलमे वंगालक बाझ, भारतीय हरिण, गेड़ा तथा सैकड़ो हाथी रहैत अछि। एकर ३०० एकड़ क्षेत्रमे बाँस लागल अछि। एक आदमीक अविरल साधनासँ धारक कछेरपर दुनियाँक सभसँ पैघ जंगलक निर्माण संभव भेल।

अस्‍तु संसार एक-सँ-एक वीर पुरुषसँ भरल अछि जे तमाम कष्‍ट ओ अभावक अछैत किछुक गुजरला आ आबए बला पीढ़ीक हेतु एकटा दृष्‍टान्‍त ठाढ़ कऽ देला। कठिनाइ एवम्‍ संघर्ष हुनकर प्रयत्नकेँ कखनो कमजोर नहि कऽ सकल। आइ वएह सभ समाजक सामने एकटा दृष्‍टान्‍त बनि चूकल छैथ। मानव सभ्‍यताक इतिहासमे प्रकाश स्रंम्‍भ जकाँ ओ सदिखन जगमगाइत रहता, स्‍मरणीय रहता।◌