मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

बुधवार, 24 मार्च 2021

श्री प्रकाशचंद्र पाण्डेय

 

श्री प्रकाशचंद्र पाण्डेय


श्री प्रकाशचंद्र पाण्डेयसँ हमर पहिलबेर भेंट भेल जखन ओ दिल्ली डेस्कमे हमर व्यक्तिगत सहायक(पीए)क रूपमे काज शुरु केलनि । ओ नौकरी शुरुए केने छलाह आ हमरासंगे हुनकर ई पहिल पोस्टींग रहनि । हुनकासंगे हुनकर पिता सेहो आएल रहथि,जेना छोटनेना संगे ओकर अभिभावक इसकूल जाइत छथि। ओ सभ उत्तराखंडक रहनिहार छथि । हुनकर पिता सेहो सरकारी सेवामे रहथि । इन्टर पास करिते ओ आशुलेखन सिखि लेले रहथि जाहिसँ हुनका कर्मचारी चयन आयोगक माध्यमसँ ई नौकरी भए गेलनि ।

शुरुमे प्रकाशजीकेँ नौकरी करबामे दिक्कति होनि । हम कैकबेर तमासइतो छलिअनि । कैकबेर रुसि कए ओ घर बैसि जाथि । तखन हुनकर पिता संगे आबि कए हुनकर मनोवल बढ़ाबथि । एहि तरहें हुनकर काज आगु बढ़ल । क्रमश: ओ काजसभ सिखैत गेलाह । बादमे तँ ओ ततेक पारंगत भए गेलाह जे एकबेर जे टंकित  करथि तकरा दोबारा देखबाक काज नहि रहैत छल । साइते कहिओ कोनो गलती भेटैत । सरकारी काजक अतिरिक्त हमर कैकटा व्यक्तिगत काजसभ सेहो ओ बहुत मनोयोगपूर्वक करथि । हम किछुदिन ट्युशन करैत छलहुँ । प्रकाशजी विद्यार्थीक हेतु नोटसभेँ टाइप कए देथि । आओरो कैक तरहें ओ मदति करथि । मधुबनीक मकानकेँ खाली करेबाक हेतु ककरा-ककरा ने चिठ्ठी लिखल गेल । ताहूमे ओएह हमरा मदति करथि । एकबेर कहबाक काज-जे फलानक नामे चिठ्ठी बनाउ । तकर आधाघंटाक बाद सजल-धजल चिठ्ठी भेटि जाइत ।

कैकदिन एहन होइत छल जे हम आ प्रकाश काज करैत रहैत छलहुँ आ सौंसे कोठरी खाली भए गेल रहैत । संसद सत्रक समयमे एहन होइत रहैत छल । हमरा लोकनिक पासमे बहुत काज रहैत छल । कतबो प्रयास कएलाक बादो राति भइए जाइत चल । कारण जखन दिल्ली सरकारसँ जानकारी अबैत तकरबादे संसदीय प्रश्नक जबाब बनाओल जाइत । सभटा काज करैत-करैत कैकबेर दूपहर राति भए जाइत । घर वापस हेबाक कोनो साधन नहि रहैत छल । ओना बेसी राति भेलाक बाद कार देबाक व्यवस्था रहैक मुदा ओ बेसीकाल कारगर नहि भए पाबैत छल । जँ कहिओ काल कार भेटिए गेल तँ ओ जिलेबी जकाँ घुमैत कैकगोटेकेँ पहुँचबैत चलैत । ओहिमे तँ आओर देरी भए जाइत छल । एकबेर रातुक बारहसँ बेसी भए गेल छल । हम आ प्रकाशजी नार्थ ब्लाकक सामनेमे दिल्ली पुलिसक जीपक बाट तकैत रही जे हमरासभकेँ घर पहुँचबैत। मुदा संवादप्रेषणमे कोनो गड़बड़ीक कारण जीप नहि आबि सकल आा हम दुनूगोटे बाटे तकैत रहि गेलहुँ । बहुत मोसकिलसँ राष्ट्रपति भवनबला द्वारिक आगुमे १०० नंबरबला एकटा जीप ठाढ़ रहैक । ओकरा  सभटा बात कहलिऐक तखन थोड़ेक कालक बाद एकटा पुलिसक जीप आएल आ हमरा लोकनिकेँ अपन-अपन घर पहुँचओलक । एवम् प्रकारेणहम प्रकाशजीक संगे लगभग ६ साल धरि सुख-दुखमे संगे रहि दिल्ली डेस्कमे काज केलहुँ ।

गृह मंत्रालयमे कतहु ककरोसँ जँ कोनो काज पड़ैत तँ प्रकाशजी ओकरा  कए लतथि । प्रशासनसँ जँ कोनो काज पड़ैत तँ ओ ओकरा करबा दितथि । जँ कोनो फाइल नहि भेटि रहल अछि तँ ओ कतहुसँ ताकि अनितथि । कहबाक माने जे प्रकाशजी दिल्ली डेस्क आ हमर समस्यासभक समाधान करबामे माहिर छलाह । क्रमश: हुनकर दक्षताक ततेक प्रचार भए गेल जे कैकटा वरिष्ठ अधिकारीसभ हुनकर माङ करए लगलाह । बहुत मोसकिलसँ हुनका अपना संगे राखि सकलहुँ । काज तँ ओ करबे करथि संगहि हुनकर स्वभाव सेहो बहुत मृदुल छल,व्यक्तित्वमे नम्रता भरल छल ।सभसँ ऊपर हमरा प्रतिए व्यक्तिगतरूपसँ ओ निष्ठावान छलाह । हुनकापर हम आँखि मुनि कए विश्वास कए सकैत छलहुँ । एहन लोक आइ-काल्हि कतए पाबी ?

दिल्ली डेस्कमे सन् १९९३-९७क बीचमे लगभग चारि साल प्रकाशजी हमरा संगे काज केलथि । तकरबाद हम लेडी हार्डिंग मेडिकल कालेज दिल्लीमे प्रतिनियुक्तिपर चलि गेलहुँ । दू सालक बाद जखन हम गृह मंत्रालय लौटलहुँ तखन फेर हमर पोस्टींग दिल्ली डेस्कमे भए गेल आ एकबेर फेर प्रकाशजी हमर पी.ए. भए गेलाह । मुदा दूसालक अंतरालमे हुनकामे आ दिल्ली डेस्कमे बहुत परिवर्तन भए गेल छल । तथापि हुनका हमरा प्रति सिनेह ओहिना रहनि। हमर काज ओ ओहिना तत्परतासँ करैत छलाह । मुदा हमरा अपने आब दिल्ली डेस्कमे मोन नहि लगैत छल । तत्कालीन संयुक्त सचिव स्वर्गीय जलालीजीक व्यवहारसँ हम तंग भए गेल रही । तेँ बहुत प्रयाससँ हम ओतएसँ अपन बदली करा एन.इ.(नार्थ इस्ट) डेस्क चलि गेलहुँ । एहि तरहे प्रकाशजीसँ सेहो हम फराक भए गेलहुँ । मुदा तकर बादो ओ हमरा समय-समयपर भेटैत रहैत छलाह । अखनो कखनो काल हुनकासँ गप्प-सप्प भए जाइत अछि। आब तँ ओ वित्त मंत्रालयमे आप्त सचिव(प्राइभेट सेक्रेटरी) भए गेल छथि । हुनकर पारिवारिक जीवन बहुत सुखि अछि । हुनकर पुत्र बहुत प्रतिभाशाली छथि आ युट्युबपर हुनकर कैकटा कार्यक्रमसभ देखबामे आबि जाइत अछि ।

सोमवार, 22 मार्च 2021

श्री नंद लाल मिश्र

 

श्री नंद लाल मिश्र

ई जीवन अद्भुत अछि । भगवानक बनाओल एहि दुनिआमे कोनो चीजक कमी नहि अछि,कोनो चीजक अंत नहि अछि । जाही दिस देखबैक एक सँ एक लोक देखबामे आबि जाएत । विद्वानेमे एक सँ एक लोक भेलाह, छथि आ आगुओ हेताह । तहिना एक सँ एक धनवान एहि दुनिआमे भेलाह आ छथिओ । एक सँ एक गबैआ,चित्रकार,साहित्यकार एहि दुनिआमे अएलाह आ चलि गेलाह । तखन? हमसभ की करी? अपनाकेँ कतए देखी? कतहु देखबाक कोन काज? ककरोसँ अपन तुलना जँ करब तँ करिते रहि जाएब आ अंततोगत्वा दुखी भए एहि दुनिआसँ चलि जाएब । जे जतए,जाहि रूपमे अछि सएह कमाल अछि । सभमे भगवान किछु चमत्कारिक गुण देने छथि,सभ किछु-ने-किछु कमाल केने अछि । जरूरी थिक सही दृष्टिकोणक। हमरा जीवनमे एक सँ एक लोक भेटलाह जिनकर गुणक वर्णन करब बहुत कठिन काज अछि। हुनका बारेमे किछु कहब संभवतः हुनका छोट कए देब होएत । एहन कैकटा हमर मित्र अखनो छथि जे  जीवनभरि हमरा मदति करैत रहि गेलाह । हे ओ सभ तँ कोनोठाम संग भेलाह,संपर्कमे अएलाह आ क्रमशः जुड़िते चलि गेलाह । मुदा एकटा एहन व्यक्ति भेलाह जे अप्रत्यासित हमरा सामने प्रकट भेलाह ,ओहो तखन जखन हम हुनका देखनो नहि रही,कहिओ भेंटो नहि रहए आ तकर बाद बहुत आत्मीय भए गेलाह आ जीवन यात्रामे बहुत मदतिगार साबित भेलाह । ओ व्यक्ति छथि-डुमरी(मधुबनी) गामक श्री नंदलाल मिश्रजी ।

हमर मधुबनीक मकानक पहिल किरायेदार माप-तौल विभाग,बिहार सरकार जखन मकान खाली कए देलक तकर बाद तीनसाल धरि ओ खाली पड़ल रहल । तकर कैकटा कारण छल । एक तँ हम किरायेदारीसँ तंग भए गेल रही । माप-तौल विभागकेँ बहुत मोसकिलसँ भगेने रही । तकर बाद? मकान खाली कतेक दिन रहैत । मकानमे बहुत रास काज बाँकी रहैक । हमरा छुट्टी रहए नहि । तखन केना की होइत? आखिर हमर श्रीमतीजी तैयार भेलाह। हुनका पठओलहुँ आ संगे हमर ज्येष्ठ पुत्र भास्कर सेहो रहथि । ओसभ दिन-राति मेहनति कए मकानक बहुत रास जरूरी काज करओलथि । तकरबादो मकानक की होएत? अपने तँ रहि नहि सकैत छलहुँ । तेँ ओकरा किराया लगाएब जरूरी छल । ओही समयमे मधुबनी स्थित हमर मित्र श्रीनारायणजी श्री नंदलाल मिश्रजीकेँ तकलनि । हुनका मकानक जरूरति रहनि । ओ मधबनीक उद्योग विभागमे बड़ाबाबू छलाह । हमरा अनुपस्थितिएमे श्रीनारायणजीक सहमतिसँ मकान किरायापर दए देल गेल । नंदलाल मिश्रजी ओहि मकानमे तेरह वर्ष रहलनि । बीच-बीचमे हुनकर बदली दरभंगा,सहरसा आ कतए-कतए होइत रहलथि । मुदा मकान इएह रहलनि । किराया कनी-मनी बढ़बैत रहलाह । कैकबेर किराया बाँकी रहि जाइक । मुदा बादमे ओ पाइ-पाइ जोड़ि कए चुकता करैत रहलाह । बैंकड्राफ्ट बना कए दिल्ली हमर डेरापर पठा दैत छलाह । मकानक बिजलीक बिल लए कए थोड़ेक समस्या जरूर भेल। कोनो कारणसँ बिजलीक बिल अबितहि नहि छल । एहिप्रकारेण सालो बिजली तँ जड़ैत रहल मुदा बिलक भुगतान नहि भेल । बादमे शासन सख्ती केलक आ बाँकी किरायाक संग जुर्माना सेहो हुनका देबए पड़लनि । हम हुनका समय-समयपर कहिअनि जे बिजली बिल जमा करैत रहथि । मुदा से नहि कए सकलाह आ घाठा उठाबए पड़लनि । मुदा से ओ सहि गेलाह । ओहि मकानमे ओ एकटा समांग जकाँ रहलाह आ आसपासक चीज-वस्तुक रक्षो करैत रहलाह । बगलमे हमर संबंधी लोकनिक खाली पड़ल भूखंडक सेहो ओ ध्यान रखैत रहलाह । ई सभ तँ भेल किरायेदारी बात । ओहुना ओसभगोटे बहुत नीक लोक छथि । सभदिन बहुत नीक व्यवहार रखलनि । जखन कखनो हम ओतए गेलहुँ हमरा लागल जेना अपने लोकसँ भेंट भए रहल अछि। जखन कखनो हम हुनका बारेमे सोचैत छी तँ मोन हुनका प्रति सद्भावनासँ भरि जाइत अछि । लगैत अछि जे हमर अंतरमन एकटा सुखद स्मृतिसँ गुजरि रहल अछि । सही मानमे अखनो एहि दुनिआमे बहुत नीक लोकसभ छथि आ तेँ ई चलिओ रहल अछि ।



रविवार, 21 मार्च 2021

भारत में लोकतंत्र

 

 

भारत में लोकतंत्र

 

एक लंबी लड़ाई के बाद १५ अगस्त १९४७ के दिन हमारा देश आजाद हुआ । हमें इस आजादी की भारी कीमत देश के विभाजन के रूप में चुकानी पड़ी। देश का लगभग आधा हिस्सा पुर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के रूप मे अलग हो कर एक स्वतंत्र राष्ट्र पाकिस्तान’’ के नाम से बना दिया गया । पाकिस्तान बनाने के पीछे तर्क यह था कि मुसलमान हिन्दू बहुल देश में नहीं रह सकते । इस तरह धर्म के आधार पर दो देश बना दिया गया । लाखों लोगों को इस बटबारे के बाद अपने जान गबाने पड़े । लोक अपने-अपने ठिकाने तलाशते रहे और इस क्रम में हिंशा के शिकार हो गए । जो जैसे-तैसे जान बचाकर पाकिस्तान से हिंदुस्तान आ भी गए ,उनके पास कुछ भी नहीं था । बड़े-बड़े घरों के स्मृद्ध लोक दाने-दाने के मोहताज हो गए । कई परिवार के सदस्य एक-दुसरों से ऐसे बिछुड़े कि कभी मिल ही नहीं पाए । भगवान जाने उन में से कितने बचे और कितने हिंसा के शिकार हो गए । ऐसे लाखों की संख्या में लोग अपने ही देश में शरणार्थी हो गए । उनके पास रहने का कोई ठिकाना नहीं था ,खाने के लिए भोजन नहीं था । ऐसे लाखों लोगों को सरकार और स्थानीय लोगों ने भरसक सहायता प्रदान की । कई संभ्रांत लोगों ने ऐसे परिवारों को गोद ले लिया और उनको उचित मानवीय सहायता दे कर अपने पावों पर खड़े होने में मदत किए । सोचिए,ऐसे लोगों की मनोदशा क्या रही होगी जो देखते ही देखते इसलिए कंगाल हो गए थे कि देश आजाद हो गया था ।

१५ अगस्त १९४७ को देश आजाद होने के बाद २६ जनबरी १९५० को संविधान सभा द्वारा निर्मित संविधान को लागू किया गया । इसके अनुसार भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य बना । एक ऐसा देश जिसमें जनता ही सबकुछ होगा । जिसमें समाज के सभी लोग बिना किसी भेदभाव के रह सकेंगे । जहाँ सभी लोग अपने-अपने धर्मों का पालन कर सकेंगे । जिसमें किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होगा । लेकिन आजादी के इतने सालों के बाद क्या यह सब संभव हो सका? देश के आजादी के इतने सालों के बाद भी हम गरीबी हटाने में लगे हुए हैं । देश की अधिकांश जनसंख्या अभी भी मुलभूत सुविधाओं से वंचित है । अभी भी महानगरों में मजदूर पटरी पर सोते हुए वाहनों द्वारा कुचल दिए जाते हैं । गरीबों के बच्चे स्कूल जाने के बजाए मजदूरी करते हैं । ऐसा नहीं है कि इस सब को रोकने के लिए कानून नहीं बना है ।  लेकिन कानून बनाने से ही क्या होगा? कानून तो दहेज के खिलाफ भी बना हुआ है पर सभी जानते हैं कि अभी भी यह समाज में किसी न किसी रूप में व्याप्त है ही । कानून तो यह भी है कि पैतृक संपत्ति में महिलाओं का हक होगा । पर व्यवहार में एसा नहीं हो पा रहा है । जहाँ कहीं ऐसा प्रयास होता है वहाँ बबाल होता रहता है । कहने का तात्पर्य यह है कि मात्र कानून बना देने से देश के गरीब,पिछड़े तबके के लोगों का भला नहीं होने बाला है ।

कहने के लिए स्कूल,कालेज,विश्वविद्यालय सब कुछ बन गए । अस्पतालों की भरमार हो गयी । तरह-तरह के अधिकारी लोगों के कल्याण के लिए काम करते रहे। फिर भी आजादी के ७४ साल बीत जाने के बाबजूद हमें करोड़ो लोगों को मुफ्त या मामूली मूल्य पर भोजन क्यों देना पड़ता है? क्यों अभी भी छोटे-छोटे बच्चे काम करते देखे जाते हैं? क्यों अनगिनित संख्या में लोग रात को पटरियों पर सोने के लिए विवश हैं? जिस देश का अधिकांश नागरिक मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित हो वहाँ मताधिकार का क्या मायने है? कोई सवल व्यक्ति या समूह उन्हें प्रभावित कर सकता है । यह तो रहा वंचितों का हाल । लेकिन जो सामर्थ्यवान है,सब तरह से संपन्न हैं ,जिनके पास राजनीतिक और आर्थिक प्रभुता है,वे भी अपना मतदान सायद ही निष्पक्ष होकर योग्यता के आधार पर करते हों । क्यों कि अभी भी देश में धर्म और जाति का बोलबाला है । बोट बैंक  की राजनीति इस कदर हावी है कि सायद ही कोई मुद्दा हो जिसको राजनीति से नहीं जोड़ दिया जाता हो। नेता चाहे जिस किसी भी दल का हो,लेकिन उसका सारा ध्यान इस बात में लगता रहता है कि आगामी चुनाव में उसको अधिक से अधिक मत कैसे मिले । ऐसा इसलिए हो रहा है क्यों कि राजनीति सेवा का मार्ग नहीं रह गया है । यह एक व्यापार हो गया है।

जिस देश में लोकतंत्र के नाम पर जैसे-तैसे सत्ता पाना ही एकमात्र उद्येश्य हो वहाँ सामान्य लोगों में सुख-शांति कहाँ से आएगी? ऐसी स्थितिमें सामान्य आदमी तो राजनेताओं के हाथ का बस एक खिलौना बनकर रह जाता है । दल चाहे कोई हो,नेता चाहे कोई हो, सामान्य आदमी के ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ता है । वे वैसे के वैसे ही रह जाते हैं । लोकतंत्र में मतदान से प्राप्त शक्तियों को कुछ संपन्न,संभ्रांत लोग ही लाभ उठा पाते हैं ।  दल चाहे कोई भी जीते,वही लोग असल में समाज पर हावी रहते हैं । वही मंत्री बनते हैं ,सत्ता का समीकरण वही बनाते विगाड़ते हैं। यही कारण है कि बहुमत में होते हुए भी आज भी गरीब लोगों की सरकार नहीं बन पाती है । सत्ता सम्हालने बाले चंद लोग अच्छी तरह समझते हैं कि इनको धर्म,जाति,संप्रदाय के नाम पर आपस में बाँटकर एकमुस्त मत प्राप्त किया जा सकता है । यही कारण है कि चुनाव जीतने के बाद शासक दल गरीबों को नहीं अपितु सत्ता के बिचौलियों को खुश करने में लग जाते हैं । गरीबों लोग वहीं के वहीं रह जाते हैं।

लोकतंत्र तभी सफल हो सकता है जब देश के नागरिक अपने अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों के प्रति भी उतने ही सचेष्ट हों । दुर्भाग्यवश, अपने देश में एसा नहीं हो रहा है । लोक अपने अधिकारों की लड़ाई तो लड़ रहे हैं ,परंतु उन्हें दूसरों के अधिकारों की कोई चिंता नहीं है । फिर समाज कैसे चलेगा? समाज में संतुलान कैसे बनेगा?  गरीब-धनी का विभेद कैसे कम होगा? हो ही नहीं सकता है । यही कारण है कि अपने देश में तमाम कानूनी प्रावधानों के बाबजूद लोक तरह-तरह के भेद-भाव के शिकार हैं । देश में हिंसा का माहौल बड़ता ही जा रहा है । संसद,न्यायालय और चुनी हुई सरकारों के प्रति सम्मान का अभाव दिख रहा है । सबाल यह नहीं है कि देश का शासन कौन चला रहा है ?लोकतंत्र में सरकार हम स्वयं चुनते हैं । परंतु,जब एक बार बहुमत से सरकार बन जाती है तो उसे काम तो करने देना होगा। बात-बात में मात्र विरोध के लिए विरोध तो विनाशकारी ही सावित होगा । दुर्भाग्य से आज वही हो रहा है । जो लोग चुनाव हार जाते हैं वे अगले चुनाव की प्रतीक्षा नहीं करना चाहते हैं । वे जैसे-तैसे चुनी हुई सरकारों पर गैर कानूनी तरीकों से हावी होना चाहते है ताकि सरकार असफल हो जाए और वे जल्दी से जल्दी सरकार पर काबिज हो जाएं । एसी हालत में देश में लोकतंत्र कबतक बचेगा?

जैसा कि सभी जानते हैं लोकतंत्र में शासन की बागडोर जनता के हाथ में होती है । जैसे नागरिक होंगे वैसी ही सरकार होगी । चूंकि देश की जनता जात-पाँत,धर्म के आधार पर बटी हुई है और उसी हिसाब से अपना मतदान करती हैं,इसलिए सरकारें भी वैसी ही बनती हैं । उनका मूल उद्येश्य बोट बैंक बनाए रखना होता है ताकि वे आगामी चुनाव आसानी से जीत सकें । यही कारण है कि देश में विकास नहीं हो पा रहा है,और भ्रष्टाचार कोई मुद्दा ही नहीं है । अपने जात वा धर्म का व्यक्ति चुनाव जीते चाहे वह जैसा भी हो,यही मतदाताओं का मूल लक्ष्य बन गया है । जाहिर है कि ऐसी परिस्थित में कोई भी दल जोखिम उठाना नहीं चाहता है और जनता को तत्कालिक लाभ पहुँचा कर चुनाव जीत लेना चाहते हैं । परंतु,इस सब का देश पर कोई अच्छा प्रभाव नहीं पड़ रहा है । पर यह सब सोचने की फुर्सत किसे है?

सबाल है कि हम क्या करें जिस से हालात में सुधार हो और देश सचमुच के लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ आगे बढ़े? हम एक ऐसा समाज का निर्माण करें जिस में बिना किसी भेदभाव के सभी वर्ग के लोगों को विकास करने का उचित मौका मिल सके । लेकिन यह तो तभी होगा जब हम सब व्यक्तिगत स्वार्थों का त्याग कर राष्ट्र की एकता,संप्रभुता और अखंडता के लिए एक साथ खड़े हों । हम संकल्प करें कि किसी देशवासी के साथ कसी प्रकार का अन्याय नहीं करेंगे न होने देंगे । समाज के गरीब तबके के लोगों को आगे आने का मौका देंगे और हजारों वर्षों के गुलामी से प्राप्त कुसंस्कारों को फेंककर भारत माता की जय के उद्घोष के साथ अपने देश के पुनर्निर्माण कार्य में जुट जाएंगे।

 

रबीन्द्र नारायण मिश्र

21.3.2021

मंगलवार, 16 मार्च 2021

श्री राज किशोर मिश्र(नूनूजी)

 


श्री राज किशोर मिश्र(नूनूजी)

श्री राज किशोर मिश्र(नूनूजी)क जन्म २७.१.१९६०क अड़ेर डीह ग्राममे  भेलनि । हुनकर पिताक नाम श्री शशि भूषण मिश्र आ माताक नाम श्रीमती जीवेश्वरी देवी छनि । ओ शुरुएसँ बहुत प्रतिभाशाली विद्यार्थी छलाह । सन् १९७६मे अड़ेर उच्च विद्यालयसँ मैट्रिकमे विहार भरिमे दसम स्थान प्राप्त केने रहथि । तकर बाद साइंस कालेज पटनासँ प्री-युनीभर्सीटी कए बीएचयू वाराणसी(वर्तमानमे आइआइटी)सँ बीटेक (विद्युत)केलाह । तकर बाद सन् १९८२मे भारतीय इंजीनियरींग सेवा परीक्षामे सफल भए बीएसएनएलमे सीजेएम(मुख्य महाप्रवंधक) दिल्लीक पदसँ सन्२०२०मे सेवानिवृत्त भेलाह । एहि प्रकारे देखल जा सकैत अछि जे विद्यार्थी अवस्थासँ लए सेवानिवृत्ति काल धरि निरंतर विकास करैत ओ सभदिन उत्कृष्टता प्राप्त करैत रहलाह ।

नूनूजी किछुदिन गाममे बहुत रास सामाजिक काजमे सामिल रहलाह जाहिमे गामक बीचोबीच सड़कक निर्माण आ अड़ेर चौकसँ सटले ग्रामद्वारक निर्माण प्रमुख छल । ग्रामद्वारपर हिनकर नाम प्रमुखतासँ लिखल अछि । अड़ेर चौकपर दूरभाष केन्द्रक स्थापनामे सेहो हिनकर बहुत योगदान अछि । तकर बादे गाममे लोकसभ टेलीफोन लगओने रहथि । गाममे कालीपूजा शुरु करबामे हुनकर बहुत योगदान छलनि। तकर बाद कैकसाल धरि हुनके नेतृत्वमे कालीपूजाक आयोजन बहुत सफलतापूर्वक होइत रहल ।

इलाहाबाबदसँ स्थानांतरक बाद जखन हम दिल्ली आएल रही तँ ओहो दिल्लीमे संचार विभागमे इंजिनीयर रहथि । किछुदिन हम हुनका संगे हुनकर कटबरिआसराय स्थित डेरापर रहलो रही । दिल्लीसँ स्थानांतरक बाद ओ पटना चलि गेलथि । समय-समयपर हुनकर बदली देशक विभिन्न भागमे होइत रहलनि । पटना आ हैदराबादमे हुनकर डेरापर हम गेल रही । व्यस्तताक अछैत ओ निरंतर हमरासँ टेलीफोन द्वारा संपर्कमे रहैत रहलाह । हुनकर सकारात्मक सोच आ आत्मिय व्यवहार निश्चय उर्जादायी रहैत अछि । दोसरक मोनकेँ बूझबाक आ दोसरकेँ सुखी देखबाक हिनकर स्वभाव छनि । एहन-एहन लोक एहि पृथ्वीक रत्न छथि  ।

हमरासभक लेल ई गौरवक बात थिक जे ओ अपने परिवारक अंग छथि । हुनकर प्रपितामह(स्वर्गीय राम शरण मिश्र) हमर पितामह (स्वर्गीय श्रीशरण मिश्र) सहोदर भाइ रहथि । हुनकर पिता श्री शशिभूषणमिश्र बहुत यशस्वी आ पुरुषार्थी व्यक्ति तँ छथिए संगहि ओ बहुत भाग्यवानो छथि जे एहन-एहन संतान सभक पिता हेबाक गौरव हुनका भेलनि । हुनकर चारू पुत्र सुयोग्य आ जीवनमे बहुत नीकसँ स्थापित छथि । सरस्वती आ लक्षमीक एहन संगम कमेठाम देखबामे अबैत अछि ।

शुरुएसँ हुनकामे साहित्यक प्रति सिनेह छल । ओ जखन नेने रहथि तखनेसँ हिन्दी आ मैथिलीमे छोट-छोट कवितासभ लिखल करथि । कैकबेर हुनकर कवितासभ विभागीय पत्रिकासभमे छपैत रहल । प्रकृतिकेँ बुझबाक प्रयास हुनकर स्वभावमे समाहित छनि । ई बात हुनकर कवितोसभमे बेरि-बेरि स्पष्ट भेल अछि । हुनकर कवितासभमे मानव स्वभाव,प्रकृति प्रेम आ देश भक्तिक चित्रण बहुत नीकसँ कएल गेल अछि । पेशासँ इंजिनीयर रहितो साहित्यकारक रूपमे राजकिशोर(नूनूजी)क महत्वपूर्ण योगदान अछि । हुनकर अखन धरि मैथिलीमे मेघपुष्प आ हिन्दीमे प्रवाहिनी,ऊर्जा वर्णन,प्रदूषण,संवेग कविता संग्रहसभ प्रकाशित भए चुकल अछि । किछु आओर पुस्तकसभ शीघ्रे प्रकाशित होबए बला अछि ।

 

दिल्लीमे आयोजित उर्जा वर्णन पुस्तकक विमोचनक अवसरपर  भव्य आयोजनक दृष्य अखनहु मोन पड़ैत रहैत अछि । हुनकर विभागक बड़का-बड़का इंजिनीयरसभक पाँति लागि गेल छल । ओहि आयोजन केँ गरिमामय बनेबाक हेतु शताधिक विद्वानसभ उपस्थित रहथि । कतेकोगोटे हुनकर साहित्यिक प्रतिभासँ चकित रहथि । ओ जखन अपन ओजस्वी स्वरमे कविता पाठ करए लगलाह तँ संपूर्ण दर्शकमंडली थपड़ी पिटि रहल छलाह,सभ अतिशय आनंदित छलाह ।

नूनूजी  निरंतर उच्चकोटिक कवितासभ लिखि रहल छथि एकटा छलि नदी शीर्षक कवितामे कवि राजकिशोर लिखैत छथि-

नदीक मृत्यु संकेत ठीक नहि

सभ जनैत जल जीवन अछि

ई महा-प्रश्न मानव समक्ष

ई विषय सघन चिंतन अछि ।

प्रकृतिक प्रति हुनकर अनन्य प्रेम उपरोक्त कवितासँ प्रस्फुटित होइत अछि । प्रदूषण नामसँ हिन्दीमे प्रकाशित कविता संग्रहमे प्रदूषणक कारण भए रहल क्षतिक प्रति अपन चिंता व्यक्त करैत कवि कहैत छथि-

जब पड़ता उसका दुष्प्रभाव

मानव ही नहीं अकुलाता है

रोती वनस्पतियाँ भी हैं,

निर्जीव भी दुख को पाता है ।

एवम् प्रकारेण हुनकर समस्त साहित्यिक कृतिसभमे जीवन आ ताहिसँ जुड़ल तत्वसभक गहन चिंतन कएल गेल अछि । निश्चित रूपसँ ई पोथीसभ समस्त मानवताक भविष्यक हेतु मार्गदर्शक बनत आ मनुक्खमे जीवन तत्व आ ओहिसँ जुड़ल भावनाकेँ प्रेरित करबामे सफल होएत । ।यद्यपि ककरो रचनाक मुल्यांकन करब आसान बात नहि होइत अछि,मुदा एतबा तँ स्पष्ट अछि जे हुनकामे गजबकेँ सृजनशीलता अछि । ओ निरंतर सुंदर-सुंदर कवितासभक रचना कए रहल छथि । आशा करैत छी जे समस्त साहित्यिक जगत हुनकर साहित्यिक कृतित्वसँ लाभान्वित होएत ।

विद्यार्थी अवस्थासँ लए कए आइ धरि ओ अपन काज आ व्यवहारसँ एकटा तेहन डरीर खिचि देलनि अछि जकर पार पाएब असंभव नहि तँ आसानो नहि होएत । ओ सदिखन अपन सदव्यवहार आ सकारात्मक सोच हेतु मोन पड़ैत रहताह ।