मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मंगलवार, 28 जून 2022

प्रवासीक स्नेहसँ ओतप्रोत मातृभूमि--डा.योगानन्द झ

प्रवासीक स्नेहसँ ओतप्रोत मातृभूमि डा.योगानन्द झा स्वनामधन्य श्री रबीन्द्र नारायण मिश्र बहुआयामी लेखक छथि । हिन्दी,मैथिली, ओ अंग्रेजीमे समानाधिकार रखनिहार एहि एकान्तसेवी रचनाकारक दर्जनाधिक पोथी प्रकाशित छनि जाहिमे अधिकांश प्रणयन ई मातृभाषा मैथिलीमे कयने छथि । विभिन्न विधामे सिद्धहस्त श्रीमिश्र आत्मकथा,यात्रा-वृतान्त,निबन्ध-प्रबन्ध,कथा ओ उपन्यास आदि अनेक विधामे रचना कयने छथि। खास कऽ हिनक रुचि उपन्यास विधाक प्रणयनमे छनि आ एहि विधामे ई मैथिलीक उपवनमे क्रमशः नमस्तस्यै,महराज, लजकोटर,सीमाक ओहि पार,मातृभूमि,स्वप्नलोक ,शंखनाद, ढहैत देबाल, हम आबि रहल छी,प्रलयक परात,बीति गेल समय आ प्रतिबिम्ब अभिदानसँ रंग-विरंगक पुष्प-पादप लऽ कऽ प्रस्तुत भेल छथि आ आधुनिक मैथिली उपन्यास विधाकेँ समपुष्ट कयलनि अछि । हिनक उपन्यास सभ समाज ओ राष्ट्रक अभ्युत्थानक प्रति हिनक चिन्तनक विराट आयाम केँ प्रस्तुत कयने अछि । मातृभूमि उपन्यासक माध्यमे ई मातृभाषा ओ मातृभूमिक प्रति प्रवासी लोकनिक कर्त्तव्य बुद्धिक परिष्कार दिस उन्मुख देखि पड़ैत छथि । एहि उपन्यासक नायक जयन्त थिकाह । हिनकहि चरित्र केँ केन्द्र मे राखि उपन्यासक कथावस्तु बुनल गेल अछि । जयन्तक पिता विद्या-व्यसनी छलथिन आ अपना गाम मे निःशुल्क पाठशाला चलाय शिक्षाक प्रचार-प्रसार मे लागल छलाह । मुदा हुनक असमय मृत्यु भऽ जाइत छनि आ पाठशालाक व्यवस्था छिन्न-भिन्न भऽ जाइत छैक। असहाय जयन्त कौलिक मर्यादाक रक्षा ओ जीवन-यापन मे कठिनताक कारणे मृत्यु केँ वरण करबाक विचार कय नदीमे कूदि पड़ैत छथि । मुदा हुनके गामक एक गोट संत नागाबाबा हुनका बचा लैत छथिन । ओ हुनका शारदाकुंज स्थानपर लऽ जाइत छथिन जतऽ निःशुल्क शिक्षाक व्यवस्था छैक । अपन नैसर्गिक प्रतिभाक वलें जयन्त आश्रम मे रहि विविध विषयक शिक्षा ग्रहण करबा मे समर्थ होइत छथि । अन्ततः ओ मिथिलाक विद्वत परंपरापर एक गोट शोधग्रन्थक प्रणयन करैत छथि आ ततःपर गाम घुरि अपन पिता द्वारा स्थापित विद्यालय केँ पुनः स्थापित करबाक प्रयास मे दत्तचित्त होइत छथि । अनेक विघ्न-बाधा केँ पार करैत जयन्त अपन एहि अभियान मे सफल होइत छथि तथा प्रवासी लोकनिक अपन मातृभूमिक प्रति स्नेह केँ जगाय हुनका लोकनिक द्वारा गामक उत्कर्ष हेतु नागबाबा विश्वविद्यालयक स्थापना कऽ उच्च शिक्षा केँ गाम-समाजक हेतु सहज बनयबा मे सफल होइत छथि । ई एकगोट आदर्शोन्मुख यथार्थवादी उपन्यास थिक जाहि मे शिक्षाक अभाव मे गाम-समाजक दुरवस्थाक यथार्थक चित्रण तँ भेले अछि संगहि उपन्यासकार ई चिन्तन प्रस्तुत कयलनि अछि जे जँ गामक प्रवासी लोकनि प्रवास मे जीवन-यापन करैत अपन मातृभूमिक सम्पर्क-सान्निध्यमे बनल रहथि आ ओकर अभ्युत्थान मे योगदान दैत रहथि तँ मिथिलाक ग्राम्यजीवनक विकासमार्ग निरन्तर प्रशस्त होइत चलत । ई प्रवासी लोकनिक अपन मातृभूमिक प्रति उदासीनते थिक जकर कारणे मिथिलाक ग्राम्य जीवन अधोगति केँ प्राप्त करैत जा रहल अछि । सामान्यतः जखन प्रवासीलोकनि अपन जीवन-यापनक हेतु गाम छोड़ि दैत छथि तँ जेना मातृभूमिक प्रति सर्वथा उदासीन भऽ गेल करैत छथि । स्वकीय अर्जन-शक्ति सँ भने ओ सभ प्रवास मे जतबा प्रगति कऽ जाथि मुदा ताहि सँ गाम केँ कोनो लाभ नहि भेटि पबैत छैक । एमहर दयादवाद लोकनि हुनक वर्षानुवर्ष अनुपस्थितिक लाभ उठाय हुनक ग्राम्य संपत्तिक अपहरण करबाक उद्देश्य सँ अनेक प्रकारक षड़यंत्र करऽ लगैत छथि । जँ कोनो प्रवासी अवकाश प्राप्तिक बाद गाम घुरितो छथि तँ हुनका अनेक प्रकारेँ उछन्नर देल जाइत छनि आ अंततः ओ अपन संपत्ति किछु लऽ दऽ बेचि बिकीन कऽ पुनः प्रवासे मे प्रत्यावर्तिति भऽ जायब लाभकर बुझैत छथि । एकर परिणामस्वरुप मोनबढ़ू प्रवृत्तिक लोक प्रवासीकेँ गामसँ उपटयबामे समर्थ भऽ जाइत छथि । मातृभूमि उपन्यासक सुधाकर एहने खलनायक थिकाह जे अत्यधिक समय बितलाक उपरान्त जयन्तक घर घुरलापर हुनक पाठशालावला जमीन बलजोरी कब्जा कऽ लेबऽ चाहैत छथिन आ हुनक हत्या पर्यन्त कऽ कऽ हुनका गाम सँ उपटाबय चाहैत छथि । गामक लोकक संगहि सरकारी महकमा ओ पुलिस आ न्याय व्यवस्था सेहो ओहने लोकक संग दैत छैक । मुदा जयन्त अनशनक माध्यमे सत्याग्रह करैत छथि आ प्रवासी राजीव सन अधिकारीक सहायता सँ सुधाकर केँ सकपंज करयबा मे समर्थ होइत छथि । ओ विश्वविद्यालयक हेतु अपन पिताक स्थापित विद्यालयक जमीन पर अबैध कब्जा केँ हटयबा मे सफल होइत छथि । ततबे नहि ओ विश्वविद्यालयक हेतु अतिरिक्त चन्दा सँ जमीन कीनि उपटल प्रवासी लोकनि केँ सेहो बसयबाक उद्योग करैत छथि । एहि उपन्यास मे किछु गोट प्रेम कथा सेहो अनुगुम्फित अछि । पहिल कथा थिक शीलाक जे जयन्तक प्रति एकनिष्ठ प्रेम करैत छथि मुदा सामाजिक दबाबक कारणे हुनक पिता हुनका अजग्गि कहला जयबाक भय सँ एकटा अन्य वर सँ विवाह करा दैत छथिन । शीला सुशील ओ पतिव्रता छथि,तेँ अपन नियति केँ अंङ्गीकार कऽ लैत छथि। मुदा हुनकर वर पूर्वहि विआहल रहैत छथि जकर परिणामस्वरुप शीला अपन ससुरक आश्रम मे परित्यक्ताक जीवन व्यतीत करबाक हेतु बाध्य भऽ जाइत छथि । कुलीनताक परिचय दैत शीला आग्रह कयलो उत्तर दोसर विवाहक हेतु स्वीकृति प्रदान नहि करैत छथि आ अपन जीवनक लक्ष्य विश्वविद्यालयक सेवा ओ विकासहि केँ बना लैत छथि। दोसर प्रेमकथा चन्द्रिका ओ जयन्त सँ सम्वद्ध अछि जाहि मे चन्द्रिका केँ सर्पदंश सँ लऽ कऽ उपचार धरिक कथा अतिव्यापकताक सृजन करैत अछि । हुनक पिताक प्रयासेँ अन्ततः चन्द्रिका ओ जयन्त वैवाहिक बन्धन मे बन्हा जाइत छथि आ उपन्यासक सुखद अन्तक द्योतक बनैत छथि। अपन आत्माक बात सुनि सुधाकरक समर्पण आकस्मिक घटना जकाँ बुझना जाइत अछि जे औपन्यासिक संघर्ष केँ कमजोर कऽ देलक अछि तथापि एहि उपन्यास केँ परस्पर विरोधी पात्र सभक सृजनपूर्वक आदर्शक उपस्थापनाक दृष्टिये उत्तम मानल जा सकैत अछि । उपन्यासक भाषा प्रसादगुण सम्पन्न,सहज ओ रोचक अछि । पात्र सभक मनोभावक विश्लेषण मे उपन्यासकार सफल भेल छथि। वस्तु विन्यास युग जीवनक यथार्थपर आधारित अछि। मातृभूमिक प्रति प्रवासी लोकनिक दायित्वक उद्बोधन उपन्यासकारक जीवन-दर्शन ओ जननी-जन्मभूमिक प्रति सहज सिनेहकेँ पल्लवित करैत अछि । -योगानन्द झा भगवती स्थान मार्ग,कबिलपुर लहेरियासराय,दरभंगा-846001(बिहार) m-9334493330