शनिवार, 4 जुलाई 2020

रेलक डायरी

रेलक डायरी

 

पहिने यातायातक प्रमुख साधन बस वा रेल छल । हवाइ जहाज तँ सुनबाक वस्तु छल । पैघ लोकसभ ओकर उपयोग करथि । साधारण आदमीकेँ तँ बस,ट्रेन ,रिक्सा नहि तँ पैरे चलबाक जोगार करए पड़ैक । कतहु -कतहु टैक्सी सेहो चलैक । मुदा ततेक महग रहैक जे आपवादिक परिस्थितिएमे लोक ओकर उपयोग करए । टैक्सीक एकटा दोसर रूप अएलैक टेकर माने जीप जाहिमे यात्रीसभ बसे जकाँ कोचल जाथि आ भाड़ा सेहो कमे लगैक । मुदा टेकरक उपयोगिता दस-बीस माइल धरि छलैक । बेसी दूर जँ जेबाक अछि तखन तँ ट्रेनेक टिकट लेबए पड़ैक । ट्रेनेक टिकट लेब आइ-काल्हि जकाँ आसान नहि रहैक । ओहि लेल स्वयं वा कोनो अपन लोककेँ टीसनक खिड़कीपर घंटों पाँतिमे ठाढ़ होबए पड़ैक । ओहि बीचमे कैकबेर धकमधुक्कामे जेबी कटि जाइत छलैक । हारि कए हुनका बिना टिकट लेने वापस होबए पड़नि । जँ गर्मीक छुट्टीसँ पहिने यात्रा करबाक अछि तखन तँ टिकट भेटनाइ बहुत मोसकिल होइत छल । कैकगोटे चारिबजे भोरेसँ टीसनक खिड़कीपर पाँति मे लागि जाइत छलाह । ओहि बीचमे कैकबेर नेटवर्क खराप भए जाइत छलैक । आब ठाढ़ भेल रहू । कहि नहि कखन जा कए फेरसँ नेटवर्क वापस आएत आ टिकट कटनाइ शुरु होएत । एहि तरहे घंटोक  तपस्याक बाद टिकट भेटैक । कैकबेर टिकट खिड़की धरि पहुँचलाक बाद ट्रेनमे जगह भरि जाइत छलैक तखन । जएह-सएह टिकट लोक लए लैत छल । एतेक प्रयासक बाद टिकट लेलाक उपरांत जखन लोक घर वापस आबए तँ लगैक जेना पहाड़ तोड़ि लेलहुँ। मुदा आब समय बदललैक । घरे बैसल आनलाइन टिकट कटि जाइत छैक,बदलि जाइत छैक आ आवश्यक भेलापर रद्दो भए जाइत छैक ।

रेलक पहिल यात्रा हम बाबूकसंगे  दरभंगासँ मुहम्मदपुर टीसन जेबाक हेतु केने रही । हम पहिलबेर अपन मामागाम(सिंघिआ ड्योढ़ी) जाइत रही । ओहि समयमे टेकटारिटीसन नहि बनल रहैक । तेँ मुहम्मदपुर  उतरि कए पैरे पिंडारुछ बाटे सिंघिआ जेबाक रहए । पसिंजर ट्रेन रहैक । दरभंगासँ सीतामढ़ी जाएबला यात्रीसभ ठसा-ठस भरल रहैक । रेलमे बैसलाक बाद लागए जेना सौंसे दुनिआ हिलि रहल छैक । नीचा काठक फट्टाक बीचमे बड़का-बड़का उरीससभ भरल छल । रहि-रहि कए काटैक । गर्मीक समय रहैक । पंखा बंद पड़ल छल । सभ यात्री घामे-पसीने बेहाल रहथि । मुहम्मदपुर टीसन थोड़बे कालक बाद आबि गेल छल । बहुत मोसकिलसँ यात्रा संपन्न भेल। हम प्रसन्नतापूर्वक मामागाम दिस पैरे बाबूक संगे बिदा भए गेल रही । एकर बाद तँ कतेको बेर ट्रेनपर चढ़लहुँ । कतए-कतए ने गेलहुँ। एहिमेसँ रेल यात्राक अनुभवक वर्णन कए रहलहुँ अछि ।

एकबेर हम पटनासँ दिल्ली मगध एक्सप्रेससँ दिल्ली जाइत रही । हमर आरक्षण स्लीपरमे रहए । हमरा संगे हमर श्रीमतीजी सेहो रहथि । जौँ-जौँ रेल पटनासँ आगा बढ़ल बिना आरक्षणबला यात्रीसभक संख्यामे इजाफा होबए लागल । मुगलसराय अबैत-अबैत तँ टस सँ मस हेबाक जगह नहि बाँचल। सौचालय धरिमे यात्री बैसल रहए । गर्मीक मौसम रहैक । ताहिपरसँ ठसाठस भरल यात्री । के ककरा सम्हारत ।  पटनामे बहुत मोसकिलसँ अपन शायिका पर काबिज भेल रही । मुदा रहि-रहि कए केओ-ने-केओ कनीक घुसकबाक आग्रहक संग लगीचमे आबि जइतथि आ जाबे किछु बजितहुँ ताबे ओ अपन जगह बना चुकल रहितथि । तकर बाद हम झगड़ा केनाइ शुरु करितहुँ। बहुत मोसकिलसँ शायिकाकेँ खाली करओलहुँ आ चतरि कए सुति रहलहुँ जाहिसँ केओ फेरसँ नहि बैसि जाए । थोड़े कालक बाद किछु नव यात्रीसभ डिब्बामे पैसलाह आ बैसबाक जोगारमे एमहर-ओमहर घुमए लगलाह । हमरा फेर कान ठाढ़ भेल । अपना भरि साकंछ भेलहुँ । हमर श्रीमतीजीक शायिका तँ ताधरि यात्रीसँ भरि चुकल छल । हम निरंतर प्रयाससँ अपन शायिका बचओने रही ।  दू-तीनटा यात्री हमर शायिका दिस बढ़ल । हमहु विरोध केनाइ शुरु केलहुँ । बाताबाती सेहो होबए लागल ।  ओही बीचमे एकटा यात्री कहैत छथि –लगत है कि ढोढ़ चराबत है । दोसर यात्री सेहो किछु बाजल । तेसर से अपन टीप देलथि । हम असगर हुनका सभसँ शास्त्रार्थ करैत रहलहुँ । ताबत ओहीमेसँ केओ बुधिआर यात्री बाजल

एहि लगारी संगे के जीतत? दोसरठाम चलैत चल ।

आ ओ सभ दोसर डिब्बा दिस बढ़ि गेलि ।

रेलगाड़ी मुगलसरायसँ आगु बढ़ल । मोनमे सोचलहुँ जे आब चैनसँ सुति सकैत छी । कनिके कालक बाद एकटा मोछिअल पुलिसके गलामे बंदुक लटकेने पैर लग ठाढ़ देखलिऐल । जाबे किछु बुझितहुँ,किछु बजितहुँ ताबे तँ ओ अपन काज कए चुकल छल । ओ ससरि कए पैर दिस बैसि गेल रहए । हमरा संतोख दिआबक हेतु कहलक-

अलीगढ़मे उतरि जाएब । ताबे कनी पैर सोझ कए लैत छी ।

ओकर ढब देखि किछु प्रतिवाद करबाक साहस नहि भेल । चुप्पे रहि गेलहुँ । रेल आगु बढ़ि रहल छल । थोड़बे कालक बाद एकटा फौजी माथा लग ठाढ़ देखेलाह । हम करोट बदलबाक प्रयास कए जगह छेकबाक प्रयास करितहुँ ताहिसँ पहिने ओ हमर सिरमा लग बैसि गेलाह । ओ फौजी भेखमे रहथि । मुँहसँ कनी-कनी दारु भभकि रहल छल । की करितहुँ? जान बचबैत  रहि गेलहुँ । शायिकाक दुनू दिस दूगोटे तेना बैसि गेल रहथि जे हमरा सुतल रहब संभव नहि छल । अस्तु,हमहु उठि कए बैसि गेलहुँ । रेल आगु बढ़ैत रहल । आगरा अबैत-अबैत दुनूगोटे उतरि गेल रहथि । शायिका खाली भए गेल रहए । बाहर फरीछ भए रहल छलैक। श्रीमतीजी सेहो उठि गेल रहथि । चाहक अमल जोर पकड़लक । ताबे केओ आबाज देलक-चाह चाह । हम चिकरि कए ओकरा दू कप चाह देबाक आग्रह केलिऐक । कनी कालक बाद चाह बला दूकप चाह देलक । चाह की छल लागल जेना माँर पीबि रहल छी । मुदा उपाय की छल ? जौँ-जौँ परीछ होइत गेल तँ तँ ट्रेनमे बिना आरक्षणबला दैनिक यात्रीसभ पैसैति गेलाह । थोड़े कालक बाद तँ किछु एहन यात्रीसभ पैसलाह जे ट्रेनमे तास खेलाइत जाथि । ई हुनकर सभक नित्यक कार्यक्रम छल । तकैत-तकैत ओ सभ हमरे शायिकाक लग-पासमे बैसि गेलाह । हमरा आग्रह केलाह जे कातक शायिकापर चलि जाइ । उपाय की छल? हम ओतहि चलि गेलहुँ । ओ सभ तास खेलाइत रहलाह । ट्रेन आगु बढ़ैत रहल । अंततोगत्वा,हमसभ नईदिल्ली टीसन पहुँचलहुँ । जाइत-जाइत ओ सभ माफी सेहो मांगि लेलनि । पढ़ल-लिखल लोक जे रहथि । थाकल-ठेहिआएल हमसभ प्लेटफार्मपर उतरलहुँ ।

एकबेर हमर श्रीमतीजी पटना राजधानीसँ दिल्ली आबि रहल छलीह । संगमे हमर पुत्र क्षितिज सेहो रहथि । हम नई दिल्ली टीसनपर हुनकर प्रतीक्षा कए रहल छलहुँ ।  रेलक आगमन समय भए गेल छल । तथापि ओ आबि नहि रहल छल । पता लागल जे रेल गाजिआबादमे अड़कल अछि ।  बहुत कालक बाद अजमेरी गेट दिस ओहि रेलक आगमनक सूचना प्रसारित होबए लागल । हम गेटे लग ठाढ़ रही जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ कोनो दिक्कति नहि होनि । मोनमे सोची जे राजधानीसँ आबि रहल छथि तेँ कोनो परेसानी नहि भेल हेतनि । नीकसँ खेने हेतीह । थोड़बे कालमे हमर एहि आशापर पानि फिरि गेल । दुनूगोटे बहुत थाकल लागि रहल छलाह । बुझेबे नहि करए जे बात की भेलैक? एतेक परेसान किएक लागि रहल छथि?  सामानसभ गाड़ीमे रखलाक बाद पुछलिअनि-

एतेक थाकलि किएक लागि रहल छी?”

कहए लगलीह- ट्रेनमे भोजन बहुत दिक्कति भए गेलैक । यात्रीसभ पैंट्रीकारक सभटा सामान लुटि लेलकैक ।  जकरा जे हाथ लगलैक से लए कए निकलि गेल ।

एना भेलैक कोना? ”

बैरासभ किछु बोगीमे तँ नीकसँ भोजन करओलक । तकर बाद जेना अंठा देलकैक । ककरो भेटलैक केओ मुँहे देखैत रहि गेल। एही बातपर यात्रीसभ तमसा गेल । बड़ीकाल धरि हल्ला होइत रहल । तेँ गाजिआबाद टीसनपर आबि कए ट्रेन ठाढ़ भए गेल रहैक। बहुत कालक बाद कोना-ने-कोना ट्रेन खुजल ।

आखिर ओ सभ डेरा पहुँचलथि आ जल्दीसँ चाह-पान केलथि । तखन जान-मे-जान अएलनि ।

एकबेर हमरा श्रीमतीजी आ सासुक संगे गरीबरथसँ दिल्लीसँ मधुबनी जेबाक रहए । आनंद विहार टीसनपर पहुँचलाक बाद लगबे नहि करए जे इहो टीसन दिल्लिएमे छैक ।  यात्रीसभक बगए-बानिसँ लगैत जेना दरभंगा टीसनक प्लेटफार्मपर ठाढ़ छी । लोकसभ अपन-अपन गोल बनाकए समानक रक्षा करैत गप्प-सप्पमे लागल छलाह ।  ट्रेन अएबामे अनावश्यक विलंब भए रहल छल जखन कि ओकरा ओतहिसँ बनि कए चलबाक रहैक । ओहि समयमे आनंदविहार टीसन बनले रहए । ओतेक घेर-बेर नहि रहैक । मुदा यात्रीसभ ठसाठस भरल छल। ट्रेनक आगमनमे विलंब देखि हमसभ प्लेटफार्मेपर गर देखि कए बैसि गेलहुँ । कनीके हटि कए पचीस-तीस गोटेक एकटा गुट छल । ओहिमे किछुगोटे बैसल तँ किछु गोटे ठाढ़े रहथि ।  ककरो हाथमे झोड़ा तँ ककरो हाथमे मोटा छल । केओ अपन दुधपीबा नेनाकेँ दूध पिआ रहल छलि । माने ओकरासभकेँ देखलाक बाद कोनो तरहें नहि लागल जे ओ सभ यात्री नहि छथि । किछुकालक बाद ट्रेन प्लेटफार्मपर आएल। चारूकातसँ यात्रीसभ ट्रेन दिस दौड़ल । कनीके कालमे हालति एहन भए गेलैक जे ट्रेनक कोनो डिब्बामे पैसि नहि सकैत छलहुँ । सभ डिब्बाक गेटपर यात्री जेना-तेना लटकल रहए । आबकी कएल जाए? हमरसभक डिब्बा लगीचेमे रहए । मुदा ताहिसँ की? गेटपर हालति देखि ओहिमे पैसबाक साहस नहि होअए । मुदा ट्रेनमे चढ़बाक तँ छलहे । आखिर श्रीमतीजीकेँ सामानसभक रखबारी हतु प्लेटफार्मपर छोड़ि सासुक संगे गेट दिस बढ़लहुँ । गेटकेँ किछुगोटे तेनाक गछारने छल जे ओहिमे पैसले नहि होअए । हमर सासुक हाथमे डाली रहनि ।  जखन गेटसँ आगा बढ़ल नहि भेल तँ वापस प्लेटफार्मपर आबि हुनकर डाली राखि देलहुँ । हम दुनूगोटे गेट फेरसँ पहुँचलहुँ। ताबे तँ डिब्बा ठसाठस भरि गेल छल । गेटक कोनपर एकटा  नवालिग छौंड़ा लटकल छल । ओकरा लाख कोशिश केलहुँ जे कनी हटए से कथी लेल हटत । जेना-तेना आगु बढ़बाक प्रयासमे हम दुनूगोटे आगु-पाछु भए गेलहुँ । ओ अपन शायिका धरि चलि गेलीह। हम वापस प्लेटफार्मपर श्रीमतीजीकेँ आनए गेलहुँ । सामानसभक संगे जेना-तेना गेटसँ अंदर पैसलहुँ । श्रीमतीजी आगु आ हम हुनकर पाछु रही कि किछु गोटे धकमधुक्का करए लागल । हमर पैरमे केओ जोरसँ धक्का मारलक जाहिसँ सामान लेने हम धराम धए खसलहुँ। हाथक सामानसभ सौंसे डिब्बामे पसरि गेल । एहनो हालतिमे एकटा यात्री मदति करए नहि आएल । ताबे हमर सासुकेँ चिकरैत देखलिअनि-काटि लेलक,काटि लेलक ।ओ एतबा बजले हेतीह कि डिब्बाक दोसर गेटसँ पचीस-तीसगोटे धराम-धराम कुदि गेल । ट्रेन ससरए लागल छल । हमर सासुक डाँरमे बान्हल बटुआमेसँ टाका,गहनासभ पाकेटमारीमे चलि गेल छलनि । ततेक सफाइ सँ काज केने छल जे हिनका किछु पता नहि चललनि। जखन अपन शायिकापर बैसि स्थिर भेलीह तँ देखैत छथि जे बटुआ तँ अछिए नहि । मुदा जे हेबाक छल से भए गेल छल । ट्रेन क्रमशः गति पकड़लक आ हमसभ अफसोच करैत रहलहुँ जे बेकारे एहि ट्रेनमे चढ़लहुँ ।

ई बात सन्  २०१० क थिक । हम श्रीमतीजीक संगे ट्रेनसँ अमृतसर जाइत रही । स्लीपर किलासमे हमरा दुनूगोटेक नीचाक शायिका आरक्षित रहए । टीसनपर टेम्पुबलाकेँ भाड़ा देबाक हेतु ओ अपन झोड़ामेसँ टाका निकाललीह । टेम्पुबलाकेँ भाड़ा देलिऐक आ ओ चलि गेल । ओ बाबू ओतहिसँ किछु बदमाससभ हमरासभक पाछा लागि गेल । हमसभ ई बात तँ तखन बुझलिऐक जखन अमृतसर अतिथि घरमे पहुँचि गेलहुँ । ताबे की सभ भेल से कहि रहल छी । ट्रेन खालिए जकाँ रहैक । हमसभ अपन-अपन शायिकापर बैसि गेलहुँ। रतुका समय रहैक । भोर होइतहि ट्रेन अमृतसर पहुँचि जइतैक । से एहि ट्रेनक खुबी छल । थोड़बे कालमे डिब्बा भरि गेल । हमसभ निचैन अपन-अपन जगहपर रही । बीच-बीचमे देखिऐक जे तरह-तरहक यात्रीसभ अबैत अछि,किछु काल रहैत अछि आ चलि जाइत अछि । किछु टीसन बितलाक बाद यात्रीक एकटा दोसर गुट आएल । ओहिमेसँ किछुगोटे हमरे लग-पासमे शायिकाक आरक्षण टीटीबाबूसँ कहि कए करा लेलक । किछुगोटे ऊपर तँ किछु गोटे नीचाक शायिकापर चढ़ि गेल । हमसभ जखन भोजन करए लगलहुँ तँ ओहीमेसँ एकटा ऊपर बैसल यात्रसँ किछु लेबाक उपक्रम करैत हमर श्रीमतीजीक भोजनमे कोनो पाउडर खसा देलकनि । भोजनक बाद जखन ओ हाथ धोबाक हेतु ट्रेनक वास बेसीन दिस बढ़लीह तखनो ओ सभ किछु पाउडर एमहर-ओमहर छिड़िऔलक । किछुए कालक बाद हुनका ततेक निन लगलनि जे सुति रहलीह । मुदा हम जगले रही । हमरा निन्न हेबे नहि करए । भोरे ट्रेन अमृतसर टीसनक प्लेटफार्मपर पहुँचि रहल छल । हमसभ उठि गेल रही । ताबतेमे ओहीमेसँ एकटा यात्री हमर नाम लए कहैत अछि-

मिश्राजी! यह चाभी का गुच्छा आपका है क्या?”

कहि ने के एकटा कुंजीक झाबा शायिकाक नीचा लटका देने रहैक । हम ओकरा दिस ध्यानसँ देखलिऐक तँ ई स्पष्ट बुझाएल जे हमर नहि अछि । अस्तु,हम मना कए देलिऐक । मुदा एहि बातसँ माथा ठनकल जे ईसभ हमर नाम कोना बुझलक?खैर! चु्प्पे रहि गेलहुँ। ई बात अखनो नहि सोचाएल जे ओसभ लफुआ अछि ।ओ सभ चाहैक जे कहुना हमर ध्यान कनीको काल लेल एमहर-ओमहर होअए जाहिसँ ओ सभ बैगमे सँ टाका निकालि सकए । थोड़ेकालक बाद ओहीमेसँ एकगोटे कहैत अछि-

सीट ऊपर कर लीजिए । स्टेसन आने ही बाला है ।

हम श्रीमतीजीक सामान नीचा राखि सीट ऊपर करए लगलहुँ । ताबतेमेसँ केओ हमर बैगमे हथोरिआ देबए लागल । मुदा ओ किछु करितए ताहिसँ पहिनहि हमर श्रीमतीजी ओतहि ठाढ़ि भए गेलि । हम अपन शायिकापर बैसि गेलहुँ ।  एतबेमे फेर केओ चिचिआइत अछि-

जल्दी उतरिए। स्टेसन आ गया । ताबे हमसभ गेट लग सामान लए कए आबि गेल रही । ओकरसभक प्रयास रहैक जे धक्का दी जाहिसँ हम खसी आ बैग लए ओसभ भागि जाए । मुदा बँचबाक रहए । हम ओकरसभक बातमे नहि अएलहुँ । ओकरा कहलिऐक-

आपको जल्दी है तो आगे बढ़ जाइए ।

मुदा तखनो ई नहि बूझि सकलिऐक जे ई सभ असलमे बदमास  अछि । ओतँ जखन अतिथि गृह पहुँचि श्रीमतीजी बेग खोललथि तँ देखैत छथि जे सभटा टाका निकालि लेने अछि । आओर कोनो सामान नहि छुने छलनि । मुदा हमर बैग बाँचि गेल छल । रातिमे भोजनमे जे पाउडर मिला देने रहनि तकर असर आब जोर पकड़ि रहल छलनि । थोड़बे कालक बाद हुनका अस्पताल लए जाए पड़ल ।  तखन बुझाएल जे ओ सभ सामान्य यात्री नहि अपितु एकटा गैंगक हिस्सा छल आ रस्ता भरि हमरा लोकनिक टाका आ मुल्यवान सामान चोरेबाक फिराकमे लागल छल । बहुत मोसकिलसँ श्रीमतीजीकेँ डाक्टरसभ ठीक केलक । एतबे संतोख भेल जे जान बाँचि गेलनि । घुमनाइ तँ  नहिए भए सकल ।

एकबेर हम जरूरी सरकारी काजसँ ट्रेनसँ जाइत रही । यात्राक कार्यक्रम आकस्मिक बनल आ हम रेलमे बिना आरक्षण चढ़ि गेल रही । मेरठक लगीचमे केओ अकस्मात पैर छुबि गोर लगैत छथि आ आग्रह करैत छथि -

सर! अहाँ हमर शायिकापर बैसि जाउ ।

हम पुछलिअनि-अहाँ के छी? हमरा लेल अपन जगह किएक छोड़ि रहल छी?”

ओ जबाब देलाह-सर! अहींक कृपासँ हमरा नौकरी भेल ।

से कोना? ”

हमरा तँ किछु नहि मोन अछि?”

हम एसएससीक परीक्षा पास कए गेल रही । मुदा हमर कागज कोनो कारणसँ आपत्तिमे पड़ि गेल छल । संयोगसँ अहाँसँ एसएससी इलाहाबादमे भेंट भेल । अहाँ हमर ताकि कए सभटा काज कए देलहुँ जाहिसँ हमरा थोड़बे दिनमे नियुक्तिपत्र भेटि गेल ।

हम हुनकर बात सुनि अबाक रहि गेलहुँ । नौकरीक क्रममे एहन कतेक गोटेक काज होइते रहैत छैक । मुदा ओ युवक एहिबातक संज्ञान लैत हमरा आदरे नहि केलाह अपितु ओहन भीड़मे अपन सीट दए देलाह,ताहि बातसँ हम बहुत आश्चर्यचकित रही ।

एकबेर हम इलाहाबाद(आब प्रयागराज)सँ पटना ट्रेनसँ जाइत रही । हमरा स्लीपरमे आरक्षण रहए । हम अपन शायिकापर बैसले रही कि ढाक्टर जयकान्त मिश्रजीकेँ देखलिअनि । हुनका हाथमे एकटा झोड़ा रहनि आ ओ सीट तकैत एमहर-ओमहर बौआइति रहथि । हुनका आरक्षण नहि रहनि । कहलाह- अकस्मात पटनामे एकटा कार्यक्रममे जेबाक हेतु बिदा भए गेलहुँ । आरक्षण नहि करा सकलहुँ । हम आग्रहपुर्वक अपन शायिका हुनका दए देलिअनि । बहुत कालधरि ओ मना करैत रहलाह । परंतु,हमर आग्रह देखि मानि गेलाह । बादमे हमरो एकटा शायिका भेटि गेल ।

रेल यात्रामे कैकबेर एहन लोकसँ भेंट भए जाइत अछि जकरा बिसरल नहि जा सकैत अछि । जिनकर बातक प्रभाव बहुत दूरगामी होइत अछि । एहने एकटा सहयात्री भेटि गेलाह दरभंगासँ दिल्लीक यात्रामे । ओ मुजफ्फरपुरमे हमरा सामने बला एसी शायिकापर रहथि । दिनक समय रहैक तेँ यात्रीसभ बैसले रहथि । केओ किछु तँ केओ किछु करबामे व्यस्त रहथि । क्रमश: गप्प-सप्प प्रारंभ भेल । ओ अपन पैतृक संपत्तिक बटबाराक प्रसंगमे गप्प करैत-करैत कैकबेर भावुक भए जाथि । कहए लगलाह-

जखन कखनो गाम गेलाक बाद बटबाराक चर्चा करितहुँ तँ भाए सासुर चलि जाइत छलाह । हुनका बूझल रहनि जे किछु दिनक बाद हम वापस भए जाएब । तेँ दस दिनक बाद अबितथि आ तरह-तरहक कबाइत पढ़ए लगितथि । आपसी झंझटिक डरसँ सहर वापस चलि आबी । एहिना कैकबेर होइत रहल ।  अंतमे,एहि विषयक चर्चे छोड़ि देलहुँ । तकर बाद तँ गाम गेलाक बाद पाहुन जकाँ स्वागत होइत छल ।  भाएक हाथमे किछु टाका दए दिअनि । ओ सपरिवार खूब सेवा करथि। नीकसँ गप्प-सप्प करथि । हमहु प्रसन्नतासँ समय बीताबी आ ओहोसभ । कतेक तरहक व्यक्तिगत अनुभवसभ कहैत रहलाह जे सुनि बहुत जानकारी भेटल । दिल्लीमे ट्रेनसँ उतरबासँ पहिने ओ अपन मोबाइल नंबर सेहो देलनि । मुदा तकर बाद फेर कहओ गप्प नहि भए सकल । मुदा हुनकर बातसभ मोनपड़िते रहैत अछि।

एकबेर हम गरीबरथ ट्रेनसँ मधुबनीसँ दिल्ली जाइत रही । सामनेक शायिकापर एकटा महात्माजी आ तकर ऊपर हुनकर चेला शंकर रहथि । हमरा संगे हमर श्रीमतीजी सेहो रहथि । शंकर  महात्माजीक सेवामे लागल रहैत छल । जखन तमाकुलक काज भेल तँ से चुना कए देलक । पानिक काज भेल तँ बोतलमेसँ पानि निकालि कए देलक । भोजनक समय झोड़ामे सँ भोजन निकालि कए देलक । तकरबाद तरह-तरहक दबाइसभ देलक । सभ किछु खेलाक बाद निन्नक गोटी सेहो देलकनि । तखन कहलखिन जे कनी मोटका कंबल निकाल । शंकर मोटका कंबल ओढ़ा देलकनि । तखन प्रसन्न भए महात्माजी बजैत छथि-आब जतेक एसी धुकबाक होइक से धुकओ । हम तँ पड़लिअनि । ताहिसँ पूर्व महात्माजी  रहि-रहि कए दिल्ली स्थित अपन आश्रममे चेलासभकेँ फोन कए हाल-चाल लैत रहलाह । ओहीक्रममे पता लगलनि जे केओ भक्त पचीस हजार टाका दए गेलैक अछि । आब तँ महात्माजी बेस चिंतामे पड़लाह । होनि जे कहीं चेलासभ टाका एमहर-ओमहर ने कए देथि । तेँ रहि-रहि कए फोनपर वारंबार कहैत रहलखिन जे ओहि टाकाकेँ सम्हारि कए राखल जाए आ हुनका दिल्ली अएलापर देल जाए । गप्प-सप्पक क्रममे ओ कहलाह जे हरिद्वारमे हुनका बड़ीटा आश्रम छनि । हमरासभकेँ हरिद्वार आश्रमपर अएबाक आग्रहस सेहो केलाह । दोसरदिन भोर होइतहि ओ चेलासभकेँ फोन करए लगलाह ।  कोन प्लेटफार्मपर ट्रेन अड़कतैक तकर जानकारी लेलथि । केओ भक्त कार लए टीसनपर हुनकर स्वागत करबाक हेतु भोरेसँ ठाढ़ छलाह । मुदा ट्रेन तीन घंटा विलंब चलि रहल छल । मुदा हुनकर भक्त टस सँ मस नहि भेल । कार लेने प्रतीक्षा करैत रहल । आनंद विहार टीसनपर ट्रेन पहुँचि गेल छल । हुनकर भक्तसभ डिब्बामे पैसि गेल । बहुत आग्रहपुर्वक हुनका बाहर लए गेल । मुदा हुनकर ध्यान निरंतर पचीस हजार टाका पर छल । ओ सभसँ पहिने अपन चेलासभसँ तकरे जिज्ञासा केलथि आ सभ तरहें आश्वस्त भेलाक बादे आगु बढ़लाह । हमहुसभ ट्रेनसँ उतरि गेलहुँ । महात्माजीक ठाठ-बाट भरि रस्ता मोन पड़ैत रहल ।

रेल यात्राक एकटा  मनोरंजक अनुभव भेल रहए जखन हम गरीबरथमे आनंद विहारसँ मधुबनी जाइत रही । ई ट्रेन सोझे गाम पहुँचा दैत छलैक,सामान्यतः विलंब नहि होइत छलैक, टिकट अपेक्षाकृत आसानीसँ आ एसी सेहो रहैक तेँ गाम जेबा काल एहि ट्रेनमे यात्रा होइते रहैत छल । हम जेना-तेना अपन-अपन शायिकापर बैसि गेलहुँ । थोड़े कालक बाद ट्रेन अपन गति पकड़लक । डिब्बामे दिल्लीसँ गाम लौटि रहल कतेको  युवक सभ छलाह । सभक हाथमे मोबाइल आ ताहिमे चलैत भोजपुरी गाना । जकरा जतेक जोरसँ मोन होइक ततेक जोरसँ बजा रहल अछि सौंसे डिब्बामे तरह-तरहक संगीत बाजि रहल संगीत चलि रहल छल । कुलमिला कए ओ संगीत नहि एकटा कोलाहलक रूप धए लेलक । लगैत छल जे कान फाटि जाएत । जहन बर्दास्तसँ बाहर भए गेल तँ एकगोटेकेँ टोकलिऐक-

कनी आबाज कम कए दहक । कानमे झर पड़ि रहल अछि ।

से किएक?  हम कोनो टिकट नहि लेने छी । हम अपना सीटपर बजा रहल छी । एहिमे अहाँक आपत्ति करबाक कोन अधिकार?”

चारूकात ओकरेसन लोक भरल रहैक । तेँ बेसी बजनाइ ठीक नहि बुझाएल । चुप्प भए गेलहुँ । बहुत मोसकिलसँ समय कटल। घंटा भरिक बाद जखन टिकट चेकर अएलाह तँ हुनका सभटा बात कहलिअनि । ओ ओकरापर बहुत जोरसँ तमसेलखिन तखन जा कए मोबाइलक नाच-गानसभ बंद भेल । जानमे -जान आएल । एहि यात्राक बाद गरीबरथसँ यात्रा केनाइ छोड़ि देलहुँ ।

एकबेर हम  नई दिल्लीसँ मधुबनी प्रथम श्रेणी एसीमे जाइत रही छपरामे एकटा यात्री ओहि मे हमरासभ लग पहुँचलाह । ओहिसँ पहिने ओहि कुपेमे हमही असगरे रही । मुजफ्फरपुरसँ निकललाक बाद ट्रेनक गति बहुत मंद होबए लागल । एक- एक टीसनपर ठाढ़ भए जाइत छल आ आगु घुसकबाक नामे नहि लैत रहैत छल । मुजफ्फरपुरसँ दरभंगा पहुँचबामे ओहि ट्रेनकेँ सात घंटा समय लागि गेलैक । बीचमे ओहि यात्रीसँ गप्प होइत रहल । ओ छपरामे पुलिस विभागमे डीएसपी छलाह । एतेक भारी अधिकारी छलाह ओहो पुलिसमे तखन टिकट लेबाक कोन काज? ओ कहलाह जे छपरामे काज करैत छथि आ डेरा छनि दरभंगामे । तेँ ओ बेसी काल ओहि ट्रेन सँ जाइत-अबैत रहैत छथि । प्रथम श्रेणी एसी खाली रहैथ छैक तेँ ओही डिब्बामे यात्रा करैत छथि । से तँ बुझलहुँ । मुदा आश्चर्य भेल जे जखन साल-डेढ़ सालक बाद फेर ओही ट्रेनसँ हम जाइत रही तँ प्रथम श्रेणी एसीक कुपमे छपरामे ओ हमरा फेर भेटि गेलाह । हम हुनका चिन्हि गेलिअनि आ कहबो केलिअनि जे पछिला बेर अहाँ एही ट्रेनमे हमरा भेटल रही । एहि बातपर ओ हँसैत कहलाह जे आब ओ सेवानिवृत्त भए गेल छथि आ किछुदिनक बाद ओ दरभंगे रहए लगताह । तखन हुनका ओहि ट्रेनक चक्कर छुटि जेतनि ।

एहन साइते केओ होएत जकरा रेलयात्रासँ जुड़ल रोमांचकारी अनुभव नहि भेल होइक । चाहे रेलक टिकट लेबा काल ,वा रेलमे चढ़बा काल वा चढ़ि गेलाक बाद मुदा कतहु-ने-कतहु किछु -ने- किछु अविस्मरणीय घटित होइते रहैत अछि । गोटैक बेर तेहन सहयात्री भेटि जेताह जे रस्ता भरि हँसति-हँसति पेट फुलि जाएत । कहिओ एहनो सहयात्रीसँ भेंट भए जाइत अछि जे एको क्षण बिना झगड़ाक नहि बितैत अछि । रेल यात्रा करबाक उद्येश्य सभक सभरंग होइत छैक । केओ विद्यार्थी छुट्टीक बाद अपन कालेज जा रहल छथि तँ केओ इलाज करबाक हेतु सहरक अस्पताल जेताह । ककरो बिआहक बरिआती जेबाक रहैत छैक तँ ककरो तीर्थ यात्रा करबाक रहैत छैक । अस्तु,नानाप्रकारक उद्येश्यक लोकसभ एकहि रेलसँ यात्रा करैत रहैत छथि । मुदा सभक उद्येश्यमे ई समानता रहैत छैक जे यात्रा सुगम होइक,रेल समयपर गंतव्य स्थानपर पहुँचि जाइक ,रस्तामे कोनो कष्ट नहि होइक । आब ई तँ एकटा संयोगे होइत छैक जे ककर यात्रा केहन होइत छैक । ओना आब तँ रेलसभक हिसाब-किताब बहुत सुधरि गेल छैक,बहुत रास रेलसभ समयपर  चलैत अछि,दुर्घटना कम सँ कम होइत छैक । मुदा छैक तँ अले-कलक विन्यास । तेँ लाख प्रयत्नक अछैतो कैकबेर लोक संकटमे पड़ि जाइत अछि । कैकबेर तँ जान बचेनाइओ पराभव भए जाइत छैक । से जे होउक मुदा तेँ लोक रेल यात्रा छोड़ि देत से तँ संभव नहि छैक । जीवन छैक तँ नीक बेजाए लगले रहतैक । तेँ लोक  अपना भरि संभव  प्रयत्न करैत अछि जे यात्रा मंगलमय होइक । यात्रा चाहे कोनो ट्रेनमे करैत होइ ,कोनो किलासमे करैत होइ मुदा ई बात ध्यान राखब जरूरी थिक जे यात्रा कए रहल छी,ट्रेनमे बैसल छी ,घरमे नहि छी । बेसक अहाँकेँ आरक्षण होबए मुदा आनो यात्रीसभक यात्रा ओतबे महत्वपूर्ण रहैत अछि जतेक अपन । तेँ आपसी सहमति आ सहयोगक भाव रहलासँ यात्रा बेसी सुखकर भए सकैत अछि ।

सुबिधा-असुबिधाक गप्प जौँ छोड़ि देल जाए तँ कुल मिला कए ट्रेन यात्रा बहुत शिक्षाप्रद भए सकैत अछि । बहुत किछु सिखबाक,जानबाक स्वतः आ स्वभाविक अवसर भेटैत अछि। एहिक्रममे स्वर्गीय संत प्रभुदत्त व्रह्मचारीजीक रेलयात्राक चर्च बहुत प्रासंगिक अछि । एकबेर ओ ट्रेनसँ किछु संतसभक संगे दक्षिण भारतक यात्रापर जाइत रहथि । ओहि समयमे ओ मौन लेने रहथि । तेँ सहयात्रीसभसँ गप्प नहि कए पाबथि । संयोगसँ किछु सहयात्रीसभक संगे सीटक हेतु विवाद भए गेल । व्रह्मचारीजी मौनमे हेबाक कारण किछु बाजथि नहि । मुदा ओ सभ अंट-संट बजैत रहल । व्रह्मचारीजीक संगीसभ अपना भरि हुनका सभके बहुत बुझओलखिन मुदा तकर कोनो असर नहि भेल । सहयात्रीसभक आक्रमकता बढ़िते गेल । ओ सभ व्रह्मचारीजीक माथक केस पकड़ि कए खीचए लगलाह । कैकटा केस उखरि गेलनि । एहि कारणसँ हुनका माथमे बहुत दर्द होबए लगलनि । मुदा व्रह्मचारीजी अवाक भेल सभटा सहैत रहलाह । किछु कालक बाद हुनकर गंतव्य टीसनपर रेल ठाढ़ भेल । हुनकर स्वागत हेतु बहुत रास लोकसभ टीसनपर आएल छल । आब हुनकर सहयात्रीसभकेँ हुनकर असली परिचय पता लगलनि । ओसभ बहुत दुखी भेलाह । वारंबार हुनकासँ क्षमा मागि रहल छलाह । मुदा आब अफसोच केलासँ की होइत? जे हेबाक छल से भए गेल छल । व्रह्मचारीजी बिना किछु बजने रेलसँ उतरि अपन शिष्यसभक संगे आगु बढ़ि गेलाह । ओ तँ पहुँचल संत चलाह,सभकिछु बिसरि गेल हेताह । मुदा सामान्य आदमी रहैत तँ एहन घटनाक बाद मोकदमा करैत, थाना -पुलिस लग जाइत । अपनो परेसान होइत आ सहयात्रियोकेँ करैत  

असल मानेमे ई जीवनो एकटा रेल यात्रा सन थिक । रंग-विरंगक लोक, नाना प्रकारक स्थानसँ जाइत हमसभ अंतमे अंतिम टीसनपर पहुँचि जाइत छी आ तकर बाद सभकिछु एतहि छोड़ि जाइत अछि । इएह थिक जीवन ।


4.7.2020