मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

बुधवार, 6 जून 2018

अशांतस्य कुतः सुखम्


अशांतस्य कुतः सुखम्

जीवनमे सभ किछु भेटलाक बादो कखनहुँ काल लोकक मोन होइत रहैत अछि जे कोनो एहन ठाम चली जाहिसँ मोन निचैन भए जाए,सभ किछु बिसरि किछु दिन शांतिसँ बिताबी  आ झंझटिसभकेँ कात कए दी । कखनो-कखनो चिज वस्तुसभ  व्यर्थ लागए लगैत छैक ,होइत छैक जे कहुना ओहिसभसँ पिंड छोड़ाबी किंवा किछु एहन कए ली जे निश्चिंत भए सूति सकी । से किएक होइत छैक?
सबदिन हमसब अपन धीया-पुताक सुख-सुबिधाक हेतु काज करैत रहैत छी।समाजमे,अपन लोक-बेदक बीचमे मान-संमान हो,हमरा श्रेष्ठ बुझल जाए,अनकासँ हम सेसर रही,एही लफड़ासभमे जीवनक मूल्यवान समय चलि जाइत अछि आ अंतमे हाथ अबैत अछि फोकला। मनुक्खक मोहवंधन ततेक मजगूत होइत अछि जे ओ अंत -अंत धरि ओकरे फाँसमे फँसल मेहिआ बड़द जकाँ बहैत रहि जाइत अछि आओर एकदिन मुट्ठी बन्हने एहि दुनियाँसँ प्रस्थान कए दैत अछि । सभ किछु ठामहिँ रहि जाइत अछि ।क्यो एकर अपवाद नहि रहैत अछि ।

आया है सो जाएगा, राजा-रंक फकीर ।

एक सिंघासन चढ़ि चले, एक बंधे जंजीर ।।

एकबेर एकटा महिलाकेँ लकबा मारि देलकै । ओ अस्पतालमे भर्ती रहथि । बाजल नहि होनि। कै दिनक प्रयासक बाद हुनका कनी-मनी होश भेल । कहुनाक मुँहसँ आवाज फुटलैक । होश होइतहि पहिल बात ओ इएह बाजल जे सूदि वसूलल गेल कि नहि ? सोचियौ ,जे टाकासँ केहन मोह छलेक ओकरा ! जान जाए पर छलैक , अस्पतालक आपत्तिकालीन विभागमे भर्ती छल , हैथ-पैर सुन्न भेल छलैक ,मोसकिलसँ कहुनाक आवाज फुटलैक तँ सभसँ पहिने की बाजल ? इएह थीक माया । ई जनितो जे सभटा एतहिँ रहि जाएत, लोक अंत-अंत धरि टाका बटोरबामे,लूट-खसोटमे लागल रहैत अछि । तखन शांति कतएसँ होएत ?
एकटा राजाक महल लग एकटा लोहार दिन-राति खट-खट करैत रहल छल । राजा एहि बातसँ तंग भए गेलाह । कोनो उपायसँ चाहथि जे एहि खट-खटीकेँ बंद कराबी । एक दिन ओ ओहि लोहारकेँ बजओलथि।लोहार डरा गेल । ओकरा नहि बूझएमे अबैक जे ओकरासँ कोन अपराध भेल जे ओकरा राजा बजा रहल छथि ।  खैर! ओ राजासँ भेँट करए पहुँचल । ओकरा देखिते राजा कहलखिन जे तोरा जतेक टाका चाही से लए लएह मुदा ई खटर-पटर बंद करह । राजाक बात काटत के ? ओ राजासँ यथेष्ट टाका लेलक आ ओहि दिनसँ अपन काज केनाइ बंद कए देलक । काज बंद तँ कए देलक मुदा ओकरा तहिआसँ निन्ने नहि होइक। की करए ? कतेको राति करोट बदलैत बीति गेलैक । एहिसँ ओ ततेक तंग भए गेल जे होइक जे जान चलि जाएत । हारि कए ओ राजाक ओतए दौड़ल गेल आ जे टाका लेने छल से आपस कए प्रार्थना करए लागल जे ओकरा अपन काज फेरसँ शुरु करबाक  आज्ञा देल जाइक  । राजा छगुंतामे पड़ि गेलाह । पुछलखिन जे बात की थिक,ओ किएक टाका आपस कए रहल अछि? लोहार कहलकैक-"सरकार! जहिआसँ काज छोड़लहुँ,हमर सुख चैन हरा गेल । हमरा माफ कएल जाए , हम अपन पहिलका जीवन जीबए चाहैत छी । ओहीसँ हमरा शांति भए सकैत अछि । राजा ओकर समस्या बूझि गेलाह आ ओकर बात मानि  लेलाह। तकर  प्रातेसँ ओ लोहार अपन काज शुरु केलक । ओहि राति ओ  बहुत चैनसँ सूतल । फेरसँ वएह ठक-ठकी सूनिकए राजा बहुत जोरसँ हँसलाह । ई कथा बहुत लोककेँ बूझले होएत,मुदा एहिमे बहुत गंभीर शिक्षा भरल अछि । धन-संपत्तिसँ  सुख चैन नहि भेटि सकैत अछि। लोभ-लालचसँ नहि,अनकर हक मारि लेलासँ नहि अपितु परिश्रमपूर्वक उपार्जित धनसँ जीवन-यापन केनेसँ मोनमे शांति भेटि सकैत अछि। 
समस्या अछि जे लोकसभ सभ किछु बूझितो एतेक फिरसान किएक रहैत अछि जखन कि क्यो से चाहैत नहि अछि? कारण सहजे ताकल जा सकैत अछि । अधिकांश व्यक्ति अनकर सुखसँ दुखी रहैत छथि । ओ किएक बढ़ि रहल अछि,ओकर मकान हमरासँ पैघ किएक छैक,ओकर बच्चा कतहुँ पढ़लकैक अछि,ओ सभतँ सभ दिन हमरासभसँ दव रहल आब कतएसँ पैघ भए जाएत ? एहीठाम हम मारि खाइत छी । जँ हम सकारात्मक सोच- बिचार राखी,अनको उपलव्धिसँ प्रशन्न हेबाक भाव राखी तँ निश्चय हमरा प्रशन्न हेबाक बेसी अवसर भेटि सकैत अछि । छै ने सत बात?
नान्हिटा जीवनकेँ के कोना बिताबए चाहैत अछि से बात बहुत हद धरि ओकरेपर निर्भर करैत अछि। समयतँ बीतिए जाएत चाहे जेना बीता लिअ,हँसिकए बीता लिअ चाहे कानि कए । असलमे कोनो घटना विशेष ककरा पर केहन प्रभाव करत से ओकर प्रवृतिपर निर्भर करैत अछि । ई ओहिना भेल जेना एकटा गिलास मे आधा पानि भरल अछि तँ क्यो कहत जे आधा पानि खतम भए गेल,तँ क्यो कहत जे एखन तँ आधा पानि बाँचले अछि,चिंता कथीक? एकटा अपन मकान बनलासँ कतेक खुशी होइत छैक । तहिना जँ अनको मकानसँ हम  खुश हेबाक प्रवृति विकसित कए ली तँ नित्य -निरंतर प्रशन्नताक वरखा होइत रहत एहिमे कनिको शंका नहि ।
चमक-दमक मे रहनिहार अनेको लोककेँ देखलासँकै बेरि मोनमे होइत छैक जे ई बहुत भाग्यवान अछि, बेस  मौजमे जीवि रहल अछि । मुदा ई बात कै बेरि कपोल -कल्पना साबित होइत अछि । कतेको फिल्मी कलाकार आत्महत्या करैत छथि । जौं धन-संपत्ति,ओ सामाजिक प्रतिष्ठासँ लोक सुखी रहैत तँ वएह सभ रहितथि। मुदा से असलियत मे नहि अछि । 
लोक दिन-राति पूजा -पाठ करैत रहैत अछि,कथी लेल ? जाहिसँ मनोकामना पूरा होअए,अधिकांश  लोकक संग ई बात फिट बेसैत अछि,परिणाम होइत अछि जे  पूजा करितो काल हम शांत नहि रहि पबैत छी। हम गाममे कै बेरि पूजा करैत काल लोककेँ चिकड़ैत-भोकरैत देखने छी,महादेवपर जलढ़री करैत काल अनका शरापैत सुनने छी,  कबुला-पाँती करैत तँ के-के ने देखने होएत । जखन  माथमे एतेक ओझर लए कए पूजा-पाठ कएल जाएत तँ  शांति कोना भेटि सकत ? भेटत-अहीँ कहू ? इएह थिकैक समस्याक जड़ि।
यद्यपि आयु बढ़िते जाइत अछि, लोकक मोह घटिते नहि अछि । सभकिछु हमरे भए जाएत से कतहुँ संभव होइक! ई जीवन अपूर्णतासँ भरल अछि । सभ किछु नहि भेटि सकैत अछि । तखन मर्जी अहाँक अछि जे हाय! हाय ! करैत रही किंवा जे किछु अदिष्टसँ भेटल तकरा सहर्ष स्वीकार कए संतुष्ट रही ।
ई बात तँ बूझि गेलिऐक जे शांतिसँ रही,एकर बहुत नफा छैक,मुदा शांति प्राप्त कोना भए सकैत अछि? ताहि हेतु की कएल जाए? की नहि कएल जाए? असलमे  उपदेश देलासँ किंबा किताबमे पढ़ि लेलासँ शांति प्राप्त नहि कएल जा सकैत अछि । ई तँ जीवन कला थिक एवम् निरंतर अभ्यासेसँ प्राप्त कएल जा सकैत अछि । तथापि किछु बात मोटा-मोटी जँ ध्यानमे राखल जाए तँ बहुत रास झंझटिसँ बँचल जा सकैत अछि आओर ओही अनुपातमे शांत जीवन बिताओल जा सकैत अछि।मोनमे संतोखक भाव एवम् अनावश्यक प्रतिस्पर्धासँ बचबाक चाही। आवश्यकताकेँ सीमित करबाक चाही । आय ओ व्ययमे संतुलन हेबाक चाही आ सभसँ जरूरी अछि जे मोनमे लोक कल्याणकारी भावना विकसित करबाक चाही । जे बात अपना नीक नहि लगैत अछि,से अनका संग नहि करी ।  अनकर उपलव्धिसँ ओहिना प्रशन्न होइ जेना अपनसँ । अनकर निंदासँ बची। परिवारमे सभक उचित महत्व दी । खाली अपने बात चलओनिहारकेँ अन्ततोगत्वा निराशा हाथ लगैत अछि । शांतिक हेतु जरूरी थिक जे मन कल्याणकारी विचारसँ ओत-प्रोत हो। दोसरक हितकारी भावना हो । जहिना हम अपन प्रगति चाहैत छी ,तहिना अनको लेल सोचियैक । से सभ जौँ हमर मोनमे रहत तँ निश्चय हम शांति ओ आनंदक अनुभव कए सकैत छी ।  तखने सुखी रहि सकैत छी ।
गीतामे कहल गेल अछि जे जकर शांति नहि तकरा सुख कतए?

नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।

न चाभावयत: शांतिरशांतस्य कुत: सुखम्।।