हिन्दू महिलाकेँ सम्पैतमे अधिकार
भारतीय समाज मूलत: पुरुष
प्रधान रहल अछि। हजारो-हजार बरखसँ पुरुषकेँ चल एवम् अचल सम्पैतपर वर्चस्व छल।
समयक संगे ऐ स्थितिमे परिवर्तन भऽ रहल अछि ।
वैदिक समयमे पुरुष एवम्
महिलाकेँ सम्पैतपर बराबर अधिकारक चर्च अछि। मुदा मनुस्मृतिमे कहल अछि जे पत्नी, चाकर ओ अवयस्क
युवाकेँ सम्पैत नहि देबाक चाही। सम्पैतपर अधिकारक मामलामे पत्नी, बेटी वा विधवा कियो
पूर्ण अधिकार सम्पन्न नहि छल। स्त्रीगणकेँ सम्पैतपर अधिकार सीमित छल आ जेतए कनी-मनी
छेलैहो, सेहो ओकर जीवन-यापन
हेतु जीवनकाल तक रहैत छल, तेकर बाद ओ मूल श्रोतकेँ आपस भऽ जाइत छल। ऐ सबहक मूल उद्देश्य समाजमे स्त्रीगणपर स्वामित्व राखब छल। सम्पैतमे अधिकार भेलापर स्त्रीगणकेँ स्वतंत्र आस्तित्व बोध हएत जे तत्कालीन समाजकेँ स्वीकार नहि छल।
हिन्दू संयुक्त परिवारमे एक
पूर्वजसँ जन्मल लोक सभ होइत छैथ। ऐमे सबहक पत्नी, अविवाहित बेटी शामिल होइ
छैथ। मुदा हिन्दू संदायदाता (Coparcenary) ओइसँ बहुत सीमित होइत अछि। ओइमे बेटा, पौत्र, ओ प्रपौत्र शामिल
होइत अछि। २००५ इस्वीक संशोधनक बाद बेटी सेहो ऐमे शामिल अछि। स्त्री, माय वा विधवा अखनो
ऐमे शामिल नहि अछि। बेकती विशेषक हिस्सा कोनो सदस्यक मृत्युसँ बेसी किंवा नव सन्तानक
जन्मसँ कम भऽ सकैत अछि।
संयुक्त परिवारक सम्पैतक
विभाजनक बादे कोनो हिस्सेदार अपन हिस्साक सम्पूर्ण मालिक होइत अछि। संयुक्त परिवारक सम्पैत
हिन्दू कानूनक उपज थिक एवम् एकर अधिकारीकेँ संदायदाता कहल जाइत अछि।
सम्पैतक उत्तराधिकार कानूनमे
बारम्बार प्रयुक्त कानूनी शब्दक सही समझ भेलासँ ऐ कानूनकेँ बुझबामे सुविधा हएत।
अस्तु संक्षेपमे किछु शब्दक व्याख्या कऽ रहल छी।
१.
उत्ताराधिकारी (Hier) निर्वसीयत सम्पैतमे हकदार
पुरुष वा स्त्रीकेँ उत्तराधिकारी कहल जाइत अछि।
२.
निर्वसीयत (Intestate) स्वअर्जित सम्पैत किंवा
अन्य कोनो प्रकारसँ प्राप्त सम्पैत जैपर ओइ बेकतीक पूर्ण अधिकार हो, केँ ओइ बेकतीक मृत्युक
बाद हस्तांतरणक दस्ताबेजी बेवस्था जेना दान (Gift), इच्छा पत्र (Will) नहि केने हो।
३.
संदायदाता सम्पैत (Coparcenary Property) पूर्वजसँ प्राप्त
पैतृक सम्पैत जैपर अविभाजित हिन्दू परिवारक संदायदाताक हिस्सा हो।
४.
दस्ताबेजी हस्तांतरण (Testamentary Disposition) ऐमे हस्तांतरणकर्ताकेँ
ओकर जीवन भरि सम्पैतपर अधिकार बनल रहैत अछि एवम् ओकर मृत्युक बाद ओइ दस्ताबेजी
बेवस्थाक अनुसार सम्पैतक हस्तांतरण होइत अछि, जेना इच्छा पत्र द्वारा वा दानमे देल गेल सम्पैत।
सन् १९३७ सँ पूर्व स्त्रीगणक
सम्पैतमे अधिकारक सम्बन्धमे कोनो स्पष्ट बेवस्था नहि छल। ऐ तरहक विवाद
भेलापर स्थानीय परम्पराक अनुसार मामला तँइ होइत छल। सन् १९३७ मे पहिल बेर हिन्दू
महिलाक सम्पैतमे अधिकार कानूनन लागू भेल। ऐ कानून द्वारा विधवाकेँ ओकर पतिक सम्पैतमे
सीमित अधिकार देल गेल। सन् १९३८ क संशोधन द्वारा ओइ सीमित अधिकारकेँ आओर क्षीण
करैत कृषि भूमिसँ विधवाक अधिकार समाप्त कए देल गेल। ऐ कानूनक अनुसार विधवा संयुक्त
परिवारक सम्पैतमे अपन पतिक हिस्साक मालिक तँ भऽ जाएत मुदा ओकर मृत्युक बाद ई
सम्पैत ओकर उत्तराधिकारीकेँ नहि हेतैक, अपितु अन्तिम पुरुष मालिक वा स्त्रीधनक मामलामे, अन्तिम
महिला मालिकक उत्ताधिकारीकेँ हस्तान्तरित भऽ जाएत।
हिन्दू उत्तराधिकार कानून १५५६ मूलत: हिन्दूक निर्वसीयत सम्पैतमे उत्तराधिकार तय करबाक हेतु भारतीय संसद द्वारा पारित भेलाक बाद १७ जून १९५६ क राष्ट्रपतिक स्वीकृतिक बाद लागू भेल। निर्वसीयत सम्पैतक माने ओइ सम्पैतसँ अछि जेकर मालिक सम्पैतमे पूर्ण अधिकारक अछैत कोनो दस्ताबेजी हस्तान्तरण बिना केने स्वर्गवासी भऽ जाइत छैथ। एहेन सम्पैत उपरोक्त कानूनक सूचीमे वर्ग एकमे देल गेल उत्तराधिकारी (माने बेटा, बेटी, विधवा पत्नी, माय एवम् ऐ वर्गमे उल्लिखित अन्य बेकती) मे बरोबरि-बरोबरि कऽ बाँटल जाएत। वर्गक एकक उत्तराधिकारीक अभावमे वर्ग दू, तेकरो अभावमे क्रमश: मृतकक पुरुष रक्त सम्बन्धी अन्यथा महिला रक्त सम्बन्धी (Cognate) केँ ओ सम्पैतक अधिकार भऽ जाइत अछि।
सन् १९३७क कानून द्वारा हिन्दू महिलाक
सीमित अधिकारक धारणा हिन्दू उत्तराधिकार कानून १९५६ द्वारा समाप्त कए देल गेल।
सम्पैतमे हिन्दू महिलाक अधिकारक क्षेत्रमे ई एकटा प्रगतिगामी प्रयास छल। ऐ
कानूनकेँ लागू भेलापर हिन्दू महिलाकेँ ओकर सम्पैतमे पूर्ण स्वामित्व प्राप्त
भेल। उपरोक्त कानूनकेँ धारा १४ द्वारा महिलाक सम्पैतमे पूर्ण अधिकारक अयोग्यता
समाप्त कए देल गेल एवम् ओकर सीमित अधिकारकेँ पूर्णत: मालिकाना हकमे बदैल गेल
गेल। कानूनमे उपरोक्त परिवर्तन भूतप्रभावी भेल। एवम् प्रकारेण हिन्दू महिलाक
सम्पैतमे अधिकारसँ सम्बन्धित विद्यमान समस्त, नियम, कानून ओ परंपराकेँ
समाप्त कए ई सुनिश्चित कएल गेल जे कोनो प्रकारक परंपरा, वा बेवहारिक अवधारणाक कारण
सम्पैतमे हुनकर अधिकारपर ग्रहण नहि लगौल जा सकत।
ऐ तरहेँ हिन्दू महिलाकेँ
प्राप्त सम्पैतपर (उपरोक्त कानूनक धारा १४क अनुसार) पूर्ण अधिकार भऽ जाइत अछि।
एवम् प्रकारेण प्राप्त सम्पैत महिला द्वारा निर्वसियत रहि गेलापर उपरोक्त
कानूनक धारा १५ एवम् १६ द्वारा हस्तान्तरित होइत अछि, जइमे ओकर बेटा एवम् बेटी
एवम् पतिकेँ बरोबरि-बरोबरि हक भेटैत अछि।
उपरोक्त कानूनक धारा १४ हिन्दू
महिलाक सम्पैतमे सीमित अधिकारकेँ पूर्ण अधिकारमे परिवर्तित करैत अछि। पतिसँ
प्राप्त सम्पैतकेँ बेचि सकैत अछि आ क्रेताकेँ ओइ सम्पैतमे पूर्ण स्वामित्व प्राप्त
भऽ जाइत अछि। पहिने ओ सम्पैतकेँ मात्र परिवारिक आवश्यकता एवम् पतिक धार्मिक
अनुष्ठानक हेतु बेचि सकैत छल। धारा १४ मे सम्पैतक विस्तारसँ व्याख्या भेल
अछि। ऐमे उत्तराधिकार,
परिवारिक विभाजन उपहार किंवा कोनो प्रकारसँ प्राप्त चल एवम् अचल सम्पैत शामिल
अछि। बिना वसीयतक मृत्यु भेलापर ऐ कानून द्वारा बेटाक मायक अतिरिक्त विधवा एवम् बेटीकेँ संयुक्त
परिवारक सम्पैतमे अधिकार प्राप्त भेल।
यद्यपि १९५६क कानून द्वारा
हिन्दू महिलाक सम्पैतक अधिकारमे निश्चित रूपसँ बढ़ोत्तरी भेल आ ऐ तरहेँ कहल जाए
तँ ई एकटा क्रान्तिकारी प्रयास छल, मुदा बेटीक मामलामे ई कानून बहुत हितकारी नहि छल। किछु राज्य ऐ
विषयमे अलग कानून बना कऽ बेटीक अधिकार देलक मुदा ई सर्वव्यापी तँ नहियेँ छल।हिन्दू उत्तराधिकार कानून १९५६मे संशोधन बिल संसदमे २० दिसम्बर २००४ क आनल गेल छल, तँए ऐ तिथिसँ पूर्व भेल बँटवारापर ऐ संशोधनक प्रभाव नहि पड़त।
हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन)
कानून २००५क अनुसार बेटीकेँ पिताक सम्पैतमे बेटा जकाँ बरोबरिक हिस्सा हएत, माइक सम्पैतमे सेहो
हिस्सा हएत। उपरोक्त संशोधनसँ निम्नलिखित बेवस्था भेल-
१.
बेटा जकाँ बेटी संयुक्त परिवारक सम्पैतक हिस्सेदारी
हएत।
२.
ओकर अधिकार ओहिना हएत जेना बेटा भेने रहैत।
३.
बेटे जकाँ बेटियोकेँ ओइ सम्पैतसँ जुड़ल जिम्मेदारी
हएत।
४.
बेटोक बरोबरि बेटीक हिस्सा तय हएत।
हिन्दू उत्तराधिकार कानूनमे
२००५क संशोधनक बाद संयुक्त परिवारक सम्पैतक बँटवारा एवम् ओइमे बेटी सबहक हिस्सेदारी
लऽ कऽ यत्र-तत्र जबरदस्त विवाद प्रारम्भ भेल। कारण कानूनसँ अधिकार भेटलाक बाबजूद
एकर समाजिक स्वीकृतिमे प्रश्नचिन्ह लागल रहल। नैहरसँ सम्बन्ध खराप नहि हो, तँए केतेको बेटी अपन
अधिकारक बलिदान कए देलैन, मुदा एहनो बहुत रास मामिला उठल,जे बेटी सभ अपन अधिकारक बहाली हेतु न्यायालयक शरणमे चलि गेली।
न्यायालयमे मामिला जेबाक कएटा कारण छल। कियो कहलक जे सन २००५क कानूनी संशोधनक लाभ ९ सितम्बर २००५ क बाद जन्मल कन्याकेँ भेटतै। केकरो अनुसार ई कानून १९५६ सँ लागू हएत। आदि आदि।देशक विभिन्न उच्च न्यायालय उपरोक्त विवादस्पद विषय सभपर अलग-अलग फैसला देलक। अन्ततोगत्वा ई मामला भारतक उच्चतम न्यायालयमे पहुँच गेल।
न्यायालयमे मामिला जेबाक कएटा कारण छल। कियो कहलक जे सन २००५क कानूनी संशोधनक लाभ ९ सितम्बर २००५ क बाद जन्मल कन्याकेँ भेटतै। केकरो अनुसार ई कानून १९५६ सँ लागू हएत। आदि आदि।देशक विभिन्न उच्च न्यायालय उपरोक्त विवादस्पद विषय सभपर अलग-अलग फैसला देलक। अन्ततोगत्वा ई मामला भारतक उच्चतम न्यायालयमे पहुँच गेल।
उच्चतम न्यायालयक न्यायमूर्ति
ए.आर.दवे एवम् न्यायमूर्ति ए.के. गोयलक संयुक्त पीठ १६ अक्टूबर २०१५क अपन
फैसलामे उत्तराधिकार कानून उपरोक्त विवादक पटाक्षेप करैत कर्णटक उच्च न्यायालयक
फैसलाकेँ पलैट देलक। कर्णाटक उच्च न्यायालय फैसला देने छल जँ पिताक देहान्त ९
सितम्बर २००५ सँ पहिने भऽ गेल तखनो बेटीकेँ ओकर सम्पैतमे बेटाक बरोबरिक हिस्सा
भेटत।
मुदा उच्चतम न्यायालय एकरा
पूर्णत: निरस्त कए देलक। प्रकाश एवम् अन्य बनाम फुलवती एवम् अन्यक मामलामे
उच्चतम न्यायालय बेवस्था देलक जे
उत्तराधिकार कानूनमे २००५क संशोधन भूतप्रभावी नहि अछि। ओ कानूनमे उपरोक्त
संशोधन लागू हएत वशर्ते ओइ दिन पिता ओ पुत्री दुनू जीबैत रहल हो।
१६ अक्टूबर २०१५ केँ उच्चतम
न्यायालय द्वारा प्रकाश एवम् अन्य बनाम फुलवती एवम् अन्यक मामलाकेँ मूल
निर्णय बिन्दु छल जे २००५ क सम्पैतमे अधिकारक कानूनक संशोधन भूतप्रभावी अछि की
नहि? देशकेँ विभिन्न उच्च
न्यायालय ऐ विषय परस्पर विरोधी एवम् भिन्न-भिन्न मत व्यक्त केने छल। ऐ
मामलामे फुलवती उत्तराधिकारमे ओकर पिता द्वारा प्राप्त संम्पैतमे हिस्साक मांग
केने छल। १८ फरवरी १९८८क ऒकर पिताक देहान्त भऽ गेल।
न्यायालयमे विचाराधीन
मामलामे संशोधन करैत फुलवती संशोधित कानूनक अनुसार पिताक सम्पैतमे हिस्साक मांग
केलक। कर्णाटक उच्च न्यायालय निर्णय देलक जे चुकी मामला न्यायालयमे विचाराधीन
छल, अस्तु ऐ कानूनकेँ
आगूसँ लागू हेबाक बाबजूद, एकर लाभ फूलवतीकेँ भेटत। उच्च न्यायालयक ऐ फैसलाक
चुनौती उच्चम न्यायालयमे कएल गेल-
१.
ऐमे फुलवतीकेँ हिस्सा मात्र पिताक स्वअर्जित सम्पैतमे
हएत।
२.
फुलवतीक पिताक देहान्त २००५ क संशोधित कानून लागू
हेबासँ पूर्व १८ फरवरी १९८८ क भऽ गेल, तँए फुलवतीकेँ ऐ कानूनकेँ लागू हेबाक समय पैतृक सम्पैत
वारिस नहि मानल जा सकैत अछि।
३.
संशोधित कानून ऐ मामलामे लागू नहि हएत। संशोधित कानून
लागू हेबासँ पूर्व हिन्दू उत्तराधिकार कानूनक धारा ६ केर मुताबिक बेटीकेँ एहेन
संम्पैतमे अधिकार नहि हएत।
उच्चतम् न्यायालय अपन
फैसलामे स्पष्ट केलक जे कानूनकेँ प्रथम दृष्ट्या पढ़लासँ स्पष्ट होइत अछि जे
ई संशोधन कानून लागू हेबाक तिथिसँ लागू हएत, कारण ऐमे केतौ एहेन संकेत
नहि अछि जइसँ एकरा भूतप्रभावी कएल जाए। अतएव संदायदाता सम्पैतमे बेटीक हिस्सा
तखने भेटत जखन कि कानून लागू हेबाक दिन यानी ९ सितम्बर २००५ क पिता ओ पुत्री दुनू
जीवित हो।
अन्य प्रमुख न्यायिक
फैसलामे उच्चतम न्यायायल द्वारा सन् २०१२ मे तय गंदूरी कोटेश्वरम्मा वनाम
च्रकी यनादिमे कहल गेल जे-
नव धारा ६ संयुक्त परिवारक
सम्पैतमे ९ सितम्बर २००५ वा ओकर बाद पुरुष वा महिलाक अधिकारमे समानता अनलक अछि।
ऐ कानून द्वारा बेटी स्वयंमे बेटा जकाँ पैतृक
सम्पैतमे हिस्सेदार बनल।
एवम् प्रकारेण ९ सितम्बर
२००५ सँ बेटी पैतिक सम्पैतमे बेटा जकाँ उत्तराधिकारी भेल एवम् ओकरा बराबर हक
सेहो भेटल।
उपरोक्त मामला नीचला आदालतमे
विचारनीय रहिते २००५क संशोधन भेल। नीचला अदालत संशोधित कानूनकेँ लागू करैत बेटीक
बेटाक बरबैर हिस्सा तय केलक जेकरा उच्च न्यायालय पलैट देलक। अन्ततोगत्वा
मामला उच्चतम न्यायालय पहुँचल, जेतए बेटीक जीत भेल एवं बेटीकेँ बेटाक बरोवरि हिस्सा
भेटल।
सन् २००५क हिन्दू
उत्तराधिकार कानूनमे संशोधनक बाद परिवारक बेटीकेँ पैतृक सम्पैतमे हिस्सेदारी तँ
भेट गेल मुदा ओइ संशोधनक आधारपर प्राप्त अधिकारकेँ केतेको प्रकारसँ खासकय पुत्र
लोकनि द्वारा चुनौती देल गेल।
एकटा एहने मामलामे सुजाता
शर्मा वनाम मनु गुप्ता एवम् अन्य,मे दिल्ली उच्च न्यायालय दिल्ली द्वारा बेवस्था
देल गेल जे संयुक्त परिवारमे जँ बेटी सभसँ पैघ जीवित हिस्सेदार अछि तँ ओ कर्ता भऽ
सकैत अछि। माननीय न्यायालयक कहब जे उपरोक्त संशोधित कानून बेटीकेँ ओ सभ
कानूनी हक दऽ दैत अछि जे बेटाकेँ पहिनेसँ प्राप्त अछि। मा. उच्च्तम न्यायालय त्रिभुवन
दास हरि भाई तामबोली वनाम गुजरात राजस्व अधिकरण एवम् अन्यक मामलामे निर्णय दऽ
चूकल अछि जे संयुक्त परिवारक वरिष्ठतम सदस्य कर्ता हएत। अस्तु बेटकेँ कर्ता
हेबाक क्रममे कोनो भांगठ नहि अछि।
२००५ इस्वीक उत्तराधिकार
कानूनमे संशोधनक उपरान्त यद्यपि बेटीकेँ पैत्रिक सम्पैतमे कानूनी अधिकार प्राप्त
भऽ गेल अछि, मुदा समाजिक स्तरपर
ओकर पुरजोर विरोध देखबामे अबैत अछि। हालत ओहिना अछि जेना दहेज विरोधी कानूनक अछि।
कानूनक अछैत दहेज कोनो-ने-कोनो रूपे समस्त भारतमे चलिये रहल अछि। कानून ईहो अछि
जे व्यस्क युवक,
युवती स्वेच्छासँ विवाह कऽ सकै छैथ, मुदा केतेको ठाम एकर विरोध ऐ हद तक होइत अछि जे युगल
जोड़ीक हत्या तक भऽ जाइत अछि।कहबाक माने जे कानूनमे बदलाव संगे समाजिक सोचमे परिवर्तन जरूरी अछि, जन जागरण जरूरी ऐ मानेमे महिला तखने अधिकार सम्पन्न भऽ सकै छैथ।जमीनक किछु समाजमे खास कऽ दिल्लीक किंवा आन-आन पैघ शहरक आसपासक क्षेत्रमे बहुत प्रमुखता अछि। जमीन परिवारक प्रतिष्ठासँ जुड़ल अछि। जमीनपर पुरुषक वचस्व् कम होइ, भाग्यक संगे ओहिनो एकर हिस्सेदार हो, ई बात लेाककेँ पचि नइ रहल अछि।
जहिना प्रेमी लोकनिक खिलाफ
खास पंचायत काज करैत अछि वएह हाल पैतृक सम्पैतमे अपन हिस्साक मांग केलापर बेटी
सबहक भऽ रहल अछि। हुनकर गप छोड़ू, माय, बाप सेहो ओकर संग नहि दइ छैथ। एहन केतेको दृष्टान्त
आएल अछि जे जमीनमे अपन हिस्साक मांग करिते बेटीक गाममे प्रवेशो कठिन भऽ जाइत अछि, भाय सभ गप छोड़ि दइ
छै आ माय-बापक मुँह लटैक जाइत
अछि, जे ओकर बेटी जमीनमे
अपन हक मागि कऽ ओकर सबहक नाक कटा रहल अछि।
बेटी अपन हक नहि माँगि सकय
तइले केतेको पिता अपन जीबैत अपन सम्पैत पोता किंवा पुत्रकेँ हस्तान्तरित कऽ दइ
छैथ। तेतबे नहि, भाय सभ दवाब बना कऽ
बेटीसँ बहिनसँ ओइ सम्पैतसँ अपन अधिकार छोड़बाक हेतु राजीनामा लिखा लइ छैथ। सारांश
जे कानूनसँ प्राप्त अधिकारकेँ समाज देबए-मे पुरजोर विरोध कऽ रहल अछि। हुनका लोकनिक धारणा
अछि जे बेटीक देल गेल दहेज उत्तराधिकारमे प्राप्त होमए-बला सम्पैतक एवजमे
पर्याप्त क्षतिपूर्ति अछि। एक सर्वेक अनुसार मात्र १३% बेटी अपन पैत्रिक सम्पैतमे
अधिकार लऽ पबै छैथ।
सम्पूर्ण देशमे लागू २००५ क
कानूनसँ पूर्व पाँच राज्य (ऑंन्ध प्रदेश, कर्णाटक, महाराष्ट्र, तामिलनाडू आ केरल)मे
बेटीकेँ पैत्रिक सम्पैतमे पहिनेसँ अधिकार प्राप्त अछि।परिणामत: बिहार एवम् मध्य प्रदेशक तुलनामे आन्ध्र प्रदेशमे चारिगुणा अधिक महिलाकेँ उत्तराधिकारमे जमीन सम्पैत प्राप्त भेल। आन-आन राज्य सबहक तँ ई हाल अछि जे ६९% महिलाकेँ एहेन कोनो महिलाक जानकारी नहि छै जे ऐ कानूनसँ लाभान्वित होइत पैतृक सम्पैतमे हकदार भेल हो। जेकरा केकरो ऐ कानूनक जानकारी छैहो, सेहो जमीन-जायदादमे अपन हक नहि मंगै छैथ।
भारत वर्षमे दुर्गाकरूपमे स्त्री
शक्तिकेँ सम्मानित कएल गेल अछि। जगत जननीक रूपमे हुनकर आराधना कएल जाइत अछि। सत्य
ई अछि जे प्रायेक बेटी काल्हि जा कऽ माय बनैत अछि ओहि रूपमे ओ ओहि परिवारक सृजन करैत
अछि, पालन करैत अछि, पल प्रतिपल रक्षा
करैत अछि।हमर संस्कृति इतिहासक कोन कोनामे जा कऽ पुरुष वर्चस्वक प्रधानताक स्वीकार करैत स्त्रीणकेँ द्वेमदर्जा स्वीकार केलक, ई कएटा दुखद एवम् विचारणीय प्रसंग अछि। मुदा देरियेसँ सही, समाज जागि जाएत से उमेद अछि आ कानून द्वारा देल पैतृक सम्पैतमे उत्तराधिकारक सहर्ष पालन भऽ सकत। यत्र नारी पुज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता। उक्ति तखने सार्थक भऽ सकत।
६/४/२०१७