मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

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शुक्रवार, 13 मार्च 2020

स्वर्ग और नर्क


स्वर्ग और नर्क

प्राचीन काल में समाज में अनुशासन पैदा कराने के लिए और लोगों को गलत काम से परहेज करने के लिए ही सायद स्वर्ग और नर्क की कल्पना की गई होगी । मृत्यु के बाद यातनापूर्ण जीवन से बचने के लिए बहुत तरह के गलत काम करने से लोग बचते रह होंगे । साथ ही स्वर्ग की कामना से वे दान-पूण्य और परोपकार करते होंगे ।  यह भी एक तथ्य हो सकता है कि जीवन में जो सुख नहीं प्राप्त हो सका उसे मृत्यु के बाद पाने की चाहत में ही सायद स्वर्ग की कल्पना करने के लिए मनुष्य को प्रेरित किया होगा ।

लेकिन  लोगों ने इसका भी दुरुपयोग किया । तरह-तरह के नियम बना कर लोगों को गुमराह किया गया कि अमुक कार्य करने से ही उनको मुक्ति मिलेगी । धर्म के नाम पर तरह-तरह का अत्याचार होने लगा । पशुवध इसका एक उदाहरण है । मांसाहार करने का बहाना था पशुवलि । इसी तरह कई लोग मदिरा या अन्य नशा पीने के लिए उसे देवी-देवता पर चढ़ाने लगे ।  इस तरह अपनी वासनाओं को तृप्त करने के लिए कुछ लोगों ने सीधे-सादे लोगों की धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग किया ।

सभी धर्मों में किसी न किसी रूपमे स्वर्ग-नर्क  की चर्चा है । लोग अपने-अपने तरीका से  इसकी व्याख्या कर सकते  हैं । परंतु सत्य यही है कि भौतिक धरातल पर  इनका कोई आस्तित्व नहीं है । असल में स्वर्ग और नर्क इसी जीवन में है। हम अपने आचरण से इसका निर्माण कर लेते हैं । अगर हम शांत रहते हैं,दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं तो सामने खड़ा व्यक्ति भी हमसे अच्छा व्यवहार करता है । इस तरह हमारे इर्द-गिर्द शुभचिंतको का परिवेश तैयार हो जाता है । हम एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति रखने लगते हैं । इस तरह सभी अपने लगने लगते हैं । हम निश्चिंत जी सकते हैं । हमारे शुभचिंतको की कमी नहीं रहती है । ठीक इसके विपरित अगर हम किसी का बुरा सोचते हैं या किसी के साथ कटु वचन बोलते हैं तो वह भी हमारे साथ वैसा ही पेश होता है । कालांतर में हम अपने आप को कठिन परिस्थिति में डाल देते हैं । हमें कोई भी अच्छा नजर नहीं आता है । जबकि यह सब हमारी अपनी गलतियों के वजह से ही होता है । अगर हम किसी का बुरा सोचेंगे या किसी के व्यक्तिगत हित पर कुठाराघात करेंगे तो जाहिर है कि वह व्यक्ति कुछ-न-कुछ प्रतिकार तो करेगा ही । एकतरफा अन्याय कबतक और क्यों सहेगा? इस तरह कुटिल और दुष्ट स्वभाव के लोगों का कोई हितचिंतक नहीं रह जाता और वह दिन-रात दुखी रहकर इस दुनिया से चला जाता है । इस से बड़ा नर्क क्या होगा?

मृत्यु के बाद स्वर्ग की कल्पना भी की गई है जो जीवन में  अच्छे कर्म करने वालों को मिलते हैं । अगर अच्छा कर्म करके आदमी मरेगा तो अगले जन्म उसको उसका लाभ मिलेगा । चूंकि आज तक मृत्यु के बाद कोई भी लौटकर आया नहीं ,सो ये सारी बातें भौतिक धरातल पर सावित नहीं की जा सकती हैं । इसलिए स्वर्ग या नर्क है भी या नहीं या यह एक मात्र कपोल कल्पना है? इस बारे में कुछ भी प्रमाणिकता से नहीं कही जा सकती है । लेकिन स्वर्ग या नर्क के चक्कर में कई लोग अंध विश्वास के शिकार हो जाते हैं। तरह-तरह के गुरुओं के चक्कर में पड़कर अपना बचा-खुचा सुख शांति ,धन-संपत्ति भी कई बार गमा देते हैं । सवाल है कि जिस बात पर हमारा कोई नियंत्रण ही नहीं है,जिसकै होने न होने पर भी प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है ,फिर उसके लिए सोचकर समय क्यों नष्ट किया जाए?

स्वर्ग और नर्क आदमी के मन में ही होता है । हमें किसी व्यक्ति या घटना के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए । ऐसा करने से कठिन से कठिन काम आसान हो जाता है । आपस में सहयोग और विश्वास का वातावरण बनता है । लेकिन नकारात्मकता से प्रभावित लोग हर बात में उल्टा ही सोचते हैं । उनके विचार से सभी लोग खराब ही हैं । वे ईर्ष्या,द्वेष जैसे नकरात्मक भावनाओं से भरे होते हैं । एसे व्यक्ति अकारण दूसरों की निंदा करते रहते हैं । इन्हें सभी शत्रु ही नजर आते हैं । कोई अपना लगता ही नहीं है । इस से बड़ा नर्क क्या हो सकता है?

गीता में भगवान कृष्ण ने स्पष्ट कहा है कि आत्मा अमर है । इसका न तो मृत्यु होता है न जन्म । मात्र हमारा शरीर बदल जाता है ,वैसे ही जैसे हम पुराने वस्त्र को छोड़कर नए वस्त्र को ग्रहण करते हैं । शरीर के प्रति मोह ही हमारे दुखों का कारण है । हम जाने-अनजाने अपने लिए दुख उतपन्न कर लेते हैं । न चाहते हुए भी कभी भी समाप्त नहीं होने वाले कामनाओं के जाल में फँसते जाते हैं । इसी से हमारे चारों ओर नर्क का शृजन होता रहता है । ठीक इसके विपरीत अगर हम जीवन में त्याग की भावना को समाहित कर लेते हैं,दुसरों को सुखी देखकर खुश रहने की कला विकसित कर लेते हैं तो हमारे जीवन में नित्य नूतन वसंत का आगमन होता रहता है । हम सही माने में सशरीर स्वर्ग पहुँच जाते हैं ।



लेखकःरबीन्द्र नारायण मिश्र

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