मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

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शनिवार, 26 जनवरी 2019

फिर मोदी ही क्यों?


फिर मोदी ही क्यों?



२०१९ के लोकसभा का आम चुनाव दस्तक दे रहा है । सभी पार्टियां ताल ठोक रही हैं। तरह-तरह के समाचार नित्य अखबार और सोसल मिडिआ में सुर्खी बटोरने लगी हैं । नित्य टीवी चैनलों पर तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं। लोकतंत्र के लिए इस से शुभ क्या हो सकता है कि देश में यत्र-तत्र समय से पहले से ही आगामी सरकार के गठन और संरचना पर देशव्यापी चर्चा हो? पर सोचने की बात यह है कि इन तमाम चर्चाओं का निहितार्थ क्या है ? जो प्रस्ताव जनता के सामने राजनीतिक दलों ,नेताओं द्वारा किए जा रहे हैं क्या वे भारतीय गणतंत्र के लिए सचमुच शुभ होंगे? क्या हम विश्व में एक सम्मानित देश के नागरिक के रूपमें अपने को खड़ा कर सकेंगे? निश्चय ये सबाल हमारे मन में आ रहे होंगे और अगर नहीं आ रहे हैं तो भी हमें सोचना चाहिए कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? जिस तरह से विपक्षी पार्टियां नित्य नये तौर-तरीके लगाकर वर्तमान मोदी सरकार के पतन के लिए कटिवद्ध दिख रही हैं क्या वे सचमुच उचित है ,देश के लिए लाभदायी है?
लोकतंत्र में विपक्ष का अपना महत्व है । उन्हें सरकार के खिलाफ विचार रखने का पूरा हक है । सरकार अगर कहीं गलत है तो उसे स्पष्टता से बताया जाना ही चाहिए । परंतु  मात्र विरोध के लिए विरोध करते रहने से देश वा जनता का कुछ भी  लाभ संभव नहीं है । देखा जा रहा है कि सरकार जो कुछ करती है, विपक्षी दल खासकर कांग्रेस पार्टी उसके खिलाफ बोलने लगते हैं । इसका कोई अच्छा प्रभाव  जनता में नहीं होता है । लोक सोचते हैं कि ये लोग तो ऐसे ही बोलते रहते हैं । फिर इनके बातों पर माथापच्ची क्यों किया जाए?सरकार का विरोध करने और हो-हल्ला करते रहने की विमारी इस कदर फैल चुकी है कि शायद ही किसी दिन संसद चल पाता है। आखिर इतने खर्च कर देश के गरीब जनता के पैसे से चल रहे संसद का समय इस तरह वर्वाद करते रहना कहाँ तक उचित है? संसद  होता ही है चर्चा के लिए । सभी पक्ष अपना विचार विधि संम्मत तरीके से रखें ,सरकार को उसकी त्रुटिओं के तरफ ध्यान खीचें और जरूरी पड़ने पर और उचित बहुमत होने पर लगातार गलत कर रहे सरकार को बहुमत द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पास कर बदल दें । जब संविधान द्वारा इतने अधिकार एक सांसद को प्राप्त है तो यह कहाँ तक उचित है कि आये दिन संसद में हंगामा होता रहे,बात-बात में संसद की बैठक स्थगित हो जाए और जनता मूकदर्शक बना रहे?
लोकतंत्र में विपक्ष की अपनी भूमिका होती है । लेकिन यह भूमिका मात्र हो-हल्ला कर लेने से  पूरा नहीं हो सकती है । सरकार बदलना भी लोकतंत्र की सार्वभौमिकता को सिद्ध करती है । चुनाव से पूर्व भी लोकसभा में सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव बहुमत से पारित कर सरकार को हटाया जा सकता है । जनता चाहे तो चुनाव के समय मतदान द्वारा  ठीक काम नहीं करने बाले सरकार को बदल दे । ऐसा कई बार हो भी चुका है । जब श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार से लोग नाराज हुए तो उसे चुनावमें बुरी तरह पराजय का मुँह देखना पड़ा । विपक्ष के तमाम नेता आपत्तिकाल में में  बंद थे । देश में नागरिकों के सारी लोकतांत्रिक अधिकार छीन लिए गये थे । स्वर्गीय जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में सभी विपक्षी दल इंदिरा गांधी को हराने के लिए एकजुट हुए । जनता दल के नाम से एक नये दल का सृजन हुआ जिस में जनसंघ सहित कई विपक्षी दल शामिल हुए । इंदिरा गांधी चुनाव हार गई । देश में नयी सरकार मोरारजी भाई के नेतृत्व में बनी । सरकार बन तो गई पर चल नहीं पाई । कुछ साल बाद ही जनता दल के नेताओं के अहं का टकराव इस कदर बढ़ गया कि जनता दल का विभाजन हो गया । मोरारजी भाई को इस्तिफा देना पड़ा । चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में जो कांग्रेस समर्थित सरकार बनी वह कभी लोकसभा का विश्वास नहीं प्राप्त कर सकी । देश को मध्यावधि चुनाव का सामना करना पड़ा । इस तरह के कई प्रयोग बाद में भी हुए जिस में कार्यकाल पूरा करने की बात तो छोड़िए,कांग्रेस समर्थित सरकार चाहे वह चनद्रशेखर के नेतृत्व में बनी या देवगौड़ा के ज्यादे दिन नहीं चल सकी और देश में मध्यावधि चुनाव कराना पड़ा ।
कहने का तात्पर्य यह है कि मात्र विरोध के लिए विपक्षी दलों का एकत्र होना कोई सार्थक काम नहीं कर पाती हैं। उल्टे इस मौकापरस्ती से बनी सरकार में सिर फुटौअल होती रहती है । प्रधान मंत्री नाम मात्र के प्रधान रह जाते हैं। समर्थक दलों में सभी के पास में  बीटो करने का अधिकार आ जाता है । अगर एक भी समर्थक दल नाराज हो गई तो सरकार गई । इस तरह के आया राम ,गया राम बाली सरकार जनता का क्या भला कर सकती है? कर ही नहीं सकती है। सभी दल अपना स्वार्थ पूरा करने में लगे रहते हैं । उन्हें पता रहता है कि यह सरकार ज्यादा दिन चलने बाली नहीं है, इसलिए जितना हो सके जल्द से जल्द वसूली कर लिया जाए । सोचिए,ऐसी खतरनाक स्थिति एकबार फिेर हम आने देंगे क्या?
वर्तमान में ऐसा लग रहा है कि मोदीजी को हरा देना और अगले बार उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोकना ही सभी विपक्षी दलों का एकमात्र एजेंडा है । इस अभियान में भाजपा के कुछ भूतपूर्व और वर्तमान लोक भी शामिल दिखाइ देते हैं। यह समझ से बाहर है कि मोदी को प्रधानमंत्री पद से हटा मात्र देने से देश की समस्यायों का समाधान कैसे होने बाला है? क्या उन्होंने इन्दिरागांधी की  तरह देशपर आपत्तिकाल लगा दिया है ? क्या अपने कार्यकाल में उन्होंने देश की संप्रभूता की रक्षा करने से नाकामयाब रहे हैं? क्या उन्होंने देश के सरकारी खजाने का इस तरह दुरुपयोग कर दिया है कि देश कंगाल हो गया है? कोई भी निष्पक्ष व्यक्ति कहेगा कि इस सभी में से कुछ भी नहीं हुआ है । देश पहले की तरह या उससे भी ज्यादा सुरक्षित लगता है । दुनयाँ में भारत एक चर्चा का विषय है । शक्तिशाली देश भी अब भारत के खिलाफ जाने से परहेज करते हैं ।  दुनियाँ में पाकिस्तान के साथ खड़ा होने बाला देश शायद ही कोई बचा है । 
आखिर विपक्षी दल ऐसा क्यों कर रहे हैं? आप कह सकते हैं कि विपक्षी दल ऐसा नहीं करेंगे तो क्या सरकार का प्रचार करेंगे? विल्कुल नहीं । उनसे ऐसी अपेक्षा कदापि वाजिब नहीं है । सरकार के गलत नीतिओं के खिलाफ जनता और सरकार का ध्यान उन्हेँ आकर्षित करना ही चाहिए। यदि सरकार जनहित के मामलों की अनदेखी करती है तो उन्हें यह देश को बताना ही चाहिए । परंतु वे ऐसा करने के बजाए जब संसद बैठती है तो शोरगुल करके ऐसी परिस्थिति का निर्माण कर देती हैं कि संसद चले ही नहीं । ऐसा क्यों हो रहा है ? वह भी एकबार नहीं बार-बार हो रहा है । कोई भी समझदार व्यक्ति आसानी से कह देगा कि या तो इनके पास कोई मुद्दा ही नहीं है या ये संसद को चलने देने से वाधित कर सरकार को रचनात्मक काम करने से रोकना चाहती हैं । संभवतः दोनो ही बातें सही हो । कारण इतना हो-हल्ला करने के बाद भी सभी विपक्षी दल देश को यह नहीं बता पा रहे हैं कि वे गठवंधन बनाकर इस सरकार को हरा देने में कामयाब हो भी जाते हैं तो वे लोग देश का शासन किस आधार पर चलाएंगे? प्रधानमंत्री कौन होगा? क्या वे लोक विना किसी नीति के इतने बड़े देशपर शासन कर पायेंगे? और तो और, इस से भी युक्तिसंगत प्रश्न तो यह है कि इस कदर जैसे-तैसे आपस में एकत्रित विपक्षी दलों की भीड़ सत्ता प्राप्त करने के बाद भी एकठ्ठा रह पायेगी या पिछले अनुभवों की तरह  आपस में लड़-झगड़ कर देश को जल्दी ही दोबारा मध्यावधि चुनाव कराने पर मजबूर कर देंगी । जब आप इतने बड़े देश पर शासन करना चाहते हैं तो इन सब बातों की स्पष्टता के साथ समाधान तो होना ही चाहिए । अफशोस की बात है कि कहीं भी भूल से भी इन बातों पर चर्चा नहीं हो पा रही है । होगी भी कैसे? इन्हें तो बस यह फिक्र है कि हाय राम! मोदीजी कहीं दुबारा न आ जांय? इसलिये जैसे-तैसे महागठवंधन बनाकर और क्या- क्या करके मोदीजी को हटाने में लगे हैं।
सबाल है कि इतने बड़े देश में करोड़ो रुपये खर्च कर हम चुनाव क्यों कराते हैं? इसका आशान उत्तर है कि यह एक आवश्यक संवैधानिक आवश्यकता है । देश में केन्द्र और राज्य सरकारों का गठन लोकतांत्रिक तरीकों से हो जिसे संविधान के अनुसार मान्यता प्राप्त हो, इसलिए ही लोकसभा,और राज्यों के विधान सभा का चुनाव कराया जाता है । जरुरी यह है कि चुनाव के बाद देश में एक स्थिर और स्पष्ट सोचबाला सरकार का गठन हो । यह तभी हो सकता है जब सरकार के पास लोकसभा  में पर्याप्त बहुमत हो । अगर एक दल को स्पष्ट बहुमत मिल जाए ,जैसा कि पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिला था, तो केन्द्र की सरकार ठीक ढंग से बिना किसी दबाब के अपना पाँच साल का कार्यकाल पूरा करे । समस्या तब आती है जब किसी भी दल को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं मिले । ऐसी स्थिति में सरकार चलाने के लिए कई दल आपस में चुनाव से पहले वा चुनाव के बाद भी गठजोड़ करते हैं । ऐसे गठजोड़ों का एकमात्र लक्ष्य जैसे-तैसे बहुमत का आकड़ा जुटाना और जुटाए रखना होता है । कई बार तो यह भी देखने में आया कि चार-पाँच सदस्यबाले दल भी अपनी मांग मनबाने के लिए केन्द्र सरकार को ब्लैकमेल करते रहे । जब सरकार स्वयं अपनी हैसियत बचाती फिड़ेगी तो वह देश और जनता की रक्षा कैसे कर पायेगी? यह एक ऐसा सबाल है जिसका उत्तर विपक्ष में महागठवंधन बनाने के लिए प्रयत्नशील दलों को जनता को देना चाहिए, देना ही पड़ेगा।
गठवंधन द्वारा सरकार बनाना और चलाना कैसा होता है वह देश की जनता देख चुकी है,भुगत चुकी है । जब प्रधानमंत्री अपने मर्जी का मंत्री भी नहीं रख सकते तो वे प्रधानमंत्री बेशक हों , संविधान में निहित भावना और व्यवस्था के अनुकूल कार्य नहीं कर रहे होते हैं। होता तो यह है कि सभी घटक दल अपने-अपने मंत्रियों की सूची प्रधानमंत्री को पकड़ा देते हैं जिसे मानना उनकी मजबूरी रहती है ,अन्यथा सरकार  नहीं चल पायेगी। चुपचाप सब कुछ सहते रहो और देश का प्रधानमंत्री बने रहो ,यह कहाँ का सही हो सकता है? ऐसी मिली जुली सरकार में प्रधानमंत्री की हैसियत कई बार दयनीय हो जाती है । यह समझ से पड़े नहीं है कि ऐसी मजबूर सरकार राष्ट्र हित की रक्षा कैसे कर सकती है?
संविधान निर्माताओं ने संभवतः देश में ऐसी परिस्थिति  होगी,ऐसा सोचा भी नहीं था,परंतु अब जब ऐसी संभावनाएं बार-बार हो रही हैं तो  संविधान में संशोधन कर गठवंधन से बननेबाली सरकारों के लिए मापदंड बनाया जाना चहिए । हो सकता है कि ऐसे में सामुहिक कार्यक्रम तय कर एक साथ चुनाव लड़ने बाले दलों के गठवंधन पर दल-बदल कानून को भी लागू कर दिया जाए ताकि समर्थक दल सोझ-समझकर ही सरकार से समर्थन वापस लें । समर्थन वापसी से पूर्व यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए की सरकार  गिड़ने  की स्थिति में बहुमत संपन्न वैकल्पिक सरकार बन सके । अगर ऐसा नहीं होगा तो वारंवार चुनाव होंगे और देश का बेड़ा तो गर्त होगा ही । अभी जो गठवंधन होता आया है उस में जब जो चाहे सरकार से बिना खामिआजा भुगते समर्थन वापस ले ले । सरकार गिड़ जाए और आगे कोई सरकार कैसे बने ,इसपर कोई स्पष्टता तो छोड़िए, कोई संभावना भी दूर-दूर तक नजर नहीं होती है। फिर देश बचे कैसे?पहले कई बार ऐसी दिक्कतें हुई है,सरकारें आई-गई । मध्यावधि चुनाव हुए । फिर भी स्पष्ट बहुमत की सरकार नहीं बन सकी । इस सब के बाबजूद कानून में कोई सुधार नहीं हो सकी जिस से इस तरह की परिस्थिति से बचा जा सके । 
यह एक संयोग ही कहिए कि तीस साल के बाद देश में स्पष्ट बहुमत से श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में एक मजबूत सरकार २०१४ के चुनाव के बाद बनी । सरकार पाँच साल का अपना कार्यकाल पूरा करने जा रही है । जनता को यह पूरा अधिकार है कि वह केन्द्र सरकार के कामकाज का लेखा-जोखा करे और अगला चुनाव में इस बात का ध्यान रखते हुए अपना मतदान करे ।
यहाँ यह विचार करने की जरूरत है कि क्या मोदी सरकार ने  पिछले पाँच सालों में ठीक से काम किया?चाहे नोटबंदी हो या जीएसटी कानून,इन सब को लागू करने के लिए सरकार ने मजबूत इच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया है । राज्यसभा में अल्पमत होने  और कई विपक्षी दलों द्वारा लगातार वाधा खड़े करते रहने के बाबजूद सरकार ने इन उद्येश्यों की प्राप्ति हेतु प्रयास किए,और सफल रही। अब यह कहना कि नोटबंदी से क्या हुआ,या जीएसटी कानून से अपक्षित लाभ नहीं हो रहा है,उचित नहीं है । इस में कोई शक की गुंजाइश नहीं है कि सरकार के इरादे सही थे । जनता ने इस बात को सराहा भी अन्यथा नोटबंदी के बाद उत्तर प्रदेश में इतना भारी बहुमत से बीजेपी की सरकार नहीं बनती । पाकिस्तानी सीमा के अंदर घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक करना कोई मामूली घटना नहीं थी । पाकिस्तान भी परमाणु शक्ति संपन्न देश है । फिर भी सरकार ने जोखिम भरा फैसला लिया और हमारी सेना ने बहादुरी का मिसाल कायम की  जिस से सारी दुनिया में भारत का सम्मान बढ़ा। देश में सरकारी कल्याण योजनाओं में हो रहे भूगतान को आधार से जोड़कर सरकार ने लाखों  फर्जी लाभार्थियों को चिन्हित करने में कामयाबी हाशिल की जिस से करोड़ो रुपये का गलत भूगतान रोका जा सका। राष्ट्रव्यापी स्वच्छता अभियान चलाकर शहर कि तो बात छोड़िए गाँव-गाँव में जो सफाई के प्रति रूझान पैदा हुआ है,इसे कौन नजरअंदाज कर सकता है?
नोटबंदी में क्या हुआ,नहीं हुआ पर इतना तो तय है कि सरकार की मजबूत इच्छा शक्ति का संदेश पूरे देश को मिला कि सरकार राष्ट्र में आर्थिक सुचिता लाने के लिए कटिवद्ध है । क्या इतने बड़े देश में यह काम एक ही व्यक्ति याने श्री  नरेंद्र मोदी कर सकते हैं? कदापि नहीं । उन्होंने मार्ग दर्शन दिया, जोखिम भरा निर्णय लिया और देश में पारदर्शी अर्थव्यवस्था लागू करने का भरपूर प्रयास किया । इतना तो तय है कि इस घटना के बाद पूरे देश में डिजीटल लेन-देन को बढ़ाबा मिला और नगदी कारोबार धीमा हो गया । मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार रोकने कि लिए और काला धन को कानूनी प्रकृया के अधीन लाने में कई कड़े फैसले किए ।  नोटबंदी के बाद  सन् २०१६ में बेनामी संपत्ति कानून में किया गया संशोधन उसी दिशा में लिया गया एक सही कदम था ।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ईमान्दार छवि को आघात पहुँचाने के एकमात्र लक्ष्य से श्री राहुलगांधी लगातार राफेल का मुद्दा गरमाये रखना चाहते  हैं, जबकि माननीय उच्चतम न्यायलय ने तमाम बातों पर विचार कर इस सौदे में किसी भी प्रकार से  गड़बड़ी से इन्कार किया है । उचित तो यह था कि जब एकबार उच्चतम न्यायलय इस विषय में अपना निर्णय दे दिया है तो बात वहीं खतम हो जाती । इसके बाबजूद लगातार इस मुद्दे को उछाला जाना क्या सावित करता है? यही कि कांग्रेस पार्टी और श्री राहुलगांधी के पास कोई मुद्दा है ही नहीं और वे सिर्फ भ्रम फैला कर लोकसभा का चुनाव जीत लेने का सपना देख रहे हैं। देश की जनता काफी प्रवुद्ध है और वह इसका सबूत वारंबार देती रही है । नोटबंदी की घोषणा के बाद विपक्ष के सारे नेता इसके खिलाफ बोल रहे थे , परंतु इसके बाद उत्तरप्रदेश के चुनाव में भाजपा प्रचंड बहुमत से जीती । क्या पता महागठवंधन के नेताओं, खासकर श्री राहुलगांधी द्वारा राफेल के मुद्दे पर फैलाए जा रहे भ्रम का फिर वही हस्र हो ।
 अच्छा होता ,अगर श्री राहुलगांधी एवम् महागठवंधन बनाने बाले अन्यदल के नेतागण एक वैकल्पिक सरकार की स्पष्ट रूपरेखा जनता के सामने प्रस्तुत करते । साथ ही वे यह भी बता सकते कि किस प्रकार वे एक बेहतर सरकार दे सकते हैं और उसका मुखिया कौन होंगे? यह सब कुछ नहीं हो पा रहा हैं न होने की उम्मीद लग रही हैं कारण वहाँ तो प्रधानमंत्री पद के दर्जनभर  दावेदार हैं । शायद नाम की घोषणा नहीं होने तक ही वे साथ दिखें,ऐसा लोगों के मन में भाव उत्पन्न हो जाना अस्वभाविक नहीं हैं।
दोकलाम में जिस तरह चीन के दबाब के आगे भारत की सेना अडिग रही,यह बिना मजबूत सरकार के संभव नहीं हो सकता था । अफशोस की बात है कि जब सारा देश इस समस्या से जूझ रहा था और हमारी सरकार और सेना चीन को माकूल जबाब देने में लगी थी तब श्री राहुलगांधी गुप- चुप चीन के राजदूत से क्यों मिले? वहीं नहीं,जब वे मान सरोवर की यात्रा करने गये थे उस दौरान भी वे चीन के मंत्री से मिले । उनका इरादा जो भी रहा हो,परंतु इस तरह की गतिविधि प्रश्नचिन्ह तो खड़ा करता ही है कि आखिर उनको इस मुलाकात की जरूरत क्यों पड़ी और अगर  पड़ ही गई तो सरकार को विश्वास में क्यों नहीं लिया गया?
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश की अखंडता और संप्रभुता सर्वोपरि है । इस उद्येश्य की प्राप्ति के लिए ही हम संविधान सम्मत तरीके से देश के शासन तंत्र की व्यवस्था करते हैं । चाहे कोई भी व्यक्ति किसी भी दल का हो , है तो अपने ही देश का । चाहे सरकार किसी दल या दलों के समूह का हो उसका लक्ष्य देश की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा के साथ- साथ देश के सभी नागरिकों का बिना किसी भेदभाव के कल्याण की व्यवस्था करना ही है । अगर ऐसा है तो फिर इतनी कटुता और वाद-विवाद क्या कोई औचित्य नहीं रह जाता है? लेकीन आज-कल ऐसा लग रहा है कि श्री नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के पद से हटाना अंग्रेजों को भारत से हटाने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है । बिना किसी पूर्व सोच-विचार के आपस में बिरोधी विचार धारा के लोक इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एकजुट होते दिखाई पड़ रहे हैं । मान लीजिए कि वे अपने प्रयास में सफल हो भी जाते हैं तो आगे देश कैसे चलाएंगे? विभिन्न राष्ट्रीय मुद्दोंपर उनका क्या रुख होगा ? क्या  पता वे सब कब आपस में लड़ पड़ेंगे और देश एकबार पिर अनिश्चितता के दौर में पहुँच जाएगा ? महागठबंधन बना रहे दलों को शायद इन बातों का परबाह नहीं है,क्यों कि वे जातीय और धार्मिक आधार पर मतदाताओं की गिनती करते रहते हैं और इस बात से आश्वस्त हैं कि अमुक जाति वा संप्रदाय के मतदाता तो उनके साथ हैं ही । शायद वे यहीं भूल कर रहे हैं ।  देश में युवकों की एक ऐसी प्रवल जनसंख्या मतदाता बन चुकी है जो इन झमेलो में पड़ना नहीं चाहती है । उन्हें शिक्षा चाहिए, नौकरी चाहिए । ऐसे मतदाताओं ने ही पिछले बार मोदीजी में विश्वास व्यक्त कर उन्हेँ असाधारण विजय दिलाया था । कहने का तात्पर्य है कि देश के अधिकांश युवा बहकाबे में आने बाले नहीं हैं । वे जानते हैं कि महागठवंधन करके जैसे-तैसे बनी सरकार बेशक बन जाए पर जनता की भलाई नहीं कर सकेगी । वे तो दिन-रात अपने हितों के टकरावों को सुलझाते रह जाएंगे । फिेर देश का क्या होगा?
 जाहिर है कि मतदाताओं को बहुत सावधानी से निर्णय करना होगा ताकि देश एकबार फिर से कहीं ऐसे ही जगह न पहुँच जाए जहाँ वह २००४ से २०१४ तक थी । जिस दौर में हर सरकार का समर्थक दल अपने को प्रधानमंत्री से कम नहीं आंकता था और उसके दल को आवंटित मंत्री से जो चाहे करबाता रहे,प्रधानमंत्री मूकदर्शक बना रह जाता था। मिली- जुली सरकारों का क्या हस्र हुआ है यह देश से छिपा नहीं है । किस तरह देश को सोना विदेशी बैंक में गिरबी रखने की नौबत आ गई,यह शायद ही भुलाया जा सके । पिछले युपीए सरकार में अनिर्णय पराकाष्ठा पर पहुँच गई थी। सरकारी अधिकारी फाइलों की ढ़ेर पर बैठे रहते थे । घोटाला पर घोटाला  की खबर आम बात हो गई थी । यह भी कहा जा रहा था कि देश का शासन तो असंवैधानिक हाथों से हो रहा है ,आदि,आदि । क्या हम फिर उसी दौर में दोबार वापस जाना चाहेंगे?सरकार चलते रहे,इस हेतु देश को क्या-क्या नहीं झेलना  पड़ा था । घोटाले पर घोटाले होते रहे । फिर भी संवंधित व्यक्ति मंत्री बने रहे । अगर प्रधानमंत्री कुछ करते तो अपनी कुर्सी ही गमा बैठते । फिर भी उस दौर में प्रायः प्रत्येक सजग नागरिक यही कहता था कि प्रधानमंत्री अगर कुछ और नहीं कर सकते हैं तो त्यागपत्र तो दे ही सकते हैं । ऐसा माहौल क्या हम फिर से देखना चाहेंगे? अगर नहीं तो इसका एकमात्र समाधान तो यही दिखता है कि मोदीजी को एकबार फिर मौका दिया जाए ताकि वे अपने बचे हुए योजनाओं को मूर्तरूप दे सकें और देश प्रगतिपथ पर बढ़ता रहे ।

रबीन्द्र नारायण मिश्र

Email:mishrarn@gmail.com

शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

वकालतनामा


वकालतनामा





जँ अहाँकेँ कोट कचहरीक चक्कर पड़ल अछि तँ वकालतनामाक बारेमे अवश्य सुनने होएब कारण बिना वकालतनामाकेँ कोनो ओकील अहाँक मोकदमा कोर्टमे लड़िए नहि सकैत अछि । जहाँ कोनो मोकदमा लड़बाक उद्यश्यसँ लोक कोर्ट बिदा भेल तँ पहिल स्टाप ओकीलक दरबाजापर होइत अछि । ओकील साहबे मोछपर हाथ दैत छथि जे चलू एकटा आओर मोअक्किल फँसल । ओ करबो की करताह? हुनकर तँ ओएह पेशा छनि । बिलारि जँ मूससँ दोस्ती कए लेत तँ जीबत कोना? खाएत की? सएह बात एतहुँ लागू होइत अछि । सामान्यतः ई देखबामे अबैत अछि जे जँ अहाँ ओकील लग चल गेलहुँ तँ ओ अहाँकेँ मोकदमा लड़बाक हेतु ततेक उत्साहित कए देताह जे होएत जे गाम घुरएसँ पहिनहि मोकदमा फाइल केनहि जाइ । मोअक्किलकेँ अपना काबूमे लेबाक हेतु ओकिल साहेब झट दए ओकलातनामा पर दस्तखत करओताह आ किछु फीस सेहो चाहबे करी । तकरबाद अहाँ घुमैत रहू हुनका पाछू-पाछू ।

कै बेर मोअक्किल नहि बुझैत छथि जे ओ कुन-कुन कागजपर दस्तखत कए ओकिलकेँ दए रहल छथि। ओना एतेक विश्वासतँ ओकिलपर करै पड़ैत छैक । एहन कागज सभमे वकालतनामा तँ जरूर रहैत अछि । ओकलातनामा मोअक्किल वा ओकर अधिकृत प्रतिनिधि द्वारा ओकरा एबजमे कोर्टमे ओहि मामलाक पैरबी करबाक आज्ञा पत्र थिक । एकरा मोख्तारनामा वा ओकीलपत्र सेहो कहल जाइत अछि ।

ओकालतनामामे निम्नलिखित बात होएब जरुरी थिकः-

१. ओकालतनामा निष्पादनक तारिख,

२.केसक नाओँ जाहि हेतु ओकालतनामा बनाओल जाइत अछि,

३.कोर्टक नाओँ जाहि हेतु ओकालतनामा बनाओल जाइत अछि,

४.अधिवक्ता नियुक्त केनिहारपार्टीक नाम,

५.ओकिलक नाओँ आ पता,

६.केस संख्या आ केसक शीर्षक,

७.अधिवक्ताकेँ देल गेल शक्ति / निर्णय लेबाक अधिकार,

८.पार्टी आ अधिवक्ता क हस्ताक्षर,

ओकालतनामाक मार्फत ओकिलकेँ बहुत रास अधिकार प्राप्त भए जाइत अछि । मोअक्किलकेँ ओकालतनामापर दस्तखत करएसँ पहिने ओकरा बहुत ध्यानसँ पढ़बाक चाही आ जे  अधिकार ओ ओकीलकेँ नहि देबए चाहैत अछि तकरा हटा देबाक चाही । समझौता करबाक अधिकार,ओकिल नियुक्त करबाक अधिकार,पैसा लेबाक अधिकार देलासँ कै बेर बहत क्षति हेबाक संभावना भए सकैत अछि ।

ओकालतनामा केस लड़निहर व्यक्ति स्वयं वा ओकरा द्वारा अधिकृत व्यक्ति हस्ताक्षर कए सकैत अछि। पार्टीक एबजमे व्यापार वा व्वसाय करए बला व्यक्ति सेहो ओकालतनामापर हस्ताक्षर कए सकैत छथि। जौँ कोनो मामलामे कै गोटे सामिल छथि तँ सभगोटे संयुक्त रूपसँ एकाधिक ओकिलकेँ ओकालतनामा दए सकैत छथि ।

माननीय उच्चतम न्यायालय उदय संकर त्रीयार बनाम राम कलेश्वर प्रसाद सिंह एवम् अन्य(2005(11) TMI-436 SC)क मामलामे ओकालतनामाक संवंधमे विस्तृत मार्गदर्शन जारी करैत स्पष्ट केलक अछि जे कोनो मामलामे ओकालतनामा बहुत सावधानीक संग बनाओल जेबाक चाही आ कोर्टक रजिष्ट्रीकेँ ई चाही जे सुनिश्चित करए जे ओकालतनामा सही अछि अन्यथा ओकरा शुरुएमे रोकि देबाक चाही जाहिसँ आगू परेसानी नहि होइ । एकबेर ओकालतनामापर संवंधित व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर भए गेलाक बाद ओकरा तय अवधिमे मामलासँ संवंधित अन्य कागजातक संगे कोर्टमे जमा कएल जाएत । तकरबाद बिना न्यायालयक मंजूरीकेँ मोअक्किल वा ओकिल वकालतनामाकेँ खारिज नहि कए सकैत छथि । जँ दुनू पक्षमेसँ किओ मरि जाइत छति छथि वा संवंधित मोकदमाक कोर्ट द्वारा निस्तारण भए जाइत अछि तँ ओकालतनामा स्वतः खारिज भए जाएत।

माननीय उच्चतम न्यायालयक रामप्पय्या  बनाम शुभम्मा एवम् अन्य(1947)2 MLJ 580 मामलामे ओकील द्वारा ओकालतनामामे बिना स्पष्ट  प्रावधानकेँ केसमे समझौता करबाक विषयपर आदेश देलक । अस्तु, ई स्पष्ट होइत अछि जे कोनो मोकदमामे  मओअक्कल द्वारा ओकालतनामापर दस्तखत करब बहुत महत्वपूर्ण काज अछि आ तकरा बहुत सावधानीसँ ओकरा पढ़ि कए करबाक चाही ।मुदा सामान्यतः लोक आँखि मूनि कए ओहिपर हस्ताक्षर कए दैत छथि । कै बेर ओकर परिणाम प्रतिकूल भए जाइत अछि खास कए जखन कि संवंधित ओकिल तकर दुरुपयोगपर उतारू भए जाए ।  मोअक्कील केँ तकर अनुमानो नहि भए पबैत छनि आ जखन से होइत छनि ताबे कोर्टमे मामिला बहुत आगू भए गेल रहैत अछि ।

सोमवार, 21 जनवरी 2019

बेनामी संपत्ति कानून


बेनामी संपत्ति कानून



बहुधा ई देखल जाइत अछि जे कदाचार कए बहुत रास धन -संपत्ति  संग्रह करएबला व्यक्ति अपनाकेँ कानूनी दाव-पेवचसँ बचेबाक हेतु तरह-तरहक व्योंत कए लैत छथि । परिणाम होइत अछि जे सरकारी व्यवस्था एहन लोकक किछु नहि बिगारि पबैत अछि । एहन लोक समाजमे पूर्ण सम्मानक संग मोंछपर ताव दैत जीवन-यापनेटा नहि करैत छथि अपितु दोसरकेँ छोट कहबाक कोनो अवसर हाथसँ नहि जाइत छथि । एहने लोक कोनो सामाजिक धार्मिक काजमे सबसँ बेसी चंदा दैत छथि,माए-बापक श्राद्धमे जबार के कहए पूरा परिपट्टाकेँ भोज खुअबै छथि । कोनो मंदिर बनेबाक होइक,वा पूरान मंदिरकेँ जीर्णोद्धार करक होइक तँ ओ सभसँ बेसी टाका चंदा दए अपनाकेँ सम्मानित करैत छथि । मुदा सबाल अछि जे एतेक टाका हुनका अबैत छनि कतएसँ? जाहिर बात अछि जे कोनो-ने-कोन बैमान-सैतानी केनहि एतेक धन भए सकैत अछि,खास कए नौकरी पेशाबला लोककेँ जकर दरमाहा बान्हल छैक,अकूत संपत्ति कतएसँ भए सकैछ,मुदा कैगोटाकेँ से भए जाइत छैक । कै बेर एहन समाचार पढ़ैत छी जे काज चपरासीक कए रहल अछि आ करोड़ोंकेँ मकान,सोनाक गहना,आदि-आदि जमा केने रहैत अछि । निश्चय एहन लोकक संख्या कम होइत अछि मुदा होइते अछि से कोना? कानूनी प्रकृयाकेँ ओसभ कोनो परबाह नहि करैत अपन काजमे लागल रहैत छथि आ जँ कहिओ  छापा पड़ल तखन भोम्हार निकलैत अछि । ओ व्यक्ति जहल जाइत छथि,नौकरीसँ  हटाओल जाइत छथि,मुदा एहन मामिला कमे होइत अछि । ओहो सामान्यतः विभागमे अन्तर्विरोधक कारणे होइत अछि । सरकार एहि समस्याकेँ कोना की करए-ताहि विषयपर  चिंतन होइत रहल आ हालेमे निर्णय लेल गेल जे बेनामी संपत्ति कानून १९८८केँ संशोधित कए एकरा  फेरसँ परिभाषित कएल जाए संगहि  एहन व्यक्तिक बेनामी संपत्तिकेँ जब्त करबाक एवम् अपराध सिद्ध भेलापर  ओकरा पर्याप्त दंड देबाक व्यवस्था सेहो एह संशोधित कानूनक मार्फत कएल गेल ।

जाहि संपत्तिक हेतु टाका किओ दैत छथि आ संपत्तिक कागजमे नाओँ ककरो आनक जेना बेटा,भाए,बहिन आदिक किंवा नौकर-चाकर वा किओ विश्वस्त लोकक रहैछ तँ ओकरा बेनामी संपत्ति कहल जाइत अछि । जे व्यक्ति से करैछ तिनका बेनामीदार कहल जाइछ। सबाल अछि जे किओ एना किएक करैछ? असलमे ई काजसभ ओएह करैछ जिनका बैमानीक कमाइ रहैत छनि । ओ अपन आयक स्रोत नहि बतबैत छथि आ टैक्स सेहो बचा जाइत छथि । उदाहरणस्वरूप ,कै बेर सरकारी अधिकारी कदाचार कए अकूत धन जमा कए लैत छथि । विभागीय जाँचमे पकड़ाथि नहि ताहि हेतु कागजमे पत्नी,बेटा वा ककरो अनकर नाओँ देने रहैत छथि । आब जे कानूनमे संशोधन भेल अछि तकर बाद एहन बैमान लोकसभकेँ बचनाइ मोसकिल भए गेल अछि । संपत्ति संगे ओकर आयक स्रोत जँ स्पष्ट नहि होइत अछि तँ सरकार एहन संपत्तिकेँ जव्त कए सकैत अछि, संगहि ओहि व्यक्तिकेँ दंडित सेहो कएल जा सकैत अछि ।

बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम, 2016 लागू भेलाक बाद एहन लोकपर कारबाइ आसान भेल अछि जे अनकर नामे संपत्तिक क्रय-विक्रय करैत छथि । एहि कानूनकेँ लागू भेलाक बाद जौँ किओ बेनामीदार बेनामी संपत्तिकेँ ओकर असली मालिकक नामे बेचैत अछि तँ संपत्तिक ओ हस्तांतरण खारिज भए जाएत । संशोधित कानूनक अनुसार बेनामी संपत्ति अर्जित केनिहारकेँ सात साल धरिक जहल आ बेनामी संपत्तिक  बाजार मूल्यक चौथाइ जुर्मानाक रूपमे  देबए पड़ि सकैत अछि । कोनो गलत जानकारी वा दस्तावेज देलापर पाँचसाल धरि सश्रम कारावास आ संपत्तिक दस प्रतिशत धरि जुर्माना भए सकैत अछि ।हिनदु अभिवाजित परिवारक कर्त्ता द्वारा परिवारक सदस्य हेतु कीनल गेल संपत्ति,कोनो ट्रस्ट आदि हेतु ओकर प्रवंधकक नाओँसँ लेल गेल संपत्ति एहि कानूनक प्रावधानसँ मुक्त राखल गेल अछि , मुदा ताहि हेतु ई जरुरी अछि जे लेन-देनक हेतु आमदनीक स्रोत ज्ञात होइ ।

बेनामी संपत्तिमे सामान्यतः अवैध रूपसँ कमाएल टाका लगाओल जाइत अछि जाहिसँ ओकरा कर नहि देबए पड़ैक आ ओकर अनैतिक धनोपार्जनपर लोकक वा सरकारक ध्यान नहि जाइक । ई काज ओ सभ बहुत सावधानीसँ आ फर्जी कागजात बना कए करैत छथि । तैँ एहन लोककेँ पकड़नाइ बहुत कठिन काज अछि। बेनामी संपत्तिक क्रय-विक्रय केनिहार व्यक्तिकेँ तकनाइ आ ओकरापर आवश्यक कानूनी कार्रवाई केनाइ मोसकिल काज साबित भए रहल अछि । ताहि हेतु आब ई विचार भए रहल अछि जे संपत्तिक क्रय-विक्रयक समस्त प्रकृयासँ आधार संख्याकेँ जोड़ल जाए । ताहिसँ संपत्तिक असली मालिकक पता लागि जाएत। जौँ संपत्ति बेनामी अछि तँ तकर जानकारी सेहो भेटत । मानि लिअ जे किओ अपन नौकर-चाकरक नाओँसँ संपत्तिक लिखा-पढ़ी करैत छथि तँ ओकर नाओँ धर दए पकड़ा जाएत । तखन इहो पता लगाएब आसान भए जाएत जे ओकरा ओहि संपत्ति कीनबाक हेतु टाका के देलक,ओकर आयक श्रोत की अछि ?

एहि कानूनक बनलाक बाद संपत्तिक लेनदेनमे पार्दर्शिता आएत। गलत तरीकासँ उपार्जित संपत्तिकेँ नुकाएब वा ककरो आनक नाओँमे कागज बना कए टैक्सक चोरी करब मोसकिल भए जाएत । संगहि असली मालिकक नाओँमे संपत्तिक निवंधन भेलासँ हेराफेरीक संभावना कमत । निश्चय ई कानून रियल एस्टेट क्षेत्रमे समग्र आत्मविश्वासमे सुधार दिस एकटा प्रगतिगामी प्रयास अछि ।

यद्यपि बेनामी संपत्ति कानूनक धार मजगूत कए देल गेल अछि मुदा असल समस्या तँ ई अछि जे बेनामी संपत्तिक असली मालिकक जानकारी किओ नहि देबए चाहैत अछि । किओ एहि झमेलामे किएक पड़त? विभागसँ  जानकारी देनिहारक नाओँ पता लगा कए बदमाससभ ओकर जानो लए सकैत अछि । एहि डरसँ किओ जानकारी नहि दैत अछि । एहि परिस्थितिसँ बँचबाक हेतु सरकार जानकारी देनिहारकेँ एक कड़ोर धरि इनाम देबाक घोषणा सेहो केलक अछि ।

हालेमे आयकर विभाग द्वारा देल गेल जानकारीक अनुसार बेनामी लेनदेन(निषेध)अधिनियममे नबंबर २०१६मे भेल संशोधनक बाद लगभग सात हजार करोढ़क बेनामी संपत्ति जब्त कएल गेल अछि । एहिसँ ई अनुमान लगाओल जा सकैत अछि जे बेनामी संपत्तिक मालिकसभ एखनो कानूनी प्रकृयासँ बचि रहल छथि। तकर मूल कारण बेनामी संपत्तिक पता लगाएब थिक । जमीन -जायदादक रेकार्ड ऐखनधरि सही तरहसँ उपलव्धो नहि अछि । ताहि हेतु जरूरी अछि जे सभटा रेकार्डक कम्युटरीकरण कएल जाए । भ्रष्टाचारपर तखने अंकुश लागि सकैत अछि जखन कि चल-अचल संपत्तिक छानबीन आसान होइ । बेनामी संपत्तिसँ संवंधित मामलामे ई देखल गेल अछि जे सामान्यतः एहने लोक आयकर विभागक चाङुरमे फँसैत अछि जे कोनो घपला-गोटालामे फँसि गेल हो । बेनामी संपत्तिसँ जुड़ल तमाम लोक राजनीति आ नौकरशाहीमे उच्च स्थान रखैत छथि  आ जेना-तेना अपन नाजायज धनकेँ बेनामी संपत्तिक रूपमे ठेकाना लगाबएमे सफल रहैत छथि ।

बेनामी लेनदेन(निषेध)अधिनियाम  २०१६मे न्यायाधिकरणक स्थापनाक प्रावधान अछि जे एखन धरि कागजेमे समेटल अछि जाहि कारणसँ बेनामी संपत्तिसँ जुड़ल मामलाक शीघ्रतासँ सुनबाइ नहि भए पबैत अछि। ऐखन एखन एहन मामलाक सुनबाइ मनी लांड्रींग निरोधक कानून संबंधी प्राधिकरण करैत हछि जे पहिनहिसँ बहुत व्यस्त अछि ।






रविवार, 20 जनवरी 2019

Let us say ‘sorry!’


Let us say ‘sorry!’



We often heart others by words and actions in our day to day dealings. This complicates our relationship and makes life more difficult. We can easily solve many problems by accepting our mistakes and saying, Sorry! Problem arises when we fail to have a balanced view towards happenings in life arising mainly due to our inability to listen the views of others. Everybody is just trying to express his sense of belongingness to this universe. If we accept that and develop a sense of togetherness, this world can certainly be a far better place to live in.
Whether we are in the office or on road, the situation often takes ugly turn mainly due to lack of tolerance and the other side reacts violently which was never expected. For example, if a person parks his vehicle wrongly near his flat, his neighbour indulges in fierce fighting which may sometimes end in killing of one of the two persons fighting. We can avoid confrontation in most of such cases just by listening peacefully to the grievances of the other side and by keeping self-control. If we have tolerance and keep cool and try to listen the views of the other side, many untoward incidents can be avoided. We may live happily by developing understanding with our neighbours. Confrontation does not lead anywhere. We must learn the art of saying sorry, if we really want to win others.
There are situations when both sides seem to be taking correct positions. In fact, both of them may be right and still their views may be diametrically opposite to each other and entirely conflicting. It is absolutely essential that a middle path is found out in such situations. The question is how to adjust with the situation so that they could live together in harmony without causing any disturbance to others. It is always wise to develop feeling of oneness which can be better expressed by acceptance of mistakes on our part which might have been committed willingly or unwillingly. If that resolves the situation and helps in restoration of peace, one should not hesitate in doing so.
God gave us ability to speak so that we can make others understand our feelings. He also gave us capacity to hear so that we can listen to the views of others. Then he also gave us eyes to be able to see the vast universe in which we are living. This world can certainly be a better place to live in if we make a proper use of these three abilities given to us by God. 
We often apply our minds while confronting day to day problems. That is required also. But there are situations when we need to apply our heart more than the mind and that alone can help sort out differences with others. Many times, we see people fighting for small issues. This happens because their ego gets involved. No one wants to backtrack from his stated position. The result is that even a small issue gets complicated. It is why we often involve third person who may see things independently and try to resolve it by following the middle path. It is quite possible that both the sides could be right in their view but they are unable to find a mutually acceptable solution. That can happen only if we accept others view and try to find out middle path and adjust with the situation.
Happiness in life cannot be achieved only through bookish knowledge. It needs a practical approach to things. We do not lose much rather gain much more if we consider the problems of others with human angle and keep our individual ego aside while doing so. This makes a lot of difference and can bring out unexpected results. We should consider problems of life from others viewpoint. Management of conflict by adopting a reasonable and mutually acceptable solution is key to peaceful living. It is quite possible that we may be looser for the time being but nothing is costly if that gives us peace in life. We cannot enjoy unless we live in peace and harmony with the nears and dears. Can we imagine a situation where we shall be dancing alone? It cannot bring real happiness at all. We always desire to share our moments of joys with others. We can do this only if we maintain cordial relation with them.

गुरुवार, 17 जनवरी 2019

मकान मालिक आ किरायादार


मकान मालिक आ किरायादार





आइ-काल्हिक युगमे लोकक ठेकान निरंतर बदलैत रहैत अछि । नौकरी पेशाक लोकक बदली होइत रहैत अछि । व्यापारीसभ सेहो अपन शहर बदलैत रहैत छथि । गाम-घरक लोक सेहो आस-पासक शहरमे अपन घर बना लेने छथि । जिनकासभकेँ भगवान बेसी  संपदा देने छथिन  से सभ  कै-कैटा घर बनेने रहैत छथि। जाहिर छैक कि फाजिल घरक ओ की करताह,किराया लगेताह वा बंद रखताह । घरकेँ बंद रखनाइ सेहो कोनो लाभकर समाधान नहि अछि ,तथापि किछुगोटे किरायादारक संगे झंझटमे नहि पड़ए चाहैत छथि आ घरकेँ बहुत-बहुत दिन धरि खालिए छोड़ि दैत छथि । ई बात सही अछि जे कै बेर किरायादारक संगे  मकान खाली करेबाक हेतु ,किंवा किराया वसूलीमे दिक्कति भए जाइत अछि मुदा तकर माने तँ ई नहि जे सदिखन सएह होइत रहत । फेर अहाँ जहन गाम-घर छोड़िकए बाहर जाएब तँ किरायाक मकान चाहबे करी,अपन मकान कतए-कतए बनबैत रहब । किरायाक मकान भेटैत रहए आ दुनू पक्षकेँ ठीकसँ समय बितनि ताही उद्यश्यसँ देशभरिमे किराया नियंत्रण कानून बनल अछि आ लागुओ अछि ।
मकान मालिक आ किरायेदारक बीचमे समस्या बहुत पुरान अछि । समस्याक जड़िमे मकानक अभाव आ बढ़ैत किराया अछि । मकान मालिक चाहैत रहैत छथि जे हुनकर किराया बढ़ैत रहनि आ जखन ओ चाहथि मकान खाली भए जानि । कहक माने जे एहन नहि होइक जे किराएदार मकानपर अबैध कब्जा कए लिअए,किराया सेहो नहि दिअए । मुदा किरायदारक समस्या सेहो मानबीय दृष्टिसँ देखब बहुत जरूरी अछि । मकान मालिक बेर-बेर जँ मकान काली करबैत रहताह तँ ओकरा नाना प्रकारक समस्या होएब स्वभाविक। बच्चासभक इसकूल,अपन कार्यालय आ बढ़ैत खर्छा सभमे तालमेल बैसाएब मोसकिल भए जाइत अछि । कानून एहि समस्यासभकेँ समाधान करैत बीचक रस्ता निकालबाक प्रयास करैत अछि । मुदा कै बेर ई संभव नहि भए पबैत अछि । दुनू पक्ष एक-दोसरसँ सामंजस्य नहि बैसा पबैत छथि आ मोकदमाबाजी धरि बात चलि जाइत अछि । जँ मकान मालिक दबंग अछि तँ जबरदस्ती सेहो करैत अछि । बदमासकेँ लगा कए किरायेदारक समान कै बेर बाहर फेकि देल जाइत अछि ,आदि,आदि ।
महानगर जेना कोलकाता,मुम्बइ, दिल्लीमे हालत आओर बहुत खराब अछि । कैटा किरायेदार मुख्य व्यापारिक स्थानमे पाँच-दस रुपया किराया दैत छथि आ पचासो सालसँ अड़ल छथि,मकान खाली नहि कए रहल छथि। मकानक हालत जर्जर भए चुकल अछि । मकान मालिक मोकदमा ठोकने छथि । मुदा तैँ की? किरायेदारसभ आपसमे संगठन बना कए तकर प्रतिवाद करैत रहैत छथि,मुदा मकान खाली हेबाक कोनो संभावना नहि लगैत अछि । जौँ ओ मकानसभ आइ-काल्हि किरायापर लेल जाएत तँ किराया लाखोमे भए सकैत अछि । उदाहरणस्वरुप जँ कनाटप्लेस दिल्लीक कोनो दोकान साबिक किरायापर चलि रहल अछि तँ किओ किएक खाली करत? जँ ओ ओहिठाम किरायापर मकान वा दोकान आब लेबए जाएत तँ किराया कतेक बढ़ि जाएत,सोचबो मोसकिल अछि । आनो महानगरसभमे तेहने हालत अछि । अस्तु,मकान मालिकसभक चिंता सेहो वाजिब अछि । आखिर लोक संपत्तिकेँ एहिलेल तँ नहि कीनलक जे ओकरा एहि तरहक घनचक्करमे गमा देल जाए? मुदा उपाय की अछि?
जीवनमे भोजन,वस्त्र,आवास मौलिक आवश्यकता मानल जाइत अछि । भोजन.वस्त्रक बाद रहए लेल घर तँ चाहबे करी । लोको पुछैत अछि जे अपनेक कोन गाम घर भेल? माने जे घर आदमीक परिचय थिक। ग्रामीण परिवेशमे तँ अखनो घर माने अपन घर बूझल जाइत छैक ,कारण ओहिठाम किरायाक मकान ने उपलव्ध होइत अछि आ ने लोक लैत अछि । गाममे लोकक पुस्तक-पुस्त  गुजरि जाइत छैक । एकहिठाम लोक जीवन भरि रहि जाइत अछि । पहिलुका समयमे ई बात सही छलैक । मुदा आब परिस्थिति बदलि गेल अछि । पढ़ाइ-लिखाइ,नौकरी,व्यापार हेतु लोक गाम-घरसँ बाहर होइत छथि । ई संभव नहि थिक जे सभ शहरमे अहाँ अपन घर बनेने फिरी । तैँ किरायापर मकान लेब जरुरी भए जाइत अछि । 
छोट शहरमे किरायाक मकान आशानीसँ भेटि जाइत अछि,किराया सेहो कम होइत छैक आ मकान मालिक  जखन-तखन खाली करए सेहो नहि कहैत छैक । मुदा पैघ शहरमे खास कए महानगरमे हालत  दोसर अछि । मुम्बइमे तँ ई हाल अछि जे एकहि कोठरीमे कतेको गोटे कहुनाक किरायापर गुजर करैत छथि । ऊपरसँ मकान मालिककेँ पगड़ी सेहो दिऔक,मासे-मासे किराया तँ चाहबे करी । रहि-रहि कए मकान मालिक दुलत्ती मारिते रहत,जाहिसँ अहाँ ई नहि बिसरि जाइ जे मकान किरायापर लेल गेल अछि आ किछुदिनक बाद खाली करहि पड़त । अस्तु,किरायेदारक हालत कै बेर बहुत  चिंताजनक भए जाइत अछि । मुदा समाधान की अछि? सभ आदमी मकान नहि कीनि सकैत छथि । किरायापर मकान लेनाइ एकटा मजबूरी रहैत छैक । एहि विषयमे कतेकोबेर न्यायलयमे मामिला कएल गेल । एहि विषयपर उच्चतम न्यायलय पर्यंत कतेको फैसला देलक । ओहिसभसँ किछु सुधारो भेलैक अछि।

मकान मालिक आ किरायादारमे झंझट सामान्यतः होइते छैक दूइएटा बात लेल :-१.किराया बढ़बए हेतु,२.मकान खाली करेबाक हेतु । आओर छोट-मोट समस्यासभ सेहो भए सकैत छैक जेना मकानकेँ मरम्मति केनाइ,किराया बकिऔता भए गेनाइ ,आदि-आदि । एहि समस्यासभसँ निपटए हेतु दुनू पक्ष मकान किरायापर लेबए- देबएसँ पहिनहि आपसमे किरायाक एकरारनामा बनबैत छथि । जौँ लीजक अवधि सालभरिसँ कम अछि तँ ओकरा निवंधित करबाक जरुरी नहि अछि अन्यथा एकर निवंधन सब-रजिष्ट्रारक ओहिठाम कराएब कानूनी बाध्यता अछि । जौँ किरायाक एकरारनामा बनल अछि तँ लीजक तय अवधिमे किरायाक ओहि मकानक सभ विषय-वस्तु तकरे अनुसार चलत चाहे ओ किराया बढ़ेबाक गप्प होइक,मकान खाली करेबाक गप्प होइक वा किरायाक भुगतान करब होइक । जँ किरायाक एकरारनामा नहि बनल अछि ,किंवा लीजक अवधि बीति गेल अछि तँ मकान मालिक आ किरायेदारक बीचमे स्थानीय सरकार द्वारा बनाओल गेल किराया नियंत्रण कानूनक अनुसार विवादक निर्णय होएत ।
किरायेदारक हेतु ई बहुत जरुरी अछि जे ओ तय किराया समयसँ मकान मालिककेँ दैत रहथि । किराया नहि देनाइए अपना-आपमे मकान खाली करेबाक हेतु प्रयाप्त कारण भए सकैत अछि । यदि मकान मालिक किराया नहि लैत छथि तँ किराया मुद्रादेशसँ पठाओल जा सकैत अछि । यदि सेहो संभव नहि होइत अछि तँ किराया नियंत्रण अधिकारीक ओहिठाम आवेदन दए किराया जमा करा देबाक चाही । सामान्यतः एहन परिस्थिति तखने होइत अछि जखन कि मकान मालिक मकान खाली कराबए चाहैत छथि ।
जँ मकान मालिक आ किरायेदारक विवाद आपसमे नहि सोझराइत अछि तँ दुनूमे सँ किओ किराया नियंत्रण अधिकारीक पास आवेदन दए अपन समस्या राखि सकैत छथि । उदाहरणस्वरुप,जँ मकान मालिक मकान खाली करबए चाहैत छथि तँ तकर कारण दैत मकान खाली करबा सकैत छथ । सामान्यतः मकान खाली करेबाक हेतु प्रमुख कारण मे किराया नहि देब,मकान मालिककेँ स्वयं मकानक आवश्यकता भए सकैत अछि। जँ किरायेदारकेँ अपन मकान छनि  तँ किरायाक मकान काली करेबाक ओ मजगूत आधार बनि जाइत अछि । मकान मालिक किराया निर्धारणक हेतु सेहो ओतहि अर्जी दए सकैत छथि ।
देश भरिमे सभ राज्य अपन-अपन किराया नियंत्रण कानून बनओने अछि । कैटा राज्यमे ऐहि कानूनक अधीन आबएबला मकानक किरायाक सीमा तय कएल अछि । संगहि राज्य वा केन्द्र सरकार ,स्थानीय निकायक मकानसभ सेहो एहि कानूनसँ बाहर अछि । कैटा राज्यमे नव निर्मित मकान किंवा धर्मार्थ कार्यरत संस्थाक मकान सेहो एहि कानूनक अधिकार क्षेत्रसँ बाहर राखल गेल अछि । विभिन्न राज्यक कानूनमे समरूपता होइक जाहिसँ ई कानून सर्वग्राही भए सकए आ सामान्य लोक एकर सुविधा सरलतासँ लए सकए,ताहि हेतु १९९२मे संसद द्वारा मॉडल किराया नियंत्रण कानून पास कएल गेल जे सब राज्यक लेल छल । मॉडल अधिनियममे किरायेदारीक विरासतपर मौजूदा प्रावधानमे सँ किछुकेँ संशोधित करबाक प्रस्ताव छल आओर किरायाकएकटा सीमा सेहो निर्धारित कएल गेल जाहिसँ बेसी भेलापर किराया नियंत्रण लागू नहि होएत। तकरबाद दिल्लीमे ओहि आधारपर १९९७मे कानून बनबो कएल जे स्थानीय व्यापारी वर्गक विरोधक कारण लागू नहि कएल गेल।
मकान मालिकक आ किरायेदारक बीच संवंध मधुर रहए आ कोनो मतभेद भेलापर सुगमतासँ तकर समाधान भए जाए ताहि हेति ई आवश्यक अछि जे दुनू पक्ष मकानकेँ किरायादारी प्रारंभ हेबासँ पहिने स्पष्ट प्रावधानक संगे किरायाक लीज एग्रीमेन्ट( किरायाक एकरारनामा) उचित मूल्यक स्टांप पेपरपर हस्ताक्षरित करथि। ओहिमे सभ बात जेना किराया कतेक होएत,मकान कतेक दिन किरायापर रहत,मकानक मरम्मति केना की हएत, मकान कहिआ खाली करए पड़त,स्पषटतासँ लिखल रहए । जौँ सालभरिसँ अधिक हेतु किरयापर मकान लेल जाइत अछि तँ एकरारनामाक निवंधन सेहो कराएब जरुरी अछि । एहिमे दुनू पक्षकेँ हितक समाधान भए जाइत अछि । अस्तु, मकान किराया लेबए वा देबएसँ पूरव उपरोक्त बातसभकेँ ध्यानमे रखैत कानून सम्मत किरायाक एकरारनामा बना लेबाक चाही आ तकर अनुवंधकेँ दुनू पक्षकेँ पालन करैत रहक चाही जाहिसँ सुख- शांति बनल रहए । ई सभ बात जँ ठीकसँ कएल गेल अछि तँ मकानकेँ किरायापर देबामे कोनो हर्जा नहि छैक।