सरोजिनीनगरसँ नॉर्थ ब्लॉक
१३ फरवरी १९८७क कर्मचारी चयन
आयोगक इलाहाबाद स्थित कार्यालयसँ सेवा मुक्तिक बाद हम ३१ मार्च १९८७ तक अवकाशपर
चलि गेलौं। इलाहाबादसँ दिल्ली स्थानान्तरणक बेवस्था हेतु उपरोक्त अवकाश जरूरी
छल। परिवारकेँ, सामानकेँ, दिल्लीमे डेराकेँ, आदि-आदि तरहक बेवस्था
करक छल।
बाबूकेँ गाम गेला पछाइत हमर
पत्नी आ दुनू बच्चा सेहो किछु दिनक हेतु हमर ससुरक डेरापर मधुबनी चल गेली।
इलाहाबादसँ ट्रकपर घरेलू समान सबहक संगे अपनो दिल्ली विदा भेलौं। संगमे कार्यालयक
एकटा कर्मचारी सेहो रहैथ। दिल्लीमे डेरा पहिनेसँ ठीक रहए, जनकपुरीक C4E बस स्टॉपसँ आगाँ
डावरी भोरसँ कनीक आगाँ वैशाली कालोनीमे।
ओइ कालोनीमे बिहार-युपीक बहुत रास लोक
घर बनौने अछि। इलाहाबाद कर्मचारी चयन आयोगमे पूर्वमे कार्यरत एक अधिकारीक मकान
सेहो ओहीठाम छल। हुनके माध्यमसँ हमरा ओ डेरा भेटल छल। ओइठाम समान सभ व्यवस्थित
कए हम फेर इलाहाबाद चल आएल रही। कएटा छुटल काज सभ छल। कार्यालयसँ सेवा-पुस्तिका, वेतन प्रमाण पत्र
आदि निर्गत करेबाक छल।
हमर स्थानान्तरणक बादो हमर
विरोधी अधिकारी तंग करबाक उद्देश्यसँ वेतन प्रमाण पत्र निर्गत करैमे देरी करैत
रहलाह आ जखन हम इलाहाबादसँ दिल्ली हेतु प्रयागराज एक्सप्रेसमे बैस गेल रही, तखन श्री संजीव सिन्हाजीक
हाथे ओ हमरा प्राप्त भऽ सकल।
इलाहाबादसँ दिल्लीक स्थानान्तरण
हमरा लेल जबरदस्त आघात छल। ओइठाम एकटा सुसंस्कृत समाज छल। जीवन अभावक बाबजूद
एकटा लीकपर चलि रहल छल। बच्चा सभ छोट-छोट छल, सेहो पोसा रहल छल। छोटका बच्चा
तँ मात्र पौने दू सालक रहैथ। मुदा अपना हाथमे किछु नहि रहि गेल छल। तमाम प्रयासक
बाबजूद दिल्ली स्थानान्तरण भऽ गेल तँए जेबाक रहबे करए।
डॉ. जयकान्त मिश्रजी सँ ऐ
विषयमे विचार विमर्श कएल। ओ कहलैन जे थोड़ेक दिन हेतु चल जाउ आ फेर बदली करा कऽ
आपस चलि आएब।
डॉ. गंगानाथ झा संस्कृत स्ंस्थानमे
कएटा मैथिल सबहक परिचित छला, हुनको सभसँ भेँट-घाँट कएल। गंगामे स्नान कएल। एवम्
ओइठामक हनुमानजीक दर्शन केलौं आ इलाहाबादसँ विदा भेलौं।
हमरा दिल्ली एला पछाइत ओइ
कार्यालयसँ हमर एकटा घोर-विरोधी अधिकारीक सेहो स्थानान्तरण किछु समय बाद दिल्लीए
भऽ गेल। ओ सभ प्रयास कऽ फेर इलाहाबाद आपस भेला मुदा हम दोबारा ओही कार्यालयमे नहि
गेलौं।
इलाहाबादसँ दिल्ली स्थानान्तरणसँ
किछु दिन पूर्व नवममफोड़गंज स्थित हमर मकान मालिक (स्व.वल्लभ शरणजी) कार्यालय
आएल रहैथ। हुनकर मकान खाली भऽ गेल रहैन। किरायेदार तकैत रहैथ। सभसँ ऊपरक कोठरीमे
हम रहैत रही। तेकर निच्चाँमे दू कोठरीक फ्लैट रहइ। हमरा ओ फ्लैट बहुत पसिन्न छल, परन्तु जखन हमरा
जरूरत छल, तखन ओ खाली नहि छल आ
जखन खाली भैलै तखन मकान मालिक दौड़ल हमरा लग आएल रहैथ, ताबे हम कार्यालयसँ सटले
धोबीक मकान ६, नया कटरामे आबि गेल
रही। चूकी हमर स्थानान्तरण निकट छल, अस्तु आब बदलबाक औचित्य नहि छल। बल्लभ शरणजी से
सुनि उदास भऽ गेल रहैथ जे हम इलाहाबादसँ जा रहल छी।
२ अप्रैल १९८७ क हम दिल्ली
गृह मंत्रालयमे पदभार ग्रहण कएल। गृह मंत्रालय बड़ीटा सवर्ग छेलै आ ओइमे केतेको
प्रमुख मंत्रालय विभाग जेना प्रधान मंत्री कार्यालय, राजभाषा विभाग, महापंजीयक कार्यालय, कार्मिक एवम्
प्रशासनिक सुधार विभाग आदि-आदि केतेको विभागक पदस्थापना होइत छल। हम ओइठाम नव रही, कोनो खास जोगार नहि
रहए,तँए भगवानक भरोसे
रही। जे हेतै, जेतए हेतै, ठीके हेतइ।
नार्थ ब्लॉकमे एक दिन अहिना
टहलैत रही, कोनो काज नहि भेटल
छल, तँए पदस्थापनाक
प्रतीक्षामे रही,
कि एकटा नामपट्टपर डॉ. भट्टाचार्यक नाम देखलिऐ। डॉ. भट्टाचार्य कर्मचारी चयन आयोगक
मुख्यालयमे पहिने परीक्षा नियंत्रक रहैथ। इलाहाबाद पदस्थापनाक क्रममे हमरा
हुनकासँ सन् १९७७ क अन्तमे भेँट भेल रहए। हुनकर कक्षमे गेलौं तँ ओ तुरंत चीन्हि
गेला। सभ बात बुझि ओ तुरन्त बिना कोनो आग्रहमे अवर सचिव (प्रशासन)केँ फोन कऽ कऽ
हमरा नीक ठाम पदस्थापित करय कहलखिन आ हमरा हुनकासँ भेँट करबाक हेतु कहला।
अवर सचिव (प्रशासन) महोदयसँ
भेँट करए गेलौं तँ ओ अग्निश्च वायुश्च भेल रहैथ। हुनक कहक माने जे हम पदस्थापन हेतु
हुनकापर सिफारिशक दवाब बना रहल छी।
“है, अब वही दउ्तर चलायेगे क्या?”
औ बाबू तेना ओ गरजय-फरजय लगला जे हम तँ गुम पड़ि
गेलौं। हुनकर कक्षसँ शीघ्रे बाहर भऽ गेलौं आ अचताइत-पचताइत घर आपस चलि एलौं। एक-दू
दिनक बाद आदेश जारी भेल। अपना हिसाबे ओ हमरा सभसँ खराप पोस्टिंग दऽ देने छला।
आदेश लेला बाद एकाधटा परिचित लोक सभसँ विचार विमर्श कएल आ तुरन्त ओही दिन
दुपहरियाक बाद माने २७ अप्रैल १९८७क जे.आइ.सी. (Joint intelligence Committee)मे पदभार ग्रहण कएल। संयोग
एहेन भेल जे ओही कार्यालयक दू सालक हमर नौकरी जीवनक सर्व श्रेष्ठ काल सिद्ध भेल।
ओइठाम हम शान्तिपूर्वक, पूरा इज्जतसँ नौकरी कऽ सकलौं।
जे.आइ.सी काबीना सचिवालयक
अधीनकाज करैत छल। श्री खाण्डेलबाल आइ.पी.एस. ओकर अध्यक्ष छला। श्री विनय कारक आइ.पी.एस.
सचिव रहैथ। ओइमे उच्च अधिकारीक भरमार छल। विभिन्न सेवा सबहक तरह-तरहक जानकारीबला
बेकती सभ ओइठाम छल। हमर समय बड़ा नीकसँ कटए लगल।
ओइठाम किछु दिन प्रशासन अनुभागमे
पोस्टिंग छल। एक दिन व्रिगेडियर रैंकक अधिकारीकेँ अपन अधीनस्थ अनुभाग अधिकारीसँ
झगड़ा भऽ गेलैन। ओ ओकरा कोर्ट मार्शल करबाक हेतु अवर सचिव (प्रशासन)केँ कहलखिन, संगे ओकरा गिरफ्तार
करबाक हेतु पुलिसकेँ सेहो बजा लेला। अवर सचिव (प्रशासन) महोदय बड़ मुश्किलसँ
व्रिगेडियर साहैबकेँ बुझौलखिन जे फौजक नियम सिविलमे लागू नहि होइ छइ। ऐठाम कोर्ट
मार्शल नहि होइ छइ। आ ओ अनुभाग अधिकारी यैहले-वैहले, ओइ विभागसँ खसैक गेल। तेकर
बाद व्रिगेडियर साहैबक अधीन पद खाली भऽ गेल रहै मुदा कियो ओइठाम जाए नइ चाहइ। अन्ततोगत्वा
हमर पोस्टिंग हुनका अन्दरमे कऽ देल गेल। ओना, शुरूमे हमरो थोड़ चिन्ता
जरूर भेल मुदा क्रमश: सभ किछु अनुकूल भऽ गेल। व्रिगेडियर साहैब गोरखा रेजिमेन्टक छला। गोर-नार छह
फीट नाम, चाकर माथ करगर
कारी-कारी मोछ, अद्भुत बेकतीत्वक
लोक छला व्रिगेडियर साहैब। हम हुनका लग पहुँचते फौजी स्टाइलमे सैल्यूट मारैत
छेलौं कि हुनकर प्रसन्नताक ठेकान नहि रहैत छल। मोछपर हाथ फेरैत मन्द-मन्द मधुर-मधुर मुस्की दैत ओ अपन दहिना हाथसँ बैसबाक इशारा करैथ। कएटा
पैघ-पैघ फौजी अफसर सभ ठाढ़े रहि जाइ छला, ओ सभ हमरा बैसल देख
छगुन्तामे पड़ल रहैथ,
मुदा आदेश तँ आदेश होइत अछि किने, तहूमे फौजी अफसरक।
हम एन.सी.सी.क प्रशिक्षण केने
रही। वएह ऐठाम काज आबि रहल छल। क्रमश: हमरा ओ तेतेक मानए लगला जे कोनो हालतमे अपना
ओइठामसँ बदली नहि होमए दैथ। यद्यपि ओ बहुत शानदार आदमी छला, मुदा हमरा देल गेल
काज बहुत संवेदनशील छल। तँए डर होइत छल जे कहीं किछु लफड़ा ने भऽ जाइक। कएबेर
बदलीक मौका सभ सेहो अबै मुदा व्रिगेडियर साहैब अड़ि जाइत रहथिन।
ओहीठाम भागवत झाजीक माझिल
पुत्र श्री यशोवर्द्धन आजाद–आइ.पी.एस. सँ हमर परिचय भेल। ओ मैथिल प्रेमी आ स्वभावसँ
मृदुल छला। केतेको बेर हमरासँ अन्तरंग गप सेहो करैथ एवम् मौकापर अचूक मदैत तँ
करबे करैथ। हुनकासँ जे सम्पर्क भेल से अद्यावधि बनल अछि।
ओइ कार्यालयमे अध्यक्ष
महोदयक आप्त सचिव स्व. आर.के. सक्सेनाजी अद्भुत बेकती छला। कर्मठता तँ जेना
कुटि-कुटि कऽ भरल छेलैन। पातर-छीतर देह, फुर्तीसँ दन-दन करैत अभूतपूर्व तजुरबेकार बेकती छला-
सक्सेनाजी। कोनो मामलामे हुनकर सलाह बेहद सटीक होइत छल। क्रमश: ओ हमर घनिष्ठ
मित्र भऽ गेला आ ताजीवन सम्पर्क बनौने रहला।
सक्सेनाजी कार्यालय समयक
पछाइत स्व. वी.के. नेहरूजी (स्व.जवाहरलाल नेहरूजीक पितियौत) आप्त सचिवक काज
सेहो करैत छला। बादमे जखन वी.के. नेहरूजी जम्मू काश्मीरक राज्यपाल भेला तँ ओ हुनकर
आप्त सचिव (पूर्णकालिक) भऽ गेला। सेवाक प्रति निष्ठा हुनकर तेहेन जबरदस्त छल जे
नोकरीसँ सेवा निवृत्तिक बादो ओ वी.के. नेहरूजीसँ जुड़ल रहला। हुनका संगे गर्मीमे
हिमाचल प्रदेशक कशौलीमे रहैथ आ जाड़मे दिल्ली। वी.के. नेहरूजीक परिवारक ओ अभिन्न
अंग भऽ गेल छला आ हुनकर मृत्युक बाद हुनक पत्नीक सचिवक रूपमे अन्त-अन्त तक काज करैत
रहला। सही मायनेमे ओ कहियो सेवा निवृत्त नहि भेला।
सक्सेनाजी जखन कखनो दिल्ली
आबैथ तँ हमरा अबस्स फोन करैथ। जाबे तनगर छला तँ कएक बेर कार्यालय, घर आबि कऽ भेँट
करैथ। छोट-छोट बातक धियान सेहो रखैथ। सेवा निवृत्तिक बादो हम दिल्लीए रही से
हुनकर परामर्श छल। से परामर्श कारगर छल आ हमरा परिवारोमे सभकेँ पसिन्न छेलइ।
दू साल पर्व हुनकर ज्येष्ठ
पुत्रीक फोन आएल। सक्सेनाजी स्वर्गवासी भऽ गेल रहैथ। हुनकर श्रर्द्धांजलि सभामे
बहुत रास लोक सभ भाग लेलैथ। एक साधारण परिवेशसँ उठि कऽ जीवनमे बहुत आगू बढ़ला, अपन परिवारकेँ सभ
तरहेँ सम्पन्न छोड़ि गेला। हमरा लेल ओ सभ दिन प्रेरणाक श्रोत्र रहला। कहबी छै- There are People
in Life whom you forget with time, but
There are very few peple
with whom you forget time. सक्सेनाजी पर ई पूर्णत: लागू होइत छल।
दिल्लीमे एलाक एक मासक बाद
हमरा पुष्प विहार सेक्टर सातमे सरकारी आवास भेट गेल। ई एकटा बड़का राहत छल।
सरकारी मकान भेटलाक बाद जे हमरा आनन्द भेल एकर वर्णन कठिन अछि। बड़ीटा ताला कीनि घरमे लगेलौं।
प्रथम तलपर अवस्थित ई घर पहिलबेर आबंटित भेल छल तँए निर्माण कालक कएटा अवशेष
यत्र-कुत्र पड़ल छल। दिन-राति एक-एक कऽ स्वयं ओकर सफाइ केलौं। बिजली लगाबक हेतु
अन्हेरिया मोड़ स्थित बिजलीक कार्यालयक कएक चक्कर लगाबए पड़ल। क्रमश: ओ कालोनी
गुल्जार भय गेल। कए गोटा परिचित भऽ गेला। तइमे सीतामढ़ी तरफक एकटा मैथिल परिवार
सेहो छल। बादमे ओ सभ हमर स्कूटर गैरेज लेबए चाहला, से नहि भेलापर नाराज भऽ गेला जे नाराजे रहि गेला।
दूध, तरकारी एवम् दैनिक आवश्यकताक
आन-आन वतु सभ आसे-पास भेट जाइत छल। तँए परिवार आबि गेलाक बाद घरक बेवस्थाफेरसँ
लीकपर आबि गेल।
पुष्प विहारक ऐ डेरापर एक
बेर डॉ. जयकान्त मिश्रजीक संग प्रो. सुरेन्द्र झा सुमन आएल रहैथ। ओ सभ दिल्ली
मैथिलीक यूजीसी परीक्षाक हेतु प्रश्न पत्र बनबए आएल रहैथ। (ई बात सन् १९८७ थिक)
ओही क्रममे हमरा हुनका सभसँ पहिने हुनका लोकनिक कार्यस्थनपर भेँट भेल आ तेकर बाद
हमर आग्रहपर सभ गोटे हमर डेरा एला। ओही राति हुनका सभकेँ घुमती ट्रेन रहैन।
पुष्प विहारक हमर डेराक
सामने राव (RAW) मे कार्यरत
तमीलनाडूक बूढ़ा छला) ओ बेहद सफाईकेँ पसन्द केनिहार बेकती रहैथ। सेवा निवृत्तिक
बाद एकाधबेर मलाई मन्दिरमे ओ भेँट भऽ जाथि।
पुष्प विहारसँ केन्द्रीय
सचिवालय आबक हेतु ६८०,
५८०, ५८१ नम्बरक बस भेटै
छेलइ। ओइ बससँ पटेल भवनक आसपास बस पड़ावपर उतैर कार्यालय अबैमे बहुत सुविधा छेलइ।
पुष्प विहार अपेक्षाकृत
कार्यालयसँ दूर छल। हमर ज्येष्ठ पुत्र भाष्कर सरोजिनीनगरक विद्यालयमे पढ़ै छला।
अस्तु विचार कएल जे
सरोनिनीनगरमे डेरा परिवर्तन करौल जाए। ऐ काजमे श्री विजय करणजी बहुत मदैत केलाह। ओ
सिफारशी पत्र लिखलखिन जेकर जवाबमे तीनसँ चारि दिनक अन्दर हमरा सरोजिनीनगरक इ एफ ६४३ संख्याक सरकारी
फ्लैट आवंटित भऽ गेल। हम सभ ने यएह देखलौं आ वएह देखलौं आ तुरन्त पुष्प विहारसँ
सरोजिनीनगरक आवासपर आबि गेलौं।
श्री विजय करणजीक ऐ उपकारसँ
हमरा बहुत सहुलियत भेल। भास्करक स्कूल एकदम घरे लग भऽ गेलैन। कार्यालयो लग भऽ गेल।
घरसँ सटले ५० नम्बरक बस चलै छेलै जे ९ बजैसँ पाँच मिनट पूर्व नॉर्थ ब्लॉकमे सटि
जाइत छल।
विजय करणजी थोड़े दिनक बाद
दिल्लीक पुलिस आयुक्त आ तेकर बाद सी.बी.आइ.क निदेशक भेला। तखनो ओ हमरा नॉर्थ
ब्लॉकमे कएक बेर भेट जाइत छला आ सीढ़ीपर ठाढ़ भऽ बहुत सिनेहसँ गप करैथ।
जे.आइ.सी.मे कार्य रहैत एकटा
महत्वपूर्ण घटना क्रममे मधुबनीमे जमीन कीनि मकान बनाबक निर्णय छल। मधुबनीमे हमर ससुरक
घर छलनि। गाम आ सासुर दुनू
लगमे छल आ सभसँ बेसी बात छल हमर गामसँ लगाव। अस्तु तमाम लोकक परामर्शक उपेक्षा
कए हम ई काज कएल। ओइ समय जे.आइ.सी.क अवर सचिव हमरा बहुत बुझेला अपितु अपन
संसाइटीमे एकटा फ्लैट दियाबक प्रस्ताव सेहो देलैन। मुदा हम हुनका कहलिऐन-
“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि
गरियसी।”
मधुबनीमे ओ इलाका एकदम बीरान
छल। लगेमे मुर्दा सभ फेकल रहैत छल। स्टेडियम बनल छल मुदा ओइठाम तक जेबाक हेतु
पक्का रस्ता नइ छेलइ। आब जे दृश्य ओइठामक अछि तेकर तँ ओइ समयमे कल्पनो नहि कएल
जा सकैत छल। ओही स्थानपर सरकारसँ गृह ऋृण लए घर बनाएब एकटा विकट निर्णय छल।
मधुबनीक घरक निर्माणमे कतेक
परिश्रम भेल तेकर वर्णन कठिन। एकदम बीरान जगहपर सामान सबहक रखवारी हेतु हमरा गामक
एकटा चौकीदार छला- मांगनि। सोंटा लगबैथ आ राति भरि कीर्तन करैथ जइसँ डर भागल रहैन।
हमर सार, ममिया ससुर, ससुर, सासु आ पत्नी सभ कियो
ऐ प्रयासमे सहभागी रहलैथ।
मधुबनीक मकानक पहिल किरायेदार
माप-तौल विभाग, बिहार सरकार छल। ओइ
समय मकान अधूरा छल। ग्रील नहि लागल छेलै, देवाल सभमे सीमेन्ट नहि लागल छल। बिजलियो नहि छल।
तथापि १५०० रूपैआ मासिक किरायापर मकान लागि गेल। एक हिसाबे ठीके छल, कारण मकानक ऋृणक
कटौतीसँ मासिक बजट गड़बड़ा गेल रहए। किरायेदार आबि तँ गेल मुदा ओ किराया देबाक
नामे ने लैत छल। बिहार सरकारक तय प्रक्रियाक अनुसार मधुबनी कचहरीसँ किराया
निर्धारण जरूरी छल,
जइमे बहुत बिलंम भऽ रहल छेलइ। हारि कऽ किशोर कुणालजीकेँ कहलिऐन। ओ अपना स्तरसँ
प्रयास कए किराया तय करबाक प्रक्रियामे गति अनलैन। मुदा मधुबनीक सम्बन्धित
अधिकारी ऐ बातसँ तमसा किराया १५०० रूपैआ मासिकसँ घटा कऽ ९७० रूपैआ प्रति मासक तय कय देलक, जइसँ हमरा बहुत घाटा
भेल। जे भेल से भेल,
मुदा लगभग अढ़ाइ बर्खक बाद एकमुस्त किराया भेटल।
माप-तौल विभागसँ मकान खाली
करेबाक हेतु तत्कालीन बिहारक मुख्य सचिव वसाक साहैबकेँ पत्र लिखने रहिऐन। ओ गृह
मंत्रालयमे रहैथ आ हमरा जानैत छला। हुनकर आदेशसँ आ मधुबनीक जिलाधीशक सहयोगसँ लगभग साढ़े तीन
सालक बाद ओ मकान खाली भेल। बुर्जिआ साहैब मधुबनीक कलक्टर छला आ तेकर बाद गृह मंत्रालयमे
पदस्थापित भेला,
जइ दौरान हमरा हुनकासँ सम्पर्क भेल। ओ ऐ काजमे बहुत मदैत केलाह। अन्तत्वोगत्वा
मकान खाली भऽ गेल।
लगभग दू साल तक पटेल भवन स्थित
जे.आइ.सी.मे हम कार्यरत रहलौं। एक-दू बेर अध्यक्षजीसँ सामना भेल। ओ खूँखार आ
भयानक रूपसँ तमसाह लोक छला।
“छोटी छोटी बातोंपर ध्यान
दिया करो..।”
एक बेर एतबे चिकरैत रहि गेला।
असलमे हमर कार्ज बहुत संवेदनशील छल। सरकारमे सर्वोच्च स्थानपर ओ कागज सभ पठौल
जाइत छल तँए कनिक्को अशुद्धि भेलापर सभकेँ बहुत परेशानी भऽ जाइत छेलइ।
गृह मंत्रालयसँ डेस्क
अधिकारीमे हमर चयनक पत्र एला बाद जे.आइ.सी.मे उठा-पटक होमए लगल। व्रिगेडियर
साहैबकेँ ई बिल्कुल नापसिन रहैन। अपना भरि हमर पोस्टिंगकेँ रोकबाक पूरा प्रयासो
केलाह तथापि हम ओइठामसँ कार्य मुक्त भऽ ९ दिसम्बर १९८८ क गृह मंत्रालयमे पदभार
ग्रहण कऽ लेलौं।
गृह मंत्रालयमे हमर पोस्टिंग
डेस्क अधिकारीक रूपमे आंतरिक वित्त विभाग (IFD) मे भेल जेकर मुखिया पश्चिम
बंगाल काडरक आइ.ए.एस. अधिकारी स्व. के.एम. लाल छला। ओ अद्भुत मिलनसार, मधुर भाषी एवम्
शान्तप्रिय बेकती छला। हुनका अन्दरमे वित्त विभागक दू डिवीजन छल। एकक प्रमुख
ए.कं. हुई, निदेशक छला। हम
हुनके अन्दरमे कार्यभार ग्रहण कएल। गृह मंत्रालयमे रहितो आन्तरिक वित्त विभागक काजकेँ किछु स्वायत्ता छल। कएटा मामलामे फाइल वित्त मंत्रालय पठौल जाइत छल। हमरा लेल ओइठाम काज करब एकटा नवीन अनुभव छल। ऐठामक काज आन कार्यालय सभसँ भिन्न छल। विभिन्न विभागक नाना प्रकारक फाइलकेँ वित्तीय दृष्टिकोणसँ जाँच-पड़ताल करक रहैत छल। ओइसँ बहुत रास नव-नव जानकारी प्राप्त होइत रहै छल। नव-नव लोक सभसँ सम्पर्क तँ होइते रहै छल।
हुई साहैब केन्द्रीय सचिवालय
सेवाक अधिकारी छला। कॉफी खूब पीबैत छला। जहाँ ऑफिस लागल कि कॉफी शुरू। सभ अधीनस्थ
अधिकारीकेँ बजा लैथ आ कॉफी आबि जाइत । १ रूपैआमे एक कप कॉफी{प्रायः हुनका कााफीक दाम नाहि लागैत छलन्हि)। दिन भरिमे सात-आठ
बेर कॉफी भऽ जाइत छल। भोरे कॉफी, दुपहरियामे कॉफी, बीचमे कियो अतिथि आबि गेल
तखन तँ कॉफी चाहबे करी। भोरक कीमती समय कॉफी आ गप-सर्रकामे चल जाइत छल, जेकर प्रतिकूल
प्रभाव काजपर पड़इ।
हुई साहैबक काज करबाक तरीका
अजूबा छल। अपना अन्दरक सभ अधिकारीकेँ बजा लैथ, कॉफी पियाबैथ आ एक-दोसरकेँ
फाइल पढय दैथ। दोसरक गलती
निकालबामे तँ सभ माहिर होइत अछि, से कारगर होइत छल। हुई साहैब वएह त्रुटि अपन हस्ताक्षरसँ
लिखि फाइल सम्बन्धित विभागकेँ लौटा दैत छला। सौंसे गृह मंत्रालयमे हुई साहैबक
काजक डंका बजैत छल। तेकर पाछू हुनकर यएह कार्य प्रणाली छल।
सरोजिनीनगर दिल्लीक प्रमुख
स्थान अछि। ऐठाम लगभग सभ वस्तुक दोकान सभ अछि। स्कूल सबहक तँ जेना जखीरा अछि। बंगाली
सबहक अलग बंगाली स्कूल छइ। रेलबेक आरक्षण काउन्टर, सी.जी.एच.एस.क चिकित्सालय, पोस्ट ऑफिस, मदर डेयरी आदि-आदि
सुविधासँ भरल अछि ई मोहल्ला। सरकारी अधिकारीक हेतु निर्मित फ्लैट सभ साइजमे छोट
मुदा बहुत उपयोगी अछि। सक्सेनाजी हमरा सरोजिनीनगरक फ्लैटक प्रयास करबाक हेतु
प्रेरित केने रहैथ। ओ स्वयं ओइ समयमे सरोजिनीनगरेमे रहैत छला। फ्लैट सबहक आगूमे
खाली जगह छल जइमे बच्चा सभ खेलाइत छला। हमर पड़ोसी एक तरफ राव साहैब (सी.बी.आइ.मे
कार्यरत्) छला। दोसर दिस पहिने एकटा वृद्ध महिला छेली। हुनका गेलाक बाद रक्षा
मंत्रालयमे कार्यरत मल्लिक साहैब छला। मल्लिक साहैब बहुत समाजिक आदमी छला। हुनका
लगमे टेलीफोन छल। ओइ समयमे टेलीफोन केकरो-केकरो होइत छेलइ। मोबाइल फोनक तँ चर्चो
ने रहइ। हमर ठीक निच्चाँमे एकटा शिक्षिका छेली, जिनका सेहो टेलीफोन छेलैन।
मुदा ओ ओतेक समाजिक नहि रहैथ। कहियो काल फोन आएल तँ ओ बजबै, कखनो मनो कऽ दइ।
मुदा मल्लिक साहैबक बात-बेहवहार दोसर रहैन। फोन तँ लगाइए दितैथ, ऊपरसँ चाहोक आग्रह
करितैथ। पीपीनम्बरक ओ जमाना मोन पड़िते सुखद आश्चर्य होइत अछि।
ओइठाम फोनपर सहगल साहैब रहैत
छला। ओहो बहुत समाजिक लोक छला। सरकारी मकान छल, लोक अबैत जाइत रहैत छल, मुदा कएगोटा बहुत
दिनसँ ओइठाम छला जइमे हमर पड़ोसी राव साहैब सभसँ पुरान छला।
राव साहैबक परिवार बहुत संस्कारी
छल। धिया-पुता धोर परिश्रमी। अपने दुनू बेकती अतिशय सज्जन तथा मिलनसार। कुल मिला
कऽ ओइ परिसरक वातावरण शान्त छल। समाजिक सम्बन्ध मधुर छल। मुदा क्रमश: लोक साभ
बदलैत रहल। कएटा एहेन-एहेन लोक आबि गेला जइसँ परिस्थिति बदलए लागल। निच्चाँक
ग्राउन्डमे बच्चा सभ क्रिकेट खेलाइत छल। कएबेर गेन उछैल कऽ एमहर-ओमहर चल जाइ।
कएबेर फ्लैटक शीशापर पड़ै तँ ओ चूर-चूर भऽ जाइ। सभसँ समस्या मल्लिक साहैब बच्चा
सभ केलक। दुनू भाए-बहिन पैघ छल। कम्पनी सेक्रेट्रीक परीक्षाक तैयारी करैत रहै छल।
जँ क्रिकेटक गेन ओकरा फ्लैटमे खसलै तँ ओ आपस नहि करइ, काटि दइ। तेतबोपर बात बनि
जाइत तँ चलि जाइत। मुदा ओ सभ आगू बढ़ि कऽ खेलक विरोध करए लागल। कहै जे हल्ला होइत
छै, पढ़ाइमे बाधा होइत
अछि। किछु हद तक ओ सही छल मुदा अपना ग्राउन्ड छोड़ि कऽ छोट-टोट बच्चा सभ केतए
जैतइ? बच्चाक लेल खेल
जरूरी रहइ।
एक दिन अहिना खेल लऽ कऽ झंझट
भेल, बच्चा सभमे हाथापाइ
भऽ गेल। पुलिस आबि गेल। बातकेँ बहुत कठिनसँ थम्हल गेल। मुदा ओकर बाद कहियो महौल
सुखद नहि भऽ सकल। आपसोमे गप-सप्प कम भऽ गेलइ। लोक एक-दोसरसँ कटए लागल। मल्लिक
साहैब जे एतेक समाजिक छला, धिया-पुताक दवाबमे गपो-सप्पो छोड़ि देला। पीपी नम्बरक
सुविधा समाप्त भऽ गेल।
संयोग एहेन छल जे हमर फोनक
नम्बर आबि गेल आ हमहूँ फोनबला भऽ गेलौं। फोन लागि जाएब ओइ समयमे पैघ बात छल।
कुल मिला कऽ चारिबेर हमरा
अड़ोसी-पड़ोसीसँ झगड़ा भेल। जेकर कारण बच्चा सबहक खेल छल। बच्चा सभकेँ जखन तंग
कएल जाइ तँ हमर पारा चढ़ि जाइत छल। आदमीकेँ स्वार्थी हएब तँ ठीक छै मुदा एतेक
अधिक आत्म-केन्द्रित भऽ जाएब जे खाली अपने बच्चाटा ओइ दुनियाँमे समा सकए, अनुचिते नहि, अत्याचार थिक।
छोट-छोट बच्चा सबहक गेन काटि
देब, ओकर बैट छीनि लेब, अनेरे डाँट-फाँट करब, बच्चा सभ माफी
मागैए तैयो ओकरा डेढ़ आँखिसँ देखब, कोनो हालतमे सही नहि ठहरौल जा सकैत अछि। परिणाम भेल
जे ओइठाम गुटबन्दी शुरू भऽ गेल। लोक एक-दोसरसँ कटि कऽ रहए लागल। बच्चा सभकेँ खेलब
पराभव भऽ गेल। क्रमश: खेल बन्ने भऽ गेल।
सरोजिनीगरक ओइ ग्राउन्डक
कोणमे ऊपरमे एकटा पहाड़ी परिवार रहैत छल। ओ पहाड़ी सज्जन खूब पीबैत छला। नित्य
ओकर घरमे झंझट होइते रहैत छेलइ। ओ पहाड़ी मकानक छतक मुरेड़ापर राति-के पीबय बैस जाइत आ बीड़ी
पीबैत रहैत। घरमे धिया-पुता सभ परेशान रहइ। एकटा बच्चा छेटगर रहै जे काज कऽ कऽ घर
चलबैत रहइ। ओकर दूटा छोट-टोट बच्चा हमर छोट बालक संगे क्रिकेट खेलाइत छल। खेलमे
दुनू बच्चा माहिर छल। जँ ओकर एक चाट केकरो लगितै तँ चारूनाल चित्त भऽ जाइत।
छक्कापर छक्का मारइ। जँ ऐ बच्चा सभकेँ उचित अवसर आ उचित प्रशिक्षण भेटतै तँ निश्चय
उच्च कोटिक खेलाड़ी होइत। मुदा आम आदमीक बच्चाक नसीब समान्यत: एहेन तेजगर नहि
होइत अछि। ओ पहाड़ी एक दिन अपन दोस्त ओतए पीबैत-पीबैत मरि गेल। तेकर बाद ऒसभ सुखी भऽ गेल।
ओकरा एबजमे ओकर ज्येष्ठ
पुत्रकेँ अनुकम्पापर नोकरी भेट गेल। किदबई नगरमे घर भेट गेल आ परिवारमे सभ
अपन-अपन जिनगी चैनसँ बितबए लागल।
सरोजिनीनगरक ओइ घरमे पहाड़ीसँ
पूर्व जे एकटा सज्जन छला सेहो खूब पीबैथ। पीबैत-पीबैत हुनकर लीभर फेल भऽ गेल।
किछु दिनक बाद हुनकर देहान्त भऽ गेल। जबरदस्त कुहराम मचल। ओकर पत्नी लगैत जेना
संगे मरि जेतइ। थोड़बे दिनमे सभ शान्त भऽ गेल। पत्नीकेँ सरकारी नोकरी भेट गेलइ।
कएक बेर ओ हमरा कार्यालयमे देखा जाथि। केतौसँ नहि लगैक जे ओ वएह छैथ...।
पीबाकक दुनियेँ अलग होइत छइ।
‘दिनमे होली, रात दिवाली रोज
मनाती मधुशाला।’ ओकर सबहक सभकिछु मधु ओ मधुशाला होइत
छइ। घर जा भाँड़मे। एहेन लोकक धिया-पुता-पत्नी सभ संतप्त, अभिसप्त जिनगी जीबक हेतु बेवस
रहैत छैथ। जँ कोनो प्रकारे ओकरासँ मुक्ति भेटलतँ पुनर्जन्म होइत अछि, अन्यथा नरकेमे जीबैत
छैथ आ ओइमे मरि जाइत छैथ।
सरोजिनीनगरमे हमर सबहक करीब ९
बर्ख समय बीतल। मधुबनीमे मकान बनाबक चक्करमे सरकारक अतिरिक्त एच.डी. एफ.सी.
बैंकसँ सेहो ऋृण लेबए पड़ल। मकान ऋृणक किस्त बहुत भऽ गेल, तेकर परिवारपर रहन-सहनपर
प्रतिकूल असर पड़ल। दुनू बच्चाकेँ ओतेक सुविध नहि दऽ सकलौं जे चाहैत रही।
मधुबनीमे मकान बना कऽ हम एना
फँसि जाएब, से नहि सोचि सकल
रही। हलाँकि हमरा कएटा शुभचिन्तक लोकनि ऐ काजसँ मना केने रहैथ, परन्तु हम अपन
जिद्दपर अड़ि गेल रही। ओतबे खर्च कऽ दिल्लीमे दू रूमक फ्लैट अबस्से भऽ जाइत। ओइ
फ्लैटमे हम रहियो सकैत छेलौं। मुदा अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चूक गये खेत।
असलमे सम्पतिक मामलामे भावुक
निर्णय कष्टकारी भऽ जाइत अछि। हमर मधुबनीक मकानक संग यएह भेल। जखन कखनो छुट्टीमे
ओमहर जाइ, मकानक काजमे लागल
रही। कहियो सीमेन्ट लगा रहल छी, कहियो पेन्टींग करबा रहल छी, तँ कहियो चाहरदिवारी ठीक करा
रहल छी। ऐपर व्यंग करैत हमर मधुबनीक एकटा मित्र कहला जे हम सभ एकबेर मकान बनेलौं आ जिनगी
भरि रहि रहल छी आ अहाँकेँ जखन देखु, मकाने बना रहल छी।
मधुबनी मकानक काजमे हमर मित्र
श्रीनारायणजीक अद्भुत योगदान रहल। कखनो जन ताकि दैथ, कखनो ठीकेदार। सामान सभ
कीनबा दैथ। असलमे कम समयमे बहुत रास काज करक रहै जे कहियो पूरा नहि होइ आ हम दिल्ली
आपस आबि जाइ।
सरोजिनीनगरमे रहिते हमर ज्येष्ठ
साढ़ू कैंसरक इलाजक क्रममे दिल्ली एला। हुनकर इलाज मुम्बइमे भऽ रहल छल। ओ सभ एक
हिसाबे जवाब दऽ देलक तँ दिल्ली एला। एम्समे इलाजक प्रयासमे रहैथ। सटले
युसुफसरायमे डेरा लेला। प्रतिदिन कार्यालयक समयक बाद हम ओतए जाइत रही। किछु काल कऽ
हुनकर सबहक दुख बाँटि ली। आश्चर्यक बात जे एम्स सन संस्थान एहेन गंभीर विमार
रोगीकेँ मास भरि टरकैबते रहि गेल।
दर्दसँ ओ छटपट करैत रहै छला। परिवारिक लोक सभ उठा-पुठा कऽ एम्समे लऽ जाइन मुदा
ओतए खाली जाँच-पड़ताल होइत रहल। हमरा ओइठाम कोनो जोगार नहि छल। हुनकर हालत दिन
प्रतिदिन खराप होइत गेल। ओ अन्त-अन्त तक अपन बच्चा सभक हेतु बहुत चिन्तित
रहैथ। दिल्लीसँ ओ मुम्बइ गेला। फेर पटना लौटि कऽ हुनक देहावशान भऽ गेल।
फरवरी १९८९ (फाल्गुन शुक्ल
द्वितिया) क हमर पिताक देहान्त भऽ गेलैन। ओ किछु दिनसँ बिमार छला। किछुए दिन
पूर्व गामसँ आएल रही। मधुबनीमे मकानक काज शुरू केने रही। पटना एलाक बाद दिल्लीक
ट्रेन पकड़बाक छल मुदा कोनो कारणसँ ट्रेनक आबाजाही अवरूद्ध भऽ गेल रहइ। तँए कएक
दिन पटनेमे साढ़ूक ओइठाम रूकए पड़ल। ट्रेन खुजलाक बाद जेना-तेना दिल्ली पहुँचले
रही कि एकाध दिनक बाद दुपहरियामे ऑफिसमे मधुबनीसँ फोन आएल जे बाबूक देहान्त भए
गेलैन।
एकाएक गाम जाएब संभव नहि भऽ
सकल। ट्रेनक टिकटक बेवस्था केलाक बाद २-३ दिनक बाद हम गाम पहुँचलौं। हमरा गाम
पहुँचलाक बाद मायकेँ बहुत उसास भेलैन। ओ बहुत दुखी छेली। केना-केना की भेल से कहए
लगली। श्राद्ध सम्पन्न भेलाक बाद दिल्ली आपस एलौं मुदा बहुत दिन धरि बाबू मोन
पड़ैत रहला। जइ भोरमे बाबूक देहान्त भेल ओइ राति हम भरि राति जगले रही यद्यति
हमरा कोनो सूचना नहि छल।
बच्चा सभ छेटगर भऽ रहल छल। परंपराक
अनुसार ओकर सबहक उपनायन करक छल। बहुत दिन तक ऐ बातपर विचार केलाक बाद निर्णय कएल
जे उपनायन दिल्लीए-मे कएल जाए। आब समस्या छल जे आचार्य के हेता। पण्डित तँ हमर
ग्रामीण (डॉ. राघवेन्द्र झा) उपलब्ध छला। अपने दियादसँ आचार्य हेबाक चाही। राँचीसँ
हमर अनुज आ दिल्लीमे रहनिहार नवोनाथजी ऐ काजक हेतु उपयुक्त बेकती भेला। गामसँ
हमर माय (हमर भातिजक संग) दड़िभंगासँ अनुज एवम् हमर भागिन सभ एला। छतपर जेना-तेना
मरबा बनल आ विधि पूर्वक उपनायन सम्पन्न भेल। ऐ कार्यमे हमर ससुरक बहुत योगदान
रहल। ओ उदारता पूर्वक खर्च तँ केबे केला संगे हमर मनोबल सेहो बढ़बैत रहला। एकर बाद हमर देखा-देखी कएक गोटा दिल्लीए-मे उपनायन केलाह। ऐ विषयमे हमर सोचब छल जे ऐ परंपराक पालनमे फिजुलखर्ची व्यर्थ थिक आ तँए संक्षेपेमे काज सम्पन्न भेल।
सरोजिनी नगरमे रहैत हमर ससुर
कएक बेर डेरापर एला। हुनका ई जगह नीक लगैन। दिसम्बर १९९५ मे ओ बहुत जोर बिमार
पड़ि गेला। हुनकर दुनू किडनी एकाएक निष्कृय भऽ गेल। इलाज हेतु दिल्लीक एम्समे
आनल गेल। ऐ काजमे हमर तत्कालीन अधिकारी श्री भास्कर खुल्वे आइ.ए.एस. बहुत मदैत
केलाह हुनकर प्रयाससँ हमर ससुरजीक एम्समे इलाज भेल। अन्यथा हमर साढुबला हाल होइत।
सी.ए.पी.डी. विधि द्वारा डयलिसिस, ओइ समयमे नव बात छेलइ। से प्रयोग हिनकापर भेल। बहुत
महग ओ उबाउ इलाज छेलै जइमे परिवारक सभ गोटे खास कऽ हमर सासुकेँ बहुत परेशानी
भेलैन। लगभग अढ़ाइ सालक संघर्षक बाद अगस्त १९९७ मे हुनक ससुरक पण्डौल डीह गाममे
देहान्त भऽ गेल। ओइ समयमे हुनकर उम्र ६७ वर्ष मात्र छल। गाममे श्राद्धक कार्यक्रम सम्पन्न भेल। व्राह्मण भोजनक व्यवस्थित तौर-तरीका अनुकरणीय छल। अद्भुत शान्तिक संगे व्राह्मण भोजन होइत देखलौं जे मिथिलाक गाम-घरमे कम देखए-मे अबैत अछि।
गृह निर्माण ऋृणक भारी मासिक
किस्तक वजहसँ हमरा सबहक मासिक बजटपर गम्भीर चोट पड़ल। ओइसँ निपटबाक हेतु हम
प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाएब शुरू कएल। कार्यालयक अवधिक बाद बससँ विद्यार्थीक घरपर
गेनाइ आ ओइठाम पढ़ेनाइ बहुत कठिन काज छल। कहियो आश्रम तँ कहियो चांदनी चौक चारूकात
ट्यूशन पसरल छल। बारहमाक विद्यार्थीकेँ भौतिक शास्त्र पढ़बैत
छेलिऐ। हमरा किछु दिनक बाद विषय सभ कण्ठाग्र जकाँ भऽ गेल छल। विद्यार्थीकेँ देबाक
हेतु नोट सभ सेहो बनौने रही। कुल मिला कऽ हमर ई अतिरिक्त काज चलि पड़ल छल। मुदा
आएब-जाएब बड़का समस्या छल। फोन नहि रहलासँ सेहो सम्पर्कक समस्या होइत छल। पीपी
नम्बरपर फोन केतेक बेर अबितै? तथापि आमदनी ठीक-ठाक भऽ जाइत छल। १९९६-९७ मे एक दिनमे
एक हजार रूपैआ तक कएक बेर भऽ जाइत छल। घण्टाक हिसाबसँ रेट भेटइ।
कार्यालय केलाक बाद किंवा शनि, रवि दिनक ट्यूशनक
काज चलैत छल। कार्यालयमे कएबेर रातिमे बैसब वा देर तक रहब जरूरी रहैत छल आ हमरा
ट्यूशनक हाजिरी रहैत छल। हलाँकि ऐ स्थितिसँ बँचक हेतु हम दिन भरि लगातार काज करी, काज सम्पन्नो भऽ
जाइक मुदा तैयो कहियो काल रोमांचकारी दृश्य उत्पन्न भऽ जाइत छल। एकटा आइ.ए.एस.
अधिकारी ऐ लेल नाराज रहि गेला जे हम साढ़े पाँच बजिते निकैल जाइ रही। हुनका ई गप
नहि बुझल रहैन जे हमर परिश्रमक दोसर खेप तँ प्रारम्भे होमए जा रहल अछि।
ट्यूशनक धन्धा बहुत दिन नहि
चलि सकल। हमर ससुर अस्पतालमे भर्ती रहैथ। कार्यालयमेसँ अधिकारीक दवाब रहैत छल।
अन्ततोगत्वा लगभग एक सालक बाद हम ई काज छोड़ि देल।
हमर एकटा मित्र ई काज केतेको
साल करैत रहला आ बढ़ियाँ धनोपार्जन केलैन। दक्षिणी दिल्लीमे नीकठाम (साकेतमे) घर
कीनलैन।
कार्यालयक अलावा हुनकर ई
अतिरिक्त प्रयास सालो चलैत रहल जे हुनका अर्थिक सुबलता देलक। कहल जाइत अछि जे
दुनियाँ गोल अछि। कहक माने जे समय पलटी मारैत अछि। ई बात गृह मंत्रालयमे
कार्यरत अवर सचिव (प्रशासन) महोदयपर सद्य: लागू होइत देखलौं।
कर्मचारी चयन आयोग इलाहाबादसँ
स्थानान्तरणक बाद गृह मंत्रालयमे पोस्टिंगक क्रममे डॉ. भट्टाचार्यक हमरा लेल
कएल गेल सिफारिशसँ ओ बहुत क्रुद्ध भेल रहैथ। अपना भरि ओइ समय सभसँ खराप पोस्टिंग
कए देलैथ। जखन हम गृह मंत्रालयक आइ.एफ.डी.मे डेस्क अधिकारीक पदभार ग्रहण कएल तँ ओ
सेवा निवृत्ति भऽ गेल छला। तेकर बाद सलाहकारक काज हेतु प्रयत्नशील छला। ओ फाइल
हमरे करबाक छल। आब तँ ओ छटपट करैथ। हमरा कहल नहि होनि आ तइ दुआरे फाइल आगाँ बढ़ैन
नहि। हुई साहैबकेँ ओ मदैत हेतु कहलखिन। मुदा हम हुई साहैबकेँ सभबात कहलिऐक। हुनकर
सलाहकार बनबाक प्रयास साकार नहि भऽ सकल।
गृह मंत्रालयक आंतरिक वित्त
एकक (आइ.एफ.डी.) मे हम साढ़े तीन साल काज केलौं। अढ़ाइ साल हुई साहैब निदेशक छला।
बीचमे हमर एकटा सहकर्मीक प्रोन्नति अवर सचिवक पदपर भेल आ हुनक पोस्टिंग ओइठाम
सहायक वित्त सलाहकार (ए.एफ.ए.) क रूपमे भऽ गेल। हम हुनका संगे काज नहि करए चाहैत
रही। कारण बाराबरीक आदमी अधिकारी भऽ जेाइत से ठीक नहि। यद्यपि ओ हमरासँ वरिष्ठ
छल। हम हुई साहैबकेँ कहलिऐन जे हमरा ओइठामसँ हटा देल जाए मुदा ओ राजी नहि भेला। कहला
जे कोनो दिक्कत नहि हएत। अहाँ बनल रहू। मुदा हमरा ओ स्थिति पचल नहि। रोज-रोज
चिकचिकबाजी होमए लागल।
किछु दिनक बाद श्रीएम.एम.
झाजी निदेशक भऽ कऽ एला। ओ बिहार काडरक आइ.ए.एस. अधिकारी छला। हुनका एलासँ हमरा किछु
राहत नहि भेल, उल्टे काजसँ लादि
देल गेलौं। आब ओ ऐ दुनियाँ मे नहि छैथ। चूकि झाजी बिहारक छला, मैथिल छला तँए जेकरा
केकरो डाँट-फाँट करथिन, ओकरा होइक जे हमहीं चुगली कऽ देलिऐक अछि। ऐमे कोनो सत्यता
नहि छल। झाजी अपना भरि दूर-दूर रहबाक प्रयास करैत रहैत छला मुदा लोकक गलतफहमीक कोन
इलाज भऽ सकैत छल। साल भरिक बाद झाजीक स्थानान्तरण भऽ गेल। किछु दिन बाद हमहूँ
ओइठामसँ हटि गेलौं।
९ अप्रैल १९९२कहम गृह मंत्रालयक
यूटी डिवीजनक दिल्ली डेस्कमे कार्यभार ग्रहण केलौं। ओइठाम यूटी काडरक
(प्रोन्नतिसँ आइ.ए.एस बनल) आइ.ए.एस. निदेशक छला। ओ बड़ गरिखर छला। जेकरा-तेकराअन्ट–सन्ट
बजैत देखलौं।आब तँ भेल जे एहेन आदमीक संग केना समय कटत? क्रमश: हुनकर सोभाव बुझैमे
आएल। हुनका संगे उकटा-पैंची करबसँ बँचब बड़ जरूरी रहैत छल। कारण जँ ओ पाछाँ पड़ि
जाइ तँ बड़ तंग करइ। कहैक जे ओकर पिता हुनका संगे बहुत सख्त आ कठौर रहैत छल, तँए हुनकर सोभाव
एहेन भऽ गेल।
बेवहारसँ निदेशकजी थोड़ स्वर्थी
छला। कियो जँ छुट्टी लेबए चाहैथ तँ तेहेन माहौल बना दैथ जे छुट्टी तँ छोड़ू कएक टा
आफत आबि जाइत रहइ।
हमर साढ़ु इलाजक क्रममे दिल्ली
आएल रहैथ। हुनका मदैत करब जरूरी छल। तइले हम किछु दिनक छुट्टी लेबए चाहैत रही, मुदा छुट्टी तँ
नहियेँ देला अपितु तरह-तरहसँ तंग करए लगला, ताकि छुट्टी मांगबक हिम्मत
नहि हो। हुनके असहयोगक कारण हम एकबेर एल.एल.बी.क परीक्षा छोड़ि देने रही। कारण ओ
एक्को दिनक छुट्टी नइ देला आ परीक्षासँ पूर्व रातिमे लगभग ९ बजे तक काजपर बैसले
रहला।
किछु सालक बाद समय ससरल। ओ
सेवा निवृत्त भेला। हुनका हमरासँ काज पड़लैन, तखन हम उपरोक्त प्रसंग सभ
मोन पाड़ि देलिऐन। ई खिस्सा फेर कहब। दिल्ली सड़क सबहक, स्थान सबहक नामकरण केना भेल, किएक भेल से हुनका नीकसँ
बुझल रहए। संगे चलैत ओ खिस्सा सभ सुनबए लगितैथ। पैदल चलबाक ओ शौकीन छला। दू स्टॉप
पहिने उतैर कऽ पएरे चलए लगैथ। दारू पिबाक अभ्यासी छला। हुनकर दारूबाज सबहक गुट छल
जे प्राय: नित्य सायंकाल एकठाम होइत छल। घरसँ फोन अबैत तँ किनकोसँ कहा दैत रहथिन
जे अखन मिटिंगमे छैथ,
देरीसँ घर औता, मुदा घरक लोककेँ तँ
हुनक छिच्छा-बिच्छा बुझल रहइ। एक दिन हुनकर दोस्त नहि एलैन। आब हमरा कहए लगला जे
साँझमे संगे चलब। हम बात
बुझि गेलिऐ। मना कऽ देलिऐन। कहलिऐन जे हम अहाँक सहयोगी नहि भऽ सकब मुदा ओ बारंबार
कहैत रहला।
अन्तमे ईहो कहलैन जे ओहिना
चलू, किछुकाल तँ गप-सप्प
करब। रस्तामे जखन अपन प्रयास असफल होइत बुझैलैन तँ आइ.एन.ए. कालोनी लग बीच रस्तामे
तमसा कऽ उतारि देलक।
असलमे कार्यालयक एकटा
कर्मचारी निदेशकजीक छाया जकाँ रहैत छल। जाधैर ओ रहितैथ ओ बैसल रहितैथ। जे कहल जानि
से ओ करैथ। लिखब,
पढ़ब छोड़ि सभ काज ओ सहर्ष कऽ दैत छला। टंकण करैत छला। केकरो टाइप करबाक जरूरी
होइतैक ओ तैयार भऽ जाइत। निदेशकजी जरूरी भेलपर ओकरा पकैड़ कऽ दारूक अड्डापर सेहो लऽ
जाइत छला। कएक दिन जखन पीब कऽ बुत्त भऽ जाइत तँ ओकरा घरो पहुँचबा दितैथ। नीक, बेजाइक बेजोड़
मिश्रण छला निदेशकजी। काज खूब करैथ, परिश्रमी रहैथ, अपन अंग्रेजीक ज्ञानपर बहुत
दाबा रहैन। मुदा दैनिक बेवहार कर्कश ओ रूक्ष छेलैन। खाएर समयक सोभाव होइत अछि जे ओ
बीत जाइत अछि। केहनो समय गुजैर जाइत अछि। हुनकोपर ओ बात लागू भेल आ एक दिन हुनकर
बदली भऽ गेलैन।
ओइ समयमे संसद भवन आएब-जाएब
आसान रहइ। नॉर्थ ब्लॉकक सामनेबला गेट खुजल रहइ। हम सभ संसद सत्रक दौदान पास बना
लैत छेलौं आ अक्सर दुपहरियाक भोजन संसदमे करैत रही। संसद भवनक कैटींन बेहद सस्ता
रहैक आ भोजन उम्दा। यद्यपि हम शाकाहारी छी, तथापि ओइठाम विविधताक कमी नहि रहइ। पाँच रूपैआ जँ
खर्च कऽ दिऐ तँ वएह भोजन बाहर दुइयो साए रूपैआमे भेटत की नहि। भोजन कऽ कऽ सँ संसद
परिसरमे घुमी। ससंदक अधिकारीक दीर्घामे जेबाक हमरा बहुत इच्छा रहैत छल। तँए हम
ओइठाम अपन ड्यूटी लगाब ली। संसदक चर्चा देख केतेको चीज बुझबा, देखबाक प्रत्यक्ष
अनुभव भेल। ओइ समयमे आइ-काल्हि जकाँ दूरदर्शनपर संसदक कार्यवाहीक प्रसारण नहि होइ, तँए अधिकारी
दीर्घामे बैस कऽ संसदक कार्यवाही देखब बहुत नीक लगैत छल।
एकबेर गुजरातमे राष्ट्रपति
शासन लगबाक रहइ। यद्यपि हमर कार्यक्षेत्रमे ईकाज नहि छल, तथापि संयुक्त सचिव महोदय
हमरा खास कऽ कार्यभार देलैन जे ऐ विषयक सरकारी अधिसूचनाकेँ मायापुर सरकारी प्रेसमे
भोरे पहुँचाबी, ओइठामसँ अधिसूचनाकेँ
प्रकाशित कराबी आ तेकर विवरण गृह मंत्रालय फोनसँ दी जाइसँ गुजरातमे राष्ट्रपति शासन
लागू हएत। भोरे पुलिसक जीपमे हम घरसँ सोझे मायापुरी सरकारी प्रेसमे पहुँचलौं।
मैनेजर साहैब सुतले रहैथ। हुनका उठा अधिसूचनाक प्रति देलौं आ किछुए कालमे उपरोक्त
समस्त प्रक्रिया पूरा भेल। हम रस्तेमे रही कि रेडियोसँ प्रशारण होमए लागल जे
गुजरातमे राज्य सरकारकेँ बर्खास्त कए राष्ट्रपति शासन लागू कऽ देल गेल अछि।
ओइ समयमे घरमे फोन तँ होइ नहि, तँए कोनो जरूरी काज
भेलापर ऑफिससँ सरोजिनीनगर थानाकेँ फोन कऽ दइ आ थानासँ पुलिस समाद लऽ कऽ घर तकैत
पहुँच जाए।
गृह मंत्रालयक दिल्ली
डेस्कमे हम अप्रैल १९९२सँ ८ सितम्बर १९९७ तक काज केलौं। सितम्बर १९९९सँ २ साल
फेर ओतइ काज केलौं। ओइ डेस्कमे दिल्लीसँ सम्बन्धित विषय पर काज होइत छल। चूकि
दिल्ली केन्द्र शासित राज्य थिक, केतेको मामलामे प्रस्तावक स्वीकृति गृह मंत्रालयसँ
जरूरी रहैत अछि। ओइ समय दिल्लीमे विधान सभा नहि रहै, बादमे भेलइ। सरकार नहि रहै, तँए केन्द्र सरकारक
हस्तक्षेप बहुत रहइ। काजो बहुत रहइ। संसदीय प्रश्न सम्बन्धी काजक भरमार रहैत
छल।
उपरोक्त अवधिमे चारिटा
निदेशक स्तरक आइ.ए.एस. अधिकारी संगे काज केलौं। सभ अपना-अपना तरहक छला मुदा श्री
भास्कर खुल्वेजी अद्भुत बेकती छला। एहेन परोपकारी ओ सहृदय अधिकारी भागेसँ भेटैत
अछि। जे कियो हुनकासँ मदैत मांगै छल तेकरा यथासाध्य ओ अबस्स मदैत कऽ दैत छला।
हमरो ओ ससुरजीक इलाजमे बहुत मदैत केलाह। आइ-काल्हि ओ भारत सरकारमे बहुत वरिष्ठ
अधिकारी छैथ।
सचिवालयमे पोस्टिंगक बाद
आइ.ए.एस. अधिकारी सबहक हालत कोनो नीक नहि रहैत छल। जिलाक कलक्टर ओइठाम एकटा
कोठरीमे सीमित भऽ फाइल गुड़कबैत रहै छला। कियो आगाँ-पाछाँ केनिहार नहि। सुविध
नदारद। केतेको गोटेकेँ गाड़ियो नहि रहैत छेलैन, तँए साल भरि हुनका ओइठामक
परिस्थितिसँ तादम्य स्थापित करबामे लागि जाइत छल। फेर क्रमश: शान्त भऽ जाइत
छला। अधीनस्थ अधिकारी/कर्मचारीकेँ साल भरि झेलनाइ बेसी कष्टकर। एहने एकटा
अधिकारीजी रहि-रहि कऽ कहैथ-
“मैं कोई प्रोवेंशनर नहीं हूँ।
मैं १४ साल सीनीयर आइ.ए.एस. हूँ।”
हम कहलिऐन-
“सर! तभी तो हम लोग अपका मार्ग
दर्शन चाहते है..?”
ओ अवाक, हमर मुँह देखैत रहला।
दिल्ली डेस्कमे कए साल काज
केलाक बाद हमरा उब होमए लगल। बदली होइक नहि, प्रोन्नतिमे मुकदमाबाजी छल। हम
कएठाम प्रतिनियुक्ति हेतु आवेदन देलिऐक।
संघ लोक सेवा आयोग द्वारा
साक्षात्कारक बाद लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलैज, दिल्लीक मुख्य प्रशासनिक
अधिकारीक पदक हेतु हमर चयन भेल। आ १३ सितम्बर १९९९मे गृह मंत्रालयसँ सेवा मुक्त भऽ
ओइठाम पदभार ग्रहण केलौं।
दिसम्बर १९८८ सँ सितम्बर
१९९७ धरि लगभग ९ साल हम गृह मंत्रालयमे कार्य केलौं। बादमे अढ़ाइ साल फेर ओतइ काज
करबाक मौका भेटल। कुल मिला कऽ हमर एकटा पहिचान बनल। लोक सभसं जान-पहचान भेल।
यद्यपि काज बहुत कऽ दऽ देल जाए, तथापि परिश्रमसँ काज केलाक कारण हमरा कियो बदली नहि
करैथ। तंग भऽ कऽ किंवा उबि कऽ हम स्वयं पहिने आइ.एफ.डी. आ तेकर बाद दिल्ली डेस्कसँ
बदली करौलौं। काज बदललासँ थोड़ नवीनता भऽ जाइत छेलै आ फेरसँ गाड़ी चलि पड़ैत छल।
इलाहाबादसँ दिल्ली एलाक बाद जीवन
बेसी व्यस्त भऽ गेल। पाँच दिन तँ भोरे ऑफिस जा राति-बिराति थाकि कऽ घरपर लौटू।
आर किछु सोचब, करब मुश्किल। रच्छ
छेलै जे शनि-रवि छुट्टी रहइ जइसँ विश्राम भऽ जाइत। घरक जरूरी काज जाइत। कनी-मनी
आस-पास घुमनियोँ भऽ जाइत रहइ। फेर सोच आएल आ वएह रूटिंग।
बादमे व्यस्त रहबाक ई लाभ
हुअए जे समय धराधर बीति जाए। अगर-मगर सोचबाक समय नहि रहए। सभसँ अपसोचक बात ई रहै
जे देशक सवोच्च कार्यलय रहितो गृह मंत्रालयमे सुविधा नदारद रहइ। कएक बेर काज
समाप्तिक बाद १२ बजे रातिमे घर आपास जाएब समस्या भऽ जाइत छल।
बहुत रास कठमधुर स्मृतिक संग
जीवन यात्रा आगाँ ससरल।