सोमवार, 25 नवंबर 2019

व्रह्मांड और मैं


व्रह्मांड और  मैं



वैसे तो यह दुनिया रहस्यों से भरा हुआ है,लेकिन मनुष्य स्वयं रहस्यों में भी महान रहस्य है । यह प्रश्न हमारे लिए नया नहीं है । यह बात भी सही है कि अपने-अपने तरीके से लोगों ने इसकी व्याख्या करने की कोशिश की है। लेकीन अभी तक कोई भी नहीं कह सकता है कि इस विषय पर  अमुक व्याख्या सही है या किसी खास व्यक्ति कहना मानने योग्य नहीं है । ऐसा प्रतीत होता है कि सभी लोग अंधकार में ही इस सबाल का जबाब ढूंरने का प्रयत्न कर रहे हैं । बड़े-बड़े विद्वान,ज्ञानी-ध्यानी जीवन के रहस्यों को अपने तरीका से सुलझाने में लगे रहे । किसी ने कहा-

आत्मा अमर है ।

किसी ने कहा- शरीर ही सब कुछ है । शरीर नष्ट हुआ तो सब नष्ट हो जाता है । फिर इसके फिर से आने का सबाल ही कहाँ पैदा होता है?”

गलत कौन है,सही कौन है यह व्याख्या करना उतना ही कठिन है जितना कि यह प्रश्न स्वयं है । सच जो भी हो परंतु इतना तो तय है कि हम जिसे जीवन भर देखते रहते हैं,जिस से हमरा जीवन भर जुड़ाव रहता है और जसके द्वारा हमराी इस दुनिया में पहचान है वह हमारा शरीर ही है और वही मृत्यु के बात समाप्त हो जाता है । उस में से निकलकर आत्मा बची रह जाती है और हमारा असली आस्तित्व आत्मा में ही स्थापित है ,इस बात को प्रमाणित करना हमारे-आप के वश में नहीं लगता है ।

सत्य जो भी हो, परंतु यह बात तो तय है कि आजतक कोई भी एकबार इस दुनिया से जाने के बाद लौटकर नहीं आया जिस से पता चलता कि मृत्यु के बाद वह किस हालात में है? क्या उसे मृत्यु से पहले की बातें अभी भी याद हैं? क्या वह अपने निकट संबंधियों के लिए अभी भी चिंता करता है? क्या उसे जीवने के दौरान किए गए अच्छे या बुरे कामों का फल प्राप्त हुआ या हो रहा है ? ऐस आजतक कुछ भी नहीं हुआ । सब कुछ महज कल्पनाओं पर आधारित लगता है । यह करोगे तो वस होगा या अमुक आदमी को उसके बुरे कर्मों का फल मिल रहा है । संसार में जो भी जन्म लिया है ,वह एकदिन मर जाता है । इस दौरान वह स्वभाव और परिस्थिति के वशीभूत होकर नाना प्रकार के कार्यों में लगा रहता है । पर अंतिम परिणाम यही होता है कि वह सबकुछ छोड़कर चला जाता है । कुछभी साथ नहीं ले जाता है । आया है सो जाएगा,राजा रंक फकीर ।

इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि मरने के बाद आप का क्या होता है? आप फिर से कहीं जन्म लेते हैं या सब कुछ तभी समाप्त हो जाता है जब आप इस शरीर को छोड़ते हैं । जो सद्यः दिख रहा है,जिसे हम नित्य प्रति महसूस करते हैं ,वह है हमरा कर्म । हम जैसा करते हैं,वैसा भोगने के लिए विवश हैं । कोई भी इस नियम का अपवाद नहीं है । हो भी नहीं सकता है । देर -सवेर सबको जीवन के अकाट्य सत्य को मानना पड़ता है,समझना पड़ता है ।

अभी तक विज्ञान भी ठीक से नहीं समझ पाया है कि आखिर यह व्रह्मांड कब बना,कैसे बना? इसका फैलाव कहाँ तक हैं? कभी-कभी छिटपुट जानकारी वैज्ञानिक देते रहते हैं जिसके अनुसार कभी हजारो-लाखो मील दूर कोई ग्रह-नक्षत्र के बारे में जानकारी होने की खबर होती है । लेकिन सच कहा जाए तो अभी भी इस व्रह्माण्ड के बारे में सही जानकारी सायद ही किसी के पास हो? सभी अंधेरे में ही हाथ टटोलते नजर आ रहै हैं । पर जो जानकारी वैज्ञानिक तरीकों से मिल चुकी है उसके अनुसार भी कम चौकाने वाली बात नहीं है । लाखों-कड़ोरो तारा मंडल व्रह्माण्ड में यत्र-तत्र फैले हुए हैं । इतने बड़े व्ह्माण्ड के एक बहुत ही छोटे हिस्से में हमारी पृथ्वी है । हम वहाँ एक बहुत ही सीमित भाग में रहकर  सब कुछ जानने का अहं पालते रहते हैं । यह भ्रम के सिवा कुछ भी नहीं है । इस अनंत संसार में हमरा जीवन सागर के एक बूंद के तरह है। फिर व्यक्ति के अहं का क्या औचित्य है? व्रह्मांड के अनंतता को स्वीकार कर ही हम महानता को प्राप्त कर सकते हैं ।


रविवार, 24 नवंबर 2019

डाइन


डाइन



हमसभ नेनेसँ डाइनक बारेमे सुनैत अएलहुँ अछि । डाइनिसँ बँचि कए रही,ओकर हाथसँ किछु नहि खाइ,ओकर नजरिसँ पराके रही ,नहि तँ गेल घर छी । कखन प्राण लए लेत तकर हिसाब नहि। हालत तँ ततेक खराप रहेक जे कोनो कारणसँ किओ दुखित भए गेल,घरमे चोरी भए गेल, वा किओ मरि-हरि गेल तँ सभक कारण कोनो-ने-कोनो डाइनि वा एहने किछुकेँ मानल जाइत छल । समाधान छलाह भगता,तांत्रिक,ओझा-गुनी  । समाजमे व्याप्त अशिक्षा आ अज्ञनताक कारणेँ एहि तरहक बातसभक खूब बरक्कति होइत छल । जँ ककरो घरमे चोरी भए गेल तँ तकरो समाधान ओझा-गुनी करैत छलाह । चटिबाहसँ बट्टा चलाओल जाइत छल । मंत्रक प्रभाव तेहन सटीक आ कड़गर होइत छल जे ओ जेमहर-जेमहर चोर गेल रहैत छल ताहि बाटे घुमए लगैत छल आ अंतमे चोरकेँ घरमे वा ओकरे लग-पासमे पहुँचि जाइत छल जाहिसँ चोरक बारेमे स्पष्ट अनुमान लोक लगा लैत छलाह । कहबाक जरूरी नहि बुझाइत अछि जे एहन काजसभक परिणाम कै बेर बहुत घातक होइत छल । कैटा निर्दोष लोक समाजमे अपमानित भए जिबाक हेतु विवश होइत छलाह ।

सामान्यतः ई देखल जाइत अछि जे निकट संबंधीमे आपसी कटुता बढ़ि गेलाक बाद कोनो स्त्रीक समगे तरह-तरहक खिस्सासभ जोड़ि देल जाइत अछि  । जेना कि ओ तँ हकल डाइन छैक , राति कए गाछ हकैत छैक , ओकरा तँ हम अष्टमी रातिमे नंगटे नचैत देखलिऐक । कालक्रमे ई सभ बात ततेक फैल जाइत अछि जे ओहि महिलाक लग-पास जेबासँ लोक डराइत अछि । ओकर देल पानि नहि पीबए चाहैत अछि । ओकरा हाथसँ भोजन करबाक तँ प्रश्ने नहि उठैत अछि । एहिसभक कारणें ओ महिला समाजमे एसगरि भए बहुत रास प्रतारणा सहैत रहैत छथि ।

कैठाम देखल जाइत अछि जे दियादी झगड़ाक बाद कोनो महिलाकेँ डाइन घोषित कए देल जाइत अछि । किछु षड़यंत्र कए एहन दृष्य बना देल जाइत अछि जे लोकसभ भ्रमित भए जाइत छथि आ तथाकथित डाइनसँ फटकी रहए लगैत छथि । गाम-घरमे लोकसभ एहन  महिलाक ओहिठआम नोत खेबासँ बचैत रहैत छथि आ ओकरा सेहो नोत नहि दैथ छथि ।  आखिर एना किएक कएल जाइत अछि? जबाब भेटत-अहाँ बाहर रहैत छी । गामक लोकक छिज्जा कीजाने गेलिऐक ? फलनमाकघरबाली तँ रातिभरि श्मशानमे बैसल रहैत छैक । मुर्दासभक संगे मंत्र सिद्ध करैत रहैत छैक । नहि विश्वास होअए तँ रातिमे हमरासंगे चुपचाप चलब । जखन अपने आँखिसँ देखि लेबैक तँ विश्वास भए जाएत ।

सबाल अछि जे आखिर एहिसभ बातमे कतेक सत्यता थिक आ जँ से नहि अछि तँ एना किएक होइत अछि? हमरा हिसाबसँ तँ एहिसब बातमे कोनो सत्यता नहि अछि । कै बेर हम स्वयं अन्हरोखे एहन स्थानसभ पर जाइत रही जतए लोक एहन संभावना कहैत रहैत छल । मुदा हमरा कहिओ किछु नहि अभरल । ने कोनो प्रकारक क्षति भेल। तेँ एहि तरह गप्पसभ मात्र दुष्टताक अतिरिक्त किछु नहि अछि । लोक अपन दियादी औल चुकता करबाक हेतु एहि तरहक दुष्प्रचार करैत अछि । दुर्भाग्यक बात थिक जे मूलतः अज्ञानतावश एहि तरहक दुष्प्रचारकेँ जन समर्थन सेहो भेटि जाइत अछि । रहल बात ई जे आखिर लोक एना किएक करैत छथि? तकर की कहल जाए? मुदा एतबा तँ निश्चय जे आपसी दुश्मनी वा इर्ष्या-द्वेषवश एहन घटनासभ होइत अछि आ अज्ञनतावश किंवा अंधविश्वासक वशीभूत भए लोकसभ एकरा सही मानि लैत छथि ।

निश्चित रूपसँ समाजमे व्यप्त अशिक्षा आ अंधविश्वासेक परिणाम थिक जे एखनो लोकसभ डाइन वा एहि तरहक वस्तुसभक मान्यता दैत छथि । ततबे नहि ओहि चलते कैटा लोकक जिनगी बरबाद भए जाइत अछि । कै बेर तंत्र-मंत्रक चक्करमे पड़ि कए निर्दोषक नेनासभक वलप्रदान धरि दए देल जाइत अछि । एहिसँ पैघ अन्याय की भए सकैत अछि? अस्तु,ई जरूरी अछि जे समाजमे एहि तरहक कुवृतिक प्रति लोककेँ सतर्क कएल जाए जाहिसँ निर्दोष व्यक्तिक जीवन आ प्रतिष्ठाक रक्षा कएल जा सकए ।

मंगलवार, 20 अगस्त 2019

जगले रहब यौ!


जगले रहब यौ!



हमसभ जखन नेना रही तँ परीक्षाक समयमे कै बेर बहुत राति धरि जगले रही । ओसारापर लालटेनक मद्धिम प्रकाशमे  औंघाइत-पौंघाइत पढ़ैत रहैत छलहुँ । कहि नहि एतेक नीन्न कतएसँ अबैक । एहि संघर्षक बीचमे एकाएक ध्यान तोड़ैत छल एकटा स्वरवद्ध कड़क आवाज-"जगले रहबै यौ । से कहैत -कहैत गामक चौकीदार आगा बढ़ि जाइत । ओकर आवाज तँ फटकिएसँ अएनाइ शुरु भए जाइत छल। सड़केपरसँ ओकर  जागरण मंत्र कानमे पड़नाइ शुरु भए जाइत जकर तीव्रता क्रमशः बढ़िते रहैत । हमरा घर लग अबैत-अबैत ओ आबाज आओर जोर पकड़ि लैत । एहि तरहें चिकरैत-भोकरैत ओ सौंसे गाम घुमि जैतथि ।  अन्हरिआ रातिमे तँ ई कनी बेसिए होइत छल ।  गाम-घरमे चोरी नहि होइक .तेँ एहि तरहक व्यवस्था कएल गेल छल ।

चौकीदारसभ सरकारी महकमासँ जुड़ल तँ रहैत छलाह,थानेदारक हुकुम बजबैत छलाह मुदा हुनका सरकाी सेवकक सभटा सुविधा नहि भेटैत छलनि ने ओ नियमित सरकारी कर्मचारी मानल जाइत छलाह । हाथमे खूब नोकगर भाला ,देहमे हरिअरका पट्टी पहिरने जखन चौकीदार कोनो मामिलाक संदर्भमे थाना बजाओल जाइत छलाह तँ निश्चय हुनको होइत रहल हेतनि जे ओ किछु छथि । कै बेर थानाक पुलिस आबि कए हुनका अपनासंग कए लेथि । गामे-गाम पुलिसक संगे घुमथि किंवा कोनो मामिलाक तहकीकात करबामे सहयोग करथि मुदा ताहि एबजमे हुनका गारि-फज्जतिक अतिरिक्त किछु भेटैत रहल हेतनि तकर कोनो उमीद नहि बुझाइत अछि । चौकीदारक सामान्य कर्तव्यक निष्पादन तँ ओ करिते छलाह ,तकर अतिरिक्त ओ थानाक एकटा स्थानीय जासूस सेहो छलाह । हुनकासँ अपेक्षा कएल जाइत छल जे हुनकर लग-पासमे भए रहल घटनासभक जानकारी थानेदारकेँ देथिन । एहिसभ काज करबाक एबजमे हुनका दस वा पन्द्रह टाका महिना थानाक तरफसँ भेटैत छल । एहि तरहैं कै ठाम तँ कै पुस्त चौकीदारी करिते बीत जाइत छलनि ।

चौकीदार जखन गाममे पहरा दैत छलाह तँ ककरो घर लग अएलाक बाद हुनकर नाम लए कै बेर आबाज दितथि जाहिसँ ओ व्यक्ति जँ सुति रहल छथि तँ हुनकर उपस्थितिकेँ संज्ञान लेथि । कै गोटे तँ खखसि कए तकर प्रतिउत्तर दैतो छलाह । ओहिमे हमर एकटा काकाजीक नाम प्रसंगवस मोन पड़ि जाइत अछि । ओ तँ रातिमे सुतलोमे ढहकैत रहैत छलाह जाहिसँ लग-पासक लोककेँ लगैत छलैक जेना ओ जगले छथि । परीक्षासभक तैयारीक क्रममे हम कै बेर बहुत  देर रातिधरि जागल रहैत छलहुँ । हमरा हुनकर आबाज सुनिकए लागए जेना ओ जगले छथि मुदा बात से रहैक नहि । ओ तँ सुतले-सुतल ई काज करैत छलाह । जे जोइक मुदा चोरसभकेँ ओ आबाज सुनि कए जरूर परेसानी होइत रहल हेतैक ।

सालक साल बीति गेल मुदा चौकीदासभक स्थितिमे कोनो सुधार नहि भेल । हँ, एतबा जरूर भेल जे सहरीकरणक बाद गामसँ भागि कए लोकसभ सहरमे आबि गेल आ जकरा कोनो काज नहि भेटल से सभ चाहे ओ कतबो पढ़ल होथि वा मूर्ख होथि,चौकीदार बनि गेलाह । सहरमे चौकीदारक माने भेल सेक्युरिटीगार्ड । रंग-विरंगक परिधान पहिरने हाथमे डंडा लेने कोनो पैघ मकानक गेटपर बारह-बारह घंटा निरंतर ठाढ़ रहए बला किओ आओर नहि चौकीदारे भए सकैत छथि ।  सोचल जा सकैत अछि जे जे आदमी बारह घंटा निरंतर ठाढ़ रहतैक ओ तँअपन जानबँचा लिअए सएह बहुत ,ओ अहाँक रक्षा की करताह? चाहिओ कए नहि कए सकैत छथि ,कारण एक तँ देहमे कतहु दम बाँचल नहि रहि जाइत छनि,दोसर हुनकासभक हाथमे तँ एकटा लाठिओ नहि रहैत छनि । कहबी छैक जे विभुक्षितः किम् न करोति पापम्। तेँ कै बेर सहरी चौकीदार स्वयं चोरी,डकैती वा एहने कोनो आओर जघन्य अपराध करैत पकड़ल जाइत छथि ? तरह-तरहसँ एहन व्यक्तिकेँ यातना देल जाइत अछि। मुदा साइते किओ सोचैत हेताह जे आखिर एना भेलैक किएक?

गामक चौकीदारसभ तँ कम सँ कम भाला लए कए चलैत छल, अपन घरमे रहैत छल आ जे किछु घरक बनल भोजन करैत छलाह मुदा सहरमे  तँ हुनका लोकनिक भगवाने मालिक । ने खेबाक ठेकान ने रहबाक, ताहिपरसँ बारह-बारह घंटाक ड्युटी आ पगार कतेक ,बहुत तँ दस हजार । कोनो छुट्टी नहि । जँ मोन खराप भेल तँ दरमाहा कटत । बेसी दिन छुट्टी रहब तँ नौकरिओ खतम भए जाएत । कहक माने जे हुनकर जिनगी भगवानेक भरोसे चलैत अछि । एहन हालतमे ओ अनकर की रक्षा करताह? ओ तँ अपने रक्षा कए लेथि तँ बड़का बात ।

किछु समयपूर्व भेल देशक लोकसभा चुनावमे चौकीदारक खूब चर्चा भेल । सही भेल,गलत भेल ,जे भेल मुदा सौंसे देस कोनो-ने-कोनो रुपमे चौकीदार बनि जेबाक घोषणा कए देलक । सोचल जा सकैत अछि जे भारतक लोकक चेतनामे चौकीदार कतेक गहींर धरि धसल अछि । समाजक एतेक महत्वपूर्ण अंग जकर काजे सभक रक्षा करब थिक उपेक्षित रहए से कतहु सँ उचित नहि लगैत अछि । मुदा सएह भए रहल अछि । जरुरी अछि जे  सरकारक नीति निर्माता लोकनि चौकीदारक सेवाक सही मुल्यांकन करथि आ ओकरासभक पगार आ अन्य सुविधा कमसँ कम एतेक तँ हेबे करैक जाहिसँ ओहोसभ अपना एहि देसक सम्मानित नागरिक हेबाक अनुभव करथि । से जँ हेतेक तँ ओकर फएदा सभकेँ हेतैक । इसकूलमे पढ़निहार नेना सुरक्षित रहत,ओकर अपहरण नहि भए सकतैक,गाम-घरमे रहनिहार किसानसभ अन्न-पानि सुरक्षित रहतैक आ सुरक्षित रहताह सहरमे रहनिहार श्रीमान लोकनि जिनकर घरक आगामे  एकटा सशक्त व्यक्ति हुनकर सुरक्षा करत ने कि एकटा मजबूर,विमार आ शक्तहीन व्यक्ति जे अपने लेल सदरिकाल झकैत रहैत अछि ।

उमीद पर दुनिआ कायम छैक। तें हमरा लोकनि आशा करी जे एकदिन चौकीदारो सभक दिन फिरतैक। देशमे बहि रहल विकासक बिहारि हुनको दरबाजा धरि पहुँचत । हुनको धीया-पुता आधुनिक शिक्षा प्राप्त कए अपन जीवनमे सकारात्मक परिवर्तन आनि सकताह आ पुस्तक-पुस्त भाला लेने हकासल-पियासल गामक चौकीदार करैत व्यक्ति बीतल बात भए जाएत ।






शनिवार, 17 अगस्त 2019

स्वास्थ्य का महत्व



प्रकृति आश्चर्यों से भरा हुआ है । उनमें एक हमारा-आपका जीवन भी है । छोटे से छोटे और बड़े से बड़े प्राणियों में जीवन के सारे तत्व प्रकृति ने भरे हैं । एक छोटी सी चिटी भी ,पता नहीं कैसे मीठे वस्तुओं की उपस्थिति को तार जाती है । देखते ही देखते ऐसी वस्तुओं के इर्द-गिर्द चीटियां भर जाती हैं । बरसात के मौसम में सैकड़ो चीटियां पंक्तिवद्ध होकर चलती रहती हैं और कहाँ से कहाँ पहुंच जाती हैं । कहने का तात्पर्य  है कि ईश्वर ने तमाम जीव जन्तुओं को जीने लायक क्षमता दी है । उसके शरीर में वे सारे अवयव दिए  हैं जिसकी उसे आवश्यकता है । जैसे जंगली हिंसक जानवरों को बड़े-बड़े दाँत दिए हैं ताकि शिकार के बाद वे उन्हें खा सकें । अगर हमें कुछ नहीं दिया है तो इसका मतलब है कि वह हमारे लिए जरूरी है ही नहीं ।

आप कितने भी विद्वान हों,कतने भी गुणी हों लेकिन यदि आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो आप कुछ भी नहीं कर सकते हैं । किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जरूरी हे कि आदमी  में संघर्ष की क्षमता हो । वह तो तभी होगा जब वह कठिन से कठिन परिश्रम करने में सक्षम हो । विना परिश्रम के कुछ भी नहीं पाया जा सकता है । एक-से-एक पद पर पहुँच कर भी लोग स्वास्थ्य के अभाव में असफल हो जाते हैं । कई प्रतिभाशाली लोग अल्पजीवी हुए जिससे लोग उनके गुणों से उतना लाभ नहीं उठा सके जितना वे कर सकते थे । इसीलिए हमें स्वास्थ्य पर शुरु से ही ध्यान देना चाहिए । कहते हैं कि शत्रु और विमारी को कभी हल्के नहीं लेना चाहिए ।

हम वैज्ञानिक युग में रह रहे हैं । एक समय था जब लोग मामुली विमारी से मर जाते थे । इलाज के नाम पर संयम और पथ्य के अलावा कुछ भी नहीं था । बुखार हो जाने पर रोगी का खाना बंद करा दिया जाता था । तरह-तरह के परहेजों से उसे गुजरना पड़ता था । कई बार तो सहते-सहते रोगी की आंत उलझ जाती थी जिस से उनकी मौत भी हो जाती थी । एसी एक घटना मैंने स्वयं देखी है । एक चौदह साल के बच्चे को बुखार में सहते-सहते उसकी आंते उलझ गई और बड़े मुश्किल से शल्यकृया द्वारा उसकी जान बचाई जा सकी । परंतु हालात अब बदल गए हैं ।  एक से एक बिमारियों का इलाज संभव हो गया है । लोग कैंसर जैसे विमारी से भी बंच जाते हैं । लेकिन इसका दुखद पहलू भी है । एक तो इलाज काफी महगा हो गया है , दूसरा नित्य नए-नए विमारियां पैदा होती जा रही हैं जिसका इलाज विज्ञान के पास है ही नहीं । असल में हम चाहे क्रोटि उपाय कर लें,एक-न-एक दिन हमें इस दुनियां से जाना तो है ही । यह प्रकृति का नियम है । आया है सो जाएगा,राजा रंक फकीर । इसलिए हमें प्रकृति के इस साश्वत सत्य को भी स्वीकार करना ही होगा । लेकिन इसका मतलब नहीं होना चाहिए कि हम स्वस्थ रहने का प्रयत्न ही छोड़ दें । हम जबतक जीएं, स्वस्थ जीएं ,प्रशन्न रहें और कुछ ऐसा कर जाएं कि भावी पीढ़ियां हमें याद करें ।

चाहे आप कितना भी बड़ा पद प्राप्त कर लें लेकिन अगर आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो आप अपनी उपलव्धियों का सुख  नहीं उठा सकते हैं । ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलता है जब कई महत्वपूर्ण पद से स्वास्थ्य कारणों से लोगों को इस्तिफा देना पड़ा । इसलिए हमें निरंतर स्वास्थ्य के प्रति सचेष्ट रहना चाहिए। परंतु यह संभव हो  कैसे ?

हर व्यक्ति का प्रकृति, स्वभाव एवम् रुचि भिन्न होता है । साथ ही सब अनवांशिक रूप से भी एक-दूसरे  से कई मामले में भिन्न-भिन्न होते है । इसीलिए सबों के लिए कोई एक पैमाना नहीं नियत किया जा सकता है । लेकिन इतना तय है कि सब को अपने परिस्थिति और आवश्यकता के अनुसार स्वास्थ्य के लिए कुछ जरूरी उपाय करना चाहिए ताकि वे विमारियों के चंगुल में न पड़े और अगर विमारी हो ही गई है तो उस से यथाशीघ्र निजात पा लें ।

भारतीय जीवन पद्धति में विमारी से वचाव के लिए खान-पान और दिनचर्या पर बहुत जोर दिया गया हे । इस बात का पूरा ध्यान रखा गया हे कि विमारी हो ही नहीं । इसके लिए नियमित आहार-विहार,स्वस्थ आदतें एवम् सात्विक चिंतन को आधार बनाया गया है । नियमित प्राणायाम और योगासन से शरीर को उर्जामय बनाने का प्रत्न किया जाता हे । शाकाहारी भोजन पर  जोर दिया जाता हे । इस बात का बहुत ही महत्व दिया जाता हे कि लोग प्रकृति से जुड़ें और  नैसर्गिक सुख-सुविधाओं का लाभ उठाएं ।

अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति में तरह-तरह के रासायनिक उत्पादों से दवाइओं का निर्माण किया गया है जिसके उचित मात्रा में प्रयोग कर विमारी को ठीक करने का प्यत्न किया जाता है । कई बार विमारी ठीक तो हो जाती है लेकिन कई नये समस्याओं को जन्म दे जाती है । उदाहरणस्वरुप, अगर आप एनटीबायोटिक लेते हैं तो साथ-सात पेट खराप हो जाने का और भूख नहीं लगने की परेशानी हो जाती है । इसी तरह लगातार दर्द निवारक दवाइओं का प्रयोग करते रहने से किडनी जैसा महत्वपूर्ण अंग खराप हो जाता है । कहने का मतलब है कि एलोपैथी चिकित्सा पद्धति अपने-आप में पूर्ण नहीं है । एक समस्या को ठीक करते-करते कई और नई समस्या पैदा कर देती है । शल्यकृया एलोपैथी चिकित्सा पद्धति  का एक महत्वपूर्ण देन है । इस से कई बार गंभीर विमारयों से मुक्ति मिल जाती है । अंगप्रत्यार्पण द्वारा कई बार बेकार हुए अंगों को बदल दिया जाता है और अवश्यंभावी मृत्यु को सालों सफलतापूर्वक टाल दिया जाता है ।

असल में प्रकृति से कटते रहना और और नित्य नए व्यसनों का आदी होना हम पर बहुत भारी पड़ा है। प्रकृति में कोई भी जीव -जन्तु बीड़ी-सिगरेट पीने का आदी नहीं होता है । कोई भी जनवार शराब नहीं पीता है। स्वभाविक रूप से जो कुछ उनके स्वभाव के अनुसार उपलव्ध है उसी से जीवन चलाते हैं । कई पशु तो पूरी तरह शाकाहारी होते हैं , वहीं कुछ मांसाहार पर ही निर्भर होते हैं । लेकिन एक हम हैं जो अपनी बुद्धि का दुरुयोग कर तरह-तरह की आदतों के शिकार हो जाते हैं । परिणामस्वरुप, हम नित्य नये-नये विमारियों का इलाज कराते फिरते हैं ।

मरना-जीना तो ईश्वर के हाथ है । यह भी सत्य है कि दीर्घायु होना कई बार दुखकर ही हो जाता है । कई ऐसी घटनाओं को देखना पड़ता है जिेस से अपार दुख होता हे । परंतु नियति के आगे हम विवश हो जाते हैं । लेकिन इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि जीवन ईश्वर का अनमोल उपहार है । हम इस दुनिया में बहुत कुछ देख सकते हैं,कर सकते हैं । इसलिए जरूरी है कि हम जब तक जीवित हैं यथासाध्य स्वस्थ रहने का प्रयत्न करें ताकि हमारा जीवन अधिक से अधिक अर्थपूर्ण हो सके ।

रविवार, 11 अगस्त 2019

अष्टयाम आ नबाह


अष्टयाम आ नबाह



सन्१९६२ भारत चीनक युद्धक हेतु प्रसिद्ध अछि । ओहि समयमे हमसभ मिडिल इसकूलसँ सातमा पास कए हाइ इसकूल इकतारामे आठमामे नाम लिखओने रही । सौंसे देश चीनक खिलाफ सनसन करैत छल । अपन देशक सामरिक आ आर्थिक सामर्थ्य सीमित छल । चीनक सेना बढ़िते जा रहल छल। गाम-गाम लोक रेडिओक समाचार सुनबा हेतु आतुर रहैत छल । मुदा समाचार सुनि लोकसभक लोलपर फुफरी पड़ैत छल। ओही समयमे गाम-गाम ई हवा बहि गेल जे प्रलय होबए बला अछि । एहि बातक चीनसंगे  भेल युद्धसँ किछु लेना-देना नहि रहैक । मुदा ई घटना ओही लग-पासक हेबाक कारण तकर चर्च होएब स्वभाविक ।

गामक-गाम नबाह,अष्टयाम, यज्ञ  होबए लागल । नाना-प्रकारक अनुष्ठान होइत रहल। तात्पर्य इएह छल जे प्रलयक भविष्यवाणी फेल भए जाइक । हमसभ तँ नेना रही । ओतेक बात नहि बुझिऐक । मुदा लोकसभक मोन आशंकित देखि चिंता तँ हेबे करए जे कहि नहि की होएत,किओ बचत की सभ दहि-बहि जाएत। कहि नहि एहन भविष्यवाणी केनहार के छलाह आ हुनकर की उद्येश्य छलनि? जे छलाह मुदा समाजमे हरकंप तँ भइए गेल छल ।

कोनो आसन्न महान संकटसँ निजात पएबाक हेतु गामक-गाममे अष्टयाम आ नबाहक प्रकारक कीर्तन करबाक उजाहि उठि गेल  छल । हमरा गाममे तँ अष्टयाम आ नबाहक जेना बाढ़ि आबि गेल छल । साइते कोनो घर रहल होएत जतए अष्टयाम नहि भेल । व्रह्मस्थानमे नबाह भेल छल । गाम-गामसँ कीर्तनिआँसभ झुंड बना-बना अपन समयपर रंग-विरंगक सुर-तान दैत कीर्तन करैत छलाह । हमरा मोन पड़ैत अछि जे जमुआरी,बिचखाना,पौना, झोंझी आ कहि नहि कुन-कुन गामक लोकसभ ढ़ोलक,झालि, हरमुनिआ लेने अबैत छलाह आ दू-तीन घंटाक अपन पारमे  अनेकानेक सुर-तान दैत निर्धारित मंत्रकेँ  गबैत रहैत छलाह । बाल्टीक-बाल्टी सरबत घोरल जाइत छल आ कीर्तनिआँसभकेँ कीर्तन समाप्तिक बाद पिआओल जाइत छल । एकटा मंडलीक समय समाप्त हेबासँ पहिने दोसर मंडली तैयार रहैत छल जाहिसँ नवाह संकीर्तन अवाध्य चलैत रहए,खंडित नहि होअए।

संकीर्तनक मंत्रकेँ फिल्मी गानाक तर्जपर गेनाइ आ कीर्तनमे घुमैत काल अनेकानेक प्रकारक नृत्य भंगिमा सेहो कैटा मंडली द्वारा कएल जाइत छल । एकटा झालि बजओनिहार सामनेक दोसर झालि बजओनिहारक झालिपर झालि रखबाक हेतु उनटि जाइत छलाह । झालिपर- झालि बजाकए फेर पूर्वबत भए जाइत छलाह । धीया-पूतासभ एहि दृष्यसभसँ बहुत प्रभावित  रहैत छलाह आ घंटो कार्यक्रमकेँ देखैत रहैत छलाह । जमुआरीक मंडली एहि हेतु नामी छल । एहि मंडलीमे हमर पिताजीक एकटा कर्मचारी स्वर्गीय कीर्तन सिंहकेँ कीर्तन करैत देखि हमरा बहुत नीक लगैत छल । कहि नहि सकैत छी जे गाम-गामसँ अनेकानेक कीर्तन मंडलीकेँ अबैत-जाइत देखि नेनासभकेँ कतेक प्रशन्नता होइत छल। नबाह एक हिसाबे ग्रामोत्सव होइत छल ।

एहन माहौल भए गेल रहैक जे हमसभ चारि-पाँचटा नेनासभ मिलि कए अपने ओसारापर अष्टयाम शुरु कए देने रही । बादमे जखन बाबूजीकेँ पता चललनि तँ ओ बहुत असमंजसमे रहथि । हमसभ कोनो खराप काज तँ नहि करैत रही जे सोझे रोकि देल जाइत,मुदा समस्या रहैक जे दूपहर रातिमे ओकरा कोना आगू ससराओल जाएत । लग-पासक धीया-पूतासभकेँ हम जा-जा कए बजाबी मुदा सभठाम लोकसभ किछु -ने-किछु दिक्कतिबला गप्प करथि कारण राति बढ़ल जाइत छल,लोकसभ नीन्नसँ मातल छल । ऊपरसँ जाढ़क मास छलैक । सीरक छोड़ि कए कीर्तन करए के अबैत? हारि कए आधा रातिमे कीर्तन बंद करए पड़ल । मोसकिलसँ तीन-चारिटा छौंड़ासभ  मिलि कए एकटा टेबुलक चारूकात घुमि-घुमि कए अष्टयाम करए चलल रही । टेबुलक बीचमे भगवानसभक फोटो राखि देने रहिऐक । एक हिसाबे ई धीया-पूतासभक खेल छल । असलमे किछुदिनसँ लगातार गाममे यत्र-तत्र  एहन कीर्तनसभ होइते रहल छल जकर प्रभाव नेनासभक माथापर पड़ल हेतैक ,सएह बुझा रहल अछि। अष्टयामक संकल्प अधूरा रहि गेल । एहिबातक दुख कैगोटेकेँ भेलनि आ थोड़ेक दिनक बाद फेरसँ विध-विधानसँ अष्टयामक आयोजन हमरसभक दरबाजापर भेल । कहि नहि सकैत छी जे हम आ हमर संगीसभ एहि बातसँ कतेक खुश भेल रही ।

अष्टयामक प्रभाव भेल कि नहि भेल से तँ नहि कहब मुदा ओहि साल कोनो तेहन आफद नहि आएल जकर आशंकासँ गामक-गाम लोकसभ अष्टयाम,नवाह,यज्ञसभ करए लागल रहथि। हँ,ओहिसाल एकटा बात जरूर भेल। की भेल? मोन पड़ि रहल अछि की? नहि, तँ सुनू । गामक-गाम आम खूब फड़ल रहए । कलमसभमे आमक पथार लागि गेल रहए । आम  खाइत-खाइत लोकसभ जहन थाकि गेलाह तँ धरिआक -धरिआ अमोट पाड़ल गेल । अखनो मोन पड़ैत अछि जे कलमसभमे कतेक चुहचुही रहैत छल ।

नेनाक बाते किछु आओर होइत छैक । कलममे आमक रखबारी करबाक हेतु मचान बनाओल गेल छल ।  हमहु अपन संगीसभक संगे आमक रखबारीक बहाना बनाकए कलममे रातिभरि रहि जेबाक जोगारमे रही । मुदा बाबूजीकेँ बहुत चिंता भेलनि आ राति बढ़ैत देखि लालटेन लेने कलम पहुँचि गेलाह । हारि कए हमसभ घर आपस भए गेलहुँ।

गाम-गाममे अष्टयाम आ नवाह अखनो होइते अछि । हमरा गाममे तँ नियमित रूपसँ सालमे एकबेर नवाह होइते अछि । मुदा जे उजाहि सन् १९६२मे उठल रहए से फेर कहिओ देखबा-सुनबामे नहि आएल । आब तँ ओ बात बहुत पुरान भए गेल । मुदा अखनो कीर्तनसभक प्रतिध्वनि माथक कोनो कोनमे ओहिना होइत रहैत अछि जेना की ई कल्हुके गप्प होइक ।

गुरुवार, 8 अगस्त 2019

अखबार माने टाइमपास


अखबार माने टाइमपास



कै बेर लोक कहताह-"हौ! अखबार पढ़ने कोनो पेट भरैत छैक?"

पेट भरौक कि नहि मुदा मोन तँ भरिते छैक । फेर हमसभ तँ सामाजिक प्राणी छी । लग-पासमे रहनिहार लोकक सुख-सुविधाक ध्यान राखब आ विपत्तिमे संगे ठाढ़ होएब बहुत जरूरी होइत अछि । से तँ तखने होएत जखन हम अपना-आपकेँ  समाजसँ जोड़ि कए राखी  । ताहि हेतु अखबार एकटा बहुत सशक्त माध्यम  साबित भए सकैत अछि ।

अखबारक सबसँ पैघ फाएदा ई थिक जे अहाँ नित्य भिरे-भोर किछु नव घटनासँ जुड़ि जाइत छी । नित्यप्रति देश-परदेशमे  भए रहल परिवर्तनसँ अवगत होइत छी । ततबे नहि, लग-पासक बहुत रास  सुविधा-असुविधासँ परिचित होइत रहैत छी । बहुत लोकक  तँ ई स्थिति अछि जे जँ भोरे उठि कए भफाइत चाहक चुस्कीक संग अखबारक चासनी नहि भेटतनि तँ बुझू बोखार लागि जेतनि । घरसँ बाहर भए अखबारक आगमनक प्रतीक्षा करए लगताह । अखबार पढ़ि लेलाक बाद एकटा संतुष्टिक भाव मोनमे अबैत अछि । प्रायः भोरुका एकघंटा समय चाहक संगे अखबार पढ़बामे नीकसँ बीति जाइत अछि ।

भोरुका अखबार माने टाइमपास । जौँ भोरमे अखबार  आबएमे विलंब भेल तँ कै गोटे  परेसानी बढ़ि जाइत छनि । कै गोटे अखबारबलाक बाट तकैत-तकैत  बाहर निकलि जाइत छथि । अखबारबलाकेँ फोनपर फोन होबए लगैत अछि । ओहो तँ मनुक्खे अछि । कहिओ बिमार पड़ि सकैत अछि,जरूरी काज आबि सकैत छैक । कारण किछु भए सकैत छैक मुदा एहन नहि भए सकैत अछि जे ओ कहिओ छुट्टी लेबे नहि करए । मुदा अखबारक चस्का तेहन होइत अछि जे लोक एक्कोदिन ओकर बिना रहिए नहि सकैत अछि । बेचैन भए जाइत अछि । एकरे कहल जाइत अछि अमल । भोरमे अखबार पढ़ब सेहो एकटा अमले थिक जकर चस्का कोनो निसासँ कम नहि होइत अछि ।

अखबारक कुन पन्ना के सबसँ पहिने उलटओताह ओ हुनकर रूचि आ स्वभावपर निर्भर करैत अछि । हमरा कार्यालयमे एकटा कर्मचारी अखबार पढ़एकाल सबसँ पहिने  बिचलका पन्ना पढ़ैत छलाह जाहिमे जिलाभरिमे भेल खून-खराबाक समाचार भरल रहैत छल । तहिना जौँ किओ क्रिकेटप्रेमी छथि तँ ओ सभसँ पहिने खेल समाचार पढ़ता। राजनीतिमे रूचि रखनहार  लोक प्रथम पृष्ठ सभसँ पहिने पढ़ताह ।  तकरबाद दुनिआ भरिक राजनीतिक गप्प करताह जेना कि सभटा जिम्मेबारी हुनके माथपर होनि ।

अखबारक अभाव ओकर उपस्थितिसँ बेसी लक्षित होइत अछि । जौँ कोनो कारणसँ कहिओ अखबार नहि आएल तँ भोरेसँ मूड खराप होएब स्वभाविक । चाह तँ आबि गेल मुदा अखबार बिना चाहक कोन आनंद रहि गेल'-से मोनमे होइत रहैत अछि । कै गोटा तँ अखबार आनबाक हेतु दिन-राति एक कए दैत छथि । जौँ किओ मधुबनी वा दरभंगा जा रहल छथि तँ हुनका अखबार अनबाक भार देथिन जे घुरतीमे अखबार लेने आएब। सोचएबला गप्प थिक जे आखिर अखबारक एतेक प्रयोजन किएक रहैत छैक? किछु तँ एहन बात हेतैक जे अखबार मंगाएब आ पढ़ब एतेक महत्वपूर्ण भए गेल अछि ।

असलमे अखबारमे एकहि संगे बहुत रास लोकक आवश्यकताक पूर्ति होइत अछि । जकरा नौकरी चाही से नव-नव रिक्तिक सूचना देखि अपन दर्खास्त लगा सकैत छथि । जिनका बिआह करबाक छनि हुनको लेल ओहिमे विज्ञापन देखल जा सकैत अछि । परीक्षाक परिणाम सेहो ओहिमे पढ़ल जा सकैत अछि । गाम-घरक समाचार तँ भेटिए जाइत छैक ।

अखबार नियमित पढ़बाक फाएदा जगजाहिर अछि । थोड़बे कालमे दुनिआ भरिक चहलकदमी पता लागि जाइत अछि ,सेहो बिना कोनो विशेष प्रयासक । ओना आइ-काल्हि समचारक माध्यममे बहुत रास इजाफा भेल अछि । मोबाइल फोन,दूरदर्शन,,घर-घर पसरि गेल अछि । कहि सकैत छी तखन अखबारकेँ के पुछैत अछि? मुदा से बात नहि अछि । कतबो किछु भेलैक अछि,मुदा अखबारक बिक्री बढ़बे कएल अछि । तकर की कारण? एकटा प्रमुख कारण थिक जे अखबारमे पाठकक हाथमे रहैत छैक जे कोन समाचार  कतबाकाल धरि पढ़ल जाए । चाहथि तँ ओ प्रमुख पाँतिसभ पढ़ि कए अखबारक पन्ना पलटि देथि नहि जँ कोनो समाचार बेसी रुचिगर  किंवा उपयोगी बुझेलनि तँ ओकर पाँति -पाँति पढ़ि जाउ,मर्जी पाठकक । मुदा दूरदर्शनमे से बात नहि रहैत अछि । जहाँ समाचार देखए लागब कि प्रचारक शृंखला शुरु होएत । लिअह औ बाबू!रिमोट हाथमे लए चैनेलसभ बदलैत रहू मुदा बात ओतबे भेटत । सब चैनेलबला से सीखा-बुद्धी केने रहैत अछि जे सभठाम विज्ञापन एकहि संगे होइत रहैत अछि । हारिकए दर्शक बैसि जाइत छथि आ जएह-सएह देखैत रहि जाइत छथि । मुदा अखबारमे से बात नहि होइत अछि । लोक अपन रुचिक हिसाबसँ निर्णय कए सकैत छथि जे की पढ़ी आ की नहि । ककरा नीकसँ पढ़ी आ ककर मुख्य पाँति पढ़ि कए आगू बढ़ि जाइ । कहक माने जे  नियंत्रण पढ़एबलाक हाथमे रहैत अछि । मुदा अखबारोकेँ अपन सीमान छैक । एकतँ ओ एक-दू दिन पुरान समाचार छपैत अछि । कारण जाबे समाचार छपतैक आ लोकक हाथमे पहँचतैक ताबे तँ ओ बसिआ भए जाइत अछि । अस्तु,कै बेर संवेदनशील समाचारकेँ सद्यः देखबाक हेतु  दूरदर्शनक जबाब नहि अछि । घरे बैसल चंद्रमाक धरातलपर छंद्रयानक गतिविधि देखू,मोन होअए तँ संसद कार्यवाही देखू । ई काज अखबारसँ तँ नहिए भए सकैत अछि । तथापि,अखबारक अपन महत्व छैक आ रहबे करतैक ।


मंगलवार, 6 अगस्त 2019

भारत का भविष्य


भारत का भविष्य



भारत का धार्मिक आधार पर विभाजन आधुनिक इतिहास का अत्यंत दुखद प्रसंगों  में सदा स्मरण किया जाएगा । यह समझना कठिन है कि तत्कालीन नेताओं ने अंग्रेजों का विभाजन के पीछे का चाल क्यों नहीं समझा । वे कभी भी हमारे शुभचिंतक नहीं थे । उनका मकसद ही हमें इतना कमजोर कर देना था कि हम आगे चलकर भी स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित नहीं हो सकें । अंग्रेजों ने देश के टुकड़े-टुकड़े कर देने के अपनी योजना को कार्यान्वित करने के लिए देश के भीतर सैकड़ों देशी नरेशों को स्वतंत्र रहने की छूट दे दी । इसका परिणाम यह हुआ कि अंग्रेजों के जाते ही सैकड़ों स्वतंत्र देश के उदय की संभवना प्रवल हो गई । विभाजन की व्यवस्था इतनी बिचित्र  थी कि हजारों मील दूर पूरबी पाकिस्तान(अब वंगला देश) और पश्चिमी पाकिस्तान एक देश बन गए । भौगोलिक दृष्टि से ही नहीं,सांस्कृतिक रूप में भी वे विल्कुल भिन्न थे । उनका रहन-सहन,खान-पान,भाषा सब कुछ विल्कुल अलग था । बस इसलिए कि वहाँ मुसलमानों की संख्या अधिक थी ,वे एक देश बन गए । बन तो गए पर एक रह नहीं सके । रह भी नहीं सकते थे । एक साथ रहने का कुछ भी तो हो । पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाबी सेना और प्रशासन के प्रमुख पदों पर इस तरह काबिज हो गए की  पूरबी पाकिस्तान के लोगों को द्वेम दर्जे का नागरिक भी नहीं माना जाता था । उनका तरह-तरह से शोषण होता था । हद तो तब हो गई जब चुनाव जीत जाने के बाद,बहुमत प्राप्त कर लेने के बाद भी मुजीबुर रहमान को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया गया । उसके बाद जो हुआ बस इतिहास है । अंततोगत्वा, पूरबी पाकिस्तान टूटकर अलग राष्ट्र बंगलादेश बन गया ।

जो व्यवस्था अंग्रेजों ने की थी और हमारे तत्कालीन नेताओं ने मानी थी उसके अनुसार देश के बीचोबीच हैदराबाद पाकिस्तान का हिस्सा हो जाता । और भी कई स्वतंत्र देश बन गए होते । भला हो वल्लभ भाइ पटेल का जिस से हम बच गए । उन्होंने दिन -रात मिहनत कर के सैकड़ों देशी नरेशों को भारत में विलय के लिए मना लिया । परंतु काश्मीर के मामले में पेंच फँस गया जिसका परिणाम आज भी हम भुगत रहे हैं ।

काश्मीर समस्या  हमारे देश के लिए खतरे की घंटी बनी हुई है । दुनिया के कई देश पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत को दबाने की कोशिश करते हैं । वे मनमाने तरीके से इस समस्या का समाधान ढ़ूंड़ते हैं और फिर हम से अपेक्षा करने लगते हैं कि हम वैसा ही करें जैसा वे चाहते हैं । हाल में अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा दिया जा रहा मध्यस्तता का प्रस्ताव ऐसा ही कुछ संदेश देता नजर आ रहा है । जबकि भारत ने वारंबार स्पष्ट किया है कि काश्मीर समस्या का समाधान भारत-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय वार्ता से ही संभव है ,किसी तीसरे पक्ष का इसमें कोई हस्तक्षेप हमें मंजूर नहीं है । पर अमेरीका है कि मानता ही नहीं । आजकल वह इमरान खान को खुश करने के चक्कर में लगातार भारत के हित के खिलाफ बयान देता जा रहा है । निश्चय वे एसा अफगानिस्तान में पाकिस्तान का समर्थन प्राप्त करने के लिए कर रहे हैं । पर उन्हें यह भलीभाँति पता होना चाहिए कि भारत का वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व  बहुत ही मजबूत इरादोंवाला और परिपक्व है और वह राष्ट्रहित के खिलाफ किछ भी नहीं कर सकता है ।

आज यह स्थिति है कि काश्मीर का अधिकांश हिस्सा हमारे कब्जे में है ,परंतु इसका कुछ भाग अभी भी पाकिस्तान के अधिकार क्षेत्र में है । इसे  पाकिस्तान अधिक्रित काश्मीर  कहा जाता है । यह बात सभी जानते हैं कि अगर तत्कालीन उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाइ पटेल को कुछ और  समय मिल गया होता तो पूरा-का -पूरा काश्मीर हमारा होता । परंतु नेहरुजी ने हस्तक्षेप कर आगे बढ़ते हुए भारतीय फौज को रोक दिया। उन्होंने ही काश्मीर मामले में यूएनओ के हस्तक्षेप की गुंजाइस कर दी । अब क्या हालात है वस किसी से छिपा नहीं है । नित्य हमारे जबान आतंकिओ द्वारा मारे जा रहे हैं । कास्मीरी पंडितों को अपने  पूर्वज की भूमि से खदेर दिया गया है । उनकी  जायदाद पर अनाधिकार कब्जा कर लिया गया है  और अपने ही देश में वे शरणार्थी बने हुए हैं । इस से ज्यादा दूर्भाग्यपूर्ण स्थिति क्या हो सकती है?

अर्से से लोग कहते रहे हैं की देश के अन्य राज्यों की तरह काश्मीर में कानूनी रूप से वही व्यवस्थाएं होनी चाहिए जैसा कि कहीं अन्यत्र हैं । भारत के संसद ने काश्मीर मे लागू धारा ३७० के प्रावधान को संशोधित कर दिया है जिस से जम्मू और काश्मीर भारत का अभिन्न अंग हो गया है । अब इस पर वे सभी कानून लागू होंगे जो देश के अन्य भाग में लागू हैं । इस तरह जम्मू और काश्मीर को संविधान द्वारा प्राप्त विशेषाधिकार समाप्त हो गया है । यह काम तो बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था । लेकिन राजनीतिक कारणों से ऐसा नहीं किया जा सका । अब जबकि  संविधान के प्रावधानों मे जरूरी संशोधन करके जम्मू और काश्मीर को प्राप्त विशेषाधिकार समाप्त कर दिया गया है,हम आशा कर सकते हैं कि देश के अन्य भागों में हो रहे विकास कार्यों का लाभ जम्मू और काश्मीर की जनता को मिलेगा और वे  पहले से कहीं ज्याद सुखी रहेंगे ।

यद्यपि भारत एल लोकतांत्रिक गणराज्य है और देश के नागरिकों को कहीं भी बसने,जीविकोपार्जन करने का मौलिक अधिकार संविधान से प्राप्त है लेकिन व्यवहार में इसका कार्यान्वयन दिन-प्रतिदिन कठिन होता जा रहा है । लगभग सभीलोग चाहते हैं कि  उस राज्य की नौकरी में बाहरी प्रान्तों के लोग नहीं आएं । अगर नौकरी ही नहीं कर पाएंगे तो बसेंगे कहाँ से? कहने का मतलब है कि संवैधानिक अधिकार होते हए भी देश के नागरिक अपने अधिकारों से वंचित  रह जाएंगे । ऐसे माहौल में राष्ट्रीय एकता कहाँ से स्थापित हो सकती है । यही कारण हैक यदा-कदा देश को तोड़ने की चर्चा भी करते हुए लोग पाए जाते हैं और उनको भी समर्थक मिल जाते हैं ।

अपने देशमें ज्यादा ही लोकतंत्र है । कुछभी करके लोग कहते सुने जाते हैं कि वह तो उनका लोकतांत्रिक अधिकार है । इसके लिए कानूनी व्यवस्थाओं को तरह-तरह से व्याख्या की जाती है । सत्ता प्राप्त कर लेना राजनीतिक दलों का एकमात्र लक्षय लगता है । इसके लिए वे कुछ भी कर सकते हैं । जाति व्यवस्था को फिर से देश के केन्द्रविंदु में खड़ा कर देना इसका प्रमाण है । कम से कम शहरी क्षेत्रों से जातिवाद समाप्त प्राय हो गया था । किंतु राजनीतिक स्वार्थ के लिए अब इस समस्या को इतना महत्व दे दिया गया है कि वे लोग जाति को वोटवैंक का सबसे आसान जरिया समझा जाने लगा है । फिर और कुछ करने का बबाल क्यों किया जाए। जाति के नाम पर देश की आर्तिक संपदा को लूटने में भी वे पीछे नहीं रहते । फिर कोई समस्या हो तो जाति का ही सहारा लेकर बच निकलने में कई बार कामयाब हो जाते हैं । यह देश का दूर्भाग्य ही समझिए की स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने वर्षों के बाद भी हम गुण-दोष के आधार पर मतदान करने के बजाए जाति और धर्म को प्रमुखता देते हैं जिस कारण सही लोग राजनीति के दंगल में टिक ही नहीं सकते हैं ।  जिस दिन भारत वर्ष में नागरिक ऐसा करेंगे,और लोकसभा/विधानसभा में उम्मीदवारों का चयन  उसके कार्य  एवम् चरित्र पर आधारित होने लगेगा उस दिन देश का भविष्य ही कुछ और हो जाएगा । हम इस विषय पर गंभीरता  से विचार करें और संकल्प लें कि हम अपने देश को उत्कर्ष पर पहुचाने के लिए कुछ भी कसर नहीं छोड़ंगे । हम ऐसे लोगों को कभी भी  तरजीह नहीं देंगे जो स्वार्थवश समाज को धर्म  और जाति के नाम पर बांटते हैं और अभी  भी फूट डालो और राज करो के सिद्धांत पर चल कर देश और समाज का घोर अहित कर रहे हैं ।








मंगलवार, 11 जून 2019

जीवन और मृत्यु


जीवन और मृत्यु



 पता नहीं कितने सालों से जीवन पृथ्वी पर है ? क्या पृथ्वी के अलावा कहीं और भी जीवन है? क्या जीवन के बाद हमरा कुछ आस्तित्व रहता है, कि जीवन के अंत याने मृत्यु के साथ ही सब कुछ समाप्त हो जाता है?

जन्म लेने के बाद समस्त जीव-जन्तु निरंतर विकास करता रहता है । यह प्रकृति की सुनियोजित और स्वचालित व्यवस्था है जो विना किसी अपवाद के सबों पर लागू होता है । फिर भी नियतिवश कई बर दुर्घटनाओं का शिकार होकर कई बार यह विकास का क्रम अधूरा ही रह जाता है । लेकिन सामान्यतः यह जीवन चक्र अपनी पूर्णता के लिए अग्रसर होती रहती है । फिर एकदिन मृत्यु को आलिंगन कर न जाने किस जहाँ में खो जाती है। इस तरह जीवन-मृत्यु का यह सिलसिला अनादि काल से चलता रहा है और चलता रहेगा।

जीवन के बारे में सब से आश्चर्यपूर्ण बात यह है कि कोई प्राणी चाहे वह कितना भी कष्टपूर्ण स्थिति में क्यों न हो ,मरना नहीं चाहता है । सभी जीव-जन्तु निरंतर  अपनी रक्षा करने में लगे रहते हैं । लेकिन यह संसार है । हर वलिष्ठ प्राणी अपने से कमजोर पर हावी हो जाता है या होना चाहता है । वन्य जीव-जन्तु एक-दूसरे का शिकार कर ही जीवित रहते हैं । लेकिन मनुष्य में सोचने-समझने की शक्ति भगवान ने दी है । हम कुछ करने से पहले उसके परिणाम पर विचार सकते हैं । लेकिन सामान्यतः लोग ऐसा कर नहीं पाते हैं । वे अपने हितों के बारे में तो बहुत संवेदनशील रहते हैं लेकिन दूसरे के प्रति दुराग्रहों से भर जाते हैं । ऐसा क्यों होता है? इसलिए क्यों कि हम निषेधात्मक प्रवृतियों से घिर जाते हैं । हमारे सोच की दिशा ही भविष्य का द्वार निर्धारित करती है। दूसरों के प्रति ईर्ष्याभाव से ग्रसित रहकर हम सुखी कैसे हो सकते हैं? हो ही नहीं सकते है । यही कारण है कि आज के युग में इतना तनाव है । लोक आत्महत्या करते हैं और बात-बात में,मामूली विवादों में दूसरों की जान लेने में भी बाज नहीं आते हैं ।

यह महत्वपूर्ण नहीं है कि हम कितना जीते हैं । कुछ लोग कम दिन जी कर ही अमर हो गए । आदि शंकराचार्य वत्तीस साल के उम्र में ही परलोकवासी हो गए परंतु इतने कम उम्र में ही उन्होंने भारत के आध्यात्मिक जगत को झकझोर दिया । देश में चार शंकाराचार्य पीठों की स्थापना की । स्वामी विवेकानंद भी कम उम्र में ही स्वर्गवासी हो गए परंतु सायद ही कोई दिन होगा जब अभी भी उनको लोग याद नहीं करते होंगे और उनके ओजस्वी प्रवचनों से लाबान्वित नहीं होते होंगे । जो बात वे कह गए वे आज भी पूर्ण प्रासांगिक हैं और जीवन में मार्गदर्शक का काम कर रहे हैं ।

जब भी हम सकारात्मक सोच से जुड़ते हैं तो हम जीवन से करीब हो जाते हैं । सही माने में हम प्रकृति में चतुर्दिक विद्यमान सौंदर्य का आनन्द उठाने में सक्षम हो पाते हैं । मेर और तेरा का चक्कर समाप्त हो जाता हे। हम चाहने लगते हैं कि हमारे आस-पास के सभी लोग सुखी हों। वसुधैव कुटुम्वकम् सही माने में तभी चरितार्थ हो पाता है । ठीक इसके विपरीत  हम जैसे ही निषेधात्मक तत्व जैसे अहंकार,क्रोध,ईर्ष्या आदि को अपना लेते हैं तो हम अपने जीवन में स्वयं ही विष घोल रहे होते हैं । ऐसा नहीं होता है कि आप अकेले सुखी रहें,आपको दुनिया की सारी उवलव्धियाँ मिले और दूसरे हाथ पर हाथ धरे रह जाँए । चतुर्दिक सच्चा सुख तो तभी मिल सकता है जब हमारे आसपास सभी सुखी हों,सब अपने लक्ष्य को प्राप्त करें । इस तरह जीवन में ही हम अपने स्वभाव के अनुसार अमृत और विष उतपन्न कर लेते हैं ।

सारांश यह है कि जीवन काफी लंबा हो उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि वह अर्थपूर्ण हो । तभी जीना सार्थक है। तभी जीने का सही आनंद हम ले सकते हैं ।




मंगलवार, 4 जून 2019

ईश्वर यहीं है


ईश्वर यहीं है 



सेवा निवृत्ति के बाद मदन घर वापस आया था । चालीस साल उसने सरकारी सेवा की थी । इस लंबी अवधि में उसने बहुत कुछ देखा,भोगा । लेकिन नौकरी में व्यस्तता के कारण सब कुछ भूलता रहा । आज पहली बार उसे खाली-खाली लग रहा था । अपने छोटे से घर के बरामदे पर बैठे हुए वह  रह-रहकर अतीत में खो जाता था । इस तरह  सोचते-सोचते घंटों निकल गए । एकाएक उसका ध्यान सामने चिल्ला रहे व्यक्ति की आवाज से टूट गया-

"वर्तन ले लो । पुराने को नए से बदलो .... । ऐसा मौका फिर कभी नहीं मिलेगा ।" उसने अपनी साइकल पर ढेर सारे वर्तन लाद रखा था और खुद पैदल चलते हुए साइकल को खींच रहा था ।

इस उम्र में इतनी मेहनत क्यों करते हो?"-मदन ने पूछा ।

" पेट के लिए सबकुछ करना पड़ता है ।"

"तो क्या तुम अकेले हो?"

"अकेले रहता तब यह सब क्यों करता? मथुर-वृंदावन जाकर रह लेता ।"

"फिर कौन-कौन है तुम्हारे साथ?"

यह  प्रश्न सुनकर वह गंभीर हो गया , चुपचाप आकाश की ओर देखने लगा । सायद मदन ने उसके दुखते नस पर हाथ रख दिया । मदन ने कुछ और पूछना उचित नहीं समझा । थोड़ी देर बाद वह स्वयं संयत होते हुए कहने लगा-

" घर में विकलांग माँ है और मैं हूँ । अगर मैं काम नहीं करूंगा तो उसकी देखभाल कौन करेगा?

बातचीत के दौरान  उसे  लगने लगा जैसे कि उसे कभी पहले देखा है ।

"मुझे लगता है मैंने आप को पहले भी देखा है ।" -मदन ने कहा ।

"मुझे भी यही लगता है । "

"आपका नाम क्या है?"

"गोलू"

गोलू नाम सुनते ही मदन  उछल पड़ा । बचपन में सायद ही कभी होता हो जब वे स्कूल में साथ-साथ न खेले हों। गोलू पढ़ने में ठीक नहीं था । परंतु खेल में सबसे आगे रहता था ।

" मैं हूँ मदन।"

"अरे! विश्वास ही नहीं होता है कि इतने दिनों बाद तुम से मिल रहा हूँ । "

मदन दौड़कर घर  से कुछ खाने का समान और पीने के लिए पानी ले आया । फिर कहने लगा-

"बैठ जाओ । पानी पी लो । "

इस तरह का आवेश उससे किसी ने आजतक नहीं किया था । सो वह मना नहीं कर सका । मदन को भी उससे बातें करते हुए कुछ समय कट गया ।

"अपना हाल-चाल बताओ।"

"मेरे एक ही लड़का है। पढ़ाई-लिखाई करने के बाद नौकरी करने विदेश गया और वहीं बस गया । मेरी पत्नी कुछ साल पहले चल बसी । वह अंतिम समय तक यही कहती रह गई कि उसके बच्चा आता ही होगा, वह जरूर आएगा । उनसे मिले बगैर वह नहीं मरेगी । पर वह नहीं आया और एक दिन मेरी पत्नी बिना किसी से मिले चली गई । "

"यह तो बहुत गलत हुआ । क्या आपने उन को खबर नहीं किया?"

"किया कैसे नहीं । "

"फिर क्या कहा उस ने ।

" आज-कल करता रहा, परंतु आ नहीं सका ।

इस तरह थोढ़ी देर बातचीत के बाद गोलू उठकर चल दिया । फिर वही आबाज.ले लो...............। मदन अकेला बरामदे पर बैठा रहा । उसके मनमें बार-बार  अपने पत्नी की याद आती रही जो अंतिम क्षण तक पुत्र की प्रतीक्षा करते हए चली गई । अब वह अकेला यहाँ रहकर क्या करेगा? किस से अपने मन की बातें कहेगा । सो उसने सोचा -"क्यों न वृंदावन चलूँ । वहीं भगवान के शरण में समय बीत जाएगा । " दूसरे दिन सुबह होते ही वह गाँव से वृंदावन के लिए निकल पड़ा ।

वृंदावन पहुँच वह एक आश्रम में रहने लगा । धीरे-धीरे वहाँ उसकी जान-पहचान कई साधुओं से हो गई । उसका अधिकांश समय भजन-कीर्तन में बीतने लगा । एकदिन सुबह-सुबह यमुना किनारे बैठे मदन भजन कर रहा था कि फिर वही आबाज सुनाई पड़ी-"ले लो,ले लो,ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा....."

आबाज सुनकर मदन चौका । चिल्लानेवाला उसका वचपन का दोस्त गोली ही था  । मदन को देखते ही कहने लगा-

" माताजी की इच्छा वृंदावन जाने की थी । इसलिए उनको साथ लेकर आ गया । "

"यह तो बहुत ही अच्छा किया तुमने । हमारे आश्रम में चलो । हम लोग साथ- साथ रहेंगे और सुबह-शाम भजन-कीर्तन करेंगे ।"

"माताजी तो वापस अपने गाँव जाना चाहती हैं ।"

"क्यों?"

गाँव से आने के बाद मैंने माताजी को एक मंदिरमे भगवान के दर्शन के लिए ले गया । वह मंदिर में प्रवेश करने ही वाली थी कि मंदिर का पुजारी एक भिखारी को जोर से दे मारा ।"

"क्यों?"

"क्यों कि एक भक्त ने उसे अपने जेब से किछ पैसे निकालकर देना चाहा । पुजारी को यह अच्छा नहीं लगा । उसे सायद लगा कि उस पैसे पर तो मात्र उसी का हक है क्यों की वही  इस मंदिर का पुजारी है । इसलिए ही वह भिखारी पर चिल्ला उठा । इस दृष्य को देखकर मेरी माता बहुत दुखी हो गई । मुझे तुरंत गाँव वापस होने के लिए कहने लगी ।"

" असली भगवान तो गाँव में ही हैं । वे दुखी, विमार, असक लोगों के हृदय में बसते हैं । -मेरी माता बोली ।

मदन ने बहुत मनाया कि वह थोड़ी देर रूक जाए । परंतु उसकी माता तुरंत वहाँ से गाँव लौट जाने के लिए अड़ गई । और वे वृंदावन छोड़कर अपने गाँव वापस चले गए ।

मदन की आँखे खुल गई । वह तुरंत अपने गाँव लौट गया । वहाँ लौटकर उसने एक अस्पताल का निर्माण करबाया । उसने अपनी सारी संपत्तियाँ अस्पताल में दान कर दी और स्वयं दिन-रात अस्पताल आने वाले मरीजों की सेवा में लग गया । इस तरह गरीब मरीजों की सेवा कर उसे लग रहा था कि उसने सचमुच ईश्वर पा लिया है ।