मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

शनिवार, 20 जून 2020

दिल्लीक दुरंगी दुनिआ

 

दिल्लीक दुरंगी दुनिआ

 

भोर होइते चारूकात लोकसभ गर्द पड़ए लगैत अछि । चारिबजे भोरेसँ लोकसभ कथु-ने-कथुक पाँतिमे ठाढ़ भए जाइत अछि । ककरो दूध लेबाक छैक,ककरो रेलक टिकट । ककरो कार्यालय जेबाक जल्दी छैक तँ ककरो कालेज जेबाक छैक । बस,रेल,कारसभक समय बान्हल छैक । तरह-तरहक इंतजामो छैक मुदा लोकक जनसंख्या ततेक छैक जे व्यवस्था धएले रहि जाइत छैक । बसमे चढ़बाक काल धकमधुक्का,अस्पतालमे डाक्टरसँ देखेबाक अछि तँ धकमधुक्का । अस्पतालमे देखेबाक अछि तँ चारि बजे भोरेसँ पाँतिमे लागि जाउ । माने कोनो एहन स्थान नहि भेटत जतए लोकक हुजुम नहि रहैत अछि,जतए अनगिनित लोक पाँति लगाए प्रतीक्षा नहि कए रहल अछि । ई तँ हाल अछि देशक राजधानी-दिल्लीक ।

दिल्लीमे जखन पैसि कए देखबैक तँ ओकर कैकटा विकृति देखाएत । अहाँक दुनिआ अपन फ्लैट धरि समटल रहत । अहाँक अगल-बगल के छथि,चोर छथि,कि उचक्का छथि कि कोनो विद्वान वा कलाकार छथि तकर कोनो जानकारी नहि भेटत । लोक सौंसे दुनिआकेँ नोति लेत मुदा पड़ोसीकेँ कोनो सूचना नहि रहत । जँ सीढ़ीपर कोनो पड़ोसी देखा जाएत तँ लगतैक जे आब की कएल जाए? ओ प्रयासपूर्वक नुका जाएत जाहिसँ भेंट ने भए जाए। बीच सड़कमे केओ ककरो छूरा मारि रहल अछि,कोनो महिलाकेँ कोनो लफंगा तंग कए रहल अछि, कि कोनो घर मे कोनो बूढ़केँ ओकरे परिवारक लोक फज्जति कए रहल अछि,केओ किछु नहि कहत , कात बाटे तेना ने ससरि जाएत जेना ओ किछु नहि देखलक,जेना किछु भेवे नहि कएल । सैकड़ों लोक कोनो घटनाकेँ देखत मुदा मौकापर एकटा गवाह नहि भेटत । तेहन बेदर्द थिक दिल्ली ।

दिल्लीक कोनो टीसनपर चलि जाउ नित्य लाखोंक तादातमे गाम-घरसँ पलायन कए मजदूर दिल्ली अबैत अछि । कैकगोटे तँ अपन गौंवाक संगे अबैत अछि । तकरासभकेँ अएलाक बाद रहबाक ठौर भेंटि जाइत अछि। मुदा दिल्ली अएनिहार बहुत रास एहन लोकसभ होइत अछि जकरा कोनो ठेकान नहि रहैत अछि,जे टीसनसँ कतए जाएत सेहो नहि बूझल रहैत छैक । प्रचंड इच्छाशक्तिक एकमात्र पूँजी लेने ओ सभ जीवन संग्राममे कुदि जाइत  अछि आ अंततोगत्वा, जीवि जाइत अछि । कैकगोटे तँ दिल्लीमे जेना-तेना अपन घरो बना लैत अछि ,अपन रोजगार बना लैत अछि मुदा सभ एहने भाग्यवान नहि होइत छथि । सोचिऔक ओकरासभक हेतु दिल्ली केहन क्रूर रहैत हेतैक जे माघक जाढ़मे रोडपर सुतबाक हेतु विवश रहैत अछि । बात ओतबे पर रहि जइतैक तँ बरदास्त कए लैत मुदा कैकबेर सुतलेमे ओकरापर ट्रक,बस वा कार गुजरि जाइत अछि आ ओ अभागल व्यक्ति फेरसँ सूर्योदय नहि देखि पबैत अछि ।

जँ कहिओ छुट्टी भेटए(ओना दिल्लीमे ककरो कहिओ आफियत रहैत नहि छैक) तँ चलि जाउ कोनो वृद्धाश्रम। ओहिठामक दृश्य देखिते रहि जाएब । ओतए काहि कटैत बूढ़सभ कोनो गरीब घरक नहि होइत छथि । ओसभ अपन जवानीमे कैकटा महल बना चुकल छथि,अपन पुत्रक सुख सुविधाक हेतु बैंकमे कड़ोरो टाका जमा केने छथि,कतेकोगोटेकेँ तँ अखनहुँ बड़का-बड़का कारोबार चलि रहल छनि । मुदा तेँ की? धीया-पुता बुझैत छनि जे ओसभ तँ ओकर अछिए आ ओकरे हेतैक ,ताहि लेल एहि बूढ़केँ कतेक दिन माथपर रखने रहब । कैकटा बूढ़ बेटाक मुँह देखबाक प्रत्याशामे मरि जाइत छथि । कैकटाकेँ अंतिम संस्कारोमे परिवारक केओ नहि आबि पबैत छनि । ओसभ विदेशमे बसि गेल छथिन,ओतएसँ आएब-जाएब बहुत मोसकिल । अपन मजबूरी बता कए संतोख कए लैत छथि । बाह रे! आधुनिक दिल्लीक आधुनिक लोक़ ।

दिल्लीक हाल पुछि रहल छी तँ कहि रहल छी । एकदिस एकसँ एक महल,सुविधा संपन्न कोठीसँ सजल मोहल्लासभ आ तकर सटले भेटत उजरल-उपटल लोकसभक खोपड़ीक शृंखला जकरा दिल्लीक भाखामे कहल जाइत अछि झुग्गी-झोपड़ी कालोनी । जतेक चोर,उचक्का,अपराधीसभ होइत छथि से सभ एहने ठाम नुकाएल रहैत छथि । अपराध करब हुनका लोकनिक मुख्य रोजगार छनि । ओकरेसभक संगे जेना-तेना  देहकेँ झपने ,पेट भरने  दिन-राति गारि मारि सुनैत जिनगी बितबैत रहलाह लाखों बिहारी मजदूरसभ अछि । कालक्रममे ओहीमेसँ किछुगोटे सुभ्यस्त भए गेलाह तँ फेर घुरिओ कए ओहिठाम नहि गेलाह । केओ नेता बनि गेलाह,ककरो दोकान खुजि गेलनि तँ केओ कोनो सरकारी कार्यालयमे छोट-मोट काज पकड़ि लेलनि । जिनका जोगार भए गेलनि,कोनो पैघ अधिकारीसँ संपर्क भए गेलनि तँ स्थायी सरकारी नौकरी सेहो भए गेलनि । से जँ नहिओ भेलनि आ नैमित्तिक आधारपर काज करैत छथि तैओ गाम जा कए हवा दैत छथिन जे ओ सरकारी काज करैत छथि । कैकगोटेकेँ तकर फाएदा भेलनि,नीक परिवारमे बिआह भए गेलनि । जखन ओ सहरमे कनिआ अनलनि आ ओ हुनकर हालति देखलखिन तँ छाती पीटैत रहि गेलीह ।

जे-से मुदा दिल्ली अएबाक क्रम लगातार बनले रहल । गामक-गाम उपटि कए दिल्ली आबि गेल । आब तँ ई हाल अछि जे गामसँ बेसी गौंवा दिल्लिएमे भेटि जेताह । मुदा दिल्ली अछि बेदर्द से तँ कहनहि छी । कोरोनाक कारण जखन सभकिछु बंद भए गेल तँ प्रवासी मजदूरसभक हाथ-पैर फुलि गेलैक । काज छुटि गेलैक । सरकारी सहायताक कतहु कोनो पता नहि । मालिकसभ काजसँ हटा देलकैक । एहन हालतिमे पहुँचलाक बाद सभकेँ अपन गाम मोन पड़लैक । भेलैक जे जेना-तेना गाम वापस चलि जाइ । सभ दिल्ली छोड़ि देलक । किछुगोटे गाम घुरबाक प्रयासमे रस्तेमे  मरि गेल । मुदा गाम-गामे होइत छैक । जे पहुँचि गेल से सभ बहुत उसासमे छल । बेसक एहिबेर ओकरासभक देहपर नवका जींस नहि रहैक, गमकौआ तेल माथमे नहि लागल रहैक मुदा गामक माटिमे  पैर पड़िते ओकरासभकेँ स्वर्गक सुख भेटलैक ।

दिल्लीक चारूकात बड़का-बड़का  अट्टालिका,मीलों नमगर ओभरब्रिज,सैकड़ों दोकानसँ सजल-धजल माल दिस देओ आकर्षित भए जाएत । ओकरा के बनओलक? ओएह बिहारी मजदूर जे आब कोरोनाक संकटमे जान बँचेबाक हेतु गाम वापस चलि गेल अछि । मुदा जखन ओ दिल्लीमे छल तखनहु ओहि मालमे ओ फेर नहि गेल,नहि किनि सकल कोनो दामी चीज-वस्तु , नहि लए सकल अपन शिशु हेतु कोनो आकर्षक खेलौना जकरा गाम गेलाक बाद ओ ओकर हाथमे दैत गर्वक अनुभव करैत ।  ई छैक दिल्लीक दुरंगी दुनिआक कटुसत्य ।

ओना दिल्लीमे भारतक इतिहासक गहींर दर्शन होइत अछि । कहि नहि कतेको राजा एतए अएलाह आ गेलाह मुदा दिल्ली ठामहि अछि । ऐतिहासिक महत्वक एकसँ एक वस्तु एहिठाम भेटत । मुदा से के देखैत अछि? गाम-घरसँ आएल जन-बनिहारसभ दिल्ली अबितहि पेटक जोगारमे जे लगैत अछि से लगले रहि जाइत अछि । आइ-काल्हि करैत ओकर जिनगी गुजरि जाइत छैक । दिल्लीमे रहितहुँ ओ किछु नहि देखि पबैत अछि । सही मानमे कहल गेल अछि - जे दिल्लीक लडू खेलक सेहो पछतओलक आ जे नहि खेलक सेहो ।

दिल्ली भने देसक राजधानी होअए,एकर कोनो अपन व्यक्तित्व नहि छैक । सौंसे विश्वक लोकसभ एतए आबि कए अपना हिसाबे जीबि रहल अछि । सभ अपन-अपन फ्लैटमे मुनल अछि । बगलमे की भए रहल अछि तकर कोनो जानकारी नहि,कोनो मतलबो नहि । जँ केओ मरिओ गेल तँ परेसानी तखने होइत छैक जखन लाससँ निकलैत दुर्गंधक कारण रहनाइ मोसकिल भए जाइत छैक । अन्यथासभ होटल जकाँ फराक-फराक जिनगी जीबैत रहैत अछि । पैघलोकक सभसँ प्रिय मित्र ओकर विदेशी जातिक कुकूर भए गेल अछि । ओकरे संगे जीबैत अछि,ओकरे संगे सुख-दुख बाँटबाक प्रयास मे लागल रहैत अछि । एहन संभ्रांत परिवेशमे रहनिहारक मोनमे  ओकर लगीचेमे झुग्गी बनाकए रहनिहार काजबालीक कोनो चिंता नहि ,कोनो मतलब नहि रहैत छैक । ओसभ तँ संपन्न वर्गक हेतु मात्र इस्तमाल करबाक वस्तु थिक , एक नहि तँ दोसर भेटि जेतैक ।

 सालक -साल दिल्लीमे रहलाक बादो अपन कनो पहिचान बनबएमे असफल रहबाक बाद प्रवासी मजदूर लोकनि कैकबेर वापस अपन गाम जेबाक विचार करैत छथि । मुदा कतेको बेर हुनकर ई इच्छा मोनमे धएले रहि जाइत छनि आ एकदिन परदेशेमे एहि संसारकेँ छोड़िकए चलि जाइत छथि । सौंसे जिनगीक संघर्ष यात्राक एकटा दुखद अंत भए  जाइत अछि । ककरा फुर्सति छैक जे ओकरा हेतु शोक मनाओत वा श्रद्धांजलि देत । एहन थिक ई बेदर्द दिल्ली ।

दोष दिल्लीक नहि थिक । ओ तँ सभदिनसँ राजदरवार रहल अछि । तरह-तरहक राजासभ एहि सहरपर अपन कब्जा जमओलक आ भारतपर शासन केलक । कहल जाइत अछि जे पाण्डवलोकनि सेहो एतहिसँ राज केलथि । पाण्डवकालीन कैकटा मंदिरसभ दिल्लीमे अखनो अछि । दिल्लीमे जेम्हरे जाएब ढहल-ढनमनाइत राज-प्रसादसभ अपन-अपन खिस्सा कहबाक हेतु आतुर भेटत । मुदा ककरा समय छैक जे ओकरसभक दारुण व्यथा-कथा सुनए आ अपनो मोनकेँ दुखी कए लिअए ।  राजा रहैक,राजबारा रहैक ,ओकरे नौकर-चाकर रहैक । मुदा आब समय बदलल छैक । सभ अपनाकेँ राजे मानैत अछि । कहैत अछि जे देशमे प्रजातंत्र आबि गेल छैक । संविधान बनि गेल छैक , सभ बरोबरि अछि । मुदा ई सभ  कागज-किताबमे सीमित छैक । वास्तविकता इएह छैक जे आम आदमीकेँ जे दिल्ली हाथ लगैत छैक से ततेक ने कठोर आ विद्रुप अछि जे ओकरा पाथरपर माथा फोड़ैत रहबाक हेतु विवश कए दैत छैक जखन कि ओतहि केओ श्रीमान दिन-राति गगनचुंबी महलमे  बैसल देशक प्रगतिक ढोल बजबैत रहैत छैक ।

उमीदेपर ई दुनिआ ठाढ़ छैक । तेँ हमसभ आशा करी (आ किएक नहि करी) जे एकदिन एहनो अएतैक जखन दिल्ली  सही मानेमे सुंदर भए जएतैक । दिल्लीक नीक अस्पतालसभ गरीबोक हेतु सुलभ होएतैक। गरीबोक नेनासभ पव्लिक इसकूलमे  पढ़तैक आ सभगोटेएकस्वरमे कहतैक-वाह रे दिल्ली!


20.6.2020