सन् २०१८मे प्रकाशित हमर मैथिली उपन्यास महराज(ISBN: 978-93-5321-395-4)क हमर ब्लाग स्वान्तः सुखायपर धारावाहिक पुनर्प्रकाशनक दोसर खेपः
कमला ओ लखना पुबारिटोलक प्रसिद्ध भूतहा
गाछीक पीपरक गाछपर रहि-रहि कए कानैत रहैत छलि आ ओहिठामसँ आबैत-जाइत लोकसभ कतेको बेर
ओकरा हाकरोस करैत सुनैत छल। कमला आ मखनाकेँ एना हाकरोस करैत देखि मखनाक हृदयमे
बहुत कष्ट भेलैक। ओ ओकरसभक इतिहास जनैत छल। एहन हाकरोस करैत ओ एसगर नहि छल। कतेको
लोक महराज आ हुनकोसँ बेसी हुनकर सिपहसलारसभक अन्यायसँ त्रस्त छल। मखना स्वयं
परेसान छल। मुदा कएल की जाए? किछु तँ प्रतिकार करक छलैक। तकर ब्योंतमे
ओ लागि गेल। यमराजक ओहिठाम जाल पसारए लागल। यमराजकेँ ओकर
गतिविधिपर शुरुएसँ शङ्का रहनि मुदा ओहो बेबस छलाह। सभठाम लोक जीति सकैत अछि मुदा
घरनीसँ जितब बहुत मोसकिल काज थिक। मखना कोना-ने-कोना यमराजक घरनीकेँ पटा लेने छल। एहि
कारणसँ ओकरा विरुद्ध ककरो नहि चलैत छल।
एकदिन
दुपहरिआक समय रहैक। पुबारिटोलक लोटन महिस चरबए गेल रहए। गाछी लग पहुँचितहि कानबाक
अबाज सुनि महिस परसँ धरफराक खसल। महिस चिकरए-भोकरए लगलैक। ओ महिसकेँ छोड़ि
भूत-भूत..!
बजैत इएह-ले
ओएह-ले
भागल। भागवाक क्रमे धोती खुजि कतए खसलैक से होस नहि रहलैक। कहुनाक नंग-धरंग अपन
दलानपर पहुँचल। ओतए पहुँचितहि धराम दए खसि पड़ल आ बेहोस भए गेल।
गाममे
गर्द पड़ि गेल।
“लोटनकेँ
भूत गछारि देलक। भूत ओकरामे सन्हिआ गेल अछि। दूपहरिआमे
भूतहा गाछी जेबेक नहि छलैक,” तरह-तरहक बातसभ
गामक लोक कए रहल छल। ओहिठाम क्रमशः लोकक करमान लागि गेल। लोटनक ऊपर पानिक छिड़काव
कएल गेल। पंखासँ हबा कएल गेल। मुदा ओ टस-सँ-मस नहि भेल। कैकगोटे कहए लागल जे
एकरापर देवीक प्रकोप छैक,केओ कहैक जिन सबार
भए गेलैक,केओ
किछु,केओ
किछु। ताबतेमे गामक प्रसिद्ध भगता कालू ओहिठामसँ गुजरि रहल छल। लोकक भीड़ देखि
साइकिलसँ उतरि पुछलकैक-
"की
बात?"
"कलममे
महिंष चरबए गेल छलैक। ओतहि कोनो भूत गछारि लेलकै" -लोकसभ
बाजल। से सुनितहि कालू भगता ताल-पतरा करए लागल। मंत्र पढ़ए लागल। कनीकालमे लोटना
फुरपुरा कए उठि गेल। गमछासँ देह झाड़लक आ बिदा भेल जेना किछु भेले नहि रहैक। लोकसभ
अबाक छल। कालू मोंछ पिजबैत बाजलः
"गामक
सीमानमे भूत पैसि गेल अछि। बँचि कए रहैत जाउ।"
संयोगसँ
हम ओही समय इसकूलसँ लौटि रहल छलहुँ। ताबे लोकक भीड़ छटि गेल छल।
लोटनकेँ
पुछलिऐकः"की भेलैक?
“की
जाने गेलिऐक?”
-लोटन
बाजल।
"एतेक
लोक कथी लेल जमा भेल छल?"
लोटन
किछु नहि बाजल। ताबे हमर माए ओतए आबि गेलि आ हमरा धिचने चलि गेलि।
ओहि
दिनक बाद जखन कखनो केओ भूतहा गाछी दिस जाइत ओकरा ककरो कानबाक अबाज सुनाइत। एहि बातसँ
गौआँसभ ततेक डरा गेल छल जे दिनोमे ओमहरसँ लोक आबा-जाही कम कए देलक। बहुत आवश्यक
होइतैक तँ हनुमान चालीसा पढ़ैत कहुना कए ओहो दू-तीन गोटे संगे जाइत। ओ गाछी
इलाकामे चर्चित भए गेल छल। आमक मासमे सोड़हि-के- सोड़हि आम पड़ल रहैत छल,केओ
उठओनिहार नहि। सड़ि-सड़ि कए आम फेकाइत छल। नढ़िआ-कुकुरसभ आम खा-खा कए एकहि संगे
भूकए लगैत छल जे आओर भयाओन लगैत छल।
मुदा
हमरा रहल नहि होअए। हमर बाबा,दाइ,बाबू
सभक सारा ओही गाछीमे छल। ओ हमर पुस्तैनी गाछी छल। नेनेसँ हम बाबूक संगे ओहिठाम आमक
रखबारी करए जाइत छलहुँ। कैक दिन असगरो आमक रखबारी करैत छलहुँ। कहाँ कहिओ किछु
विद्दति भेल?
आबि
ई गप्प-सप्प सुनैत रहैत छी। की पता एहूमे किछु बात होइक?
माएकेँ
हम ई बात कतेको बेर कहलिऐक मुदा ओ अंठा दैक। बेसी कहितिऐक तँ कहैत- “तूँ
एहिसभ बात पर एतेक नहि सोचै। पढ़ाइमे मोन लगा जाहिसँ भविष्य बनतौ। की करितहुँ? चुप
भए जाइ। मुदा सौंसे गामकेँ कोना चुप कए दितिऐक? सभ
एकस्वरसँ ओकरा भूतहा गाछी कहैक। एक हिसाबे गामक लोकसभ ओहि गाछीकेँ बारि देने छल।q
Maharaaj is a Maithili Novel dealing with the social and economic exploitation of the have-nots by the affluent headed by the local heads of that time .However, the have-nots ultimately succeed in controlling the resources and regain their lost assets by sustained struggle . Even the dead persons join together to fight against the Maharaaj and ensure that the poor gets their due.
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