गिरफ्तारी ओ जमानत (Arrest and Bail)
कोनो-ने-कोनो झंझटिमे नहिओ चाहैत कए बेर लोक
फँसि जाइत अछि। केबेर निर्दोष लोकक खिलाफ झूठ-फूसके मामला बना देल जाइत अछि जाहिमे
पुलिसके घाल-मेल सेहो भए जाइक से भारी बात नहि। टेलेविजन केँ गाम-गाम पसरि गेलासँ
अपराधक नव-नव स्वरूप गामो-घरमे फैलि रहल
अछि। कैटा कानूनो एहन भए गेल अछि जे बिना
गलतिओकेँ कैबेर लोक जहलधरि पहुँचि जाइत छथि एहन परिस्थितिमे लोकके जहल ओ जमानतसँ संवंधित कानूनक जानकारी बहुत आवश्यक
भए गेल अछि जाहिसँ व्यर्थक फसादसँ बचि सकथि आ जरूरी भेलापर समाधान कए अपन जीवन ओ
इज्जतिक रक्षा करथि।
कैटा कनून एहन हछि जाहिमे पुलिस मामला दाखिल
होइते अभियुक्तकेँ गिरफ्तार कए सकैत अछि। उदाहरणस्वरूप भारतीय दणड संहिताक धारा
४९८(ए)क तहत कएलगेल मोकदमामे अभियुक्तक हालत बहुत पातर भए जाइत छल।ओकरा सभसँ पहिने
पुलिस गिरफ्तार करैत छल,तखन आर किछु।
बहुत रास मामलामे देखल गेल जे कएल गेल सिकाइत झूट छल,कोर्टमे साबूतक आधारपर साबित नहि भेल ,अभियुक्त बरी भए गेल,मुदा ताबति ओकर सभ दशा भए जाइत छल,ओकर इज्जति क मटियामेट भए जाइत छल। ऊच्चतम न्यायलय एहिबातक संज्ञान लैति
दिशा-निर्देश जारी कए सुनिश्चित करबाक प्रयास केलक जे निर्दोश लोकके एहन मामलामे
वेबजह गिरफ्तारी नहि होइक।
संविधानक धारा २२ क अनुसार पुलिस
द्वारा गिरफ्तार कएल गेल व्यक्तिकेँ अधिकार अछि जे ओ गिरफ्तारीक कारण जानए,जौँ गिरफ्तारी वारंटक आधारपर भेल अछि तँ ओकरा वारंट देखाओल
जाए,वकील वा निकट संवंधीकेँ संपर्क कए सकए। ओकरा गिरफ्तारीक
चौवीस घंटाक भीतर मजिष्ट्रेटक सम्मुख उपस्थित करब जरुरी थिक। ओकरा इहो बताएब जरुरी
तिक जे ओ जमानतपर छोड़ल जा सकैत छैक कि नहि।
गिरफ्तार कएलगेल व्यक्तिकेँ हथकड़ी लगाएब:
ऊच्चतम न्यायलयक दिशा निर्देशक अनुसार
गिरफ्तार कएलगेल व्यक्तिकेँ हथकड़ी लगाबएसँ बचबाक चाही,कारण एहन व्यक्ति सजाआफ्ता नहि होइत छथि। हथकड़ीक प्रयोग
अपवादिक परिस्थितिमे तखने कएल जाए जखन कि अभियुक्त हिंसक हो,पुलिसक गिरफ्तसँ भागि जेबाक संभावना होइक,किंवा आत्महत्यापर ऊतारु हो।
सीआरपीसीक धारा ७४क अधीन पुलिस अभियुक्तकेँ
गिरफ्तार करबाक हेतु घरमे घुसिकए ओकरा पकड़ि सकैतअछि,ताहिलेल जरुरी भेलापर घरक खिड़कीकेँ तोड़ि सकैत अछि।
कोनो व्यक्तिकेँ गिरफ्तार केलाकवादे ओकर स्च कएल जा सकैत अछि,पहिने नहि।जौँ गिरफ्तार कएल गेल व्यक्ति महिला छथि तखन
महिले पुलिस ई काज कए सकैत अछि।
महिलाक गिरफ्तारी हेतु उच्चतम न्यायलय द्वारा
जारी कएल गेल दिशानिर्देश:
उच्चतम न्यायलय द्वारा जारी कएलगेल
मार्गदर्शनक अनुसार सामान्यतः कोनो महिलाकेँ साँझक बाद आ भोर हेबासँ पहिने
गिरफ्तार नहि कएल जाएत। जौं ततबे आवश्यक भए जाइक आ रातियेमे महिलाक गिरफ्तारी
जरूरी होइक,भोरधरि रुकब कानूनक अनुपालन हेतु
दिक्कति भए जेबाक संभावना प्रवल होइक,तखन मजिष्ट्रेटक पूर्व अनुमति लए एवम् महिला पुलिस द्वारा ई काज कएल जाएत।
गिरफ्तारीक बाद जौं महिलाकेँ सर्च करब
जरूरी होइक तखन ई काज महिला पुलिस द्वारा कराओल जेबाक चाही।पुलिस हाजतिमे महिलाकेँ
अलग राखबाक चाहीजौँ महिलाक हेतु अलग हाजति नहि होइक तखन ओकरा अलग कोठरीमे राखल
जेबाक चाही।
विना वारंटकेँ गिरफ्तारीः
आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1 9 73 क धारा 41 क अनुसार पुलिस
कोनो व्यक्तिकेँ निम्नलिखित परिस्थितिमे बिना वारंटकेँ गिरफ्तार कए सकैत अछि:
(१) जखन ओ कोनो
संज्ञेय अपराध केने हो,
(२) कोनो पुलिस अधिकारीकेँ कर्तव्य निर्वहनमे व्यवधान ठाढ़
केने होइक,
(३) ओकर घरसँ कोनो चोरीक माल पकड़ल गेल होइक,
(४) कानूनी हिरासतसँ मटिआ रहल हो,
(५) सेना, वायु सेना, जलसेनासँ भागि आएल हो,
(६) जौँ ओकरा अपराधी घोषित कएल गेल हो,
(७) जौँ ओ अभ्यस्त अपराधी अछि,
(८) जौँ ओकरापर संज्ञेय अपराध करबाक शक छैक,
(९) जौँ न्यायलय द्वारा छोड़ल गेल अपराधी न्यायलयक शर्तक
अनुपालन नहि करैत अछि,
कैटा आओर एहन कानूनसभ अछि जाहि सिकाइत भेलापर
पुलिसकेँ अभियुक्तकेँ गिरफ्तार करबाक अजस्त्र अधिकार भए जाइत अछि।
संज्ञेय अपराध की थिक?
संज्ञेय अपराधमे पुलिस बिना कोर्ट आदेशकेँ
अभियुक्तकेँ गिरफ्तार कए सकैत अछि। हत्या,वलात्कार,चोरी,राष्ट्रद्रोह,सन अपराधक मामला एहि श्रेणीमे अबैत अछि।
असंज्ञेय अपराध की थिक?
असंज्ञेय अपराध क मामलामे कोर्टक आदेश भेलाक
बादे ककरो गिरफ्तार कएल जा सकैत अछि।
जौँ अभियुक्त पुलिसक गिरफ्तसँ भागवाक प्रयास
करैत अछि,तँ ओकरा पुलिस उपयुक्त वल प्रयोग कए पकड़ि सकैत अछि,परंतु वलक अनावश्यक प्रयोगसँ पुलिसकेँ बचबाक चाही। मुदा
आवश्यक भेलापर पुलिस जानोलए सकैत अछि,वशर्ते ओकर अपराध मृत्युदंड देबए जोगर होइक।
अग्रिम जमानत:
अग्रिम जमानतदेबाक अधिकार उच्च न्यायलय वा
सेशन कोर्टकेँ अछि। अग्रिम जमानत हेतु आवेदन निचला कोर्टमे नहि कएल जा सकैत अछि। अग्रिम
जमानत देबाकाल न्यायलय सुनिश्चित करैत अछि जे आवेदक मामलाक विवेचनामे वांछित सहयोग
करताह,देश छोड़ि बाहर नहि चलि जेताह,कोनो गवाह वा सबूतकेँ प्रभावित नहि करताह। आवेदककेँ जौँ
आशंका होइक जे ओकरा कोनो मामलामे फँसाकए गिरफ्तार कएल जा सकैत अछितँ ओ उचित
न्यायालयकेँ अग्रिम जमानत हेतु आवेदन कए सकैत छथि।
अग्रिम जमानत ताबते धरिक हेतु देल जेबाक चाही
जाधरि चालान कोर्टमे प्रषित नहि कएल गेल अछि,तकर बाद अभियुक्तकेँ नियमित जमानत हेतु संवंधित न्यायलयमे आवेदन देबाक
चाही(सजलुद्दीन अब्दुल समद शेख बनाम राज्य महाराष्ट्र)
न्यायक तकाजा थिक जे अग्रिम जमानत देबासँ
पूर्व विरोधी पक्षकेँ न्यायलय नोटिस जारी करए जाहिसँ अभियुक्त गलत जानकारि दए
किंवा वांछित जानकारीकेँ दबाकए अग्रिम जमानत नहि लए सकए(बालचंद जैन बनाम मध्य
प्रदेश )
जमानती वारंट:
गिरफ्तारीक वारंट कोनो कोर्टक पीठासीन
अधिकारी द्वारा लिखित रूपमे जारी कएल जाइत अछि। ओहिमे स्पष्ट रूपसँ ई लिखल हेबाक
चाही जे कानूनकक कोन धाराक अनुसार ओकर गिरफ्तारीक वारंट जारी कएल गेल अछि,ओकरा कहिआ आ कखन ओहि कोर्टमे हाजिर हेबाक छैक। ओहि आदेशमे इहो लिखल रहत जे
ओकरा उचित जमानात देला पर एहि शर्त संग गिरफ्तारीसँ छूट देल जाइत अछि जे ओ नियत
दिन/नियत समय पर कोर्टमे हाजिर भए जाएत,ताहि हेतु एकटा निश्चित रकमक बौंड सेहो ओकरा देबए पड़ैत अछि,एकाधिक व्यक्तिकक जमानात सेहो दबए पड़ि सकैत अछि।
गैर जमानती वारंट:
गैर जमानती वारंटमे पुलिस अभियुक्तकेँ
गिरफ्तार कए संवंधित कोर्टमे हाजिर करैत अछि,तकर बादे ओकर जमानत पर छोड़वाक आवेदनपर कोर्ट विचार करत।कोनो मामलामे जमानत पर
अभियुक्तकेँ रिहा करबासँ पूर्व कोर्टकेँ मामलाक गंभीर छानबीन कएल जाइत अछि,कोर्ट ई सुनिश्चित करए चाहैत अछि जे जमानतपर छोड़ि देलाक
बाद ओ न्यायिक प्रकृयाकेँ प्रभावित नहि करए,जरुरत भरि मामलाक अनुसंधानमे सहयोग करए,गवाहसभकेँ तोड़बाक प्रयास नहि करए। संगहि ओकर इतिहास एवम् चरित्रक विषयमे सेहो
जानकारी लेबाक प्रयोजन होइत अछि जाहिसँ बाहर गेलाकबाद ओ समाजक हेतु समस्या नहि भए
जाए।
सेशन कोर्ट वा उच्च न्यायालयसँ जमानत:
जौँ अभियुक्त एहन अपराध केलक अछि जाहि मे
मृत्युदंड वा आजन्म कारावासक प्रावधान थिक, तखन ओकरा जमानत सेशन कोर्ट वा उच्च न्यायालयसँ भेटत,ताहिसँ निचला कोर्टसँ नहि।
न्यायलयकेँ जमानत देबाक समय बहुत
सावधानीपूर्वक विचार करबाक प्रयोजन अछि कारण अपराध सिद्ध होयबासँ पूर्वे ककरो
जहलमे सड़ादेब मानवीय अधिकारक सरासर उल्लंघन थिक मुदा संगहि समाजके व्यापकहितकेँ
ध्यान राखब सेहो जरूरी अछि ,जे ओ
व्यक्ति बाहर आबिकए एहन ने कए देथि जे कोनो आन व्यक्तिक सम्मान ओ जीवन पर संकट
उत्पन्न भए जाइक।
उपसंहार
संविधानक अनुक्षेद २१ एवम २२ क तहत प्राप्त
मौलिक अधिकारक रक्षाक हेतु आवश्यक अछि जे बेबजह ककरो स्वतंत्रता पर आघात नहि होइक,लोक निर्वाध अपन जीवनक रक्षा कए सकए। गिरफ्तारी निश्चय एहि
संवैधानिक अधिकारकेँ सद्यः सीमिते नहि करैत अछि अपितु ग्रहण लगा दैत अछि। मुदा ककरो
स्वतंत्रता एहि हद धरि नहि भए सकैत अछि जे कोनो निर्दोष आदमीक जिनाइ कठिन कए दैक,किंबा कोनो अपराधी बेटछुट्ट भेल घुमैत रहए। अस्तु, पुलिस एवम् न्यायालयकेँ एकटा संतुलित रुखि राखि प्रत्येक
मामलामे नीर- क्षीर विवेक रखैत काज करक चाही जाहिसँ कोनो
निर्दोष व्यक्तिकेँ फिरसान नहि होबए पड़ैक आ दोषी खुल्ला नहि घुमैत रहए।निश्चय ई संतुलन बनाएव एकटा कठिन काज थिक मुदा समस्त
कानून ओ न्यायालय एहि प्रयासमे लागल रहैत अछि।