नवका पोखरि
“हर-हर महादेव।
जानह हे महादेव!
हमरा मोनमे किछु छ: पाँच नहि
अछि।
तूँहीं जानह हे महादेव..!”
“अहाँकेँ जे
बुझाए मुदा हम तँ अपना भरि सभकेँ सभ दिन केलिऐ...।”
“आ हम केकरा
नहि केलिऐ...?”
पंचमुखी महादेवपर जल ढारैतकाल
महिला सभ आपसमे अहिना चिरौरी करैत रहैत छलीह...।
एक हाथ महादेवक निर्मालपर आ
दोसर हाथे जल ढारि रहल महिला सभ बीच-बीचमे मौका पबिते फदका पढ़ए लागथि। जे किओ आएल, महादेवक
ऊपरसँ जल ढारलक। जाड़ होइत आकि गरमी, सभ मौसममे जलढरी अनवरत
चलैत रहैत छल। रच्छ छल जे दुपहरियामे ई
भीड़ कम भए जाइत रहैक जाहिसँ महादेव चैनक अनुभव करैत हेताह। कम-सँ-कम घरेलू तथा
पारिवारिक झमेल सभ सुनबासँ तँ मुक्ति होइते रहनि।
चारि बजे भोरेसँ नवका पोखरिपर
स्नानार्थी सभ टपकए लगैत छल। ओहिमे नियमित पाँच गोटे टोलसँ अबैत छलाह जाहिमे तीन
गोट महिला छलीह। टाइमक सोलहन्नी पाबन्द। भोरे-भोर ‘हर-हर महादेव!’ किछु वृद्ध नवका पोखरिक कोनपर बसल परिवारमे सँ सेहो भोरे स्नान करएबला
लोक सभमे सामिल रहिते छलाह।
स्नान, ध्यान आओर आराधनाक संग महादेवक अनवरत जलढरी चलैत रहैत छल, आ ताहिसंग
गपाष्टक जे आनन्द छल, तकर वर्णन नहि कएल जा सकैत अछि। कहि
नहि, महादेवकेँ ई सभ कतेक पसिन्न पड़ैत हेतनि! मुदा लोक सभ तँ तृप्त लगिते छलाह। सभ
अपना-आपमे मगन, सभ अपने-आपमे आनन्दित।
ओहि समयमे पोखरि-इनार खुनाएब
बहुत मान-मर्यादाक बात बुझल जाइत छलैक। ओना, गाममे पहिनेसँ कएटा पोखरि रहैक, जाहिमे तीनटा पोखरि तँ हमरा सबहक टोलेमे बुझू। तकर अलाबा कुट्टी लगक
पोखरि सेहो। तथापि आओर पोखरि खुनाओल गेल, तकर तात्पर्य बुझल
जा सकैत अछि...।
नवका पोखरि प्राय: सभसँ बादमे
बनल छल तेँ ओकरा ‘नवका पोखरि’ कहल जाइत अछि। पोखरिक दच्छिनबरिया महारपर मन्दिरक संग रंग-रंगक फूल
सभ लगाओल गेल छल। जेना-चम्पा, भालसरी, कामिनी, करबीर, अड़हुल इत्यादि। चम्पा, करबीर आ अड़हुलक बड़का-बड़का गाछ छल।
हमर पित्ती–स्व. वंगट मिश्र–
नवका पोखरिक दिन-राति देख-रेख करैत छलाह। नवका पोखरिक दच्छिनबरिया महारपर भगवान शिवक पंचमुखी मूर्तिबला मन्दिर छल। नवका पोखरि तथा ओहिठामक मन्दिरक निर्माण हमर सबहक समस्त दियाद सभ मिलि कए
केने रहथि।
मन्दिरक प्राण-प्रतिष्ठा हमर पितामह–स्व. श्रीशरण
मिश्र–द्वारा भेल रहए। पोखरिक जाइठ देबएकालक खिस्सा सभ हम सभ बच्चामे सुनिऐ। सम्पूर्ण परिसरक सफाइ स्व. वंगट काका करैत
छलाह। वंगट काका असगरे जीवन पर्यन्त ओहि काजकेँ पूर्ण
भक्ति-भावसँ करैत रहलाह। कहिओ थाकैथ नहि। निस्वार्थ, स्वान्त: सुखाय एहि काजकेँ करैत ओ तत्कालिके समाजक नहि अपितु
अखनो समाजक बीच दृष्टान्त छथि। माघक भयानक ठंढ
हो आकि जेठक तप्त रौद ओ देहपर एकटा
गमछा मात्र रखैत छलाह। अपना समयक नामी पहलमान सेहो रहथि। नवका पोखरिक उत्तरबरिया
महारपर अखाड़ा छल। ओहिठाम युवक सभकेँ कुश्तीक प्रशिक्षण दैत छलाह, डंड बैसक
करैत छलाह। किलोक- किलो आखाड़ाक माटि देहमे औंसने घामसँ
तर-बत्तर भए जाइत छलाह। तकर बाद बड़का खर्ड़ासँ सम्पूर्ण परिसरकेँ अपने हाथे साफ
करैत छलाह। प्रात: स्नान करएबला लोक सभकेँ तरह-तरह क हिदायत दैत रहैत छलखिन। पोखरिक
पानि स्चच्छ बनल रहए, ताहि लेल सतत
सतर्क रहैत छलाह। पोखरिमे साबुनसँ कपड़ा खिचनाइ मना छल, एहि
लेल ऊपरमे ब्यवस्था छल। ओहि समयमे किओ-किओ पोखरिमे साबुनसँ कपड़ा खींच लेथि, मुदा जँ पकड़ल गेलाह तँ भगवाने मालिक।
नवका पोखरिक दिन-प्रति-दिनक
देख-रेखक सम्पूर्ण दायित्व ताजीवन वंगट काका
बिना कोनो स्वार्थक उठओने छलाह। घन्टो ओहि
परिसरक विकासक हेतु काज करैत रहलाह। हुनका बाद ओहि स्थानक पूर्ति नहि भए सकल, भइयो नहि
सकैत छल।
वंगट काकाक गाम भरिमे धाख
रहनि। कोनो पर-पंचैतीमे हुनका अबस्स बजाओल जाइत रहनि। धिआ-पुता कुश्ती लड़ए, खेती-बाड़ी
करए, माल-जालक सेवा करए, महींस राखए
जाहिसँ डोलक-डोल शुद्ध दुधक सद्य: लाभ होइक–ताहि विचारक पोषक छलाह। कए दिन हुनका
बाबूसँ विवाद भए जाइत छलनि। विवादक मुद्दा रहैत छल जे पढ़ाइ-लिखाइ करब सार्थक थिक
आकि निरर्थक? आब किओ सुनत तँ हँसत। मुदा वंगट काका ऊत्साहसँ
बाजथि-
“पढ़ो पूत चण्डी,
जासे चले हण्डी।”
कहक सारांश- खेती-बाड़ी करू, एहिमे सद्य:
लाभ अछि। पढ़ाइ-लिखाइमे कहिआ की होएत से के देखलक!
गाममे किओ लुंगी पहीरलक तँ ओ
जोरदार विरोध करथि। समय बीतलाक बाद आब कहल जा सकैत अछि जे पढ़ाइ-लिखाइक समर्थन करब
सही छल, विरोध गलत। गाममे वा कतहु जे पढ़लक-लिखलक से आगू भए
गेल। ओहू समयमे किछु गोटे कहथि-
“पढ़ोगे-लिखोगे
बनोगे नबाब।”
निश्चित रूपसँ ओ सभ अग्रसोची
रहथि।
मन्दिरक आगूमे धर्मशाला छल। फूसक दरबज्जानुमा घर जे
चारूकातसँ खुजल छल। किओ थाकल-ठेहियाएल पथिक ओतए रहि सकैत छलाह। ओ समस्त परिवारक अतिथि होइत छलाह। हुनकर सभटा ब्यवस्था होइत
छल। हमरा मोन पड़ैत अछि जे एकबेर एकटा महात्मा आएल रहथि। ओ बाजैथ
नहि। सिलेटपर लिखि कए अपन इच्छा, अपन मन्तव्य प्रकट करथि। हुनकासँ भेँट करक हेतु लोकक करमान लागल
रहैत छल। सौंसे देह विभुति रमौने, जौरक डोराडोरि पहिरने, जटा जूट धारी भेष हुनक आकर्षणक केन्द्र रहनि।
गाम-घरमे एहन साफ-सुथरा रमणीक
पार्कनुमा स्थान भेटब कठिन। ओना तँ खेत-पथार
सभ हरियर कंचन रहिते अछि, थाल-कादोक अपन स्वाद सेहो छइहे, मुदा ताहू माहौलमे जे अध्यात्मिक, सांस्कृतिक केन्द्रक रूपमे नवका पोखरिक ब्यवस्था छल आ बहुत दिन धरि जेना
चलैत रहल ओ बेमिसाल कहल जा सकैत अछि।
नवका पोखरिक निर्माणमे हमरा
लोकनिक परिवारक समस्त लोकक योगदान छल।
नवका पोखरि परिवारक गौरवसँ जुड़ल छल। ककरो कुटुम्ब अबितथि तँ नवका पोखरिपर हुनका
अबस्स आनल जाइत।
ओहिठाम स्नान, ध्यान होइत,गप्प-सराका चलैत। धर्मशालामे बैस कए
आराम सेहो कएल जा सकैत छल। वंगट काका नित्य दुपहरियामे ओहिठाम
धर्मग्रन्थ पढ़थि। सायंकाल भगवान शिवक आरती-पूजाक संग नाचारी सेहो गाओल जाइत छल।
ओहिमे नियमित अनेको वृद्ध लोकनि भाग लेथि।
बादशाह बाबा शिव मन्दिरक पूजाक बहुत दिन धरि ब्यवस्था देखैत रहलाह। सायंकालक
नाचारीमे ओ हमर बाबा आओर वंगट काका तँ रहिते छलाह जे हुनका संगे कएटा आओर वृद्ध सभ
सेहो नाचारी गायनमे भाग लए सुर-मे-सुर मिलबैत छलाह। बाबा कतए
सुतल छी औ! बालक वनमे कतए-सँअएला, किओ नहि हुनकर सथिया...।’ आदि नाचारीक स्वर अखनो हमर कानमे गुंजित होइत रहैत अछि।
नवका पोखरिक भालसरी गाछक
छाहरिमे हम कतेको दिन बैस कए प्रतियोगिता परीक्षा-सबहक तैयारी करैत रही। कतेको दिन
हम अपन मित्र सभक संग साँझक समयमे ओतए बैस गप्प-सप्प करी, भविष्यक
योजना बनाबी। स्वच्छ, निर्मल
वातावरणमे गाम-घरक झंझटिसँ दूर नवका पोखरिपर बैस कए एकटा स्वर्गीय आनन्द होइत छल। हम नियमित भोर-सॉंझ ओहिठाम जाइत रही।
प्राय:काल नित्यकर्म-स्नान, पूजा आओर व्यायाम आदि ओतहि होइत छल। नित्य सायंकाल गप्प-सप्प करबाक हेतु कएक गोटा भेट जाथि। पूजा-पाठ तँ होइते छल।
संग-संग एकटा स्वस्थ मनोरंजनक तथा अध्यात्मिकताक अनुभूति
सेहो ओहिठाम होइत छल।
गाममे हमरा फरिखमे जँ ककरो
देहान्त होइत तँ ओकर श्राद्धक्रर्म ओहीठाम
होइत छल। हमर बाबा आओर बाबूक श्राद्ध-कर्म सेहो ओहीठाम भेल छलनि। वैदिकी
श्राद्ध-क्रर्ममे बछराकेँ दागल गेल। ओकर करूण क्रन्दन अखन धरि हमरा रोमांचित करैत रहैत अछि। हमरा विचारासँ ई
अमानवीय प्रयोग अछि, एहिसँ स्वर्गक सीढ़ी किओ केना चढ़त से हमर समझसँ बहार अछि? आओर जे अछि से अछि, मुदा ई काज औअल दर्जाक क्रूड़ता
अछि। एकटा जीवित प्राणीकेँ सरी धीपा कए दागि देब, कतहुसँ
मनुष्यता नहि थिक। नहि चाही एहन स्वर्ग, जाहि हेतु एकटा
निरीह, निर्दोष जीवक संग क्रूड़ताक पराकाष्ठा कएल जाए। ओहुना
आब गाम-घरमे एकर विरोध भए रहल अछि, कारण साँढ़ द्वारा जजाति
चरि गेलासँ क्षतिक संग अन्यान्य कारण सभ सेहो अछि।
नवका पोखरिसँ हमर बाबाकेँ
बहुत सिनेह रहनि। जीवनक अन्तिम समय धरि ओ नवका पोखरि अबस्स जाइत छलाह। हाथमे
छड़ी लेने रोडपर चलैत एक बेर हुनका एकटा साइकिलबला टक्कर मारि देने रहनि। ओहू अबस्थामे एक्के हाथे साइकिलकेँ घिसिएने-घिसिएने अपन
दरबज्जापर लए आएल रहथि।
सम्भवत: १९६७-६८ इस्वीक गप्प
थिक। हमरा लोकनि नवका पोखरिपर पुस्तकालय बनेबाक हेतु
बैसार केलहुँ। गामक तमाम गणमान्य लोक सभ बैसारमे
रहथि। ओहिसँ पूर्व गाममे एकटा पुस्तकालय बहुत पहिनेसँ छल, जे कोनो
कारणसँ अव्यवस्थित भए गेल छल। एक समयमे ओ पुस्तकालय गामक प्रतिष्ठित संस्थान छल। १९६२क चीन-भारत
युद्धक समाचार सुनबाक हेतु ओहिठाम सौंसे गामक लोक जमा होइत छल। सटले खादी भण्डार छल
ओ धिआ-पुताक खेल-धूपक सामग्री सेहो छल। मुदा की भेलैक जे सभ गतिविधि कमश: ठप्प जकाँ भए गेल। नव पुस्तकालय बनेबाक बैसारमे
किछु प्रवुद्ध लोकक विचार रहनि जे ओही पुस्तकालयकेँ जीर्णोद्धार
कएल जाए। यद्यपि हम सभ ओहि प्रस्तावक समर्थन नहि केने रही, मुदा आब लगैत
अछि जे ओ सही बिचार छल। नवका पोखरिक धर्मशालामे पुस्तकालयक स्थापना हेतु प्रयासकेँ
आगू बढ़बैत कएकटा बैसार आओर भेल। पुरान पुस्तक सभ घरे-घरसँ
ताकि-हेरि कए आनल गेल। पुस्तक सभ रखबाक हेतु
लकड़ीक रैक बनाओल गेल।
पुस्तकालयक उद्घाटन हेतु डा. सुभद्र झाजीकेँ आमंत्रित कएल
गेल। ओहि समयमे सेवा निवृत भए ओ गामेमे रहए लागल रहथि। हाथमे बेंत लेने, मिरजई
पहीरिने ओ पुस्तकालयक उद्धघाटन
कार्यक्रममे आएल रहथि। हमरा लोकनि हुनकासँ किछु बजबाक आग्रह कएल। ओ कहलाह जे भाषण
करब हुनका एकदम पसिन नहि अछि। तथापि ओ अपन बात कहैत पुस्तकालयक संचालनमे होबएबला व्यवहारिक असुविधा सबहक वर्णन
करैत अपन जीवनक अनेकानेक अनुभवक चर्चा सेहो केलनि। ओ पुस्तकालय अल्पजीवी भेल। संसाधनक अभावमे किछुए दिनक बाद सभ
किछु ठप्प पड़ि गेल।
नवका पोखरि अपना-आपमे एकटा संस्था छल। अध्यात्मिकताक संग ग्रामीण
संस्कारकेँ सेहो प्रज्वलित केने
रहैत छल। मुदा सभ खिस्साक कतहु-ने-कतहु आ
कहुना-ने-कहुना अन्त होइते अछि। नवको
पोखरिक संग सेहो सएह भेल। जहिना प्रत्येक मनुक्खक जीवनमे उत्थान-पतन होइत अछि तहिना एहि संस्थाक संग सेहो भेल। जखन वंगट काका स्वर्गीय भए गेलाह तकर
पश्चात किओ एहन व्यक्ति नहि भेल जे नवका पोखरिक संग हुनका जकॉं एकरुप भए सकए। ककरो
ओ रूचियो नहियेँ रहए। जाहि फुलबाड़ीमे एकटा पात नहि खसल भेटैत छल से क्रमश: कूड़ा, कर्कटसँ भरल
रहए लागल।
पोखरिक देख-रेख सेहो ढील भए
गेल। ततेकटा परिवार एहि पोखरि आओर लगपासक परिसरक हिस्सेदार छथि जे एकर एक स्वरमे
रक्षा ओ विकास करबाक बजाय आपसेमे कचर-बचर होइत रहल। ढनमनाइत, ढनमनाइत मन्दिर खसि पड़ल। पोखरि सबहक व्यापारीकरण भए गेल।
पोखरिक पानि स्नान करए जोगर नहि रहि गेल। कालान्तरमे किछु युवक
लोकनिकेँ एहिपर ध्यान गेलनि। जाहिसँ मन्दिरक जीर्णोद्धारक
प्रयास भए रहल अछि। आओर-आओर सकारात्मक प्रयास भए रहल अछि।
मन्दिर भगवानक घर थिक, जतए लोक अपन-अपन अहंकारक
विसर्जन कए ईश्वरक शरणमे पहुँचैत अछि। अस्तु एकर पुनर्निर्माण ओ
रखरखावमे जँ एहि बातक ध्यान राखल गेल जे ओ परिवार विशेषक नहि अपितु समस्त आस्थावान लोकनिक वस्तु बनि सकए, तँ निश्चय ई कल्याणकारी होएत आ नवका पोखरि फेरसँ अपन गौरव प्राप्त कए सकत।
◌
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें