मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

रविवार, 7 मई 2023

सन् २०१८मे प्रकाशित हमर मैथिली उपन्यास महराज(ISBN: 978-93-5321-395-4)क हमर ब्लाग स्वान्तः सुखायपर धारावाहिक पुनर्प्रकाशन(सातम, आठम आ नवम भाग):

 



 

मास्टर साहेबक संग भेल मारि-पीटक कए साल बीति गेल मुदा पुलिस ककरो पकड़ि नहि सकल। असलमे थानाकांडमे सभ तेना ने ओझरा गेल जे ककरो एहि मामिलाक सुधि नहि रहलैक। फेर मास्टर छलाह मामूली आदमी। आगू नाथ ने पाछू पगहा। ककरा की कहितथि? जान बाँचि गेलनि सएह बहुत। फेर अपन काजमे लागि गेलाह। इसकूल जाथि आ विद्यार्थीसभकेँ खूब मेहनतिसँ पढ़ाबथि। हुनका ताहिबातसँ इलाकामे यश रहनि। गाम-गामक विद्यार्थीसभ पढ़बाक हेतु हुनकर डेरा पर आएल करथि। ककरोसँ पाइ नहि लैत छलखिन।

हम मैट्रिकक परीक्षा प्रथम श्रेणीमे पास भए गेल रही। मुदा आगू की कएल जाए से फुरेबे नहि करए। भितर इच्छा रहए जे आगू पढ़ी मुदा तकर कोनो जोगारे नहि छल। घरक हालति तेहने छल तहन तँ रहि गेलाह मामा। ओहो सालभरि इलाजक चक्करमे परेसान छलाह। आब किछु स्थिर भेलाह। गामक लोक सभ से जमानति पर छुटि कए आबि गेल छल।

एकदिन अहिना बैसल रही की मामा कहलाह- श्रीकांत़ हमरा मोन होइत अछि जे तूँ आगू पढ़ाइ करह। सालभरि समय तँ तोहर बर्वादे भए गेलह। मुदा आब हालति ठीक अछि। हमरा जे पार लागत से मदति करबे करबाह। संगे गामोसँ किछु मदतिक जोगार करबाक प्रयास करब।"

"हम तँ स्वयं पढ़बाक इच्छुक छी मुदा अहाँक हालति देखि कए साहस नहि भेल।" -हम कहलिअनि।

"कोनो बात नहि। जे बीति गेलैक से बीति गेलैक। आगूक सोचल जाए। काल्हि हम दुनू गोटे पुबारिगाम चलब। देखैत छी, ओतए की हाल अछि।"

"ठीक छै।"q

 

 

मामा संगे हम अपन गाम पुबारि टोल पहुँचलहुँ। हमर मामागाम पछबारि टोल हमर गामसँ सटले छल। पैरे दस मिनटक रस्ता छलैक तथापि ओतए कतेको सालक बाद जा रहल छलहुँ। माता-पिता नहि रहलासँ गामक कोनो आकर्षण नहि रहि गेल छल। हमर जथा-पात दिआदसभ हथिआ चुकल रहथि। ओसभ निश्चिन्त रहथि जे भने ई चलि गेल। गाम पहुँचि कए अपन फूसक घरकेँ ताकए लगलहुँ। नामो निसान खतम छल।

घराड़ीकेँ चारूकातसँ घेरि कए तरकारी रोपि देल गेल छल। मामा संगे हमरा देखि हमर काका मुँह घुमा लेलाह। जेना कोनो मतलब नहि होनि। हमर घरक लगीचमे नव-नव घर बनि गेल छल। कहि नहि के सभ ओतए आबि कए बसि गेल छलाह आ कि पुरने घरकेँ फेरसँ बनाओल गेल छल? तरह-तरहकेँ बातसभ मोनमे अबैत रहल। जखन काका नहिए टोकलाह तँ हमही आगू बढ़लहुँ- "काका गोर लगैत छी"

"के छी?"

"अहाँक भातीज, श्रीकान्त।"

"एतेक दिन पर कतएसँ ऊपर भेलह?"

से कहि तेना ने मुँह घुमओलथि जेना हमरासँ कोनो बहुत पैघ अपराध भए गेल हो। मामा सभटा बात देखि-सुनि रहल छलाह। हुनका तँ काका टोकबो नहि केलखिन। एहन हालतिमे की उमीद राखल जा सकैत छल? तथापि हमर मामा कहलखिन- "हमरा नहि चिन्हलहुँ? हम छी हरि, श्रीकान्तक मामा।"

"चिन्हव किएक नहि, मुदा अहाँ तँ आएब-जाएब बंद कए देलहुँ, कतेक साल पर आइ कोना मोन पड़लहुँ?"

हमर काका महराजक जेठरैयत रहथि। महराजक सिपहसलारसभसँ जान-पहिचान रहनि। पुलिसमे सेहो जान-पहिचान छलनि। ताहिबातक बहुत घमंड रहनि। जकरे -तकरे पुलिस, थानाक धमकी दैत रहितथि। हुनकर नाम छलनि देवीकान्त मुदा गौंवासभ देबू कहनि। ओना ओ गाममे चर्चित छलाह तकर प्रमुख कारण रहैत जे ओ किछु झार-फूक सेहो करथि आ कालू भगतासँ बहुत गहींर दोस्ती रहनि। हमर पिता तँ कमे बएसमे मरि गेलाह। हम नेने रही। जे किछु चास-बास छल सभ  हमर काका दखल कए लेलाह आ तेहनक निश्चिन्त भए गेलाह जेना हम जीविते नहि होइ।

कनी काल हम आ मामा अहिना ठाढ़े रही की कालूभगता कतहुँ सँ आएल।

"मामा गोर लगैत छी।"

"नीके रहह। कतएसँ आबि रहल छह?"

"अहाँकेँ तँ सभ बात बूझले होएत।"

"की बात?"

"साल भरिसँ जहलमे बंद छलहुँ। मोसकिलसँ छुटलहुँ अछि।"

"बहुत दिनपर भेंट भेल अछि।"

आउ ने, चैन सँ बतिआएब।” -से कहि कालू भगता अपन घर दिस बढ़ि गेल। हम आ मामा ठाढ़े रही। काका बैसबो लेल नहि कहलाह। उल्टे मोनमे तामस रहनि जे हमसभ किएक अएलहुँ? जतए छलहुँ ततए छलहुँ,एहिठाम आबए के कोन काज?

जखन काका अपने किछु नहिए पुछलाह तँ हमहि कहलिअनि-

मैट्रिक पास कए गेलहुँ। सालभरिसँ बैसल छी। सोचि रहल छी जे आगू पढ़ाइ हेतु नाम लिखाबी। मुदा टाकाक जोगार नहि भए रहल अछि।"

एतेक बात सुनितहि ओ पाछू घुमलाह आ लोटा उठओने कलम दिस बिदा भए गेलाह। कोनो उत्तर नहि देलाह। किछु आश्वासन नहि। हमर मामाकेँ नहि रहल गेलनि। ओ तमसा कए बजलाह-

"अहाँक भातिज किछु कहि रहल छथि।"

"से की?"

"ओकर हिस्साक खेत छैक तकरा बेचि कए ओकरा मदति कए दिऔक।"

"कोन खेतक गप्प कए रहल छी?"

"पैत्रिक खेत-पथारमे आधाक ओहो हकदार अछि। एखन ओकरा जरुरत छैक, पढ़ाइ करक छैक। अहाँकेँ स्वयं सोचबाक चाही। "

एतेक बात ओ बजने छलाह कि हमर काका हाथसँ लोटा हुनकापर फेकलाह। रच्छ भेल जे ओ माथ छिप लेलाह नहि तँ पता नहि की होइत? मामाकेँ नहि रहल गेलनि। चिकरए-भोकरए लगलाह। ताबते हमर पितिऔत लोटन सेहो आबि गेल आ मामाकेँ गट्टा धए दरबाजा परसँ बाहर जेबाक हेतु संकेत केलक। ओहिठाम कतेको गोटे जमा भए गेल छलाह, मुदा केओ किछु नहि बाजल। हालति काबूसँ बाहर होइत देखि हमहीं मामाकेँ शांत केलहुँ आ वापस मामागाम बिदा भए गेलहुँ।

गामसँ बहराइत अपन गाछी बाटे जाइत रही की माएक सारा देखाएल। पैर थकमका गेल। आँखिसँ नोर झर-झर खसए लागल। मामा बूझि गेलाह। हमर हाथ पकड़ि लेलथि आ कहए लगलाह॒-

"चिंता नहि करह। तोरा भगवान मदति करथुन। "

एतबा बात ओ कहने छलाह कि सिनुरिआ गाछ हिलए लागल आ धप्प दए हमर दहिना पैर लग किछु खसल। मामा रुकए कहलाह-ताबे तँ हम ओकरा उठा चुकल छलहुँ। पोटरी कसि कए बान्हल छल। ऊपरसँ अबाज भेल-

"एहि पोटरीकेँ मामागाम पहुँचि कए खोलिअह।"q

 

 

हम दुनू गोटे पोटरीकेँ कान्हतर दबने डेगारि कए अपन टोल दिस जाइत छलहुँ कि फटकिएसँ कालू भगता अबाज देलकनि-

"मामा! मामा! बिना भेंट केनहि चलि अएलहुँ।"

मुदा मामा अन्ठा देलखिन आ आगू बढ़ैत रहलाह। कनीके कालमे अपन दरबाजापर पहुँचलाह। ओहि पोटरीकेँ अन्दर लए गेलाह। दुनू गोटे मिलि कए ओकरा खोलए लगलहुँ। पोटरि खोलितहि चम-चम करैत कैटा सोनाक सिक्कासभ देखाएल। मामा तँ डरा गेलाह जे ई सभ आएल कतए सँ मुदा हमही हुनका बुझा-सुझा कए ओहि सिक्कासभकेँ सम्हारि कए रखलहुँ। बीसटा सोनाक सिक्का-सोचिए कए मोनमे आश्चर्य होइत छल। हम कहलिअनि-

"ई माएक आशीर्वाद थिक।"

 आब किछु सोचबाक काज नहि। तुरंत अपन नाम कालेजमे लिखा लएह।"

मामाक बात हमरो पसिन्द भेल। ई गप्प-सप्प करिते छलहुँ कि कालू भगता मामाक ओहिठाम पहुँचि गेल। मामा मोने-मोन सोचए लगलाह- "ई किएक पछोड़ केने अछि?"

दरबाजापर कालू जोर-जोरसँ अबाज लगा रहल छल-

"बिना भेंट केनहि चलि अएलहुँ। एतेक दिनपर भेंट भेल छल। बहुत रास गप्प-सप्प करबाक छल।"

"की कहैत छी? देबु ततेक हल्ला करए लगलाह जे ओहिठामसँ जल्दीए चलि अएलहुँ।"

"बात की छैक?"

बात की रहतैक? कहलिअनि जे श्रीकांत पढ़ए चाहैत छथि। ताहि हेतु किछु टाकाक जोगार करक छैक से हुनकर हिस्साक जमीन बेचए चाहैत छी। एतबा सुनितहि ओ हमरा ऊपर लोटा फेकि देलाह। संयोगसँ बँचि गेलहुँ नहि तँ कपार दू टूक भए जाइत।

"एहि मामिलामे अहाँ एसगर नहि छी। हमसभ अहाँक संग छी।"

कालू भगताकेँ बैसबाक आग्रह केलहुँ। ताबे चाह बनि गेल छल। चाह पीबैत-पीबैत ओ अपन खिस्सासभ कहए लागल।

कालू गप्प-सप्प शुरुए केने छल कि ओकर मोबाइल बाजए लगलैक।

"के छी?'

"जेलर बाबू।"

" सभ ठीक अछि ने?"

"ठीक कहाँ अछि? निशाकेँ रहि-रहि कए चक्कर आबि जाइत छैक। कोनो इलाज असरि नहि कए रहल छैक।"

"हम तँ गाम आबि गेल छी।"

"किछु करिऔक, नहि तँ ओकर जान नहि बाँचत।"

"मुदा हमर अखन गाम छोड़ब संभव नहि अछि कारण दशमीक समय आबि रहल छैक। भगवतीकेँ जगेबाक छैक।"

"कोनो उपाय करिऔक।"

जेलर बाबूक हालति बहुत पातर भए गेल छल। कोनो रस्ता नहि देखि कालू कहलकैक- "एकहिटा उपाय बुझा रहल अछि।"

"की?"

"हुनका संगे अहाँ हमरा ओतए चलि आउ।"

"ठीक छैक। हम आइए साँझ धरि पहुँचि रहल छी।"

यद्यपि कालूक छिज्जा जेलर बाबूकेँ नीकसँ बूझल रहैक तथापि ओ पत्नीक संगे कालू भगताक ओतए बिदा भए गेलाह। रस्तामे बिलाड़ि रस्ता काटि देलकनि। आब की हएत?

निशाक हालति खराबे भेल जाइत रहनि। वर्षाक समय छल। लोकसभ अपन-अपन घर धेने छल। जकरा तेहने अनिवार्य रहैक सएह बाटपर चलबाक साहस काए रहल छल। पानिक झट्टक बंद हेबाक नामे नहि लए रहल छल। ओहन हालतिमे ओ बससँ पुबारिगामक हेतु बिदा भेलाह। सौंसे बसमे मात्र पाँच गोटे छल। दू गोटे ईसभ एकटा आओर यात्री आ बस चालकक संग खलासी। कनीके काल बस चलल होएत की ओकर इंजन घुर्र-घुर्रक अबाज करए लागल। बाहन चालक कतबो प्रयास केलक मुदा ओ टस-सँ-मस नहि भेल।

सड़कपर भरि-भरि डाँर पानि बहि रहल छल। एहन हालतिमे की होइत? जे हेबाक से भेल। बसक इंजन जाम भए गेल। बस चालक पों-पों कए सीटी बजबैत रहल मुदा केओ कतहुँ मदति हेतु आगू नहि आएल। आब की होएत?

जेलर बाबू भगवान !भगवान! करैत रहलाह।रच्छ एतबे भेलैक जे निशाकेँ ठंड हबा लगलैक। ओ कने-मने सुधरल। जेलर बाबू कालू भगताकेँ फोन लगेलाह। कतबो प्रयास करथि, वारंबार एतबे संवाद आबए-

"नेटवर्क जाम अछि,एखन गप्प नहि भए सकैत अछि।"

 रातिक साढ़े न बाजि रहल छल। लोकसभ अपन-अपन घरमे सुतए चलि गेल। वर्षा रुकबाक नामे नहि लए रहल छल। बाहन चालक हाथ बारि देलक जे आब गाड़ी कतहुँ नहि जा सकैत अछि। यात्री चाहथि तँ उतरि जाथि। जेलर बाबू माथ ठोकि लेलाह।

एतबेमे बड़ी जोरसँ ठनका खसल। ततेक इजोत भेल जे लगैक जेना दिन भए गेल हो। ओही प्रकाशमे बससँ सटले एकटा फूसक घर देखेलनि। ओ निशा संगे उतरि कए ओहि खोपड़ी दिस बढ़लाह। मुदा कतबो प्रयास करथि केओ घरक फट्टक नहि खोलए। बससँ नीचाँ भए गेल रहथि। पानिसँ दुनू गोटे भिज गेल रहथि। घुरि कए बस दिस तकैत छथि तँ बस एकदम खाली। ने बाहन चालक छल,ने खलासी ने ओ तेसर यात्री। असलमे ओसभ महराजक आदमी छल जे महराजक इसारापर निशाक पछोड़ केने रहैत छल। ऐन मौकापर बस खराब कए ठाढ़ कए देलक आ चंपत भए गेल। आब तँ जेलर बाबू डरे थर-थर काँपए लगलाह। हुनका एना डराइत देखि निशा सेहो परेसान भए गेलीह। हारि कए ओ घरक दिस बढ़लाह। घरक अन्दर किछु-किछु अबाज सुनेलनि।

कनी घर खोलब।"

"के छी?

'हमसभ यात्री छी वर्षामे भीजि रहल छी। कनी केबार खोलू, जाहिसँ हमसभ आश्वस्त होइ।"

मुदा अन्दरसँ किछु उत्तर नहि अएलैक। वर्षा रुकबाक नामे नहि लए रहल छल। दुनूगोटे नीकसँ भीजि गेल रहथि। निशाक मोन खराब भए रहल छलनि। जाड़सँ थर-थर कपैत छलीह। ई सभ देखि कए जेलर बाबूकेँ नहि रहल गेलैक। ओ जोरसँ केबारमे धक्का मारलक। केबार खुजितहि ओ दुनू व्यक्ति की देखलाह की नहि जे बेहोस भए ठामहि खसि गेलाह ।q

 

 

 

 

Maharaaj is a Maithili Novel dealing with the social and economic exploitation of the have-nots by the affluent headed by the local heads of that time. However, the have-nots ultimately succeed in controlling the resources and regain their lost assets by sustained struggle. Even the dead persons join together to fight against the Maharaaj and ensure that the poor gets their due.

 

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