मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

सोमवार, 29 मई 2023

सन् २०१८मे प्रकाशित हमर मैथिली उपन्यास महराज(ISBN: 978-93-5321-395-4)क हमर ब्लाग स्वान्तः सुखायपर धारावाहिक पुनर्प्रकाशन(भाग सोलह सँ बीस धरि )

 

१६

 

राजमंत्री कालू भगतकेँ रहबाक हेतु एकटा पैघ कोठरी दए देलखिन। तकरबात हुनकर जलखै,चाह-पानक व्यवस्था हेतु भनसिआकेँ कहि देलखिन। कालूक बेस आव-भगत होमाए लागल। दिन-राति कोना बीति जाइक से ककरो पता नहि चलैक। ओमहर महराजी भगता सेहो कालूसँ संपर्कमे रहथि। मखनाक संचिका पढ़ब आ बूझब हुनकर बसमे नहि रहनि कारण ओकर भाषा बहुत विचित्र छलैक।

महराजी भगता कालू भगताकेँ अपन गुटमे सामिल करबाक प्रस्ताव हरिकेँ देलखिन जे ओ सहर्ष मानि लेलाह। कालूक महराजी भगताक दलमे सामिल हेबाक अधिसूचना निकलि गेल। एहिबातसँ अतिप्रसन्न भए कालू भांग खाए सुति गेलाह। भोरे जखन निन्न टूटल तँ देखैत छथि जे निशाक कतहुँ अता-पता नहि अछि।

यमपुलिससभ मखनाकेँ पकड़बाक हेतु चारूकात पसरि गेल छल। ओकरासभक हाथमे यमपाश छलैक। मुँह-कान भयाओन लगैत छलैक। ओ सभ विचित्र प्रकारक वस्त्र पहिरने छल जाहिसँ ओ ककरो देखाइत नहि छल मुदा ओ सभ देख रहल छल। मखना जान बचाबए हेतु चारूकात भागि रहल छल। आब ओकरा मनुक्खक देह तँ रहैक नहि जे मृत्युलोकमे कतहुँ रहि जाइत। ओ तँ यमलोकक रस्तेमे हेरा-फेरी कए यमदूत बनि गेल छल। आब ओकर पोल खूजि गेल अछि, ओ की करए?कोनो रस्ता नहि देखा रहल छलैक। कालू भगता सेहो फेल छल। बहुत मोसकिलसँ ओ बूझि सकल जे मखना ओकर मृत भाए थिक। मुदा किछु मदति नहि कए पाबि रहल छल। मखनाक मौलिक संचिका से महराजी भगताक कबजामे चलि गेल रहैक। सच कही तँ मखना आब चारूकातसँ घेरा गेल छल। पता नहि यमराज ओकर की गति करतैक?

कालू एहि विषयमे महराजी भगतासँ विचार-विमर्ष केलथि मुदा ओ हँसि कए टारि देथि। समाधान किछु नहि कहथि। प्रायः हुनको किछु नहि फुराइत रहनि जे एहि बबालसँ कोना पार पाओल जाए?

एमहर निशाकेँ निपत्ता भए गेलासँ कालू बेचैन छल। "आखिर ओ गेलीह कतए?"-वारंबार इएह प्रश्न ओकरा मोनमे घुमैत छलैक। अछता-पछता कए ओ महराजी भगता ओतए पहुँचल। रातिक समय छलैक। महराजी भगता पीने बुत्त रहथि। माथ अपना काबूमे नहि रहनि। कालूकेँ देखिते बाजि उठलाह-

"किएक बेचैन छह। निशा महराजक रंगमहलमे अछि आ आब ओतहि रहत। जानक काज होअ तँ कात भए जाह।"

-से कहि ओ दहिना दिसक महलक दिस इसारा केलक। कालूक तामस तँ असमान छुबि रहल छल। ओकरा मोन होइक जे दौरि कए महराज लग पहुँचए आ हुनकर गला घोंटि देअए। ओकर मनोभावकेँ महराजी भगता नीकसँ पढ़ि लेलाह। आखिर कतेको सालसँ ओहि हातामे रहि रहल छलाह। मोने-मोन हुनका बड़ हँसी लगैत छल। असलमे ई लफड़ा ओकरे लगाओल छल।q

१७

 

महराजक कृपासँ हमर पढ़ाइ नीकसँ चलए लागल। कालेजमे नाम लिखा गेल। कतेको बेर कालेजसँ घुरैत काल माएक ध्यान अबैत छल। मुदा सोची जे किछु एहन काज करी जाहिसँ माता-पिताक नाम अमर भए जाए। ई काज तँ विद्येसँ भए सकैत छल। विद्याबले लोक बड़का अधिकारी भए सकैत अछि। कलक्टर,जज भए सकैत अछि। किछु संभव अछि। तेँ हम सभ बातकेँ बिसरि पढ़ाइ-लिखाइमे लागल रहैत छलहुँ। दिन-राति परिश्रमपूर्वक पढ़ाइमे लागल रहलासँ परीक्षाफल बहुत उत्तम होइत चलि गेल। सभदिन प्रथमश्रणीमे सफल होइत गेलहुँ।

हमर मामाकेँ एहिबातसँ बहुत प्रसन्नता रहैत छलनि जे हम एतेक मनोयोगपूर्वक अपन काजमे लागल रहैत छी। महराज सेहो हमरा बारेमे उत्सुकता रखैत छलाह। जखन कखनो हमरा नीक परीक्षाफल होइत महराज अपना ओहिठाम बजबितथि आ नानाप्रकारक पुरस्कार दितथि। एहिसँ हमर आत्मसम्मान वढ़ैत गेल। हम निश्चय कए लेलहुँ जे निरन्तर प्रयाससँ पराकाष्ठा धरि पहुँचि कए रहब।

एतेक अभाव ओ कष्टमे हम जीबाक अभ्यस्त रही जे सभ किछु हमरा अपन औकातसँ फाजिले भेटि रहल छल। कालेजमे हमर व्यवहार ओ काजसँ शिक्षक लोकनि बहुत प्रभावित रहथि । सहपाठी लोकनिमे हमरा बहुत यश छल। बेर-कुबेर कतेको विद्यार्थीकेँ अपन खर्चौटामेसँ मदति कए दिऐक। जेकरा जे संभव छल से मदति कए दिऐक।

एहने एकटा विद्यार्थी छलि चंपा। जेहने देखए-सुनएमे पवित्र तेहने पढ़ाइमे चौकस। पारिवारिक स्थिति नीक नहि छलनि। तेँ कतेको बेर कालेज नहि आवथि। पुछितिऐक तँ चुप रहि जैतथि। एहिना एक बेर मास दिन कालेज अएनाइ बंद कए देलथि। ककरोसँ कोनो समाचार नहि भेटए जे आखिर बात की अछि? ओ किएक नहि आबि रहल छथि। ककरोसँ खोलि कए गप्पो करबामे संकोच होइत छल।

एकदिन साँझमे भगवतीक दर्शन हेतु गेल रही। दर्शन कए बाहर निकलि कए प्रसाद सड़िअबैत रही की दूटा बेस जुआएल बानर हमरा दिस दौड़ल। जाबे किछु बुझबै ताबत हाथमेसँ प्रसादक पोटरी छिनि कए ओ भागि गेल। एकटा बानर पोटरी लेने भागि रहल छल आ दोसर ओकर पाछू-पाछू दौड़ रहल छल। हम अबाक ओकरा दिस देखि रहल छलहुँ कि केओ चिकरल-

"श्रीकांत..!

पाछू उनटि कए देखैत छी तँ चंपाकेँ हँसैत देखलहुँ। मास दिनक बाद ओकरा देखलाक बाद मोनमे बहुत प्रसन्नता भेल। पुछलिऐक-

"कालेज किएक नहि आबि रहल छिही? की बात छैक?"

मुदा ओ किछु नहि बाजलि। हमही पुछलिऐक- घरमे सभ ठीक-ठाक छौक ने?"

एहि प्रश्नसँ ओ किछु परेसान भए गेलि। फेर नहूँ-नहूँ आगू बढ़ैत कहए लागलि-

तूँ बूझिए कए की करबह?"

से की? जहन किछु कहबे नहि करबिही तखन बूझबै कोना?

एतबे गप्प भेल छल की ओ बानर कतहुँसँ फेर आबि गेल आ चंपा पर झपटल। जाबे ओ सम्हरितए, जाबे केओ किछु बुझितैक ताबे ओ चंपाकेँ कैक हबक्का मारि चुकल छल।

चंपाक दहिना टांगसँ खून बल-बला रहल छल। ओ जोर-जोरसँ कानए लागलि। बानर बहुत गहींर काटि लेने रहैक। ओकरा चिकरैत-भोकरैत देखि चारू कात कैकगोटे जमा भए गेल, मुदा ककरो किछु नहि फुराइक। हम ओकरा उठौने-पुठौने मंदिरक हातासँ बाहर ठाढ़ रक्सापर रखलहुँ आ कहुना कए ओकरा अस्पताल पहुँचेलहुँ।q

 

१८

 

कुकुर कटबाक चौदह दिन धरि चौदहटा नमगर-नमगर सुइआ चंपाकेँ लागल। ओ परेसान भए गेलि। सौंसे पेटमे गेंठीसभ उगि गेलैक। सीसीमे गरम पानि भरि-भरि ओकर माए दिनभरि ओहि गेठीसभकेँ सेकैत रहैत छलैक। कहुना कए सुइआसभ लागल आ ओकरा कुकुर कटबाक कारण भेल घाव सेहो ठीक भेल। हमरा उमीद रहए जे आब चंपा कालेज आएत मुदा से नहि भेल। पन्द्रह दिन आओर बितल। जखन ओ तइओ कालेज नहि आएलि तँ हमरा नहि रहल गेल। ओहि दिन कालेजसँ लौटति काल हम सोझे ओकर घर चलि गेलहुँ।

गुमती लग ओकर घर छल। घर की छल फूसक घरमे कहुनाक फटक लागल छल। कहुना कए ओ सभ ओहिमे रहैत छल आ जीबिओ रहल छल। एक तरफ महराजक बड़का-बड़का देबाल, बड़का-बड़का पोखरि,चारूकात पसरल नाना प्रकारक महलसभ आ एकदिस एकरसभक घर, जे सभसाल कैक बेर कए खसि पड़ैत छल। वर्षा भेलापर तँ एहि घरक हालति देखए वला रहैत छल। जतेक पानि बाहर खसैत छल ताहिसँ बेसी ओहि घरमे खसैत छल।

ओहि खोपड़ीमे ओकर माए आओर ओ अपने रहैत छलि। पिताक बारेमे चंपाकेँ किछु जानकारी नहि रहैक। की भेलैक, केना भेलैक से चम्पा के किछु नहि बूझल छैक। कैक बेर ओ अपन माएसँ एहि विषयपर चर्च करए चाहलक, मुदा ओ बात आगू नहि बढ़ए दैक। किछु बात तँ रहल होएतैक जे ओकर माए ओकर पिताक चर्चो नहि करए चाहैत अछि? ओकर मोनमे ई बात रहि-रहि कए उठैत रहैत छलैक।

चंपाक घर हम पहिल बेर गेल रही। फटकिएसँ ओकर घरक हाल देखि कए हमरा आगाँ बढ़बाक साहस नहि भेल आ हम चोट्टे घुरि गेलहुँ। आब बुझाएल जे ओ सदरिकाल गुम किएक रहैत छलि। तथापि ओ सौंसे किलासक आकर्षणक केन्द्र छलि। जेहने वुद्धिक विलक्षण तेहने देखबामे पवित्र । जे केओ ओकरा दिस तकैत से तकिते रहि जाइत। ओना कैकगोटे ओकरा संग संपर्क बढ़ाबए चाहलक मुदा ओ ककरो घास नहि दैक। सभकेँ होइक जे ओ बड़ घमंडी स्वभावक अछि। मुदा से सत नहि छल।

आश्चर्यक बात छल जे ओकरा दुनूक गुजर कोना भए रहल छल। ककरोसँ कतहु किछु मंगैत केओ ओकरासभकेँ नहि देखलक। जाबे चंपा नेना रहए ओकरा कोनो बातक ने जानकारी रहैक ने फिकिर। आब ओ छेटगर भए गेल छलि। कालेजमे पढ़ैत छलि। तेँ समाजक प्रभाव ओकरापर होएब स्वभाविक छल।

एकदिन दूपहर राति कए ओ सुतल रहए कि फट्टक खुजबाक अबाज भेलैक। ओकरा बहुत दिनसँ किछु-किछु बात मोनमे घुमि रहल छलैक। समाधान किछु फुराइक नहि। अबाज सुनि ओ अन्ठा कए पड़ल रहलि। ताबतेमे फट्टक खुजल। ऐकटा बेस नमगर-पोड़गर व्यक्ति ओहिठाम आएल। ओकर माए तैयार बैसल छलि जेना ओकरा पहिनेसँ सभबातक आहट होइक। ओकर माए ओहि आदमी संगे बाहर निकललि आ कतहुँ चंपत भए गेलि। आइ पहिल बेर चंपा एहि दृश्यकेँ अपने देखलक। राति भरि ओ असगरे ओहि घरमे पड़ल रहलि। ओकर मोनमे कतेको प्रश्न घुमैत रहलैक। भोर होमएसँ पहिने ओकर माए फेर ओहिठाम आबि गेलि आ दबल पैरे अपन ओछाओन पर पड़ि रहल जेना किछु भेले नहि होइक।

चंपा भरि राति जगले रहि गेलि। भोर भए रहल छलैक। चारूकात लोकसभ अपन-अपन दिनचर्यामे लागि गेल छल। जाड़क मासमे भोरक रौदक आनंद लेबाक हेतु लोकसभ अपन-अपन घरक आगाँ पटिआपर बैसल चाहक संगे मुड़ही खा रहल छल मुदा चंपा अपन ओछाओने पर पड़ल छलि। ओकर माएकेँ बहुत आश्चर्य होइक जे ई आइ एना किएक पड़ल अछि। कालेज जेबाक समय भए गेल छलैक। आखिर ओकर माएकेँ नहि रहल गेलैक।

"चंपा! चंपा!" -अबाज लगओलक। मुदा चंपा कोनो सुतल छलि जे उठति? ओ तँ जगले छलि,भरि राति टकटकी लागल रहलैक आ जे देखलक से बुझबामे लागल छलि। ओकर माए कतबो अबाज देलकैक मुदा ओ टस सँ मस नहि भेलैक। कामिनी अपन बेटीक ई हाल देखि बहुत चिंतित भए गेलि मुदा करितए की?सुतल व्यक्तिकेँ तँ अहाँ जगा सकैत छी मुदा जागल के की जगेबैक?

ओहि दिन चंपा कालेज नहि गेलि। दस बजे ओछाओन परसँ कहुना उठि स्नान केलक आ चुपचाप कतहुँ निकलि गेलि। माए पुछबो केलकैक- "कतए जा रहल छैं?

मुदा ओ किछु नहि बाजलि। ओ दिनभरि एमहर-ओमहर बौआइत रहलि आ साँझ भेने घर आबि गेलि। ओकर माए बहुत चिन्तित रहए। बहुत प्रयास केलक मुदा चंपा किछु बाजल नहि। राति भेल। कनी-मनी भोजन कए ओ सुति रहबाक ढ़ोंग केलक। ओकरा ओहि राति किछु नहि देखैलैक। पड़ले-पड़ल पता नहि ओ कखन सुति रहलि।

एहि प्रकारेँ चंपा कालेज गेनाइ छोड़ि देनि छलि। ककरो कोनो बातक थाह नहि चलि रहल छलैक जे ओ एना किएक कए रहल अछि ने ओ अपने किछु ककरो कहैत छलैक। मुदा ओ बहुत परेसान छलि। माएकेँ किछु कहबाक साहस नहि भए रहल छलैक। एक राति एहिना ओ भगल कए पड़ल जकाँ रहए कि माए केँ उठैत देखलक। केओ बेस नमगर-पोरगर व्यक्ति ओकरा उठा लेलक आ ओतएसँ बिदा भए गेल। चंपाकेँ नहि रहल गेलैक। ओ पाछू-पाछू बिदा भेल। कनिक कालक बाद एकटा सुरंग देखएमे आएल। कामिनी ओहि आदमीक संगे सुरंगमे पैसि गेलि। चंपा सेहो ओकर पछोड़ धेने-धेने चलैत रहलि। किछुकाल चललाक बाद एकटा तहखाना देखएमे आएल। ओकर गेटपर एकटा द्वारपाल ठाढ़ छल। कामिनी केँ देखिते ओ फाटक खोलि देलक। ओ दुनू व्यक्ति आगू बढ़ि गेल। चंपा ई दृश्य देखितहि चोट्टे घुरि गेलि। चंपा कहुना कए गुमती लग पहुँचलि। ओतएसँ सटले चंपाक घर छलैक। अपन घर देखि चंपाकेँ जान-मे-जान आएल।

भोर भए रहल छल। चिड़इ-चुनमुन अपन खोंतासँ उड़ि कए एमहर-ओमहर करए लागल छल। जाड़क समय छलैक। महराजी भगता आ कालू भगता मंत्र-तंत्र कए लौटि रहल छलाह। चाहक दोकान पर भफाइत चाह देखि कए चाह पीबाक इच्छा भेलनि। चाह पीबैत-पीबैत कालूक ध्यान निशापर पड़लैक। ओ ओहि समय गुमती पारकए अपन घर दिस बढ़ि रहल छलि। ओ चंपाक सुन्दरतासँ अत्यंत मोहित भए बड़ीकाल धरि एकटक ओकरा देखिते रहि गेल।

कालू लंपट छलहे। ओकर इच्छा भेलैक जे चंपासँ किछु गप्प-सप्प करी। ताहि हेतु महराजी भगता तैयार नहि भेलाह। कहलखिन- 

बेटी ककरो होइक, हमरा लोकनिक कर्तव्य अछि जे ओकर रक्षा करी।"

एतबा इसारा पर्याप्त छल। कालू चुप-चाप महराजी भगताक पाछू-पाछू बिदा भेल।q

 

१९

 

कालू घर पहुँचल तँ पता लगलैक जे आइ महराजक ओतए बैसारमे हुनका कालू संग जेबाक हेतु आदेश भेल अछि। महराजक बैसारक नामेसँ महराजी भगताक पेटमे हर बहए लागल।

"की बात छैक? हमरा किएक बजाओल गेल?" -से सभ सोचए लगलाह। ताबतेमे महराजक सचिवक फोन सेहो आबि गेल- अजुका बैसारमे अहाँ आबि रहल छी ने? -महराजक सचिव बजलाह।

" अवश्य आएब।"

महराजी भगता धराधर स्नान-ध्यान कए बिदा भेलाह। ताधरि कालू नहि आएल छल। गप्प भेल रहैक जे कालू महराजी भगताकेँ संग करैत बैसारमे जएताह। मुदा ओ समयपर तैयार नहि भए सकलाह। महराजक नामेसँ हुनकर पेट खराब भए गेलनि। कैकटा दस्त भेलनि। जहाँ बिदा हेबाक प्रयास करथि कि पेट गुड़गुड़ाए लागनि। आब की होएत? कहुना बिदा भेलाह। विलंब तँ भइए गेल रहनि। ताबते महराजी भगताक फोन आबि गेल ।

"अहाँ आगू बढ़ू, हम सोझे ओतहि पहुँचि रहल छी।" -कालू फोनपर बाजल।

महराजी भगता तँ बिदा भइए गेल रहथि। महराजक महल लगमे पहुँचलाह तँ देखैत छथि जे कालू दौड़ कए केम्हरो जा रहल अछि। इसारासँ किछु कहबाक चेष्टा कए रहल छथि। महराजी भगता छगुन्तामे रहथि जे एकरा की भए गेलैक, कतए जा रहल अछि आ की कहए चाहि रहल अछि?खैर! ओ एसगरे महराजक महलमे पहुँचलाह।

महराजक महल सजल धजल छल। सिपहसलारसँ अपन-अपन स्थानमे बैसि गेल रहथि। राजमंत्री सेहो पहुँचि गेल रहथि। दूटा कुरसी खाली छल। एकटापर महराजी भगता बैसि गेलाह आ कालूक बाट ताकए लगलाह। मोनमे चिंता रहनि जे यदि कालूकेँ आओर देरी भेलैक तँ आइ ओकर जान बचनाइ मोसकिल छैक।

महराजक आगमनक सूचना देल जा रहल छल। समस्त सभासद लोकनि सावधानक मुद्रामे आबि गेल रहथि कि एकटा व्यक्ति धरिआ सरिअबैत धरफराएल सभास्थलमे प्रवेश कए रहल छलाह। महराजी भगता ओमहरे ताकि रहल छलाह। देखितहिँ इसारा देलखिन आ ओ व्यक्ति महराजी भगताक बगलमे खाली कुरसीपर बैसि गेलाह। महराजी भगता तामसे भेर छलाह। मुँह लाल भए गेल रहनि। होनि जे ओकरा कंठ पकड़ि कए ओतएसँ फेकि दी मुदा किछु नहि कए सकलाह। महराज प्रवेश कए रहल छलाह। तैओ ओ बड़बड़ेलाह- कालू...।"

महराजक सिपहसलार सभ चिचिआ उठल-

सावधान! महराजाधिराज! प्रवेश कए रहल छथि।”

सभ केओ ठाढ़ भए गेलाह। पंडित लोकनि महराजक सम्मानमे श्लोकक पाठ करए लगलाह। महराज नहूँ-नहूँ आगू बढ़ि रहल छलाह। पाछूसँ एकटा सिपहसलार बड़का पंखा हौंकि रहल छल। महराजक शोभा तँ देखैत बनैत छल। ओ अपन आसन ग्रहण केलाह। चारूकातसँ लोकसभ बाजि उठल- महराजाधिराजक जय हो" तकर बाद  राजक गबैआसभ मंगलस्तुति गओलथि। महराज मंद-मंद मुस्कान दए रहल छलाह। रतुका भांगक असरि गेल नहि छल तथापि अपनाकेँ सम्हारने छलाह। सभसँ पहिने राजमंत्री बजलाह-

"महानुभाव लोकनि! महराजक आज्ञा हो तँ आजुक कार्यवाही प्रारंभ हो।"

महराज बजलाह- "एवमस्तु।"

राजमंत्री उठि कए आजुक सभाक कार्यवाही प्रारंभ केलाह। ऐतबहिमे ठनका जकाँ गरजैत आकाश मार्गसँ कथुक प्रवेश भेल। महराज सकदम छलाह। मंत्रीगण एक-दोसर दिस देखए लगलाह। राजपंडित महराजी भगतासँ पुछलाह- ई की भए रहल अछि?

" बहुत अशुभ संकेत अछि। केओ यमपाश फेकलक अछि। "

-महराजी भगता बजलाह। कालूकेँ तँ जेना बुद्धिए हेरा गेल रहनि। पहिल बेर महराजक ताम-झाम देखि रहल छलाह। महराजक दिस तकैत राजपंडित बजलाह- श्रीमान! लगैत अछि यमलोकसँ यमदूतसभ सभास्थलकेँ घेरि लेलनि अछि।"

"कारण?" -महराज बजलाह।

से तँ महराजी भगते कहताह ।" -राजपंडित बजलाह।

ताबतमे तीन-चारिटा यमदूत उपस्थित भेल। महराजकेँ किछु देखा नहि रहल छलनि। मुदा महराजी भगता सभ देखि रहल छलाह। ओ यमदूतसभसँ प्रश्न केलखिन- अहाँसभक की समस्या अछि आ एहि सभामे किएक अएलहुँ अछि से स्पष्ट करू?"

"हमसभ यमराजक जासूस छी। यमलोकमे मखनाकेँ गिरफ्तार करबाक आदेश भेटल अछि मुदा ई तरह-तरहक फरेब कए बचबाक प्रयास कए रहल छल। बहुत मोसकिलसँ एकरा पकड़ल गेल अछि। आब ई कहि रहल अछि जे ई जे किछु केलक से एकरा बिसरा गेल अछि। एकरा पासमे एखनो यमपाश अछि जे ई महराजक महलमे कतहुँ नुका देने अछि। एही बातक जाँच करबाक हेतु हमसभ एतए आएल छी।

"मामिला तँ बहुत गंभीर थिक। सभकाज छोड़ि पहिने एकरे समाधान कएल जाए" -महराज बजलाह।

समाधान हमरा लोकनिक हाथमे नहि रहि गेल अछि महाराज!"

से किएक?'

"ई ने आब जीबैत अछि ने मृत। एकर आत्मा बीचेमे लटकि गेल अछि?"

से केना भेलैक?"

"ई मरलाक बाद यमलोकक रस्तामे हेराफेरी केलक जाहिसँ एकर संचिकामे सभटा उल्टा-पुल्टा भए गेलैक। आब ई देखार भए गेल अछि। यमलोकमे एकरा दंड देबाक एलान भए गेल अछि मुदा समस्या अछि जे एकरा पकड़ल कोना जाए? यमपाशसँ ई कबजामे नहि आबि रहल अछि।"

"तखन की होएत?"

"कालू ओकर भाए छैक। इएह ओकरा पकड़ा सकैत अछि।"

"कालू कहाँ अछि?"

"जी सरकार !" -कालू बाजल।

तूँ तुरन्त एहि समस्याक समाधान करह नहि तँ तोरा फाँसी दए देल जाएत।"

महराजी भगता कालूकेँ चुप रहबाक इसारा केलक। कालू डरे थर-थर काँपि रहल छल। राजमहलक एक कोनमे नुकाएल मखना सभटा देखि रहल छल। ओ गरजैत-फरजैत यमदूतसभ पर आक्रमण कए देलक। महराज किछु बुझितथि ताहिसँ पूर्वे हुनकर सिपहसलार लोकनि हुनका लेने चलि गेल। एहि तरहेँ राजसभा अनायासे विसर्जित भए गेल।q

 

२०

 

महराज भांगक निशामे बुत्त छलाह। ताहि हालतिमे हुनका राजसभामे किएक आओर के अनलक? एहि विषयपर बहुत घमरथन भेल। सभ एक-दोसरकेँ नाम लए रहल छल। अन्तमे राजमंत्री आगू बढ़लाह आ कहलखिन- आब एहि बातपर घमरथन करबाक कोनो औचित्य नहि अछि। जे काजक गप्प अछि से करू।"

'एकदम उचित बात कहि रहल छथि। सभ केओ मखनाकेँ पकड़ेबाक जोगार करू नहि तँ कालूकेँ जान नहि बाँचत।" -राजपंडित बजलाह।

"मुदा ई ककरो वशमे नहि अछि। ओकर एँड़ी उनटा छैक ने, से नहि देखाइत अछि? ओकरा कोना आ केँ पकड़त?" -महराजी भगता बजलाह। बहुत कालधरि एहि विषयपर चर्च होइत रहल। ओतए मखना छद्मरुपसँ हबामे विद्यमान छल आ मोने-मोन हँसि रहल छल। समस्या बढ़ले जा रहल छल, कारण यमदूतसभ चारूकातसँ महलसभकैँ घेरि लेने छल। सभक हाथमे यमपाश छल। ओ सभ रहि-रहि कए महराजी भगताकेँ धमकबैत छल-

"तोहर महराजक प्राण लेने बिना वापस नहि जाएब। जौँ हुनकर नीक चाहैत छह तँ मखनाकेँ वापस करह।"

"मखनाकेँ पकड़ब हमरासभक वशमे नहि अछि।" -महराजी भगता बाजल।

"से तूँ जानह आ तोहर काज जानह। हमसभ तँ यमराजक आज्ञाक अधीन छी। जे ओ कहताह से करब। आखिर मखना अछि तँ महराजेक प्रजा। तखन ओकर जिम्मा ककर होएत? तूँही बाजह?"

-यमदूत कहलक। एतबा कहि ओ यमपाश जोरसँ घुमा देलक। चारूकात हाहाकार मचि गेल। जकरे-तकरे मोन खराब होमए लगलैक। महराज सेहो बेहोस भए गेलाह। महराजकेँ इलाज हेतु राजवैद्य बजाओल गेलाह। ओ कतबो किछु करथि महराजक हालति खराबे भेल गेलनि।

"आब की होएत?” -राजपंण्डित बजलाह।

सूर्यास्त लगीच छल। यमदूतसभक धैर्य उत्तर दए रहल छल। ओ सभ यमराजकेँ फोन लगओलक-

"सरकार! मखनाकेँ पकड़ब मोसकिल लागि रहल अछि?"

"किएक?"-यमराज बजलाह।

मखना बहुत पिच्छड़ भए गेल अछि।" -यमदूतसभ बजलाह। ताबे महराजी भगता कालूक मूल संचिका लेने अएलाह। संचिका देखि यमदूत बहुत प्रसन्न भेलाह आ तुरन्त ओकरा अपना कबजामे लए लेलथि। यमदूतसभ यमराजकेँ फोन केलक।

"सरकार! कालूक मूल संचिका भेटि गेल मुदा यमपाश अखनो नहि भेटल अछि, ने मखना काबूमे आएल अछि।'

"चिंता नहि करह। संचिका लए चलि आबह मुदा महराजकेँ सख्त चेतौनी दए दहक जे मास दिनमे मखनाकेँ हमर दरबारमे हाजिर करथि अन्यथा हुनकर भगवाने मालिक।" -यमराज बजलाह।

यमराजक आज्ञा पाबि यमदूतसभ ओहि संचिकाकेँ अपन कबजामे लेलक आ यमलोक बिदा भए गेल।q

 

 

 

Maharaaj is a Maithili Novel dealing with the social and economic exploitation of the have-nots by the affluent headed by the local heads of that time. However, the have-nots ultimately succeed in controlling the resources and regain their lost assets by sustained struggle. Even the dead persons join together to fight against the Maharaaj and ensure that the poor gets their due.

 

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