बुधवार, 15 नवंबर 2023

हमर साहित्यिक यात्रा

 

हमर साहित्यिक यात्रा

 

सन् २०१६मे हमर माएक चौरानबे सालक बएसमे देहान्त भए गेलनि। हुनकर देहावसानक बाद मोन ततेक दुखी ओ अशान्त भए गेल जकर वर्णन असम्भव। लगभग चारि मास धरि राति-राति भरि निन्न नहि भेल। कहिओ काल भोरुपहरमे आँखि लगैत छल, ओहो थोड़बे कालक लेल। सगर राति ओहिना माने टकटकीए-मे...। सम्पूर्ण दिनचर्या अस्तव्यस्त भए गेल। निःशव्द रातिमे जागल माथमे बितल बात सभ सिनेमाक रील जकाँ उभरैत रहैत छल। एहन मानसिक स्थितिसँ उबरबामे एहि आलेख सबहक आश्रय भेटल। मोनक बात सभ लिखैत गेलहुँ। सालक साल मोनमे गरल बात सभकें निकलबाक रस्ता भेटलैक। मोनमे । शुरुमे हम हिन्दी,अंग्रेजी  आ मैथिली, तीनू भाषामे लिखलहुँ। फेर एकदिन हमर एकटा मित्र कहलनि –“आन भाषामे लिखनाहरक कोनो कमी नहि अछि। अहाँ मैथिलीमे लिखू । ई अपनसभक मातृभाषा थिक । एहि भाषामे जे परेसानी होअए,मुदा अछि तँ अपन । बातो सही बुझाएल । तकर बाद हम झुरझार मैथिलीएमे लिखि रहल छी।

मैथिलीमे अखन धरि हमर छब्बीसटा  पोथी प्रकाशित अछि जाहिमे सतरहटा उपन्यास अछि। एकटा आत्मकथा, दूटा संस्मरण,तीनटा निवंध संग्रह,एकटा यात्रा प्रसंग आ दूटा कथा संग्रह अछि। हमर प्रकाशित पुस्तकसभक प्रकाशनवर्ष सहित विवरण निम्नलिखित अछिः

प्रकाशन वर्ष:

प्रकाशित पोथी

२०१७

१. ‘भोरसँ साँझ धरि’ (आत्म कथा)   २. ‘प्रसंगवश’ (निवंध) ३. ‘स्वर्ग एतहि अछि’ (यात्रा प्रसंग)

 

२०१८

 

४. ‘फसाद’ (कथा संग्रह) ५. `नमस्तस्यै’ (उपन्यास) ६. विविध प्रसंग (निवंध संग्रह ) ७.महराज(उपन्यास) ८.लजकोटर(उपन्यास)

 

२०१९

 

९.सीमाक ओहि    पार(उपन्यास)१०.समाधान(निवंध संग्रह) ११.मातृभूमि(उपन्यास) १२.स्वप्नलोक(उपन्यास)

 

२०२०

 

१३.शंखनाद(उपन्यास) १४.इएह थिक जीवन(संस्मरण) १५.ढहैत देबाल(उपन्यास)

 

२०२१

 

१६.पाथेय(संस्मरण) १७.हम आबि रहल छी(उपन्यास) १८.प्रलयक परात(उपन्यास)

 

२०२२

१९.बीति गेल समय(उपन्यास)  २०.प्रतिबिम्ब(उपन्यास) २१. बदलि रहल अछि सभकिछु(उपन्यास)२२.राष्ट्र मंदिर(उपन्यास) २३.संयोग(कथा संग्रह) २४.नाचि रहल छलि वसुधा(उपन्यास)

 

२०२३

 

२५.दीप जरैत रहए(उपन्यास) २६.ठेहा परक मौलायल गाछ(उपन्यास)

 

 

एकर अतिरिक्त हिन्दीमे हमर उपन्यास,न्याय की गुहार प्रकाशित अछि। हिन्दीमे लिखल दूटा उपन्यास अप्रकाशित अछि। अंग्रेजीमे हमर दूटा किताब(Life is an Art The Lost House )प्रकाशित अछि। हिन्दी आ अंग्रेजीमे हमर बहुत रास रचना प्रतिलिपि वेवसाइटपर उपलव्ध अछि ।

https://hindi.pratilipi.com/user/rabindra-narayan-mishra-ed20wz4500

 

संप्रति १०५ विभिन्न प्रकारक हिन्दी अंग्रेजीमे हमर रचना एतए पढ़ल जा सकैत अछि जाहिमे कविता,कथा,उपन्यास,आ आलेख सामिल अछि। समय-समयपर अपन ब्लाग स्वान्तः सुखायपर हम लिखैत रहलहुँ अछि। हिन्दी,अंग्रेजी आ मैथिलीमे हमर अनेक रचना एतए पढ़ल जा सकैत अछि ।

https://mishrarn.blogspot.com/

 

मैथिलीमे हमर बहुत रास मौलिक रचनासभ मिथिला मिहिरमे छपैत रहैत छल। मिथिला मिहिरक संदर्भित प्रतिमे सँ किछु हमरा लगमे  बाँचल रहि गेल अछि । एकटा कविता(जीवन संघर्ष)२५ जुलाइ १९८२क छपल छल। प्रसंगवश ओहि कविताकेँ उद्धृत कए रहल छी-

जीवन संघर्ष

(१)

सूर्य जे प्रातः उगल से विदा छल,

चिड़ै चुनमुन उतरि कऽ आकाशसँ,

निश्चिंत भावे गवै  छल-

"जे करी विश्राम दिन आवशेषपर अछि।"

(२)

मुदा ओ हाथसँ पाथर फोड़ै छल,

भोरेसँ संघर्षरत जीविका हित,

सोनितक विक्री करैछल,

कुहरितहुँ साँझो पड़ल ,धरि ओतहि छल।

(३)

पेट,अँतरी,पीठमे अंतर खतम छल,

दाँत झड़ि कए मुँहकेँ खधिआ केने छल,

आँखिमे धसना धसल छल,आहार बिनु,

हाड़ोक हड्डी गलि रहल छल।

(४)

से कहि रहल छल, बातमे पीढ़ा भरल छल,

अतिशय तृषित मनदग्ध,देहक दुर्गति छल,

जे हमर जीवन कुटिल ओ क्लिष्ट केहन,

यद्यपि करी श्रम अनवरत धरि हाल एहन,

(५)

हे मनुज़ तोँ उठह आबो आँखि खोलह,

देखह ने कोनो भेद अछि,प्रकृतिक कोनो आयाममे,

तद्यपि सुखक मारिचिकामे,विसरि जे तोँ मनुक्ख छह,

अपने सोनित मोहवश गट-गट पीवै छह।

१४ अगस्त १९८३क मिथिला मिहिरमे हमर आलेख `मिथिलाक संस्कृति छपल छल। २२ मइ १९८३क हमर रचना बरियाती(व्यंग) छपल छल । (एहि रचनासभसँ संवंधित मिथिला मिहिरक पृष्ठ सहित रचना हमर ब्लाग पर उपलव्ध अछि।)दरभंगासँ प्रकाशित,मिथिला टाइम्समे हमर कथा ,क्रान्ति विसर्जन,ओही समयमे छपल छल। कहबाक तात्पर्य जे बहुत पहिने माने तैतालीस-चौआलिस साल पहिने हम लिखैत रहैत छलहुँ आ छपितो छलहुँ तकर प्रमाण उपलव्ध अछि।

जनवरी १९७८मे हमर पदस्थापना इलाहाबादमे भेल । हम मार्च १९८७ धरि ओतए रहलहुँ । तकर बाद वापस दिल्ली आबि गेलहुँ । ओही बीच इलाहाबाद मे डाक्टर जयकान्त मिश्रजीसँ आ हुनकर समस्त परिवारसँ बहुत नीक संपर्क छल । हुनके प्रेरणासँ हम बीसटा कथा आ एकटा उपन्यास सन् १९८२सँ ८५क बीचमे लिखने रही। मुदा ओ सभ कतेको साल धरि पुस्तकाकारमे नहि छपि सकल । मार्च १९८७मे  हम बदली भए दिल्ली आबि गेलहुँ। घरसँ कार्यालय आवागमनमे बहुत समय लागि जाइत छल। एहि ठाम जीवन-संघर्ष बढ़ि गेल। मिथिला मिहिर बन्द भए गेल। अस्तु, ई कथा/ उपन्यास सभ जस-के-तस पड़ल रहि गेल ।

एमहर पुरनका पन्ना सभ पलटलहुँ तँ एकरा सभकेँ फेरसँ देखबाक अवसर भेटल। श्री उमेश मण्डलजी बहुत परिश्रमसँ पुरान भेल पान्डुलिपि सभकेँ स्वच्छ प्रति टंकित केलाह जाहिसँ ई कथा सभ इजोत देखलक। आखिर, डाक्टर उमेश मण्डलजी एकर पाण्डुलिपिकेँ टंकित केलाह । तकर बादे ई पोथी प्रकाशित भए सकल । एतेक पुरान कागजपर हाथसँ लिखल पाण्डुलिपिक फोटो ह्वाट्सअपपर निर्मली पठाएब आ तकरा टंकित करब बहुत मोसकिल काज छल । हाथ रखितहि कागज लसकि जाइत छल। कतेको ठाम पेनसँ लिखलाहा ढबकि गेल छल। किछु पन्ना तँ फाटिओ गेल छल । डाक्टर उमेश मंडलजी एहि कठिन काजकेँ अत्यन्त परिश्रमपूर्वक आ उत्कृष्ट निष्ठासँ संपन्न केलनि । तकर बादे सन् २०१८मे फसाद (कथा संग्रह) आ २०२२मे प्रतिबिम्ब(उपन्यास) क्रमशः छपि सकल।

सन् १९८७मे दिल्ली आबि गेलाक बाद हमर दैनिक दिनचर्या तेहन भेल जे लिखनाइ बला काज बहुत दिन धरि बंद रहि गेल। कहिओ काल गाहे-बगाहे यदि लिखबो केलहुँ तँ ओ फाइलेमे अप्रकाशिते रहि गेल। एमहर सेवानिवृत्तिक बाद सन् २०१६मे माएक देहान्तक बाद हमरा मोनमे भेल जे फेरसँ मैथिलीमे लिखी। तहिआसँ हम नियमित लिखि रहल छी। लिखि लेलाक बाद ओकरा टंकित करब,पुस्तकक आकार देब आ प्रकाशित कराएब बड़का समस्या छल। ओही समयमे डाक्टर उमेश मंडलक जनतब भेटल । हुनकासँ संपर्क कएल । नित्य लिखलाक बाद हुनका मोबाइलपर फोटो पठबैत छलिअनि। ओ तकरा टंकत करैत छलाह। तकरा हम फेर पढ़ैत छलहुँ । ओहिमे जरूरी संशोधन करैत छलहुँ । तकर बाद ओ किताबक प्रूफ पठबैत छलाह ,से हम कैकबेर पढ़ैत छलहुँ । ओहिमे बीच-बीचमे युनीनागरीपर ओहिमे सुधारो करैत छलहुँ । एहि तहरेँ लगातार पाँचटा किताब उमेशजीक सहयोगसँ छपि सकल। ओहि बीच हमरा युनीनागरीपर टंकण करबाक नीक अभ्यास भए गेल। ओना हमरा अंग्रेजी टाइप करए पहिनेसँ अबैत छल। मुदा देवनागरी टाइएिंग करबामे युनीनागरी साफ्टवेयरक बहुत योगदान अछि। असलमे ई साफ्टवेयर हमरा २००९मे श्री गजेन्द्र ठाकुरजी पठओने रहथि। हम डाक्टर जयकान्त मिश्रजीपर एकटा स्मरण लिखने रही। हाथसँ लिखल ओहि संस्मरणक फोटोकाँपी हुनका पठओने रहिअनि। तखने ओ हमरा युनीनागरीक साफ्टवेयर पठओने रहथि । हम हुनके देल युनीनागरीक साफ्टवेयरमे काज करबाक नीक अनुभव प्राप्त कए लेलहुँ । कालान्तरमे तकरे उपयोग कए हम  मैथिलीक बीसटा किताब लिखलहुँ । एहिठाम ई कहब युक्तिसंगत रहत जे हम पहिने कगजपर लिखैत छलहुँ । बादमे युनीनागरीसँ टाइप करबामे अभ्यास भए गेलाक बाद सोझे लैपटापपर काज करैत रहलहुँ जाहिसँ कागज आ समय दुनूक बचति भेल । काजक गुणवत्ता सेहो बढ़ल।

पछिला सात सालमे हमर रचनासभ श्री गजेन्द्र ठाकुर द्वारा संपादित ई पत्रिका विदेहमे निरंतर छपैत रहल अछि। हमर आत्मकथा(भोरसँ साँझ धरि),आ उपन्यास नमस्तस्यै,महराज,लजकोटर ,मातृभूमि,बदलि रहल अछि सभ किछु विदेह पत्रिकामे धारावाहिक पुनर्प्रकाशित होइत रहल अछि। अखनहु हमर उपन्यास,ठेहापरक मौआएल गाछक धारावाहिक पुनर्प्रकाशन विदेह पत्रिकामे भए रहल अछि। एकर अतिरिक्त हमर अनेक आलेख सेहो एहि पत्रिकामे छपल अछि। हमर सभटा पुस्तकक डिजिटल संस्करण विदेहक पेटारमे राखल अछि आ निःशुल्क डाउनलोड कएल जा सकैत अछि । हैदराबादसँ श्री सी.एम.कर्णजी आ हुनकर सहयोगीलोकनि द्वारा प्रकाशित पत्रिका `देसिल बयनामे हमर अनेक रचनासभ छपल अछि । मिथिलादर्शन कोलकातामे हमर यात्रा प्रसंग(युरोप यात्रा आ कालापानी छपल छल। चेतना समितिक पत्रिका घर-बाहरमे सेहो हमर यात्रा प्रसंग(त्रिपुर सुंदरीक दरबारमे आ डाक्टर योगानन्द वियोगीजीक वाल उपन्यासऊड़न छू गोलाक पुस्तक समीक्षा-ई रहस्यमय संसार) छपल छल। एमहर मैथिली पुनर्जागणप्रकाशमे सेहो हमर किछु कथासभ छपल अछि ।

समय-समयपर  खास कए नवीन पुस्तकक प्रकाशनक बाद फेसबुक/व्हाट्सएपपर चर्चा होइत रहल अछि। तकर किछु महत्वपूर्ण अंश संदर्भक हेतु पुनःप्रेषित कए जा रहल अछि ।

प्रकाशित पुस्तकःबदलि रहल अछि सभ किछु

प्रसिद्ध विद्वान एवम् मैथिलीक महाकवि माननीय श्री बुद्धिनाथ झाजीक टिप्पणी (व्हाट्सएपक अरुणिमा साहत्यिक गोष्ठीसँ उद्धृत):-

मैथिली साहित्यक एहेन 'एकांत सेवक' इएह टा। हिनक पोथी सब‌ मात्र गनतीक लेल नहि, ओकर गुणवत्ताक संग आवरण, छपाइ, सफाइ, सब किछु उपरि-जुपरि।

सभ कीर्ति संग्रहणीय/ पठनीय अछि। जय मैथिली”

प्रोफेसर डाक्टर भीमनाथ झा:नव उपहारक स्वागत ।

श्री लक्षमण झा सागर:दू दर्जन सं बेसी मैथिलीक पोथी प्रकाशित छनि जकर कियो गोटे नोटिस नै लैत छथि। मैथिली साहित्य के अभगदशा लिखल छैक।जे समाज अपन साहित्य आ साहित्यकारक सुधि बुधि नै लेत। चर्चा धरि करबा मे कन्छी काटत तकर भगवाने मालिक।

डाक्टर रमण झा: “रवीन्द्र नारायण मिश्रपर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालयसँ शोधकार्य भऽ रहल अछि। सूचनार्थ।

डाक्टर उमेश मंडल : “मैथिली साहित्यक उपन्यास विधा, जेकर भण्डार बहुत पैघ नहि अछि, ताहिमे अपनेक अनवरण लेखन बहुत किछु अछि। की अछि, केहेन अछि ओ तँ समीक्षक लोकनि कहता मुदा असाधारण ओ ह्लादकारी अछि, से तँ सबहक मुहसँ निकलिए सकैए। सादर हार्दिक बधाइ...

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प्रकाशित पुस्तकःबीति गेल समय

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प्रोफेसर डाक्टर भीमनाथ झा:हम तँ एकरा उपन्यासक 'उपन्यासे' बुझै छी। कथा जा पूर्णताकेँ नहि प्राप्त क' लिऐ ताधरि बढैत रहय, अर्थात् वार्ता सय राउंड तँ चलबेक चाही । समर्थन आ शुभकामना अपनेक संग अछि ।

प्रोफेसर डाक्टर बिभूति आनन्द : “एहि ऊर्जा कें नमन

प्रोफेसर डाक्टर रमण झा:बहुत-बहुत शुभकामना आ बधाइ !

डाक्टर उमेश मंडल:' बीति गेल समय' बहुत नीक शीर्षक…! हार्दिक बधाइ..!

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प्रकाशित पुस्तकःप्रलयक परात

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प्रोफेसर (डाक्टर) भीमनाथ झा:अहाँक लेखन ऊर्जाक अभिनन्दन...

श्री हितनाथ झा:संख्यात्मक दृष्टिएँ तँ हिनक पोथी डेढ़ दर्जन अछिये , गुणात्मक दृष्टिसँ सेहो हिनक लेखनी महत्वपूर्ण अछि । एकान्त साधक श्री रवीन्द्र नारायण मिश्रजी संप्रति लिखिए रहल छथि से अनवरत । स्वागत ।

केदार कानन : “हिनक रचनाशीलता मोहित आ प्रेरित करैत अछि ।

प्रकाशित पुस्तकः'ढहैत देबाल'

प्रोफेसर डा. भीमनाथ झा: 'ढहैत देबाल' भने नाम राखि लियौ अपने, हम तँ जोड़ाइत देबाल सैह मानब । तीन-चारि मासपर एक पोथी--- मैथिली साहित्यक देबाल अपने जोड़ि रहलहुँ अछि । बधाइ!

प्रोफेसर डा.रमण झा:गद्यमे उपन्यास आ पद्यमे महाकाव्य जँ केओ एकहुटा लिखि लैत छथि तऽ ओ यशस्वी साहित्यकार कहबैत छथि आ जे जतेक अधिक संख्या बढ़बैत छथि से ततेक----। मैथिलीमे हमरा जनैत विदितजी उपन्यासक संख्यामे सभसँ आगाँ छथि आ लगैए जेना अहीँ हुनका पकड़ि सकबनि। बहुत बहुत बधाई आ शुभकामना।

प्रोफेसर डाक्टर बिभूति आनन्द : “मैथिलीक सौभाग्य जे अहाँ सन ऊर्जावान लेखक प्राप्त भेलै..

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मैथिलीक वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय श्री लक्ष्मण झाजी लिखैत छथि(ह्वाट्सअपसँ उद्धृत):-

22/3/2022

बरका काज क रहल छी। असली मैथिलीक सेवा इएह छी। हमरा जानकारी अनुसार मैथिली साहित्यक उपन्यास विधाक एतेक पोथी आर किनको नै छनि। से एक पर एक।

भगवती अहाँ के असीम उर्जा देथि आ हमरा साहित्य के अहाँ आर अपन अनुपम कृत सब दैत रही। हमर असीम मंगल कामना!

24/07/2022(ह्वाट्सअप) प्रोफेसर(डा.) विजयेन्द्र झा:मैथिली  साहित्य अपनेक एहि 19 गोट पोथीसॅ समृद्ध  भेल आ' जहिआ कहियो मैथिली  साहित्यक इतिहास  लिखल जाएत, तॅ  मैथिली- साहित्यकारक श्रेणीमे अपनेक नामकें अवश्य अमरत्व प्रदान करत।  किओ एकटा उपन्यास  लिखि साहित्य  मध्य अपन स्थान सुरक्षित  करबा लैत छथि। ई तॅ संख्यामे  चौदह गोट अछि। एहि सुकृतिक लेल सदा मैथिली  साहित्य अपनेक ऋणी रहत।बहुत-बहुत शुभकामना। प्रणाम!👏

मैथिलीक विद्वानलोकनिक हमर पुस्तकसभपर समीक्षा सेहो सेहो समय-समयपर छपैत रहल अछि। डा. योगानन्द झाजीक हमर मैथिली उपन्यास मातृभूमिक समीक्षा छपल छल जकर किछु अंश प्रस्तुत कए रहल छी-

स्वनामधन्य श्री रबीन्द्र नारायण मिश्र बहुआयामी लेखक छथि । हिन्दी,मैथिली, ओ अंग्रेजीमे समानाधिकार रखनिहार एहि एकान्तसेवी रचनाकारक दर्जनाधिक पोथी प्रकाशित छनि जाहिमे अधिकांश प्रणयन ई मातृभाषा मैथिलीमे कयने छथि । विभिन्न विधामे सिद्धहस्त श्रीमिश्र आत्मकथा,यात्रा-वृतान्त,निबन्ध-प्रबन्ध,कथा ओ उपन्यास आदि अनेक विधामे रचना कयने छथि। खास कऽ हिनक रुचि उपन्यास विधाक प्रणयनमे छनि आ एहि विधामे ई मैथिलीक उपवनमे क्रमशः नमस्तस्यै,महराज, लजकोटर,सीमाक ओहि पार,मातृभूमि,स्वप्नलोक ,शंखनाद, ढहैत देबाल, हम आबि रहल छी,प्रलयक परात,बीति गेल समय आ प्रतिबिम्ब अभिदानसँ रंग-विरंगक पुष्प-पादप लऽ कऽ प्रस्तुत भेल छथि आ आधुनिक मैथिली उपन्यास विधाकेँ समपुष्ट कयलनि अछि । हिनक उपन्यास सभ समाज ओ राष्ट्रक अभ्युत्थानक प्रति हिनक चिन्तनक विराट आयाम केँ प्रस्तुत कयने अछि । मातृभूमि उपन्यासक माध्यमे ई मातृभाषा ओ मातृभूमिक प्रति प्रवासी लोकनिक कर्त्तव्य बुद्धिक परिष्कार दिस उन्मुख देखि पड़ैत छथि ।

उपन्यासक भाषा प्रसादगुण सम्पन्न,सहज ओ रोचक अछि । पात्र सभक मनोभावक विश्लेषणमे उपन्यासकार सफल भेल छथि। वस्तु विन्यास युग जीवनक यथार्थपर आधारित अछि। मातृभूमिक प्रति प्रवासी लोकनिक दायित्वक उद्बोधन उपन्यासकारक जीवन-दर्शन ओ जननी-जन्मभूमिक प्रति सहज सिनेहकेँ पल्लवित करैत अछि।

हम आबि रहल छी(उपन्यास) पढ़लाक बाद मैथिलीक मूर्धन्य विद्वान प्रोफेसर(डाक्टर)भीमनाथ झा लिखैत छथि-

अपनेक नव्यतम उपन्यास 'हम आबि  रहल छी' हमरा लग आबि गेल अछि । पढ़बामे ततेक मन लागि गेल अछि जे आन बेगरता भागि गेल अछि । ठीके, रोचकता तँ अपनेक लेखनीक प्रमुख विशेषता थीके, जे एहूमे विद्यमान अछि-- एक तँ ई कारण । दोसर ई जे एहिमे बूढ़ लोकक गूढ़ व्यथाक आख्यानक उत्थान, प्रस्थान आ अवसान अत्यन्त आत्मीयता आ मार्मिकताक संग कयल गेल अछि । आजुक शिक्षित समाजक बहुलांश कोना अपसंस्कृतिक मोहजालमे फँसि नाग जकाँ अपन प्रतिपालकोकेँ डँसि लैत अछि आ अपनहुँ अन्तमे निराशाक नरकमे खसि आजीवन सिसकी भरैत रहैत अछि । परिवर्तनक एहि बिरड़ोक अछैतो सनातन कर्त्तव्यबोध (यथा-- मातृपितृभक्ति, स्वावलंबन, अपकारक बदला उपकार, तिरस्कारक उत्तर सत्कार प्रभृति)क ध्वजा उधिया नहि गेलैक अछि, अपितु फहरा रहलैके अछि । संयोग आ आकस्मिकता एकर कथानकक प्राण थिक । एक दिस पुत्र जत' प्रेमिकाक लौलमे अमेरिका धरि दौड़ मारैत छथि तैयो ओ हाथसँ पिछड़ि जाइत छनि आ ई हकन्न कनैत छथि तँ दोसर दिस मायक गंगोत्रीमे जलसमाधि लेलाक कारणे पितो सायास हुनक अनुसरण करैत छथि आ अटूट प्रेमक दृष्टान्त बनैत छथि । नाटकीयताकेँ सामान्य पाठकमे उत्सुकता जगयबाक लेखकक कौशल रूपमे देखबाक थिक । अपनेक साहित्य-सभाक ई औपन्यासिक नवरत्न मैथिली पाठकक चारू कात अपन चमक पसारैत रहय-- ताही शुभकामनाक संग हार्दिक अभिनन्दन ।” 

भीमनाथ झा

25.6.2021

हमर पोथी,हम आबि रहल छी पढ़लाक बाद प्रोफेसर डा.कीर्तिनाथ झाजी लिखैत छथिः

सोझ कथानक। सरल भाषा। अनेक नाटकीय मोड़, आ स्पष्ट संदेश।

एकहि बैसाड़ मे एहि पोथीक परायण कयल।

विषयानुकूल  कैनवास  आ नितान्त समसामयिक सामाजिक समस्या पर लिखल ई उपन्यास अंत धरि अहाँक जिज्ञासा  जगओने रहत।

उपन्यास लेखन मे सिद्धहस्त,   निरंतर नव-नव उपन्यासक संग उपस्थित होइत श्री मिश्रजीकें अनेक बधाई /साधुवाद।

https://www.facebook.com/photo/?fbid=10227405720502325&set=a.10200225774380659%20%20Kirtinath%20Jha

 

एहीसाल प्रकाशित हमर  उपन्यास,ठेहापरक मौलाएल गाछपर श्री हितनाथ झाजीक समीक्षाक किछु अंश सेहो उद्धृत करैत प्रसन्नता भए रहल अछि ।

हम एहि उपन्यासक विषय--वस्तु दिस मात्र क्षेपक रूपमे लेलहुँ अछि, किन्तु जँ अपने एहि उपन्यासकेँ पढ़बैक, तँ हिनक लेखनीक बिना प्रशंसा कयने नहि रहि सकैत छी, जेना हमरा स्वयं हिनक एक उपन्यास पढ़लाक बाद दोसर पढ़बाक व्यग्रता बढ़ि गेल ।

     एतय हम उपन्यासमे की छैक , की होयबाक चाही ,की नहि होयबाक चाही ,ओहि दिस हम नहि जाय चाहब ,मुदा ई धरि अवश्य कहब  आ से प्रो. भीमनाथ झाक शब्दमे जे एक पोथीक प्रसंग लिखने छथि  - " साहित्यकार जे होयत , से चुप नहि रहत , मुँह खोलबे करत ,साहसपूर्वक अपन भावना कागतपर उतारबे करत । बाजि तँ सकैत अछि सभ , मुदा कहय थोड़केँ अबैत छैक । जकरा कहबाक लूरि छैक ,ओकर बात फोंक नहि जाइत छैक ,लोक बिच्चेमे छोड़ि क' उठि नहि सकैत छैक । से जँ उठि गेल तँ बुझू कह' नहि अयलैक । ....!जँ पढ़ब शुरू करब तँ बिच्चेमे उठि जायब । नहि उठि सकब । आ , सम्पन्न कयलाक बाद मनमे किछु अबस्से घुरघुराय लागत। से भेल तँ भ ' गेलाह लेखक सफल । "

    ,से " ठेहा परक मौलाएल गाछ " पढ़लाक बाद अपने लोकनि सेहो मानबैक जे एकर लेखक पूर्ण सफल भेल छथि।

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आरो अनेक विद्वान लोकनिक समीक्षा,पाठकीय प्रतिक्रिया हमरा समय-समयपर भेटैत रहल अछि। स्थान सीमित रहबाक कारणे ओसभ उद्धृत नहि कए पाबि रहल छी। मुदा एतबा तँ कहब निश्चय जे हमर मैथिली उपन्याससभपर अनेक विद्वान लोकनिक बहुत सकारात्मक प्रतिक्रिया रहल अछि जाहिसँ हम आओर लिखबाक हेतु प्रेरित होइत रहलहुँ अछि । एहीक्रममे आदरणीय प्रोफेसर डाक्टर इन्द्रकान्त झाजीक चर्च करब अत्यावश्यक अछि। ओ हमर सभटा किताब बहुत मनोयोगपूर्वक पढ़ैत रहलाह अछि आ पढ़ि कए अपन सकारात्मक प्रतिक्रिया सँ हमरा उत्साहित करैत रहलाह अछि। आदरणीय प्रोफेसर(डाक्टर)भीमनाथ झाजी सेहो हमर अधिकांश किताब पढ़ि फोन कए वा लिखि कए अपन उद्गार व्यक्त करैत रहलाह अछि। आदरणीय प्रोफेसर डाक्टर रमण झाजीक उत्साहवर्धक शुभकामना तँ अबिते रहल अछि। मैथिलीक प्रतिष्ठित साहित्यकार आ.श्री जगदीश प्रसाद मंडलजी निरंतर हमर साहित्यिक प्रगतिक हेतु उत्सुकता व्यक्त करैत रहलाह अछि । आदरणीय बुद्धिनाथ झाजी तँ कथे कोन । ओ तँ निरंतर एहि प्रयासमे रहैत छथि जे हमर साहित्यकेँ उचित स्थान प्राप्त होअए। हिनके लोकनिक आशीर्वादेक परिणाम थिक जे हम निरंतर लिखि पाबि रहल छी। आशा अछि जे हिनका लोकनिक आशीर्वाद एहिना बनल रहत आ हम आर नीक-नीक पोथी लिखि सकब।

ई बात सर्वविदित अछि जे मैथिलीमे पाठकक निरंतर ह्रास भेल जा रहल अछि। लोक पोथी कीनि कए पढ़ए नहि चाहैत अछि। साहित्योमे राजनीति भरल जा रहल अछि। तखन लेखक करताह की?यात्रीजीसँ पटनामे केओ पुछलकनि- बाबा मैथिलीमे आब नहि लिखैत छिऐक?” ओ उत्तरमे कहलखिन-मैथिलीमे लिखब तँ कैकगोटे पढ़त । आ.मंत्रेश्वरजाजी अपन एकटा किताबक भूमिकामे लिखने छथि-मैथिलीमे लिखब लौल थिक । एही क्रममे स्वर्गीय राम लोचनठाकुरजी मिथिला दर्शनक एकटा संपादकीयमे लिखने छलाह- लोक आब मैथिलीमे लिखबासँ हटि रहल अछि। अपितु,एकाधटा किताब मैथिलीमे छपि गेलाक बादे हिन्दी वा अंग्रेजीमे लिखनाइ शुरु कए दैत छथि। ई सभ पढ़लाक बाद मोनमे चिंता होएब स्वाभाविक । आखिर, ओ सभ तँ बहुत अनुभवक बादे ई बातसभ बजलाह/लिखलाह ।

एहन बात नहि छैक जे किछुगोटे हमरो उच्छन्नर नहि केलनि । अपितु,करिते रहैत छथि। कैकबेर बिना पोथी पढ़ने प्रतिक्रिया दैत छथि, कैकबेर पूर्वाग्रहित भए एहन-एहन वस्तु लिखि जाइत छथि जे उपन्यासमे कतहु अछिए नहि । मुदा तेँ की? रचनात्मकता सदिखन विध्वंशक शक्तिसँ जीतैत रहल अछि। आखिर तुलसीदासो तँ कहबे केलनि-बंदौ संत असंतन चरना । रमाचरितमानसक शुरुमे बेर-बेर  असंतक प्रार्थान संतक संगे करैत रहलाह ।

अंतमे हम अपन उपन्यास बिति गेल समयक पछिला पृष्ठपर उद्धृत पाँतिकेँ पाठक लोकनिक सम्मुख राखि रहल छी जे संभवतः जीवनक अंतिम सत्य थिक-

मनुक्ख एहि संसारमे एसगरे आएल अछि आ एसगरे जाएत । ताहि बातकेँ बुझबाक अछि। समय बीति गेल, घटनासभ पाछू छुटि गेल, आब ओकरा मोनमे रखलासँ की फएदा? कष्ट छोड़ि किछु नहि भेटि सकैत अछि । । शांति तँ भइए नहि सकैत अछि । आब तँ ओहि बातसभकेँ बिसरनाइए उचित अछि।

सुख-दुख जे किछु हमर भाग्यमे छल से आएल,गेल । हम आब नीकसँ बूझि गेल छी जे ई संसार माया अछि । केओ ककरो नहि अछि एहिठाम । बस जेना नाटकक पात्र होअए। नाटक खतम,पात्र खतम।  जेना नाटकक नीक दृश्यसँ दर्शकगण प्रसन्न भए जाइत छथि,कोनो कष्टप्रद दृश्यसँ दुखसँ नोर बहबए लगैत छथि आ अंतमे सभकिछु ठामहि छोड़ि अपन-अपन घर वापस चलि जाइत छथि, तेहने थिक ई जीवन । आब चली। नाटक खतम अछि । आब बहुत हँसलहुँ,बहुत कनलहुँ । आब समय अछि शांत भए जेबाक । हम मंदिरक चौकीपर बैसल सएहसभ सोचैत रहि गेलहुँ ।

 

रबीन्द्र नारायण मिश्र

m-9968502767

ईमेल:mishrarn@gmail.com

 

 

 

 

 

 

रविवार, 11 जून 2023

सन् २०१८मे प्रकाशित हमर मैथिली उपन्यास महराज(ISBN: 978-93-5321-395-4)क हमर ब्लाग स्वान्तः सुखायपर धारावाहिक पुनर्प्रकाशन (भाग छब्बीस सँ चौतीस धरि)


 

२६

 

आपसी विचार-विमर्षक वाद महराज अपन सिपहसलारसभक संगे इलाज करबाक हेतु लंदन जेबाक हेतु बिदा भेलाह। ताहि हेतु एकटा विशेष वायुयानक व्यवस्था कएल गेल। संगमे के के जेताह? एहि विषयमे कतेको दिन घमरथन होइत रहल। महराजक अनुपस्थितिमे केओ तँ चाही जे राज-काज चलैत रहए। ताहि हेतु रानी साहिबा एतहिं रहि गेलीह। हुनकर सहयाता हेतु राजमंत्रीकेँ रहब जरूरी छल, से ओहो रहि गेलाह।

महराजी भगताक ओहिठाम कोन काज?तखन जेताह के सभ? असलमे जेबाक मोन तँ सभके रहैक। इलाजक नामपर मोफतमे लंदन भ्रमण भए जाइत। राजवैद्य, राजपंडितक अतिरिक्त बीस गोटे आओर महराजक सहायताक हेतु बिदा भेलाह। हुनकासभकेँ लंदनमे रहबाक हेतु होटलमे व्यवस्था कएल गेल। महराज अपने खास-खास लोकक संगे अस्पतालेमे रहताह। राजपंडितसँ दिन तका कए सभगोटे शुभ-शुभ कए लंदन बिदा भेलाह। कनीके कालमे विशेष विमान राजपुरा हबाइअड्डासँ उड़ि गेल। सभगोटे बजलाह- जय गणेश!”

जहाजपर बैसि  अपन राज-पाटपर सँ उड़ैत काल महराजक मोनमे कतेको तरहक प्रश्न उठि रहल छल। पानिमे दहाइत फूसक घरसभ की हमरे लोकक अछि? बाढ़िसँ दहाएल कोशीकातक लोक बान्हपर बैसल चिड़ै सन लगैत छल। महराजक मोनमे कैक बेर आत्मग्लानि होइत छलनि। महराजी हातासँ बाहरक भयाओन दृश्य देखि ओ चिंतामग्न रहथि। हुनकर आत्मा कैक बेर पुछलक-

हे प्रजापालक! की देखि रहल छी? ई अहींक लोकवेद छथि, विपन्न, अशिक्षित,.. 'मोने-मोन कहलथि- हमर दुर्भाग्य, आओर की भए सकैत अछि?ताबतेमे कोनो गामसँ विद्यापतिक गीतक मधुर संगीतपर नचैत-गबैत लोकसभ देखेलनि। एहनो हालतिमे ई लोकनि अपन संस्कार-संस्कृतिसँ कतेक सिनेह करैत छथि? मोनमे बहुत बातसभ अएलनि। हमर लोकसभक जीवन यात्रा ठमकि गेल ताहि हेतु हमही जिम्मेवार छी। एहि तरहेँ महराजक आत्मा ओ देहमे जबरदस्त संघर्ष बजड़ि गेल। इएह सभ सोचैत-सोचैत आँखि लागि गेलनि। जहाज तेजीसँ मिथिलांचलसँ आगू वढ़ि गेल।

हबाइ जहाज राजपुराक सीमासँ वाहर भेले छल कि चमत्कार भेल। महराज अपनेसँ उठि कए जहाजमे लघुशङ्का करए गेलाह। ओतएसँ आवि कए अपनेसँ बैसिओ गेलाह। ई तँ कमाल भए गेल?" -महराजी बैद बजलाह।"

जे भेल से भेल बेसी हल्ला नहि करू। महराजक मोनक कोन ठेकान? कहीं उल्टे ने पड़ि जाए" -राजपंडित बजलाह। महराज तँ एकदम स्वस्थ लगैत छलाह। सभसँ गप्प-सप्प करए लगलाह। ईहो पुछलखिन-

"हमसभ कतए जा रहल छी?"

"लंदन जा रहल छी श्री मान !" -राजबैद बजलाह।

किएक?" -महराज पुछलखिन। आब के उत्तर देत? राजमंत्री छलाह नहि । आओर लोकसभ महराजसँ धखाइत छलाह।

ताबतेमे महराज ठहाका पाड़लाह। हुनका संग दैत तमाम सिपहसलारसभ सेहो हँसल।

"हमसभ कतए जा रहल छी?" -महराज फेर पुछलखिन।

"लंदन सरकार!" राजबैद बजलाह।

"किएक? ओतए कोनो बैसार अछि की?" -महराज पुछलखिन।

आब की होएत?सभ परेसान छलाह। ताबे रानीक फोन अएलनि। ओना जहाजपर फोन करब उचित नहि तथापि चालकदल एकर ओरिआन केलथि जाहिसँ मामिला सम्हरि जाए।

"कोना छी?-रानी पुछलखिन।

"किएक? हमरा की भेल अछि? हम तँ केहन बढ़िआ छी?"

"अच्छा, एहिसँ नीक की भए सकैत अछि?"

"तखन लंदन किएक जा रहल छी? घुरि आउ।"

"नहि, नहि किछु दिन रहिए कए लौटनाइ ठीक होएत। जहाज लंदन पहुँचए वला अछि।"

"बादमे गप्प करब।"- फोन कटि गेल।q

२७

 

ओमहर महराज इलाजक हेतु लंदन गेलाह आ एमहर रानी मौज-मस्तीमे लागि गेलीह। जहिआसँ हरि राजमंत्री बनलाह तहिआसँ हुनकर बेसी समय रनिबासेमे बितैत छल। करितथि की?रानीकेँ अवहेलना करक परिणाम जनैत छलाह। फेर ओहो कोनो लोहाक बनल तँ नहि छलाह। रानी देखबामे अद्भुत सुन्दरि रहथि। गोर-नार बेस नमहर।

तहिना राजमंत्री सेहो बेजोड़ छलाह। नमगर-पोरगर,गोर-नार, ककरो देखि कए मोन होइतैक जे देखितहि रही। तेँ पहिने दिनसँ रानीक ध्यान हुनकापर अटकि गेलनि। कोनो-ने-कोनो काजक बहन्ना बना हुनका अपन बासामे बजा लितथि। बहुत मोसकिलसँ राजमंत्री ओहिठामसँ निकलबाक जोगार करथि। मोनमे हरदम अदंक रहैत छलनि जे यदि महराजक जासूस उल्टा-पुल्टा हुनका कहि देलक तँ गेल महिस पानिमे पड़रू समेत। मुदा रानीकेँ कथुक डर-भर नहि रहनि। ओ निधोख राजमंत्रीक संग रंग-रभसमे लागल रहैत छलीह। ई समस्या क्रमशः बढ़िते गेल।

ओना एहन घटनासभ घटित होएत से ओ कहिओ नहि सोचने रहथि। मुदा से भए रहल छनि। रानीक राजमंत्रीक प्रति आकर्षण बढ़िते जा रहल छलनि। राजमंत्री कैक बेर गोहार लगओलथि जे हुनका बकसि देल जाए, मुदा रानी आओर जोर-सोरसँ हुनका धेने चलि गेलीह। राजमंत्री सोचथि जे हुनकर तँ भगवाने मालिक। जहिए महराजकेँ पता लगलनि तहिए हुनकर प्राणहन्त कए देताह। एक राति रानीसँ कहलखिन- आब हमरा एहिठामसँ छुट्टी देल जाए।"

रानी बिगड़ि गेलखिन। कैक दिन गप्प नहि केलखिन। राजमंत्री बेस मोसकिलमे पड़ि गेलाह। एहि कात खधिआ तँ ओहि कात खत्ता। केमहर जाथि। सोचलाह- जखन जान जेबेक अछि तँ एहिना भोग-विलासकरिते चलि जाइ, सएह नीक। फेर अपन हाथमे अछिए की?" जहिआसँ महराज लंदन गेलाह तहिआसँ रानी आओर बिरदावन भाजए लगलीह। राजमंत्रीक चौबीस घंटा रनिबासेमे रहए पड़नि। कनिको काल यदि एमहर-ओमहर भेलाह कि तुरंत बजाहटि भए जानि। कहबी छैक खैर खून खासी खसी, बैर प्रिति मधुपान

रहिमन ये सब ना छुपे जाने सकल जहान।।

गाहे-बगाहे ई बात गल-गलाए लागल। चौकीदारसभ साकंक्ष भए गेल। जासूससभमे सहो एहि बातक चर्च होमए लागल जे किछु-ने-किछु गड़बड़ अछि। मुदा रानीक बात छल। बिलाड़िक गलामे घंटी बान्हत के?फेर महराजो तँ छलाह सएह। अपने कतेको रानी-पटरानी आ की-की ने रखने छलाह। ऊपरसँ दिन-राति पीने बुत्त रहैत छलाह। होस रहितनि तखनने किछु केओ कानोमे दितनि। आ कानमे देने की होइतैक? भए सकैए उल्टे कहीं फाँसी ने चढ़ि जाए। तेँ जतहि जे देखलक, सुनलक तकरा ततहि झपने रहल।

रानीक प्रेम प्रसंग करमान चढ़ैत गेल। राजमंत्रीक रनिबासमे आवागमन बढ़िते गेल। एकराति राजमंत्री रानीकेँ कहलखिन- हमरा अपन भातिजसभक उपनयनमे गाम जेबाक अछि।"

"जेबाक कोन काज छैक, जे चीज-वस्तु पठेबाक मोन हो से पठा दिऔक।"

"एहनो कहीं भेलैक अछि? हमरासभ बारि देत। जेबै कोना नहि?"

"कहिआ छैक उपनयन?"

"एखन दस दिन बाँकी छैक। मुदा आर-आर विधसभ होइत रहैत छैक। तेँ हम सोचैत छी जे जतेक जल्दी होइक ओतए पहुँचि जाइ।"

रानी हँसए लगलखिन आ कहलखिन-लगैए अहाँकेँ हम पसिंद नहि छी।"

"एहनो कतहुँ भेलैक अछि। मुदा..."

"मुदा की? फरिछा कए बाजु।"

"यदि महराजकेँ पता लगलनि तँ हम गेल घर छी?"

एतेक नहि डराउ। गाम जाउ मुदा जल्दीए चलि आएब।"

"जे अहाँक आज्ञा।"

रानी राजमंत्रीकेँ नानाप्रकारक गहना, चीज वस्तुसँ भरि देलखिन। गाममे जखन ओ उपहार अपन भौजीकेँ देलखिन तँ ओ देखितहि रहि गेलीह।

२८

 

महाजक जहाज लंदन पहुँचए वला छल। जकर इलाज करेबाक हेतु एतेक  लोकसभ चलल छल सएह दन-दन कए रहल छलाह। से देखि सिपहसलारसभ उदास रहथि। मुदा राजबैद सम्हारलनि॒-

"महराजक हालतिमे सुधार अवश्य छनि मुदा ई जानब जरूरी अछि जे आखिर एना भेलैक किएक? आ की पता फेरो ने एहन भए जाए। कहीं हमसभ वापस राजपुरा चलि जाइ आ ओहिठाम फेर ओएह हाल ने भए जाइक। राजबैदक बातसभकेँ पसिंद पड़लनि। महराज स्वयं झट दए किछु निर्णय लेबाक अभ्यस्त नहि रहथि। हुनका तँ चाही राजमंत्रीक सलाह। से राजमंत्री लगमे रहथिन नहि। राजमंत्रीकेँ वारंबार फोन जाए लगलनि। ताबे ओ अपन गाम भातिजक उपनयनमे सामिल हेबाक हेतु चलि गेल छलाह। कैक बेर फोन लगबो नहि करैक मुदा महराजकेँ शङ्का होमए लगलनि जे राजमंत्री हुनकर फोनकेँ जानि कए टरका रहल छथि। किछु-किछु आओर शङ्का तँ पहिने सँ रहबे करनि।

महराजकेँ नीक अस्पतालमे भर्ती कराओल गेल। डाक्टरसभकेँ कतहु कोनो गड़बड़ी नहि भेटि रहल छलैक तथापि राजबैद कहलखिन जे किछु दिन हिनका जाँच-पड़तालमे राखल जाए जाहिसँ पता तँ लागैक जे एना भेलैक किएक?" सएह भेल। महराज अस्पतालमे भर्ती भए गेलाह। हुनकर सिपहसलारसभ होटलमे ठहरलथि। महराज रहितथि तँ कनी-मनी संकोचो रहितैक। सभ निश्चिन्त भए दिन-राति जे-जे मोन होइत छल करैत छल। महराज बेचारे छटपट करथि जे कखन अस्पतालसँ हटि कए होटलमे जाइ आ आनंद मनाबी।

भोरे जखन डाक्टरसभ हुनका देखए आएल तँ कहलखिन- "हमरा एहिठाम मोन नहि लागि रहल अछि।

की हम होटलेसँ इलाज करा सकैत छी?”

ओसभ तँ चाहिते रहए सएह। कहलक- किएक ने?" महराज ओहिठामसँ फारकती भेटितहि होटलक विशिष्ट कक्षमे पहुँचि गेलाह।q

 

२९

 

महराजक लंदन बिदा होइत काल हुनका संगे के जाएत आ के नहि जाएत तकर निर्णय महराज स्वयं केलथि। एहि कारणसँ ओ आब ककरो किछु कहिओ नहि सकैत छलाह। आब हुनका चिंता होनि रानीक। राजमंत्रीक सलाहक से प्रयोजन होनि। महराजकेँ तँ कोनो रोग रहनि तखन ने ओ जाँचमे पकड़ाइत। सभ ठीके रहैक। तखन सभगोटे मीलि कए रमन-चमनमे लागि गेलाह। महराजक हेतु तँ कैकटा सूट आरक्षित छल। कखनो एमहर कखनो ओमहर। एहि तरहेँ पन्द्रह दिन बीति गेल। होटलक खर्चा करोड़मे पहुँचि गेल। महराजक खजांचीकेँ फोन भेल जे ओ होटलकेँ भूगतान करथि। खर्चाक हिसाब सुनि हुनका अदंक लागि गेलनि। ओ भागल-भागल रानी लग पहुँचलाह। रानी की करितथि? खर्चा देखि कए गुम पड़ि गेलि। महराजकेँ फोन लगेलीह-

"अहाँ सभटा ओतहि नष्ट कए लेब की?"

"की भेलैक?"

"होटलक बिल देखलिऐक अछि?"

"ई हमर काज अछि की?"

से सुनितहि रानी तमसा कए फोन राखि देलीह।

महराजक संगे हुनकर सिपहसलारसभ खूब भोग-विलास केलक। आब बिल तँ देबैक रहैक, से महराज देलखिन। करोड़ोमे बिल भेलैक। आ सभटा महराजक इलाजक नामपर। प्रात भेने सभ गोटे वापस स्वदेश बिदा भेल। ताहि हेतु एकटा हबाइ जहाजमे एकहिठाम जगह आरक्षित कएल गेल जाहिसँ महराजक सेवामे कोनो त्रुटि नहि रहि जाए। सभगोटे अपना भरि सतर्क रहथि जे एतेक खर्चा केलाक बाद हुनका माथमे कतहुसँ चिंता नहि होनि।

जहाज उड़ि गेल। सभगोटे बहुत संतुष्ट रहथि। गप्प-सप्प होइत रहलैक। महराज कखन की मांगि देताह,ताहि हेतु सभगोटे बेरा-बेरी महराजेक लग-पास रहथि। जौं-जौं जहाज राजपुरा दिस भेल महराज किदनि-किदनि बकए लगलाह। आहि रे बा! ई की भेल?महराजक हालति क्रमशः गड़बड़ाइते चलि गेल।

राजपंडित आ राजबैद आपसमे मंत्रणा केलाह।

आब की उत्तर देबनि रानीकेँ?” -राजपंडित बजलाह।

"जे छैक, से छैक? एहिमे हम अहाँ की कए सकैत छी?जाहि बिमारीक इलाज हेतु गेल रहथि से तँ ठीक भए गेलनि ने?" राजबैद बजलाह।

राजपंडित गुम रहथि।

"जे भावी।" -राजपंडित बजलाह।

जेना-जेना जहाज मखनाक प्रभाव क्षेत्रमे आबि रहल छल, त्यों-त्यों महराजक नव उकबासभ भेल जा रहल छलनि । हुनकर सोचबाक,बुझबाक क्रम गड़बड़ा रहल छल। खने किछु बाजए लगितथि,खने किछु। बेसीकाल अपनेसँ प्रलाप करितथि। ओ अपनेसँ प्रश्न करथि आ अपने उत्तरो देथि । सिपहसलार सभ तँ छगुन्तामे छलाह जे ई कोन नव उकबा भेल। महराजकेँ कोनो ग्रहक फेरी लागि रहल अछि" -राजपंडित बजलाह।

"फेरी तँ अपनासभकेँ लागल अछि। -राजबैद बजलाह।

"हड़बड़ेबाक काज नहि छैक। जे हमरा अहाँक हाथमे अछि सएह ने करबैक। हम अहाँ कोनो भगवान छी जे सभटा हमरे अहाँक हिसाबे चलतैक।"

"से तँ बुझलहुँ। कहुना कए महराज अपन घर पहुँचि जाथि।"

महराज बड़बड़ाइते जा रहल छलाह-

कहल करिअह जे अपन लोकक संग अन्याय नहि करह मुदा तूँ सुनलह? नहि सुनलह। तँ आब कथी लेल परेसान छह? अपन कर्मक फल भोगए लेल तैयार रहह।"

"हम महराज छी। हमरा ऊपर ककरो अनुशासन नहि चलि सकैत अछि। फेर जनताकेँ अंकुश देब आ नियंत्रणमे राखब हमर कर्तव्य अछि।"

"कर्तव्य अछि तँ करैत रहू। अहाँक कारण कतेको लोक बरबाद भए गेल...।"

सभगोटे चिन्तित छलाह जे ई कोन नव समस्या भए गेल?

जहाज राजपुरा हबाइ अड्डा पर उतड़ि रहल छल। ओहीठाम लगेमे मखनाक मुख्यालय रहैक। महराजक उनुपस्थितिमे ओ अपना-आपकेँ सुव्यवस्थित कए लेने छल। यमराज तँ पहिने हाथ बारि देने छलाह। रेखा सेहो मनोयोगपूर्वक मखनाक मदति कए रहल छलीह। एमहर मखना आ कालू भगतामे मेल-जोल बढ़ि गेल। आखिर दुनू छल तँ सहोदरे। से बात मोनमे कतहुँ-ने-कतहुँ कचोटैक। फेर एक हिसाबे मखना तँ एहि संसारसँ जा चुकल छल। ई तँ मखनेक हूनर कहू जे ओ फेरसँ अपनाकेँ तेहन मजगूत कए लेलक जे महराजक कोन कथा यमराज धरि ओकरासँ पस्त छलाह।

हबाइ जहाज अपन गंतव्यपर उतरल। मुदा महराज चलबा-फिरबा जोग नहि रहथि। कहुना कए उठा-पुठा कए हुनका महल आनल गेल।q

 

३०

 

राजपुरा टीसनपर लोटना चाहक दोकान खूब चलैत चलैक। लग-पासक गामक जे केओ लोक ओकरा देखेतैक तकरा घेरि कए ओ चाह जरूर पिअबैत आ संगहि संगे गप्पो-सप्पो करैत। अपन बितल दिनक स्मरण कए-कए कैक बेर सोचमे पड़ि जाइत। ओना आब ओकरा गाम जेबाक पलखति नहि भेटैत छलैक। दिन-राति टीसनपर पाइ झहरैत रहैत छलैक। तकरा समेटैत की झुठे गाम जा-जा समय बरबाद करैत?

ओहि दिन हम चंपाक संगे कालेजसँ वापस होइतकाल ओकरा रेलपर चढ़ेबाक हेतु टीसन गेल रही। रेल बहुत देरीसँ अएतैक से वारंबार घोषणा भए रहल छल। हारि कए हमरा लोकनि प्लेटफार्मपर राखल बेंचपर बैसि गेलहुँ। पाछूएमे लोटनाक चाहक दोकान छल। लोटना हमरा धर दए चिन्हि गेल।

"श्री कान्त एतए की कए रहल छह?"

"एहीठाम पढ़ि रहल छी। एखन एकटा संगीकेँ रेलपर चढ़ेबाक हेतु आएल रही मुदा गाड़ी देरिसँ अएतैक।"

"! एतेक दिनसँ भेटो नहि भेल। डेरा कतए रखने छह?"

"राज छात्रावासमे।"

से सुनितहि ओकर कान ठाढ़ भए गेल। कारण ओ जनैत छल जे राज छात्रावासमे जगह भेटब सभक वशक बात नहि छैक। जरुर कोनो खास जोगारसँ ई काज भेल होएत। फेर ओ बाजल- राज छात्रावास तँ लगीचे अछि। आब भेंट-घाँट होइत रहत।"

"अवश्य।" से कहि हम आगू बढ़ले छलहुँ की रेल अएबाक सूचना प्रसारित होमए लागल। धर-धर करैत रेल प्लेटफार्म संख्या एकपर आबि गेल। हम चंपाकेँ ट्रेनमे बैसा कए अपन डेरा दिस संगे बिदा भेलहुँ।

चंपाकेँ जाइत काल हम गंतव्यक बारेमे पुछलिऐक। ओ कहलक जे अपन गाम जा रहल अछि आ जल्दीए लौटत। ओ ट्रेनमे बैसि गेलि। ट्रेन खुजि गेल। नहूँ-नहूँ ओ प्लेटफार्म छोड़ि देलक,तखनहु हम ओतहि ठाढ़े रही। कनीके हटि कए लोटन अपन चाहक दोकानपर बैसल हमरा टुकुर-टुकुर देखि रहल छल, मुदा किछु कहलक नहि। संयोगसँ पाछूसँ एकटा यात्री धड़फड़एल आबि रहल छल आ हमरासँ टकरा गेल। एहि अप्रत्याशित आवेगसँ हम मुँहे भरे खसलहुँ। लोटन चिकरि उठल- खसि पड़ल..खसि पड़ल.। आ हमरा दिस दौड़ल। हम दहिना हाथ आगू बढ़ा देलिऐक। तकर बाद  की भेलैक से नहि कहि?जखन होस आएल तँ अस्पतालक बेडपर पड़ल रही, हाथ आ पैरमे सौंसे प्लास्टर लागल छल। डाक्टर कहलक जे दहिना हाथ आ बामाँ पैरक हड्डी टुटि गेल अछि। मनुक्ख सोचैत अछि किछु आ होइत छैक किछु। किछुए दिनमे बीऐक परीक्षा हेबाक रहैक। आब की होएत, कहि नहि।

हमरा खसैत चंपा देखने रहए। ताबे ट्रेन खुजि गेल रहैक। ओ चिकड़बाक प्रयासो केलक मुदा ट्रेनक सीटीक आगू ओकर अबाज दबि गेल। ई बात हमरा लोटन कहैत रहए जे घटना कालसँ अखनधरि हमरे लगमे बैसल छल। ओएहटा हमर एहि संकटक समयमे संग रहए। मामा गाममे भातिजक उपनयनमे नोत पुरए गाम गेल रहथि। समाद गेलनि। ओहि दिन रातिम छलैक। ओ सभ काज छोड़ि तुरंत राजपुरा बिदा भए गेलाह।q

 

३१

 

राजपुराक अस्पतालक चर्चे बेकार। रोग किछु आ इलाज कथुक। एहन कतेको लोक गलत-सलत इलाजसँ परेसान भेल अस्पतालक चक्कर लगबैत रहैत छलाह। ककरो गलत-सलत दबाइक कारण किडनी खराब भए गेल छल। केओ दहिना आँखिक इलाज करबए आएल आ बामाँ आँखि सेहो खराब करा कए गेल। एकटा मरीजकेँ पेटमे गैस बनैत रहैक, इलाज हृदयक चलैत छलैक। सुइआपर सुइआ। हालति खराबे भेल जा रहल छल। ओ तँ रच्छ भेल जे ओकर कोनो डाक्टर संबंधी रहैक। संयोगसँ ओकरा पता लगलैल। ओ हाल-चाल लेबाक हेतु आएल। कागज-पत्तर पढ़ि-पढ़ि छगुन्तामे पड़ि गेल। ओकर कानमे कहलकैक- जान लए भागि जाउ। गलत इलाज भए रहल अछि।" औ बाबू! ओ बेचारा इएह-ले ओएह-ले भागल। ओ आगू-आगू भागि रहल छल आ एकटा जवान डाक्टर पछोड़ केने छल। ओकर हाथ-पैर जोड़ि रहल छल-हमर नौकरी चलि जाएत,एना नहि भागू।" मुदा ओ रोगी घुमि कए नहि तकलक।

ओहने अस्पतालमे हमर इलाज चलि रहल छल। जहिआसँ प्लास्टर भेल कोनो डाक्टर घुरिओ कए नहि आएल। कंपोटर कखनो कए अबैत आ इसारासँ कहैत

फलना डाक्टरक नर्सिंगहोममे भर्ती भए जाउ। बहुत जल्दीए ठीक भए जाएब। एहिठाम कोनो डाक्टर नहि अबैत छैक।"

हम बकर-बकर तकैत रहैत छलहुँ। मोने-मोन हनुमानजीकेँ गोहरबैत रहैत छलहुँ। आओर कोनो समाधानो नहि छल। डर होइत छल जे यदि हाथ-पैर बेकार भए गेल तँ जिनगी कोना चलत? के देखत?

जखन भोरे-भोर अस्पतालमे मामाकेँ देखलिअनि तँ जान-मे-जान आएल। ओ कि एलाह, हमरा कोठरीमे डाक्टरक पाँति लागि गेल। केओ आला लगा रहल अछि तँ केओ एक्सरेक विवरण पढ़ि रहल अछि। ताबतेमे एकटा बूढ़ डाक्टर ओकर हाथसँ एक्सरेक विवरण लए पढ़ए लगलैक। एक्सरे देखितहि ओ चिकरए लागल- ककरो एक्सरे ककरो फाइलमे लगा देने छहक । तोरासभकेँ तँ फाँसी हेबाक चाही ।"ओकर बात सुनि कए तँ हमर मोन ततेक घबड़ाएल जे भेल जे तुरंते ओतएसँ भागी। मामा कतेक काल हमरा लग रहताह? हुनका जाइतहि ई डाक्टरसभ निपत्ता भए जाएत। हमर टांग-हाथकेँ भगवाने मालिक।

कनी कालमे डाक्टरक हुजुम आगू बढ़ि गेल। मामाकेँ देखितहि हमरा कना गेल। कहलिअनि-

"कोनो उपायसँ हमरा एहिठामसँ निकालू,नहि तँ हमर जान नहि बाँचत।"

मामा बहुत बुझेबाक प्रयास केलाह। हुनका होनि जे हम भगल कए रहल छी। मुदा जखन अगल-बगलकेँ मरीजसभ अपन-अपन खिस्सा कहए लगलनि तखन तँ ओ बहुत परेसान भए गेलाह। तुरंत हमरा ओहिठामसँ निकालबाक हेतु आवेदन देलखिन आ लेने-लेने निजी नर्सीगहोममे चलि गेलाह। ओहिठाम हमर फेरसँ एक्सरे भेल। एक्सरे देखि कए डाक्टर कहलकनि॒-

"हिनकर तँ कोनो हड्डी टूटल नहि छनि। कनी-मनी मोच जरुर छैक, ताहि लेल पट्टी बन्हलासँ काज चलि जइतैक। पलास्टरक तँ कोनो प्रयोजन नहि छलैक।"

आब की कएल जाए?" -हमर मामा पुछलखिन।

"प्लास्टर हटबा दिऔक। कच्चापट्टीसँ दस दिनमे ठीक भए जेताह।"

सएह भेल। ओहि डाक्टरकेँ धन्यवाद दी जे हमर हाथ-पैर बाँचि गेल। जखन ककरो आनक एक्सरे देखि कए इलाज भेल रहैक तँ परिणाम सोचल जा सकैत छल। ओहि दिन हमर प्लास्टर काटल गेल आ कच्चापट्टी लगा देल गेल। दस दिनक बाद ओहो हटि गेल। हम एकदम पहिने जकाँ दुरुस्त भए गेलहुँ। लगबे नहि करए जे हमरे चोट लागि गेल छल।q

३२

 

अस्पतालसँ अएलाक बाद कालेजक चिंता धेलक। दस दिनक बाद बीए अन्तिम परीक्षा होबक रहैक। तैयारी किछु नहि भेल रहए। चंपा लगमे नोटसभ छलैक मुदा ओकर किछु थाहे-पता नहि लागि रहल छल। कालेज गेलहुँ तँ केओ संगतुरिआ नहि भेटल। सभ परीक्षाक तैयारीमे लागल छल। कालेजसँ वापस अबैत काल टीसन चलि गेलहुँ। इच्छा भेल जे लोटनकेँ भेंट कए धन्यवाद दए दिऐक। संकटक समयमे ओएह ठाढ़ भेल छल। टीसनपर गेलहुँ तँ लोटन नहि देखाएल। ओकर दोकान बंद छलैक। अगल-बगलक दोकान वलासँ पुछलिऐक तँ कहलक जे ओ गाम गेलाह अछि। गाममे किछु जरूरी काज छनि। एहिसँ बेसी ओकरासभकेँ किछु नहि बुझल रहैक।

अछता-पछताक अपन डेरा दिस बिदा भेलहुँ कि पाछूसँ केओ सोर पाड़लक। "ई तँ चंपा बुझा रहल अछि।" -मोने-मोन सोचाएल। जाबे किछु करी-करी ताबे चंपा डेगारि कए हमरा आगूमे ठाढ़ि भए गेलि।

"कोना छैं?" -चंपा बाजलि।

"हम तँ एकदम ठीक छी।-हम बजलहुँ।

 हम तँ किछु तैयारी नहि कए सकलहुँ।"

"हमर नोटसँ काज चला ले।"

"तोरो तँ परीक्षा देबाक छौक?"

"सभटा भए जेतैक। तोरा व्यर्थक चिंता करबाक हिस्सक छौक।"

सांझमे हमर डेरापर आबि कए नोटसभ लए अबिहैँ।"

चंपाक डेरा वालिकासभक छात्रावास रहैक। ओकर लग-पास सदरिकाल चौकीदारक पहरा रहैत छलैक। तखन ओ हमरा ओतए कोना बजओलक आ सेहो रातिमे, से हमरा नहि बुझाए। हमरा तँ परीक्षाक भय ततेक जोर केने छल जे आओर किछु सोचबाक समय नहि रहए। साँझ पड़ल आ हम ओमहर बिदा भए गेलहुँ। ओहि छात्रावासक लगीचमे पहुँचहि वला रहीके पेटमे बड़ी जोरसँ दर्द उठल। रातुक समय आ एकदम निर्जन स्थान छल। ककरा कहितिऐक? आगू बढ़बाक साहस नहि भेल। सड़कक कातमे चुक्कीमाली बैसि गेलहुँ। नहूँ-नहूँ पेटकेँ ससारैत रही कि चंपाक अबाज सुनाएल।

"श्रीकांत! श्रीकांत! मुदा हमर बाजल होअए तखन ने उत्तर दितिऐक। सड़कक ओहिपार छात्रावास छलैक। जखन हम किछु उत्तर नहि दए सकलिऐक तँ ओकरो चिंता भेलैक। सड़क दिस आगू बढ़लि। ताबे हमर पेटक दर्द आओर जोर भए गेल। हम ठामहि सड़कपर पड़ि गेलहुँ। हमरा सड़क पर देखि कए चंपा दौड़ि कए हमरा लग आएलि। ताबत एकटा रिक्सा वला जाइत रहैक। ओकरा रोकलक। ओहिपर कहुना कए रिक्सा वलाक मदतिसँ चढ़ओलक। ओहनो हालतिमे हमरा ओकरा संग बहुत नीक लागि रहल छल। हम बाजि नहि पाबी मुदा हमर मुखाकृतिसँ एहिबातक अनुमान ओकरो होइत रहैक। ओ हमरा छोड़िओ तँ नहि सकैत छलि। कनीके हटि कए एकटा डाक्टर रहैक। ओतए हमरा रिक्सासँ उतारलक।

डाक्टर बहुत ध्यानसँ देखलक। आला लगा-लगा कैक बेर एमहर-ओमहर केलक। मुदा कोनो खास गड़बड़ी नहि भेटलैक। तखन ओसभ बात पुछलक। फेर चंपा दिस तकैत बाजल- हिनका कोनो बिमारी नहि छनि। परीक्षाक कारण मानसिक तनाव भए गेल छनि। ई बेसी चिंता करैत छथि, से छोड़ब जरूरी थिक।"

डाक्टर बुझा-सुझा आ किछु दबाइ दए हमरा सभकेँ बिदा कए देलक। आश्चर्यक बात ई जे ओ किछु फीस नहि लेलक। फीसक चर्च होइतहि बाजए लागल॒-"अहाँसभ विद्यार्थी छी। जखन पैघ भए जाइ तँ एहिना ककरो मदति कए देबैक।"

ओहि रातिक पढ़ाइ ओहिना रहि गेल। चंपा कहलक जे काल्हि हम कालेज आएब, ओतहि तोरा लेल किछु नोट लेने आएब।"

"ठीक छैक" -से कहि हम अपन डेरा चलि अएलहुँ। रातिभरि मोनमे गुदगुदी उठैत रहल।q

 

३३

 

परीक्षाक समय लगीच छल। अस्तु, हम दुनू गोटे चाहिओक कखनो एमहर-ओमहरक गप्प नहि करी। दिन-राति एक कए पढ़ैत रहलहुँ। कोनो दिन एहन नहि बितल जहिआ हमसभ आठ-दस घंटा एकट्ठे नहि रही, मुदा पढ़ाइक भूत सबार छल। तकर फएदो भेल। तीन मासक बाद जखन परीक्षाक परिणाम आएल तँ सौंसे कालेज हमरेसभक चर्च रहए। कालेजक सूचनापट्टपर मोट-मोट आखरमे हमर दुनू गोटेक नामक आगू लिखल छल-प्रथम श्रेणीमे सभ विषयमे विशिष्टताक संग उत्तीर्ण। हम कैक बेर ओकरा पढ़लहुँ। जे देखि रहल छलहुँ ताहि पर विश्वासे नहि होअए।

मुदा सत्य सएह छल। कहाँ पास करए हेतु झखैत रही, कहाँ एहन नीक परीक्षाफल भेल। ई एकटा चमत्कार छल। मोन भेल जे चंपाकेँ फोन कए ई सुखद समाचार दी,फेर इच्छा भेल जे जाइए कए कहिऐक। तुरंत एकटा रिक्सा केलहुँ। भाड़ा के पुछैए? थोड़बे कालमे चंपाक डेरापर हम पँहुचि गेल रही। चंपा बाहरे द्वारपर भेटि गेलि। ओ दुध लए जाइत छलि। हमरा देखि ओकर मोन धुक-धुक करए लगलैक। कारण ओकरा बुझल रहैक जे आइ परीक्षाफल आएत। तेँ हमरा देखितहि पुछलक- की भेलैक?"

"हम दुनू गोटे प्रथम श्रेणीमे सभ विषयमे विशिष्टताक संग सफल भेलहुँ।” -ई सुनितहि ओ प्रसन्नतासँ आप्लावित भए हमरा भरिपाँज पकड़ि लेलीह। प्रसन्नतासँ ओकर आनन लाल भए गेल छल। देखनाहर देखिते रहि गेल, जे ई की भए रहल अछि? ओहिठामसँ सोझे हमसभ मिष्ठान्न भंडार गेलहुँ आ भरिपेट रसगुल्ला अपनो खेलहुँ आ चंपा सेहो खेलथि। मिठाइ खेलाक बाद  हमसभ फेर रिक्सापर चढ़लहुँ। कालेज जाइत रही कि कालू जोरसँ अबाज देलक।

"केमहर जाइत छह?"

"कालेज जा रहल छी।"

"हमहुँ ओमहरे जाएब।"

मुदा चंपा इसारा केलक जे बढ़ि चलू। रिक्सा वला आगू बढ़ि गेल। कालूकेँ ई बात बड़ खराब लगलैक। ओ सोझे हमर मामाक डेरापर चलि गेल आ नून-मिरचाइ मिला कए हमरा लोकनिक विरुद्ध हुनकर कान भरि देलक। कालेजसँ लौटलाक बाद हम जखन माम लग गेलहुँ तँ हुनकर मुँह फुलल छल। प्रणाम केलिअनि तैओ उत्तर नहि देलाह। बूझि गेलिऐक जे कालू अपन काज कए गेल। हम अपन समाचार दैत हुनका कहलिअनि –“रस्तामे कालू भेटल छल आ अपना संगे चलए कहने रहए मुदा हमरा लोकनिकेँ ओकरापर विश्वास नहि भेल। निश्चय ओएह अहाँक कान भरलक अछि।"

ई बात सुनितहि मामा भभा कए हँसए लगलाह। बाजि उठलाह- सत्ते कहलह। ओ बहुत दुष्ट अछि। तोहर परीक्षा परिणाम सुनि हम बहुत प्रसन्न छी। भगवती हमरा लोकनिक प्रार्थना सुनि लेलथि। हमरा लोकनि साँझमे महराजसँ भेंट करए चलब। ओहो बहुत मदति केलाह।"

"ठीक छैक। हम ओहि समयमे आबि जाएब।"

"चंपाकेँ सेहो लेने अबिअहक।"

ई बात सुनि बहुत नीक लागल।

हम चंपाकेँ फोन कए साँझक कार्यक्रमक बात ओकरा कहलिऐक मुदा ओ साफे मना कए देलक। ओ महराजक नाम लितहि जेना परेसान भए गेलि। हम आगू किछु नहि कहलिऐक आ बात बदलि कए किछु-किछु गप्प कनीकाल करैत रहलहुँ। हम नहि बूझि सकलिऐक जे महराजसँ ओकरा कथीक तामस छैक जखन कि हुनकासँ ओकरो गाहे-बगाहे मदति तँ भेटबे केलैक।

खैर! साँझमे हम कनी पहिने मामाक ओतए पहुँचि गेलहुँ। मामा पूछलाह-

"एसगरे अएलह?"

हमरा चुप देखि ओ बात बदलैत कहलाह जे महराज संयोगसँ आइ ठीक छथि। आशा करैत छी जे हमरा लोकनिकेँ भेँट भए सकत।"

"महराजकेँ की होइत छनि? अखने तँ विदेशसँ इलाज करबा कए अएलाह अछि?"

"छोड़ह ई गप्प-सप्प। बहुत तरहक बात छैक। राज-काजमे ई सभ होइते छैक।" -मामा बजलाह।

मामा महराजक राजमंत्री छलाह मुदा जेना-जेना ओ रानीक लगीच अबैत गेलाह, महराज हुनकासँ फटकी होइत गेलाह। मामाकेँ एहि बातक अनुमान रहनि मुदा ओ किछु नहि कए सकैत छलाह। महराजकेँ आपसेमे टनामनी रहनि। ओकर समाधान ओएह कए सकैत छलाह।

हमसभ महराजक मंत्रणाकक्ष लग ठाढ़ रही। मामा हमरा ओतहि ठहरबाक हेतु कहलाह। ओ भितर एसगरे गेलाह। कनीकालमे एकटा सिपहसलार हमरा बजबए आएल। हम पहिल बेर महराजक महलमे भितर धरि गेल रही। ओहि महलक शोभा अनुपम छल। चारूकात नाना प्रकारक नक्कासी कएल गेल छल। एक-सँ-एक तरहक साज-सज्जाक चीज-वस्तुसभ महलक महत्व बढ़ओने छल। महराज बीचमे विराजमान छलाह। दुनूकात प्रमुख लोकसभ कनीक हटि कए बैसल रहथि। ओहिमे राजमंत्री, राजपंडित, महराजी भगता, राजबैद प्रमुख छलाह। किछु आओर लोक छलाह जिनका हम नहि चिन्हि सकलिअनि।

हम भितर जाइते महराजकेँ विनम्रतापूर्वक प्रणाम केलिअनि। हमरा बारेमे मामा सभबात पहिने कहि देने रहथिन। तेँ हमरा देखितहि महराज बहुत प्रसन्न भेलाह। हमर हाल-चाल पुछलाह आ आगूक पढ़ाइ-लिखाइक हेतु सहायताक आश्वासन सेहो देलाह। हुनकासँ आशीर्वाद लए हम ओतएसँ बहार भइए रहल छलहुँ कि सौंसे महलमे बहुत जोरकेँ अबाज भेल। मामा हमरा जल्दीए निकलि जेबाक संकेत केलाह। हम ओतएसँ निकलले छलहुँ कि देखैत छी जे किछुगोटे महराजकेँ उठओने-पुठओने कारमे राखि रहल अछि।

"एतेक जल्दीमे की भए गेलनि हिनका?" -हम सोचैत रही।q

 

३४

 

जहिआसँ महराज विदेशसँ वापस अएलाह किछु-ने-किछु धमाचौकरी होइते रहल। जखन-तखन ओ अण्ट-सण्ट बाजए लगितथि। बेसीकाल आत्मालाप करैत रहितथि। हुनका ठीक करबाक जतेक प्रयास होइत गेल ततेक हुनकर हालति ओझराइते गेल। तरह-तरहक डाक्टर,बैद सभ अएलाह-गेलाह मुदा मामिला जस-के-तस। एहि विषयपर विचार विमर्ष हेतु राजक प्रमुख लोकनिक गुप्त बैसार भेल। एहिमे राजमंत्री, राजपंडित, राज बैद, राजभगताक अतिरिक्त राजक जासूसप्रमुख सेहो छलाह।

सभगोटे जासूसप्रमुखक बात सुनबाक हेतु उत्सुक भेलाह। महराजक पछिला तीनमासक गतिविधिक वीडियो गुपचुप बनाओल गेल छल जाहि आधारपर ओ कहलाह- “महराज अपना वशमे नहि छथि। ओ बेसीकाल अपने-आपसँ प्रश्नोत्तर करैत रहैत छथि। ओ एना किएक कए रहल छथि से हमरा नहि बुझा रहल अछि।"

महराजी भगता कहलखिन- "वीडियो चलाउ। हमसभ प्रत्यक्ष देखए चाहैत छी।"

"सही कहलाह" -राजमंत्री बजलाह। जासूसप्रमुख वीडियो चला देलाह।

ओहि जासूसी वीडियोक चलिते बैसारमे गुम्मी पसरि गेल। महराज कखनो हँसैत छलाह तँ कखनो अपने-आपपर तमसाइत छलाह। ई आत्मालाप विचित्र लागि रहल छल मुदा छल कटुसत्य।

"तूँ अपने लोकक शोषण करैत रहलह। गरीबसभक जथा-पात कनीमनी लगानक चलते नीलाम करैत रहलह। परिणाम की भेल? सौंसे इलाकामे दरिद्रता पसरि गेल। जाहिठामक माटि-पानि एतेक उर्वरा अछि ताहिठामक लोक अन्न बेगर प्राण दैत रहल आ तूँ व्यर्थक अहंकार प्रदर्शन हेतु बड़का-बड़का देबाल ठाढ़ करैत रहलह।"

"तूँ के हमरा टोकनाहर? हम छी महराज। जे मोन होएत से करब, जे मोन भेल से केलहुँ। तूँ दखल देनिहार केँ?"

"कथीक महराज? जा कए देखहक केरलमे। ओहो महराजे छल। सौंसे इलाकाकेँ स्वर्ग बना देलक। धीआ-पूतासभक पढ़इ-लिखाइक हेतु सभ सुविधा कए देलक। लोक ओकर दिन-राति जयगान करैत अछि।"

"की कहलह? हमरासँ बेसी जयगान ककर हेतैक?"

"ई तोहर भ्रम छह। किछु लोभी, लालची लोकसभ तोरा घेरने अछि आ झूट-मूठ चढ़ओने रहैत अछि, तँ तोरा होइत छह जे वाहरे हम!" से कहि महराजक आत्मा ओकरेपर हँसए लगैत अछि।

खबरदार! हम महराज छी। हमरा  संगे मर्यादासँ रहह,नहि तँ..।"

"नहि तँ की कए लेबह? हम तँ तोरा कहिआ ने संग छोड़ि देलिअह।"

"की अकर-बकर बाजि रहल छह। आत्मा कहीं जीविते फराक भेलैक अछि?"

"ई बात तँ तोरा स्वयं सोचबाक चाही, जे तोरे संगे से सभ किएक भए रहल अछि जे कतहु नहि होइत अछि।"

रोकू, रोकू महराजी भगता चिकरलाह। भीडिओ रोकि देल गेल।

की भेलैक?-राजमंत्री पुछलखिन।

"कोनो अपरिचित वस्तु लगीचमे बुझा रहल अछि।" -महराजी भगता बजलाह।

"के अछि? एकरा पकड़ल जाए। एना राजभवनमे निधोख के घुमि सकैत अछि?” -राजपंडित बजलाह।

"मुदा हमरा तँ किछु नहि देखा रहल अछि?" -जासूस बजलाह।

की देखबैक? जखन आँखिमे शक्ति रहत तखन ने देखबैक?"

-महराजी भगता बजलाह। सभ-सभक मुँह ताकए लागल।

महराजक स्थिति बहुत खराब बुझाइत अछि, ऊपरसँ एहिठाम किछु अदृश्य शक्ति सेहो काज कए रहल अछि। पता नहि ओकर एहिठाम घुरिएबाक की लक्ष्य छैक। जे छैक, मुदा हालति बहुत खराब बुझा रहल अछि।" -राजबैद बजलाह।

एतेकटा राज महल, अकूत संपदा अछैतो महराजक ई हाल किएक भेल?" एहि विषयमे मंत्रणा चलिऐ रहल छल कि हहाइत-फुहाइत मखना यमपाश फेकलक। बैसारमे हड़बिड़रोमँचि गेल। सभगोटे ठामहि पड़ि गेलाह। ककरो होस नहि रहैक, मुदा साँस चलि रहल छलैक। सिपहसलारसभकेँ किछु बुझएमे नहि अएलैक। सभ जान लए भागल।

मखनाक आक्रमणक तोड़ आब ने महराजी भगता लग छल ने महराजक कोनो आओर सिपहसलार लग। जखन यमराजो ओकरा संगे समझौता कए लेलनि तँ अनकर कथे कोन?महराजी भगता होस अबिते इएह सभ सोचि रहल छल कि कालू ओहिठाम पहुँचल।

"किछु बुझलहक?" -महराजी भगता पुछलखिन।

की बुझबै? मखना बेर-बेर हमरा समाद दैत अछि जे महराजकेँ कहुन चेत जाथि,नहि तँ..."

"नहि तँ की?"

"आब से तँ अहाँ स्वयं बुझनिक छी। आइ-काल्हि मखनाक तोड़ नहि अछि। महराजक ऊपर तँ तेना कए लागि गेल अछि जे हुनकर तँ माथे सुन्न जकाँ भए गेल अछि। राज-काज की चलओताह कपार?"

समाधान तँ कालू हमरे-तोरे निकालबाक अछि कारण ई सभ मामिला डाक्टर बैदक वशक नहि अछि।"

" कएल की जाए?

"देख कालू, किछु छैक, छौक तँ तोहर सहोदरे। कखनो-ने-कखनो दरेग अएबे करतैक तोहर। तूँ ओकरासँ गप्प करह आ पता तँ लगाबह जे आखिर ओ की चाहैत अछि?"

"हमरा तँ बहुत डर लागि रहल अछि। यदि हमरे पर बिगड़ि गेल तखन?"

"एतेक डरेलासँ काज नहि चलतह। आखिर मखनोकेँ किछु तँ मोनमे हेतैक। पता लगबही, गप्प कर। नहि करबह तँ महराज तँ छोड़तौ नहि।"

"आओर ई जासूस जे वीडियो बनओने अछि ताहिसँ किछु पता नहि चललैक?”

"ओ वीडियो बड़ीटा छैक। कनी-मनी देखलासँ जे अनुमान लगाओल जा सकैत छैक, ताही आधारपर ने तोरा चेता रहल छिअह। एखन बहुत देखनाइ बाँकिए छलैक कि मखना आक्रमण कए देलक।"

"मुदा मखनाक लक्ष्य की छैक? से जननाइ तँ बहुत जरूरी थिक।"

तेँ ने तोरा कहि रहल छिअह जे ओकरासँ सीधा-सीधी गप्प करह। मामिला आब हाथसँ बाहर जा रहल अछि।"

दुनू गोटे गप्प कइए रहल छलाह कि राजमंत्री ओहिठामसँ महराजी भगताकेँ बजाहटि आबि गेलैक। आओर ओ ओमहर बिदा भए गेल।q

 

हमर साहित्यिक यात्रा

  हमर साहित्यिक यात्रा   सन् २०१६मे हमर माएक चौरानबे सालक बएसमे देहान्त भए गेलनि। हुनकर देहावसानक बाद मोन ततेक दुखी ओ अशान्त भए गेल जकर ...