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जीवनमे बहुतरास अप्रिय ,अरुचिकर घटनासब घटैत
रहैत अछि । कतेकोबेर ऐहन घटना घटित भए जाइत अछि जे मनुक्खकेँ हिला कए राखि दैत अछि
मुदा एहने समयमे संस्कार ओ ज्ञानक परीक्षा होइत अछि । तकर अभावमे व्यथासँ विचलित लोक
गलत रस्ता पकड़ि लैत छथि आ कैबेर अनर्थ कए बैसैत छथि । हालमे दिल्लीक बुरारीमे घटित
लोमहर्षक घटना समस्त जागरुक व्यक्तिकेँ हिला कए राखि देलक । ऐकहिटा परिवारक एगारह गोटे
दूपहर रातिमे फाँसी लगा कए मरि गेलाह । सभगोटे एकदम स्वस्थ छलाह। परिवार आर्थिक रुपसँ
समृद्ध छल । राजस्थानसँ बीस-बाइस साल पहिने दिल्ली आबि कए ठिक-ठाक हालत मे छलाह । परन्तु
की भेल जे पूरा-क- पूरा परिवार स्वयं फाँसीक फंदा बना झुलि
गेल? जाँच-पड़तालमे ई
बात आबि रहल अछि जे ओ सभ तंत्र-मंत्रक चक्करमे
पड़ि गेल छलाह । हुनकासभकेँ ई अंधविश्वास छल जे एहि तरहेँ मरलासँ हुनका सभकेँ मुक्ति
भए जाएत। कहि नहि सत्य की छल मुदा भेल तँ अनर्थे
। सभतरहेँ जूड़ल-अटल परिवार सदा-सर्वदाक हेतु नष्ट भए गेल आ सेहो धर्मक नामपर । तेँ
मनुक्खकेँ चाही जे आँखि खोलि कए राखथि । ककरो बातपर बिनाा सोचने-बिचारने विश्वास नहि
करथि । सोचएबला बात थीक जे फाँसी लगा कए मरि
गेलासँ मुक्ति कतएसँ भेटत । एहन सुन्दर जीवनकेँ व्यर्थमे गमा देब मूर्खता नहि तँ की
थिक?
आँखि मूनिकए ककरो चेला भए जाएब कोनो हिसाबे
उचित नहि अछि । आई काल्हि बहुत रास ढ़ोंगी बाबा सभ धर्मक नामपर लोककेँ ठकैत देखल जाइत
छथि । ककरो बातकेँ बिना सोच-विचारकेँ नहि मानक चाही । अपन माथा जरुर लगाबक चाही । कहब
छैक जे मनः पूतं समाचरेत । जखन अपन मोन मानि जाए तखने कोनो काज करी । अपन जीवन-यापन
करबा जोग वुद्धि भगवान सभकेँ देने छथि । तकर सही उपयोग कएल जाए तँ बहुत रास दुर्घटना
सँ बचल जा सकैत अछि । कहक माने जे अंधभक्त नहि हेबाक चाही ।
बहुत रास लोकसभ फिरसान भए बाबा सभहक चक्करमे पड़ि जाइत छथि । एहन बाबा सभक आइ-काल्हि
कमी नहि अछि । जतहिँ देखू,जटा- जूटधारी बाबा
तृशूल चमकबैत भेटि जएताह । हुनका सभसँ बचिकए रही एहीमे कल्याण अछि । कारण ओ धन-धर्म
सभ पर हाथ फेर दैत छथि । कै बेर तँ जानोसँ लोक हाथ धो लैत छथि ।
सोचएबला बात अछि जे कैबेर पढ़ल-लिखल लोको एहन बाबा सभक चक्करमे पड़ि जाइत छथि ।
तकर की कारण ? असलमे जखन लोक वास्तविकताकेँ
नहि स्वीकार करैत छथि किंबा परिस्थितिसँ ताल-मेल नहि बैसा पबैत छथि,तखने एहन मानसिकता जोड़ मारैत अछि आ गलत-सलत काज लोक करए लगैत
अछि । कहल जाइत अछि जे जँ अपना मोनक हो तँ नीक ,जँ अपना मोनक खिलाफ भए
जाऐ तँ आओर नीक । कारण जे अपना मोनक नहि भेल से बुझु जे भगवानक मोनक छनि किंवा
हुनकर आदेश छनि ,से बुझि आगतकेँ
स्वीकार करैत आगा बढ़ि जाउ । जीवनमे नीक बेजाए होइत रहैत अछि । क्यो एहन व्यक्ति नहि
भेटत जे सभ दिन नीके देखने होथि । नीक-बेजाए समय केँ साहस पूर्वक झेलैत जे चलैत रहि
जाइत छथि,बीच रस्तामे थाकि
कए , हारि कए काजकेँ
आधा-अधूरा छोड़ि नहि दैत छथि,वएह कीर्ति करैत
छथि,यशक भागी होइत छथि
।
सही रस्तापर चलनिहार व्यक्तिकेँ बहुत याचना होइत अछि। बच्चामे हमरासभ सत्य हरिश्चन्द्रक
नाटक देखने रही । केहन,केहन दिक्कतिसँ
हुनका सामना करए पड़ल । एकटा प्रसिद्ध राजा सत्यक रक्षा करैत-करैत भिखमंगा भए गेलाह
। ई हालत भए गेलनि जे पुत्र रोहितक मृत लहासकेँ
जड़ेबाक हेतु कोनो व्योत नहि गेलनि। ऐहन दारूण दुख भगवान ककरो नहि देथि । मुदा ओ सत्यक
मार्गपर अडिग रहलाह आ अन्ततोगत्वा विजयी भेलाह । कहक माने जे जीवनमूल्यक रक्षाक हेतु
जँ कष्टो सहए पड़ए तँ अगुतेबाक नहि चाही,अपितु दृढ़तापूर्वक
न्यायक मार्ग पड़ चलैत रहबाक चाही।
अपना देश-समाजमे कमे एहन लोक होइत छथि जिनकासभ किछु बनल-बनाएल भेटि जाइत छनि। अधिकांश
लोककेँ सभ किछु हेतु संघर्ष करए पढैत छनि ।
जीवनक मूलभूत आबश्यकता जेना आवास,शिक्षा,स्वास्थ्य हेतु सेहो मोसकिल रहैत अछि । अधिकांश लोक तँ संघर्ष
करतहि जनमैत छथि आ ओही हालमे दुनियाँसँ चलि
जाइत छथि । किछु एहनो लोक छथि जिनका भगवान ततेक दए देने छथि जे फुराइते नहि छनि जे की करी
? एहन लोककेँ विवेकसँ
काज लेबाक प्रयोजन अछि । जँ सही व्यक्तिक हाथमे संपदा आबि जाइत अछि तँ ओ बहुत कयाणकारी
भए सकैत अछि,हजारो,लाखोक तायदादमे जरुरतमंद,दुखी,ओ आर्तलोकक जीवनकेँ
बदलि सकैत अछि,मुदा से होइक तखन
ने? लोकसभ अपने धरि
सीमित रहि जाइत छथि आ तखन कहताह जे मोनमे शांति नहि अछि,फिरसान छी ,आदि,आदि ।
जरुरी एहिबातक अछि जे परिस्थितिसँ तालमेल बैसाकए चली। जाहि बातपर अपन बश नहि अछि
तकरा स्वीकार करी एवम् जीवनमे आशावादी रुखि राखी । सभसँ जरुरी अछि जे ईश्वरमे विश्वास
राखी। भगवानक घरमे देर अछि अन्हेर नहि अछि । अस्तु,धैर्यपूर्वक कर्तव्य कर्मकेँ करैत रहब तँ देर-सवेर जरुर सफलता
भेटत । एहिबातकेँ ध्यानमे रखैत जीवन यात्राकेँ यथासाध्य शांतिपूर्ण ढ़गसँ बिताबक चाही।
जीवनमे सही दृष्टिकोण एवम् आशावादी रुखि रखलासँ बहुत रास संकटसँ बचल जा सकैत अछि,कमसँ कम ढ़ोंगीबाबाक चक्करसँ तँ जरुरे बचब । अस्तु, सबसँ जरुरी
अछि जे हमर बुद्धि शुद्ध होअए जाहिसँ हमसभ नीक-बेजाएक बिचार करैत जीवन यात्राकेँ मर्यादापूर्वक
बिता सकी।
दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं पिबेज्जलम् ।
शास्त्रपूतं वदेद्वाक्यं मनः पूतं समाचरेत् ॥
- चाणक्य नीति
- चाणक्य नीति