मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मंगलवार, 7 नवंबर 2017

असगुन


 

 


असगुन


गाम-घरमे कतेको प्रकारक असगुन सभ प्रसिद्ध अछि। जेना क्यो यात्रापर विदा हो आ नढ़िया रास्ता वायासँ दायाँ काटि दियै, किंवा क्यो विदा होइतकाल पाछासँ टोकि दियै। बुढ़बा बाबाकेँ एहि सभहक बेश विचार छलनि। जँ घरक क्यो विदा होइत आ कतहु क्यो छीक दैत तँ वो चिरंजीवी भव: अवश्य कहितथि। तहिना आर-आर अपशकुन जँ होइतैक तँ ओकर निवारण कय लितथि।

ओहि दिन गाममे हाट लागल रहैक। तीमन-तरकारी सभटा हाटेपर सँ कीनल जाइत छलनि। ओहुना हाट दिनक ओ नियमसँ  ओतय पहुँचैत छलाह।

रविक दिन छलैक। हाट जएबाक तैयारी ओ दुइए बजेसँ प्रारम्भ कय देने छलाह। जहाँ चारि डेग आगा बढ़ैत कि एक ने एकटा अपसगुन भय जानि। एवम् प्रकारेण चारि बाजि गेल। सूर्यास्त करीब छल। हारि कय वो बेंत घुमबैत विदा भेलाह।

कनिके आगा बढ़लाह कि मुनेसरा सामनेमे पड़ि गेलनि

प्रणाम पंडीतजी!” –बाजल मुनेसरा।

नीके रह”- मुनेसराकेँ आर्शीवाद दैत पडितजी आगा बढ़लाह। मोने-मोन कहि नहि की की घुनघुना रहल छलाह। मुनेसराकेँ एकेटा आँखि छलैक। गाममे दाहाक दिन मारि भय गेल रहैक। बेस फनैत छल ओ। लाठी लेने फानि गेल छल। ताबतमे क्यो ओकरे निशाना बना कय एकटा सीसाक बोतल फेकलकै। ओकर सौंसे आँखि लहु-लुहाम भय गेल रहैक। ओही घटनाक बाद ओ असगुन भय छल। प्राय: सैह सभ सोचैत पंडितजी आगा बढ़लाह।

हाटपर बेश भीड़ छलैक। तीमन-तरकारीक भरमार छल। मुदा पंडितजीक आदति छलनि जे कोनो चीज ओ ठोकि-ठोकि कऽ करितथि। बीच बजारमे सजमनिक दाम मोलबति-मोलबति पहुँचलाह कि चारि गोटेमे एक दिससँ धुक्का मारैक आ चारि गोटे दोसर दिससँ। सामनेसँ दू-तीन गोटे हाँ-हॉं करैत पण्डितजीक रक्षा करए आबि गेलाह। धक्का-धुक्की खतम भेल तँ पण्डितजी आगा बढ़लाह। सजमनिक दाम मोलेलनि आ भाव पटि गेलापर जेबीसँ पैसा निकालय लगलाह कि अबाक रहि गेलाह। जेबी नदारद। पण्डितजी ठोह पारि कय कानय लगलाह। सौंसे ई खबरि बिजलौका जकाँ पसरि गेल। पण्डितजी माथा हाथ देने घर आपस अयलाह। तहियासँ वो असगुनक डरे छाँह कटने फिरथि।

पण्डितजीकेँ तीनटा कन्या छलनि। प्रथम कन्याक कन्यादान तय भय गेल छलनि। नीक कुल-शीलक लड़का रहैक। अगहनक पुर्णिमाक बियाह तय भेलनिबरक हाथ उठयबाक हेतु विदा होइत छलाह कि कियो तराक दय छींकनने। छींक...छींक...छीक...। हुनकर माथामे ई छींक घूमय लगलनि। पण्डितजीक टांग एकाएक गतिहीन भय गेलनि ओ आगा बढ़य हेतु एकदम तैयार नहि छलाह। सौंसे गामक लोक करमान लागि गेल छल। पण्डितजी गुम। किछु बजबे नहि करथि। तेहन शुभ मुहुर्त्त छल जे छींकक चर्चो करब असगुन लगनि। लोक सभकेँ किछु फुराइक नहि जे आखिर बात की भेल। अखने तँ पण्डितजी टप-टप बजैत छलाह..!

गाम भरिक लोक पण्डितजीकेँ घेरि लेलकनि।

पण्डितजी की भेल?”

मुदा ओ तैयो गुम्म। अन्ततोगत्वा लोक हुनका उठा-पुठा कय डाक्टरक ओहिठाम लय गेल। ओतय डाक्टर हुनकरअवस्था देखि बेश सीरियस भय गेलाह आ कहलखिन्ह जे हुनका गम्भीर भावनात्मक अवधात भेलन्हि अछि। तात्कालिक उपचारक हेतु जहाँ  वो सूई देबय लगलाह कि पण्डितजीकेँ नहि रहि भेलनिओ गरियबैत ओहिठामसँ गामपर भगलाह। ताबत भोरक चारि बाजि गेल छल। आ बरक ओहिठाम जएबाक कार्यक्रम रद्द भय गेल। ठीके असगुन भय गेलनि

ताहि दिनसँ पण्डितजी असगुनसँ बड्ड डराथि। ओहि दिन हुनकर मझिली बेटीक तहिना आँखि बड़ फरकय लगलनि। पण्डितजी एकदम अपसियाँत भय गेलाह। अबश्य कोनो गड़बड़ी होमय जा रहल अछि।

ओ अपन अपन बेटीकेँ तुरन्त अपना लग बैसा लेलथि कि ताबतेमे एकटा गिरगिट हुनकर बायॉं हाथपर खसल। पण्डितजी ठामहि फानलाह। पैरमे खराम छलनि। दरबज्जा बेस ऊँच छलैक। दलानपर ठामहि चितंग भय गेलाह। बायाँ पैरक हड्डी टुटि गेल छलनि। पण्डितजी बाप-बाप चिचिआय लगलाह। सभ गोटे हुनका लादि कय अस्पताल लय गेल। लाख कोशिशक बाबजूद ओ हड्डी नहि जुटल। पण्डितजी जन्म भरिक हेतु नाँगर भय गेलाह।

तहियासँ पण्डितजी रोज भोरे उठैत देरी भगवानकेँ गुहारि देथि-

हे भगवान! असुगनसँ जान बचायब।

मुदा भावी प्रवल होइत छैक। होइत वैह छैक जे हेबाक रहैत छैक।

एकादशीक दिन छलैक। महादेवक दर्शन करए जाइत छलाह। झलफल होइत छलैक। ताबतमे एकटा नढ़िया वामाकातसँ आयल आ सामने बाटे दायाँकात गुजरि गेल। पण्डितजी ठामहि खसलाह।

हे महादेव! आब अहीं प्राणक रखा करू।

कहैत-कहैत पण्डितजी वेहोश जकाँ भय गेलाह। तारा सभ एकाएकी हुनकर ई दुर्दशा देखबाक हेतु अपस्याँत छल। बो बेचारे एकहुँ डेग घुसकय हेतु तैयाक नहि छलाह। आ ने घुसकबाक हुनकामे तागति रहि गेल छलनि।

पण्डितजीकेँ फेर कहि नहि कहाँसँ हिम्मत अएलनि। ओ चोटे पाछा घुमलाह। तैबीच एकबेर फेर वैह नढ़िया वायाँसँ दहिना भेल। पण्डितजी ओहि नढ़ियाकेँ गरियबैत, नाँगर टाँगे दौड़ैत, खसैत-पड़ैत घर दिस बढ़य लगलाह। बीच-बीचमे ओहि नढ़ियाकेँ कहैत-

ई सरबा, नहि जीबय देत। एकर हम की बिगारने छलिऐक से नहि जानि!”

ताबतेमे मुखियाजी पोखरि दिसिसँ आपस अबैत छलाह। पुछि बैसलखिन-

की भेल पण्डितजी?”

की कहू की भेल। कहबी छैक जे गेलहुँ नेपाल आ कर्म गेल संगे। सैह परि अछि हमर। एकादशीक दिन छलैक। सोचलहुँ जे महादेवक दर्शन करी। आधा रास्तासँ जहाँ आगा बढ़लहुँ कि औ बाबू! ई चण्डाल नढ़िया रास्ता काटि देलक।

ओहिसँ पहिने की मुखियाजी किछु बजितथि, पण्डितजी धराम दय खसलाह।

मुखियाजी चिकरलाह। पासेमे पण्डितजीक भातिज पनिछोआ करैत छलखिन्ह। ओ दौड़लाह। अगल-बगलसँ सेहो लोक सभ दौड़ल। पण्डितजीकेँ उठा-पुठा कय दरबाजापर राखि देलक। लोक सभ पुछन्हि-

की भेल?”

मुदा ओ अपस्याँत आकाश दिसि तकैत रहि गेलाह।

असगुन, असगुने होइत अछि। तेँ ने लोक सगुन करैत फिरैत रहैत अछि। पण्डितजी भोर होइतहि पनिभरनीकेँ बजौलखिन आ आदेश देलखिन जे आइसँ नित्य प्रात: काल ओ एक घैल पानि भरि कय दरबाजापर राखि देल करए, जाहिसँ हुनक दिन नीक जेना कटि जानि। पनिभरनी हुनकर आज्ञाकेँ सिरोधार्य कयलक आ रोज हुनकर सामनेमे बेश बड़का घैलमे पानि भरि-भरि राखय लागल।

एक दिन अन्हरोखे पनिभरनी पानि भरि कय राखि गेल। ओकरा गहुँमक कटनी करबाक छलैक।

पण्डितजी उठि जहाँ चारि डेग आगा बढ़लाह कि वोहि घैलसँ टकरा चारूनाल चित्त भय खसि पड़लाह।

चारू कातसँ लोक सभ दौड़ल। मुदा मण्डितजी किछु नहि बजलाह। आब ओ सभ दिन चुप्पे रहबाक सपथ खा लेने छलाह। समय विपरीत भय गेल छलनि आ सगुनो असगुन भय गेल छलनि।