मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

बुधवार, 15 फ़रवरी 2017

बाल्यकाल





 





बाल्यकाल

माएक ध्यान करैत-करैत वाल्यावस्था मोन पड़ि गेल। घरक आगूमे कनीटा जगह छलैक। ओहि जगहमे हमर फुलवाड़ी छल। कतहुँसँ तीरा फूलक बीआ आनि कऽ रोपि दिऐ आ लगले, माने प्राते भेनेसँ बाबाकेँ पुछए लगियनि-

बाबा! फूल तऽ नहि फुलेलै?”

हमर बात सुनिते बाबा हँसि देथि।

रोज भोरे उठिते यएह काज...। कएक बेर तीराक बीआसँ कनियोँटा पम्ह निकलै आकि फेर दौड़ी बाबा लग। बाबा फेर हँसए लागथि। कएक दिन जखन अहिना बाबाकेँ तंग करियनि तखन कहथि-

एक्के-दिने थोड़े फूल फुलाइ छैक, समय लगैत छैक।

फेर बाट ताकी। पानिसँ पटाबी। क्रमश: बीआ गाछ बनबाक दिशामे अग्रसर होइत छल। आठ-दस दिनक बाद, जखन तीराक गाछ बढ़ि जइतैक तऽ फेर बाबा लग जाइ आ हुनका तीराक गाछ लग लऽ जा देखा दियनि। कोंढ़ीक स्थिति देखि बाबा मुड़ी डोलबैत बाजथि-

हँ! आब फूल आबि जाएत। अहिना पानि पटबैत रहियौ।

किछु दिनमे रंग-बिरंगक तीराक फूलक कोंढ़ी अबैत आ रोज भोरे फेर जिज्ञासा भरल आँखिसँ फूलक कोंढ़ीकेँ देखैत रही। फूलकेँ कोढ़ीसँ स्‍फुटित होइत देखैत रही, कतेक आनन्द होइत रहए, कतेक आनन्दित भए जाइत रही, तकर वर्णन हठात करब सम्भव नहि। हमर पितामह (स्व. श्रीशरण मिश्र)अपना समयमे पहलवान छलाह। लोक बाजथि जे ओ असगरे चार चढ़ा लैत छलाह। खेती-वाड़ी जमि कऽ करैत छलाह। छह फूट लम्बा, मजगूत कद-काठी आ घोर परिश्रमी लोक छलाह। कर्मठताक संग-संग ओ आस्तिक आओर संस्कार सम्पन्न लोक छलाह। ७५ सालक बएस धरि हुनका घोर परिश्रम करैत हम देखिअनि। ओ भोरे उठैथ आ जन-मजदूर सभकेँ अढ़बए सिनुआरा टोल जाथि, जन लऽ कऽ खेतपर जाथि, जन सबहक पनपियाइ पहुँचाबथि, सभ काज एकसूरे कऽ लेथि।

हमर गामक बिच्चेमे पोखरि अछि। पोखरिक पछवरिया महारसँ कनिक्के हटि कऽ हमरा लोकनिक घर अछि। पोखरिक पुवरिया महारपर ओलार छल जाहिठाम माल-जाल बान्हल जाइत छल। घरक शुद्ध दूध, दही प्रचूर मात्रामे उपलब्ध करबामे ओलार आ ओहिठाम दिन-राति खटैबला चरबाहमियाँजानक बहुत योगदान छल।

मीआजान चरबाहकेँ घरेपर सँ टाहि देथि-

महींस पनहा गेल अछि...।

बाबाक एकटा महींस हुनके हाथे लगैत छल। जखन कखनो ओ कतहुँ चलि जाथि तऽ आफत भए जाइत रहए। महींस चुकैर-चुकैर कऽ जान देबएपर उतारू भए जाइत छल मुदा लगैत नहि छल।

बाबाकेँ एकटा डमरू रहनि जे ओ बजबैत रहैत छलाह। कहथि जे ओ डमरू हुनका महादेव देने छथि। हमरा लोकनिक जन्मक पूर्वेसँ ओ डमरू हुनका लगमे छल। बादमे ओहि डमरूकेँ महादेवक मन्दिरपर लेने गेलाह आ सायंकाल नचारी गबैतकाल आओर महादेवक  आरतीक समय ओ डमरू कखनो बाबा स्वयं वा कखनो-कखनो आओर बुढ़ सभ बजबैत छलाह। बच्चा सभकेँ बाबासँ बहुत सिनेह होइते अछि। हमरो हुनकासँ बड़ सिनेह छल। सदिखन बाबासँ सटल रही। धिया-पुता सभकेँ हमरा घरमे बहुत हिफाजत होइत छल। बाबूजी असगरे छलाह। तँए परिवारमे नब बच्चा स्वागत योग्य होइत छल। एहि तरहेँ हम सभ ९ भाए-बहिनक पैघ परिवारक अंग भेलहुँ। गाममे सुसम्पन्न परिवारक पुरोधा छलाह- हमर बाबा। हुनकर बिआह समस्‍तीपुरक लगपासमे सोतीसलमपुरक शीलानाथ झाक पाँजिमे, ओहि समयक पाँच सए चानीक सिक्का दऽ कऽ भेल रहनि।

बादमे ओ सभ जनाढ़मे बसि गेल रहथि। बाबाक सार सभ गाहे-वगाहे हमरा ओहिठाम अबैत रहै छलाह आ बहुत सम्मान पूर्वक बहुत-बहुत दिन धरि ओ लोकनि रहितो छलाह। बाबाक हेतु छोट-मोट उपहार जेना- चक्कू’, ‘सरौता इत्यादि नेने अबथिन। देवोत्थान एकादशी दिन भगवानकेँ जगाओल जाइत छल। बाबा एहि पूजाकेँ बहुत श्रद्धा पूर्वक करैत छलाह। पीढ़ीपर रंग-बिरंगक अरिपन बना चारूकात दीप जराओल जाइत छल, आ चारि गोटे चारूकातसँ मन्‍त्रोच्चारक संग भगवानके ऊपर लऽ जाथि आ फेर नहुए-नहुए निच्चा लऽ आवथि पूजा पाठ होइत, प्रसाद वितरण होइत। अनन् चतुर्दशीक दिन भगवानक पूजा हमरा ओहिठाम सभ साल होइत छल। सभ अपन-अपन घरसँ अनन् आनथि, प्रसाद आनथि आ ओकर पूजा विधि पूर्वक बाबा करैत रहथिन।

किं मथसि, क्षिर निधि

प्राप्तो त्‍वंया, प्राप्तो मया।

उपरोक्त श्‍लोक कहि कऽ अनन् सबहक पूजा होइत छल। व्रह्मस्थानमे लखराम महादेवक पूजा होइत आ घरे-घरे लोक माटिक महादेव बना कऽ लऽ जाइत छल। दिन भरि पूजा होइत छल। गाममे समय-समयपर नवाह, अष्टजाम सेहो होइत छल। एहि सभसँ बालक सभमे नीक संस्कार पड़ैत छल।

हमर प्रपितामह (स्व० गुमानी मिश्र) इलाकाक प्रतिष्ठित जमीन्दार छलाह। डा. सुभद्र झाजी कहथि जे ओ जखन घोड़ापर चढ़ि कऽ कर्ज-वसूलीक हेतु निकलथि तऽ लोक घरे- घर नुका जाइत छल। परिवारक आर्थिक सामर्थ्‍य बढ़बैमे हुनक जबरदस्त योगदान छल।

हमर गाममे पीच सड़क छलैक, चौबटिया छलैक, जकरा ओहि समयमे कमाल चौक कहल जाइत छल। कारण पुवारि टोलक कमाल नामक एक व्यक्ति ओहिठाम पानक दोकान खोलने रहथि। ताहिसंग चाह आ मधुरक दोकान स्व. सुखदेव साहुक छल। एहि दोकान सबहक अतिरिक्त ठेलापर दूटा आओर दोकान क्रमश: खूजल। कनिक्के हटि कऽ किछु आओर दोकान छल। चाह, मधुर ओतहुँ उपलब्ध छल। कतेको गोटे ओहिठाम बैस कऽ गप्प मारि समय कटैत छलाह। छोट-मोट क्‍लब जकाँ ओ काज करैत छल।

ओहिठामक गप्प-सप्पक विषय बदलैत रहैत छल। एकबेर जबरदस्त विवादक विषय छल जे हमर गामक नाम अड़ेरु डीहछिऐ आकि अड़ेर डीह?’ हमहूँ ओतए ई चर्च  सुनैत रही। बच्चामे हमरा होइत छल जे ई सभ अपन समय व्यर्थ बरबाद कऽ रहल छथि, मुदा आब ओकर उपयोगिता बुझा रहल अछि। सही मानेमे ओ बुढ़ सभकेँ जीबाक बड़का सहारा छल।

कनियेँ दूर हटि कऽ बुध आ रवि दिन हाट लगैत छल। तरह-तरह केर तीमन-तरकारी ओतए उपलब्ध रहैत छल। चारूकात किछु स्थायी दोकान सभ छल।

गाम दऽ कऽ दूटा बस चलैत छल। एकटा उजरी बस, जे साहरघाटसँ मधुबनी आ दोसर हरलाखीसँ मधुबनी जाइत छल। दुनू बस बेनीपट्टी, धकजरी, अड़ेर, रहिका होइत मधुबनी जाइत छल। ई दुनू बस जँ छुटि गेल तऽ सिवाय रिक्शाक आओर कोनो सवारी नहि छल। रिक्शा द्वारा गाम-घरक गरीब सबहक गुजर होइत छल। रिक्शो चलब धिया-पुताक मनोरंजन छल। कएटा बच्चा सभ रिक्शापर पाछासँ लटकि जाइत छल आ दूर धरि रिक्शाक पछोर करैत छल आ रिक्शाबला सभ कए बेर तंग भए कऽ झगड़ापर उतारू भए जाइत छल।

हमर गाम बस पकड़ए हेतु दूर-दूरसँ लोक अबैत छल। जमुआरी, एकतारा, नगवास आदि गामसँ लोक अड़ेर आबि कऽ बस पकड़ै छलाह। क्रमश: बसक संख्या बढ़ल।

सरकारी बस सभ चलए लागल। सीतामढ़ीबला रोडक बस चलि गेलाक बाद तऽ बसक संख्यामे बहुत वृद्धि भेल आ आब तऽ अड़ेर छोट-छीन शहर जकाँ सुविधा सम्पन्न भए चुकल अछि। सड़कक काते-काते सभ रंगक सैकड़ो दोकान खुजि गेल अछि। बैंक, ए.टी.एम., थाना, हाइ स्कूल इत्यादि सभ भए गेल। लगपासक आन गाम-सभमे पक्का रोड बनि गेल अछि आ अड़ेर चौकक महत्व बढ़िते जा रहल अछि।

गामक पूबसँ कमला नहरसँ जोड़ल धार बहैत छल। ओहिमे तखने पानि अबैत जखन जयनगरक लगपास बनल फाटकसँ पानि छोड़ल जाइ। भदवारिमे जखन चारूकात बाढ़ि आबि जाइ तऽ ओहूमे पानिक दर्शन होइत। ओहि समयमे हम सभ धारमे खेलाइत छलहुँ। चौकसँ आगाँ बनल पूल, जाहिपर लोहाक घेराबा देल छल, ओहिपर सँ बच्चा सबहक देखा-देखी कुदि जाइत रही। सचमुच ई भयाबह छल मुदा सभ बच्चा देखसीमे एना करैत छल। कएक गोटाकेँ ओहिमे चोटो लगैत रहए। पुलक निच्चा पानिक झड़ना छल। ओहिमे तेजीसँ पानि ऊपर-सँ-निच्चा खसैत छल। ओहिमे फाटक लगेबाक  सेहो ब्यवस्था छल, जाहिसँ जरूरत भेलापर पानिक बहाव नियंत्रित कएल जा सकए। ओहि झड़नामे अपन गामक बच्चा सबहक संगे हमहूँ कुदि जाइत रही। ओतए पानिक बहाव बहुत तेज रहैत छल आ कएबेर बच्चा सभ गोंता खेला बाद ५-६ मीटर दूर धरि बहि जाइत छल। एकबेर हमरे गामक खुरलुच्च पैघ बच्चा हमरा झड़नाक ऊपरसँ धकेल देलक, जाहिसँ हमर वामा आँखिसँ ऊपर माने भोंह लगक कपार फुटि गेल। तकर बाद जे उपरागा-उपरागी भेल से की लिखू।

गाम-घरमे कोदबासँ बँचबाक हेतु पाच कएल जाइत छल। ओहि समयमे एकरा धार्मिक क्रिया बुझल जाइत छल। शीतला माएक आराधनाक स्वरुपमे झालि बजा-बजा कऽ पचनियाँ गीत प्रसिद्ध छल। बहुत नेम-टेमसँ घरक लोक रहैत छल। कार्यक्रमक अन्तिम दिन तेल चढ़ैत छलैक। पचनियाँकेँ चढ़ौना देल जाइत छल। अखनो धरि ई दृश्य हमरा मोन पड़ैत रहैत अछि। वामा बाँहिपर दूटा नमगर-नमगर चेन्ह अखनो धरि विद्यमान अछिए। पचनियाँ सभ सरकारी कर्मचारी होइत छलाह। आब सोचाइए जे लोकक धर्मिक भावना आओर अज्ञानताक फायदा उठबैत ई सभ पैसाक उगाही करैत छलाह।

ओहि समयमे ग्रामोफोन होएब बड़का बात छलैक। हमरा गाममे प्राय: तीन गोटेकेँ ग्रामोफोन रहए। ओहिमे गीतक रेकर्ड गोल-गोल चक्का सन चढ़ा कऽ ग्रामोफोनक सुई चला दैत तऽ गाना-बजाना होइक। बच्चा सभकेँ कहल जाइक जे भोपूमे आदमी नुकाएल अछि। आ हम सभ ओहि आदमीकेँ तकैत  छलहुँ। हमरो ओहिठाम एकटा ग्रामोफोन रहैक हम बारंबार ओकर पार्ट सभकेँ खोलि ओहिमे नुकाएल आदमीकेँ तकैत रहैत छलहुँ।

एक दिन जेना-तेना किछु पाइक इन्जाम कऽ मधुबनी जा कऽ दूटा ग्रामोफोनक रेकार्ड कीनलहुँ, जाहिमे एकटा ससुराल फिल्‍मक गाना छल तेरी प्‍यारी प्‍यारी सूरत को किसी की नजर न लगे सन्‍दुकमे राखल ग्रामोफोनकेँ खोलि ओहिमे रेकर्डकेँ बजबैत कियो देखि लेलक। बात बाबूजी धरि पहुँचल। मुदा कनी-मनी डाँट-फटकारक बाद छोड़ि देल गेलहुँ। हमरा गाममे दाहा अबैत छलैक। बच्चा सभ ओहिमे बड़ा आनन्दित रहैत छल। हम सभ दाहाक नकल करी। करचीमे फूल आ आओर किछु खोपि दिऐ आ सभ बच्चा अपनामे संगोट कय अँगने-अँगने घुमी आ दमदलियाक दाहा हुसे.. कहि-कहि संगे सभ बच्चा चिचिआइत खूब आनन्दित होइत रही।

छोट-छोट बात सभसँ बच्चामे कतेक आनन्द होइत छल, तकर ई उदारहण अछि। बरखा, थाल-कादो, रौद, पानि-बिहाड़ि इत्यादि सभमे बच्चा आनन्द ताकि लैत अछि। सच कही तऽ वाल्यावस्था ईश्वरत्वक बहुत समीप रहैत अछि। अन्दरक आनन्द यत्र, तत्र, सर्वत्र प्रस्‍फुटित होइत रहैत अछि। हम सभ दरबज्जापर बैसल रहितौं, सिलेट लऽ कऽ लिखैक अभ्यास करैत, कि एकटा पगला अबिते बड़बड़ाइत-

जलखै, जलखै...।

किछु-ने-किछु ओकरा कियो-ने-कियो खेनाइ दऽ दैत आ ओ चलि जाइत। बहुत दिन धरि ओ क्रम चलल रहए...। बाल मोनपर जे गड़ि गेल से गड़ले अछि। अर्द्धनग्न शरीर, माटि, थाल-कादो सटने, बकर-बकर बजैत ओ अबैत-जाइत रहैत छल। कहि नहि ओ के छल आ ओकर की अन् भेल..? भूतकालक घटनाकेँ मोन पाड़ैत अनायास ओहि शिक्षकपर ध्यान चलि जाइत अछि जे हमरा सबहक घरक सटले बच्चा सभकेँ पढ़बैत छलाह। बच्चा जँ कोनो गलती केलक, किंवा सबक नहि रटि सकल, तऽ घोरनक छत्ता विद्यार्थी-सभपर छोड़ि देथि। बाप-बाप चिचिआइत बच्चा सभक स्मरण करैत अखनो रोमांचित भए जाइत छी। सोचल जा सकैत अछि जे ओहि बच्चा सबहक की भविष्य रहल हेतइ। एक्कोटा बच्चा ओहिमे सँ नहि पढ़ि सकल। बच्चाक माए-बाप सभ अपन बच्चा सबहक कल्याणक कामनासँ मूक दर्शक बनल रहल। आ सभ बर्वाद भए गेल।

सए वीघा खेतक हमहूँ मालिक छलहुँ।

ई बसुधा काहू को नाही...।

ऐ पछवरिया घरवारी।पुबरिया घरवारी...।

ई टनक अबाज छल एकटा भिखमंगाक।

ई वसुधा काहु को नाही...।



कएक बेर ओ ई बात चिचिआ कऽ कहैत। हाथमे छड़ी, आँखिपर टुटल-फुटल चश्मा, धोती पहिरने, ओकरे ओढ़ने। ओ हमरे गामसँ सटल गामक छलाह। हमर पितियौत बाबी ओही गामक रहथि। तँए हुनकासँ बेसी ओ अपेक्षा रखैत छल। ओकरा एक तम्मा चाउर देल जाइत तखने लैत, मुट्ठी भरि नहि। जौं मुट्ठी भरि देबाक कियो चेष्टा करैत तऽ ओ चिकरैत-भोकरैत चलि जाइत। मास-दू-मासमे एकबेर अबैत आ भरि तम्मा भीख भेटलाक बाद ओहि दिन दोसर घर नहि जाइत। कड़क अबाज, ब्यवहारक रुक्षता ओ भीखमांगक अन्दाज ओकरा ओहू अवस्थामे अलग पहचान दैत छल। कहि नहि की भेल जे ओकर एहन आर्थिक पतन भेल। निश्चय ओ एकटा अलग लोक छल।

स्कूलक रस्तेसँ अल्‍हाक ढोलकक थाप सुनाइत छलैक। होइत जे दौड़ कऽ रस्ता फानि कऽ अल्‍हा सुनए पहुँच जाइ। घर पहुँचते बस्ता रखितौं आ भागितौं।

माए कहथि-

पहिने किछु खा तऽ लिअ।

माएक गप्प सुनिते कहि दियनि-

आबि रहल छी।

आ अल्‍हा सुनए पहुँच जाइ। हमरा गाममे अल्‍हाक बहुत रेवाज छलैक। दुपहरिया कटबाक ई उत्तम साधन छल। भरि गामक लोक सभ जमा होइत आ अल्‍हाबला जोशा-जोशा कऽ ढोलकपर थाप मारैत आ गबैत अल्‍हा-रुदलक अनेकानेक प्रकरण सुनबैत-

बाबू सुनो हमारी बात, एक दिन की नहीं लड़ाई, गाबत बीत जाय बारह मास...।

एहि तरहक पाँति सभसँ गीतमय कथानक रूचिगर छल। बच्चा सबहक हेतु ओ बहुत आकर्षण छल। बेरा-बेरी कतेको दरबज्जापर अल्‍हाक आयोजन होइत रहैत छल। ओ नट हमरा गाममे बहुत प्रसिद्ध भए गेल छल। गाम-घरमे सामान्यत: लोककेँ एहि तरहक मनोरंजन उपलब्ध छल। ओहि समयमे टेलीवीजन नहि रहैकतहिया रेडियो सेहो ककरो-ककरो रहए। तँए किछु तऽ चाही।

गाममे सामान्यत: लोक भोरे उठि जाइत अछि। हमर बाबा तऽ भोरे उठि कऽ सभ काज कऽ जन अढ़ा कऽ आबि जाइत छलाह, तखनो चहल-पहल कमे रहैत छल। हमहूँ नित्य नियमित नवका पोखरिमे स्नान करी। ओहिठाम भगवान शिवक पंचमुखी मूर्ति छल, पूजा करी, जल ढारी, व्यायाम करी, तखन घर आबी। स्नान करए जाइत रस्तामे हारमोनियमपर भजन गबैत मधुर अबाज सुनएमे अबैत रहैत छल। गामसँ उत्तर-पच्छिम मन्दिरपर ओ पुजारी छलाह, सिघिंऔन गामक। हुनक स्वरक मधुरता समस्त वातावरणमे बहुत आनन्द भरि दैत छल।

सूर्योदयसँ पूर्व हमर स्नान भए जाइत छल। पोखरिमे धराधर डुबकी लगाबी। जाड़क मासमे तऽ यैहले-वैहले स्नान भए जाइत छल। गर्मीमे कनी-मनी हेलनाइ सेहो होइक ओहि समयमे कुट्टीपर आरतीक घड़ी-घण्‍ट टनाटन करए लगैत छल जे बड़ीकाल धरि चलैत रहैत छल। कुट्टीक बाबा बहुत संग्रही रहथि। ओ बहुत रास गाए पोसथि। मुदा एक राति चुप्पे मन्दिरसँ समान सभ लऽ चलि गेलाह।

सन् १९६१मे सम्पूर्ण रामायण सिनेमा आयल छल। लॉडस्पीकर-पर गामक गाम प्रचार होइत- देखना मत भुलियेगा, शंकर टॉकिज- मधुबनीकेँ विशाल पर्दे पर सम्पूर्ण रामायण...।

म्पूर्ण रामायण देखए गाम-गामक लोक उनटि गेल छल। हमरो गामसँ कतेको देखए गेलाह। ओ सिनेमा कतेक चलल से नहि गनल जा सकैत अछि। ओहि सिनेमाक गीत सभ अखनो हम  सुनैत छी तऽ स्वत: अपन वाल्यावस्थामे वापस चलि जाइत छी।

 बदलो बरसो नयन की ओर से...।


हम रामचन्द्र की चन्द्रकला से...।

ई दुनू गीत तऽ हम बेर-बेर  सुनैत रहैत छी। मोन होइत अछि एकबेर ई गीत अहूँकेँ सुना दी। चलू फेर कखनो। जखन कखनो ई गीत  सुनैत छी तऽ स्वत: आँखि नोरसँ भरि जाइत अछि।

'सीता-जन्म वियोगे गेल, दुख छोड़ि सुख कहिओ ने भेल।'

जगतजननी मैथिली-सीतामैयाक दुखक वर्णन करैत ई गीतमे भावनाक अद्भुत विस्‍फोट अछि। सामाजिक कुब्यवस्था आओर सामन्वादी सोचक विद्रोह स्वरुप अपन सन्तान द्वारा अन्यायक प्रतिवाद करैत ई गीत-

हे राम तुम्‍हारी रामायण तब तक होगी सम्पूर्ण नहीं...।

जब तक राज्य के निर्माता, धोबी की बात में आएंगे,

भारत भविष्य की माता को धोखे से वन में ठुकराऐंगे...।

एहि गीतक एक-एक शब्द रोमांचित करैत अछि। कतेक अन्याय सहए पड़ल मिथिलाक ओहि यशस्‍वी सन्तानकेँ। खैऱ! चलू आगू बढ़ी...।

जीवन यात्रामे एहन कतेको दृश्य अछि, जे मोनमे गड़ि जाइत अछि। जानकीक संग एना किए भेलनि? सोचैत रहि जाएब, मुदा उत्तर नहि भेटत। बाबूजी कएक बेर बजैत रहथि-

विधि वाम की करनी कठिन, जस सियहि किन्है बाबरो...।

यद्यपि समय बहुत आगाँ बढ़ि गेल अछि, लोकक विचारो बदलल अछि, तथापि सीता सदृश अनेको मैथिलानी अखनो चौबटियापर न्यायक बाट तकैत देखल जाइत छथि।

धिया-पुताक छोट-छोट बात ओकर भावी जीवनक दिशा निर्देश करैत अछि। हमरा बच्चामे खेलबाक बहुत जतन रहए। आस-पासक बच्चा सभकेँ पकड़ि-पकड़ि कऽ खेलक हेतु इकट्ठा करी। कएक तरहक खेल होइत रहए, बिनु खर्चक आ बिनु कोनो झंझटक- जेना कबड्डी, विट्टू, फूटबॉल, बालीबॉल आदि। कबड्डी तऽ हमरा दरबज्जेपर होइत रहए। स्कूलसँ अबिते देरी  खेलमे लागि जाइत रही। फूटबॉल हमरा गाममे बहुत प्रचलित छल। विष्‍णुपुर टोलसँ सटल खेलक मैदान छल, जाहिमे बरोबरि खेल होइत रहए। बादमे हाई स्कूल बनि गेलाक बाद ओकरे मैदानमे खेल होबए लगलै। पुरना समयमे हमर गामक फूटबॉल टीम बहुत प्रसिद्ध छल। हमर बाबूजी सेहो बढ़ियाँ खेलाइत छलाह। ओ कहथि जे खेलक चक्करमे पढ़ाइ चौपट्ट भए गेल। वाट्सन स्कूल- मधुबनीक छात्र रहथि आ गेनखेलीमे जतए-ततए चलि जाइत रहथि। हुनका कतेको मेडल सेहो भेटल रहनि। जँ आजुक समय रहैत तऽ बाते अलग रहैत। शायद हुनका अफसोच नहि करए पड़ितनि। मुदा ओहि समयमे तेहन परिस्थिति नहि रहए। कलकत्ता गेल रहथि तऽ मोहनबगानमे गेनखेलीमे चुनाव भए गेल रहनि मुदा थोड़बे दिनक बाद गाम आपस चलि अयलाह। लोक सभ बुझेलकनि जे गाममे कोन कमी अछि जे अहाँ कलकत्ता अयलहुँ, आदि-आदि अनेको बात कहलकनि। पश्चात गेनखेलीसँ हुनका ततेक परहेज देखिअनि जे जँ हम कहिओ खेलैत देखा जइतहुँ तऽ पकड़ि कऽ लऽ आबथि। जेना खेलकेँ पढ़ाइक शत्रु मानए लगलाह। परिणाम भेल जे हम खेलक मामलामे चौपट्ट भए गेलहुँ आ सदा-सर्वदाक लेल खेल-धूपसँ विरत रहि गेलहुँ।

एकबेर केना-ने-केना पैसाक जोगार कऽ बड़का गेन किनलहुँ। बच्चा सभ मिलि ओहिमे हवा भरलहुँ। आ कुट्टीक महारपर खेलए गेलहुँ। ओ जगह गामसँ कनियेँ हटल अछि। तँए मोनमे ई आशा रहए जे पकड़ल नहि जाएब, मुदा केना-ने-केना बाबूजी ओतहुँ पहुँच गेलाह, हमरा देखिते तमसाए लगलाह। खेल बन्द भए गेल। एवम् प्रकारेण हम ई सभ निठ्ठाहे छोड़ि देलहुँ आ सोलहन्नी कितावसँ चिपकए लगलहुँ। ओना, एहिसँ पढ़ाइमे फायदा भेल, मुदा खेल-धूपसँ हटि जेबाक कारण कएकटा क्षति सेहो भेल। हमरा हिसाबे ई ठीक नहि भेल, मुदा समय-समयक बात होइत अछि।

ओहि समयमे जे भेलैक से भेलैक। आब लोकक दृष्टिकोण बदलि रहल छैक। खेलक प्रति लोकक सकारात्मक रूखिसँ बच्चाक सर्वांगीण विकास होइत अछि। सामाजिक पक्ष मजगूत होइत अछि एवम् ओकर स्वभावमे सहनशीलता ओ सामंजस्य करबाक भावना बढ़ैत छैक। परीक्षामे अंक आनि लेबे सभ किछु नहि अछि। ओहिसँ हटियो कऽ जीवनक अनेक पक्ष अछि, जाहिपर ध्यान देबाक जरूरी अछि, जाहिसँ जीवन बेसी सुखी ओ शान् रहि सकैत अछि।

ई निश्चय जे माता-पिताक मोनमे सन्तानक कल्याणक कामना रहैत अछि मुदा ओकरा अपन आकांक्षा किंवा मनोरथक प्रतिविम्ब बनेबाक प्रयास कएक बेर बच्चाक विकासमे बाधक भए सकैत अछि आ भगवानक दृष्टिमे सभ मनुक्ख अपना आपमे एक अद्भुत रचना अछि आ सभ किछु-ने-किछु विशेषता, विशेष क्षमता लऽ कऽ अबैत अछि। परिवार आओर   विद्यालयक दायित्व अछि जे ओकर विशेषताकेँ बुझए आ ओहि दिशामे ओकरा विकासक समुचित सुविधा सेहो भेटए ।  डाक्ट, इन्‍जीनियर बनि जाए, एतबे जीवनक अन्तिम सत्य नहि भए सकैत अछि।

हमरा गामसँ उत्तर-पूबमे चौकसँ कनिक्के हटि कऽ एकटा मन्दिर अछि। जकरा कुट्टी सेहो कहल जाइत अछि। ओहिठाम सावनमे सभ साल झूला ऊत्साहसँ मनाओल जाइत छल। भजन-कीर्तनक गायन होइत छल। आस-पासक गामक लोक साँझमे ओहिठाम एकट्ठा होइत छलाह। कार्यक्रमक अन्मे प्रसाद वितरण होइत छल। कुट्टीपर बाबाकेँ बहुत रास गाए छलनि। ओही गाएक दूधसँ प्रसाद बनाओल जाइत छल, जाहिमे पर्याप्त मात्रा दूध आ मुट्ठीपर चाउर दऽ कऽ पायस बनाओल जाइत छल। धिया-पुताकेँ ओ पायस खेला बाद स्वर्गक आनन्द भेटैत छल। बड़का थाड़मे पायस राखि कऽ बाँटल जाइत छल। मुदा लोककेँ पायस बहुत कम मात्रामे देल जाइत छल। मुँहमे पायस जाइते देरी लगैत जे गलि गेल। स्वादिष्ट, मधुर एवम् मनमोहक। बच्चा सभ पायस लेबाक हेतु बारंबार प्रयास करैत छल। धक्का-मुक्की होइत छल। वारिक हमरे टोलक रहैत छलाह। ओ सदिखन एहि बातक ध्यान रखैत छलाह जे अपना-लेल पर्याप्त मात्रामे पायस बाँचि जाए, मुदा लोकक आक्रमण देखि ओ फिरसान भए जाइत छलाह। एक बेर तऽ पायसक बट्टा लेने ओ पोखरिमे कुदि गेलाह आ अन्दर पानिमे जा कऽ ताबरतोर पायस सुरकए लगलाह। चारूकात गामक धिया-पुता ओ युवकगण एहि दृश्यकेँ देखैत रहि गेलाह। हमहूँ पोखरिक कातमे आन-आन बच्चा सबहक संगे एहि दृश्यकेँ देखैत रहि गेल रही, जे अखनो धरि नहि बिसराएल।

बाबूजी साइकिलसँ मधुबनी जाइत रहैत छलाह। कहिओ-काल किछु-किछु फरमाइस कऽ दियनि। एकबेर पेन अनबाक हेतु कहलियनि। सड़कक कातमे ठाढ़ भेल बड़ीकाल धरि बाट तकैत रही जे बाबूजी पेन लऽ कऽ आबि रहल छथि। जतेक साइकिल देखा पड़ैत, देखिते होइत छल जे वैह आबि रहल छथि। कतेको काल धरि बाट तकलाक बाद बाबूजी साइकिलपर अबैत देखेलथि। थाकल, अपसियाँत भेल बाबूजीकेँ साइकिलसँ उतरिते पुछलियनि- बाबूजी, पेन अनलहुँ?”

बजला- जा! बिसरा गेल..!”

सुनिते देरी बहुत निराश भए गेल रही। पश्चात वौसबाक हेतु बाबूजी अपन हाथसँ घड़ी निकालि कऽ हमरा हाथमे पहिरा देलाह। शर्त ई जे घड़ी देखि कऽ पढ़ब।

मधुबनीमे सर्कस आयल छल, राति-के फोकस लाइट छोड़ल जाइत छल जे दूर-दूर धरि देखल जाइत छल। बाबूजीकेँ खुशामद कएल हम आ बाबूजी सर्कस देखलहुँ। तरह-तरहक व्यायाम, खेल, धूप आदि ओहि सर्कसमे देखाओल गेल। ततबे नहि, बाघक संग सर्कसमैनक खतरनाक खेल सेहो देखाओल गेल छल। गाम-गामसँ सर्कस देखबाक लेल महिनो भरि लोकक ढवाहि मधुबनीमे लागल रहैत छल। सर्कस देखि कऽ स्वर्गक आनन्द भेल रहए। तरह-तरह केर व्यायाम ओ खतरनाक खेल सभ एकट्ठे देखबाक एहन अवसर गाम-घरमे कम अबैत छल।

हम सभ बच्चा रही तऽ हमरा गामक एक महान संत श्रीपति स्वामीक चर्चा होइत रहैत छल। ओ गौर वर्णक ओजस्‍वी लोक छलाह। सन्यासी रहथि। हाथमे दण्ड-कमण्डल रहनि। माए कहथि जे गीता पढ़ैत-पढ़ैत हुनका मोनमे वैराग्य उत्‍पन्न भए गेल आ ओ जबानिएमे सन्यास लऽ लेलाह। ओ कहिओ काल गाम अबैत छलाह आ अपन शिष्‍यक ओहिठाम रहैत छलाह। गामक पुस्तकालय आओर नवका पोखरिपर लोक सबहक संग ओ धर्म चर्चा करैत छलाह। ओहि समयमे गामक प्रतिष्ठित व्यक्तिमे ओ गनल जाइत छलाह।

गामक पुस्तकालयपर तरह-तरह केर खेलक सामग्री सभ सेहो लागल छल। किछु दिनक बाद एक-एककेँ ओ सभ टुटैत गेल आ क्रमश: नष्टभए गेल। पुस्ताकलयमे थोड़ेक समय धरि बहुत गहमा-गहमी रहैत छल। अखबार, रेडियो अथबा पुस्तक सभ सेहो ओहिमे छल। १९६२ ई.मे, जे चीन युद्धक समय छल, रेडियोसँ समाचार सुनबाक हेतु लोकक भीड़ लागि जाइत छल। एहि सभमे हमर गामक स्व. विश्वम्भर झाजीक गंभीर योगदान छल। दुर्भाग्यवश ओ बेसी दिन नहि रहि सकला। सन् १९६९ मे कमे बएसमे हुनकर देहावसान भेलाक बाद ई सभ गतिविधि नष्ट भए गेल।

गाम-घरक आस-पास एक-सँ-एक प्रतिभाशाली बच्चा सभ छल। ककरो स्वर बहुत नीक छलैक तऽ कियो पहलमानीमे निपुण छल। कियो मधुर गायन आ वाद्ययंत्रक प्रति आकर्षित छल तऽ कियो किछुमे...। मुदा परिवार वा स्कूलमे एहि सबहक विकासक संभावना नगण्‍य छल। परीक्षामे रटि-फटि कऽ नीक अंक अनलहुँ तऽ बड़ नीक अन्यथा सभ व्यर्थ..! एहन बच्चाकेँ नकारा घोषित कऽ देल जाइत छल। परिणामत: कएटा बच्चा जे जीवनक कतेको क्षेत्रमे अग्रगामी भए यशस्‍वी भए सकैत छलाह,ओ विषादपूर्ण जीवन जिबय लेल विवश भेलाह। हमर गामेक एहन कएटा बच्चा छल जिनकामे गेबाक बहुत सामर्थ्‍य छलनि। बिना कोनो प्रशिक्षण लेने जे ओ मैथिली गीत सभ गाबथि से बुझू सुनिते रहि जइतहुँ। मुदा हुनका सभकेँ कोनो प्रकारक संरक्षण, प्रशिक्षण नहि भेल। सभ कलान्रमे गाँजाक सोंट लगबैत अपन-अपन स्वरकेँ नष्ट कए लेलथि।

बच्चामे हमरो हारमोनियम सीखबाक इच्छा भेल। जेना-तेना पैसाक प्रवन्ध कऽ मधुबनी जा कऽ अपनेसँ एकटा हारमोनियम कीनि अनलहुँ। गाममे एक गोटे हारमोनियम बजाएब जनैत छलाह। हुनकासँ हारमोनियम सीखए लगलहुँ कि गामक बुझनुक लोक सभ हमरा बाबूजीकेँ आबि शिकाइत केलकनि। शिकाइतो एना केलकनि जे ई बच्चा तऽ दुरि भए रहल छथि। केहन बढ़ियाँ पढ़ैत छलाह। आ ताहिपर सँ ध्यान हटि गेलनि..!’ परिणाम भेल जे हम हारमोनियम सीखब छोड़ि देलहुँ। हालाँकि थोड़-बहुत जे हारमोनियम सीखि सकलहुँ, ओ अखनो अबिते अछि। मुदा ततबे...। जे कि किछु लय निकालि सकैत छी मुदा अखनो धरि हम ई नहि बुझि सकलहुँ से कोन तरहेँ हारमोनियम सीखब खराप होइत। खैर! जे हौउ, मुदा पढ़बै-लिखबैमे हमर बाबूजीकेँ बहुत रूचि रहनि, जे कि हरिदम उत्‍साहित करैत रहैत छलाह, आ से मात्र हमरे नहि, गामक आनो-आन बच्चा सभकेँ। बाबूजी जइले प्रेरित करैत रहथि, तकर फायदा तऽ भेबे कएल आ भइए रहल अछि। परीक्षा सभमे लगातार हमरा नीक अंक आयल। मुदा कहक माने जे परीक्षाक अंक अनबाक अतिरिक्त जीवनक अन्य आयाम थिक जकर बुझबाक, विकासक गाम-घरमे कोनो जोगार ने तहिया छल आ ने आइये भए सकल।

भाग्यम फलति सर्वदा, न विद्या न च पौरुष:

कहल जाइत अछि जे विधाता जन्मसँ पूर्वे मनुक्खक भाग्य लिखि कऽ पठा दैत छथि। हमर स्कूलक प्रयोगशाला कक्षमे उपरोक्त पाँति मोट-मोट अक्षरमे लिखल छल। जीवन यात्राक क्रममे घटित नाना प्रकारक घटना एवम् अनका-अनका जीवनक तथ्‍य दिस देखि, सुनि ई कथन एकदम सत्य लगैत अछि। एक आदमी जनमिते जीवनक समस्त सुख-सुविधा सम्पन्न भए जाइत अछि, दोसर तरफ कतेको एहन लोक छथि जे जीवन भरि जीबाक हेतु संघर्ष करैत रहि जाइत अछि। तकर माने ई नहि जे भाग्यपर छोड़ि कऽ आदमी कर्तव्यहीन भए जाए, आ कामना करैत रहि जाए जे- जे भाग्यमे हेतै से हेतइ। प्रयास तऽ करब उचिते अछि,मुदा ई बात मानि कऽ चलू जे सभ किछु अपने मोनक नहि भए सकैत अछि। जँ अपना मोनक हो तऽ नीक आ जँ अपना मोनक नहि हो तऽ आओर नीक। कारण ओहिमे ईश्वरक इच्छा सम्‍मिलित रहैत अछि। बेचैन रहलासँ बढ़ियाँ अछि जे नियतिकेँ स्‍वीकार कए मोनकेँ शान् राखल जाए, कारण शान् मोनमे विकासक अनन् सम्‍भावना रहैत अछि।

बच्चाक दुनियाँ माए-बाप, काका काकी किंवा आस-पासक अन्य निकट सम्बन्धीक इर्द-गिर्द सिमटल रहैत अछि। ओकर सम्पूर्ण व्यक्तित्वक निर्माणमे परिवार आओर पारिवारिक परिस्थितिक गंभीर प्रभाव होइत अछि। आस-पासमे रहनिहार लोक एवम परिवेश सेहो ओकरा प्रभावित करैत अछि। निश्चित रूपसँ हम एहि मामलामे भाग्यवान रही। माता-पिता आओर पितामहक बहुत सिनेह आओर समर्थन हमरा भेटल।

९ भाए-बहिनक पैघ परिवारमे कखनो ई नहि भेल जे कियो किनकोसँ कम महत्वपूर्ण छल। सभपर बरोबरि ध्यान देल गेल। हमरासँ ज्‍येष्ठ पाँचटा बहिन छली। हुनका लोकनिक बिआह-दान एकटा दीर्घकालीन घटना क्रम छल। १०-१२ वर्ष लगातार घरमे बिआह, कोजागरा, मधुश्रावणी, द्विरागमन सहित नाना प्रकारक विध-ब्यवहार होइत रहल। एतेक भारी पारिवारिक जिम्‍मेदारीक अछैत माए-बाबूजी बहुत आशावादी आओर आस्थावान छलाह। हमरा निरन्र आगू बढ़बाक हेतु प्रेरित करैत रहलाह। गामक लोकक आओर  परिवेशक सकारात्मक रूखि सेहो हमरा उत्‍साहित करैत रहल। ओ सभ प्रणम्य छथि, जिनकर स्मरण करैत-करैत हम ओहि गामसँ दूर रहितो सदिखन अपनाकेँ ओहीठाम अनुभव करैत रहैत छी।