“आब हमसभ कामाख्या जेबाक कार्यक्रम बना सकैत छी।”
”ठीक छैक। आब जखन अहाँ सहमति दए देलिऐक तँ चलबे करब।”
तकर बाद इसंपदा वेबसाइटपर जा कए गुवाहाटीमे रहबाक हेतु घरक उपलब्धता जँचैत रहलहुँ। एकदिन संयोगसँ नओ अप्रैलसँ चौदह अप्रैल धरिक रहबाक जोगार बुझाएल। बीचमे एगारह अप्रैल कए खाली नहि रहैक। नओसँ चौदह अप्रैलक बीचमे अलग-अलग तारिखक हेतु चारिबेर आरक्षण करबए पड़ल। कारण एक्के कोठरी सभदिनक हेतु उपलब्ध नहि रहैक। जे भेटल,जेना भेटल ओकरा तुरंत आनलाइन आरक्षित करबा लेलहुँ। तकर बाद गुवाहाटी जेबाक आ वापसीक हबाइ जहाजक टिकट सेहो बनबा लेलहुँ। तकर बादे हुनका कहलिअनि-
“हेयै! सुनैत छी।”
“की बात?”
“एमहर आउ। देखिऔ ने की छैक।”
हुनको उत्सुकता भेलनि। हमर लैपटाप लग पहुँचलथि। हम हुनका गुवाहाटीमे सीपीडब्लुडी अतिथिगृहमे कएल गेल रहबाक व्यवस्थाक जानकारी देलिअनि। ओ आश्चर्यचकित रहथि जे एतेक जल्दी ई सभ कोना भए गेल।
एगाराह अप्रैलक रहबाक व्यबस्था अखन करबाक छल। कैकटा विकल्प मोनमे अबैत छल। जेना कि ओहिदिन कामाख्यामे रहि जाइ,चीरोभाइ ओहिठाम चलि जाइ,किंवा शिलांगमे रहबाक जोगार करी। एहीक्रममे नेटपर देखैत रही कि शिलांगमे आयकर विभागक अतिथिगृह हेबाक जनतब भेटल। संबंधित अधिकारीक फोन नंबर सेहो भेटि गेल। हम हुनका अपन जरुरतिक बारेमे लिखलिअनि। आश्चर्य तखन भेल जे थोड़बे कालक बाद हुनकर सहमति भेटि गेल। एहि तरहेँ एगारह अप्रैल कए शिलांगमे रहबाक जोगार सेहो भए गेल।
गुवाहाटी आ शिलांगमे रहबाक जोगार भए गेल छल। दुनूदिसका हबाइक जहाजक टिकट सेहो भए गेल छल। आब कामाख्या भगवतीक दर्शनक जोगार करबाक छल। नओ अप्रैल कए गुवाहाटी हबाइ जहाज साढ़े एगारह बजे पहुँचैत। तकरबाद सभसँ पहिने डेरा जेबाक होएत। ओहिठाम व्यबस्थित हेबाक बादे किछु आओर कएल जाएत। तेँ ओहिदिन कामाख्या भगवतीक दर्शनमे दिक्कति भए सकैत अछि। से सोचि हम दस अप्रैल कए कामाख्या भगवतीक दर्शन करबाक विचार केलहुँ। ओहिठाम दर्शन करबाक हेतु विशेष दर्शनपर्ची आनलाइन सात दिन पहिने कटनाइ शुरू होइत छैक। अस्तु, चारि अप्रैल कए हम कामाख्या भगवतीक विशेषदर्शनक हेतु आनलाइन टिकट कटओलहुँ। ताहि हेतु प्रति यात्री पाँचसए एक रुपया देबाक होइत छैक। दुनूगोटेमे एक हजार दू रुपया आनलाइन भुगतान केलाक बाद हमरसभक विशेष दर्शन टिकट सेहो कटि गेल। से तँ भेल,मुदा दूदिनक बाद हमर श्रीमतीजीक मोन खराप भए गेलनि। बोखार,खाँसी,आँखि लाल कतेको तरहक सिकाइतसभ भए गेलनि। आब की करी? हम तँ परेसान भए गेलहुँ। हबाइ जहाजक टिकट रद्द कराएब तँ भारी घाटामे पड़ब। एही समयमे बुझाएल जे हबाइ जहाजक टिकट लेबा काल रिफंडेबल टिकट लेबाक चाही जाहिसँ किछु गड़बड़ भेलापर रुपया वापस भए जाए। मुदा एहि बेर तँ हम फँसि गेल रही। मोने-मोन माताकेँ गोहरेलहुँ। आब जानह तूँ हे माता!
तुरंत हुनका डाक्टर लग लए गेलहुँ। आँखि उठि गेल रहनि,देहमे बोखार रहनि,सर्दी-खाँसी तँ रहबे करनि। डाक्टरसभ दबाइ लिखलक। तुरंत दबाइ कीनलहुँ। संयोग एहन भेल जे दोसरेदिनसँ हुनकामे बहुत सुधार होमए लगलनि। दूदिनक बाद तँ बारह आना ठीक भए गेलथि।
“आब कोनो चिंता नहि।“-हम मोने-मोन सोचलहुँ।
तेसरदिन भेने हुनकर हालति बहुत सुधरि गेल रहनि,बोखार उतरि गेल रहनि,सर्दी-खाँसी से कम भए गेल रहनि। आँखि सेहो आब लाल नहि छलनि। आब लागल जे बचि गेलहुँ। हमसभ प्रसन्न रही। माताकेँ वारंबार धन्यवाद देलिअनि ।
आखिर नओ अप्रैल आबि गेल। भोरे सातबजे हबाइअड्डा पहुँचबाक हेतु छओ बजे हमसभ अपन घरसँ बिदा भए गेलहुँ। सातबजे हबाइ अड्डा पहुँचि गेलहुँ। धराधर सभटा काज संपन्न भए गेल। सामानसभ चेकइन भए गेल। दुनूगोटे सुरक्षाजाँचक बाद द्वारिसंख्या ४५पर पहुँचि गेलहुँ। आब हमसभ निचेन छलहुँ। हबाइ जहाजकेँ उड़बामे घंटा भरिक समय रहैक। ताबे विश्राम केलहु,फोनपर गप्प-सप्प केलहुँ। से सभमे लागले रही कि हबाइ जहाजमे बोर्डिंग करबाक घोषणा भेलैक। हमसभ तुरंत अपन पाँतिमे आगूए लागि गेल रही। देखिते-देखिते हमसभ अपन-अपन सीटपर बैसि गेलहुँ। थोड़बे कालक बाद हबाइ जहाज सैकड़ों यात्रीक संग उड़ि गेल।
जहाजक उड़ैत काल खिड़की बाटे बाहर देखैत रहलहुँ। क्रमशः धरती दूर भेल जाइत छल। चीज-वस्तुसभ बिला रहल छल। थोड़बेकालमे तँ हमसभ चिरैओसँ बेसी भए गेल रही। मस्त गगनमे हबाइ जहाजमे बैसल विचरण करैत रही। मुदा नीचाँ देखलासँ किछु नहि देखि पाबी।सभ जेना शून्यमे विलीन भए गेल छल। साकारसँ निराकारक रुप्यान्तरणक विहंगम दृश्य सद्यः उपस्थित छल।
९ अप्रैल २०२४क नओ बाजि कए दस मिनटपर दिल्लीसँ उड़ल हबाइ जहाज ठीक साढ़े एगारह बजे गुवाहाटी हबाइ अड्डापर उतड़ल। हमसभ सामान लए बाहर होइते काल उबेरक टैक्सी आरक्षित करा लेलहुँ आ बहुत आसानीसँ एक घंटामे सीपीडब्लुडीक अतिथिगृह पहुँचि गेलहुँ। ओहिठामक मनेजरकेँ अपन आरक्षणक कागज देखओलिअनि। ओहिठाम पाँच दिन रहबाक हेतु हमरा लग चारिटा आरक्षण पुरजी छल,अलग-अलग दिनमे अलग-अलग कोठरी। से देखि कए मनेजर बजैत अछि-
“अहाँ आरक्षण रातिमे केने रही की?”
हम ओकरा इसारा बुझि नहि सकलिऐक।
“नहि,नहि। आरक्षण तँ दिनेमे केने रही।”
ओ ओहिमेसँ एकटा कागज राखि लेलक ।
“आर कागजसभ बादमे दए देब।“
जे अपने जेहन होइत अछि तकरा सभ तेहने सोचाइत छैक। असलमे ओ स्वयं पीबाक छल। बादमे ओकरा कैकबेर हम अन्यकर्मचारीक संग ओतहि पीबैत देखिऐक।
गुवाहाटी हबाइ अड्डासँ डेरा अबैत काल टैक्सीबलासँ गप्प-सप्प केलाक बाद लागल जेना एकरा संगे आगिलो यात्राक जोगार लागि सकैत अछि। हम ओकरा कहलिऐक-
“हमरासभकेँ कामाख्या भगवतीक दर्शन करबाक अछि। आनो मंदिरसभ जेबाक अछि। तकर बाद काल्हि गुवाहाटी सहर घुमबाक अछि। बादमे शिलांग आ चेरापुंजी सेहो जा सकैत छी। की तूँ हमरासभकेँ घुमा सकैत छह? ”
“किएक ने? हमर तँ काजे इएह थिक। ”
“कतेक खर्चा लागत?”
“आइ कामाख्या भगवतीक दर्शन कराएब। तकर बाद भुवनेश्वरी भगवती आ आर जतेक पार लागत घुमा देब।”
“खर्चा?”
“अठारह सए लागत।”
“ठीक छैक। तूँ एतहि रूकि जाह। हमहूँसभ तैयार भए जाइत छी। फेर बिदा होएब।”
मंगल दिन रहबाक कारण हमरालोकनिक उपास छल। तेँ भोजन तँ करबेक नहि छल। अस्तु,थोड़बे कालक बाद हमसभ तैयार भए गेलहुँ। ओना माता कामाख्या मंदिरमे विशेष दर्शन पुरजी काल्हुक बनल छल,माने दस अप्रैलक भोरुका पहरक। मुदा हमसभ आइए कामाख्या मंदिर बिदा भए गेलहुँ।
“सभसँ पहिने माताकेँ हाजिरी लगाओल जाए।“-हमसभ सोचलहुँ।
लगभग आधाघंटाक बाद हमसभ कामाख्या मंदिर लग पहुँचि गेल रही। मंदिरक बाहरे एकटा पंडितजीसँ भेंट भेल। हम हुनका कहलिअनि-
“दर्शनक जोगार भए सकैत छैक की?”
“भए जाएत ,मुदा एकहजार रुपया लागत।”
“कोनो बात नहि। नीकसँ दर्शन करा देबैक ने?”
“निश्चिन्त रहू। हमर नित्यप्रतिक इएह काजे अछि।”
हम दुनूगोटे पंडितजीक पाछू-पाछू बिदा भेलहुँ। ओ केना-केना घुमबैत हमरासभकेँ कामाख्या मंदिरक मूल भागमे लेने चलि गेलथि जे गर्भगृहक ठीक सामने छल। गर्भगृहमे पाँति लागल जाइत लोकसभकेँ हम देखि रहल छलहुँ। हमरासभकेँ पंडितजी ओतहिसँ माताक पूजा करबओलथि। तकर बाद हमरासभकेँ प्रसाद आ फूलक संग एकटा दोसर पंडितजीकेँ सुनझा देलनि। ओहिसँ पहिने हुनका पाँचसए रुपया आर देल गेलनि। दोसर पंडितजी हमरासभकेँ कातबाटे लेने-लेने एकठाम ठाढ़ कए देलाह आ अपने प्रसाद लए कए माताक गर्भगृहमे चलि गेलाह।
“अहाँसभ एतहि प्रतीक्षा करू। हम प्रसाद चढ़ा कए आबि रहल छी। “
जेबासँ पहिने ओ हमरासभकेँ मंदिरक देबालपर नारियल फोड़बाक हेतु कहलनि। हम जोरसँ ओकरा पटकि देलिऐक। असलमे नारियलक पानि सामनेक देबालपर ढारबाक रहैक। मुदा ओकर पानि तँ पहिने खसि चुकल छल। एकटा बृद्धा अपन नारियल फोड़बाक हेतु हमरा कहलनि। हम एहि बेर ओकर तर्क बुझि गेल रहिऐक। ओकरा हिसाबेसँ पटकलिऐक जाहिसँ ओ फुटि तँ गेलैक,मुदा ओकर पानि बाहर नहि खसलैक,बाँचल रहि गेलैक। ओ बहुत प्रसन्न भेलीह आ अपने हाथे ओहि नारियलक पानि देबालपर ढारि देलनि। हमसभ पंडितजीक बाट ताकि रहल छलहुँ। मुदा ओ कतहु देखेबे नहि करथि। मोन औना गेल। ताबे हम पहिलुका पंडितजीकेँ देखलिअनि। ओ हमरासभकेँ आश्वस्त केलनि। बादमे ओएह किछु-किछु आर पूजा करओलनि। कन्याभोजन हेतु किछु दान करबाक हेतु उत्साहित केलनि। श्रीमतीजीक इच्छा देखैत हम छओसए रुपया आर एहि हेतु हुनका देलिअनि। आब हुनका हाथक पूजा समाप्त भए गेल छल। दोसरो पंडितजी प्रसाद चढ़ा कए आबि गेल छलाह। हमसभ हुनकासँ प्रसाद लए बाहर दिस बढ़लहुँ। मंदिरक बाहर बाघ लग दुनू बेकती फोटो घिचओलहुँआ माताकेँ फेरसँ प्रणामक कए हमसभ बाहर बिदा भए गेलहुँ।
पंडितजीक सहयोगसँ कामाख्यामंदिरमे भयाओन भीड़क अछैत हमरा लोकनि आसानीसँ गर्भगृहक बहुत लगीच(मुदा बाहरे) सँ भगवतीक पूजा केलहुँ, बड़ीकाल धरि ओहि परिसरमे रहि आओर पूजा-पाठसभ केलहुँ,माताकेँ गोहरेलहुँ। हमर श्रीमतीजी एहिसँ बहुत संतुष्ट रहथि। नवरात्राक समय छल। ओहिठाम भक्तलोकनिक बहुत भीड़ छल। कैकगोटे बाजथि जे हुनका दर्शनमे भरिदिन लागि गेलनि। कहाँदनि विशेषदर्शनक टिकटक अछैत चारि-पाँच घंटा समय लागि रहल छल। हुनकर स्वास्थ्य से गड़बड़ेबाक डर छल। तेँ हमसभ दोबारा विशेष दर्शनक टिकटक संग दस अप्रैलक फेरसँ दर्शन करबाक प्रयास नहि केलहुँ।
मंदिरमे बाहर आ भीतर सभक ध्यान आगन्तुकसँ अधिक सँ अधिक रुपैया झिटब छल। जकरे देखू सएह ताहि लेल किछु ने किछु व्योंत केने छल। मंदिरमे भीतर जाइत काल पंडितजी वलिप्रदानक स्थान देखओलथि। अखनहु ओ स्थान रक्तरंजित छल,चारूकात दुर्गंध कए रहल छल। कनीके फटकी निर्दोष छागरसभ अपन जीवनक अंतिम क्षणक प्रतीक्षा कए रहल छल। हमरा मोनमे भेल जे धर्मक नामपर भए रहल एहि अत्याचारकेँ प्रश्रय देब बहुत अन्यायपूर्ण आ अमानवीय थिक। ई सभ अबस्स बंद हेबाक चाही। तखने जगन्नमाता प्रसन्न भए सकैत छथि। इएहसभ सोचैत हमसभ भुवनेश्वरी मंदिर दिस बढ़ि गेलहुँ।
थोड़बे कालमे हमसभ भुवनेश्वरी मंदिर पहुँचि गेल रही। ई मंदिर कामाख्या भगवतीक मंदिरसँ मोसकिलसँ एक किलोमीटर फटकी नीलांचल पर्वतक आर ऊँच भागमे अवस्थित अछि। एहिठाम चारूकातक वातावरण बहुत सुरम्य अछि। माता दुर्गाकेँ समर्पित ई मंदिर गुवाहाटीक प्रमुख आध्यात्मिक स्थानमे सँ एक मानल जाइत अछि। एतए अंबुबाची मेला बहुत भव्य तरीकासँ मनाओल जाइत अछि। मंदिरक वातावरण बहुत शांत छल। हमसभ बहुत नीक जकाँ दर्शन केलहु,थोड़ेकाल ओतए बैसि माताक आराधना केलहुँ। सामनेमे एक व्यक्ति मंदिरेमे माताक मूर्ति दिस माथ राखि सुतल रहथि। मुदा ककरो ध्यान ओहिपर नहि रहैक। लोक आएल,लोक गेल मुदा ओ ओहिना सुतल पड़ल रहल।
भुवनेश्वरीमंदिरमे दर्शनक बाद हमसभ नवग्रह मंदिर गेलहुँ । टैक्सीबला तँ आरो ठाम लए जेबाक हेतु तैयार छल। मुदा हमही सभ तैयार नहि भेलहुँ। बहुत थाकि गेल रही। भोरे चारिए बजेसँ जेबाक हेतु तैयारीमे लागल रही। तकर बादसँ किछु ने किछु भइए रहल छल।
“आब सोझे डेरा चलू।“-ओ कहलथि। हमसभ थाकल-ठेहिआएल अपन डेरा पहुँचि गेल रही। आजुक उपलब्धिसँ बहुत संतुष्ट रही,प्रसन्न रही। जतबा सोचने रही ताहिसँ बेसीए पाबि गेल रही।
दस अप्रैल २०२४क भोरे हमसभ तैयार भए गेल रही। भोरुका चाहक प्रतीक्षामे रही। अतिथिगृहक कर्मचारीसभ सुतले रहए। कतहु ककरो कोनो अता-पता नहि छल। चाहकेँ तकैत हमसभ बाहर निकललहुँ। मुदा चारूकात ओएह माहौल छल। जेना सहरे सुतल होअए। बादमे आदरणीय श्री प्रेमकान्त चौधरीजी कहलनि जे एहिठामक जीवन पद्धतिक बारेमे कहबी छैक-लहे,लहे,माने जे सभकिछु हेतैक मुदा इतमिनानसँ,कोनो धरफरी नहि,कोनो तनाओ नहि। थोड़े कालक बाद टैक्सीबला आबि गेल रहए। तेँ बिना चाह पीने हमसभ बिदा भए गेलहुँ।
आइ सभसँ पहिने उमानंद महादेवक दर्शन करबाक योजना छल। उमानन्द ब्रह्मपुत्र नदीक बीचोबीच मोर द्वीप पर स्थित एक शिव मंदिर अछि । कहल जाइत अछि जे कोनो नदीक बीचमे अवस्थित दुनिआक सभसँ छोट द्वीप थिक। एहि मंदिरकेँ १६९४ ई. मे राजा गदाधर सिंह क आदेश पर बनाओल गेल छल, मुदा १८६७ मे भूकंप सँ ई क्षतिग्रस्त भए गेल रहए। एहि मंदिरमे किछु चट्टान कटल आकृति अछि, जे असमिया कारीगरक निपुण कौशलक परिचायक थिक। ब्रह्मपुत्रमे पानि कम भए गेल छल। टैक्सीबला टैक्सीकेँ बाउलेमे चला कए हमरासभकेँ आगू धरि पहुँचा देलक। तकर बाद ओ उमानंद जाए बला स्टीमरक पता लगओलक। हमसभ ओहि स्टीमर पर पहुँचैत छी। दूटा बृद्ध यात्री पहिनेसँ ओहिपर बैसल रहथि। ओ एकटा निजी स्टीमर छल। प्रतिव्यक्ति एक दिसक दूसए टिकट छलैक। मुदा ओकर व्यवस्थापक चारू यात्रीकेँ दू हजारमे उमानंद लए जाएत आ वापसो आनत। आर यात्रीक प्रतीक्षा नहि करए पड़त। हमसभ एहि लेल तैयार भए गेलहुँ। ओहो दुनूगोटे अपन सहमति देलखिन। तकरबाद स्टीमर खुजि गेल।
ब्रह्मपुत्र नदीमे चलैत स्टीमरक बहुत आनन्दमय दृश्य छल। चारूकात शांत आ मनोरम वातावरणमे आगू बढ़ैत स्टीमरक दृश्य देखैत बनैत छल। हमसभ मोसकिलसँ पन्द्रह मिनटमे उमानन्द मंदिर लग पहुँचि गेल रही। स्टीमर रूकि गेल छल। ओहिपरसँ उतरब आ तकर बाद करीब साठिटा सीढ़ी चढ़ब कनी कष्टकर काज छल। हमरोसँ बेसी बएसक छलाह ओ दुनू यात्री। बंगालक कोनो गामसँ आएल छलाह। पत्नी हृदयरोगी छलखिन। तथापि उत्साहपूर्वक सीढ़ी चढ़ि रहल छलाह। हमहूँसभ हुनके संगे आगू बढ़ि रहल छलहुँ। बीच-बीचमे सुस्ताइतो छलहुँ। मंदिर परिसरमे पहुँचि हमसभ बहुत प्रसन्न रही,आनन्दमे रही। ओहिठाम कैकटा मंदिर अछि। बेरा-बेरीसभमे दर्शन केलहुँ। पंडितजी हमरालोकनिकेँ किछु-किछु मंत्र पढ़ओलनि,पूजा करबओलनि। हमसभ यथासाध्य दक्षिणा देलिअनि। तकर बाद बाहर निकलि थोड़ेकाल बैसलहुँ। कहि नहि सकैत छी जे ओ क्षण कतेक आनन्ददायक छल। ओहिठामसँ उठबाक मोन नहि भए रहल छल। मुदा स्टीमरसँ वापसी छल। बहुत काल नहि रहि सकैत छलहुँ। अस्तु,हमसभ थोड़ेकालक बाद वापस भए गेलहुँ। स्टीमरपर उतरब आ चढ़ब दुनू मोसकिल काज छल। कारण तकर कोनो नीक ओरिआन नहि छल। स्टीमर जेना-तेना खुटेसल छल। लगपासमे राखल पाथरसभकेँ पकड़ि ओहिपर पहुँचबाक छल। जेना-तेना हमसभ वापस स्टीमरपर पहुँचि गेल रही। ओ आब फेर ब्रह्मपुत्र नदीमे वापसी यात्रापर चलि रहल छल। हमसभ एही पृथ्वीपर स्वर्गक आनन्द लए रहल छलहुँ ,मंत्रमुग्ध छलहुँ । ताबतमे स्टीमर बला अबाज देलक-
“उतरैत जाउ ।“
घाट आबि गेल छल। हमसभ स्टीमरसँ उतरलहुँ। टैक्सी बला हमरसभक प्रतीक्षा कए रहल छल। हमसभ टैक्सीपर बैसि आगू बढ़ि गेलहुँ।
आब हमरासभकेँ जलखै करबाक छल। तकर बादे आगू बढ़ब। से बात टैक्सीबलाकेँ हम कहि देने रहिऐक। अस्तु,थोड़ेकालक बाद एकटा जलपानगृह लग टैक्सी रुकल। हमसभ ओतए नीकसँ जलखै केलहु,चाह पीलहुँ। टैक्सीबला हमरसभक आग्रहपर अपन पसिंदक जलखै-रसगुल्ला संगे चाह पीलक। हमसभ ओकर पसिंदसँ चकित रही। मुदा बादमे पता लागल जे ओहिठाम इएह चलैत छैक। जलखै केलाक बाद हमरासभकेँ आब फुरती आबि गेल छल। हमसभ टैक्सीपर बैसलहुँ आ बिदा भेलहुँ ब्रह्मपुत्र नदीक ओहिपार बनल डौल गोबिंद मंदिरमे दर्शनक हेतु। एहि मंदिरक निर्माण करीब एकसए पचास साल पुर्व कएल गेल छल। सन् १९६०मे एकर पुनर्निमाण कएल गेल। मंदिरमे फगुआ आ जन्माष्टमीक समय विशिष्ट आयोजन कएल जाइत अछि। एहिठाम पाँचदिन धरि फगुआक आयोजन होइत अछि। भगवान कृष्णक मंदिर हेबाक कारणसँ एहिठाम जन्माष्टमी तँ बहुत नीकसँ मनाओले जाइत अछि। एहि मंदिरमे प्रसादक रूपमे बहुत नीक खीर खेबाक अवसर भेटल। एहन नीक खीर हमरा गामक कुट्टीपर झूलामे बनैत छल,से मोन पड़ि गेल। खीर खेबाक लालचमे हम दोबारा प्रसाद लेलहुँ। तकर बाद ओहिठामसँ बिदा भेलहुँ।
उमानंद मंदिरमे सीढ़ी चढ़बाक कारणसँ हमर श्रीमतीजी थाकि गेल रहथि,माथ से दुखेनाइ शुरू भए गेल रहनि। हुनकर दिक्कति बुझा रहल छल। तेँ आब बेसी नहि घुमि सकैत छलहुँ। तथापि घुरतीमे वशिष्ठ मंदिर गेलहुँ । बीचमे बालाजी मंदिर सेहो आएल। मुदा हमसभ एहिठाम नहि रुकलहुँ। कहल जाइत अछि जे वशिष्ठ मंदिरक स्थापना वशिष्ठ मुनि केने छलाह। एहिठाम हुनकर आश्रम छलनि। एहिठाम कैकटा जलधारा बहैत अछि जे आगू जा कए वशिष्ठ नदी आ वाहिनी नदीक रुपमे सहर दिस बढ़ि जाइत अछि। हमसभ एहिठाम दर्शन केलहुँ, थोड़े काल सुस्तेलहुँ आ वापस अपन डेरा दिस बिदा भए गेलहुँ।
मंदिरसभमे अबैत-जाइत काल गुवाहाटी सहरक विभिन्न स्थानसभ सेहो देखैत गेलहुँ। पुरान आकार-प्रकारक एहि सहरक लोकसभ अपने ओहिठाम जकाँ लगैत छल। आसामी भाषाकक प्रति बेस अनुराग ओहिठामक लोकसभमे देखाएल। हिन्दी अखबार तकलोपर नहि भेटल। सभठाम नामपट्टपर असमिआ भाषामे विवरण लिखल छल। स्थानीय लोकसभ आसामी भाषामे गप्प केलासँ बेसी सहज देखाइत छल। की मधुबनी,दरभंगामे मैथिलीक वर्चस्व एहिना देखाइत अछि?उत्तर हमसभ जनैत छी।
२१ अप्रैल २०२४