मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

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रविवार, 9 जुलाई 2017

कानूनी आतंकवाद (भारतीय दण्‍ड संहिता धारा- ४९८ ‘ए’, IPC 498 ‘A’)




 


कानूनी आतंकवाद
(भारतीय दण्‍ड संहिता धारा- ४९८ ’, IPC 498 ‘A’)



परंपरागत रूपसँ परिवारिक जीवनमे स्‍त्री अपन पति केर सहायकक रूपमे काज करैत छल। समस्‍या तखन बढ़ि गेल जखन पति-पत्नीक आपसी सम्‍बन्‍धक कटुता परिवारक चौकैठसँ आगू बढ़ल। सहैत-सहैत महिलाक जीवन व्‍यर्थ ओ दुष्‍कर हुअ लगल, आ ओइ परिस्‍थितिसँ मुक्‍तिक एकमात्र उपाय आत्‍म हत्‍या बुझि पड़ए लगलइ। केतेको महिला द्वारा ऐ तरहेँ आत्‍म हत्‍या केलाक बाद समाजक आत्‍मा आइपीसी- धारा- ४९८ सन हिंसक कानूनक जन्‍म देलक।

ऐ कानूनकेँ लागू भेलाक बाद गलत वा सही महिला द्वारा आरोपक एफआइआर थानामे दर्ज भेला  पछाइत पति एवम्‍ ओकर परिवार–अर्थात्‍ वयोवृद्ध माता, पिता एवम्‍ छोट-छोट बच्‍चा सभ सेहो–पुलिसक कृपापर ऐ हद तक निर्भर भऽ जाइ छला जे जखन हुनका पुलिस चाहत तँ जेलमे बन्‍द कऽ दैत।

सन्‍ १९८३ मे फौजदारी कानूनमे संशोधन कऽ भारतीय दण्‍ड संहिता (आई.पी.सी.)मे अनुच्‍छेद ४९८ जोड़ल गेल जइमे मूलत: निम्नलिखित प्रावधान छल-

१.      जखन कखनो पति वा ओकर सम्‍बन्‍धी महिलाक संग क्रुड़ता करत तँ अपराधीकेँ तीन साल तकक कैद हएत, संगे जुर्माना सेहो भऽ सकैत अछि। 

ऐ अनुच्‍छेद हेतु क्रुड़ताक अर्थ अछि-

(क)    जानि कऽ कएल गेल एहेन बेवहार, जइसँ सम्‍बन्‍धित महिला आत्‍म हत्‍या करबाक स्‍थितिमे पहुँच जाए किंवा महिलाकेँ शारीरिक वा मानसिक स्‍वास्‍थ्‍यकेँ गंभीर क्षति पहुँचैक।

(ख)   सम्‍बन्‍धित महिला वा ओकर निकट सम्‍बन्‍धितसँ सम्‍पैत वा कोनो मूल्‍यवान वस्‍तुक गैर कानूनी मांग करब आ एहेन मांग नहि पूरा भेलापर वा तइ हेतु प्रतारणा करब।

भारतीय दण्‍ड संहिताक धारा ४९८ संज्ञेय, गैर जमानती और गैर-संगठित अपराध थिक। अपराध संज्ञेय एवम्‍ असंज्ञेयमे विभाजित कएल गेल अछि। कानूनी तौरपर संज्ञेय अपराधक जॉंच करब एवम्‍ शिकायत दर्ज करब पुलिसक कर्तव्‍य थिक। ४९८ एकटा संज्ञेय अपराध थिक। अपराध जमानती वा गैर जमानती भऽ सकैत अछि। ४९८ गैर जमानती  अछि। एकर माने भेल जे न्‍यायिक दण्‍डाधिकारी (मजिस्‍ट्रेट) केँ जमानत देबाक किंवा आरोपित बेकतीकेँ न्‍यायिक वा पुलिस हिरासतमे पठा देबाक अधिकार छइ। चूँकि ४९८ गैर संगठित अपराधक श्रेणीमे अबैत अछि, अस्‍तु याचिकाकर्त्ता एकरा आपस नहि लऽ सकै छैथ। (मुदा जँ सम्‍बन्‍धित पक्ष मामलाकेँ आपसमे सोझराबैले न्‍यायालयसँ आवेदन करै छैथ, तखन न्‍यायालय मामलाकेँ आपस लेबाक अनुमति प्रदान कऽ सकैत अछि।)

कानूनक उपरोक्त प्रावधानमे क्रुड़ताक प्रयोग निम्नलिखित प्ररिस्‍थितिमे कएल गेल अछि-

१.      एहेन बेवहार जइसँ महिला आत्‍म हत्‍या हेतु प्रेरित हो।

२.     एहेन बेवहार जइसँ महिलाक जीवन, शरीर वा स्‍वास्‍थ्‍यपर गंभीर समस्‍या उत्‍पन्न भऽ जाइक।

३.      महिला वा ओकर सम्‍बन्‍धीक सम्‍पैत लेबाक उद्देश्‍यसँ कएल गेल प्रतारणा।

४.     महिला वा ओकर सम्‍बन्‍धी द्वारा आर पैसा वा सम्पतिक हिस्‍साक मांग नहि मानबाक कारण प्रतारणा।

यद्यपि ऐ कानूनकेँ लागू करबाक उद्देश्‍य विवाहित महिलाकेँ दहेज-लोभी पति एवम्‍ ओकर परिवार द्वारा प्रतारणासँ रक्षा करब छल, मुदा बेवहारमे एकर तेतेक दुरुपयोग भेल जे उच्‍चतम न्‍यायालय सुशील कुमार शर्मा बनाम भारत सरकारक मामलामे आइपीसी- धारा ४९८ केँ कानूनी आतंकवादक रूपमे निन्‍दा केलक।

उपरोक्त कानूनसँ पुलिस द्वारा लोकक मौलिक  अधिकारक उल्‍लंघनक संभावना बढ़ल। ऐसँ निर्दोष लोक कानूनी धनचक्करक शिकार भेल एवम्‍ मजबूर भऽ कऽ वर्षो-वर्ष कोट-कचहरीक दरबज्‍जा खटखटबैत रहल । तेतबे नहि, ऊपरसँ पुलिसक धनबल, राजनीतिक हस्‍तक्षेप, किंवा समाजमे प्रभवशाली वर्गक लिप्‍तता सेहो तइ रूपे काज करए लगल जे ओइ पति एवम्‍ ओइ परिवारक बुझू भगवाने मालिक..!

केतेको मामलामे ऐ कानूनक दुरुपयोग विवाहित महिला द्वारा बर पक्षसँ अधिक-सँ-अधिक पैसा ओसलब, किंवा एहेन परिस्‍थिति निर्माण करब रहैत अछि जइसँ जान छोड़ेबाक लेल बर पक्षक लोक महिला पक्षक अनुचितो मांग मानैले बेवस भऽ जाइ छैथ।

दहेज निषेध अधिनियम १९६१क धारा २ केर अनुसार दहेज लऽ कऽ माने बिआहसँ पूर्व, बिआहक समय वा बिआहक बाद कहियो देल गेल सम्‍पैत या मूल्‍यवान धरोहरसँ अछि-

(१) जे बिआहक एक पक्ष द्वारा दोसरकेँ देल जाइत अछि।

(२) माता-पिता वा कोनो आन बेकती द्वारा देल गेल।

मुदा मुस्‍लिम विवाह कानूनक अधीन देल गेल मेहर वा (dower) ऐमे शामिल नहि अछि। विवाहक समय कोनो पक्ष द्वारा देल गेल नगदी, गहना, कपड़ा वा अन्‍य कोनो वस्‍तु दहेज नहि मानल वशर्ते ई वस्‍तु सभ विवाहक शर्तक अधिन नहि देल जाइत हो।

ऐमे मूल्‍यवान धरोहरक अर्थ भारतीय दण्‍ड संहिता (आइपीसी)क धारा ३०क अनुकूल अछि। 

आइपीसी- धारा ४९८ मात्र पत्नी, पुतोहु वा ओकर सम्‍बन्‍धी द्वारा लागू कएल जा सकैत अछि। उच्‍चतम/उच्‍च न्‍यायालय बारम्‍बार ई स्‍वीकार केलक अछि जे कानूनक उपरोक्‍त धाराक अधीन ज्‍यादातर मामला झूठ रहैत अछि। अधिकांश मामलामे एकर दुरुपयोग वैवाहिक जीवनमे विवादक स्‍थितिमे पत्नी वा ओकर निकट सम्‍बन्‍धी द्वारा पति वा ओकर निकट सम्‍बन्‍धीकेँ ब्‍लैकमेल करबाक हेतु कएल जाइत अछि। एहेन परिस्‍थितिमे शिकायतकर्त्ता प्रचुर मात्रामे पैसाक उगाहीक प्रयास करै छैथ। 

एहेन अनगिनित उदाहरण सामने आएल अछि जइमे बिना जाँच-पड़ताल केने पुलिस बुजुर्ग माता-पिता, अविवाहित बहिन, गर्भवती भौजी एवम्‍ छोट-छोट बच्‍चाकेँ गिरफ्तार कऽ लेलक। ऐ तरहक मामलामे निर्दोष लोक मानसिक यातना एवम्‍ उत्‍पीड़नक शिकार भऽ जाइ छैथ। सामान्‍यत: एहेन मोकदमा ५-६ साल चलैत अछि आ मात्र २० प्रतिशत लोककेँ सजा होइत अछि। एहनो भेलै जे जेलसँ छुटि कऽ पति वा आरोपित माता-पिता आत्‍महत्‍या कऽ लेलक।

चन्‍द्रभान बनाम राज्‍यक मामलामे दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय कहलक जे ऐमे कोनो संदेह नहि अछि जे अधिकांश एहेन शिकायत छोट-छोट बातपर आपसी अहं एवम्‍ टकरावक कारण तामसमे कएल जाइत अछि जेकर सभसँ गंभीर खामियाजा परिवारक छोट-छोट बच्‍चा सभ भोगैत अछि। अस्‍तु न्‍यायालय पुलिसकेँ निम्नलिखित आदेश देलक:-

(१)  एफआइआर रूटिनमे पंजीकृत नहि कएल जाए।

(२)  पुलिसक प्रयास हेबाक चाही जे मामलाकेँ गंभीर जॉंच-पड़तालक बादे एफआइआर दर्ज करए।

(३)  आइपीसी- धारा ४९८ /४०६ क अन्‍तर्गत कोनो मामला बिना डीसीपी (उपायुक्‍त पुलिस) एवम्‍ अतिरिक्‍त डीसीपीक आदेशक दर्ज नहि हएत।

(४)  एफआइआर (पंजीकृत करबासँ पूर्व आपसी समझौताक हर संभव प्रयास कएल जाए आ जौं समझौताक कोनो आश नहि रहि जाइक तँ सभसँ पहिने स्‍त्रीधन आ दहेजक वस्‍तुकेँ सम्‍बन्‍धित महिलाकेँ आपस करौल जाए।

(५)  मुख्‍य अभियुक्‍तक गिरफ्तारी एसीपी (सहायक आयुक्‍त) अथबा डीसीपी (उपायुक्‍त)क स्‍वीकृतिसँ मामलाकेँ पूरा जाँच-पड़तालक बादे कएल जाए।

(६)  संपार्श्‍वक अभियुक्‍त (जेना सासु-ससुर)क मामलामे मिसिल (लाइल)मे डीसीपीक स्‍वीकृति जरूरी अछि।

ऐ मामलामे न्‍यायालय ईहो आदेश देलक जे महिलाक उत्‍थान हेतु कार्यरत्‍ स्‍वयंसेवी संगठन एवम्‍ अन्‍य कानूनी संस्‍था सभ ऐ बातक पूरा प्रयास करए जे सम्‍बन्‍धित पक्ष सभकेँ आपसी सहमति बनि जाइक। मामलाकेँ न्‍यायालय पहुँचलाक बादो ऐ बातक लेल न्‍यायालय प्रयास करए। चाही तँ ई जे बिना बाहरी हस्‍तक्षेपक सम्‍बन्‍धित पक्ष मामलाकेँ आपसमे सोझरा लिअए। टी.आर. रमैयाक मामलामे मद्रास उच्‍च न्‍यायालसँ ऐ तरहक निर्देश दैत स्‍पष्‍ट केलक जे एहेन मामलामे पुलिसिया कार्रवाइ पयाप्‍त सावधानी एवम्‍ एहेन छान-बीनक बादे कएल जाएत।

ललिता कुमारी बनाम राज्‍यक मामलामे उच्‍चतम न्‍यायालय ऐ बातपर विचार कए रहल अछि जे एहेन मामला उपस्‍थित भेलापर पुलिस द्वारा एफआइआर दर्ज करब अनिवार्य अछि किंवा तइसँ पहिने प्राथमिक पूछताछ जरूरी अछि। चूँकि ई मामला विचराधीन अछि अस्‍तु विभिन्‍न उच्‍च्‍ न्‍यायालय द्वारा देल गेल आदेश/निर्णयक सन्‍दर्भमे पुलिस कार्रवाइ करैत अछि। उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा ऐ मामलाक निर्णयक बादे एहेन मामलामे एफआइआर करबाक दशा ओ दिसा अन्‍तिम रूखि लेत।

ऐ कानूनसँ भयक वातावरण तँ बनल मुदा एकर दुरुपयोग ज्‍यादा होमए लागल। कनेको निर्दोष लोककेँ लोभ, किंवा प्रतिशोधक आवेशमे फँसा देल गेल। कएक बेर तँ पति एवम्‍ ओकर परिवारकेँ ऐ लेल फँसा देल गेल जे सम्‍बन्‍धित विवाहित महिला ओइ वैवाहिक जीवनसँ हटि कऽ प्रेमीक संग विवाह करए चाहैत छेली।

केतेक बेर एहनो भेल जे पति-पत्नी बादमे मिलय चाहैत छल, अपन-अपन गलतीक अहसास करैत छल, मुदा ताधैर अपराधिक मोकदमाक जालवृत्तिमे फँसि चूकल छल, मुदा ओइसँ निकलत केना? कारण ई कानून Non Compoundable अछि माने शिकायतकर्त्ता स्‍वयं चाहियो कऽ एकरा आपस नहि लऽ सकैत अछि। ऐ सभ परिस्‍थितिमे मामला कतेको बेर उच्‍च न्‍यायालय एवम्‍ उच्‍चतम  न्‍यायालय पहुँचल जैठाम विचारणीय प्रश्‍न छल जे आखिर ऐ तरहक मामला चलबैत रहबाक की औचित्य अछि खास कऽ जखन कि पति-पत्नी आपसमे बातकेँ सलैट कऽ आपसी सहमति बना सुखी परिवारिक जीवन जीबए चाहैत होथि? आखिर एहेन मोकदमा जँ चलितो रहल तँ ऐमे सँ किछु निकलत नहि, कारण शिकायतकर्त्ता अपन बातसँ मुकैर जाएत। मामला कमजोर पड़ि जाएत, चाहे निरस्‍त निरस्‍त भऽ जाएत। मुदा एकर दोसरो पक्ष छल जे केतेको बेर समझौताक आडम्‍बर कऽ गरीब एवम्‍ कमजोर महिलाकेँ अपन शिकायत आपस लेबाक हेतु अनुचित दवाब बनौल जा सकैत अछि। मामला आपस लैतो पुनश्‍च यंत्रणाक नवीनीकरण भऽ सकैत अछि।

ऐ सभ प्रश्‍नपर विभिन्न न्‍यायालयमे बारंबार विचार भेल। विवाह सम्‍बन्‍ध विच्‍छेदक प्रक्रियामे लम्‍बित मामलामे दुनू पक्षकेँ मौका पबैत आपसी सहमति बनबैक अवसर न्‍यायालय प्रदान करैत अछि।

तहिना आइपीसी ४९८ सँ सम्‍बन्‍धित अपराधिक मामलामे यदि दुनू पक्ष आपसमे बातकेँ सोझराबए चाहैत अछि, सलैट लिअ चाहैत अछि तँ उच्‍च न्‍यायालय सीआरपीसीक धारा ४८२क अधीन अपन विशेषाधिकारक प्रयोग करैत मामलाकेँ रद्द कऽ देबाक आदेश दऽ सकैत अछि।

उपरोक्‍त विषयसँ सम्‍बन्‍धित मामला उच्‍चतम न्‍यायालयक समक्ष जीतेन्‍द्र रघुवंशी एवम्‍ अन्‍य बनाम बबीता रघुवंशी एवम्‍ अन्‍य आएल। (जइमे पूर्वमे उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा बी.आर. जोशी बनाम हरियाणा सरकारक निर्णयकेँ बहाल राखल गेल।) जइमे कहल गेल छल जे सीआरपीसीक धार ४८२ क अधीन उच्‍च न्‍यायालय न्‍यायक हितमे अपराधिक प्रक्रिया वा एफआइआर रद्द कऽ सकैत अछि आ सीआरपीसीक धारा ३२० ऐमे बाधक नहि हएत।

प्रीति गुप्‍ता बनाम झारखण्‍ड सरकारक मामलामे उच्‍चतम न्‍यायालय आइपीसी- धारा ४९८ केर अधीन कएल गेल शिकायतक दुरुपयोग एवम्‍ बढ़ैत ममलाकेँ धियानमे रखैत केन्‍द्र सरकारकेँ उपरोक्‍त कानूनक समीक्षा करबाक हेतु कहलक।

तदनुसार भारत सरकारक आग्रहपर विधि आयोग ऐ विषयमे गंभीरतासँ विचार करैत अपन २४३म प्रतिवेदनमे संस्‍तुति केलक जे ऐ अपराधकेँ न्‍यायालयक आज्ञासँ (Compoundable) बना देबाक चाही मुदा आयोग ऐ अपराधकेँ गैरजमानती बनौने राखए चाहलक ताकि समाजक दूरगामी कल्‍याणकेँ धियान रखैत ऐ कानूनक धार भोथ नहि होइक।

ओयोगक कहब जे गिरफ्तारी सम्‍बन्‍धी लागू कानूनी निर्देश एवम्‍ मामलाक गहन छानबीन केलासँ एवम्‍ हिंसा सन गंभीर परिस्‍थितियेमे गिरफ्तारी केलासँ ऐ कानूनक दुरुपरोगसँ बँचल जा सकैत अछि। 

जुलाइ २०१४ मे न्‍यायमुर्ति सीके प्रसाद एवम्‍ पी.सी. घोषक उच्‍चतम न्‍यायालयक बैच द्वारा देल गेल निर्णयमे स्‍पष्‍ट कएल गेल जे धारा ४९८ केर अधीन बिना मजिस्‍ट्रेटक आदेशक गिरफ्तारी नहि एहत। उच्‍चतम न्‍यायालयक कहब छल जे अधिकांश एहेन मामलामे महिला ऐ कानूनक दुरुपयोग करैत पति, सासु, ससुर आदिसँ बदला लइ छैथ। ऐ तरहक प्रकरणमे बहुत कम लोककेँ सजा धोषित हेबाक उद्धत करैत माननीय न्‍यायालय राज्‍य सरकार सभकेँ आदेश देलक जे पुलिस क्रीमिनल प्रोसीड्योर कोड (सीपीसी) क धारा ४१मे वर्णित मानकक अनुसरण करए एवम्‍ अपवादिक मामलामे अत्‍यावश्‍क भेने आरोपित बेकतीक गिरफ्तारी करए।

सम्‍बन्‍धित मजिस्‍ट्रेट सीपीसीक धारा ४१ क अधीन पुलिस द्वारा प्रेषित प्रतिवेदनक विवेचना करैत बेकतीगत रूपसँ संतुष्‍ट भेलाक बाद एवम्‍ तेकर औचित्‍यक लिखित आधार बनबैत गिरफ्तारीक स्‍वीकृति प्रदान करए।

उपरोक्‍त मामलामे फैसला दैत माननीय न्‍यायाधीशगण कहलैथ जे सन्‍ २०१२ मे दू लाख बेकती ऐ कानूनक अन्‍तर्गत गिरफ्तार भेला। जे सन्‍ २०११क संख्‍यासँ ९.४ प्रतिशत ज्‍यादा अछि। जइमे लगभग एक चौथाइ (४७९५१) महिला छेली। ऐसँ स्‍पष्‍ट होइत अछि जे आरोपित पतिक माए, बहिनकेँ सेहो काफी तादादमे गिरफ्तार कऽ लेल गेल। उपरोक्‍त कानूनक तहत आरोप पत्रक दर ९३.७ प्रतिशत अछि जखन कि मात्र १५ प्रतिशत लोककेँ अन्‍तत: दण्‍डित कएल जा सकल। विभिन्न ट्रायल कोर्टमे ३७२७०६ मामला लम्‍बित अछि जइमे सँ लगभग ३१७००० मामलामे आरोपितकेँ छुटि जेबाक संभावना अछि।

माननीय उच्‍चतम न्‍यायालयक कहब छल जे गिरफ्तारी बेकतीगत स्‍वतंत्रताक हनन तँ करिते अछि, संगे ई अपमान-जनक सेहो अछि। स्‍वतंत्रताक छह दशक बादो पुलिस अखन धरि उत्‍पीड़न, उत्‍पीड़नक साधनक रूपमे जानल जाइत अछि, जनताक मित्र तँ नहियेँ।

अतएव उच्‍चतम न्‍यायालय गिरफ्तारीमे सावधानीसँ निर्णय लेबाक हेतु मजिस्‍ट्रेट लोकनिकेँ अगाह केलक।

इन्‍दरराज मलिक एवम्‍ अन्‍य बनाम श्रीमती सुमिता मलिकमे दिल्ली उच्‍च न्‍यायालय बेवस्‍था केलक जे आइपीसी- धारा ४९८ दहेज निवारण कानूनक धारा ४ सँ एकदम अलग अछि, कारण दहेज कानूनमे मात्र दहेजक मांगसँ अपराध भऽ जाइत अछि। जखन कि आइपीसी- धारा ४९८ मे पति तथा पतिक परिवार द्वारा दहेजक मांग संगे-संग क्रुड़ताक बेवहार जरूरी अछि।

आधुनिकीकरण, शिक्षा, वित्तीय सुरक्षा एवम्‍ बेकतीगत स्‍वतंत्रतामे वृद्धिक संग कट्टरपंथी महिला सभ आइपीसी- धारा ४९८ केँ एकटा हथियारक रूपमे दुरुपयोग कऽ रहल छैथ। कानून बनलाक केतेको सालक बादो ऐ कानूनक उचित समीक्षा नहि भेल जइ कारणसँ एकर दुरुपयोगक मामलामे लगातार वृद्धि भेल आ निर्दोष एवम्‍ व्‍यर्थमे फँसौल गेल पति तथा ओकर सम्‍बन्‍धी त्राहिमाम कए रहल छैथ। विभिन्न न्‍यायालय, गैर सरकारी संगठन सभ ऐ विषयपर लगातार मंतव्‍य दऽ रहल छैथ, कानूनमे संशोधनक हेतु सेहो चर्चा होइत रहैत अछि। मुदा ऐठाम ईहो महत्‍वपूर्ण अछि जे एक पक्षीय संशोधनसँ कानून बनाबक मूल उद्देश्‍ये ने नष्‍ट भऽ जाए। ऐमे कोनो दू मत नहि जे केतेको मामलामे विवाहित महिलाकेँ जीवन ओ सम्‍मानपर संकट ओकर सासुरमे उत्पन्न भऽ जाइत अछि  आ ओ मजबुड़ीमे सभ किछु सहैत अछि। सहैत-सहैत केतेको महिला तंग भऽ आत्‍म हत्‍या लेल सेहो विवश भऽ जाइ छैथ। अस्‍तु, ऐ कानूनक दुरुपयोगसँ उत्‍पन्न समस्‍याक समाधान हेतु बीचक रस्‍ता निकालबाक चाही जइसँ निर्दोष लोककेँ फँसौल नहि जाइक आ दोषीकेँ उचित दण्‍डो होइक आ समाजमे सम्‍मानक संग महिलो जीबैथ।

अपन समाजमे कहबी छेलइ जे जेतए कनियॉंक डोली अबै ओतहिसँ अर्थी उठइ। मुदा आब युग बदैल गेल अछि। निष्‍ठाक समस्‍त जिम्‍मा मात्र महिलाक नहि भऽ सकैत अछि। लोक परिवर्तित परिस्‍थितिसँ जँ तालमेल नहि बैसोलक तँ जीवन भमरमे केतए जा कऽ थम्‍हत तेकर कोनो ठेकान नहि। शिक्षित बर-कनियॉं सभ रोजगार हेतु विश्व भरिमे पसैर गेल छैथ। गाम-घरक बात गामेमे सलटा लिअ से आब तथ्‍यपरक नहि रहि गेल। अपनो समाजमे विवाह विच्‍छेदक चलन बढ़ि गेल अछि। कानूनक रस्‍ता अख्‍तियार करैत केतेको परिवार नष्‍ट भऽ रहल अछि।

प्रेम ओ सिनेहपर आधारित सम्‍बन्‍धकेँ कानूनक कुरहैरसँ चोट देल जाएत तँ परिणाम की हएत? परिवारिक मर्यादाक रक्षाक हेतु सन्‍तानक भविस बँचबैक लेल एवम्‍ जीवनमे सुख-शान्‍तिक स्‍थापना हेतु आवश्‍यक अछि जे हम सभ भारतीय संस्‍कारकेँ कटकटा कऽ पकैड़ ली आ पकड़नहि रही। त्‍येन त्‍येक्‍तेन भुंजीथा:। त्‍यागक गरिमा जखन जीवनमे लक्षित हएत, सभ अपने ठीक भऽ जाएत।