मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

मैथिलीमे हमर प्रकाशित पोथी

शनिवार, 6 अगस्त 2022

इएह नियति छल

इएह नियति छल हम केन्द्र सरकारमे विभिन्न पदपर विभिन्न विभागमे लगभग साढ़े उनचालीस वर्ष नौकरी केलहुँ । सेवानवृत्तिक बादो फेरसँ स्पेशल मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेटक पदपर दिल्ली उच्च न्यायलसँ चयन भेल आ तीन साल चारि महिना धरि दिल्लीक विभिन्न न्यायालयमे हम ई काज केलहुँ। पैंसठि वर्षक आयु भेलापर इहो काज सठि गेल। एतेक समयमे कतेको तरहक नीक लोक-बेजाए लोक भेटैत रहलाह । कतेको लोक अएलाह-गेलाह । मुदा किछुगोटे जीवनमे तेना ने जुड़ि गेलाह जकर कल्पनो हम नहि केने रही । ओहिमे नगवासक श्री नारायण झाजी , पिंडारुछ गामक प्रोफेसर(डाक्टर) विनय कुमार चौधरीजी , ओहि समयमे गृह मंत्रालयमे कार्यरत दरभंगा लग पतोर गामक बासी मिसरजी(श्री रबीन्द्र नारायण मिश्र),इलाहाबादक श्री संजीव सिन्हा जी , आ न्याय विभागमे कार्यरत मुजफ्फरपुर लगक श्री मदन मोहन सिन्हाजी बिसरने नहि बिसरा सकैत छथि । बिना कोनो स्वार्थकेँ ई लोकनि जीवन भरि हमरा सभ तरहें सहयोग करैत रहलाह । एकरे कहल जा सकैत अछि पूर्वजन्मक संवंध । भए सकैत अछि जे ई लोकनि पहिलके जन्मसभसँ हमर अपन रहल होथि । एहन घटना कोनो हमरे संगे भेल होएत से बात नहि छैक । सभ व्यक्तिक संग जीवन मे किछु-ने-किछु चमत्कार होइत अछि जकर व्याख्या करब मोसकिल थिक। हिनका लोकनिक अतिरिक्तो बहुत रास एहन लोकसभ संपर्कमे अएलाह जिनकासँ बहुत तरहक उपकार होइत रहल । ककर-ककर नाम लेल जाए । एहि पोथीमे प्रसंगवश एहने किछुगोटेक स्मरण भेल अछि । मुदा बहुतगोटेक बारेमे हम नहि लिखि सकलहुँ । तकर मूल कारण प्रकाशकीय समस्या कहि सकैत छी । मुदा तकर माने नहि जे ओ सभ कोनो मानेमे कम महत्वपुर्ण छलाह । अवसर अएलापर भविष्यमे हुनको लोकनिपर लिखवाक प्रयास कएल जाएत । जीवन चलिते अछि सहयोगसँ । एकटा मनुक्खक निर्माणमे कतेको लोकक योगदान रहैत अछि । माता-पिता तँ जन्म दैत छथि,पालन-पोषण करैत छथि । मुदा संस्कार आ शिक्षा तँ समस्त समाजसँ भेटैत अछि । सभ वंदनीय छथि,प्रशंसाक पात्र छथि जिनका बिना एतेकटा समय नीकसँ बितबाक कल्पनो नहि कएल जा सकैत छल । दुर्गामाताकेँ शत्रुसँ लड़बाक हेतु समस्त देवतालोकनि अपन-अपन अस्त्र-शस्त्र प्रदान केलनि । तकरबादे ओ युद्धमे उतरलीह आ विजयी भेलीह । तहिना एहि जीवन युद्दमे सफलताक पाछू छोट-पैघ अनेको लोकक योगदान रहैत अछि । जन्मसँ मृत्यु पर्यंत समाजक सहयोगक बिना केओ एकडेग नहि बढ़ि सकैत अछि । हमरा लोकनिक उच्च विद्यालय एकतारामे गणितक शिक्षक श्री जटाशंकर झाजीक ॠण कोना सधा सकैत छी जे हमरा गणितमे तेहन पक्का कए देलाह जे आगू कतेको वर्ष धरि हमरा फएदा करैत रहल । हमरा गामक कतेको लोकसभ(जे आब एहि लोकमे नहि छथि) हमरा निरंतर उत्साहित करैत रहलाह,कैकबेर मदति केलाह,तिनकर उपकारकेँ कोना बिसरल जा सकैत अछि । हमर पितिऔति काका स्वर्गीय पंडित चंद्रधर मिश्रजीक प्रेरणादायी विचारसँ हम कतेक उपकृत भेल छी तकर की वर्णन करू । बाबूक कैकटा संगीसभ जेना स्वर्गीय श्यामलाल यादव (अड़ेर,ब्रह्मोत्तरा),स्वर्गीय कृष्णदेव नारायण सिंह(एकतारा),स्वर्गीय मार्कंडेय भंडारी (अड़ेर,सिनुआरा टोल )सभक अनेको उपकार हमरापर अछि । एही तरहें नौकरीक क्रममे कतेको प्रिय-अप्रिय घटनासँ बहुत शिक्षा भेटैत रहल । तकरासभकेँ कोना बिसरब? जहिना कतेको लोकसभ बिना कोनो लोभ-लालचकेँ हमरा मदति केलनि आ हमर जीवन यात्राकेँ सुगम बनबएमे सहयोगी भेलथि तहिना हमहु जतए मौका भेटए अनका मदति करी सएह सुंदर समाधान भए सकैत अछि। हम से प्रयास केबो केलहुँ । हम ताहिमे कतेक सफल आ सही रहलहुँ से तँ ओएहसभ कहि सकैत छथि । मुदा अपना मोनमे संतोष तँ रहिते अछि जे हमर परिस्थिति छल ताहिमे जे जखन कएल जा सकैत छल से हम केलहुँ । हमरा जहिना किछुगोटे स्वतः मदति करैत रहलाह,तहिना किछुगोटे अकारण हमरा परेसान करैत रहलाह । अखनो कखनहु जखन कैकटा बितल बातसभ मोन पड़ैत अछि तँ रोमांच भए जाइत अछि । आखिर ओ सभ एना किएक केलाह? मुदा छोड़ू ओ बात सभ । जीवन अछिए कतेकटा? जँ सएहसभ सोचैत रहि जाएब तँ सोचिते रहि जाएब । किछु नीक नहि कए सकब । नीक बनबाक लेल,नीक करबाक हेतु बहुत किछु छोड़ए पड़ैत अछि । ओहिना जेना श्वेत रंग सातो रंगकेँ छोड़ि कए सात्विकताक ग्रहण करैत अछि। मानलहुँ जे ई ओतेक आसान नहि छैक,तथापि एकटा उच्च आदर्श तँ मोनमे रखबेक चाही । तखने जीवनमे आनंद उठा सकैत छी । भोरे नओ बजेसँ साँझ छओ बजे धरि वा ओहूसँ बेसी समय लोकक कार्यालयमे बितैत अछि । ताहिसँ एक घंटा पहिने आ एकघंटा बादक समय कार्यालय आबए-जाएमे बितैत अछि । कार्यालय बिदा होबएसँ पहिने भोरे उठलाक बाद लोक नित्यकर्मसँ निवृत भए अपना आपकेँ कार्यालय जेबाक हेतु तैयार करैत अछि। कार्यालयसँ घर अएलाक बादो घंटा-दूघंटा धरि कार्यालयक थकान भगबएमे लागि जाइत अछि। कहक माने जे सोमसँ शुक्र दिन धरि कमसँ कम बारह घंटा समय कार्यालयमे वा ओकर तैयारीमे बिति जाइत अछि । एतेक थाकल-ठेहिआएल जखन लोक घर अबैत अछि तँ बेसी किछु करबाक स्थितिमे नहि रहि जाइत अछि । कनी-मनी परिवारक लोकसभ सँ गप्प-सप्प केलाक बाद लोक भोजन केलक आ सुतबाक हेतु चलि गेल । एहि तरहें पाँचदिन बितलाक बाद अबैत अछि शनिक दिन । ओहो तखन जखन कि पाँचदिनक कार्य दिवस होइक । जँ से नहि अछि तखन तँ बस सप्ताहमे एकहिटा दिन बचि जाइत अछि । मुदा आब अधिकांश कार्यालयमे पाँचदिन कार्यदिवस होइत छैक । तेँ लोक सप्ताहमे पाँचदिन काज केलाक बाद सप्ताहांत होबएबला छुट्टीक बहुत उत्सुकतासँ प्रतीक्षा करैत छथि । शनि-रविक दिन अपना हिसाबसँ सुतैत आ उठैत छथि । जतए मोन होइत छनि ,ओतए घुमैत छथि । माल-सीनेमा वा कोनो पर्यटन स्थल जाइत छथि । देखिते-देखिते फेर सोमक दिन आबि जाइत अछि । तकर बाद ओएह दैनिक कार्यक्रम शुरु भए जाइत अछि । ओहिना भोरे उठब,ओहिना समयपर कार्यालय पहुँचब । दिनभरि ओतए कुटौनी करब आ साँझमे थाक-झमारल वापस अपन घर आएब । एहि तरहे आइ-काल्हि करैत-करैत कतेको वर्ष बिति गेल। कोन-कोन विभागसभ ने घुमैत रहलहुँ। अंततोगत्वा, सेवानिवृत्त भए गेलहुँ । एहि तरहे देखिते-देखिते एतेकटा जीवन बिति गेल । ई जीवन चमत्कारसँ भरल अछि । एहिमे की कहिआ होएत,के अहाँक मित्र भए जाएत,के शत्रु भए जाएत तकर किछु व्याख्या करब मोसकिले नहि असंभव थिक । हमरा अपने जीवनमे एहन-एनह घटना घटल,एहन-एहन लोकसभसँ उपकार/ अपकार भेल जकर कोनो कल्पनो नहि कएल जा सकैत छल । आब जखन उनटि कए पाछा देखैत छी तँ हमरा द्वारा समय-समयपर कएल गेल कैकटा निर्णय गलत लगैत अछि । मुदा पचास वर्ष पूर्व जे हमर सोच छल,परिस्थिति छल ,ताही हिसाबे ने निर्णय लितहुँ ,से लेल गेल होएत । आब जखन परिणामक समीक्षा करैत छी तँ स्वयंपर हँसी लगैत अछि । एक तँ परिस्थितिक निर्माण अपना हाथमे नहि छल,फेर तकरबाद कएल गेल प्रयास-कुप्रयासक परिणाम सेहो अपना हाथमे नहि छल । मुदा ई कोनो हमरे संग भेल होएत से बात नहि छैक । पृथ्वीपर विद्यमान समस्त जीव-जन्तु प्रारव्धक अधीन छथि । ककरा कखन की होएत से किछु नहि कहल जा सकैत अछि? बाढ़ि अबैत छैक,लाखो जीव-जन्तुक जीवन नष्ट भए जाइत अछि । आखिर ओ जीव-जन्तुसभ की सोचैत होएत?ओकरसभक की दोष रहैत छैक जे देखिते-देखिते लाखोंक संख्यामे बाढ़िक पानिमे दहा जाइत अछि। मुदा प्रकृतिक विभीषिकाक तँ बुझलहुँ जे ओहिपर ककरो वश नहि रहैत अछि मुदा जे समस्यासभ हमसभ स्वयं जीवनमे ठाढ़ कए लैत छी,तकर की जबाब देल जा सकैत अछि? कहि सकैत छी जे इएह नियति छल । हमर इलाहाबादमे नौकरी करए जाएब,जखन की हम दरभंगासँ दिल्लीक केन्द्रीय सचिवालय सेवामे नौकरी करए गेल रही सेहो एकटा नियति छल । हमरा ओहिठाम सुख-दुख भोगबाक छल । शत्रु-मित्र जे बनल,से बनबाके छल । एहीठाम कहल जा सकैत अछि जे लोक कैक जन्मक कर्मसँ बान्हल रहैत अछि,जे बिना चाहने ओकर पछोड़ करैत रहैत छैक । जीवनक बहुत रास घटनाक कोनो व्याख्या हमरा लोकनि नहि कए सकैत छी। भावी कहि सकैत छी ,प्रारव्ध कहि सकैत छी। मुदा जीवनमे आघात-प्रतिघात सभकेँ सहए पड़ैत छैक,से जकरासँ जकरा भए जाइक । एकर कोनो हिसाब नहि कएल जा सकैत अछि । जखन जिनगीक पन्ना वापस उनटबैत छी तँ सोचिते रहि जाइत छी । सोचलिऐक किछु,भेलैक किछु । ई बात कोनो हमरे संगे भेल से बात नहि छैक । जीवन छैहे तेहने। एकर कोनो निजगुत रस्ता नहि अछि,ई कोनो पहिनेसँ खींचल डरीरपर चलए बला नहि अछि । एक हिसाबे ई आबारा थिक,जे मोन हेतैक सएह करत । प्रकृतिमे सभठाम मोटा-मोटी इएह हाल छैक । जखन मोन हेतैक मेघ बरसि जाएत,जखन मोन हेतैक भयानक गर्मी पड़ए लागत आ कखनो तेहन जाढ़ धरत जे होएत जे एकचारिओमे आगि लगा कए हाथ सेकि ली । बाह रे जिनगी! हम सोचैत रहैत छी जे जँ हम दिल्ली नहिए जइतहुँ तँ कोनो घाटामे नहि रहितहुँ । हमर कैकटा मित्र मधुबनी,दरभंगामे जिनगी भरि रहलाह आ की नहि कए गेलाह? मुदा फेर ओएह बात? सभक अपन-अपन भाग्य,सभक अपन-अपन कर्म । जीवनकेँ कोनो तय सीमामे व्याख्या नहि कएल जा सकैत अछि । मानि लिअ जे केओ आइएएस कइए गेल तँ की ओ सुखी रहबे करत तकर कोन ठेकान? कोनो ठेकान नहि? कैकटा आइएएस आत्महत्या कए लैत छथि? कैकटा आइआइटी इंजिनीयर अकाल मृत्युक शिकार भए जाइत छथि । तेँ जीवन जे भेटल अछि तकरा मात्र अफसोच करैत बिता लेब,कोनो नीक बात नहि कहल जा सकैत अछि । असल बात तँ ई थिक जे सभक जीवनक दशा ओ दिसा पूर्वसँ तय अछि आ सभ किछु ओही तरहें होइत अछि जेना ओकरा हेबाक रहैत अछि । प्रकृतिक व्यवस्थामे कोनो दुविधा नहि रहैत अछि । ओ तँ हमसभ स्वयं मोहवश उतपन्न कए लैत छी । हम जखन नौकरीमे गेलहुँ तँ शुरु-शुरुमे बहुत परेसानी होअए। ई नहि बूझल रहए जे एहि पेशामे सभकेँ डाँट-फाँट होइते रहैत अछि । केओ कतबो पैघ अधिकारी होथि,हिनका हुनकर वरिष्ठ कहिओ-ने-कहिओ कोनो-ने-कोनो त्रुटि पकड़ि किछु-ने-किछु कहबे करतिन । ई एहि पेशाक संस्कार थिक । तेँ एकरा बेसी ध्यान नहि देबाक छलैक । मुदा हम तँ अपन माता-पिताक बहुत दुलारु संतान रही । परिस्थितिवश, एक्कैसम वर्षेसँ नौकरी करए लागल रही । जँ कोनो बातपर अधिकारी डाँटि देथि तँ बहुत कष्टमे पड़ि जाइ । गाम-घरसँ फटकी रहए पड़ए सेहो बहुत कष्टक कारण रहए । असलमे हमरा शुरुमे नौकरी करबाक लूरि नहि रहए । अधिकारी,सहकर्मी आ अधीनस्थ कर्मचारी सभक संग अलग-अलग व्यवहार करब नहि बुझिऐक । क्रमशः एहि माहौलसँ समन्वय करब आबि गेल । तकरबाद नौकरी करब ओतेक मोसकिल नहि रहल । मुदा ताहि प्रयासमे व्यक्तित्वक मौलिकता सेहो क्षीण होइत गेल । सरकारी सेवामे तँ आदमीकेँ एकटा मसीन जकाँ बना देल जाइत अछि । एकर सभसँ नीक शिक्षा हमरा एकटा कार्यालयमे कार्यरत मालीसँ भेटल । ओकरा किछु कहिऐक तकर जबाब “यस सर”मे दैत छल । हम एकबेर पुछलिऐक जे ओ एना किएक करैत अछि । जबाबमे ओ कहलक जे ओकरा एकटा अधिकारी सिखा देने रहथिन जे सरकारी कार्यालयमे केओ किछु कहए तँ तकर उत्तरमे ‘यस सर` कहि देल करी । ओ सएह करए । कहबी छैक जे जखन धोती पहिरए जोकर होइत अछि तँ ओ फाटए लगैत अछि । खिआइति -खिआइति ओकर ताग महिन भए जाइत छैक,धोती चिक्कन भए जाइत छैक । मुदा ओ घात-प्रतिघात सहबा जोगर नहि रहि जाइत अछि आ कनिको जोर पड़ितहि फाटि जाइत छैक । सएह बात जीवनोपर लागू होइत छैक। से कोना? तँ कहिए दैत छी । युवावस्थामे लोककेँ बहुत ऊर्जा रहैत छैक । लोक खतरा उठा सकैत अछि । मुदा जीवनक अनुभव कम रहबाक कारण उल्टा-पुल्टा निर्णय भए जाइत छैक । अनुभव होबएमे समय लगैत छैक,सौंसे जीवन बिति जाइत छैक । मुदा ताधरि समये नहि रहि जाइत छैक जे लोक सुधार कए सकए। तेँ चाही जे अनुभवी लोकनिक विचार ली,हुनकर ज्ञान सँ फएदा उठाबी । नेना जकाँ आङुर जराए कए आगिसँ बँचबाक शिक्षा नहि ली । आब जखन पाछू घुमि कए सोचैत छी तँ लगैत अछि जे कैकटा एहन गलतीसभ भेल जाहिसँ बँचल जा सकैत छल । मुदा आब ओहिपर सोचलासँ की फएदा? जे हेबाक छल से भेल । समय समाप्त अछि। जीवनक अंतिम अध्याय चलि रहल अछि । ई बात तँ निर्विवाद अछि जे एहि संसारमे केओ असालतन नहि रहल । जे आएल से गेल । तखन जे अवसर भेटल अछि तकरा नीक सँ नीक उपयोग कए लेबे बुधिआरी थिक । बहुत लोक से प्रयास करितो छथि । बहुत लोक प्रयास कइओ कए प्रारव्धवश बेसी नहि कए पबैत छथि । लोक सोचबाक हेतु विवश भए जाइत छथि जे एहुनका संगे एना किएक होइत छनि? ई जीवन बहुत रहस्यात्मक अछि । केओ जनमिते अछि संपन्न घरमे जतए ओकरा सभ किछु स्वतः सुलभ रहैत अछि । तँ केओ जनमिते सड़कपर मजदूरी करैत अपन माएक संगे रहए पड़ैत छैक । भाग्यं फलति सर्वत्र न विद्या न च पौरुषः । अहाँ कतबो किछु कए लेब मुदा जँ भाग्य दहिन नहि रहल तँ अहाँ ठामहि रहि जाएब । एक सँ एक धनीक,विद्वान,उच्चपदपर आसीन लोक सभ किछु अछैत दुखी रहि जाइत छथि आ मामुली खेतिहर जन-बनिहार निचैन फोंफ कटैत अछि । ओतहि श्रीमान लोकनि सभ किछु सुविधाक अछैत भरि राति करौट बदलैत रहि जाइत छथि । तेँ मात्र भौतिक उपलव्धिएसँ जीवन सुखी नहि भए सकैत अछि । मनुक्खकेँ चाही मोनमे सकून ,निश्चिंतता आ सभसँ बेसी शांति । सभ कथाक अंत होइत अछि । नीक-बेजाए सभ समय बिति जाइत छैक । मुदा ओकर स्मरण बाँचल रहि जाइत छैक । चाहे कतबो पैघ लोक होथि ,हुनको जीवनमे उठापटक होइते छनि,उत्थान-पतन होइते छनि । सुख-दुखक क्षण अबिते छनि । चाहे कतबो संपन्न लोक होथि,कतहु-ने-कतहु हुनको अभाव रहिए जाइत छनि । एहिसभसँ बहुत शिक्षा भेटैत अछि – “हे मनुक्ख! अहाँ अपन सीमान सँ परिचित रहू । अहंकारवश गलती पर गलती नहि करैत जाउ । उलटि कए पाछू ताकू । साइत किछु सुधार अपनामे कए सकी । जे किछु अपराधवोध मोनमे गड़ि गेल अछि,ताहिसँ मुक्तिक मार्ग ताकू । तखने सही मानेमे अहाँ सुखी भए सकब ।” हमर उनहत्तरिम वर्ष चलि रहल अछि । एहि अवधिमे जे केओ जाहि रूपमे भेटलाह सभ स्मरण होइते रहल अछि,होइते रहत। सही मानेमे ओ सभ धन्यवादक पात्र छथि जे हमरा कहिओ कोनो रूपमे मदति केलाह । संगहि ओहो कम धन्यवादक पात्र नहि छथि जे बेबजह यदा-कदा परेसान करैत रहलाह । साइत ओ हमर आंतरिक शक्तिकेँ जगबैत रहलाह जाहिसँ हम आओर दृढ़तासँ जीवन संग्राममे जुटल रहि सकलहुँ । अन्यथा तँ कहि नहि हम कतए रहितहुँ ?एहि दीर्घकालीन जीवन यात्रामे भेटल बहुत रास स्मृति शेष हमर पाथेय थिक जकर बलें हमरा विश्वास अछि जे आगामी शेष समय सेहो नीकसँ कटि जाएत। जाइत-जाइत Francis Duggan क बहुत उपयुक्त आ प्रेरणादायी कविता Thank you life!पढ़ैत चली – Thank you life! I have had a good innings and I have a nice wife And if I die tomorrow I will have had a good life I am not financially wealthy or I am not in poverty I thank you life you have been quite good to me In my life's seventh decade this is quite a long time Some forty years beyond my physical prime Lucky as far as health goes without ache or pain I do not have any cause for to complain So many poor people doing it tougher than me Homeless and hungry and in dire poverty Born as the children of the lesser gods Every day they have to battle the odds Compared to many I am lucky indeed Of any of life's necessities I am not in need. Francis Duggan

सोमवार, 1 अगस्त 2022

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लेखक परिचयः https://mishrarn.blogspot.com/2020/04/blog-post_20.html ----------------------------------------------------------------------------------------------==== समय-समयपर खास कए पुस्तकक प्रकाशनक बाद फेसबुक/व्हाट्सएपपर चर्चा होइत रहल अछि । तकर किछु महत्वपूर्ण अंश संदर्भक हेतु पुनःप्रेषित कए जा रहल अछि । प्रकाशित पुस्तकःबदलि रहल अछि सभ किछु प्रसिद्ध विद्वान एवम् मैथिलीक महाकवि माननीय श्री बुद्धिनाथ झाजीक टिप्पणी (व्हाट्सएपक अरुणिमा साहत्यिक गोष्ठीसँ उद्धृत):- “मैथिली साहित्यक एहेन 'एकांत सेवक' इएह टा। हिनक पोथी सब‌ मात्र गनतीक लेल नहि, ओकर गुणवत्ताक संग आवरण, छपाइ, सफाइ, सब किछु उपरि -जुपरि। सभ कीर्ति संग्रहणीय/ पठनीय अछि। जय मैथिली” डाक्टर भीमनाथ झा नव उपहारक स्वागत । Lakshman Jha Sagar दू दर्जन सं बेसी मैथिलीक पोथी प्रकाशित छनि जकर कियो गोटे नोटिस नै लैत छथि।मैथिली साहित्य के अभगदशा लिखल छैक।जे समाज अपन साहित्य आ साहित्यकारक सुधि बुधि नै लेत।चर्चा धरि करबा मे कन्छी काटत तकर भगवाने मालिक। Dr Raman Jha रवीन्द्र नारायण मिश्रपर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालयसँ शोधकार्य भऽ रहल अछि। सूचनार्थ । Dr Umesh Mandal मैथिली साहित्यक उपन्यास विधा, जेकर भण्डार बहुत पैघ नहि अछि, ताहिमे अपनेक अनवरण लेखन बहुत किछु अछि। की अछि, केहेन अछि ओ तँ समीक्षक लोकनि कहता मुदा असाधारण ओ ह्लादकारी अछि, से तँ सबहक मुहसँ निकलिए सकैए। सादर हार्दिक बधाइ... https://www.facebook.com/photo/?fbid=3022436554698002&set=a.1388340294774311 प्रकाशित पुस्तकःबीति गेल समय https://www.facebook.com/photo/?fbid=2932602210348104&set=a.1388340294774311 भीमनाथ झा हम तँ एकरा उपन्यासक 'उपन्यासे' बुझै छी। कथा जा पूर्णताकेँ नहि प्राप्त क' लिऐ ताधरि बढैत रहय, अर्थात् वार्ता सय राउंड तँ चलबेक चाही । समर्थन आ शुभकामना अपनेक संग अछि । Dr Bibhuti Anand एहि ऊर्जा कें नमन डाक्टर Raman Jha बहुत-बहुत शुभकामना आ बधाइ ! डाक्टर Umesh Mandal ' बीति गेल समय' बहुत नीक शीर्षक..! हार्दिक बधाइ..! -------------------------------------------------------------------------------------- प्रकाशित पुस्तकःप्रलयक परात https://www.facebook.com/photo/?fbid=2831911753750484&set=a.1388340294774311 डाक्टर भीमनाथ झा अहाँक लेखन ऊर्जाक अभिनन्दन... हितनाथ झा संख्यात्मक दृष्टिएँ तँ हिनक पोथी डेढ़ दर्जन अछिये , गुणात्मक दृष्टिसँ सेहो हिनक लेखनी महत्वपूर्ण अछि । एकान्त साधक श्री रवीन्द्र नारायण मिश्रजी संप्रति लिखिए रहल छथि से अनवरत । स्वागत । Dr Sharad Purohit आप को तो कई भाषा पर भी कमान्ड है, सभी पर भी लिखे ,पता नही आपका यह हूनर हमे पहले पता क्यो नही चला ? छूपे रुस्तम| Sp Dey Your literary journey is at full spree. Let your creativity be immortal Hari Pal Really you have a great creative writing skill.Remsrkale work.Keep it up. Congratulations for new addition in your treasure of valuable writings. प्रकाशित पुस्तकःप्रतिबिम्ब https://www.facebook.com/photo/?fbid=3017902635151394&set=a.1388340294774311 डाक्टर भीमनाथ झा स्वागत Dr Gangesh Gunjan बहुत-बहुत बधाइ आ शुभकामना ! डाक्टर Dhanakar Thakur उत्तम कार्य Pritam Nishad सुस्वागतम्... सतत् सुमंगलम्... प्रकाशित पुस्तकःहम आबि रहल छी https://www.facebook.com/photo?fbid=2770012903273703&set=a.1388340294774311 डाक्टर भीमनाथ झा स्वागतम् हमर उपन्यास -"हम आबि रहल छी" पढ़लाक बाद मैथिलीक मूर्धन्य विद्वान प्रोफेसर(डाक्टर)भीमनाथ झा लिखैत छथि- अपनेक नव्यतम उपन्यास 'हम आबि रहल छी' हमरा लग आबि गेल अछि । पढ़बामे ततेक मन लागि गेल अछि जे आन बेगरता भागि गेल अछि । ठीके, रोचकता तँ अपनेक लेखनीक प्रमुख विशेषता थीके, जे एहूमे विद्यमान अछि-- एक तँ ई कारण । दोसर ई जे एहिमे बूढ़ लोकक गूढ़ व्यथाक आख्यानक उत्थान, प्रस्थान आ अवसान अत्यन्त आत्मीयता आ मार्मिकताक संग कयल गेल अछि । आजुक शिक्षित समाजक बहुलांश कोना अपसंस्कृतिक मोहजालमे फँसि नाग जकाँ अपन प्रतिपालकोकेँ डँसि लैत अछि आ अपनहुँ अन्तमे निराशाक नरकमे खसि आजीवन सिसकी भरैत रहैत अछि । परिवर्तनक एहि बिरड़ोक अछैतो सनातन कर्त्तव्यबोध (यथा-- मातृपितृभक्ति, स्वावलंबन, अपकारक बदला उपकार, तिरस्कारक उत्तर सत्कार प्रभृति)क ध्वजा उधिया नहि गेलैक अछि, अपितु फहरा रहलैके अछि । संयोग आ आकस्मिकता एकर कथानकक प्राण थिक । एक दिस पुत्र जत' प्रेमिकाक लौलमे अमेरिका धरि दौड़ मारैत छथि तैयो ओ हाथसँ पिछड़ि जाइत छनि आ ई हकन्न कनैत छथि तँ दोसर दिस मायक गंगोत्रीमे जलसमाधि लेलाक कारणे पितो सायास हुनक अनुसरण करैत छथि आ अटूट प्रेमक दृष्टान्त बनैत छथि । नाटकीयताकेँ सामान्य पाठकमे उत्सुकता जगयबाक लेखकक कौशल रूपमे देखबाक थिक । अपनेक साहित्य-सभाक ई औपन्यासिक नवरत्न मैथिली पाठकक चारू कात अपन चमक पसारैत रहय-- ताही शुभकामनाक संग हार्दिक अभिनन्दन । -- भीमनाथ झा. 25.6.2021 Rewati Raman Jha अद्भुत उपलब्धि आ योगदान ! साधुवाद। -------------------------------------------------------------------------------------------------------------- प्रकाशित पुस्तकःपाथेय https://www.facebook.com/photo/?fbid=2723986184543042&set=a.1388340294774311 Gangesh Gunjan आत्मिक बधाइ आ शुभकामना। Lakshman Jha Sagar अहां त पोथीक जांक लगा देलियै।समाज एहि पोथी सब परहथि।मूल्यांकन करथि। तखन दोसर पारी शुरु करी।ई हमर सुझाव। Ravindra Bhushan Joshi Pranam sahitya purush! CSS mein chipe rahe ? Phir jeevant ho uthe prabhuwar ? Dhanya, Dhanya Dhanya! Bandhuwar ! Sp Dey Let your literary career grow more and more Prakash Chandra Pandey Sir, we are really lucky to have such a memorable collection from you Shailendra Jha सोलहम पुस्तक बारे मे जानकारी प्राप्त कऽ अत्यधिक खुशी भेल। पुस्तक सोलहन्नी पाथेय हो,ई मंगल कामना। Krishan Dutt Sharma बहुत बहुत बधाई! अच्छा काम कर रहे हो। अपनी संस्कृति को जिवित रखना आने वाली पिढियो के लिए धरोहर हैं! ------------------------------------------------------------------------------------------------------------ प्रकाशित पुस्तकःसीमाक_ओहि_पार https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=4296014813758350&id=100000496204662 Ujjwal Kumar Jha Favorites · December 25, 2020 · पोथी-परिचय #सीमाक_ओहि_पार #मैथिली_उपन्यास श्रीमान रबीन्द्र नारायण मिश्र जीक उपन्यास "सीमाक ओहि पार" पढ़लहुँ, एखन धरिक पढल उपन्यासमे ई सभ सँ पृथक आ अदभुत लागल, हिनक रचना एकटा एहन लोकमे प्रवेश करबैत अछि जतय कल्पनाक चरम स्थितिक बोध होइत अछि, अदभुत लेखन शैलीमे लेखक, पाठककेँ सीमाक ओहि पार लऽ जाके जीवनक अनेको सत्यसँ अवगत करबैत छथि। भूत, वर्तमान आ भविष्य संगहि महाकाल, पूर्वजन्म आ पुनर्जन्म आदिकेँ माध्यमसँ लेखक पाठक वर्ग केँ पूर्ण जिज्ञासु बनल रहवाक लेल विवश करैत छथि। लेखक कहैत छथि जे ई संसार रहस्यमयी अछि, ककरो किछु तऽ ककरो किछु आर बूझल छैक, सम्पूर्ण ज्ञान ककरा छैक ? सीमाक ओहि पार उपन्यास, मनोज आ रागिनीक प्रेम प्रसंगके इर्द-गिर्द घुमैत अछि जाहिमे लेखक अन्य पात्रक प्रवेश एतेक सुंदर ढंगसँ कएने छथि जे पाठकवर्गकेँ अवश्य अचम्भित करतन्हि, कतयो-कतयो तऽ पाठक पाछुक पृष्ठ उनटा पुनः पढ़वा पर विवश भऽ जेताह। उपन्यासक नायक लग एकटा पिपही छन्हि जकर माध्यमसँ लेखक संदेश देवाक प्रयास कएलन्हि अछि जे पिपही हमर सभक निर्णयात्मक बुद्धि अछि। लेखक एहि उपन्यासक माध्यमसँ समाज आ व्यक्ति विशेष केँ संदेश देबामे सेहो पूर्णतः सफल भेल छथि। लेखक कहैत छथि जे जाधरि हमसभ अपनासँ हटि कए नहि सोचबैक ताधरि बौआइते रहब। लेखकक बताओल दिव्यलोक सकारात्मकताक आ परिचायक थिक जतय सुख, शांति आ आनंदक अनुभव होइत अछि आ अंधलोक नकारत्मकताक प्रतिरूप थिक जतय दुख, अशांति ओ तनाव भरल अछि। लेखक, भारत सरकार केँ उप- सचिव पद सँ सेवानिवृत छथि आ कतेको उपन्यास, निबंध- संग्रह आ संस्मरण लिखि अपन विशिष्ट योगदान समृद्ध मैथिली साहित्यकेँ निरंतर दऽ रहलाह अछि, हिनक लेखन शैलीक इ अदभुत विशेषता एहि उपन्यासक माध्यमसँ पाठक वर्गकेँ अबस्स रूचिगर लगतन्हि। पोथीक नाम- सीमाक ओहि पार (मैथिली उपन्यास) लेखक- श्री रबीन्द्र नारायण मिश्र Rabindra Narayan Mishra मूल्य 250 ------------------------------- #maithilibooks © Ujjwal Kumar Jha Kedar Kanan हिनक रचनाशीलता मोहित आ प्रेरित करैत अछि प्रकाशित पुस्तकः'ढहैत देबाल' https://www.facebook.com/photo?fbid=2615244298750565&set=a.1388340294774311 भीमनाथ झा 'ढहैत देबाल' भने नाम राखि लियौ अपने, हम तँ जोड़ाइत देबाल सैह मानब । तीन-चारि मासपर एक पोथी--- मैथिली साहित्यक देबाल अपने जोड़ि रहलहुँ अछि । बधाइ ! Gangesh Gunjan आत्मिक बधाइ आ शुभकामना ! Raman Jha गद्यमे उपन्यास आ पद्यमे महाकाव्य जँ केओ एकहुटा लिखि लैत छथि तऽ ओ यशस्वी साहित्यकार कहबैत छथि आ जे जतेक अधिक संख्या बढ़बैत छथि से ततेक----। मैथिलीमे हमरा जनैत विदितजी उपन्यासक संख्यामे सभसँ आगाँ छथि आ लगैए जेना अहीँ हुनका पकड़ि सकबनि। बहुत बहुत बधाई आ शुभकामना। Bibhuti Anand मैथिलीक सौभाग्य जे अहाँ सन ऊर्जावान लेखक प्राप्त भेलै... Kirtinath Jha बहुत-बहुत बधाई. एहिना लिखैत रही, Lakshman Jha Sagar अहिना लेखकिय उर्जा बनल रहय।साधुबाद! Bhawesh Chandra MishraRabindra Narayan Mishra बहुत बहुत बधाइ रविन्द्र जी।बहुत प्रसन्नताक बात। Vishnu Kant Mishra हीरा -मोतीसॅ मैथिली साहित्यक संगहि आनो साहित्य के अपने अहिना भरैत रही Kedar Kanan बहुत बहुत बधाइ Uday Chandra Jha Vinod बधाई। Pandit Raghvendra Jha १०+५=१५ दस इन्द्रिय मे पाँच ज्ञानेंद्रिय पाँच कर्मेंद्रिय सँ मज़बूत कऽरहल अछि :ढहैत दिवाल;। Sp Dey Congratulations! Mishra ji. Your penchant for literary activities will mark you with fame and laurels in Maithili Literature. Wish you a long life and a still longer literary career https://www.facebook.com/photo?fbid=2615244298750565&set=a.1388340294774311 -----------------------------------------------------------------------------------------------

मंगलवार, 28 जून 2022

प्रवासीक स्नेहसँ ओतप्रोत मातृभूमि--डा.योगानन्द झ

प्रवासीक स्नेहसँ ओतप्रोत मातृभूमि डा.योगानन्द झा स्वनामधन्य श्री रबीन्द्र नारायण मिश्र बहुआयामी लेखक छथि । हिन्दी,मैथिली, ओ अंग्रेजीमे समानाधिकार रखनिहार एहि एकान्तसेवी रचनाकारक दर्जनाधिक पोथी प्रकाशित छनि जाहिमे अधिकांश प्रणयन ई मातृभाषा मैथिलीमे कयने छथि । विभिन्न विधामे सिद्धहस्त श्रीमिश्र आत्मकथा,यात्रा-वृतान्त,निबन्ध-प्रबन्ध,कथा ओ उपन्यास आदि अनेक विधामे रचना कयने छथि। खास कऽ हिनक रुचि उपन्यास विधाक प्रणयनमे छनि आ एहि विधामे ई मैथिलीक उपवनमे क्रमशः नमस्तस्यै,महराज, लजकोटर,सीमाक ओहि पार,मातृभूमि,स्वप्नलोक ,शंखनाद, ढहैत देबाल, हम आबि रहल छी,प्रलयक परात,बीति गेल समय आ प्रतिबिम्ब अभिदानसँ रंग-विरंगक पुष्प-पादप लऽ कऽ प्रस्तुत भेल छथि आ आधुनिक मैथिली उपन्यास विधाकेँ समपुष्ट कयलनि अछि । हिनक उपन्यास सभ समाज ओ राष्ट्रक अभ्युत्थानक प्रति हिनक चिन्तनक विराट आयाम केँ प्रस्तुत कयने अछि । मातृभूमि उपन्यासक माध्यमे ई मातृभाषा ओ मातृभूमिक प्रति प्रवासी लोकनिक कर्त्तव्य बुद्धिक परिष्कार दिस उन्मुख देखि पड़ैत छथि । एहि उपन्यासक नायक जयन्त थिकाह । हिनकहि चरित्र केँ केन्द्र मे राखि उपन्यासक कथावस्तु बुनल गेल अछि । जयन्तक पिता विद्या-व्यसनी छलथिन आ अपना गाम मे निःशुल्क पाठशाला चलाय शिक्षाक प्रचार-प्रसार मे लागल छलाह । मुदा हुनक असमय मृत्यु भऽ जाइत छनि आ पाठशालाक व्यवस्था छिन्न-भिन्न भऽ जाइत छैक। असहाय जयन्त कौलिक मर्यादाक रक्षा ओ जीवन-यापन मे कठिनताक कारणे मृत्यु केँ वरण करबाक विचार कय नदीमे कूदि पड़ैत छथि । मुदा हुनके गामक एक गोट संत नागाबाबा हुनका बचा लैत छथिन । ओ हुनका शारदाकुंज स्थानपर लऽ जाइत छथिन जतऽ निःशुल्क शिक्षाक व्यवस्था छैक । अपन नैसर्गिक प्रतिभाक वलें जयन्त आश्रम मे रहि विविध विषयक शिक्षा ग्रहण करबा मे समर्थ होइत छथि । अन्ततः ओ मिथिलाक विद्वत परंपरापर एक गोट शोधग्रन्थक प्रणयन करैत छथि आ ततःपर गाम घुरि अपन पिता द्वारा स्थापित विद्यालय केँ पुनः स्थापित करबाक प्रयास मे दत्तचित्त होइत छथि । अनेक विघ्न-बाधा केँ पार करैत जयन्त अपन एहि अभियान मे सफल होइत छथि तथा प्रवासी लोकनिक अपन मातृभूमिक प्रति स्नेह केँ जगाय हुनका लोकनिक द्वारा गामक उत्कर्ष हेतु नागबाबा विश्वविद्यालयक स्थापना कऽ उच्च शिक्षा केँ गाम-समाजक हेतु सहज बनयबा मे सफल होइत छथि । ई एकगोट आदर्शोन्मुख यथार्थवादी उपन्यास थिक जाहि मे शिक्षाक अभाव मे गाम-समाजक दुरवस्थाक यथार्थक चित्रण तँ भेले अछि संगहि उपन्यासकार ई चिन्तन प्रस्तुत कयलनि अछि जे जँ गामक प्रवासी लोकनि प्रवास मे जीवन-यापन करैत अपन मातृभूमिक सम्पर्क-सान्निध्यमे बनल रहथि आ ओकर अभ्युत्थान मे योगदान दैत रहथि तँ मिथिलाक ग्राम्यजीवनक विकासमार्ग निरन्तर प्रशस्त होइत चलत । ई प्रवासी लोकनिक अपन मातृभूमिक प्रति उदासीनते थिक जकर कारणे मिथिलाक ग्राम्य जीवन अधोगति केँ प्राप्त करैत जा रहल अछि । सामान्यतः जखन प्रवासीलोकनि अपन जीवन-यापनक हेतु गाम छोड़ि दैत छथि तँ जेना मातृभूमिक प्रति सर्वथा उदासीन भऽ गेल करैत छथि । स्वकीय अर्जन-शक्ति सँ भने ओ सभ प्रवास मे जतबा प्रगति कऽ जाथि मुदा ताहि सँ गाम केँ कोनो लाभ नहि भेटि पबैत छैक । एमहर दयादवाद लोकनि हुनक वर्षानुवर्ष अनुपस्थितिक लाभ उठाय हुनक ग्राम्य संपत्तिक अपहरण करबाक उद्देश्य सँ अनेक प्रकारक षड़यंत्र करऽ लगैत छथि । जँ कोनो प्रवासी अवकाश प्राप्तिक बाद गाम घुरितो छथि तँ हुनका अनेक प्रकारेँ उछन्नर देल जाइत छनि आ अंततः ओ अपन संपत्ति किछु लऽ दऽ बेचि बिकीन कऽ पुनः प्रवासे मे प्रत्यावर्तिति भऽ जायब लाभकर बुझैत छथि । एकर परिणामस्वरुप मोनबढ़ू प्रवृत्तिक लोक प्रवासीकेँ गामसँ उपटयबामे समर्थ भऽ जाइत छथि । मातृभूमि उपन्यासक सुधाकर एहने खलनायक थिकाह जे अत्यधिक समय बितलाक उपरान्त जयन्तक घर घुरलापर हुनक पाठशालावला जमीन बलजोरी कब्जा कऽ लेबऽ चाहैत छथिन आ हुनक हत्या पर्यन्त कऽ कऽ हुनका गाम सँ उपटाबय चाहैत छथि । गामक लोकक संगहि सरकारी महकमा ओ पुलिस आ न्याय व्यवस्था सेहो ओहने लोकक संग दैत छैक । मुदा जयन्त अनशनक माध्यमे सत्याग्रह करैत छथि आ प्रवासी राजीव सन अधिकारीक सहायता सँ सुधाकर केँ सकपंज करयबा मे समर्थ होइत छथि । ओ विश्वविद्यालयक हेतु अपन पिताक स्थापित विद्यालयक जमीन पर अबैध कब्जा केँ हटयबा मे सफल होइत छथि । ततबे नहि ओ विश्वविद्यालयक हेतु अतिरिक्त चन्दा सँ जमीन कीनि उपटल प्रवासी लोकनि केँ सेहो बसयबाक उद्योग करैत छथि । एहि उपन्यास मे किछु गोट प्रेम कथा सेहो अनुगुम्फित अछि । पहिल कथा थिक शीलाक जे जयन्तक प्रति एकनिष्ठ प्रेम करैत छथि मुदा सामाजिक दबाबक कारणे हुनक पिता हुनका अजग्गि कहला जयबाक भय सँ एकटा अन्य वर सँ विवाह करा दैत छथिन । शीला सुशील ओ पतिव्रता छथि,तेँ अपन नियति केँ अंङ्गीकार कऽ लैत छथि। मुदा हुनकर वर पूर्वहि विआहल रहैत छथि जकर परिणामस्वरुप शीला अपन ससुरक आश्रम मे परित्यक्ताक जीवन व्यतीत करबाक हेतु बाध्य भऽ जाइत छथि । कुलीनताक परिचय दैत शीला आग्रह कयलो उत्तर दोसर विवाहक हेतु स्वीकृति प्रदान नहि करैत छथि आ अपन जीवनक लक्ष्य विश्वविद्यालयक सेवा ओ विकासहि केँ बना लैत छथि। दोसर प्रेमकथा चन्द्रिका ओ जयन्त सँ सम्वद्ध अछि जाहि मे चन्द्रिका केँ सर्पदंश सँ लऽ कऽ उपचार धरिक कथा अतिव्यापकताक सृजन करैत अछि । हुनक पिताक प्रयासेँ अन्ततः चन्द्रिका ओ जयन्त वैवाहिक बन्धन मे बन्हा जाइत छथि आ उपन्यासक सुखद अन्तक द्योतक बनैत छथि। अपन आत्माक बात सुनि सुधाकरक समर्पण आकस्मिक घटना जकाँ बुझना जाइत अछि जे औपन्यासिक संघर्ष केँ कमजोर कऽ देलक अछि तथापि एहि उपन्यास केँ परस्पर विरोधी पात्र सभक सृजनपूर्वक आदर्शक उपस्थापनाक दृष्टिये उत्तम मानल जा सकैत अछि । उपन्यासक भाषा प्रसादगुण सम्पन्न,सहज ओ रोचक अछि । पात्र सभक मनोभावक विश्लेषण मे उपन्यासकार सफल भेल छथि। वस्तु विन्यास युग जीवनक यथार्थपर आधारित अछि। मातृभूमिक प्रति प्रवासी लोकनिक दायित्वक उद्बोधन उपन्यासकारक जीवन-दर्शन ओ जननी-जन्मभूमिक प्रति सहज सिनेहकेँ पल्लवित करैत अछि । -योगानन्द झा भगवती स्थान मार्ग,कबिलपुर लहेरियासराय,दरभंगा-846001(बिहार) m-9334493330

शनिवार, 18 जून 2022

२०२४ में भी आयेंगे तो मोदी ही

२०२४ में भी आयेंगे तो मोदी ही आज से आठ साल पूर्व क्या हाल था? जरा सोचिए आज से आठ साल पूर्व जब आ. मनमोहन सिंहजी देश के प्रधानमंत्री थे तो क्या हाल था? बंगला देश भी हमारे सीमा सैनिको का अंगभंग कर देते थे और हम चुपचाप रह जाते थे क्यों कि तत्कालीन सत्ता पक्ष को इसमें मुस्लिम बोट बैंक खराब हो जाने का डर लगा रहता था। पाकिस्तान ने हमारे सैनिकों का सर कलम दिया था । सीमापर आए दिन हमारे बीर सैनिक शहीद हो जाते थे और हम कुछ भी प्रतिरोध नहीं कर पाते थे? मुम्बई में इतना बड़ी आतंकी घटना घटित हो गई और हम बस फोल्डर बनाते रह गए , युएनओ में गिड़गिड़ाते रह गए । बस वैसे ही जैसे स्कूल के बच्चे पीट जाने पर प्रधानाध्यापक के पास जाकर रोते रहते हैं । चीन हर साल हमारे सीमाओं का अतिक्रमण करता रहता था और हमें पता भी नहीं चलता था । देश के अंदर तो यह हाल था कि बहुसंख्यक हिन्दू समाज को ही आतंकी घोषित किया जाने लगा था । तत्कालीन गृहमंत्री,भारत सरकार ने तो हिन्दू आतंकवाद शब्द गढ़ लिया था और स्वयं अपने ही देश को दुनिया के सामने बदनाम करने लगे थे । देश में एक ऐसा प्रधानमंत्री था जो कुछ निर्णय नहीं ले सकता था । उसे हर बात के लिए एक असंवैधानिक व्यक्ति का आदेश चाहिए था । हो भी क्यों नहीं? जब प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर ऐसे लोग काबिज करा दिए जाएंगे जो खुद अपना सीट लोकसभा में नहीं जीत सकते थे तो वे पूरे संसद और सरकार को कैसे सम्हाल पाते? वे तो बस किसी की कृपा से इतने महत्वपूर्ण पद पर बैठा दिए गए थे । वे इस बात को जानते थे । अपनी औकात से भली भाँति परिचित थे। इसीलिए चुपचाप अपनी कुर्सी बचाने में लगे रहते थे। ऐसे व्यक्ति चाहे वह कितना भी योग्य हो,देश का कल्याण कैसे कर सकता था? और हुआ भी वही । अनिर्णय की स्थिति से गुजर रहा देश जरा याद कीजिए उन दिनों को जब स्वर्गीय चंद्रशेखर,श्री एच.डी.देवगौड़ा,स्वर्गीय इन्द्र कुमार गुजराल स्वर्गीय चरण सिंह और स्वर्गीय विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधानमंत्री हुआ करते थे । स्वर्गीय चरण सिंह तो एक दिन भी संसद को नहीं झेल सके और विश्वास मतदान से पहले ही इस्तिफा देकर चलते बने। स्वर्गीय चंद्रशेखर चंद महिने देश के कर्णधार बने थे तब देश की हालत इतनी खराब हो गई थी की रिजर्व बैंक में सुरक्षित देश के सोने के भंडार को विदेश में वंधक रखना पड़ा था । स्वर्गीय विश्वनाथ प्रताप सिंह ने तो अपनी कुर्सी बचाने के लिए देश को आग में धकेल दिया था । स्वर्गीय देवीलाल को दबाने के लिए उन्होंने पिछड़े जातियों को आरक्षण का मुद्दा उछाल दिया था जिसके विरोध में हजारों युवकों ने वलिदान दे दिया । दिल्ली जैसे जगह में ऐसी अराजकता फैल गई थी जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं । देश में आपात काल जब इन्दिरा गांधी देश के प्रधानमंत्री थीं तभी देश में आपात काल लगा दिया गया था। क्यों? मात्र इसलिए की न्यायालय ने उनकी लोकसभा की सदस्यता समाप्त कर दी थी और इसके बाद उन्हें प्रधानमंत्री के पद पर बने रहना संभव नहीं था । स्वर्गीय जयप्रकाश नारायण जी के नेतृत्व में पूरे देश में आंदोलन फैल गया था । सभी इन्दिरा गांधी से इस्तिफा मांग रहे थै । इसी जनाक्रोश को दबाने के लिए पूरे देश को जेल में तब्दील कर दिया गया था । देश के तमाम विपक्षी नेता को गिरफ्तार कर जेल में ठूंस दिया गया था । सन् १९८४ में इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद बदले की कार्रवाई करते हुए हजारों निर्दोष सिखों की हत्या कर दी गयी और तब तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने क्या कहा था ? सभी जानते हैं । उसे दोहराने की जरूरत नहीं है । अफसोच और दुख की बात है की जब २०१४ में देश के करोड़ों जनता ने अपार बहुमत से आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी को देश का प्रधानमंत्री चुन दिया तो जनता द्वारे नकारे गए प्रतिपक्षी नेता खासकर गांधी परिवार के लोगों के छाती पर सांप लौटने लगा । उन्हें लगा कि सब कुछ लूट गया,जैसे की यह देश उनके परिवार की वपौती हो । देश पर शासन करना उन लोगों ने अपना जन्मजात अधिकार मान लिया था । अभी भी जब की आठ साल से मोदीजी देश के सर्वमान्य प्रधानमंत्री हैं, उनलोगोंओ को समझ नहीं आ रहा है की देश ने उनको क्यों नकार दिया और वे कहते फिर रहे हैं की इभीएम खराब है । अपने आप को झूठलाने के लिए इस से और बेहतर उपाय हो ही क्या सकता है? मोदीजी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी देश में लंबे अवधि तक मिली-जुली सरकारों का सिलसिला चलता रहा । किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के कारण महज सत्ता में बने रहने के लिए विरोधी विचार धाराओं के लोग आपस में मिल जाते थे और जैसे-तैसे बहुमत का आंकड़ा पार कर केन्द्र में सरकार बना लेते थे । इन में एकाध बार छोड़कर कोई भी सरकार अपना पाँच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी । देश में वारंबार मध्यावधि चुनाव होते रहे । उसके बाद भी मिली-जुली सरकार ही बनते रहे । सबों ने इसे नियति मान कर जैसे-तैसे सरकार चलाते रहे । ऐसी परिस्थिति में सरकार किसी भी प्रकार का मजबूत निर्णय नहीं ले पाती थी । अगर वे ऐसा करती तो सरकार ही लुढ़क जाती । विदेशों में हमारी स्थिति हास्यास्पद रहती थी । अमेरिका,चीन,रूस यहाँ तक की बांगला देश भी हमारे ऊपर नाना प्रकार के दबाब बनाते रहते थै । निश्चित रूप से वह बहुत ही चिंताजनक दौर था । परंतु,उसका समाधान किसी के पास नहीं था । समाधान लाए मोदीजी। देश में लगातार तीस साल तक मिली-जुली सरकार रहने के बाद आदरणीय नरेन्द्र भाइ मोदीजी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी । एक ऐसी सरकार जिसे बिना किसी दल के समर्थन के लोकसभा में बहुमत प्राप्त हुआ था । मोदीजी ने क्या नहीं किया? मई २०१४ में लोकसभा के चुनाव के बाद जो परिणाम सामने आया उसका अंदाज सायद किसी को नहीं था । मिलीजुली सरकारों से तंग आकर देश की जनता ने तीस साल के बाद लोकसभा में पूर्ण बहुमत की सरकार चुन दिया था । भारतीय जनता दल को स्वयं ही बहुमत मिल गया था । यह कोई साधारण घटना नहीं थी । आदरणीय नरेन्द्र मोदीजी बिना किसी किंतु-परंतु के देश के प्रधानमंत्री बन गए । मोदीजी को पता था कि देश ने उन पर कितना विश्वास किया है । पहले ही दिन से उन्होंने दिन-रात काम करना शुरु किया जो अभी भी वैसे जी जारी है। सरकार में आते ही हन्होंने गरीबों के लिए सरकारी बैंको के द्वार खोल दिए । बिना कूछ रकम जमा किए उन्होंने गरीबों के लिए बैंको में खाता खुलबा दिया । तब यह थोड़ा आश्चर्यपूर्ण लगता था कि कि आखिर बैंक में अगर इन लोगों का खाता खुल ही जाएगा तो कौन सा चमत्कार हो जाएगा? परंतु,अब सोचिए की वह कितना सोचा समझा कदम था । देश के करोड़ो किसानो के खाते में केन्द्र सरकार सीधे पैसा भेज रही है । बीच में इसे कोई छू भी नहीं सकता है । इसी तरह कई सरकारी योजनाओं के पैसे सीधे लाभार्थी को मिल रहे हैं । इस से करोड़ो रुपये की हेराफेरी बंद हो गयी है । बिचौलिओ का खेल खतम हो चुका है । नोटबंदी आपको सायद याद होगा कि अगस्त २०१६ में किस तरह रात में अचानक प्रधानमंत्रीजी ने स्वयं घोषणा कर देश में प्रचलित पाँच सौ और एक हजार के नोटों को बंद कर उनके स्थान पर नए पाँच सौ और दो हजार के नोटों के चालू होने की घोषणा कर दी । एकाएक हुए इस घोषणा से देश में चारो तरफ अफरा-तफरी का माहौल बन गया था । सुवह होते ही बैंको में नोट बदलने के लिए लोगों की भीड़ जमा हो गई थी । इस घोषणा के तुरंत बाद कुछ लोग सोने-चांदी के दूकानो पर पहुँच गए थे । जिनके पास में पुराना नोट बहुत अधिक मात्रा में था उनके लिए बहुत ही चिंता का विषय बन गया था । वे करें तो क्या करें? दो नंवर के धन को कैसे छिपाएं । वे सभी मिलकर मोदीजी को गाली देने लगे । लेकिन सामान्य जनता इस बात से बहुत खुश हुई थी की अब काला धन रखने वालों का पर्दाफास होकर रहेगा । यद्यपि बैंको में,एटीएम के पास और अन्यत्र जहाँ भी पुराने नोट खप सकते थे और नये नोट मिल सकते थे बहुत कठिनाईओं का सामना करना पड़ रहा था ,फिर भी सामान्य आदमी बहुत संतुष्ट दिख रहे थे । एक प्रकार से विजयोन्माद में थे । यह अलग बात है की कालाधन रखने वाले लोगों ने बड़ी चतुराई से अपने को बचाने में कामयाब रहे । इतनी लंबी और बोझिल प्रक्रिया के बाबजूद कालाधन वापस सायद ही मिल पाया। उल्टे बहुत से छोटे कामगारों ,मजदूरों की नौकरी चली गई । सरकार एक अच्छा काम करने के बाबजूद बाहबाही नहीं ले सकी । अपितु,उसे जबाब देना भी मुश्किल पड़ रहा था । लेकिन यह कहने की आवश्यकता नहीं है की सरकार ने सच्चे इरादे से एक जोखिम भरा और सख्त निर्णय लिया था जो सायद ही कोई अन्य सरकार कर सकती थी । राफेल/चौकीदार चोर है/ सर्जिकल स्ट्राइक/इभीएम खराब है नोटबंदी के बाद लग रहा था की सरकार सायद अगला चुनाव नहीं जीत पाए । इसी बीच में राफेल विमानों के सरकारी खरीद पर तरह-तरह के अभियोग लगाए गए । श्री राहुल गांधी ने तो “चौकीदार चोर है” का एक नया नारा ही गढ़ डाला । उच्चतम न्यायालय में इस मामले की सुनबाइ हुई और माननीय जजों ने सरकार और प्रधानमंत्री को सब आरोपों से मुक्त कर दिया । बात यहीं समाप्त हो जाना चाहिए था । परंतु,श्री राहुल गांधी जी को लगा कि मामला जनता की अदालत में ले जाना ठीक होगा । वे सायद मोदीजी की ईमानदार छवि को जैसे-तैसे धूमिल करके चुनाव जीत लेने की लालसा पाल रखे थे । दुर्भाग्यवश, सबकुछ वैसा नहीं हुआ जैसा वह चाहते थे । देश के जवानों ने पाकिस्तान की धरती में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक किया,उनके आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया और विना किसी क्षति के देश ऐसे लौट गए जैसे की सैर करके लौटे हों । पूरे देश का माहौल इस घटना के बाद बदल गया । जिसे देखिए वही मोदी,मोदी कर रहा था । इसका असर आगामी लोकसभा के चुनाव पर हुआ और माननीय मोदीजी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी एकबार फिर लोकसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त कर लिया । देश में दुबारा मोदीजी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी । सही माने में मोदीजी ने एक इतिहास रच दिया जिसपर संपूर्ण भारत को गर्व होने लगा । लेकीन कुछ विपक्षी नेता फिर भी सत्य स्वीकारने में हिचकते रहे । उन्होंने फिर से इभीएम खराब है-का नारा बुलंद करना शुरु कर दिया । पर झूठ कब तक चलता । सबकुछ टाँय-टाँय फिस हो गया । धारा ३७० का हटना/तीन तलाक/विदेशी हिन्दुओं को भारत की नागरिकता सन् २०१९ में हुए लोकसभा चुनाव में फिर से भाजपा लोकसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त करने में कामयाब हुआ । आदरणीय मोदीजी फिर से देश के प्रधानमंत्री बने । विरोधियों के तमाम दुष्प्रचार असफल हो गए । चौकीदार चोर है का नारा बेकार सावित हो गया । देश ने एक बार फिर से मोदीजी के ईमानदारी एवम् निष्ठा पर मुहर लगा दिया । अब क्या करते बेचारे? बस इभीएम खराब का नारा ही बच गया था। सो थोड़े दिन लगाने के बाद शांत हो गए । दोबारा चुनाव जीतने के बाद मोदी सरकार ने पूरे जोश में काम करना शुरु कर दिया । तीन तलाक को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया। काश्मीर से संविधान की धारा ३७० को निष्प्रभावी कर दिया गया । उतना ही नहीं-काश्मीर को पूर्ण राज्य से बदलकर केन्द्र शासित राज्य बना दिया गया और लद्दाख को एक अलग केन्द्र शासित क्षेत्र बना दिया गया । कुछ लोग यह भ्रम पाल रखे थे कि अगर धारा ३७० हटाया गया तो काश्मीर जल उठेगा,देश में तूफान आ जाएगा,यह हो जाएगा,वह हो जाएगा । परंतु,ऐसा कुछ भी नहीं हुआ । सरकार के दृढ़ इच्छाशक्ति के आगे सब को झुकना ही पड़ा । मोदी सरकार अपने तेज चाल को आगे बढ़ाते हुए नागरिकता कानून में संशोधन कर भारत के पड़ोसी देशों से विस्थापित हुए हिन्दू,सिख,ईसाइ अल्पसंख्यकों को विशेष कानूनी प्रावधान कर नागरिकता देने की व्यवस्था की। लेकिन कुछ लोग इसे मुस्लिम विरोधी कहकर प्रचार करने लगे जो कहीं से भी सही नहीं था । देश मे जहाँ-तहाँ खासकर दिल्ली में हिंसात्मक प्रदर्शन किए गए । परिणामस्वरुप, संसद द्वारा पास होने के बाबजूद आज तक यह कानून लागू नहीं किया जा सका है। इसके बाद कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए संसद द्वारा तीन कानून पास किए गए । इन कानूनों में कहीं भी किसानों के हित के खिलाफ कुछ भी नहीं था । फिर भी सुनियोजित रूप से देश भर में और देश के बाहर भी इन कानूनों के खिलाफ में भयानक प्रदर्शन किए गए । दिल्ली के आस-पास के रास्तों को साल भर से अधिक समय तक जबरन बंद कर दिया गया । इस सब से आम जनता को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा । मजबूर होकर सरकार ने इन कानूनों को वापस ले लिया । इस तरह दुष्प्रचार करके एक अच्छे प्रयास को नष्ट कर दिया गया। आप को याद होगा कि दिल्ली और बंगाल में विपक्षी दलों द्वारा चुनाव जीतने के बाद कितना खून-खराबा किया गया । कितने निर्दोष लोगों को अपनी जान गबानी पड़ी । किसी लोकतंत्र के लिए इस से शर्मनाक क्या हो सकता है कि चुनाव जीतने वाला बहुमत दल अपने विपक्षियों को चुन-चुन कर बदला ले और इतना परेशान कर दे कि वे अपने घर छोड़कर पलायन करने के लिए मजबीर हो जांए नहीं तो अपना जान तक गमाएं?लेकिन ऐसा ही हुआ । विदेश नीति देश के अन्दर मोदीजी के विरोधी यह सोचते रह गए कि चीन के आक्रमक रुख के आगे भारत सरकार झुक जाएगी,हार मान लेगी और चीन ऐसा कुछ कर गुजरेगा की मोदीजी की छवि को जबरदस्त धक्का लगेगा और वे देर-सवेर प्रधानमंत्री की कुर्सी से खुद ही हट जाएंगे या हटा दिए जाएंगे । श्री राहुल गांधीजी तो चुप-चाप चीन के अधिकारियों से मिल भी लिया । पता नहीं वे आपस में क्या बातें किए? परंतु,दुश्मन देश के प्रतिनिधियों से सरकारी अनुमति के बिना मिलना ,वह भी तब जब दोनों देश आपस में भिड़ने की स्थिति में थे, प्रशंसनीय तो नहीं कहा जा सकता है । लेकिन वे लोग मोदीजी को पराजित करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं ,इसका यह एक ज्वलंत उदाहरण जरूर था। अंततः डोकलाम में चीन को वापस जाना पड़ा और अब लद्दाख में भी वह कुछ कर नहीं पा रहा है । बेशक हमारी सेना को विगत दो सालों से परेशानी उठानी पड़ रही हो,लेकिन वे पूरी निर्भीकता से सीमा पर डटे हुए हैं । चीन को स्वयं भी सायद यह अनुमान नहीं रहा होगा की भारत की सरकार और सेना चट्टान की तरह अड़ जाएगी । राष्ट्रहित में विदेश नीति आदरणीय मोदी जे के नेतृत्व में २०१४ में देश में पूर्ण बहुमत की सरकार केन्द्र में बनी । उसके बाद से पूरे दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा और गरिमा में निरंतर वृद्धी हुई है । यहाँ तक की चीन जैसा महावली देश भी कुछ कर नहीं पा रहा है । बेशक उसमे सीमापर तनाव बढ़ा दिया है । परंतु, भारत की वीर सेना और मजबूत सरकार उस से लगातार आँख में आँख मिलाकर बात कर रही हैं । सायद उसे अब पछतावा हो रहा होगा कि नाहक वह सीमा पर सैनिकों को तेनाती बढ़ा कर तनाव पैदा कर लिया । अब तो उसे नो तो थूकते बन रही है न उगलते । यह सब केन्द्र में मोदीजी के नेतृत्व में एक मजबूत सरकार के बदौलत ही संभव हो पाया है । आज सारी दुनिया में भारत की बात सम्मानपूर्वक सुनी जा रही है । अमेरिका को भी साहस नहीं है कि भारत से जो चाहे करबा ले । उक्रेन-रूस विवाद में जिस तरह मोदी जी ने स्वतंत्र रुख लिआ और तमाम दवाव के बाबजूद उसपर कायम रहे ,इस से पुरे दुनिया को साफ और सख्त संदेश मिल गया है इस में कोई दो राय नहीं हो सकता है । कहने का मतलव साफ है कि अब भारत किसी से भी आँख में आँख मिलाकर बात करने में सक्षम है और इसके विदेश नीति राष्ट्रहित में ही तय की जाती है,किसी अन्य प्रकार के दवाव में नहीं । कोरोना काल कोरोना के समय जिस मुसीबतों को सामना करना पड़ा यह सभी जानते हैं । अधिकांश विपक्षी दल बस इसी में लगे रहे की किसी तरह मोदीजी को बदनाम कर दो,सरकार को विफल सावित कर दो । इसके लिए वे इस हद तक चले गए की कोरोना के टीका के खिलाफ भी दुष्प्रचार कने से नहीं चूके । परंतु,मोदीजी निष्ठापूर्वक अपने काम में डटे रहे । देश के करोड़ों लोगों को बहुत कम समय में टीका लगबा कर उन्हों ने पूरे दुनिया के सामने एक कीर्तिमान स्थापित कर दिया । त्वरित टीकाकारण का लाभ करोड़ो लोगो को हुआ और बहुत से लोगों की जान बचायी जा सकी । २०२४ आयेंगे तो मोदी ही मोदी ने क्या किया? वह तो बस बोलते रहते हैं ?आम जनता को उनके शासन काल में क्या मिला?इस तरह के प्रश्न विरोधी दल उठाते रहते हैं । इस में कुछ भी बुराई नहीं है । जनतंत्र में सरकार की आलोचना होनी चाहिए । इसका अधिकार सब को है । लेकिन सरकार के तमाम कार्यक्रमों का आँख मूंदकर विरोध के लिए विरोध करना किसी प्रकार से राष्ट्रहित में नहीं हो सकता है । मसलन विदेश जाकर श्री राहुल गांधी का मोदी जी और देश की सरकार के विरोद्ध प्रचार करना कहाँ से उचित है? देश विरोधी ताकतें ऐसी बातों का देश की इज्जत खराब करने के लिए किया जाता है । पाकिस्तान जैसा देश जहाँ करोड़ों हिन्दू अल्पसंख्यक का नामोनिशान नहीं बच सका ,वह भी भारत को अल्पसंक्यकों की रक्षा करने में असफल बताने में नहीं चूकते हैं । परंतु, उन्हें ऐसा करने का साहस हमारे लोग ही देते हैं । मोदीजी का विरोध करते-करते ऐसे लोग देशहित का विरोध करने में भी नहीं चूकते हैं । कोरोना काल में देश के करोड़ों गरीब जनता को मुफ्त आनाज और जरूरत के अन्य सामग्री मुहैया कराकर मोदी सरकार ने पुरे दुनिया को चौकाया है । इतना ही नहीं, उज्ज्वला योजना के अंतर्गत कम दाम पर गैस उपलव्ध कराकर असंख्य लोगों खासकर महिलाओं का कल्याण किया है । गाँव-गाँव में विजली,इन्टरनेट,जैसी आधुनिक सुविधाएं सुलभ हो गयी है । लाखों गरीबों को घर के लिए आर्थिक सहयोग दिया गया है । इस तरह समाज के निम्नतम पायदान पर खड़े लोगों के लिए मोदी सरकार ने अनेक योजनाएं सफलतापूर्वक उपलव्ध कराती रही हैं । इस सबों का जनता के मन में मोदीजी के प्रति बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ा है और इसका असर चुनाव में पड़ना ही है । इस तरह मोदीजी के नेतृत्व में सरकार दिन-रात जन कल्याणकारी योजनाओं को लागू कर रही है , जब की विपक्षी दल मात्र हल्ला-गुल्ला कर चाहते हैं की जनता उनके साथ हो जाए । यह संभव होने वाला नहीं है । लोग अब बहुत सजग और सावधान हो गए हैं । उन्हें ठगा नहीं जा सकता है । जनता ठोस काम चाहती है जो विपक्षी दलों के पास है ही नहीं । वे तो बस मोदी विरोध से ही सत्ता में वापसी चाहते हैं जो होता नहीं दिख रहा है । आदरणीय मोदी जी और उनकी नीति को समझने में विपक्ष खास कर श्री राहुलजी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी कहीं न कहीं भयंकर भुल कर रही है और करती जा रही है । वे सायद समझ नहीं पा रहे हैं की भारत की जनता को अब मूर्ख बनाकर चुनाव नहीं जीता जा सकता है । इसके लिए जमीनी स्तर पर काम करना जरूरी हे । काम करके जनता का दिल जीतना, मनमें विश्वास पैदा करना जरूरी है। अगर वे समझते हैं की बात- बात में मोदीजी को गाली देकर लोकप्रियता प्राप्त कर लेंगे और मोदीजी को आगामी चुनावों में हरा देंगे तो यह उनकी भूल है । सत्य तो यह है की वे लोग जितना भी मोदीजी को गाली दे लें, लोगों का विश्वास उनमें बढ़ता ही जा रहा है और कोई भारी बात नहीं है की २०२४ के लोकसभा के चुनाव में पहले से भी ज्यादा सीटों के साथ मोदीजी तीसरे भार बारत के प्रधानमंत्री बनें । यह जरूरी भी है । क्यों की जिस तरह राष्ट्रीय हितों के मुद्दे पर भी विपक्षी नेता खासकर श्री राहुल गांधीजी विरोधी रूख अपनाते रहते हैं उस से भारत की जनता उनमें जरा भी विश्वास नहीं कर पा रही है । लोगों में अब एक आम धारणा बन चुकी है की ये लोग बस विरोध के लिए ही विरोध करते हैं । इनके पास कोई ठोस वैकल्पिक योजना नहीं है, न ही विपक्षी आपस में मिलकर कोई मजबूत सरकार देने की स्थिति में दिखाइ दे रहे हैं । ऐसी सरकार अगर बन भी गई तो वह देश और जनता दोनों के लिए घातक ही साबित होगी । अतः यह तय है की २०२४ आयेंगे तो मोदी ही चाहे विपक्षी पार्टियां कितना भी जोर लगा लें । रबीन्द्र नारायण मिश्र mishrarn@gmail.com 11.6.2022

मंगलवार, 22 मार्च 2022

Shri Jagadish Prasad Mandal, an epitome of struggle and achievement

 


Shri Jagadish Prasad Mandal, an epitome of struggle and achievement

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Shri Jagadish Prasad Mandal, the winner of the Sahitya akademi Award in Maithili for the year 2021 for his novel, Pangu, is an epitome of struggle and achievement. Perhaps very few people knew that until the age of 59 he had hardly touched his pen, was busy fighting court cases thrust upon him by the local strongmen against whom he fought for years together for the sake of the poor and the downtrodden villagers. Having acquired M.A.degree in Political Science and Hindi, he could definitely have got a good job and spent a life of luxury. But he consciously chose to live a life full of struggles, participated in various farmers agitations, did many things valuable for the upliftment of his fellow villagers. That is how he spent his entire youth and continued with this till he approached 60 years of his life.
Having realized that he may now need to reduce physical activities due to growing age, he decided to spend his time in writings although farming continued his means of livelihood. A few acres of land that he inherited, were sufficient to manage his day-to-day necessities.
His entire family, his son (Dr Umesh Mandal), his daughter-in-law, his granddaughter -all work day and night to publish his work. And this is continuing not for one month, two months but for years together and that too without any financial gain. They have set up Pallavi Prakashan and Manav Art Printing for publishing books in Maithili. In fact, my first book in Maithili, Bhor san Sanjh dhari(भोर सँ साँझ धरि),was published by Pallavi Prakashan (in collaboration with Dr. Umesh Mandal) in the year 2017.
Jagadish Babu is a true Karmyogi. He gets up at 2AM in the morning. After a cup of tea, he spends about three hours’ time till 5AM in the morning on regular basis since last about 16 years now. During this period, he wrote about 106 books in Maithili language in almost all genres. He wrote 20 novels,750 stories, hundreds of poems.Thus, he has done a lot in the field of Maithili literature.
Sahitya Academy has added to its prestige by honoring this great son of Mithila. In fact, this award should have gone to him much earlier. He deserves much better. His writings are original and tell a lot about the realities of rural life of Mithilanchal. He deserves even the Novel prize in Literature.
I got the opportunity to meet him for the first time on 11th March 2022 when he came to Sahitya Akademi to receive the award. I was amazed by his simplicity. I was very much impressed with his innocent smile. The warmth in his manners, his utterances and behavior—were all excellent! I could hear him speaking many original words of Maithili which are now mostly forgotten.
I pray for the long, happy and healthy life of Jagadish babu so that he continues to benefit us from his literary talent for many, many years!
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Rabindra Narayan Mishra
mishrarn@gmail.com