अखबार माने टाइमपास
कै बेर लोक कहताह-"हौ! अखबार पढ़ने
कोनो पेट भरैत छैक?"
पेट भरौक कि नहि मुदा मोन तँ भरिते छैक । फेर हमसभ तँ सामाजिक प्राणी छी । लग-पासमे
रहनिहार लोकक सुख-सुविधाक ध्यान राखब आ विपत्तिमे संगे ठाढ़ होएब बहुत जरूरी होइत अछि
। से तँ तखने होएत जखन हम अपना-आपकेँ समाजसँ
जोड़ि कए राखी । ताहि हेतु अखबार एकटा बहुत
सशक्त माध्यम साबित भए सकैत अछि ।
अखबारक सबसँ पैघ फाएदा ई थिक जे अहाँ नित्य भिरे-भोर किछु नव घटनासँ जुड़ि जाइत
छी । नित्यप्रति देश-परदेशमे भए रहल परिवर्तनसँ
अवगत होइत छी । ततबे नहि, लग-पासक बहुत रास सुविधा-असुविधासँ परिचित होइत रहैत छी । बहुत लोकक तँ ई स्थिति अछि जे जँ भोरे उठि कए भफाइत चाहक चुस्कीक
संग अखबारक चासनी नहि भेटतनि तँ बुझू बोखार लागि जेतनि । घरसँ बाहर भए अखबारक आगमनक
प्रतीक्षा करए लगताह । अखबार पढ़ि लेलाक बाद एकटा संतुष्टिक भाव मोनमे अबैत अछि । प्रायः
भोरुका एकघंटा समय चाहक संगे अखबार पढ़बामे नीकसँ बीति जाइत अछि ।
भोरुका अखबार माने टाइमपास । जौँ भोरमे अखबार
आबएमे विलंब भेल तँ कै गोटे परेसानी
बढ़ि जाइत छनि । कै गोटे अखबारबलाक बाट तकैत-तकैत
बाहर निकलि जाइत छथि । अखबारबलाकेँ फोनपर फोन होबए लगैत अछि । ओहो तँ मनुक्खे
अछि । कहिओ बिमार पड़ि सकैत अछि,जरूरी काज आबि सकैत
छैक । कारण किछु भए सकैत छैक मुदा एहन नहि भए सकैत अछि जे ओ कहिओ छुट्टी लेबे नहि करए
। मुदा अखबारक चस्का तेहन होइत अछि जे लोक एक्कोदिन ओकर बिना रहिए नहि सकैत अछि । बेचैन
भए जाइत अछि । एकरे कहल जाइत अछि अमल । भोरमे अखबार पढ़ब सेहो एकटा अमले थिक जकर चस्का
कोनो निसासँ कम नहि होइत अछि ।
अखबारक कुन पन्ना के सबसँ पहिने उलटओताह ओ हुनकर रूचि आ स्वभावपर निर्भर करैत अछि
। हमरा कार्यालयमे एकटा कर्मचारी अखबार पढ़एकाल सबसँ पहिने बिचलका पन्ना पढ़ैत छलाह जाहिमे जिलाभरिमे भेल खून-खराबाक
समाचार भरल रहैत छल । तहिना जौँ किओ क्रिकेटप्रेमी छथि तँ ओ सभसँ पहिने खेल समाचार
पढ़ता। राजनीतिमे रूचि
रखनहार लोक प्रथम पृष्ठ सभसँ पहिने पढ़ताह
। तकरबाद दुनिआ भरिक राजनीतिक गप्प करताह जेना
कि सभटा जिम्मेबारी हुनके माथपर होनि ।
अखबारक अभाव ओकर उपस्थितिसँ बेसी लक्षित होइत अछि । जौँ कोनो कारणसँ कहिओ अखबार
नहि आएल तँ भोरेसँ मूड खराप होएब स्वभाविक । चाह तँ आबि गेल मुदा अखबार बिना चाहक कोन
आनंद रहि गेल'-से मोनमे होइत रहैत अछि । कै गोटा
तँ अखबार आनबाक हेतु दिन-राति एक कए दैत छथि । जौँ किओ मधुबनी वा दरभंगा जा रहल छथि
तँ हुनका अखबार अनबाक भार देथिन जे घुरतीमे अखबार लेने आएब। सोचएबला गप्प थिक जे आखिर
अखबारक एतेक प्रयोजन किएक रहैत छैक? किछु तँ एहन बात हेतैक जे अखबार मंगाएब आ पढ़ब एतेक महत्वपूर्ण भए गेल अछि
।
असलमे अखबारमे एकहि संगे बहुत रास लोकक आवश्यकताक पूर्ति होइत अछि । जकरा नौकरी
चाही से नव-नव रिक्तिक सूचना देखि अपन दर्खास्त लगा सकैत छथि । जिनका बिआह करबाक छनि
हुनको लेल ओहिमे विज्ञापन देखल जा सकैत अछि । परीक्षाक परिणाम सेहो ओहिमे पढ़ल जा सकैत
अछि । गाम-घरक समाचार तँ भेटिए जाइत छैक ।
अखबार नियमित पढ़बाक फाएदा जगजाहिर अछि । थोड़बे कालमे दुनिआ भरिक चहलकदमी पता
लागि जाइत अछि ,सेहो बिना कोनो विशेष प्रयासक । ओना
आइ-काल्हि समचारक माध्यममे बहुत रास इजाफा भेल अछि । मोबाइल फोन,दूरदर्शन,,घर-घर पसरि गेल
अछि । कहि सकैत छी तखन अखबारकेँ के पुछैत अछि? मुदा से बात नहि अछि । कतबो किछु भेलैक अछि,मुदा अखबारक बिक्री बढ़बे कएल अछि । तकर की कारण? एकटा प्रमुख कारण थिक जे अखबारमे पाठकक हाथमे रहैत छैक जे कोन
समाचार कतबाकाल धरि पढ़ल जाए । चाहथि तँ ओ
प्रमुख पाँतिसभ पढ़ि कए अखबारक पन्ना पलटि देथि नहि जँ कोनो समाचार बेसी रुचिगर किंवा उपयोगी बुझेलनि तँ ओकर पाँति -पाँति पढ़ि
जाउ,मर्जी पाठकक । मुदा दूरदर्शनमे से बात नहि रहैत अछि । जहाँ समाचार
देखए लागब कि प्रचारक शृंखला शुरु होएत । लिअह औ बाबू!रिमोट हाथमे लए चैनेलसभ बदलैत रहू मुदा बात ओतबे भेटत । सब चैनेलबला
से सीखा-बुद्धी केने रहैत अछि जे सभठाम विज्ञापन एकहि संगे होइत रहैत अछि । हारिकए
दर्शक बैसि जाइत छथि आ जएह-सएह देखैत रहि जाइत छथि । मुदा अखबारमे से बात नहि होइत
अछि । लोक अपन रुचिक हिसाबसँ निर्णय कए सकैत छथि जे
की पढ़ी आ की नहि । ककरा नीकसँ पढ़ी आ ककर मुख्य पाँति पढ़ि कए आगू बढ़ि जाइ । कहक माने जे नियंत्रण
पढ़एबलाक हाथमे रहैत अछि । मुदा अखबारोकेँ अपन सीमान छैक । एकतँ ओ एक-दू दिन पुरान
समाचार छपैत अछि । कारण जाबे समाचार छपतैक आ लोकक हाथमे पहँचतैक ताबे तँ ओ बसिआ भए
जाइत अछि । अस्तु,कै बेर संवेदनशील
समाचारकेँ सद्यः देखबाक हेतु दूरदर्शनक जबाब
नहि अछि । घरे बैसल चंद्रमाक धरातलपर छंद्रयानक गतिविधि देखू,मोन होअए तँ संसद कार्यवाही देखू । ई काज अखबारसँ तँ नहिए भए
सकैत अछि । तथापि,अखबारक अपन महत्व
छैक आ रहबे करतैक ।
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