डाइन
हमसभ नेनेसँ
डाइनक बारेमे सुनैत अएलहुँ अछि । डाइनिसँ बँचि कए रही,ओकर हाथसँ किछु नहि खाइ,ओकर
नजरिसँ पराके रही ,नहि तँ गेल घर छी । कखन प्राण लए लेत तकर हिसाब नहि। हालत तँ ततेक खराप रहेक जे कोनो
कारणसँ किओ दुखित भए गेल,घरमे चोरी भए गेल, वा
किओ मरि-हरि गेल तँ सभक कारण कोनो-ने-कोनो डाइनि वा एहने किछुकेँ मानल जाइत छल ।
समाधान छलाह भगता,तांत्रिक,ओझा-गुनी । समाजमे व्याप्त
अशिक्षा आ अज्ञनताक कारणेँ एहि तरहक बातसभक खूब बरक्कति होइत छल । जँ ककरो घरमे चोरी
भए गेल तँ तकरो समाधान ओझा-गुनी करैत छलाह । चटिबाहसँ बट्टा चलाओल जाइत छल ।
मंत्रक प्रभाव तेहन
सटीक आ कड़गर
होइत छल जे ओ जेमहर-जेमहर चोर गेल रहैत छल ताहि बाटे घुमए लगैत छल आ अंतमे चोरकेँ
घरमे वा ओकरे लग-पासमे पहुँचि जाइत छल जाहिसँ चोरक बारेमे स्पष्ट अनुमान लोक लगा
लैत छलाह । कहबाक जरूरी नहि बुझाइत अछि जे
एहन काजसभक परिणाम कै बेर बहुत घातक होइत छल । कैटा निर्दोष लोक समाजमे अपमानित भए
जिबाक हेतु विवश होइत छलाह ।
सामान्यतः ई
देखल जाइत अछि जे निकट संबंधीमे आपसी कटुता बढ़ि गेलाक बाद कोनो स्त्रीक समगे
तरह-तरहक खिस्सासभ जोड़ि देल जाइत अछि ।
जेना कि ओ तँ हकल डाइन छैक ,
राति कए गाछ हकैत छैक ,
ओकरा तँ हम अष्टमी रातिमे नंगटे नचैत देखलिऐक । कालक्रमे ई सभ बात ततेक फैल जाइत अछि
जे ओहि महिलाक लग-पास जेबासँ लोक डराइत अछि । ओकर देल पानि नहि पीबए चाहैत अछि ।
ओकरा हाथसँ भोजन करबाक तँ प्रश्ने नहि उठैत अछि । एहिसभक कारणें ओ महिला समाजमे
एसगरि भए बहुत रास प्रतारणा सहैत रहैत छथि ।
कैठाम देखल जाइत
अछि जे दियादी झगड़ाक बाद कोनो महिलाकेँ डाइन घोषित कए देल जाइत अछि । किछु
षड़यंत्र कए एहन दृष्य बना देल जाइत अछि जे लोकसभ भ्रमित भए जाइत छथि आ तथाकथित
डाइनसँ फटकी रहए लगैत छथि । गाम-घरमे लोकसभ एहन
महिलाक ओहिठआम नोत खेबासँ बचैत रहैत छथि आ ओकरा सेहो नोत नहि दैथ छथि
। आखिर एना किएक कएल जाइत अछि? जबाब
भेटत-अहाँ बाहर रहैत
छी । गामक लोकक छिज्जा कीजाने गेलिऐक ? फलनमाक”घरबाली तँ रातिभरि श्मशानमे बैसल रहैत छैक । मुर्दासभक संगे मंत्र
सिद्ध करैत रहैत छैक । नहि विश्वास होअए तँ रातिमे हमरासंगे चुपचाप चलब । जखन अपने
आँखिसँ देखि लेबैक तँ विश्वास भए जाएत ।
सबाल अछि जे
आखिर एहिसभ बातमे कतेक सत्यता थिक आ जँ से नहि अछि तँ एना किएक होइत अछि? हमरा
हिसाबसँ तँ एहिसब बातमे कोनो सत्यता नहि अछि । कै बेर हम स्वयं अन्हरोखे एहन
स्थानसभ पर जाइत रही जतए लोक एहन संभावना कहैत रहैत छल । मुदा हमरा कहिओ किछु नहि अभरल । ने कोनो प्रकारक
क्षति भेल। तेँ एहि तरह गप्पसभ मात्र दुष्टताक अतिरिक्त किछु नहि अछि । लोक अपन
दियादी औल चुकता करबाक हेतु एहि तरहक दुष्प्रचार करैत अछि । दुर्भाग्यक बात थिक जे
मूलतः अज्ञानतावश एहि तरहक दुष्प्रचारकेँ जन समर्थन सेहो भेटि जाइत अछि । रहल बात ई जे
आखिर लोक एना किएक करैत छथि? तकर की कहल जाए? मुदा एतबा तँ
निश्चय जे आपसी दुश्मनी वा इर्ष्या-द्वेषवश एहन घटनासभ होइत अछि आ अज्ञनतावश किंवा
अंधविश्वासक वशीभूत भए लोकसभ एकरा सही मानि लैत छथि ।
निश्चित रूपसँ
समाजमे व्यप्त अशिक्षा आ अंधविश्वासेक परिणाम थिक जे एखनो लोकसभ डाइन वा एहि तरहक
वस्तुसभक मान्यता दैत छथि । ततबे नहि ओहि चलते कैटा लोकक जिनगी बरबाद भए जाइत अछि
। कै बेर तंत्र-मंत्रक चक्करमे पड़ि कए निर्दोषक नेनासभक वलप्रदान धरि दए देल जाइत
अछि । एहिसँ पैघ अन्याय की भए सकैत अछि? अस्तु,ई जरूरी अछि जे
समाजमे एहि तरहक कुवृतिक प्रति लोककेँ सतर्क कएल जाए जाहिसँ निर्दोष व्यक्तिक जीवन
आ प्रतिष्ठाक
रक्षा कएल जा सकए ।
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