सोमवार, 1 जून 2020

शांति और सुख

 

शांति और सुख

 

 

हमें क्या चाहिए?

थोड़ा सा वस्त्र और थोड़ी आनाज

रहने के लिए छोटा सा घर

जहाँ हो सुकून

जहाँ अपनों से दिल खोलकर

कर सकें वार्तालाप

जहाँ बैठने-उठने से मन में हो शांति

लेकिन नहीं जनाब!

यहाँ तो होड़ लगी है

कई पुस्तों के भविष्य  बनाने की

चाहे  जो भी करना पड़े

भले दूसरों का हक छीनना पड़े

लालच  का कोई अंत नहीं

कितने ऐसे हैं

जो सारी पृथ्वी मिल जाए तो भी रहेंगे बेचैन

और

पता नहीं कितने घर उजाड़ेंगे

कितनों की जिन्दगी करेंगे तबाह

ताकि वे अपने सपने का महल बना सकें

और जीवन भर रहेंगे अशांत

मकरे के जाल जैसे

हम   बुनते रहते हैं

 नित्य नए  विवाद

और उसी में उलझकर रह जाते हैं

जीवन भर

सत्य जो सुलभ है

करते नहीं स्वीकार

दैहिक सुख को बनाकर इष्ट

हम हो नहीं पाते कभी संतृप्त

और छूट जाते हैं अकेले

जहाँ से चले थे

जो हमारा है नहीं

वही हम को चाहिए

जो हमारे भाग्य में है  नहीं

 उसे पाने के लिए

करते  हैं छल-प्रपंच

अकेले थे अकेले जाएंगे

साथ कुछ भी नहीं जा पाएगा

जो भी संग्रह किया

सबकुछ यहीं रह जाएगा

वासनाओं से विरत मन

हो स्वयं में लीन

ढूंढ़ता है जब स्वयं को

सतत अंतर्लीन

तब हँसी आती स्वयं पर

कुछ नहीं रखा यहाँ

व्यर्थ यह संसार

सब छोड़ने के हेतु व्याकुल मन

कर रहा -चित्कार-

कुछ नहीं चाहिए’’

और छोड़ देता है सकल संसार

जब वासना हो शिथिल

मन कामनाओ से मुक्त

हम रहे निर्लिप्त

क्षणिक सुख -भोग से

 सही माने में वही है

सुख-शांति का सम्राज्य ।

 1.6.2020

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें