ग्रामोफोन
कारी गोल
चक्का घुमि रहल छल । ओकर बीचमे एकटा मुरुत सेहो घुमि रहल छल । कतहु केओ नहि देखा
रहल छल । तथापि, एकटा बक्साक बीचमेसँ आबाज अबैत छल । गाना सुनाइत छल ।
ओहि समयमे एहिसँ बेसी अजगुत बातक कल्पनो नहि कएल जा सकैत छल । ओ छल ओहि समयक प्रमुख मनोरंजनक
साधन-ग्रामोफोन । गाममे मोसकिलसँ दू-तीन
गोटेकेँ से रहनि । गाममे कतहु सत्य नारायण भगवानक पूजा भेल,वा एहि तरहक
कोनो आयोजन भेल तँ ओ
बजाओल जाइत छल । नेनासभ बहुत उत्सुकतासँ ओकरा घेरने रहैत छल ।
हमसभ नेनामे
कैकबेर ग्रामोफोनक रेकार्डकेँ घुमैत काल
ओकर बीचमे नचैत चित्रकेँ देखि सोचिऐक जे इएह गाबि रहल छैक । कैकबेर होअए जे
ग्रामोफोनक भीतर केओ नुकाऐल अछि आ गाबि रहल अछि । कैकबेर ग्रामोफोनक बक्सा खोलि कए
देखबो करिऐक मुदा किछु नहि देखाइत छल । तखन ई गाना के गबैत अछि? ई
आबाज कतएसँ आबि रहल छैक? एहि प्रश्नक जबाब के दैत?
गाममे तँ तखनो ग्रामोफोन दुर्लभ छल । कोनो
विशेष अवसरपर बजाओल जाइत चल-जेना ककरो ओहिठाम जँ सत्य नारायण भगवानक पूजा होइत तँ
लोकसभक आग्रहपर अमीर काकाकेँ खुशामद करैत । तखन ग्रामोफोन आनल जाइत । डेढ़ हाथक पेटी खुजैत । ओहिमे एकटा नोकीला सुई गोलका चक्कामे
लगाओल जाइत । हाथकेँ घुमा-घुमा कए ओकर स्प्रिंगकेँ तानल जाइत । ग्रामोफोनक बीचमे
रेकार्डकेँ राखल जाइत । सभसँ अंतमे ओकर स्वीचकेँ घुसकाओल जाइत आ शुरु होइत संगीत । “बाह! की
कमालक मसीन अछि” - लोक मोने-मोन सोचैत। बेसी काल
रामायणक रेकार्ड लगाओल जाइत । कैकबेर नचैत-नचैत रेकार्ड ठाढ़ भए जाइत । आबाज खतम ।
गीत बंद । नेनासभ चारूकातसँ लुधकि जाइत ।
सभकेँ जिज्ञासा जे आखिर भेलैक की?
हमरा
गाम(अड़ेर डीह टोल)मे स्वर्गीय घुरन बाबूक ओहिठाम सेहो ग्रामोफोन रहनि । ओ
ग्रामोफोन बेहतर चल । हुनकर पुत्र डाक्टर सच्चिदानंदजीक संगे हम ओहि ग्रामोफोन धरि
कैकबेर पहुँचल रही । कहि नहि सकैत छी जे कतेक उत्सुकताक संग ग्रामोफोनक गीत सुनने
रही । किछुदिनक बाद एकटा ग्रामोफोन हमर बाबू सेहो लेलाह । मुदा ओ ग्रामोफोन
स्थानीय मिस्त्री बनओने रहए । कखनहुँ चलैक आ कखनो बैसि जाइक । ओहिमे एकटा भोपू लागल रहैक जाहि बाटे आबाज बाहर होइक । ऐकबेर
किछु टाका जेना-तेना ओरिआन कए हम बिंदूकाकाक संगे मधुबनी जा कए ग्रामोफोनक रेकार्ड किनने रही । किशोरीलाल
चौक मधुबनीसँ सटले ओ दोकान रहैक। ओ ससुराल
फिल्मक गाना रहैक । एकदिस -तेरी प्यारी-प्यारी सुरत को किसी की नजर न लगे…….दोसर
दिस रहैक-अपने उल्फत पे जमाने का नजर ना होता तो कितना अच्छा होता..............
नेनामे कोनो
बातक जिज्ञासा बहुत होइत छैक । ग्रामोफोनसँ
निकलैत आबाजकतएसँ अबैत अछि? ई जानबाक इच्छा प्रवल रहैत छल । केओ कहितए जे ग्रामोफोनक भीतर एकटा बुढ़िया रहैत छैक
। ओएह गबैत छैक,केओ किछु । हम ग्रामोफोनकेँ खोलि-खोलि ओकर पाट-पाटमे ओहि
बुढ़या गबैयाकेँ तकैत रहैत छलहुँ । मुदा कतहु किछु कहिओ नहि देखाएल ,उल्टे
कैकबेर मसीन खराप भए गेल। कैकबेर ग्रामोफोनक भोपूमे मुरी पैसा कए देखैत रही मुदा
जेहो आबाज अबैत छल सेहो क्रमश; बंद भए जाइत छल । अस्तु,ग्रामोफोन
एकटा रहस्य बनल छल । मुदा केओ ई नहि बूझा सकल जे
आखिर ई कोना काज करैत अछि आ एहिमे सँ निकलि रहल आबाजक पाछू कोन विज्ञान छैक?
ग्रामोफोनक
ओएह रुप-रेखा हम बहुत दिनक बाद देखलिऐक दिल्लीक कनाट प्लेसमे । हमुमान मंदिरसँ दर्शन कए बाहर भेल रही । काफी
होमक नीचाबला परिसरमे कोनपर ग्रामोफोन राखल छल । ओएह छवि,ओहने छटा
जेहन हम नेनामे अपन गाममे देखने रहिऐक । ओकर आकार कनेक पैघ जरूर छलैक । बड़ीकाल धरि
हम ओकरा देखिते रहि गेलहुँ । फेर मोबाइलसँ ओकर फोटो खिचलहुँ।
पता लागल जे ओ सौकिआ ओतए राखल छैक ,बिकेतैक नहि
। जँ बिकेबो करितैक तँ आब केओ सजाबटेक हेतु लेत ,ओहिसँ
आओर काज तँ करत नहि । कारण आब तँ एक सँ एक यंत्र आबि गेल अछि । गाना-बजानाक साधनक
कमी नहि अछि । नान्हिटा रेडिओसँ,मोबाइलसँ हजारों गाना
बजाओल जा सकैत अछि । टीवीक तरह-तरहक प्रकारसँ बजार भरल अछि । से जे होउक मुदा
ग्रामोफोन संगीतक दुनिआक इतिहासक अभिन्न अंग रहल अछि आ ताहि बातकेँ बिसरलो नहि जा
सकैत अछि ।
30.5.2020
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