जीवन संगीत
अपना ओहिठाम कहल जाइत अछि जे चौड़ासीलाख
जोनिमे सबसँ श्रेष्ठ जोनि मनुक्खक होइत अछि। कर्मवश,प्रारव्धवश
लोक नाना प्रकारक जोनिमे भटकैत रहैत छथि । बहुत
तपस्या कही,धर्म कही जे कही केलाक बादे मनुक्खक जोनिमे जन्म होइत अछि । कहब जे एहन कोन
बात छैक जाहिसँ मनुक्खक जोनिकेँ एतेक प्रमुखता देल गेल अछि । हमरा जनतबे सभसँ विशेषता
तँ इएह अछि जे एहि जीवनमे अहाँ कर्मकए
प्रारव्धोकेँ बदलि सकैत छी । गाछ-बृच्छ ,चेड़ै-चुनमुन,कीट-फतिंगा
सभमे जीवनक समस्त लक्षण देखबामे अबैत अछि । मुदा कर्म करबाक स्वतंत्रता आ तदनुसार
जीवनकेँ दिशा देबाक सामर्थ्य मनुक्खेक
बशमे बुझाइत अछि ,आन कोनो जीव-जन्तुमे अद्यावदि ई शक्तिक जानकारी तँ अखन धरि नहि भेलैक अछि ।
तेँ मनुक्खक जन्म सर्वोपरि मानल-जानल जाइत अछि ।
आइ-काल्हि
जीवनमे भौतिकता ओ बाजारवादक ततेक प्रमुखता भए गेल अछि जे हमसभ सभ चीजकेँ पाइसँ तुलना करैत रहैत छी । अमुक काज केलासँ हमरा कतेक
फैदा होएत,कतेक पाइ भेटत ?हम की करी
जे जल्दीसँ जल्दी इलाकाक सभसँ पैघ धनीकमे हमर सुमार भए जाए । माने लोकसभ जेना एकटा
अंतहीन प्रतिस्पर्धामे सामिल छथि । हमर एकटा मित्र जे प्रसिद्ध चिकित्सक छथि एकदिन
कहैत रहथि -" आइ-काल्हि लोक टाका कमेबाक चक्करमे धीओ-पुताक जन्म तरह-तरहक व्योंत
कए टाड़ि रहल छथि मुदा एकटा समय अबैत अछि जखन सभटा कमाओल टाका एकटा बच्चाक जन्म हेतु खर्च करबाक हेतु तैयार रहैत छथि आ कैओ दैत छथि
तथापि कैबेर निराशा हाथ लगैत छनि , वच्चा नहि होइत छनि। कहक माने जे जीवनमे सभ चीजक अपन महत्व छैक । सभचीजक अपन समय
छैक । हमरा लोकनिकेँ एकटा संतुलन बनाएब जरूरी अछि नहि तँ बादमे पश्चातापे केलासँ की
होएत? का बरखा जब कृषि सुखाने? तेँ समयक
इसाराकेँ बुझबाक चाही । ई बात बुझबाक चाही जे सुख एकटा भिन्न बस्तु थिक । खोपड़िओमे
किओ महराइ गबैत सुखी जीवन जीवि सकैत अछि आ महलोमे रहनिहार समस्त सुख सुविधा अछैत निन्न
बिना राति भरि टकटकी लगओने रहि सकैत छथि आ निन्नक गोली खाइत रहैत छथि।
ओना तँ धन -संपत्तिक कोनो अंत नहि अछि मुदा जीवन जीवाक
हेतु मौलिक सुख-सुविधा तँ चाहबे करी । रहए लेल घर,पहिरए हेतु वस्त्र आ भुख लगलापर दुनूसाँझ
भोजन तँ चाहबे करी । हे चलू,तकरबादो जँ कनी-मनी उपरा भए गेल तँ बुझु जे भात-दालिक बाद दहीक
छऔक काज करत । की एतबोपर लोककेँ संतोख होइत छेक? नहि होइत छैक । आओर इएह थिक अशांतिक
जड़ि । कारण जखन हम आवश्यकतासँ बेसी जमा करबाक फिराकमे पड़ब तँ जाहिर छैक जे ककरो वाजिब
हक मारल जाएत । जखन किओ सभटा धान अपन बखारीमे एहि लेल भरि लैत छी जे ओकर पौत्र-प्रपौत्रकेँ
काज आओत तँ की होएत ?
अधिकांश लोक भुखले पेटे सुतत । परिणाम ? अशांति,जनआक्रोश
छोड़ि आओर की भए सकैत अछि?सौंसे संसारमे जरुरत भरि वस्तु भगवान प्रकृतिमे भरि देने छथि ।
नानाप्रकारक फल,फूल,तरकारीसँ ई पृथ्वी भरल छथि । मुदा हमरासभक स्वार्थी प्रवृतिक कारण अखनो,एहू युगमे
जतए विज्ञान एतेक बढ़ि गेल अछि,लाखो लोक भुखले सुतैत अछि । छैक ने दुखक बात?
जहिना जीबाक
हेतु मौलिक आवश्यकताक पूर्ति जरूरी अछि तहिना इहो जरूरी अछि जे हमसभ अनावश्यक संग्रह
नहि करी । अपना ओहिठाम अयाची मिश्रक कथा बहुत प्रसिद्ध अछि । अत्यंत अभावमे रहितहुँ
ओ महराजक मदति स्वीकार नहि केलनि । जे किछु हुनका भगवान देने छलखिन ताहीमे चैनसँ ओ
जीबैत छलाह । कोनो हरहर खटखट नहि । दिवस्य अष्टमे भागे शाकं पचति यगृहे । कहक मतलब
जे दिनमे एकबेर खाउ आ मस्त रहू । ने उधो का लेना ने माधो का देने । सारांश जे संतोख
बड़का बस्तु थिक । संतोखक विना हमसभ सुखी नहि भए सकैत छी ।
जीवनमे सुखी
रहबाक हेतु शांति बहुत जरूरी अछि । गीतामे भगवान कहैत छथ-"अशांतस्य कुतो सुखम्"
। जिनका शांति नहि तिनका सुख कहाँ? शांतिपूर्वक जीवन चलाएब सेहो कला
थिक । बहुत देखाबामे किंवा पैघ- पैघ पद भेनहि जीवनमे सुख होएत से जरुरी नहि अछि । सही
बात तँ ई थिक जे पैघ पद प्राप्त भए गेलाक बाद लोक ओकरा बचेबाक फिराकमे दिन-राति व्यग्र
रहए लागैत छी । ताहि हेतु जरूरी अछि जे जीवनमे संतोखक भाव आबए । से भेनहि शांति भए
सकैत अछि । ऐकटा खोपड़ीमे रहनिहार सुखी भए सकैत अछि जँ हुनका संतोख छनि,नहि तँ भूत जकाँ लोक बौआइत रहि जाइत अछि ।
जीवन ओहो
मनुक्खक एकटा अद्भुत वरदान अछि । प्रकृति अपन संपूर्ण सामर्थ्यसँ समस्त जीव-जन्तुक
निर्वाहक हेतु पर्याप्त साधनक जोगार केने अछि । वायु विना हमसभ कतेक काल जीवि सकैत
अछि? कनीको काल नहि । पानि पीने विना कतेक दिन जान बाँचत? तहिना सूर्यक
प्रकाश , पृथ्वीक आधार हमरासभकेँ प्रकृतिक उपहार अछि । मुदा मनुक्ख अपन स्वार्थमे आन्हर
भए सभकिछुपर अपन अधिकार जमओने जा रहल अछि जाहिसँ जीवनमे एतेक संघर्ष अछि । एकगोटे अपन
कै पुस्तक हेतु धनसंग्रह करबामे परेसान छथि तँ दोसर केँ अजुको भोजनक समस्या रहैत अछि
। जखन एहन असमानता रहत तखन समाजमे सुख,शांति कोना होएत?
जीवनक आनंदकेँ
हम अपनाकेँ दोसरक दुख-सुखसँ जोड़ि कए बेसी नीकसँ अनुभव कए सकैत छी । जखन चारिगोटे मिलिकए
कोनो गीत गबैत छी तँ केहन सोहनगर लगैत अछि । सोचिऔ जँ सभ गोटे मिलि कए एकहि भावसँ जीवी,रही तँ कतेक
नीक लगतेक । लोक कतेक सुखी रहत । से तँ तखने होएत जखन आपसमे सहयोग आ समाधान होइ । से
भेलासँ संपूर्ण वातावरणमे आनंदक बरखा होइत रहत आ जीवनक सही मानेमे हमसभ आनंद उठा सकब ।
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